Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज - Page 3 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज

दीपा से उसने इस बात से पहले ही दिन बहुत बदतमीजी की थी । " राजेश से कहना शुरू किया --... "मै और वो एक ही क्लास में है । दीपा हमसे जूनियर है । उस वक्त रैगिंग चल रही थी जब दीपा वहां आई । चन्द्रमोहन ने इससे कहा ---- ' तुम्हें मेरे होठो का किस लेना होगा । ' दीपा ताव खा गई । झगड़ा बढ़ा । मैं बीच में पड़ा ! चन्द्रशेखर से कहा रैगिंग और बद्तमीजी में फर्क होता है । किसी लड़की से किस लेने के लिए कहना रेगिंग नहीं है । चन्द्रमोहन मुझसे भिड़ गया । शायद उसी वक्त मारपीट शुरू हो जाता , लेकिन दूर से आती सत्या मैडम नजर आई । हम सब उनकी इज्जत करते थे । रैगिंग के वे सख्त खिलाफ थी , अतः पलक झपकते ही तितर - बितर हो गये । " " उसके बाद ? " " एक दिन यही , यानी कैंटीन में मेरे और चन्द्रमोहन के बीच फाइटिंग भी हुई । " मैंने शरारत की ---- " और उसके बाद तुम दोनों में ईलू - ईलू शुरू हो गया ? " दीपा झेंप गई । एक बार राजेश की तरफ देखकर पलकें झुका ली उसने । मैंने हौले - हौले मुस्कुरा रहे राजेश से कहा ---- " कालिज लाइफ में ईलु - ईलू कुछ इसी तरह शुरू होते है .... सत्या मैडम चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन क्यों कराना चाहती थी ?

" राजेश ने कहा --- " क्योंकि चन्द्रमोहन और उसके साथी स्मैक लेते हैं ।
" मेरे दिमाग में धमाका सा हुआ ! संभलकर बैठ गया । लगा ---- मैं सत्या की हत्या के कारण के आसपास पहुंचने वाला हूँ । बौला ---- " जरा खोसकर बताओ इस बात को ! "

" एक दिन चन्द्रमोहन और उसके साथी लेडीज टायलेट में छुपे स्मैक ले रहे थे । सत्या मैडम ने रंगे हाथों पकड़ लिया । प्रिंसिपल साहब के पास ले गयीं लेकिन प्रिंसिपल साहब ने कोई खास पनिशमेन्ट नहीं दिया । थोड़ा समझा - बुझाकर और यह वादा लेकर छोड दिया कि अब वे स्मैक नही लेंगे । "
ये क्या बात हुई।
" सत्या मैडम और प्रिंसिपल साहब के बीच ऐसी ही बातों को लेकर विवाद था । "
" कालिज में स्मैक आई कहां से ? "
“ यही सवाल सात्या मेडम का था । उन्होंने प्रिंसिपल साहब से कहा ---- इस घटना को हल्के ढंग से लेकर आप गलती कर रहे हैं । आज चार - पांच स्टूडेन्ट स्मैक पीते पकड़े गये है , कल ये जहर सारे कॉलिज में फैल जायेगा ।
कम से कम यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि कालिज में स्मैक लाया कौन ? "
" बंसल साहब का रुख क्या रहा ? "
" एक कान से सुनना , दूसरे से निकाल देना । " " और वो चाकू वाला घटना क्या थी ? " मैंने पूछा ---- " सुना है , चन्द्रमोहन ने सत्या मैडम पर चाकू खोल लिया था । नौबत इतना आगे कैसे पहुंची ? "
' यह कल सुबह की बात है । सारे कालिज में हंगामा मच गया । वजह थी ---- कालिज की दीवारों पर लगे नंगे फोटो ! ये फोटो दीपा के थे । " मैं चौंक पड़ा । मुंह से निकला -- " दीपा के नंगे फोटो ?
" दीपा चेहरा झुकाये बैठी थी।
 
राजेश कहता चला गया ---- " ये पोस्टर एक सेक्सी मैग्जीन में छपे नंगी लड़कियों के फोटुओं के चेहरों पर दीपा का चेहरा चिपकाकर तैयार किये गये थे । तैयार करके चिपकाने वाला चन्द्रमोहन था । लेकिन यह भेद खुलने से पहले सबने दीपा के ही समझा । दीपा तो इतनी एक्साइटिड हो गयी कि अगर सही वक्त पर मैं रोक न लेता तो टेरेस से कूदकर सुसाइड कर ली होती । वह तो भला हो सत्या मैडम का जिन्होंने चन्द्रमोहन के कमरे से वह मैग्जीन बरामद कर ली जिसमें से नंगे फोटो काटे गये थे । हकीकत जानने के बाद तो सत्या मैडम जैसे पागल हो गयीं । कालिज प्रांगण में सबके सामने चन्द्रमोहन के गालों पर चाटे पर चाटे बरसाती चली गई वे ! प्रिसीपल साहब ही नहीं , कालिज का हर शख्स दायरे की शक्ल में उनके चारों तरफ खड़ा था । कुछ देर तक चन्द्रमोहन पिटता रहा लेकिन फिर जेब से लम्बा सा चाकू निकालकर खोल लिया और गरजा .... ' बस मैडम ---- ! बहुत हो चुका ! अब अगर एक भी चांटा मारा तो अंतड़ियां निकालकर बाहर फेंक दूंगा । "

" ओह ! " " सत्या मैडम का हाथ जहां का तहां रुक गया । स्तब्ध रह गई वे ! और वे ही क्यों , हर शख्स स्तब्ध रह गया था । मैं और दीपा टेरेस पर थे । मै नीचे होता तो शायद जान से मार देता चन्द्रमोहन को लेकिन , प्रिसिपल महोदय ने सिर्फ इतना किया कि लपककर आगे बढ़े । चन्द्रमोहन की चाकू वाली कलाई पकड़ी । हाथ से चाकु छिना और गुर्राए--- तुम्हारी बदतमिजियों की हद हो चुका है . चन्द्रमोहन !
मैडम पर चाकु खोलने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी ?
चन्द्रमोहन चुपचाप खड़ा मैडम को घूरता रहा । भाव तब भी ऐसे थे जैसे कच्चा चबा जाने का इरादा रखता है । प्रिसिंपल महोदय ने हुक्म दिया ---- ' चलो ! माफी मांगो सत्या मैडम से ! सॉरी बोलो ।

' चन्द्रमोहन तब भी चुप खड़ा रहा । प्रिसिपल महोदय ने डपटकर कहा ---- ' माफी मांगो । ' और चन्द्रमोहन लट्टमार भाषा में ' सॉरी ' कहकर वहां से चला गया । "
" उसके बाद ? " " उत्तेजना तो फैल ही चुकी थी । " अल्लारखा ने कहा ---- " चन्द्रमोहन के चंद स्मैकिये दोस्तों को छोड़कर सारा कालिज उसके खिलाफ था । उसी वक्त चन्द्रमोहन को कलिज से निकालने के लिए नारे लगने लगे ।

राजेश और दीपा भी प्रांगण में आ चुके थे । दीपा तो बेचारी हिचकियां ले - लेकर रोये जा रही थी । राजेश बहुत ज्यादा उत्तेजित था । प्रिंसिपल महोदय अपने ऑफिस में जा चुके थे । उतेजना को शान्त करने वाली भी सत्या मेडम ही थीं । राजेश को खास तौर पर शान्त किया उन्होंने । बोली ---- राजेश , अब हद हो चुका है । मै प्रिंसिपल साहब से मिलती हूँ । उन्हें इस कालिज रूपी स्वच्छ तालाब से चन्द्रमोहन नाम की गंदी मछली को निकालकर फेकना ही पड़ेगा । "
" स्टेन्ट्स को शान्त करके सत्या मैडम , हिमानी मैडम , ऐरिक सर और लविन्द्र सर प्रिंसिपल के रूम में गये थे । " अल्लारखा के चुप होते ही एकता ने बोलना शुरू कर दिया था ---- " वाकी सभी लोग आफिस के बाहर खड़े रहे । वे चारों करीब तीस मिनट ऑफिस में रहे । इस बीच सत्या मैडम के चीखने - चिल्लाने की आवाज बाहर तक आई थी और फिर सबसे पहल वे ही बाहर निकलीं । ऐरिक सर , हिमानी मैडम और लबिन्द्र सर उनके पीछे थे ! गुस्सा तो सभी के चेहरे पर झलक रहा था । मगर सत्या मैडम बहुत ज्यादा उत्तेजित थीं । ऑफिस के बाहर इकट्टी भीड से उन्होंने चीख - चीखकर कहा ---- " पता नहीं क्यों , प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन को इस कॉलिज के भविष्य से भी ज्यादा चाहते हैं । वे उसका रेस्ट्रोकीशन करने के लिए तैयार नहीं हैं । मगर , हमने भी सोच लिया है ---- अब इससे कम पर कोई फैसला नहीं होगा ! सोचने के लिए मैं उन्हें पूरी रात देकर आई हूँ । कल सुबह साढ़े आठ बजे प्रांगण में एक मीटिंग होगी । या तो उस वक्त तक प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन - कर चुके होंगे या उस मीटिंग में तय करना होगा कि हमें क्या करना है ? " " बस !

" दीपा ने कहा ---- " इसके बाद वे अपने कमरे की तरफ चली गयीं " प्रिंसिपल के आफिस में क्या बात हुई थी ? "
" पूरी बातें पता नहीं लग सकी । हां , उड़ती - उड़ती यह सूचना जरुर मिली की तत्काल आदेश के जरिए प्रिंसिपल महोदय ने चन्द्रमोहन को एक हफ्ते के लिए कालिज से निकाल दिया था । यह एक हफ्ता आज सुबह से शुरू होने वाला था ।
 
मैंने महसूस किया ---- उपरोक्त बाते बताते वक्त राजेश कुछ ज्यादा ही उद्वेलित नजर आ रहा था ।

वारदात सत्या के मर्डर तक सीमित रहती तो शायद कॉलेज में आपको वह कथानक पढ़ने को न मिलता । यदि यहां पर इस बात को भुला दिया जाये कि मरने से पूर्व सत्या ने CHALLENGE लिखा था तो यह घटना , आम हत्याओं सी घटना ही दी और मैं एक आम घटना को अपना कथानक बनाने के मूड में नहीं था ।
लेकिन आई.ए.एस. कालिज में एक के बाद एक घटी घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया । जो कुछ हुआ , यह सनसनीखेज और पेचीदा था । शायद मेरी कल्पनाएं वहाँ तक नहीं पहुंच सकती थी ।

उन पेचीदगियों की शुरूआत हुई रात के दो बजे से । मधु सोई हुई थी । कमरे में नाइट बल्ब का मद्धिम प्रकाश था । मैं जाग रहा था । दिमाग में सत्या की हत्या से सम्बन्धित सवाल सरसरा रहे थे । टेलीफोन की घंटी बजी । मैंने लपककर साइड ड्राज के ऊपर रखे फोन का रिसीवर उटाया । माऊथपास से मुंह सटाकर धीरे से कहा ---- " हैलो ! " " इंस्पैक्टर जैकी बोल रहा हूँ वेद जी ! " दूसरी तरफ से हड़बड़ाहटयुक्त स्वर में कहा गया ---- " मैंने कहा था , इस केस में आपको भरपूर मसाला मिलेगा । शायद वो बात सच होने जा रही है । अगर बाकई कुछ लिखना चाहते हो तो फौरन यहां आ जाइए । "

मैंने चौंककर पूछा ---- " क्या हुआ ? " "

चन्द्रमोहन का मर्डर । "

" क - क्या ? " मेरे हलक से चीख निकल गई ।

मधु हड़बड़ाकर उठ बैठी मगर अब भला मेरा ध्यान उस तरफ कहां था ? मैं फोन पर चीख पड़ा था ---- " कब ? किसने मार हाला उसे ? " " इन सवालों जवाब यही आकर लें तो बेहतर होगा ! "
" ओ.के. ! मैं आता हूं । " कहने के तुरंत बाद मैंने रिसीवर डिल पर पटक दिया । " किसी ने चन्द्रमोहन को मार डाला । " मैंने एक स्विच ऑन करते हुए कहा । कमरा तेज प्रकाश से भर गया।

मधु के चेहरे पर हैरत का सागर उमड़ा पड़ रहा था । मैं उसे अपनी दिन भर की गतिविधियों के बारे में बता चुका था । इस नई वारदात की कल्पना शायद उसने भी नहीं की थी । उसे इसी हालत में छोड़कर मैंने नाइट गाऊन उतारा और बाहर जाने की लिए कपड़े पहनने लगा ।
 
क्या आप सोच सकते हैं एक आदमी मरने के बावजूद कैसे खड़ा रह सकता है ? कम से कम मैं चन्द्रमोहन की लाश को देखने से पहले ऐसी कल्पना नहीं कर सकता था ।
जी हाँ लाश ठीक मेरे सामने खड़ी थी ।
आंखें फाड़े घुर रही थी मुझे ।
दृश्य स्टाफ रूम का था । एक मेज पर रखे फोन का रिसीवर नीचे झूल रहा था । उसके नजदीक दीवार के सहारे खड़ी थी ----

चन्द्रमोहन की लाश ! एक बल्लम उसके सीने के आर - पार होकर पीछे मौजूद प्लाई की दीवार में धंस गया था । उसमे फंसी चन्द्रमोहन की लाश दीवार सहारे खडी की खड़ी रह गयी थी । उसकी देखकर में जैसे बोलना तक भूल गया "
चन्द्रमोहन अभी तक दरवाजे की तरफ देख रहा है । " जैकी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी ---- “ वल्लम की पोजीशन बता रही है , इसे टीक वहां से फेंका गया जहां इस वक्त आप खड़े हैं ।
" मेरी तंद्रा भंग हुई । मै स्टाफ रूम के दरवाजे के बीचो - बीच से हटा ।
हवलदार की आवाज गूंजी --.- " लेकिन सर , रात के इस वक्त ये स्टाफ रूम में क्या कर रहा था ? "
" फोन पर बात कर रहा था किसी से ! " मैंने जासूसी झाड़ी । " किसी से नहीं , मुझसे बात कर रहा था । " जैकी ने बताया ।
मैं चौका -- " तुमसे ? "
" इस पर जैकी अपनी बेल्ट में लगे मोबाइल की तरफ इशारा किया ---- " आप जानते ही हैं मैंने इससे क्या कहा था ? शायद उसी को फालो कर रहा था बेचारा । "
" तो क्या इसे हत्यारे का कोई क्लू मिला था ? " ऐसा ही लगता है । " जैकी ने कहना शुरू किया ---- " फोन पर अपना नाम बताने के बाद यह केवल इतना ही कह पाया था कि मैंने हत्यारे का पता लगा लिया है इस्पैक्टर साहब ! वो कारण भी पता कर लिया है जिस वजह सत्या मैडम की हत्या की गई । मेरे पास सुबुत भी ...। और बस इतना कहकर चुप हो गया । फिर फोन पर इसकी ऐसी आवाज उभरी जैसे अपने सामने किसी को देखकर चौका हो ---- ' तुम ! तुम यहां ? ' दूसरी तरफ से मैं फोन पर चीखा ---- हैलो ! हैलो ! क्या हुआ चन्द्रमोहन ?
लेकिन जबाव में इसकी जोरदार चीख के अलावा कुछ सुनाई नहीं दिया । मैं काफी देर तक ' हेलो .... हेलो ... ! ' चिल्लाता रहा ।

अनिष्ट की आशंका उसी क्षण हो गयी थी । जीप लेकर भागा । यहां आया तो ... " इसके चीखने की आवाज ने कालिज परिसर को झकझोर कर रख दिया था ।

" प्रिंसिपल कह उठा---- " अपने बंगले में सोये पड़े हम और हॉस्टल में सोये ज्यादातर स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर हड़बड़ाकर उठे । हंगामा सा मच गया । सभी एक - दूसरे से पूछ रहे थे . यह चीख कैसी और किसकी थी । तभी वातावरण में गुल्लू के चीखने की आवाज गूंजी --- " पकड़ो ! पकड़ो । हत्यारा भाग रहा है।
 
गुल्लू कौन ? " मैने पूछा ।
चौकीदार।
" ओह हां "
" उसकी आवाजें सुनकर हम सब चारों तरफ से आवाज की दिशा में दौड़े । "
" सबसे पहले मैं गुल्लू के नजदीक पहुंचा । " आई साइट का चश्मा लगाये करीब तीस वर्षीय व्यक्ति ने कहा ---- " उस वक्त वह कालिज की दाहिनी बाउन्ट्री वाल के नजदीक एक पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था । मैंने उसे पकड़ा । पहले तो शायद मुझे ही हत्यारा समझकर हड़बड़ा गया , लेकिन पहचानते ही चीखने लगा --- ' उसे ' पकड़ो सर !

वह पेड़ पर चढ़कर चारदीवारी के उधर कूदा है । मैं पेड़ पर चढ़ा भी , मगर बाहर कोई नजर नहीं आया । तब तक काफी स्टूडेन्ट्स और प्रिंसिपल साहब भी वहां पहुंच चुके थे ।

मैंने पूछा ---- " आपकी तारीफ ? "
" लविन्द्र भूषण ! कालिज में प्रोफेसर हूं । " कहने के साथ उसने अपने हाथ में मौजूद सुलगी हुई सिगरेट में कश लगाया ।
" गुल्लू ने हत्यारे के बारे में और क्या बताया ? " जैकी ने कहा ---- " वह सब गुल्लू के मुंह से ही सुनें तो बेहतर होगा । " मुझे जैकी की राय जंची । अतः चुप रहा । स्टॉफ रूम ज्यादा बड़ा नहीं था । चन्द्रमोहन की लाश के अलावा वहां केवल मैं , जैकी , हवलदार , प्रिंसिपल और लवीन्द्र ही थे । बाकी सब स्टाफ रूम के बाहर खड़े थे । लाश की तरफ बढ़ते हुए जैकी ने कहा- मेरे पहुंचने तक ये सब लोग गुल्लू की निशानदेही पर यहां पहुंच चुके थे । मैंने फौरन आपको फोन किया । आगे की कार्यवाही आपके सामने करना मुनासिब समझा ।

" थैंक्यू इंस्पेक्टर ! " मैंने उसका आभार व्यक्त किया ।
" प्लीज ! " उसने कहा ---- " किसी चीज को हाथ मत लगाइएगा ।

" मै थोड़ा खीझ उठा । बोला ---- " ऐसी बातें रोज लिखता हूं । " मेंरी खीझ पर जैकी मुस्कराया । लाशें देखना उसका रोज का काम था । कम से कम मै एक लाश की मौजूदगी में नहीं मुस्करा सकता था । लाश भी ऐसी जो लगातार मुझे धूरती महसूस हो रही थी । जहां बल्लम गड़ा था , यानी सीने से अभी तक खून की बूदें टपक रही थी । उसके कपड़ों को गंदा करता खून फर्श पर गिर रहा था । मैंने कहा ---- " क्या हत्यारे का पता इसने जरूरत से कुछ ज्यादा जल्दी नहीं लगा लिया था ? " लटके हुए रिसावर का निरीक्षण करता जैकी बोला ---- " मेरे ख्याल से जल्दबाजी के चक्कर में इसने कोई बेवकूफी की ! उसी वजह से हत्यारे की नजर में आ गया । "
" क्यों न तलाशी । जाये ?
मुमकिन है सुबुत इसकी जेब में हो । "
" हुआ भी होगा तो हत्यारे ने निकाल लिया होगा।
 
ये बात इस पर डिपेन्ड है कि गुल्लु यहाँ चीख के कितनी देर बाद पहुंचा ?
" मैंने कहा ---- " यदि फौरन पहुंच गया होगा तो हत्यारे को इसकी तलाशी लेने का मौका नहीं मिला होगा । "
" बात में दम है । " कहने के साथ जैकी अपना हाथ धीमे से चन्द्रमोहन की पेंट को बाई जेब में डाला । हाथ बाहर आया । उसमें सौ - सौ के बिल्कुल नये करेंसी नोटों के साथ एक कागज भी था ।

कागज पर खून लगा था । सूखा हुआ खून ! अर्थात् चन्द्रमोहन का खून नहीं था वह । कागज इस तरह गोला - सा बना हुआ था जैसे कसकर मुट्टी में भींचा गया हो ।

मेरा दिल धक्क - धक्क करने लगा । क्या यही वह सुबुत था जिसका जिक्र चन्द्रमोहन ने किया था ? क्या है कागज मे ?

जैकी ने कागज खोला । यह सब प्रिंसिपल , हवलदार और लविन्द्र भी देख रहे थे । उत्सुकता से बंधे वे हमारे नजदीक आ चुके थे ।
कागज पर नजर पड़ते ही प्रिंसिपल कह उठा-- " अरे ये तो पेपर है । "
" कैसा पेपर ? " जैकी ने पुछा।
" आगामी एग्जाम में आने वाला इंग्लिश का पेपर ।
" मैंने पेपर को ध्यान से देखते हुए कहा ---- " पेपर ऑरिजनल नहीं , उसकी फोटो कॉपी है । "
" लेकिन वे यहां आई कैसे ? " प्रिंसिपल की आवाज में रोष था । पेपर किसी कम्प्यूटराइज कागज की फोटो कापी थी ।
जैकी ने सवाल किया .... " इसे फिसने तैयार किया था ? "
" हिमानी मैडम ने । "
" चन्द्रमोहन की जेब में कैसे पहुंच गया ? " प्रिंसिपल झुंझला उठा ---- " यही तो हम पूछ रहे है ! "
" मैं बताता हूं । " यह कहते वक्त जैकी के जबड़े भिंच गये ---- " वेद जी ,आपने कहा था ---- हत्यारे का उद्देश्य पता लग जाये तो आधा केस हल हो जाता है । हत्या का उद्देश्य आपके सामने हैं ! ये पेपर ! मुझे पूरा यकीन है ---- इस पर लगा खून सत्या का है ।
आपका सवाल था ---- साढ़े आठ से नौ बजे के बीच सत्या क्या करती रही ? जवाब ये पेपर दे रहा है ---- वह उसके पास थी जिसके पास यह था और वो ... वो है जिसने सत्या और चन्द्रमोहन की हत्या की ! आप तो कल्पनाएं करने में माहिर है ! जरा सोचिए ----- सत्या का जो करेक्टर हमारे सामने आया है , उसके मुताबिक यदि उसने यह पेपर किसी के पास देखा होगा तो क्या प्रतिक्रिया हुई होगी उसकी ?

" सिद्धान्तों की पक्की सत्या भड़क उठी होगी । " यह सब कहने के लिए मुझे जरा भी सोचना नहीं पड़ा ---- " जो रैगिंग बरदास्त नहीं करती थी वह भला पेपर आऊट होना कैसे बरदाश्त कर सकती थी ? "
" और वो जो भी या , मुमकिन है सत्या के सामने पहले गिड़गिड़ाया हो । रिक्वेस्ट की हो कि इस बारे में किसी से न कहे ! मगर मत्या भला इतनी बड़ी गलती माफ करने वाली कहां थीं ?
" जैकी कहता चला गया ---- " यकीनन उसके बाद सत्या उसके हाथ में पेपर छीनकर भागी ! चाकु खोले हमलावर उसके पीछे दौडा ।

यह वारदात साढ़े आठ और नौ बजे के बीच का है । हमला करने का मौका हत्यारे को टैरेस पर मिला । तब तक पेपर सत्या की मुट्ठी में ही था । कम से कम पहले हमले के बाद ये उससे छीना गया । "
" अगर पेपर पर लगा खुन सत्या का है तो यही कहानी कह रहा है ।
" मैं जैकी से सहमत होता बोला -..- " लेकिन चन्द्रमोहन के हाथ कहा से लगा ? "
" वह पता लग जाये तो हत्यारा बेनकाब हो जायेगा । "
"मतलब"
“ सीधी सी बात है । यही वह सुबुत है जिसके बारे में चन्द्रमोहन मुझे फोन पर बताना चाहता था । सुबूत अपने आप में हत्या का कारण है और चन्द्रमोहन जानता था कि ये उसे कहां से मिला ? इस बीच चन्द्रमोहन से कोई गलती हो गया । उसी का खामियाजा भुगतना पड़ा इसे । "
" काश ! चन्द्रमोहन फोन पर एकाध लफ़्ज और बोल पाता ।
" प्रिंसिपल ने कहा ---- " हद है । पेपर आउट हो रहे थे । हिमानी मैडम से पुछा जाना चाहिए कि उसके द्वारा तैयार किया गया पेपर किसी और के हाथ में कैसे पहुंचा ? "
" उससे पहले मुझे तलाशी की कार्यवाही पूरी करनी होगी । " कहने के साथ जैकी ने लाश की बाई जेब में हाथ डाला । वापस आया तो इस बार भी उसके हाथ में एक कागज था ।

सबके दिल बकायदा धक - धक की आवाज करके बजने लगे । जैकी ने कागज खोला , और ये सच है , उस क्षण मेरा दिल तक धड़कना भूलकर कागज को देखने लगा ।

टेढ़े - मेढ़े अक्षरों में लिखा था ---- CHALLENGE
 
पेपर के बारे में सुनते ही हिमानी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी । अपने होंठों पर जीभ फिराने के साथ प्रिंसिपल की तरफ देखती बोली -- " मैं इस बारे में क्या कह सकती हूं , सर ? मैंने तो पेपर तैयार करते ही आपको सौंप दिया था । "
" और हमने दूसरे पेपर्स के साथ यूनिवर्सिटी भेज दिया । "
" यूनिवर्सिटी ? " मैंने पूछा ।
" हां ! " बंसल ने कहा ---- " अकेले इस कॉलिज के लिए तैयार थोड़ी हुआ था पेपर ? यूनिवर्सिटी से जुड़े सभी कालेजो के लिए " यानी काफी मोटा गेम था ये ? " जैकी ने कहा ---- " इसे आऊट करने वाला काफी मोटी रकम कमा सकता था ? "
" जी हां !

मैंने पूछा ---- " दूसरे पेपर्स से मतलब ? " "

देवनागरी लिपि का प्रश्नपत्र मैंने और रसायन शास्त्र का लविन्द्र भूपण ने बनाया था । " नजदीक खड़े एरिक डिसूजा ने बताया ---- " शेष प्रश्न पत्र सम्भवतः अन्य विद्यालयों के अध्यापकों द्वारा तैयार किये गये होंगे । "
" मगर आऊट यही पेपर क्यों हुआ ? " मैंने सवाल उठाया ।
" मैं इस बारे में कुछ नहीं जानती सर ! " मारे भय के मैंने हिमानी की आवाज में कंपकपाहट महसूस की ---- " वैसे भी मैंने पेपर तैयार करके अपनी हैडराइटिंग में दिया था , ये किसी कम्प्यूटर पर कम्पोज हुआ है !
" जैकी ने बंसल से पूछा ---- " आपने पेपर कम्पोज कराफर यूनिवर्सिटी भेजे थे या .... "

ज्यों के त्यो । हैंडराइटिंग में ।

" मैंने नजदीक खड़े गुल्लू से सवाल किया ---- " जब तुमने चन्द्रमोहन की चीख सुनी , उस वक्त कहां थे ? "
" मेन गेट पर स्टैण्ड था सर । " उसने हिन्दी में अंग्रेजी बोली ।
जैकी ने अक्खड़ स्वर में पृष्ठा --- " पूरी बात बताओ ! "
" हम अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थे सर ! क्लाइमेट में चन्द्रमोहन बाबा की चीख उभरी । हमने इधर की तरफ रन किया । आप देख ही रहे हैं । मून निकला हुआ है । चांदनी इसी तरह बिखरी हुई थी । हमने दूर से देखा । वन मैन स्टाफ रूम के गेट से निकलकर भागा । "
" क्या पहन रखा था उसने ? "
" ओवरकोट । जूते । और शायद पतलून भी थी , हेलमेट भी पहन रखा था ।
उसे हमने ललकारा ! वह दुम दबाकर भागा । हम पीछे लौटे । साथ ही चीखे भी ---- पकड़ो ! पकडो । हत्यारा भाग रहा है । भागने के मामले में हम फस्ट आये । उस पेड़ तक पहुचते - पहुंचते दबोच ही लिया उसे मगर , पावरफुल वह ज्यादा था ।
उसके एक ही झटके में हम फिरकनी की तरह घूमकर दूर जा गिरे । फुर्ती से उठे । वह पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था । हमने फिर झपटकर दबोचने की कोशिश का ! उसने बुट की ठोकर हमारी छाती पर मारी । हम फिर चारों खाने चित्त ! जब तक उठे , तब तक यह पेड़ पर चढ़कर चारदीवारी के उपर जम्प मार चुका था । उस वक्त हम पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे जब लविन्द्र सर पहुंचे । ये पेड़ पर चढ़े भी परन्तु वह नाइन टू इलेविन हो चुका था । "

"कैसा था वह "
" कैसा मतलब ? " " मोटा या पतला ? गुट्टा या लम्बा ? "
" न मोटा । न पतला । न गुटुटा , न लम्बा । बीच बाला था ।
" उसके बाद हम चन्द्रमोहन के कमरे में पहुंचे । वहां मौजूद उसकी नौट बुक देखी । जिस कागज पर CHALLENGE लिखा था , उसको राइटिंग नोट बुक्स की राइंटिग से मिलाई ।

मेरे मुंह से बरबस निकल पड़ा ---- " ये राइटिंग तो चन्द्रमोहन की है । " “ यानी इस कागज पर CHALLENGE लिखकर उसने खुद जेब में रखा ?
 
मगर क्यो ? " " इस क्यों का जवाब फिलहाल न मेरे पास है वेद जी , न आपके पास । "
" पहेली और उलझती जा रही है । पहले सत्या उस अवस्था में CHALLENGE लिखती है जिस अवस्था में किसी भी व्यक्ति को हत्यारे का नाम या हत्या की वजह लिखनी चाहिए । फिर यही शब्द चन्द्रमोहन लिखकर जेब में डाल लेता है । क्या सत्या की तरह वह भी जान गया था कि वह मरने वाला है ? "
" कम से कम फोन पर बात करने तक नहीं लगता । " कहने के बाद जैको कमरे की तलाशी में जुट गया । अभी तक मै एक दीवार के सहारे खड़ा था । वहां से हटकर चन्द्रमोहन की राइटिंग टेबल की तरफ बढ़ा ही था कि राजेश की चीख ने वातावरण को झकझोर दिया ---- " सर ! ये क्या ?
" सभी चौंककर उसकी तरफ पलटे । मैं भी ।

चेहरे पर खौफ के साये लिए वह मुझ ही से कह रहा था ---- " स .... सर । आपकी पीठ पर ।
" मैं उछल पड़ा .--- " क्या है मेरी पीठ पर ? "

इस वक्त मेरी पीठ उसकी आंखों के सामने नहीं थी । हां , जैकी के सामने जरुर थी , वह मेरे पीछे था । उसने झपटकर मेरी पीठ से कुछ छुड़ाया । मैं बौखलाकर उसकी तरफ घूमा । उसके हाथ में एक बड़ा सा कागज था । कागज पर कुछ लिखा था । चेहरे पर आश्चर्य का सागर लिए उसने मुझसे पूछा ---- " ये आपकी पीठ पर किसने लगा दिया ?
" मारे उत्तेजना के जैसे मेरा बुरा हाल था । यह कहता हुआ एक तरह से जैकी के हाथ में मौजूद कागज पर झपट ही जो पड़ा कि ---- " क्या लिखा है इस पर ? " पलक झपकते ही कागज़ मेरे हाथ में था और में फटी फटी आँखों से कम्प्यूटर पर कम्पोज किये गये उन मोटे - मोटे हरफो को देख रहा था , जिनके द्वारा लिखा गया था ---- " खेल अभी शुरू हुआ है ---- मि.चैलेंज "

" लेकिन किसने ? " हकबकाई मधु ने पूछा ---- " यह कागज किसने लगाया आपकी पीठ पर ? "
" कुछ कह नहीं सकता । तब तक मैं वहां मौजूद हर शख्स की रेंज में आ चुका था ।

ये तय है मधु हत्यारा उसी कैम्पस में है" सवाल ये है ---- उसने कागज आप ही की पीठ पर क्यों लगाया ? "
" फिलहाल हमारे पास किसी सवाल का जवाब नहीं है । "
" पता नहीं क्यों ---- मुझे तो डर लगने लगा है । खेल अभी शुरू हुआ है ' का मतलब साफ है । कॉलिज में और मर्डर होंगे ? "
" स्लोगन के नीचे ' मि ० चैलेंज ' लिखा है । यानी हत्यारा खुद को ' मि ० चैलेंज ' कह रहा है । मरने वाले भी यही शब्द लिखकर मर रहे हैं । पेंच कुछ समझ में नहीं आ रहा । " " मुझे यह झमेला खतरनाक प्वाइंट की तरफ बढ़ता नजर आ रहा है ।

" मधु ने कहा ---- " आप विभा से कॉन्टैक्ट क्यों नहीं करते ? " " वि - विमा ? " बिजली सी गिरी मेरे दिमाग पर । हमेशा की तरह यह नाम जुबां पर आते ही दिल जोर - जोर से धड़कने लगा।
 
दिल की गहराइयों से एक मीठी - सी कसक उठी । यह वह दर्द था जो हर शख्स को बड़ा प्यारा लगता है । हालांहि मेरे वे पाठक विभा के नाम से अच्छी तरह परिचित है जिन्होंने ' साढ़े तीन घंटे ' और ' बीवी का नशा ' नामक उपन्यास पड़े हैं । परन्तु उनके लिए संक्षेप में विभा के बारे में बताना जरूरी है जिन्होंने ये उपन्यास नहीं पड़े । वह एल.एल.बी. में मेरे साथ पड़ी थी । मैंने उससे मुहब्बत की थी ---- एकतरफा मुहब्बत ! तीन साल के लम्बे धैर्य के बाद जब मैंने विभा से कहा , ' मैं तुमसे प्यार करता हूँ तो उसने मुझे कितने सुन्दर शब्दों में समझाया था कि मैं कितना गलत करता हूँ ! उसने साफ कहा था ---- ' मैंने तुम्हें एक अच्छे दोस्त के अलावा कभी किसी नजर से नहीं देखा , और वेद , तुम भी दोस्ती के पवित्र रिश्ते को मुहब्बत की स्याही से कलंकित मत करो । यह भावना तुम्हे भटका देगी । तुम्हें लेखक नहीं बनना बल्कि हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा लेखक बनना है ।
' उसकी शुभकामनाएं आज फल रही थीं । कॉलिज लाइफ के बाद में अपने लेखन में डूब गया । मधु से शादी हो गयी । सौभाग्य से ऐसी पत्नी मिली जो मेरे अंदर के लेखक को कभी असावधान नहीं होने देती । मैं और मधु मैरिज एनीवर्सरी मनाने जिन्दलपुरम गये । यहां विभा से मुलाकात हुई । यह किस्सा मैंने ' साढ़े तीन घंटे ' नामक उपन्यास में लिखा है । ' उसकी शादी जिन्दलपुरम के मालिक अनूप जिन्दल से हुई थी । इतने दिन बाद एक दूसरे से मिलकर हम बहुत खुश हुए मगर ये खुशी बहुत छोटी साबित हुई । बड़ी ही रहस्यमय परिस्थितियों में अनूप ने आत्महत्या कर ली । विधवा लिबास में जब विभा सामने आई तो मेरा दिल हाहाकार कर उठा । उसके बाद जिस ढंग से उसने अपने पति की मौत की इन्वेस्टिगेशन की , उसने मुझे और मधू को चमत्कृत कर दिया ।

बेहद ब्रिलियंट है वह। उलझी हुई गुत्थियों और पहेलियों को हल करने में तो उसे महारथ हासिल है । उसने अपने पति के हत्यारों को ऐसी सजा दी जिसके बारे में सोचकर आज भी मेरे तिरपन कांप जाते हैं । उसके बहुत दिन बाद मेरे पास एक दोस्त आया । संजय भारद्वाज ! बड़ी अनोखी समस्या थी उसकी । ऐसी जैसी न उससे पहले किसी के सामने आई थी , न बाद में आई । अपनी बीवी को नेकलेस पहनाने की खातिर उसने एक मर्डर किया था । परफैक्ट मर्डर कि उसे कोई पकड़ नहीं सकता था । उस मर्डर के इल्जाम में उसकी बीवी पकड़ी गयी । उसे बीवी को बचाने की खातिर कानून को बताना था कि हत्या उसने की है मगर खुद उसी के पास इस बात का कोई सुबूत नहीं था । मैं उसे लेकर विभा के , पास पहुंचा । विभा ने कहा ----मै एक बहुत बड़े घराने की बहू हूं वेद । लम्बा - चौड़ा विजनेस मुझे ही देखना पड़ता है । पेशेवर इन्वेस्टिगेटर नही हूँ मैं जो किसी भी केस को साल्व करती फिरूं ! वह मामला मेरे पति का था । तब संजय के बार - बार गिड़गिड़ाने और मेरी रिक्वेस्ट पर वह तैयार हुई और उस वक्त खुद संजय भी हैरत से उछल पड़ा जब विभा ने साबित किया कि असल में वह हत्या संजय ने की ही नहीं थी ।
 
" कहां खो गये जनाब ? " मधु ने मेरे विचारों के शान्त सागर में अपने वाक्य का कंकर फेका । " ओह "चौककर मै वर्तमान में वापस आया।

मधु ने मुझे तिरछी नजर से देखते हुए छेड़ा ---- " क्या बात है , विभा का नाम आते ही किसी और दुनिया में पहुंच गये आप ?

मै ये फरमा रही दी हुजूर , इस केस की उलझी हुई गुत्थियों को केवल बिभा बहन सुलझा सकती हैं । "
" सुलझा तो सकती है" लेकिन ? " '
" वह नहीं आयेगी । "
" क्यों ? "
" क्योंकि .... खैर , छोड़ो मधु । ये मामला मुझे ही हल करना होगा । जहां इतने सारे पेंच हैं , वहां एक सवाल ये भी है कि इतने दबाब के बावजूद प्रिंसिपल ने चन्द्रमोहन का ऐस्ट्रोकेशन क्यों नहीं किया ? शायद इसी सवाल के पीछे हत्यारा छुपा हो । जवाब केवल प्रिंसिपल दे सकता है । कल उससे मिलना पड़ेगा । " यह निश्चय मैंने कर तो लिया परन्तु उस वक्त सोच तक नही सकता धा कि ---- इस बार कालिज में इतनी हैरतअंगेज घटनाओं से गुजरना होगा ।

मै एक बार फिर कॉलेज में मौजूद था और राजेश के ग्रुप से बातचीत हो रही थी ।
एकता ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि सब बुरी तरह चौंके । अचानक गर्ल्स हॉस्टल की तरफ से लड़कियों के जोर - जोर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगी थीं । हम उधर भागे । हॉस्टल में लड़किया इस तरह चीख रही थीं जैसे आफत आ गयी हो ! कई लड़कियां चीखती चिल्लाती बाहर की तरफ दौड़ती नजर आई । राजेश ने उनमें से एक को जबरदस्ती रोकते हुए पूछा ---- " रवीना ! रवीना ! क्या हुआ ? "
" मुझे नहीं पता ! " कहने के साथ रवीना उसके बंधन से निकलकर भाग गई । हम हॉस्टल के फर्स्ट फ्लोर की गैलरी में पहुंच चुके थे । चीखों के साथ भागती - दौड़ती लड़कियों के चेहरों पर दहशत सवार थी । उनके अस्त - व्यस्त कपड़े बता रहे थे , कि जो जिस हाल में थी , उसी में भाग ली थी ।
अल्लारक्खा ने एक लड़की को रोका । पुछा -.- " आखिर हुआ क्या है ? कुछ बोलो तो सही " ह - हिमानी मैडम ! हिमानी मैडम ! " " क्या हुआ हिमानी को ?

" आशंका के मारे मैं दहाड़ उठा । एक दूसरी लड़की ने खुद हमारे नजदीक रुकते हुए कहा -- " वे अपने कमरे में चीख रही हैं .... "
" मगर क्यों ? " राजेश ने पूछा ।
" प - पता नहीं ! हम तो उनकी चीखें सुनते ही ... उसका बाक्य बीच में छोड़कर तीर की तरह भागा राजेश । मैं लपका । बल्फि सभी उसके पीछे थे । हिमानी के रूम के बाहर तक पहुंचते - पहुंचते मैंने देखा ---- कई लड़कों के हाथों में हॉकी , क्रिकेट का बैट , विकेट और मोटर साइकिल की चैन जैसे हथियार नजर आने लगे थे ।

कमरे के अंदर से बराबर हिमानी के चीखने की आवाज आ रही थी .- " बचाओ । बचाओ । बचाओ । " लड़कों ने झपटकर कमरे का दरवाजा खोलना चाहा । वह अंदर से बंद था । " दरवाजा तोड़ दो ! " राजेश चीखा । जवान और हट्टे - कट्टे लड़के कहर बनकर दरवाजे पर झपटे । यो तीन हमलों में ही दरवाजा ' भड़ाक ' की जोरदार आवाज के साथ कमरे के अंदर जा गिरा । हथियार लिए लड़के बाढ़ के पानी की तरह कमरे में घुसे । उस वक्त पर दुश्मन सामने होता तो मुझे यकीन है वे लड़के उसकी हड्डियों का चूरा बना देते । युवाशक्ति की शक्ति मै अपनी आंखों से देख रहा था । परन्तु ---- दुश्मन सामने नहीं था । कमरा खाली था । अटैच्ड बाथरूम का दरवाजा अंदर की तरफ से जोर - जोर से भड़भड़ाया जा रहा था । रोती हुई हिमानी की चीखें सुनाई दे रही धी --- " बचाओ ! बचाओ ! खोलो । " एक लड़के ने लपक कर बाहर से बंद दरवाजा खोल दिया । अर्थ - नग्नावस्था में हिमानी नजर आई । वह बुरी तरह से रो रही थी । जिस्म पर सिर्फ एक बड़ा सा टॉवल था । हम सबको देखकर वह वहीं , एक दीवार के सहारे बैठकर रोने लगी । अपना चेहरा घुटनों में छुपा लिया उसने । कई लड़को ने बाथरूम में घुसकर देखा ---- कोई नहीं था वहां ।
 
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