desiaks
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“कोई फायदा नहीं माई चाईल्ड।” जानकी लाल इत्मिनान से सांस भरकर बोला “बहुत लम्बी लिस्ट है ऐसे लोगों की, जिन्हें मुझे जिंदा देखना मंजूर नहीं है। तुम उन्हें याद नहीं रख पाओगी।"
“इ...इसका मतलब आप उन्हें जानते हैं?" उसने अपने पिता को घूरकर देखा था “आप अपने उन तमाम दुश्मनों को जानते हैं जो आपको जीवित रहने देना नहीं चाहते।"
“सवाल बहुत हैं बेटी, मगर जवाब एक ही है।"
“और वह एक जवाब क्या है डियर डैडी?"
“धीरज रखो और इंतजार करो।"
“किसका इंतजार करूं?"
“आने वाले वक्त का? वही वक्त तुम्हारे तमाम सवालों का जवाब देने वाला है।"
“और वह वक्त कब आएगा?” उसने बच्चों जैसी जिद के साथ पूछा।
जवाब देने के बजाये जानकी लाल ने उसकी बगल में खड़े संदीप पर नजर डाली तो अभी तक खामोश पुतले की तरह खड़े संदीप के चेहरे पर सहसा बेचैनी के भाव उभरे। उसकी नजरों में ऐसा तीखापन था कि संदीप एक पल भी उन नजरों का सामना न कर सका और वह जल्दी से परे देखने लगा।
“अ...आप संदीप को ऐसे क्या देख रहे हैं डैडी?” रीनी पूछे बिना न रह सकी थी “अगर आपका शक संदीप पर है तो खातिर जमा रखिए, संदीप की गारंटी मैं लेती हूं। यह मुजरिम हरगिज भी नहीं है।"
“म...मैं इसे मुजरिम कहां ठहरा रहा हूं बेटी।” जानकी लाल हड़बड़ाकर जल्दी से बोला “न ही इस पर कोई इल्जाम लगा रहा हूं। यह भला मुजरिम कैसे हो सकता है। यह तो मेरा अपना है। मेरी बेटी का सुहाग है मेरा दामाद है।"
“फिर भी आप इसे ऐसे संदेह की नजर से देख रहे हैं?"
“आज कोई पहली बार थोड़े ही न देख रहा हूं।” जानकी लाल ने अपने दामाद पर फिर से एक उड़ती नजर डालकर अपनी सफाई पेश की और चिकने-चुपड़े स्वर में बोला “हमेशा ही देखता हूं। यह जब भी मेरी आंखों के सामने आता है, मैं इसे नजर भर देखने लगता हूं और इसमें कुछ खोजने लगता हूं।"
“क...क्या खोजने लगते हैं आप संदीप में?"
“वह खूबी, जिसने तुझे इसका दीवाना बना दिया। तू जानती है न बेटी, तेरी इस पसंद से मुझे जरा भी इत्तेफाक नहीं था और फिर यह शादीशुदा था। इसने अपनी बीवी को तलाक देकर तुमसे शादी की है। यह शादी नहीं असल में एक समझौता था और सबकुछ केवल तेरी जिद का नतीजा था।"
“ड...डैडी...।” रीनी आहत होकर बोली “आप बात को घुमा रहे हैं। यह भी भला कोई वक्त है इन बातों का?"
"ठीक कहा तमने बेटी। यह इन बातों का वक्त नहीं है।"
“और फिर संदीप और मेरे रिश्ते के बीच में आप ही विलेन बनकर खड़े हुए थे। तब बहुत मजबूर होकर संदीप ने अपना वह पहला रिश्ता कबूल किया था और बेबसी में उस कोमल से शादी की थी, जो इसकी नहीं इसके मां-बाप की पसंद थी। आपका वह कारनामा आखिरकार मुझ पर उजागर हो ही गया था। तब मैंने...”
“अब खत्म करो न बेटी। क्यों बात को बढ़ा रही हो?"
रीनी खामोश हो गई।
“अब अगर तुम लोग इजाजत दो तो..।” जानकी लाल बोला "मैं अपने एकाउंटेंट साहब से जरा कुछ कारोबारी गुफ्तगू कर लूं।"
“जरूर कीजिए डैड। हमें कोई ऐतराज नहीं है?"
“लेकिन मुझे ऐतराज है बेटी। सीक्रेसी नाम का भी कोई आखिर कोई लफ्ज होता है दुनिया में?"
“ओह। तो हमारे यहां रहने से आपके बिजनेस की सीक्रेसी जा रही है।” रीनी नथुने फुलाकर बोली।
उसका चेहरा तमतमाने लगा था।
“तुम्हारे यहां होने से सीक्रेसी नहीं जा रही है बेटी।" जानकी लाल ने संशोधन किया “तू तो मेरी जिंदगी है, भला तुझसे मुझे क्या गिला।”
"तो फिर?"
“समझो।" उसका लहजा एकाएक अर्थपूर्ण हो गया। उसने एक तिरछी कुटिल निगाह संदीप पर डाली और फिर परे देखता हुआ बोला “समझो माई डॉल ।”
रीनी ने मतलब समझा तो उसका खूबसूरत सफेद मुखड़ा पलक झपकते ही अपमान से टमाटर की तरह सुर्ख हो गया।
“य..यह मेरे संदीप का अपमान है डैडी।" वह तमतमा कर बोली।
“हो सकता है।” जानकी लाल पूरी ढिठाई से बोला, फिर उसकी निगाह भटककर पुनः संदीप पर ठहर गई।
भोली-नासमझ रीनी उन निगाहों का मतलब क्या समझती, लेकिन संदीप नासमझ और भोला नहीं था।
उससे बेहतर उन खामोश निगाहों का मतलब दूसरा कोई नहीं समझ सकता था।
“इ...इसका मतलब आप उन्हें जानते हैं?" उसने अपने पिता को घूरकर देखा था “आप अपने उन तमाम दुश्मनों को जानते हैं जो आपको जीवित रहने देना नहीं चाहते।"
“सवाल बहुत हैं बेटी, मगर जवाब एक ही है।"
“और वह एक जवाब क्या है डियर डैडी?"
“धीरज रखो और इंतजार करो।"
“किसका इंतजार करूं?"
“आने वाले वक्त का? वही वक्त तुम्हारे तमाम सवालों का जवाब देने वाला है।"
“और वह वक्त कब आएगा?” उसने बच्चों जैसी जिद के साथ पूछा।
जवाब देने के बजाये जानकी लाल ने उसकी बगल में खड़े संदीप पर नजर डाली तो अभी तक खामोश पुतले की तरह खड़े संदीप के चेहरे पर सहसा बेचैनी के भाव उभरे। उसकी नजरों में ऐसा तीखापन था कि संदीप एक पल भी उन नजरों का सामना न कर सका और वह जल्दी से परे देखने लगा।
“अ...आप संदीप को ऐसे क्या देख रहे हैं डैडी?” रीनी पूछे बिना न रह सकी थी “अगर आपका शक संदीप पर है तो खातिर जमा रखिए, संदीप की गारंटी मैं लेती हूं। यह मुजरिम हरगिज भी नहीं है।"
“म...मैं इसे मुजरिम कहां ठहरा रहा हूं बेटी।” जानकी लाल हड़बड़ाकर जल्दी से बोला “न ही इस पर कोई इल्जाम लगा रहा हूं। यह भला मुजरिम कैसे हो सकता है। यह तो मेरा अपना है। मेरी बेटी का सुहाग है मेरा दामाद है।"
“फिर भी आप इसे ऐसे संदेह की नजर से देख रहे हैं?"
“आज कोई पहली बार थोड़े ही न देख रहा हूं।” जानकी लाल ने अपने दामाद पर फिर से एक उड़ती नजर डालकर अपनी सफाई पेश की और चिकने-चुपड़े स्वर में बोला “हमेशा ही देखता हूं। यह जब भी मेरी आंखों के सामने आता है, मैं इसे नजर भर देखने लगता हूं और इसमें कुछ खोजने लगता हूं।"
“क...क्या खोजने लगते हैं आप संदीप में?"
“वह खूबी, जिसने तुझे इसका दीवाना बना दिया। तू जानती है न बेटी, तेरी इस पसंद से मुझे जरा भी इत्तेफाक नहीं था और फिर यह शादीशुदा था। इसने अपनी बीवी को तलाक देकर तुमसे शादी की है। यह शादी नहीं असल में एक समझौता था और सबकुछ केवल तेरी जिद का नतीजा था।"
“ड...डैडी...।” रीनी आहत होकर बोली “आप बात को घुमा रहे हैं। यह भी भला कोई वक्त है इन बातों का?"
"ठीक कहा तमने बेटी। यह इन बातों का वक्त नहीं है।"
“और फिर संदीप और मेरे रिश्ते के बीच में आप ही विलेन बनकर खड़े हुए थे। तब बहुत मजबूर होकर संदीप ने अपना वह पहला रिश्ता कबूल किया था और बेबसी में उस कोमल से शादी की थी, जो इसकी नहीं इसके मां-बाप की पसंद थी। आपका वह कारनामा आखिरकार मुझ पर उजागर हो ही गया था। तब मैंने...”
“अब खत्म करो न बेटी। क्यों बात को बढ़ा रही हो?"
रीनी खामोश हो गई।
“अब अगर तुम लोग इजाजत दो तो..।” जानकी लाल बोला "मैं अपने एकाउंटेंट साहब से जरा कुछ कारोबारी गुफ्तगू कर लूं।"
“जरूर कीजिए डैड। हमें कोई ऐतराज नहीं है?"
“लेकिन मुझे ऐतराज है बेटी। सीक्रेसी नाम का भी कोई आखिर कोई लफ्ज होता है दुनिया में?"
“ओह। तो हमारे यहां रहने से आपके बिजनेस की सीक्रेसी जा रही है।” रीनी नथुने फुलाकर बोली।
उसका चेहरा तमतमाने लगा था।
“तुम्हारे यहां होने से सीक्रेसी नहीं जा रही है बेटी।" जानकी लाल ने संशोधन किया “तू तो मेरी जिंदगी है, भला तुझसे मुझे क्या गिला।”
"तो फिर?"
“समझो।" उसका लहजा एकाएक अर्थपूर्ण हो गया। उसने एक तिरछी कुटिल निगाह संदीप पर डाली और फिर परे देखता हुआ बोला “समझो माई डॉल ।”
रीनी ने मतलब समझा तो उसका खूबसूरत सफेद मुखड़ा पलक झपकते ही अपमान से टमाटर की तरह सुर्ख हो गया।
“य..यह मेरे संदीप का अपमान है डैडी।" वह तमतमा कर बोली।
“हो सकता है।” जानकी लाल पूरी ढिठाई से बोला, फिर उसकी निगाह भटककर पुनः संदीप पर ठहर गई।
भोली-नासमझ रीनी उन निगाहों का मतलब क्या समझती, लेकिन संदीप नासमझ और भोला नहीं था।
उससे बेहतर उन खामोश निगाहों का मतलब दूसरा कोई नहीं समझ सकता था।