Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज - Page 2 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज

"अगर कोई पूछे... कि इंस्पैक्टर ने तुझे किस वेस पर छोड़ दिया तो एक ही जवाब दोगे -यह कि कुछ नहीं जानते! हत्यारा जो भी है, तुझे आजाद देखकर बीखलायेगा! अपनी चाल पिटती देखकर हर शख्स बौखलाता है। बौखलाहट में वह गलती करेगा। ये गलती किसी भी किस्म की हो सकती है। अपने चारों तरफ पैनी नजर रखनी है। ताड़ने की कोशिश करनी है कि कौन तुझे फंसाना चाहता है? याद रहे ----वह तेरा कोई नजदीकी भी हो सकता है।

ऐसा शख्स----जिसे तू हमदर्द और
शुभचिंतक समझता हो। इतना ही नहीं, अपने ढंग से दूसरे स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स को वॉच भी करना है। अगर किसी की भी, जरा-सी भी संदिग्ध हरकत देखे तो फौरन मुझे इस पर सूचित करना।" कहने के साथ जैकी ने अपनी बेल्ट में फंसा मोवाइल फोन निकालकर उसे दिखाया----"ये सेल्यूलर है! चौबीस घंटे मेरे साथ रहता है। किसी भी वक्त फोन कर सकता
है। हवलदार, इसे एक कागज पर मेरा 'सेल' नम्बर लिखकर दो।"

हवलदार ने आदेश का पालन किया।
जैकी का खेल पसंद आया मुझे। यह एक तरह से चन्द्रमोहन को अपना मुखबिर बनाकर उस परिसर में छोड़ रहा था जहां हत्यारा हो सकता था। चन्द्रमोहन के दिमाग पर और ज्यादा दबाव बढ़ाने के लिए जैकी ने कहा----"एक बात याद रखना----चाकु पर तेरी अंगुलियों के निशान नहीं हैं, ये बात केवल हम तीन आदमियों को मालूम है। मैं पुलिसवाला हूं। चाहूं तो कोर्ट में चाकू वाले प्वाइंट का जिक्र ही न करूं । उस हालत में तेरे खिलाफ मेरे पास अनेक गवाह और सुबूत हैं। फांसी का फंदा सीधा तेरी गर्दन में होगा। फांसी से बचने का एक रास्ता है----यह कि असल हत्यारे को पकड़वाने में मदद कर।
उसकी गिरफ्तारी ही तुझे इस जंजाल से निकाल सकती है।"
 
"म-मैं पूरी कोशिश करूंगा इंस्पैक्टर साहब।"
“क्या तुम्हारे कॉलिज में मजाक ही मजाक में किसी को चैलेंज भी कहा जाता है?" मैंने पूछा ।
उसका उत्तर था---- "नहीं।"
ड्राइवर ने पुलिस जीप कॉलिज गेट के सामने रोकी।
में, जैकी और चन्द्रमोहन बाहर निकले।
गेट पर खड़े चौकीदार ने गहरे ब्राऊन कलर का पठानी सूट, काली जैकेट और कलफ के कारण खड़ी पगड़ी पहन रखी थी।
रुल बगल में दबाये वह अपनी दोनों हथेलियों को हौले-हौले रगड़ रहा था। हम पर नजर पड़ते ही हाथ रुक गये।
हम उसके नजदीक पहुंचे।
"अरे! चन्द्रमोहन वावा?' उसने गहन आश्चर्य के साथ पूछा----"सावुत के सावुत?"
जैकी गुर्राया----"क्या मतलब?"
चौकीदार ने सकपकाकर कहा----"व-वो साव.... बात ये है कि थाने से निकलने वाले लोगों के हैण्ड में अक्सर मैंने उनके
अस्थि पंजर देखे हैं।"
मैं मुस्करा उठा।
जैकी दहाड़ा-
--"शटअप!"
चौकीदार ने मुंह लटका लिया।
"क्या नाम है तुम्हारा?" जैकी ने पूछा।
"गुल्लू कहा जाता है हुजूर।"
हाथ में क्या है ? " गुल्लू ने दांया साथ बाई हथेली से हटा लिया । उस पर भांग का एक बड़ा सा गोला रखा था । जैकी ने उसे डपटा ---- " नशा करते हो ? " " भोले बाबा का प्रशाद है साच ! इसे लिये वगैर .... गेट के उस तरफ से आवाज उभरी ---- " अरे ! गुरू आ गये !

हम सबकी तवज्जो उधर चली गयी।
सात-आठ लड़के और चार-पांच लड़कियों का ग्रुप उत्साहित अंदाज में चन्द्रमोहन की तरफ लपका। चन्द्रमोहन उनकी तरफ!
जैकी पर नजर पड़ते ही वह ग्रुप जहां का तहां रुक गया !

चन्द्रमोहन ने कहा -"डरो नहीं, इंस्पैक्टर साहब को यकीन हो गया है कि सत्या मैडम की हत्या मैंने नहीं की।"
आधुनिक कपड़े पहने लड़के-लड़कियों ने जैकी की तरफ देखा।
जैकी ने हौले से मुस्कराकर चन्द्रमोहन के कथन का समर्थन कर दिया। सभी लड़के-लड़कियों ने एक साथ हुरे का नारा लगाया और लपककर चन्द्रमोहन को अपने कंधों पर उठा लिया। अगले पल वे 'चन्द्रमोहन जिन्दावाद' के
नारे लगाते कॉलिज के प्रांगण की तरफ बढ़ गये।

एक पेड़ के नीचे खड़े दूसरे ग्रुप के लड़के-लड़कियां उन्हें देखने लगे। उस ग्रुप के स्टूडेन्ट्स के चेहरों पर हैरत के भाव थे।
उनके सामने से गुजरते वक्त चन्द्रमोहन के दोस्त कुछ ज्यादा ही जोर-जोर से उछलकर खुशियां मनाने लगे।
एकाध ने फिकरा भी कस दिया।
उस ग्रुप से एक स्मार्ट-सा लड़का लपकता हुआ हमारी तरफ आया। मारे गुस्से के उसका चेहरा तमतमा रहा था। नजदीक आते ही गुर्राया----"ये सब क्या है इंस्पैक्टर?"
"क्या जानना चाहते हो?" जैकी के होठो पर मुस्कान थी।
एक लड़की ने पूछा----"क्या आपने इसे छोड़ दिया?"
"हाँ।"
“मगर क्यों?" दूसरे लड़के ने पूछा।
"हत्या इसने नहीं की।
“आप कैसे कह सकते हैं?"
एक ने गुर्राकर कहा----- "इसके कमरे से चाकू मिला है।"
"चाकू उसे फंसाने के लिए असल हत्यारे ने भी रखा हो सकता है।"
एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। मगर ये सन्नाटा ज्यादा देर कायम नहीं रह सका। सभी स्टूडेन्ट्स के चेहरे गुस्से की ज्यादती के कारण सुलग रहे थे। भीड़ में से कोई चीखा----"ये नाइंसाफी है! इंस्पैक्टर बिक गया है।"
"हां-हां।" एक साथ सभी कह उठे-
-“इंस्पैक्टर घूस खा गया!"
"खामोश!'' जैकी दहाड़ा----"खबरदार! जो मुझे रिश्वतखोर कहने की कोशिश की!"
स्टूडेन्ट्स डरने की जगह कुछ ज्यादा ही भड़क उठे।
किसी ने नारा लगाया----"नाइन्साफी!''
"नहीं चलेगी।" अनेक मुट्टियां हवा में उछली ।
"चाकू-छुरी।
"वंद करो!"
"गुंडागर्दी!'
"बंद करो।"
"चन्द्रमोहन को!"
“वाहर निकालो।"
"हमारी मांगे!"
"पूरी करो।"
वातावरण में बार-बार उपरोक्त नारे गूंजने लगे। इधर-उधर से आकर अन्य स्टूडेन्ट्स भी उनमें शामिल हो गये। देखते ही देखते कॉलिज का शांत वातावरण अच्छे खासे हंगामे में बदल गया। भीड़ प्रतिपल बढ़ती चली जा रही थी।
 
इधर चन्द्रमोहन के दोस्तों ने भी जवावी नारेबाजी शुरू कर दी। जैकी ने ऐसा न करने का इशारा किया।
चन्द्रमोहन ने अपने साथियों को रोका। अब वे केवल हंगामे के दर्शक थे।
"तुमने जानबूझकर उन्हें उत्तेजित किया है।" मैंने जैकी से पूछा--
"क्या फायदा हुआ इसका!"
"इस वक्त आप एक इन्वेस्टिगेटर हैं।" मेरी तरफ देखते हुए जैकी के होठों पर मुस्कान थी----"सत्या के कातिल तक पहुंचने
के लिए कॉलिज के वातावरण को रीड करना बेहद जरूरी है। अपनी आंखों से देख रहे हैं कि दोनों ग्रुप किस कदर एक-दूसरे के दुश्मन
हैं?"
"तो क्या तुमने मुझे यह नजारा दिखाने के लिए....

"चन्द्रमोहन की वापसी पर इतना तो होना ही था।" जैकी ने मेरा वाक्य काटकर कहा-वे प्रिंसिपल निवास की तरफ जा रहे हैं। आइए, आपकी मुलाकात प्रिंसिपल से कराता हूँ।"

नारे लगाती भीड़ सचमुच जुलूस की शक्ल में एक तरफ को बढ़ गई थी।
हम जुलूस के पीछे लपके।
नारों की आवाज सुनकर प्रिंसिपल पहले ही अपने बंगले के बरांडे में आ चुका था।
उत्तेजित स्टूडेन्ट्स की भीड़ लॉन में इकट्ठी होने लगी।
नारेवाजी निरंतर जारी थी।
हॉस्टल की तरफ से भी लड़के-लड़कियां दौड़कर इधर आ गये थे। चंद्रमोहन के ग्रुप में थोड़ा ही इजाफा हो पाया था।
मुझे समझते देर न लगी कि ज्यादातर स्टूडेन्ट चन्द्रमोहन के खिलाफ हैं। उसके अपने ग्रुप में चंद ही लड़के-लड़कियां हैं।

कई प्रोफेसर्स भी वहां पहुंच गये थे।
प्रिंसिपल काफी देर से हाथ उठा-उठाकर स्टूडेन्ट्स को चुप होने के लिए कह रहा था। सफेद बालों वाला वह एक आकर्षक व्यक्ति था। आंखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाये जब वह वरांडे में पड़े एक स्टूल की तरफ बढ़ा तो मैंने उसकी चाल में लंगड़ाहट महसूस की। वंगले के बाहर लगी नेम प्लेट पर उसका नाम पढ़ चुका था। उस पर लिखा था----"जे.के. वंसल!"
 
बंसल की नजर चन्द्रमोहन के साथ-साथ हम पर भी पड़ चुकी थी। वह स्टूल पर खड़ा हुआ और अपनी करारी आवाज में
जैकी को सम्बोधित करके बोला--- "इंस्पेक्टर, चन्द्रमोहन कॉलिज में क्यों नजर आ रहा है?"
नारे लगाते स्टूडेन्ट्स की भीड़ शान्त हो गयी। यह भीड़ इस वक्त जैकी की तरफ देख रही थी। कुछ कहने के स्थान पर जैकी भीड़ को चीरता लम्बे-लम्बे कदमों के साथ बंसल की तरफ बढ़ा। वह चन्द्रमोहन की वांह पकड़े हुए था। उसे लगभग घसीटता हुआ जैकी बंसल के नजदीक ले गया।
मैं उसके पीछे था।
जैकी ने बंसल से कहा----'
-"मैंने अब तक की इन्वेस्टिगेशन में इसे बेगुनाह पाया है।"
"ये झूठ बोलता है। रिश्वत खा गया है। इंस्पेक्टर भ्रष्ट है।" भीड़ में से ऐसे अनेक वाक्य कहे गये और फिर जमकर जैकी के विरुद्ध नारेबाजी शुरू हो गयी। जैकी वरांडे में पड़ी कुर्सी पर खड़ा हो गया। बार-बार कहने लगा----"उत्तेजित होने और नारेबाजी से कुछ नहीं होगा। शांति से मेरी बात सुनें।"
कुछ देर जरूर लगी लेकिन ऐसा वक्त आया जब स्टूडेन्ट्स शान्त हो गये।
हालांकि उत्तेजना में किसी किस्म की कमी नहीं आई थी।
"आप सब मेरे छोटे भाई-बहनों के समान हैं। वादा करता हूँ----कोई नाइन्साफी नहीं होगी।" उस क्षण जैकी का लहजा और
आवाज बेहद प्रभावशाली थे -"और ये नाइन्साफी किसी के भी साथ नहीं होगी।" शब्द 'किसी के भी' पर उसने खास जोर देने के बाद कहा----"चन्द्रमोहन भी उन किसी में शामिल है। मैं जानता हूं तुम लोग सत्या मैडम से बहुत प्यार करते थे।

सारे कॉलिज की चहेती थी सत्या मैडम!" कहते वक्त जैकी की आंखें भर आईं। मैं समझ गया -ये एक्टिंग उसने स्टूडेन्ट्स को प्रभावित करने के लिए की थी और स्टूडेन्ट्स प्रभावित नजर आये भी। मैं मन ही मन जैकी के अभिनय की तारीफ कर उठा। यह वगैर रुके, भराये गल्ले से कहता चला जा रहा था---- -"ऐसे मामलों में जो पुलिस वाला रिश्वत खाता है, वह रिश्वत
नहीं खाता! गू खाता है----गू! मैं थूकता हूं उस पर! मुमकिन है किन्हीं कारणों से सत्या मैडम और चन्द्रमोहन में लगती हो।
 
ये भी सच हो सकता है उत्तेजना के किन्हीं क्षणों में चन्द्रमोहन ने सत्या पर चाकू ताना हो मगर इसका मतलब ये नहीं कि हत्या चन्द्रमोहन ने ही की है। मैं समझ सकता हूँ----तुम लोगों में यह उत्तेजना सत्या के प्रति बेइन्तिहा मुहब्बत और चन्द्रमोहन के प्रति नफरत के कारण उपजी है। मगर मैं.... इंस्पैक्टर जैकी हत्या के इस केस को भावनाओं में बहकर नहीं देख सकता! मैंने ऐसे अनेक केस देखें हैं जिनमें हत्यारे ने दो व्यक्तियों के मनमुटाव या दुश्मनी का लाभ उठाकर, यह सोचते हुए क्राइम किया कि मुझ पर किसी का शक नहीं जायेगा। क्या इस केस में भी तुम ऐसा ही चाहते हो? क्या तुम चाहते हो
वगैर मुकम्मल तहकीकात के चन्द्रमोहन को सजा मिल जाये और सत्या का असल हत्यारा कालर खड़े करे इस परिसर में घूमता रहे?"

"नहीं! नहीं! हम ऐसा नहीं चाहते।" चारों तरफ से आवाजें उटीं।
"तो मैं इंस्पैक्टर के नाते नहीं बल्कि तुम्हारा बड़ा भाई होने के नाते वादा करता हूँ कि सत्या के हत्यारे को.... वास्तविक हत्यारे को तुम सबकी आंखों के सामने सजा दूंगा। जरूरत है तो केवल तुम्हारे सहयोग की! मुझे पूरा यकीन है कि सत्या का हत्यारा इस वक्त भी इसी परिसर में मौजूद है और मेरी इस चेतावनी को सुन रहा है। मुझे तो उसकी तलाश में जमीन आसमान एक करना ही है , लेकिन तुम लोग देश का भविष्य हो । अगर नजर पैनी रखो तो अपने बीच छुपे हत्यारे को मुझसे बेहतर ढूंढ सकते हो । यह काम जजबातों में आकर नहीं बल्कि दिमाग से करो । यदि वाकई सत्या के हत्यारे को सजा दिलाना चाहते हो तो छोटी - मोटी घटनाओं से उपजी आपसी रंनिश को भूल जाओ । मिलकर काम करो । एक दूसरे की हरकतों पर नजर रखो ऐसी अनेक बातें कहीं जैकी ने । उसने न केवल उत्तेजना शान्त कर दी बल्कि स्टूडेन्ट्स को हत्यारे की तलाश में भी लगा दिया !

मेरे नजदीक खड़ा प्रिंसिपल बड़बड़ाया -- " मेरा भी तो बार - बार यही कहना है । चन्द्रमोहन लाख नालायक सही , हत्या नहीं कर सकता । " मैंने पलटफर उसकी तरफ देया । उसने पूछा ---- " आपकी तारीफ ! " "
उपन्यासकार ! " जबाब हवलदार ने दिया ।
 
कालिज के लम्बे - चौड़े प्रांगण में उस स्थान के चारों तरफ चॉक से एक दायरा बना हुआ था जहां सत्या श्रीवास्तव ने अंतिम सांसे ली दी । दायरे के अंदर खुन बिखरा पड़ा था । मगर मेरी निगाह खून पर नहीं CHALLENGE पर थी । यही शब्द मुझे यहां तक खीच लाया था । इस शब्द का अर्थ जितना अंधेरे में मेरे लेखन कक्ष में था , उतना ही इस वक्त भी था । जैकी ने अपनी स्पीच के अंत में मेरा परिचय दे दिया था । ज्यादातर स्टूडेन्ट्स मेरे पाठक और प्रशंसक थे । मुझे अपने बीच पाकर बेहद रोमांचित और खुश हुए थे । कई ने आटोग्राफ लिये । कई ने कहा ---- " आप बेहद दिमागदार उपन्यास लिखने है । अब .... जवकि आप इस केस की इन्वेस्टिगेशन के लिए निकले हैं तो हमें पूरा विश्वास है , सत्या मैडम का हत्यारा चाहे जितना चालाक हो ---- आप उसे खोज निकालेंगे । " आई.ए.एस. कालेज के मेरे पाठकों ने जो आशाएं मुझसे बांधी थी ---- मेरी पूरी कोशिश उन पर खरा उतरने की थी मगर अभी तक मेरा दिमाग यह सोचने से ज्यादा और कुछ नहीं सोच पा रहा था कि ---- मरते वक्त सत्या ने CHALLENGE क्यों लिखा ? हमारे चारों तरफ स्टूडेन्ट्स की भीड़ थी । मैंने चेहरा उठाकर उस टैरेस की तरफ देखा जहां से सत्या का नीचे गिरना बताया जा रहा था । यहा से एक स्थान का रेलिंग उखड़ा हुआ था । रेलिंग पूरी तरह टूटकर सत्या के साथ नहीं गिरा था बल्कि दीवार , के सहारे लटका रह गया था । मैंने प्रिंसिपल से पूछा ---- " जिस वक्त सत्या वहां से गिरा , उस वक्त आप कहां थे ? " " प्रांगण में ही । " बंसल ने अंगुली से एक तरफ इशारा किया --- " वहां ! " " आप प्रांगण में क्यों थे ? " " हम इस सवाल का मतलब नहीं समझे " " सुना है जो मीटिंग यहां होने वाली थी , यह आपके खिलाफ थी । इस समस्या पर विचार किया जाना था कि यदि आप चन्द्रमोहन का रेट्रीकेशन नहीं करते है तो क्या कदम उठाया जाये ? मेरे ख्याल से ऐसी मीटिंग में आपको आमंत्रित नहीं किया गया होगा ? "

आपका ख्याल दुरुस्त है । हमें नहीं बुलाया गया था । "

" इसीलिए सवाल किया , आप यहां क्यों थे ? " हमने सोचा ---- स्टुडेन्टन और प्रोफेसर को यह बताना जरूरी है कि चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन किसी समस्या का हल नहीं है । चन्द्रमोहन थोड़ा बिगड़ा हुआ सही , लेकिन हम सबकी नजर में वह वैसा ही होना चाहिए जैसे दूसरे स्टूडेन्ट्स हैं । " " इस बारे में विस्तार से बाद में बात करेंगे । फिलहाल तय है कि आप् यहीं थे । " " वहां ! " प्रिंसिपल ने फिर उसी तरफ अंगुली उठाई जिस तरफ एक बार पहले भी उठा चुका था ।

" क्या देखा आपने ? " " वही , जो सबने देखा । " मैने अपना लहजा थोड़ा सख्त किया ---- " मैं आपसे पूछ रहा हूँ । " प्रिंसिपल ने लगभग वहीं दोहरा दिया जो अखबार में छपा था । मैंने यह जॉचने की कोशिश की कि वह सुनी - सुनाई बातें दोहरा रहा है या घटना का प्रत्यक्षदर्शी था ?
 
मै किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका । इसलिए सवाल किया ---- " जब आपने टेरिस पर चीखती - चिल्लाती लहुलुहान सत्या को देखा तो उसे क्यों नहीं देख सके जो उस पर चाकू से हमला कर रहा था ? " " जब किसी ने नहीं देखा तो हम कैसे .... “ मैं किसी की नहीं , आपकी बात कर रहा हूं । आपने क्यों नहीं देखा ? " " सीधी - सी बात है , वह नजर नहीं आ रहा था ।

" मेरे कुछ कहने से पहले जैकी बोल उठा ---- " वेद जी , मैं पूछताछ कर चुका हूँ । प्रिसिपल साहब उस वक्त प्रांगण में ही थे । काफी लोगों ने गवाही दी है । " " जैसे मैं ! " इस नई आवाज ने मुझे अपनी तरफ पलटने पर मजबूर कर दिया । मैंने देखा ---- वह लड़की अत्यन्त सेक्सी ड्रेस में थी । ऊंची एड़ी के सैडिल्स जांधों के दर्शन कराती स्कर्ट और टाप ऐसा कि गोलाइयों का ऊपरी आधा हिस्सा झांकता नजर आ रहा था । उनमें होता कम्पन साफ बता रहा था उसने ब्रा नहीं पहन रखी है । वह सुन्दर और आकर्षक थी । मैंने पूछा ---- " आपकी तारीफ ? " अपने होठो पर जीभ फिराने के साथ वह कोयल सी कुंकी -- " हिमानी वर्मा ! आपकी फैन ! " " कौन - सी क्लास में पढ़ती है ?

" वह खिलखिलाकर हंस पड़ी । कुछ इस तरह जैसे मैने कोई जवरदस्त लतीफा सुनाया हो ! और उसकी मधुर खिलखिलाहट में मिक्स हुए थे एक पुरुष के ठहाके ।

मैने पुरुष की तरफ देखा । वह धोती कुर्ता पहने हुए था । गंजा सिर । गांठ लगी लंबी चोटी ! नाक पर गांधी ऐनक । हिटलरी मूछें। पेट पकड़ पकडकर हंसते हुए उसने कहा ---- " कुमारी हिमानी विद्यालय की छात्रा नहीं , अध्यापिका है . अंग्रेजी का पठन - पाठन करती हैं । अंग्रेजी ढंग के वस्त्र धारण करती हैं । "

मै भिन्ना उठा । पूछा---- " आप कौन है ? " " ऐरिक ! ऐरिक डिसुजा ! " वह यांत्रिक ढंग से हंसना बंद करके गंभीर स्वर में बोला --- " क्रिश्चियन हूँ । परन्तु पढ़ाता देवनागरी लिपि हूँ । देवनागरी वस्त्र धारण करता हूं । " मै यह सोचने पर विवश हो गया कि इस कॉलिज में एक से बढ़कर एक नमूना है । " उस वक्त मै भी यहां थी सर ! " हिमानी अपनी बड़ी - बड़ी आंखों को नचाती बोली --- " प्रिसिपल साहब के नजदीक खड़ी थी । " " अच्छा बताइए ।

" मैंने पूछा ---- " सत्या मैडम टैरेस से खुद कुदी या किसी ने धक्का दिया था ? " हिमानी सकपका गयी । ऐरिक बोला --- " स्वयं क्यों कुदती ? किसी ने धकेला था ।
" " किसने ? "
" वह दीखा नहीं । " धक्का देने की अवस्था में देखना चाहिए था । "
 
" हमारे ध्यान में न वह कुदी थी , न ही धकेली गयी थी । बंसल ने कहा ---- " जिस वक्त वह चीख रही थी , तब विपरीत दिशा में यानी टैरेस की तरफ देख रही थी । शायद उस तरफ हमलावर था । उससे बचने के लिए पीछे हटी और रेलिंग तोड़ती हुई यहाँ आ गिग । " " इंस्पैक्टर , में टेरेस का निरीक्षण करना चाहता हूँ " मैंने जैकी से कहा।

जहां से सत्य गिरी थी , वह लेडीज हॉस्टल की इमारत का टेरिस था । वहां पहुंचने से पहले मैंने सैकिंड फलोर पर स्थित सत्या के कमरे का निरीक्षण किया । परन्तु ऐसी कोई चीज नहीं मिली जो घटना के अंधेरे पहलुओं पर रोशनी डाल सकती । टैरेस पर एक जगह ढेर सारा खून पड़ा था । खुन सूख चुका था । रंग काला पड़ चुका था । उस पर मक्खियां मिनभिना रही थीं । खून की टेढ़ी - मेढ़ी लकीर टूटे हुए रेलिंग तक चली गयी थी । एक स्थान पर चौक से बना दायरा देखकर मैंने पूछा ---- " ये निशान कैसा है ? " " वहा सत्या की सैंडिल पड़ी थी । जैकी ने बताया । " और दूसरी सैंडिल " " काफी तलाश करने के बावजूद नहीं मिली । ' ' " सत्या के कमरे में भी नहीं ? " " नहीं।

यही सोच रहा था मैं ! " मैं टूटे हुए रेलिंग की तरफ बढ़ता हुआ बोला ...- " जिस वक्त सत्या को प्रांगण में होना चाहिए था , उस वक्त टेरेस पर क्यों थी ? मगर नहीं ---- वह टेरेस पर नहीं थी ! हमला यहां हुआ जरूर लेकिन असल में हमलावर से बचने की कोशिश में कही और से भागकर यहां पहुंची । हमलावर उसका पीछा कर रहा था । वार करने का मौका यहां आकर मिला । दूसरा सैंडिल वहां गिरा जहां से सत्या और हत्यारे के बीच भागदौड़ शुरू हुई । "

" क्या जरूरी है ? " जैकी ने कहा ---- " रास्ते में भी तो कहीं गिरा हो सकता है ? " "

रास्ते में गिरा होता तो हमलावर को उसे गायब करने की जरूरत नहीं थी । "
मैं जैकी की तरफ पलटता हुआ बोला-- .. " गायब करने की जरुरत इसलिए पड़ी क्योंकि जहां वह गिरा वहां से उसकी बरामदगी हत्यारे को फसा सकती थी अर्थात् भागदौड हत्यारे के अपने परिसर में शुरू हुई ।

" जैकी कह उटा -... " तर्क में दम है । " " मैं लेटीज हॉस्टल की वार्डन से मिलना चाहता हूं । " " नगेन्द्र । " प्रिंसिपल ने अपने नजदीक खड़े चपरासी को हुक्म दिया --- " ललिता को बुलाओ।
चपरासी साड़ियों की तरफ बढ़ गया । मैंने टूटे हुए रेलिंग के नजदीक से नीचे झांका । वहाँ जहाँ सत्या गिरी थी । जैकी मेरे नजदीक आता हुआ बोला- " यदि सत्या को धकेला गया होता या वह खुद कुदती तो शायद कुछ और दूर जाकर गिरती । लगता है यह हत्यारे से बचने की कोशिश में ही गिरी । " मै जैकी से सहमत था इसलिए कोई तर्क - वितर्क नहीं किया ।
 
दरअसल मेरे दिमाग में दूसरी बातें घुमड़ रही थी । उन्हीं को उगलने के लिए कहा ---- " जितने उपन्यास मैंने लिखे हैं , उनके अनुभव के बेस पर कह सकता हूं यदि हत्या का उद्देश्य समझ में आ जाये , तो ऐसे केस खुलने में टाइम नहीं लगता । "
" उद्देश्य पता लगना आसान नहीं होता । "

सवा आठ बजे ! या ज्यादा से ज्यादा साढे आठ बजे सत्या को प्रांगण में होना चाहिए था । " मैंने अपने दिमाग में भरा मलूदा निकालना शुरू किया ---- " यकीनन सत्या सवा आठ और साढ़े आठ के बीच तैयार होकर अपने कमरे से निकला होगी । पत्ता ये लगाना है कि साढ़े आठ से नौ बजे तक वह कहां रही ? क्या करती रहीं ? ऐसा उसने क्या देखा या सुना जिसकी वजह से मरना पड़ा ? "

"वह रही इसी बिल्डिंग में थी , बाहर किसी ने नहीं देखा मेरे कुछ कहने से पहले ललिता आ गयी । वह तीस साल के आस - पास की साधारण कद - काठी वाली महिला थी । सूती साड़ी और उसी से मैच करता ब्लाऊज पहने हुए थी । दस - बारह साल की एक लड़की भी थी उसके साथ । रंग - बिरंगे फ्रॉक पहने हुए थी वह । वह ललिता की बेटी थी और हॉस्टल में साथ ही रहती थी । बातचीत में उसने उसका नाम चिन्नी बताया ! यह भी बताया कि उसका पति गांव में रहता है । मैंने उससे कई सवाल किये मगर उल्लेख करना इसलिए जरूरी नहीं है क्योंकि उनसे वर्तमान केस पर कोई खास रोशनी पड़ने वाली नहीं है ।

उससे ध्यान हटाकर मैंने जैकी से कहा ---- " एक बात तय है । सत्या के मरने की वजह साढ़े आठ से नौ बजे के बीच पैदा हुई । इस बीच उसे कोई ऐसा राज पता लगा जिसे हत्यारा नहीं चाहता था कि किसी को पता लगे ।

" जैकी भेदभरी मुस्कान के साथ बोला ---- " इतनी देर से आप बेकार दिमागी कसरत कर रहे हैं । " " मतलब ? " मै चौंका । " जो कसरत मैंने सुबह की थी , उसी का फायदा उठा लेते । "

" मैं अब भी नहीं समझा । " मैं भी इसी नतीजे पर पहुंचा था जीस पर आप पहुंचे हैं । " और फिर .... हम दोनों एक - दूसरे की तरफ देखकर ठहाका लगा उठे ।
 
अब मुझे इस बात की तह में जाना था कि सत्या की हत्या का शक सब चन्द्रमोहन पर क्यों कर रहे थे ? अतः जैकी से कहा ---- " तुम जाना चाहो तो जा सकते हो , मै अभी यहीं रहूंगा । " जैकी ने जैसी आपकी मर्जी ' वाले अंदाज में कंचे उचका दिये । स्टुडेन्ट्स के दूसरे ग्रुप का लीडर यह स्मार्ट लड़का था जो चन्द्रमोहन को परिसर में देखकर सबसे पहले तमतमाता हुआ जैकी के नजदीक आया था । उसका नाम राजेश था ।
राजेश तोमर ।
मैं उन केन्टीन में ले गया साथ में उसके नजदीकी दोस्त अल्लारखा , एकता और दीपा भी थे । थोड़े ही समय में मैंने महसूस किया कि दीपा और राजेश दोस्त से ज्यादा कुछ थे ।

कालिज की तरह कैंटीन भी शोक में बंद थी । फिर भी हम एक मेज के चारों तरफ कुर्सियों पर बैठ गये । मैंने मतलब की बात पर आते हुए कहा ---- " राजेश , तुम लोगों की चन्द्रमोहन से क्या दुश्मनी है ?

" नहीं " दुश्मनी जैसी तो कोई बात नहीं है । " राजेश ने कहा ---- " हमारा मिजाज उससे और उसके ग्रुप के सड़के - लड़कियों से नही मिलता । "
" वह बदतमीज है । " दीपा ने कहा ---- " लड़कियों तक से तमीज से पेश नहीं आता । " मैंने सीधा सवाल किया ---- " क्या तुमसे भी कोई बद्तमीजी की ? " दीपा ने जवाब देने की जगह राजेश की तरफ देखा । भाव ऐसा था जैसे पुछ रही हो , जवाब दे या न दे ?

मैंने वातावरण को हल्का बनाये रखने के लिए कहा . - .- " दीपा , हिचको नहीं । मेरे किसी भी सवाल का मतलव सत्या के हत्यारे तक पहुंचने की कोशीश से ज्यादा कुछ नहीं है । शायद यह कातिल कॉलेज की पिछली किसी छोटी - मोटी घटना के पीछे छुपा हो।
 
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