Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज - Page 10 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज

शुरू से जो शख्स कालिज में घटी पटनाओं का चश्मदीद गवाह है , अगर यह वगैर सोचे समझे भी मुँह से लफज निकाले तो स्बभाविक रूप से वहीं निकालेगा जो हुआ है । उसने सत्या का नाम नहीं लिया , ये बात अस्वाभाविक है । और अस्वाभाविक बात कत्ल के केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहे शख्स को हर हाल में खटकनी चाहिए । '
" इसलिए तुम्हें खटकी ? "
" नतीजा क्या निकला ?
अस्वाभाविक बात ललिता के मुंह से क्यों निकली ? "
" फिलहाल तुम उसे छोड़ो । मैं तुम्हें हत्यारे की एक चीज दिखाना चाहती हूं । "
" हत्यारे की चीज ? " मैं उछल गया।

चौंकने के भाव जैकी के चेहरे पर भी थे । विभा ने जेब से लौकिट निकालकर मेज पर रख दिया । सोने की चेन में सोने का ही बना दिल लगा था ।
" अरे ! " जैकी उछल पड़ा- " ये तो लविन्द्र का । " " ल - लबिन्द्र का ? "
मैं और विभा चौक पड़े ।
" आपने नहीं देखा इसे ? उस वक्त राइटिंग टेबल पर ही तो पड़ा था जब हम लोग हिमानी के कमरे से उसके कमरे में पहुंचे । इसका आधा हिस्सा मेज पर रखी बुक्स के नीचे दबा था मगर ये दिल वाला हिस्सा साफ नजर आ रहा था । मैं दावे के साथ कह सकता हूं यह वही है ।

आपको कहाँ से मिला ? "
' हत्यारे के गले से ।
" बुरी तरह उद्विग्न मैंने कहा ---- " प्लीज विभा डिटेल में बताओ । "
तुम तो जानते हो ---- मारधाड़ से मेरा कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा । इसके बावजूद जब हेलमेट बाला सामने पड़ा तो उसका पीछा करने के अलावा कुछ नहीं सूझा । वरांडे में उससे गुत्थम - गुत्था हुई । मुकाबला तो खैर मैं क्या कर पाती ? रबर की गुड़िया की तरह उसने मुझे उठाकर क्लासरूम में फेंक दिया । कदाचित उस वक्त मेरे हाथ उसके गिरेबान पर थे । बस इतना ही कह सकती हू थोड़ा होश आया तो इसे अपनी अंगुलियों में उलझा पाया । "

" तुम दोनों की बातों को मिला दिया जाये तो हेलमेट वाला लबिन्द्र हुआ । "

“ मैने इसे देखा है । मुझे हैरत है विभा जी , हर चीज को बारीकी से देखने की आदत के बावजूद आप क्यों नहीं देख सकी । सामने ही तो पड़ा था । "
" उस वक्त मेरी नजर सीधी एशट्रे पर गई थी । " विभा ने कहा ---- " और फिर लविन्द्र के चेहरे पर जम गई क्योंकि मैं समझ चुकी थी हिमानी के कमरे में वही गया था । "
" ये तो क्लियर है । हेलमेट वाला यही है । उसे फौरन गिरफ्तार कर लेना चाहिए । "

" उतावलापन मेरी कार्य - प्रणाली में नहीं है । "

कहने के साथ विभा ने लौकिट उठाया । उसका दिल वाला हिस्सा किसी डिबिया जैसा था । विभा ने उसे खोला । दिल किसी छोटी सी किताब की मानिन्द खुल गया और उसमें से टपक पड़ा एक नन्हां सा फोटो । फोटो मेज पर उल्टा गिरा था । हम तीनों को नजरें एक दूसरे से उलझकर रह गयीं । दिल धाड़ - धाड़ करके बज रहे थे । दिमागों में एक ही सवाल था।

किसका फोटो है ये ?
क्या सस्पैस खुलने वाला है ? विभा ने अपने नाखूनों से किसी सुहागिन की बिंदी जितना बड़ा वह फोटो उठाकर उलट दिया । मेरे और जैकी के हलक से विस्मयजनक चीख् निकल पड़ी । "
 
डर देखी है तुमने ? "
" डर ? " लविन्द्र बिदका ।
" फ़िल्म की बात कर रहा हूँ । शाहरुख खान था उसमें । जूही चावला भी थी । "
" ब - बड़ा अजीब सवाल पूछ रहे हैं आप ! "

" जबाब दो ! " मैं गुर्राया ।
" अंजाम ? "
" ज - जी ? "
" यह वैसी ही दूसरी फिल्म का नाम है । "
" मैंने नहीं देखी । "
" बाजीगर ? "
" मैं फिल्म नहीं देखता । "
" मगर हरकतें तीनों फिल्मों के शाहरुख जैसी करते हो । "
" अ - आप क्या बात कर रहे है । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा । "
" समझकर अंजान बनने की यह अदा तुम पहली बार नहीं दिखा रहे । लोग अक्सर ऐसा करते हैं । " .
" विभा जी प्लीज । " एकाएक उसने विभा की तरफ बढ़ना चाहा ---- " मुझे बताइए तो सही बात क्या है ? " मैंने उसका कालर पकड़कर अपनी तरफ घसीटते हुए कहा ---- " इधर बात करो मिस्टर लविन्द्र । इधर कमान इस वक्त मेरे हाथ में है क्योंकि वो सख्स मैं हूं जो जानता है कि तुम सत्या श्रीवास्तव से कितनी गहराइयों तक मुहब्बत करते थे । "

" उस मुहब्बत का भला अब क्या जिक्र ?

" कुछ लोगों की फितरत बड़ी अजीब होती है हुजूर । जिस चीज पर उनकी नजर पड़ जाये तो ये किसी भी कीमत पर उसे हासिल करते है या तोड़ देते है । फोड़ देते है । खत्म कर देते हैं । गारत कर देते हैं दुनिया से जैसे सत्या गारत हो गयी । "
" पता नहीं आप क्या पहेलियां बना रहे हैं ? जो कहना है साफ - साफ कहिए ना ! "
" लाकिट कहां है तुमहारा ? "
" सीधा - सादा सवाल भी पहेली लग रहा है क्या ? "
" मेरे पास कोई लॉकेट नहीं है । "
" बेशक इस बार नहीं है । मगर था । "
" क्या कह रहे हैं आप ? मेरे पास कभी कोई लाकिट नहीं था । "
" झूठ बोलने की कोशिश की तो भूसा भर दूंगा खाल में । " चीखते हुए जैकी ने झपटकर दोनों हाथों से गिरेबान पकड़ लिया । उसके सारे वजूद को हिलाता हुआ दांत भींचकर गुर्राया ---- " मैंने इसी कमरे में लॉकिट को अपनी आंखों से देखा है । वहां मेज़ पर उन बुक्स के नजदीक था । आधा हिस्सा बुक्स के नीचे था और आधा ....

" क क्या बात कर रहे हो इंस्पेक्टर " चेहरे पर आश्चर्य और खौफ के भाव लिए लबिन्द्र उसका वाक्य काटकर कह उठा --- " मैंने पूरी जिन्दगी में कभी कोई लॉकिट नहीं पहना ..... मारे गुस्से के जैकी मानो पागल हो उठा । दाँत किटकिटाकर हाथ छोड़ने वाला था कि विभा ने आगे बढ़कर रोका ।

मैंने अपनी जेब से लॉकेट निकाला और उसे हवा में उछाल - उछालकर लपकता हुआ बोला -.--- " हम पहले से जानते थे ! कहना तुम्हें यही था क्योंकि तुमसे बेहतर कौन जानता है कि गुत्थम - गुत्थी के दरम्यान लॉकिट विभा के हाथ लग चुका है । "
" क - क्या बकवास कर रहे हैं आप ? विभा जी , मेरी आपसे गुत्थम - गुत्था कब हुई ? "

" जब तुम अल्लारखा का मर्डर करके भाग रहे थे ।
" हे भगवान ! ये क्या कर रही हैं आप ? "
" इस नाटकबाजी से कुछ नहीं होगा मिस्टर लविन्द्र । लौकेट खुद चीख - चीखकर बता रहा है कि मैं लविन्द्र का हूँ ।
" लॉकिट बता रहा है ? "
मैंने लॉकिट का दिल खोला । उसमें बिंदी के बरावर सत्या का फोटो मौजूद था । लबिन्द्र आखें फाड़े उसे देखता रह गया।
 
कमरे में डायरी नहीं नजर आ रही है तुम्हारी । कहां है ? "
" मैंने जला दी ।
" जला दी ? " आखे सिकुड़ गई मेरी ---- " क्यो ? "
" ताकि कोई और मैरी खामोश मुहब्बत के बारे में न जान सके । "
विभा ने पूछा---- " ऐसा क्यों चाहते थे तुम ? "
" जो मुहब्बत परवान न बढ़ सकी — मैं नहीं चाहता उसका जिक्र भी किसी की जुबान पर आये । "
" कब जलाई ? " मैंने व्यंगपूर्वक पुछा --- " अलारक्खा के मर्डर से पहले या बाद में ? "
" आपसे बात होने के तुरन्त बाद । "
" मगर लॉकिट को दिल से लगाये घूमते रहे ? "
" उफ़ ! कितनी बार कहूँ मिस्टर वेद " लविन्द्र चीख् पड़ा -- " लाकिट मेरा नहीं है । "

" उसका क्यों नहीं हो सकता जिससे सत्या प्यार करती थी ? "
" कौन है वो ? " जैकी ने पुछा ।
" मैं नहीं जानता । "
" जैकी । " विभा ने कहा -- " लविन्द्र की बात में दम हो सकता है । क्यों न एक बार सत्या के कमरे की तलाशी ली जाये ? "
" सत्या के मर्डर के बाद मैं ले चुका हूं । वहां से ऐसा कुछ नहीं मिला जिसके बेस पर .... "
फिर भी । " विभा ने कहा ---- " मैं खुद एक बार कमरा चैक करना चाहूंगी । "
" चलिए । सत्या के कमरे की तलाशी के दरम्यान मैंने कहा ---- " सत्या के प्रेमी का पता लग भी जाये तो हमें क्या फायदा होने वाला है विभा ? भला प्यार करने वाला अपनी प्रेमिका को क्यों मारेगा ? मेरे ख्याल से हम भटक रहे हैं । सत्या के मर्डर की सबसे मजबूत बजह लबिन्द्र के पास है । सत्या उसे हासिल नहीं थी , इसलिए उसने .... "

तुम्हारी वात में दम है । " उसने कहा ---- " इसके बावजूद यह पता लगाना जरूरी है कि सत्या का प्रेमी अगर कोई था तो कौन है ? "

मैंने कुछ करने के लिए मुंह खोला ही था कि बरांडे में शोर की आवाज उभरी।

शोर ऐसा था जैसे बाहर मौजूद लोगों ने अनहोनी दृश्य देखा हो । अभी कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि ---- घाय - धाय । एक साथ दो गोलियां चलने की आवाज से दातावरण थर्रा उठा । बाहर से चीख पुकार उभरी ।

विभा बिजली की सी गति से दरवाजे की तरफ लपकी । हम उसके पीछे थे । दरवाजा खोलते ही देवता कूच कर गये हमारे । दंग रह गये । ठीक सामने । केवल दस फुट दूर गैलरी में ललिता खड़ी थी । घेहरे पर आग नजर आ रही थी उसके हाथ में रिवाल्वर ! रिवाल्वर अपनी कनपटी से लगा रखा था । सभी स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर डरे सहमे उससे दूर खड़े थे । हरेक चेहरे पर खौफ था । आतंक और आश्चर्य । ललिता हिंसक भेड़िये की तरह गुराई ---- " किसी ने मेरी तरफ बढ़ने की कोशिश की तो खुद को गोली मार लूंगी । "

चारों तरफ सन्नाटा छा गया । सभी अवाक थे । " ये क्या बेवकूफी है ललिता ? " विभा चीखी ---- " क्या चाहती हो तुम ? "

" बेवकूफी तुम कर रही हो विभा निन्दल । इस कॉलिज में हो रही हत्याओं को तुम नहीं रोक सकती । वापस लौट जाओ । हत्यारे के गिरेबान तक पहुंचना तो दूर , यहाँ हो रही हत्याओं का कारण तक नहीं जान सकतीं तुम । रहा तुम्हारे दूसरे सवाल का जवाब । तो सुनो मैं खुद को गोली मारने वाली हूं । "

" ये क्या पागलपन है ललिता ? मैं तुम्हारा राज ... राज रखने का वचन दे चुकी हूं । "

" हा ... हा ... हा । " ललिता पागलों की मानिद हंसी , बोली- “ अब मैं किसी राज को राज रखने की ख्याहिशमंद नहीं हूँ विभा जिन्दल । सुनो ---- कान सोलकर सुनो सब । नगेन्द्र से मेरे नाजायज तालूकात हैं । इसके बच्चे की मां बनने वाली हूँ मैं । बस ! या इसके अलावा भी कुछ कहलवाना चाहती हो ? "

मैं , जैकी , विभा और वहां मौजूद हर शख्स दंग रह गया । जैकी ने कहा ---- " खुद को क्यों मारना चाहती हो तुम ? "
" हत्यारे का ऐसा ही आदेश है । "
 
तुम उस आदेश को मानने के लिए मजबूर क्यों हो ? " चीखकर मैंने पूछा ।

" सोचो राइटर महोदयः सोचो ---- सुना है कल्पनायें करने के मामले में मुल्क के नम्बर वन लेखक हो तुम । कल्पना करो ---- एक शख्स हत्यारे के हुक्म पर अपनी हत्या कैसे कर सकता है ? "
" ये पागलपन छोडो ललिता । फैंक दो रिवाल्वर । खुद को हमारे हवाले कर दो । " विभा कहती चली गई ---- " मैं विश्वास दिलाती हूँ हत्यारा तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । आत्महत्या पाप है । "

" ठीक कहा तुमने । कोई शख्स जब खुद को गोली मारता है तो उसे आत्महत्या कहते हैं मगर ये आत्महत्या नहीं , हत्या है विभा जिन्दल । ऐसा हत्या जो उसी हत्यारे के द्वारा तुम्हारी आंखों के सामने होगी जिसने सत्या , चन्द्रमोहन , हिमानी और अल्लारक्खा को मारा ।
हाथ मेरे हैं लेकिन समझ लो गोली वहीं चलायेगा । अब बोलो ---- हत्यारे द्वारा की जाने वाली हत्या का ये स्टाइल कैसा लगा तुम्हें ? "

मैंने महसूस किया , जैकी का हाथ धीरे - धीरे अपने होलेस्टर की तरफ बढ़ रहा था । विभा ने ललिता को बातों में उलझाये रखने की गर्ज से कहा ---- " तुम्हारे शब्दों से जाहिर है इस वक्त मुझसे वह कह रही हो जो हत्यारे कहने के लिए कहा है । तुम उसके दवाब में हो । फिर कहूंगी ललिता ---- कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । मुझे बताओ वह कौन ..... "

हाथ रोक लो इंस्पैक्टर " ललिता गुर्राई ---- " तुम इस हत्या को होने से नहीं रोक सकते और इसी को क्यों , अभी तो और हत्यायें होगी । तुम , विभा जिन्दल और ये राइटर कोई नहीं रोक सकता । " जैकी का हाथ जहां का तहां ठिठक गया । बिभा ने कहा ---- " नगेन्द्र , तुम समझाओ ललिता को । ये बेवकूफी करने वाली है । "

" ल - ललिता ! " नगेन्द्र ने हिम्मत की---- " प्लीज ! ऐसा मत करो । " ललिता हंसी । ठीक पागल सी लगी वह । बोली ---- " मरेगा नगेन्द्र ! तू भी मरेगा । "
" मैं - मैं ! " नगेन्द्र सकपकाया -- " म - मैं भी ? "
" मरने से पहले इस कालिज में चैलेंज की प्रथा पड़ गयी है । और देखो ---- मैं तुम सबके सामने चैलेंज लिखूगी । "
कहने के साथ उसने रिवाल्वर दायें हाथ से बायें हाथ में ट्रान्सफर किया । दांया हाथ ब्लाऊज में डाला । वक्षस्थल से एक चौक निकाला । जहां खड़ी थी , वहीं बैठ गयी वह । वायें हाथ में दबे रिवाल्वर को अपनी कनपटी से सटाये गुर्राई ---- " याद रखना , किसी ने भी इंस्पैक्टर जैसी होशियारी दिखाने की कोशिश की तो वक्त से पहले खुद को गोली मार लूंगी मैं । " सभी हकबकाये से खड़े थे ।

उसने विभा , जैकी और मुझ पर नजरें गड़ाये रखकर चौक से फर्श पर लिखा --- ' C ' फिर ' H ' लिखा ।

पीछे मौजूद राजेश ने बिल्ली की मानिन्द दबे पांव उसकी तरफ बढ़ना शुरू किया । ललिता ने ' A ' लिखा । सब जानते ये वह क्या लिखना चाहती है ।

राजेश को उसकी तरफ बढते देख सबकी धड़कनें रुक गई थी । अभी ललिता ने पहला L लिखा था कि राजेश ने झपटकर उसे दबोच लिया । ललिता छटपटाई । राजेश का एक हाथ उसकी रिवाल्वर वाली कलाई पर था । उसकी मदद के लिए विभा और जैकी ने जम्प लगाई । मगर ।
" घांय । " ललिता के हाथ में दबे रिवाल्चर ने शोला उगला । सबकी कोशिशों पर पानी फेरता ललिता की कनपटी चीर गया वह । ललिता की चीख के साथ वातावरण में अनेक चीखें उभरीं । उस एक पल के लिए जो जहां था वहीं ठिठककर रह गया ।

ललिता की गर्दन लुढ़क चुकी थी । रिवाल्चर हाथ से निकलकर फर्श पर गिर गया । लाश राजेश की बाहों में झूलती रह गयी । खून के छीटे खुद उसके चेहरे पर भी पड़े थे । गर्म खून , भल्ल - भल्ल करके बह चला । जैकी और विभा की मदद से राजेश ने लाश को फर्श पर लिटाया । बहुत देर तक ऐसा सन्नाटा छाया रहा जैसे किसी के मुंह में जुबान न हो ।

" हद हो गयी ! " अन्ततः बंसल कह उठा ---- " कैसा हत्यारा है ये ! जो लोगों को खुद पर गोली चलाने के लिए मजबूर कर देता है ? क्यों पीछे पड़ गया है इस कॉलिज के ? हम सबने क्या बिगाड़ा था उसका ? " विभा सहित किसी पर जवाब न बन पड़ा।
 
बंसल ने कहा --- " मिस्टर वेद आपने बड़े कसीदे पड़े थे विभा जिन्दल की तारीफ में । कहा था इनके आते ही न सिर्फ हत्याओं का सिलसिला रुक जायेगा बल्कि हत्यारा पकड़ा भी जायेगा । चौबीस घण्टे नहीं गुजरे अभी ---- हिमानी , अल्लारखा और ललिता तीनों मारे गये । क्या कर लिया विभा जी ने ? "
" किसी इन्वेस्टिगेटर के पास अलादीन का चिराग नहीं होता बंसल साहब कि वह घिसे और हत्यारा गुलाम की तरह सामने आकर खड़ा हो जाये । मैंने जो कहा , वही कहने के लिए बाध्य था --- यकीन रखें , विभा से बेहतर इस केस की इन्वेस्टिगेशन कोई नहीं कर सकता । "

राजेश उत्तेजित हो उठा ---- " हत्यारा चैलेंज देकर सबकी आंखों के सामने मर्डर कर रहा है । इसी मर्डर को लो ! कितनी अनोखी बात है ? हत्यारे का शिकार खुद हत्यारे के शब्द कहता खुद को गोली मार लेता है । पहले कभी ऐसा न देखा गया , न सुना गया । पता नहीं कौन - सा जादू है उस पर ? "

" फिलहाल उसी जादू के बारे में मालूम करना है । " विभा ने कहा ---- " आखिर उसने ललिता को इतनी मजदूर कैसे कर दिया कि इसने न सिर्फ हर वह लफ्ज बोला जो हत्यारा कहलवाना चाहता था बल्कि सबके रोकते - रोकते खुद को गोली मार ली । "
" कौन कह सकता है उसने यह चमत्कार कैसे दिखाया ? " जैकी बुदबुदा उठा ।

एकाएक विभा ने मुझसे पूछा ---- " वेद ! ललिता की एक बेटी थी न ? "
" च - चिन्नी । " मेरे मुंह से निकला ।
" कहां है वह ? " चिन्नी ललिता के रूम में नहीं थी । सभी स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स उसे कालिज में तलाश करते फिर रहे थे । किसी को नहीं मिली । अंततः बंसल के बंगले का चौकीदार कैम्पस में आया । उसने कहा ---- " सर ! लेडीज बार्डन की बेटी हमारे बंगले में है । "

उस वक्त मैं वंसल के साथ था । सुनकर उछल पड़ा । पेट्रोल पर दौड़ने वाली आग के समान खबर सबके कानों तक पहुंच गयी । लपकते - झपकते सब बंसल के कमरे में पहुंचे । चिन्नी बेहोश थी । . बंसल की पत्नी अर्थात् निर्मला उसे होश में लाने का प्रयत्न कर रही थी ।

बंसल के साथ हम सबको अंदर दाखिल होता देखकर उठ खड़ी हुई । बैड पर एक तरफ रेशम की मजबूत डोरी पड़ी थी । चिन्नी वही रंग - बिरंगा फ्रॉक पहने हुई थी । जिसमें मैंने उसे पहली बार देखा था ।
 
बंसल ने पुछा --- " यहां कैसे पहुंच गयी ये ?

" जवाब चौकीदार ने दिया --..- " हमने कैम्पस की तरफ से गोलियां चलने की आवाज सुनी सर , लेकिन आपने कह ही रखा है , उधर चाहे जो होता रहे , हमें यहा से नहीं हिलना है । वही किया । तब भी , जब लाइट गई ----

गोलियां चली । लेकिन जब दूसरी बार अब से थोड़ी देर पहले फायरिंग हुई तो चकराये । कॉलिज में आखिर हो क्या रहा है , यह जानने के लिए बरांडे से निकले । मेमसाहब सो रही थीं । हम बगीचे में पहुंचे । चौंके । एक झाड़ी के साये में यह बच्ची पड़ी थी । बुरी तरह बंधी हुई । बेहोश ! मेरा जी थाहा कैम्पस में जाकर आएको खबर दूं । फिर सौचा ---- आपने बंगले के आसपास से हिलने से मना किया है । सो इसे उठाकर अंदर ले आये । मेम साहब को जगाया । इसे देखते मेमसाहब कह उठी ---- ' ये तो चिनी है । वार्डन की बेटी । जल्दी कैम्पस में जाकर अपने साहब को खबर कर । और हम दोड़े - दौड़े आपके पास पहुंचे । "

" तब से मैं इसे होश में लाने की कोशिश कर रही हूं । " निर्मला ने बताया ।
" कमाल की बात है । " जैकी ने कहा ---- " कैम्पस में इतनी गोलियां चलीं - आप सोती रहीं ? "
" मुझे अनिन्द्रा की बीमारी है । नींद की गोलियां लेकर सोती हूं । मैं तो तब उठी जब चौकीदार ने दरवाजे को तोड़ डालने वाले अंदाज से भडभड़ाया । "
चिन्नी के चेहरे पर बार - बार पानी के छींटे मारकर अंततः होश में लाया गया । होश में आते ही वह रोने लगी । बार - बार अपनी मम्मी को पूछने लगी । बहला - फुसलाकर सवाल किये तो वह कहानी सामने आई जिसकी आशंका थी । उसने बताया ---- “ मुझे एक हेलमेट वाले ने पकड़ लिया था । जैसे ही मम्मी कमरे में आई ---- उसने मेरे सिर पर रिवाल्वर रखकर कहा --- ' चीखने या चिल्लाने की कोशिश की तो इसे मार डालूंगा ।
' मम्मी डर गयीं ---- ' बोली तुम हत्यारे हो न ? मुझसे क्या चाहते हो ? '
हेलमेट वाले ने कहा --- ' तेरे हाथों से तेरा मर्डर ।
' मम्मी ने कहा ---- " मैं समझी नहीं । वह बोला -- ' समझाता हूँ । और तभी उसने बहुत जोर से अपना रिवाल्वर मेरे सिर पर मारा । मेरे मुंह से चीख् निकली मगर उसका दूसरा हाथ मेरे मुंह पर था । उसके बाद मुझे कुछ पता नहीं क्या हुआ ! "

सब समझ रहे थे क्या हुआ होगा ? जाहिर था ---- " बेटी को बचाने के लिए ललिता ने केवल वह कहा और किया जो हत्यारा चाहता था बल्कि अपनी जान तक दे दी । " सबकुछ बताने के बाद चिन्नी हिचकियां ले लेकर मम्मी के बारे में पूछती रही । बेचारी को कौन क्या जवाब देता ? एकाएक विभा ने निर्मला से कहा --- " आपकी नथ बहुत सुन्दर है । "
" न - नथ ? "
निर्मला का हाथ स्वतः अपनी नाक पर पहुंच गया । " और शायद कीमती भी डायमंड की है क्या ?
हाँ।

विभा का टापिक हैरतअंगेज था ।
हमें लगा ---- दिमाग तो नहीं फिर गया है उसका ?
कहां हत्यारे द्वारा किये जा रहे मर्डर ? कहां निर्मला की नथ ? इस वक्त हमें पेचीदगियों से भरी घटनाओं पर विचार करना चाहिए था या किसी के गहनों पर ? सवका नेतृत्व करते हुए अंततः मैंने कह ही दिया ---- ' विभा ,ये वक्त किसी के गहनों की तारीफ करने का है या .... जबकि "
प्लीज बेद ! मुझे अपना काम करने दो । " ये शब्द विभा ने ऐसे अंदाज में कहे कि मैं तो मैं , कोई कुछ नहीं बोला।
विभा ने निर्मला की तरफ पलटते हुए कहा ---- " कब खरीदी ? "
" मेरिज ऐनीवर्सरी पर इन्होंने प्रजेण्ट की थी । उसने बंसल की तरफ इशारा किया ।
विभा बंसल की तरफ घूमी । आंखें , उसके चेहरे पर गड़ा दी उसने । हकबकाकर बंसल को पूछना पड़ा ---- " प -पत्नी को प्रजेण्ट देना गुनाह है क्या ? "
" कोई गुनाह नहीं है । " कहने के साथ एकाएक विभा मुस्कराकर बोली ---- " मैं आपके कमरे की तलाशी लेना चाहती हूं । "
" त - तलाशी ? " बंसल उछल पड़ा ---- " क - क्यों ? "
" बताऊंगी , लेकिन तलाशी के बाद । "
" म - मगर । "
" ऑबजेक्शन हो तो बताइए । " बंसल हकला उठा ---- " म - मुझे क्या ऑब्जेक्शन हो सकता है ।
किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था । मैं भी सब में शामिल था मगर तलाशी में जुट गया । जैकी ने भी सामान को इधर - उधर करना शुरू कर दिया । बंसल और निर्मला सहित सब हकबकाये से खड़े थे ।
विभा एक तिजोरी पर ठिठकी ।
वह वार्डरोब पर रखी थी । लगभग वैसी ही थी जैसी सर्राफों के यहां होती है ।
निर्मला से पूछा ---- " इसकी चाबी ? " "
 
इन्हीं के पास रहती है , मैं इसे हाथ नहीं लगाती ।
क्यो ? "
" मैंने मना कर रखा है । " बंसल ने कहा । निर्मला बोली ---- " इसमें ये कॉलिज से सम्बन्धित जरूरी कागजात रखते हैं । "
" ऐसा आपने कहा होगा इनसे ? " विभा ने बंसल से पुछा ।
" क्या ये सच है ? "
बंसल अचकचाया । जवाब न दे सका वह । मैं और जैकी अपना अपना काम भूलकर उनकी तरफ देखने लगे थे । विभा , बंसल और निर्मला के बीच संबाद ही कुछ ऐसे थे कि सभी को गड़बड़ नजर आने लगी । कुछ चुप रहने के बाद विभा ने एक - एक शब्द पर जोर डालते हुए कहा ---- " आपने जवाब नहीं दिया बंसल साहब । क्या ये सच है ? कॉलिज से सम्बन्धित कागजात ही है इसमें ? "
" मेरी समझ में नहीं आ रहा ---- इस सबका हत्याओं से क्या सम्बन्ध ? "
" मुझे चाबी चाहिए । "
" विभा जी प्लीज । " बंसल गिडगिड़ा उठा ---- " रहने दीजिए । "
" कारण ? "
" व - बाद में बता दूंगा । "
" बाद से क्या मतलब ? " राजेश भड़क उठा। ---- " यानि हम ही लोगों से छुपाया जायेगा सबकुछ ! हम ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे । क्यों दोस्तो ---- क्या कहते हो ? "
" हमारे दोस्तों के मर्डर हो रहे हैं । हमारी मैडम मारी गई हैं । " एकाएक कई स्टूडेन्ट भड़क उठे ---- " जिसे प्रिंसिपल साहब छुपाना चाहते हैं ---- उसे देखने का सबसे पहला हक हमारा है ! "
" आगे बढ़ो । " रणवीर चीखा ---- " तोड़ दो तिजोरी को । "
हुम्म बाढ़ग्रस्त नदी वाले अंदाज में आगे बढ़ा । " विभा जी प्लीज , रोकिए इन्हें । " बंसल ने कहा ।
" ये युवा शक्ति है बंसल माहब । एक हद के बाद इसे नहीं रोका जा सकता । ये देश के ये पागल बेटे हैं जो प्रधानमंत्री के एक गलत फैसले के जवाब में खुद को जलाकर खाक करने पर आमादा हो जाते हैं । इन्हें रोकना मेरे नहीं , आपके हाथ में है । चाबी दीजिए ---- ये रुक जायेंगे ।

प्लीज ! इनके सामने रहने दीजिए । "

" आखिर ऐसा क्या है तिजोरी में जीसे आप छुपाना चाहते है ? " उत्कंटा का मारा मैं चीख पड़ा ---- "

राजेश ! आगे बढ़ो - तोड़ दो तिजोरी को . " राजेश लपकने ही वाला था , जैकी ने उसे रोकते हुए कहा ---- " बंसल साहब को आखिरी मौका दिया जाना चाहिए । " कहने के बाद वह बंसल की तरफ पलटकर बोला ---- " चाबी दे रहे हैं या नहीं ? " बंसत के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे बदन से कपड़े नोंचने का प्रयास किया जा रहा हो । दायां हाथ हिला । गाऊन और शर्ट को पार करके बनियान की जेब में पहुंचा । वापस आया तो उसमें चाबी थी । चावी उसने विभा की तरफ इस तरह बढ़ाई जैसे जान निकालकर दे रहा हो ।

विभा तिजोरी की तरफ बढ़ी । सबके दिल धक- धक करके बज रहे थे । ऐसा केवल बंसल के व्यावहार के कारण था । विभा ने चावी घुमाई । हैंडिल गिराया । दरवाजा खुला । उसमें पांच - पांच सौ के नोटों की गड्डियां पड़ी नजर आई । सबके चेहरों पर ' खोदा पहाड़ निकली चुहिया ' वाले भाव उभरे । विभा ने दो गड्डियां उठाई । यहा ---- " ये आपके कितने दिनों की तनख्वाह है ? "
" यकीन मानिए विभा जी । यह किसी फंड से बचाया गया पैसा नहीं है । ये तो केवल वे है जो विभिन्न टेंडर्स के पास होने पर ठेकेदारों द्वारा दिया ही दिया जाता है । "
" ओह ! " दीपा कह उठी ---- " प्रिंसिपल साहब कमीशनखोर हैं । "
" कमीशन खाना अब अपराध कहाँ है ? " राजेश व्यंग्य कर उठा -- " रक्षा सौदों तक में कमिशन खाया जाता है । मंत्रियों के घर से सूटकेस बरामद होते हैं । प्रिंसिपल साहब ने ही लाख - दो लाख खा लिये तो कौन सा इनका हाजमा बिगड़ गया ? "

बंसल सिर झुकाये खड़ा रहा । इधर टीका - टिप्पणी चल रही थी ---- उधर विभा ने एक नजर और तिजोरी के अंदर डाली । इस बार उसके हाथ एक कार्ड लगा।
 
एक ऐसा कार्ड जो किसी के बर्थडे पर दिया जाता है ।
विभा ने उसे खोला ।
टिप्पणियां बंद हो गयी थी । सबकी नजर उसी पर थी ।
मैं और जैकी विभा के नजदीक पहुंचे । उस पर लिखा मैटर पढ़ा । बुरी तरह चौके हम ! दिमाग के कपाट तेज आंधी से खुलकर पट्ट - पट की आवाज के साथ खड़खड़ाने लगे । सबसे ऊपर लिखा था --- " स्वीट हार्ट ! "
बीच में बधाई का ऐसा प्रिन्टिड मैटर था जो केवल प्रेमिका द्वारा प्रेमी को लिखा जाना चाहिए । और सबसे नीचे थे --- सत्या श्रीवास्तव के साइन । विजलिया - सी कौंध रही थी मेरे दिमाग में । तो क्या सत्या का प्रेमी बंसल था ? मेरे दिमाग में , गाड़ी में विभा द्वारा कही गई बातें चकरा रही थीं ।

जैकी कह उठा --- " शायद वह मिल गया विभा जी , जिसकी हमें तलाश थी । "
" क्या बात कर रहे हैं आप ? " बंसल लपककर हमारे नजदीक आता हुआ बोला -- " क्या है ?

" विभा ने कार्ड उसे पकड़ा दिया । बंसल ने देखा । बुरी तरह चौंकता नजर आया वह । लगभग चीख पड़ा ---- " - ये क्या बकवास है ? ये कार्ड मेरी तिजोरी में कहां से आया ? "

" वैरी गुड । " जैकी कह उठा-- " तिजोरी आपकी ! चाबी आपके पास । और जवाब हमें देना है । "
" म - मगर मैं कसम खाकर कहता हूं ! मुझे कार्ड के बारे में कुछ नहीं पता । नहीं जानता इसे तिजोरी में किसने रखा । मैं तो रुपयों की वजह से चाबी देने से इंकार कर रहा था । " सभी स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स को कार्ड के बारे में पता लग गया ।
चारों तरफ सन्नाटा छा गया । सभी अवाक रह गये थे । " जरूर कोई घोटाला है । " अचानक राजेश पूरी ताकत के साथ चीख पड़ा ---- " हमारी सत्या मैडम हरगिज - हरगिज ऐसी नहीं हो सकती । प्यार करना गुनाह नहीं । हम नहीं कहते सत्या मैडम प्यार नहीं करती होंगी परन्तु प्रिंसिपल साहब से ? हरगिज नहीं । शादीशुदा आदमी से मुहब्बत करने वाला चरित्र नहीं था उनका । ' सभी स्टूडेन्ट्स ने समवेत स्वर में उसका समर्थन किया।

एरिक बोला --... " इस सम्बन्ध में तो हम भी यही करेंगे । सत्या के सम्बन्ध में ऐसा विचार नहीं किया जा सकता । विद्यालय में एक वही तो थी जिसके सिद्धान्तों के कारण विद्यालय विद्यालय था । "
" मैं भी यही कहूंगा विभा जी । " लविन्द्र ने कहा ---- " हम सब बंसल साहब और सत्या के सम्बन्धों के चश्मदीद गवाह है । कभी , एक सकेण्ड के लिए भी नहीं पटी दोनों में । हमेशा छत्तीस का आकड़ा रहता था । नहीं ...-- वो शख्स वंसल नहीं हो सकता जिसका जिक्र सत्या ने मुझसे किया था । "

विभा ने गंभीर स्वर में कहा ---- " आप सबकी भावनाएं अपनी जगह है और उनकी मैं कद्र करती हूं । परन्तु सुबूत जो बोलेंगे ---- वह हमें कहना ही पड़ेगा । और फिर . यहां किसी के करेक्टर पर लांछन नहीं लगाया जा रहा । केवल ये बातें डिस्कस की जा रही है जो हो सकती है । अगर इसमे आपकी भावनाएं आहत होती है तो बाहर जा सकते हैं । हमें अकेले में डिस्कस करना होगा । '

एक पल के लिए सन्नाटा छा गया कमरे में । फिर दीपा ने कहा ---- " सारी विभा जी , आप डिस्कस जारी रखें । "
विभा ने बंसल की तरफ घूमकर सवाल किया ---- " अगर आप इस रकम को अपनी पत्नी से छुपाकर रखते थे मिस्टर बंसल तो खर्च कहां करते थे ? "
" किसी अन्य बहाने से निर्मला को दे देते थे । "

" या सत्या पर खर्च होती थी । "
" क - कैसी बातें कर रही हैं आप ? भला हम .... "
मैं कोई बात वगैर वेस के नहीं कहती बंसल साहब । " इस बार विभा उसकी बात काटकर कठोर स्वयं में कहती चली गया ---- " जैसी नथ आपकी बीवी ने पहन रखी थी वैसी ही नथ मेरे पास भी है । " कहने के साथ विभा ने जींस की जेब से एक नथ निकालकर मेज पर डाल दी । अकेला वंसल नहीं बल्कि सब हक्के - बक्के रह गये ।
 
मैं भी । जैकी भी ! हर नजर कभी मेज पर पड़ी नथ को देख रही थी , कभी निर्मला की नाक में मौजूद नथ को ! जुड़वां बहनें सी लग रही थी दोनों ।
" ये नथ मुझे सत्या के कमरे से मिली है । " विभा एक - एक शब्द को चबाती कहती चली गई- “ और ऐसी नथ निर्मला जी की नाक में देखकर में चौंक पड़ी । आपके कमरे की तलाशी लेने का ख्याल नहीं आया था मुझे । इन नथों के एक जैसी होने ने मुझे प्रेरित किया । और अब तिजोरी से इस कार्ड के मिलने ने स्टोरी पूरी कर दी । मुझे दुख है मिस्टर बंसल । नथ और कार्ड मिलकर उसी कहानी की पुष्टि कर रहे हैं जिस पर कालिज के किसी शख्स को विश्वास नहीं आ रहा । बोलिए ---- अब आपको कुछ कहना है इस बारे में ?

सत्या पर ये नथ कहाँ से आई ? "
" म - मैं कुछ नहीं कह सकता । " विभा द्वारा किये रहस्योद्घाटन ने सभी को हैरान कर दिया । ताले पड़ गये जुबानों पर

सारे तथ्य अकाट्य होने के बावजूद जाने क्यों स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स की तरह मेरा दिल भी उस सबको सच मानने के लिए तैयार नहीं था जो कार्ड और नथ कह रहे थे ।

एकाएक विभा ने वहां छाई लम्बी खामोशी को तोड़ा ---- " मानना पड़ेगा जैकी ! एक बार फिर मानना पड़ेगा हत्यारा बेहद चालाक है । अपनी अंगुलियों पर नचाने की कोशिश कर रहा है हमें ! "
सभी चौंक पड़े । कोई विभा के उपरोक्त शब्दों का अर्थ न समझ सका ।
जैकी ने पुछा---- " आप कहना क्या चाहती है ? "
" वह हमारे दिमागों में वही स्टोरी , डालनी चाहता है जो कार्ड मिलने पर हमने शुरू की और नथ दिखाकर खत्म की मैंने । "

विभा कहती चली गई ---- " बहुत ही बड़ा शातिर है कोई ! पहले मेरे हाथ सत्या के कमरे से नथ लगवाता है । उसके बाद चिन्नी के जरिए यहा भेजता है । वह जानता है ---- निर्मला की नथ मैरी नजरों से छुप नहीं सकेगी और मैं कमरे की तलाशी लेने का निश्चय करूंगी । तिजोरी में क्योंकि नम्बर दो की रकम है इसलिए बंसल साहब चाबी देने में आनाकानी करेंगे । शक के दायरे में आयेंगे । वह जानता है बंसल साहब आनाकानी चाहे जितनी करें मगर हम लोग मानने वाले नहीं है । अंततः कार्ड तक पहुँचकर ही दम लेंगे और स्टोरी पूरी हो जायेगी । "
बंसल खुश ! प्रोफेसस खुश । स्टूडेन्ट्स खुश ! एकता बोली ---- " मैं भी यही कहना चाहती थी विभा जी । "
जैकी ने कहा ---- " आखिर आप किस बेस पर इस सबको हत्यारे की साजिश बता रही ? "
" कार्ड को ध्यान से देखो । "
" देख चुका हूं । "
" केवल देखा है । ध्यान से नहीं देखा । अब देखो ! "
जैकी ने कार्ड देखते हुए कहा ---- " क्या देखू ? "
" इसमें कुछ कमी है । "
" मुझे नजर नहीं आ रही है । "
" बंसल साहब का नाम नहीं है इसमें । "
" ये कमी नही , फैशन है विभा जी । आजकल ऐसे कार्डो पर नाम नहीं लिखे जाते । "
" उस अवस्था में डेट ऑफ बर्थ लिखी जाती है । "
" सो तो है । "
" क्यों नहीं लिखी गई ? "
" कहना क्या चाहती हैं आप ? "
" और गौर से देखो --- स्वीट हार्ट और प्रिन्टिड मैटर में एक स्थान पर इंक रिमूबर का इस्तेमाल किया गया है । स्पष्ट है ---- कुछ मिटाया गया है वहां से ! ये काम बारीकी से किया गया । परन्तु ध्यान से देखो , कारस्तानी नजर आ जायेगी।
 
कार्ड पर जमी जैकी की आँखें चमक उठीं । मुंह से निकला ---- " बाकई । "
" क्या लिखा गया होगा वहां ? "
" श - शायद डेट ऑफ बर्थ । "
" मिटाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि वह बंसल साहब की डेट नहीं होगी । "
" मेरा ख्याल है सत्या के प्रेमी को ! "
" तो क्या हत्यारा सत्या का प्रेमी ही है ? उसी ने बंसल को फंसाने के लिए सत्या द्वारा खुद को दिया गया कार्ड तिजोरी में रख दिया ? "
" इस बारे में अभी विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता । "
एकाएक दीपा ने कहा --- ' " मेरे दिमाग में एक बात आ रही हैं विभा जी । "
" बोलो " क्या जरूरी है सत्या मैडम का कोई प्रेमी हो ? "
सब चौंक पड़े । विभा भी । बोली ---- " क्या कहना चाहती हो ? "
" केवल लविन्द्र भूषण सर के बयान के बेस पर हम यह मान बैठे है कि सत्या मैडम किसी से प्यार करती थीं । एक आदमी -- एक अकेले आदमी के कहने मात्र से हमें किसी अस्तित्व को स्वीकार कर लेना चाहिए ? क्या ऐसा करके हम समझदारी कर रहे है ? "
" क्या कहना चाहती हो तुम ? " लविन्द्र भड़क उठा ---- " क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ? "
" सॉरी सर । " दीपा ने कहा ---- " ये मतलब नहीं था मेरा । मैं ये कहना चाहती हूं मुमकिन है , सत्या मैडम ने आपसे पीछा छुड़ाने के लिये कह दिया था कि वे पहले ही किसी से मुहब्बत करती हैं । "
" मुझे नहीं मालूम उसने झूठ कहा था या सच --- मगर कहा जरूर था । "
" बात में दम है विभाजी । जैकी कह उठा ---- " केवल एक आदमी , वह भी ऐसा ---- जो यह दावा नहीं कर सकता कि सत्या ने उससे सच ही बोला था , के बेस पर हम किसी अस्तित्व को कैसे स्वीकार कर सकते हैं ? क्या पता ऐसे किसी शख्स का अस्तित्व हो ही नहीं ? "
" यह बात कार्ड मिलने से पहले उठती तो दमदार थी । विभा ने कहा ---- " कार्ड गवाह है ---- किसी न किसी से सत्या मुहब्बत जरूर करती थी । वह वो है जिसकी डेट आफ वर्थ इस पर से मिटा दी गई है । "

एक बार फिर कमरे में खामोशी छा गयी । अब मैं जिस घटना का जिक्र करने वाला हूं ---- उसने CHALLENGE वाली पहेली एक झटके से खोलकर रख दी । जो हुआ उसे घटना कहना भी शायद गलत है ।

मैं सोच भी नहीं सकता था इस पहेली को खुश्बू हल कर देगी । मेरी सबसे छोटी बेटी उसने एक ही झटके में विभा के दिमाग के समस्त तार झनझना दिये । रात भर कालेज में रहने के बाद हम सुबह घर पहुंचे थे । करिश्मा , गरिमा कॉलिज और खुश्बू , शगुन स्कूल गये हुए थे । मधु को संक्षेप में सब कुछ बताकर उसकी जिज्ञासा शांत की । उसके बाद विभा गेस्टरूम में और मैं अपने कमरे में आराम करने चला गया । दोपहर एक बजे सोकर उठा । मधु से विभा के बारे में पूछा तो उसने कहा ---- " विभा बहन कुछ देर पहले उठी है । बेड टी ले रही है । "

मैं चाय गेस्टरूम में भेजने के लिए कहकर वहां पहुंचा । विभा एक सोफे पर बैठी चाय पी रही थी । कुछ देर बाद मधु मेरे साथ अपनी चाय लेकर यहीं आ गयी । केस पर चर्चा शुरू हो गयी । चर्चा चल ही रही थी कि खुश्बू स्कूल से आ गयी । विभा होले से मुस्कराकर कह उठी ---- " अभी तक तुमने हथेली पर अपना नाम लिखना नहीं छोड़ा खुश्बू रानी ! "
" कहा आंटी ! " उसने अपनी हथेली दिखाते हुए कहा ---- " सिर्फ K ही लिखती हूं । "
" बात एक ही है ---- खुश्बू । " और कहते - कहते विभा उछल पड़ी ।

अचानक मेरी तरफ पलटकर बोली ---- "C फार चन्द्रमोहन ! H फार हिमानी ! A फार अल्लारक्खा और L फॉर ललिता । "
 
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