Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज - Page 7 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज

मैंने प्रिंसिपल पर नजरें गड़ाये रखकर कहा ---- " वह जिस्म ढीला - ढाला सफेद चोगा , दस्ताने और रिवीक शू पहने हुए था । चेहरा काले नकाब से ढ़क रखा था । बाकी दो की शिफ्ट में आया था वह । आते ही उन्हें बाहर भेज दिया ताकि हमारी बातें न मुन सके और बोला ---- ' कहिए लेखक महोदय , मैंने तुम्हारी पीठ पर अपना मैसेज चिपका दिया और तुम्हें इल्म तक न हो सका ---- मेरी कारीगरी को मानते हो या नहीं ? '
बोलने के प्रयास में मैं फड़फड़ाया । अपने मुंह से टेप हटाने का इशारा किया , परन्तु उसने ऐसी कोई कोशिश नहीं की । दरअसल उसने सवाल जरूर किया मगर जवाब का इच्छुक नही था । अपनी कामयाबियों पर खुद ही जश्न सा मना रहा था !
वह बोला ---- ' मैंने सत्या की हत्या की ! चन्द्रमोहन को मार डाला । बाल बाका किया जाना तो दूर . मुझ पर अब तक किसी का शक भी नहीं पहुंच सका । तुम्हें तो खैर मैं कुछ समझता ही नहीं , लेखक हो ---- कागजों पर भले ही चाहे जितने दांव - पेच इस्तेमाल कर लो परन्तु असल घटनाओं के हत्यारे को सूंघ तक नहीं सकते । लेकिन वो जैकी ---- खुद को थर्ड डिग्री का मास्टर कहने वाला बेवकूफ ---- सुना है . रिकार्ड बहुत शानदार है उसका । अपने तरीके से अनेक जटिल केस सौल्च किये हैं । कम से कम मैंने तो उसे मूर्ख ही पाया । ' कहने के साथ यह मेरे पलंग की परिक्रमा कर रहा था । ठिठककर बोला ---- " अब मैं तुम्हें एक राज की बात बताता हूँ--चन्द्रमोहन की हत्या मैंने प्रिंसिपल के बल्लम से की ! यह राज न अब तक तुम जान सके न जैकी ।

ऐसा मैंने उसे फंसाने के लिए किया । लेकिन सामने जब बेवकूफ इन्वेस्टिगेटर हो तो ऐसी चालें कामयाब नहीं होती । कामयाब तो तब होती जब इस राज तक पहुचते और यही वह राज था जिसे जानने के लिए तुम मरे जा रहे थे । जो मिसेज बंसल ने बंसल के कान में कहा था । दरअसल मिसेज बंसल को उसी क्षण पता लगा था कि उनके दो पुश्तैनी बल्लमों में से एक गायव है । चन्द्रमोहन का खून बल्लम से हुआ है , यह बात उन्हें पहले से मालूम थी । बल्लम गायब होना उनके लिए इतनी विस्फोटक बात थी कि वे तुम्हारे वहां से चले जाने तक का इंतजार न कर सकी ।

ड्राइंगरूम में पहुंची । कहते - कहते अचानक ख्याल आया ---- शायद इस बात का जिक्र किसी बाहरी व्यक्ति के सामने नहीं किया जाना चाहिए । और तब .... उन्होंने यह खबर बंसल के कान में कही । बंसल के होश उड़ने थे । उड़े । इधर मारे जिज्ञासा के तुम्हारी हालत बैरंग हो गयी ।
तुमने पूछा ---- बंसल ने नहीं बताया । इतना बड़ा प्वाइंट वह उस शख्स के हाथ में दे भी कैसे सकता था जो एक सैकिण्ड पहले उसे हत्यारा कह रहा था । तुममें गर्मागर्मी हुई । उसके बाद तुमने उसका पीछा किया और मौका लगते ही मैंने तुम्हारी खोपड़ी पर चोट की । ' कहने के बाद मैं चुप हो गया ।

वे सब भी चुप थे ! विभा भी ! " क्या तुम अब भी नहीं समझी विभा कि मेरे सामने नकाब पहनकर खड़ा वह शख्स सिर्फ और सिर्फ बंसल था ? "
" नहीं " विभा ने कहा । "
हद हो गयी विभा । कम से कम तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी मुझे । दावे से कह सकता हूं इस बार तुम भी चुक रही हो । सोचा था --- जितनी बातें बता चुका हूं उन्हें सुनते ही मेरी तरह तुम भी समझ जाओगी कि मेरे सामने मि ० चैलेंज के रूप में खड़ा शख्स मि ० बंसल थे ।

" चौंकते हुए जैकी ने पूछा ---- " आप मि ० चैलेंज के मुंह से निकली वह बात बता चुके है ? "
" यकीनन बता चुका हूं । "
मेरे होठों पर उन सबको छकाने वाली मुस्कान थी । "
कमाल है ! मैं तो ऐसी कोई बात नहीं पकड़ पाया । "
" धुमाओ दिमाग ! सोचो ! कहो तो ये बातें दोहराऊ जो उस वक्त मि ० चैलेंज ने कही थी ? "
" मुझे हर बात याद है । " गौतम ने कहा- " मगर कोई ऐसी नहीं लग रही जिससे जाना जा सके कि उस वक्त आपके सामने खड़ा नकाबपोश बंसल साहब थे ।
 
क्यों बंसल साहब ? " मैंने सीधे प्रिंसिपल से कहा ---- " क्या आपको अब भी इल्म नहीं हो रहा , उस वक्त आप क्या लूज टॉक कर गये थे ? "

" पता नहीं आप मेरे पीछे क्यों पड़ गये है । जितनी बातें अब तक बताई हैं , मेरे खयाल से तो उन सबसे एक ही बात ध्वनित होती है ---- यह कि वह जो भी था , मुझे आपके शक के दायरे में फंसाना चाहता था । वकौल आपके , उसने साफ - साफ कहा , मैंने बंसल के वल्लम से चन्द्रमोहन की हत्या इसलिए की ताकि आप और जैकी प्रिंसिपल की गर्दन पकड़ लें । इसके बावजूद यदि आप कहते हैं कि वह हम थे जो बजह समझ से बाहर है । "

" यह सब तुम कह ही इसलिए रहे थे ताकि मेरे जहन में यह भ्रम भर सको कि वह तुम नहीं कोई ऐसा शख्स है जो तुम्हें फंसाना चाहता है । परन्तु चूक होशियार से होशियार आदमी से भी आखिर हो ही जाती है । जाहिर है तुम अब तक नहीं समझ सके उस वक्त तुमसे क्या चूक हुई ? आश्चर्य केवल ये है विभा कि उस चूक को तुम भी नहीं पकड़ पा रहीं । "
" पता नहीं हम सब कहां चूक रहे है ? " जैकी ने कहा ---- " अब तो बता ही दीजिए वेद जी । "
" नहीं ! अभी नहीं । " विभा मुझसे कह रही थी ---- " बात पूरी करो वेद ! उसके बाद मि ० चैलेंज ने तुमसे क्या कहा ? "

" बोला ---- सुना है , अखबार में तुम्हारे अपहरण की खबर पढ़कर जिन्दलपुरम से विभा जिन्दल आई है । तुम्हारी दोस्त है वो ! अब वो तुम्हारी खोजबीन करेगी । ' साढ़े तीन घंटे ' और ' बीवी का नशा ' मैंने भी पढ़े हैं । दोनों उपन्यासों में विभा जिन्दल के बारे में काफी डोंग मारी है । इस बहाने पता लग जायेगा यह कितनी ऊंची चीज है ? और सब में यदि वह उतनी ही ब्रिलियन्ट है जितना तुमने दर्शाया था तो मजा आ जायेगा इस टकराव में ! तुमसे और जैकी से उलझने में रस नहीं आ रहा । अगर वो विभा जिन्दल है तो मैं भी मि ० चैलेंज हूँ । पता लग जायेगा उसे , कि छोटे - छोटे अपराधियों को खोज निकालने और मि ० चैलेंज तक पहुंचने में कितना फर्क है ?

आने दो । दावा है मेरा ---- उस वक्त तक मुझे कोई नहीं पहचान सकता जब तक अपने हाथों से नकाब न नोंच दूँ । "

" उसके बाद ? "
" अंत में यह कहकर चला गया कि दुनिया की कोई ताकत मुझे मेरे इरादों में कामयाब होने से नहीं रोक सकती । "
" तुम्हारे ख्याल से इन बातों के पीछे उसका मकसद क्या था ? "
एक बार फिर मैंने प्रिंसिपल को घूरा । कहा --- " मेरे जहन में यह ठूंसना कि मि ० चैलेंज और भले ही चाहे जो हो , मगर प्रिंसिपल नहीं है । "
" और तुम फिर भी समझ गये वह प्रिंसिपल है ? "
" इसकी चूक के कारण । " " अब तुम्हें उस चूक के बारे में बता देना चाहिए । "
मैंने धमाका करने वाले अंदाज में कहा ---- " उसे कैसे मालूम था मिसेज बंसल ने बंसल के कान में क्या कहा ? " जैकी और गौतम उछल पड़े । गौतम कह उठा ---- " वाकई । " जैकी के मुंह से निकला ---- " सोचने वाल बात है।
 
" म मुझे नहीं पता । " बंसल की हालत बैरंग । " वहां केवल में , तुम और तुम्हारी मिसेज थीं ।
मि ० बंसल " मै एक - एक शब्द पर जोर देता कहता चला गया ---- " फिर वो बात मि ० चैलेज को कैसे पता लगी । जो वहां रहने के बावजूद मैं नहीं सुन सका था ? इतना ही नहीं , मि ० चैलेंज ने उस वक्त की एक - एक घटना का वर्णन चश्मदीद गवाह की तरह किया ।

सवाल उठता है ---- कैसे ? जवाब साफ है .---- वो तुम थे । तुम्हारे अलावा वहां की घटनाओं का ज्यों का त्यों जिक्र और कर भी कौन सकता है ? दरअसल उस वक्त तुम पर एक ही घुन सबार थी --- यह कि खुद को मेरे शक के दायरे से कैसे दूर रखो ! उसी धुन में तुमने बल्लम के बारे में बताया । तुम भूल गये बल्कि अब तक भी इल्म नहीं था कि चूक कहां हो गयी ? मैं तुमसे पुछता हूं विभा ---- जो बात केवल इसे और इसकी मिसेज को पता थी वह मि ० चैलेज ने कैसे कह दी ? अगर वह इसके अलावा कोई और था तो यह बात कैसे पता थी उसे ? "
विभा बोली - पॉइंट में दम है मिस्टर बंसल जवाब दो । "
" म - मुझे नहीं पता ! मुझे कुछ नहीं पता विभा जी ! "
बंसल बुरी तरह रो पड़ा ---- " बस इतना जानता हूं मैं मि ० चैलेंज नहीं ।

मैंने ऑफिस में मौजूद हर शख्स की तरफ कामयाबी से परिपूर्ण मुस्कान के साथ देखा । कुछ ऐसे अंदाज में जैसे अखाड़े में अपने प्रतिद्धन्दि को चित करने के बाद जीतने वाला पहलवान दर्शकों की तरफ देखता है । सभी मेरे तर्क से सहमत नजर आ रहे थे । पहली बार मैंने विभा पर जीत दर्ज की थी । कह उठा---- कोई ऐसा जो बता सके , मि ० बैलेंज अगर कोई और था तो वे बाते उसे कहां से पता लग गयी ? "
" जैसे मुझे पता लग गई । " विभा ने कहा । "

तुम्हें ? " मैं सकपकाया ।
" पूछो बंसल से ! जैकी से भी पूछ सकते हो और मास्टर शगुन भी बतायेगा । बताओ बेटे , अपने पापा को बताओ वे बातें मुझे पता थीं या नहीं ? "
" किससे पता लगी तुम्हे ? " " बंसल के नौकर से ? "
मैं अवाक रह गया । पूछा ---- " क्या मिस्टर चैलेंज को भी उसी से ....
" नहीं ! मि ० चलेज को ये बातें रामदीन से पता नहीं लगी थीं । "
" फिर किससे पता लगी ? "
" मतलब ? "
" जिस तरह मैंने रामदीन के रास्ते से मालूम कर ली , मुमकिन है मि ० चैलेंज ने किसी अन्य माध्यम से जान ली हो । "
" सवाल उठता है --- किस माध्यम से ? "

अगर आज हमारे पास इस सवाल का जवाब नहीं है तो मतलब ये नहीं हुआ कि प्रिंसिपल को ही मि ० चैलेंज मान लें । अपना उदाहरण देने के पीछे मकसद केवल यह समझाना भी है की यह ऐसी बात नहीं थी जिसे मालूम ही न किया जा सके ।

" लगता है विभा , तुम केवल बहस करने के लिए बहस कर रही हो । "
" वात बहस की नहीं बंद , गुत्थियों को समझने की है । " विभा कहती चली गयी ---- " हालांकि तारीफ करनी होगी : तुमने ऐसा प्वाइंट पकड़ा जिसे मैं नहीं पकड़ सकी । और यकीनन ये प्वाइंट ऐसा है जिसके बाद यह सोचने की गुंजाइश नहीं रह जाती कि मि ० चैलेज प्रिंसिपल के अलावा कोई और होगा । मैं खुले दिल से बधाई देती हूं - उसे कुबुल करो ! लेकिन ....
" लेकिन ? " सभी उलझ गये । “
जब उसने जैकी के मोबाइल पर फोन किया तब मैंने मि ० चैलेंज को कच्चा खिलाड़ी कहा था , मैं अपने शब्द वापस लेती हूँ ।
" मतलब ? " " मि ० चैलेज जो भी है , बहुत पक्का और घुटा हुआ खिलाड़ी है । "
" तुम तो उसकी तारीफ करने लगी ।

" दुश्मन भी अगर तारीफ का काम करे तो की जानी चाहिए । "
" ऐसा कौन - सा काम कर दिया उसने ? "
" दिमाग घुमाकर रख दिये हैं हम सबके । " विभा कह उठी ---- " ये छोटा काम नहीं है । अपनी बातों के शुरू में तुमने कहा था --- ' ये जाल बड़ा गहरा है । ' उस वक्त मैं तुम्हारे वाक्य से सहमत नहीं थी , परन्तु इस वक्त सहमत होना पड़ रहा है । वाकई मि ० चैलेंज ने इतना गहरा जाल बुना जिसमें हम फंसकर रह गये हैं।
 
" मैं समझ नहीं पा रहा विभा , तुम कहना क्या चाहती हो ? "
" यह पेंच शायद तब ठीक से समझ आयेगा जब दिमाग से यह निकाल दो कि प्रिंसिपल मि ० चैलेंज था । समझ लो वह कोई और था ---- उसका मकसद था , प्रिंसिपल को तुम्हारी नजर में संदिग्ध बनाना ।

सोचो--- यदि यह काम वह सीधे - सीधे रास्ते से करता अर्थात् ऐसी कोई हरकत या बात करता , जिससे लगता , वह प्रिंसिपल है तो तुम पर क्या प्रतिक्रिया होती ? "
" मैं समझ जाता यह कोई भी है मगर प्रिंसिपल नहीं है । प्रिंसिपल होता तो ऐसी कोई हरकत करता ही नहीं जिससे उसका राज उजागर हो जाये । . "
दिमाग रखने वाले हर शख्स पर यही प्रतिक्रिया होगी ---- इस बात को मि ० चैलेंज अच्छी तरह समझता है । उसने तुम्हारे दिमाग को रीड किया और उसके अनुरूप चाल चली । वह समझ चुका था जो तुम्हें समझाने की कोशिश की जायेगी तुम उसका उल्टा समझोगे इसलिए अपनी बातों से यह समझाने की कोशिश की कि वह प्रिंसिपल नहीं बल्कि उसे फंसाने का इच्छुक कोई शख्स है और मुंह से ऐसी बात निकाल दी जिससे साबित हो कि वह प्रिंसिपल है तथा वो बात तुम्हें उसकी चूक लगे । तुम फौरन समझ गये ---- यह शख्स है प्रिंसिपल ही और ऐसी बातें इसलिए कर रहा है ताकि मैं इसे प्रिंसिपल न समझू । तुम्हें इसी नतीजे पर पहुंचाना उसका लक्ष्य था । "
" यानी मैं बुरी तरह उसके खेल में फंस गया । " " तुम्हें बुरा न लगे तो ऐसा भी कहा जा सकता है । "
" लेकिन ऐसा तभी हो सकता है विभा जब उसे ड्राइंगरूम की बातें कहीं और से पता लगी हों । ये बात मुमकिन नहीं तो बेइन्तिहा कठिन जरूर है ।

जब तक हमारे पास इस सवाल का जवाब नहीं है तब तक क्या तुम्हारी बातों से सिद्ध नहीं होता कि तुम अंधी होकर बंसल का पक्ष ले रही हो ? "
" नहीं । ऐसा नहीं है । बंसल को मि ० बैलेंज न मानने के मेरे पास अनेक कारण है ।

" मैंने व्यंग सा किया ---- " एकाध का जिक्र तो करो । "
" मेरे चन्द सवालों का जवाब दो । " विभा ने कहा ---- " तुम्हारे ख्याल से प्रिंसिपल को अपना पीछा किये जाने के बारे में मालूम था या नहीं ? "
“ हैन्डरेड परसेन्ट मालूम था , तभी तो मुझे बेहोश किया । "
" क्या जरूरत थी बेहोश करने की ? "
“ मतलब ? "
" शीशे की तरह साफ है वेद ! प्रिसिपल को तुम्हें बेहोश करने की कोई जरूरत नहीं थी । बल्कि इसे तो चाहिए था कि अंजान बनकर तुम्हें अपने पीछे आने देता । अपनी और गौतम की बातें सुनने देता । सोचता ---- ये बातें सुनकर तुम्हारा शक खुद ही दूर हो जायेगा । खुद सोचो , अगर तुमने गौतम और प्रिंसिपल की बाते सुन ली होती ---- जान लिया होता कि यह हत्यारा नहीं बल्कि बल्लम की वजह से घबराया हुआ है और गौतम के पास मदद के लिए आया है तो क्या उसके बाद भी इसके पीछे पड़े रहते ? "
" नहीं । " मुझे कहना पड़ा ।
" इति सिद्धम । " कसकर विभा मुस्कराई । "

लेकिन विभा , क्या जरूरी है उस वक्त ये इस एंगिल से सोच पाया या नहीं ? "
“ अपने पक्ष में हर शख्स चौबीस घंटे उसी ऐंगेल से सोचता है जो उसे सूट कर सकता हो । " विभा बगैर रुके कहता चलती गयी ---- " जैसा की तुमने कहा ---- अपहरण के पीछे प्रिंसिपल का उद्देश्य तुम्हारी नजर में खुद को बेगुनाह साबित करना था । तो मेरे दोस्त , इसके लिए इसे इतना प्रपंच रचने की जरूरत नहीं थी । अंजान बना रहकर तुम्हें अपनी और गौतम की बातें सुनाता और तुम्हारी गुड बुक में आकर मस्ती मारता । "
" दूसरी बजह ? " " तुमने खुद बताया ---- किराये के गुण्डे इसे ' बॉस ' कह रहे थे । उन्हें नहीं मालूम था यह वही मि ० चैलेंज है जिसका जिक्र कालिज की घटनाओं के सिलसिले में अखबार में आ चुका है । तुमसे बात करते वक्त भी उसने दोनों गुण्डों को बाहर भेज दिया था । जो शख्स इतना पर्दा बरत रहा था , वह न किसी और को मि ० चैलेंज के नाम से जैकी के मोबाइल पर फोन करने का काम सौंप सकता है , न पी ० सी ० ओ ० में संदेश छोड़ने का काम कर सकता है ।
तीसरी वात ---- सामने का नम्बर अपनी नोट बुक में नोट करके जेब में रखते मि ० चैलेंज को तुमने अपनी आंखों से देखा था । पी ० सी ० ओ ० में हमें उसी नोट बुक का नीचे वाला कागज मिला । स्पष्ट है ---- वह कागज वहां उसी ने छोड़ा जिसने तुमसे बात की और प्रिंसिपल साहब वह इसलिए नहीं हो सकते क्योंकि जब फोन आया तो ये हमारी बगल वाली कुर्सी पर थे । तो चौथी बात भी बताऊं ? "
" बता दो । "
 
" सीधी और सिम्पल बात ! इन्हें चन्द्रमोहन की हत्या अपने बल्लम से करने की जरूरत नहीं थी । यह वेवकूफी अगर इनसे हो गयी थी तो बल्लम गायब होने के बारे में सुनकर उतनी बुरी तरह कभी न चौंकते जितनी बुरी तरह चौंके और यदि वह चौकना नकली था तो मदद के लिए गौतम के ऑफिस में कभी न जाते । "

" विभा । " मुझे कहना पड़ा ---- " जब तुम किसी प्वाइंट की धज्जियां उड़ाती हो तो उड़ाती ही चली जाती हो । तुम्हारे पास इतने तर्क होते है कि सामने वाला ठहर नहीं पाता । "

" ये सारे तर्क मेरे दिमाग में शुरू से थे । इसलिए तुम्हारे बार - बार कहने के बावजूद सहमत नहीं थी । "
" तो नतीजा यह निकला ---- वह कोई और है । "
" यकीनन । "
" कौन हो सकता है ? क्या इस पर भी रोशनी डाल सकती हो ? "
" सारी बातों पर यहीं रोशनी मत डलवाओ । टार्च के सैल लीक हो चुके है । " विभा ने मस्ती के मूड में आते हुए कहा- " घर चलो ! मधु बहन का ब्लड प्रेशर बढ़ रहा होगा । "

हम उठ खड़े हुए । कम से कम उस वक्त मैंने ख्वाब तक में नहीं सोचा था कि अभी हमारे घर पहुंचने का मुहूर्त नहीं आया है । कॉलिज में दिमागों का फ्यूज उड़ा देने वाली एक जबरदस्त घटना घट चुकी थी ।

मेरे अपहरण को लेकर कॉलिज में भी कम हंगामा नहीं था । लगभग सभी प्रोफेसर और स्टूडेन्ट्स उद्वेलित थे । राजेश , दीपा , एकता , ऐरिक और लबिन्द्र जैसे लोग मेरे घर भी पहुंचे ।

राजेश इस वक्त अपने बाकी दोस्तों को वहीं का हाल बता रहा था ---- " विभा जिन्दल मेरे सामने पहुंच गयी थी । क्या लेडी है । देखते ही मन में श्रद्धा जागती है । वेद जी की पत्नी तो उनसे लिपटकर रोने लगी । विभा ने कहा- ' कमाल है मधु बहन मैं तुम्हारे लिए खुशखबरी लेकर आई और तुम मुंह लटकाये खड़ी हो ! "

रणवीर नामक स्टूडेन्ट ने पूछा --- " खुशखबरी कैसी ? "
" कहने लगी ---- ' यूं समझो कि मैं वेद को ढूंढ चुकी हूं । "
" क - क्या ? " उसके चारों तरफ खड़े स्टूडेन्ट्स के मुंह खुले के खुले रह गये । "

मैं तो क्या ---- कोई भी उनकी बात का अर्थ नहीं समझ पाया । ऐसी बातें कर रही थी जैसे पहेलियां बुझा रही हो । "
" कुछ देर बाद इंस्पैक्टर से उस इमारत की शॉप्स और ऑफिस की लिस्ट बनाने को कहने लगी जिसके बाहर वेद जी की गाड़ी खड़ी मिली थी ।
दीपा ने कहा --- . " और फिर जैकी को लेकर चली गई । "
" कहाँ ? " मुक्ता ने पूछा । "
ये तो साथ जाने वाले इंस्पेक्टर को भी नहीं पता था । " एकता बोली । "
लुक तो ऐसा देकर गई थी जैसे वेद जी को साथ लेकर ही घर में घुसेंगी । " दीपा कहती चली गयी ---- " दूसरे लोग और बेद जी की मिसेज भी काफी आश्वस्त नजर आने लगी थीं । इन्तजार में हम काफी देर रुके भी लेकिन जब नहीं आई तो वापस आ गये । "

संजय ने सवाल उठाया ---- " कहाँ गये होंगे वे लोग ? " अचानक अल्लारखा बोला ---- " मैं बता सकता हूं । " " तू - तू ? " सबने चौंककर अल्लारखा की तरफ देखा । "
हाँ ... मैं । " उसने सीना चौड़ा लिया ।

" तु कैसे बता सकता है ? " उसने अपना कालर खड़ा करते हुए कहा ---- "

विभा जिन्दल से बड़ा डिटेक्टिव जो हूँ मैं । "

ये आधा किलो का कान पर पड़ा तो सारी जासूसी झड़ जायेगी । " राजेश ने अपना हाथ दिखाते हुए पृछा ---- " जल्दी बक ! "

इन चक्षुओं से देखा था । " उसने आंखें मटकाई।
" कहाँ "
" यहीं । "
" यही कहां ? "
" अबे कालिज में ! और कहां ! "
" यहां ? यहां आये थे वे ? "
" हन्डरेड परसेन्ट । "
" किससे मिले ? "
" प्रसिपल से । " " और क्या तुझसे मिलते ? "
" लेकिन प्रिंसिपल से क्यों मिले ? "
" जी चाहता है न बताऊ बहरहाल जबरदस्त इन्फारमेशन है मेरे पास । मगर सोचता हूँ ---- गैर तो हो नहीं तुम लोग । दोस्त हो अपने , क्यों न बता ही दू ! "
" बताता है या दूं एक हाथ ? "
" बताता हूं ! बताता हूं यार । " एकाएक वह धमाका करने वाली स्टाइल में बोला --- " तुम लोग तो बेद जी के घर गये हुए थे ।
 
मैं देवदास बना ग्राउण्ड में एक पेड़ के नीचे बैठा था । "
" फिर ? " " फिर ....। " कहते - कहते उसकी नजर गर्ल्स हॉस्टल की तरफ अटक गई ---- " शोला आ रहा है । "
एक साथ सबने उधर देखा । गर्ल्स होस्टल से निकलकर हिमानी आ रही थी । ऊँची ऐड़ी की सेंडिल ! सफेद टी शर्ट और जांघों तक को नुमाया करने वाली सुर्ख स्कर्ट पहने हुए थी वह ।
बालों की दो छोटी - छोटी चोटियां बनाये , उनमें सुर्ख रंग के रिवन लगाये हुए थी । "

शर्म नहीं आती तुझे । " एकता ने कहा ---- " मैडम को शोला कहता है । "
" मैडम हो या आंटी ! शोला है तो शोला ही कहा जायेगा । "
संजय कह उठा ---- " देखो तो ! बालों को कैसे गूंथकर दो चौटिया बनाई हैं । कसम से --- तुम सबसे छोटी लगती है । "
" ब्रा तो जैसे मैडम पर है ही नहीं । " रणवीर ने कहा ।
" चुप । " दीपा ने घुंसा ताना ---- " सीमा से बाहर निकला तो नाक तोड़ दूंगी । "

“ सीमा से बाहर मैं हूं ही कब ? " उसने सीमा नाम की लड़की की तरफ देखकर आंख मारी ।

" तुम ! और मेरे लिए ? " सीमा ने जीभ निकाल कर चिढ़ाया ---- ' ' ठेंगे पर ! "

संजय बोला --- . " सीटी बजाने को दिल कर रहा है यार । " " बजाकर देख वह तेरा बाजा बजा देगी । "
" अब हम भी क्या करें ? " राजेश बड़बड़ाया ---- " वो कपड़े ही ऐसे पहनती है । "

" सत्या मैडम ने कितनी बार रोका मगर ये नहीं मानी । "

तभी , ब्यायज हॉस्टल से ऐरिक निकलकर इस तरफ बढ़ता नजर आया । वह अपना परम्परागत लिबास अर्थात् धोती कुर्ता पहने हुए थे । लगभग भागने की सी अवस्था में हिमानी के पीछे लपक रहा था वह ।
" लो ! " दीपा कह उठी ---- " मैडम के आशिक भी निकल पड़े । "
" इसे पता कैसे लग जाता है कि हिमानी मैडम कब हॉस्टल से बाहर निकली ? "
“ तूने नहीं देखा ? " संजय ने कहा ---- " मैंने देखा है । दोनों के कमरों की खिड़की आमने - सामने है । देवनागरी लिपि की नजर हमेशा शोले की खिड़की पर टिकी रहती है । खाने - पीने से लेकर शेव तक बनाने का काम वहीं होता है । इसका बस चले तो कपाट भी वहीं बनवा ले । "
" सुनो कोमलागनी । " ऐरिक ने पीछे से हिमानी को आवाज लगाई ---- " सुनो ! "

हिमानी अपनी सैंडिल पर घूमी । ऐरिक पर नजर पड़ते ही मुस्कराई और फिर , थोड़ी उचकती सी , वही अदा के साथ वापस पलट कर स्टूडेन्ट की तरफ बढ़ गई । किसी को नया कमेन्ट करने का मौका नहीं मिला । वह नजदीक आ गयी थी । चेहरा मेकअप से पुता पड़ा था । होठों पर लगी थी गहरे मुर्ख रंग की लिपस्टिक ।
" हैलो एवरीबडी । " वह अपनी आदतानुसार बार - बार होठो पर जीभ फेरती बोली । सबने एक साथ कहा -... " गुरु आफ्टर नून मैडम । "

" यहां क्या कर रहे हैं आप लोग ? " उसने इठलाते हुए पुछा । अल्लारखा एकटक उसे देखे जा रहा था । एकता ने जोर से उसकी पीठ पर चुटकी भरी ।
" उई । " अल्लारक्खा चिहुंका ।
" क्या हुआ ? " हिमानी ने पूछा ।
" अभी कुछ नहीं हुआ । नौ महीने बाद होगा सर। "
" दुष्ट ! " नजदीक आ चुके ऐरिक ने डॉटा ---- " छियालिसवीं बार बता रहा हूं तुझे । हमें सर नहीं , अध्यापक कहा कर ! देवनागरी लिपी का पठन - पाठन करते हैं हम । "
" हाय ! " हिमानी ने एरिक की तरफ नाखून पोलिश से पुती अंगुलियां हिलाइ ऐरिक ने भी कहा ---- " हाय । "
" सर " कई लड़के कह उठे ---- " आपने इंग्लिश बोली ? "
" अंग्रेजी ? और हमने ? कब ? कहां ? कैसे ? "

" अभी - अभी ' हाय ' कहा । "
" धत्त ! कम्बख्तों । हमने अंग्रेजी वाला नहीं देवनागरी लिपी वाला हाय बोला है । "
" हिन्दी वाला हाय ? ये कब बोला जाता है ? "

" जब कोई ऐसी वस्तु परिलक्षित हो जिसे प्राप्त करना कठिन हो तो स्वयं हिन्दी बाली हाय विस्फुटित होती है । "
" ऐसी क्या चीज देख ली आपने ? " ऐरिक ने अपने गंची चश्मे के पीछे से लार टपकाने वाले अंदाज में हिमानी को निहारा , बोला ---- " छंदेश्वरी ! बालक नटखट हैं । शरारत की मुद्रा में प्रतीत होते है । वैसे भी , इनके समक्ष प्रेमालाप करना उचित नहीं । क्यों न हम अल्पभोजनालय के लिए प्रस्थान करे ? " एक लड़के ने कहा ---- केंटीन बंद है गुरू जी ।
 
" क्षमा करें गुरुदेव ! " राजेश बोला -..- " हम एक आवश्यक विषय पर वार्तारत थे । "
" बहुत सन्दर ! अति सुन्दर । " ऐरिक ने कहा ---- " हम तुमसे प्रसन्न ही इसलिए रहते हैं। राजेश तुम हमेशा देवनागरी लिपि में वार्ता करते हो । बहरहाल , किस विषय पर वार्ता कर रहे थे तुम लोग ? "
" हम कहाँ थे । " राजेश ने अल्लारखा से कहा ---- " तू पेड़ के नीचे देवदास बना बैटा था ! उसके बाद ? "
" विमा जिन्दल की चमचमाती गाड़ी आई और सीधी प्रिंसिपल के बंगले की तरफ चली गई । मैंने उसमें बैठे इंस्पैक्टर को देख लिया था । लगा ---- कुछ गड़बड़ है । उठा , और बंगले की तरफ लपक लिया । वाकी सब अंदर जा चुके थे , शोफर गाड़ी के बाहर खड़ा था । मैंने खुद को अशोक के पेड़ के साथ चिपका लिया । अन्दर तो खुदा जाने क्या खिचड़ी पक रही थी । मगर कुछ देर बाद जो सीन देखा , उसे देखकर फरिश्ते कूच कर गये मेरे । "

" ऐसा क्या देखा तुमने ? " हिमानी अपने होठो पर जीभ फेरी । "
चोरों की तरह चारों तरफ देखते शोफर ने डिक्की खोली । उसमें से एक बेहोश जिस्म निकालकर कंधे पर डाला । "
" माई गॉड ! " हिमानी ने फिर होठो पर जीभ फेरते हुए पूछा ---- " किसका जिस्म था वह ? "
" प्रिंसिपल के नीकर रामदीन का । "
" हे भगवान ! " दीपा का उठी ---- " उसके बाद क्या हुआ ? "
" शोफर ने डिक्की बंद की । " अल्लारखा की आवाज किसी हारर फिल्म के करेक्टर जैसी हो गई ... " रामदीन को कंधे पर लादे गाड़ी का पिछला दरवाजा खोला ।

एक बल्लम बाहर निकाला । "
" बल्लम ? " चीख सी निकल गई सबके मुंह से ।
" हाँ "

ऐरिक ने पूछा ---- " क्या वह वही बल्लम था जिससे चन्द्रमोहन पर आघात किया गया ? "

" पता नहीं वही था या कोई और लेकिन था वैसा ही । दोनों चीजें लिए शोफर दबे पांव बंगले के पीछे चला गया । " ।
" तुमने उसे फालो नहीं किया ? " अल्लारखा के जवाब से पहले हिमानी ने कहा ---- " उफ्फ ! मुझे गर्मी लग रही है । "
" प्लीज मैडम ! " राजेश झुंझला सा उठा ---- " अल्लारखा को बात पूरी करने दो । "
" अरे ! " हिमानी की तरफ देखते हुए अल्लारखा के मुंह से निकला ---- " आपके होठो पर क्या हुआ मैडम ? "

सबने चौंककर हिमानी की तरफ देखा और उछल पड़े । उसके होठों पर मोटे - माटे फफोले नजर आने लगे थे । बुरी तरह बेचैन लग रही थी वह । बार - बार अपनी जीभ से अपने होठों के फफोलों को टटोलती चीखी ---- " ये क्या हो रहा है मुझे ? इतनी गर्मी क्यों लग रही है ? उफ्फ !
मैं जल रही हूं .... एक मोटा फफोला उसके गाल पर उभर आया.

देखने वालों के होश फाख्ता ! ऐरिक चीखा ---- " क्या हुआ महोदया ? ये फफोले कैसे है ? "
हिमानी पागलों की तरफ अपने बाल नोचने लगी । उसके चेहरे पर ही नहीं , हाथ - पैरों पर भी फफोले नजर आने लगे थे । राजेश ने झपटकर उसके दोनों कंधे पकड़ें । दहाड़ा ---- " क्या हुआ मैडम ? क्या हुआ ? बोलो ! ये क्या हो रहा है आपको ? " वह अपने कपड़े फाडने लगी । वक्षस्थल नग्न हो गया । वहां भी फफोले नजर आ रहे थे । ठीक वैसे जैसे किसी के जिस्म पर खौलता पानी गिरने पर पड़ जाते हैं । कुछ फफोले बन चुके थे । कुछ बन रहे थे । देखने वाले अपनी आंखों से बनते हुए देख रहे थे उन्हें । चीखती - चिल्लाती हिमानी ने स्कर्ट तक टुकड़े - टुकड़े कर डाली । अब वह जन्मजात नग्न थी । जिस्म का कोई हिस्सा ऐसा नहीं था जहां फफोला नजर न आ रहा हो । डरे , सहमें , चकित और हतप्रभ स्टूडेन्ट्स उसके चारों तरफ वृत्त सा बनाये चीखने , चिल्लाने से ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे थे । फफोलों की ज्यादती के कारण चेहरा अत्यन्त वीभत्स और डरावना हो उठा । चेहरा ही क्यों , सारा जिस्म कुरूप होता जा रहा था । उसने दौड़कर ऐरिक को पकड़ा । चीखी ---- " मुझे बचाइए ! मुझे बचाइए ऐरिक सर ! मैं मर रही हूं ! कोई मुझे अंदर से जला रहा है । फुंक रहा है ! "
ऐरिक ने घबराकर खुद को छुड़ाया । वह अल्लारक्खा से लिपट गई ---- " मुझे बचाओ । मुझे बचाओ बेटे .... '

अल्लारखा ने उसे झंझोड़ा । दहाड़ा ---- " कैसे बचायें मैडम ? कैसे ? " और यह सवाल सभी के सामने था । हिमानी को बचायें भी , तो कैसे ? किसी को पता ही नहीं ये सब क्यों हो रहा है ?
 
जो हो रहा था वह सबके सामने था । मगर क्यों हो रहा है ? कैसे हो रहा है ? किसी की समझ में न आ सका । कोई बचाता भी तो कैसे ? अंततः आग से जलती , तड़पती , फड़फड़ाती सी हिमानी अंततः जमीन पर गिर गई । असंख्य फफोलों में से अनेक फट गये । और फिर , हिमानी का मुंह खुला । यूं डकराई जैसे भैंस हो । मुंह के रास्ते ढेर सारा खून इस तरह बाहर उछला जैसे किसी ने अंदर से धकेला हो । और उसी के साथ बाहर आ पड़ी , हिमानी की सम्पूर्ण जीभ । चीखें मारते हुए सब पीछे हटे । किसी स्टूडेन्ट ने सोचा भी नहीं था इंसानी जीभ इतनी लंबी होती है । लाश के चारों तरफ वहता खुन यूं उबल रहा था जैसे भट्टी पर रखी तैयार चाय उबल रही हो । हर आंख में खौफ । हर चेहरे पर दहशत और हर दिल में रूह तक को कंपकंपा देने वाले साये फनफना रहे थे ।

गौतम की भूमिका इस केस में खत्म हो चुकी थी । उसे थाने से विदा कर दिया गया । बंसल को विभा ने अपनी गाड़ी में बैठा लिया और कुछ दूर चलने के बाद कहा -- " गाड़ी कालिज की तरफ लेना ।
" मैं चौंका ---- " कॉलिज की तरफ क्यों ? " " भगवान न करे , मगर मुझे लगता है हत्यारे की अगली शिकार हिमानी है । "

" इ - हिमानी !
" मेरे और बंसल के मुंह से चीखें निकली । चेहरों पर आश्चर्य के भाव लिए विभा की तरफ देखते रहकर .....वह सामान्य स्वर में कहती चली गई .--- " दो हत्याओं के बाद कालिज में होनी वाली छोटी से छोटी घटना को हम हल्के ढंग से नहीं ले सकते बेद । हिमानी को किसी के द्वारा बाथरूम में बंद किया जाना बेसबब नहीं हो सकता । "

" तुम्हारे ख्याल से क्या कारण रहा होगा ? "

" शायद हत्यारे ने उसके मर्डर की भूमिका तैयार की है । "
" कैसी भूमिका ? "
" बेचैन क्यों होते हो ? " विभा ने कहा ---- " कालिज का गेट आ चुका है । "
तभी हवा के झोंके की तरह पुलिस जीप हमसे आगे निकली । दायरों की चरमराहट के साथ कॉलिज के गेट की तरफ मुड़ी.

" अरे ! " प्रिंसिपल कह उठा ---- " ये तो जैकी है । "
विभा बोली- " इतनी तेजी में क्यों है ये ? "

किसी के जबाब देने से पहले जीप आनन - फानन में बैंक होकर गेट से बाहर निकली । सांप की तरह लहराती राल्स रॉयल के नजदीक आई । जबरदस्त चीख चिल्लाहट के साथ रुकी और जीप से कूदता जैकी पागलों की मानिन्द चीखा ---- " कालेज में हिमानी की हत्या हो गयी है ।
" किसी और के बारे में तो क्या कहू ? मेरे कानों में सन्नाटा छा गया । सांय - साय हो रही थी चारों तरफ ।

हिमानी की लाश को बड़ी ही वीभत्स अवस्था में देखा हमने । मुझे उबकाई सी आने लगी थी । शगुन को हम शोफर के साथ गाड़ी में ही छोड़ आये थे । शायद यह अच्छा ही किया ।

याद आ रहा था ---- कितनी सुन्दर थी हिमानी ! कितनी मस्त ! टीचर होने के बावजूद स्टूडेन्ट सी लगती थी । कितना ध्यान रखती थी अपने जिस्म का । इसका जो इस वक्त ऐसी अवस्था में पड़ा था जिसे देखकर दहशत और घृणा के अलावा दूसरा भाव ही उठकर नहीं दे रहा था । किसने सोचा था इतनी जल्दी उसे इस हाल में देखना पड़ेगा ? स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर मुझे देखकर अचम्भित और खुश थे परन्तु ऐसा माहौल नहीं या था की कोई अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकता । किसी ने यह पुछने तक की हिम्मत नहीं की कि मैं कहां था ?
किसने किडनैप किया और कैसे वापस आ गया ? एक वृत्त सा बनाये सभी लाश से दूर खड़े थे । वृत्त के अंदर केवल तीन लोग थे । मैं , जैकी और विभा । उन दोनों के बारे में तो खैर कह नहीं सकता , वे क्या तलाश कर रहे थे परन्तु अपने बारे में कह सकता हूं ---- मुझे तो यह भी मालूम नहीं था कि तलाश करना क्या है ? दिमाग कुंद होकर रह गया था । जाम ! जैसे जंग लग गया हो ।
 
पूरी भीड़ के बावजूद ऐसा सन्नाटा था जैसा आजकल कब्रिस्तान में भी नहीं पाया जाता । "

जैकी ! " सन्नाटे के गाल पर विभा के शब्द रूपी हाथ का झन्नाटेदार हाथ पड़ा ---- " इस वारदात की सूचना तुम्हें कैसे मिली ? "

" मोबाइल पर । " '
" किसने फोन किया ? "
" अल्लारखा ने । "
विभा झुककर ध्यान से लाश के होठो को देख रही थी । मेरे दिमाग में कौंध रहा , सवाल अंततः जैकी के मुंह से फूट ही पड़ा- “ बात समझ में नहीं आ रही बिभा जी , हत्या आखिर हुई कैसे है ?

" जवाब देने की जगह विभा ने सवाल किया --- " इसे बार - बार होठो पर जीभ फेरने की आदत थी क्या ? "
मैं और जैकी दंग !
जैकी ने कहा --- " हाँ !
मगर आपको कैसे मालूम ? "

मेरे मुंह से निकला ---- " बात समझ में नहीं आई ? "
समझाने की कोशिश विभा ने भी नहीं की । स्टूडेन्ट्स की तरफ देखते हुए ऊंची आवाज से पूछा ---- " ये हादसा किसके सामने हुआ। राजेश , दीपा और एरिक आदि एक साथ बोले ---- " मेरे ! "
विभा ने सभी को अपने नजदीक बुलाकर पूछा -- " क्या मरने से पूर्व हिमानी ने गर्मी लगने की शिकायत की थी ? "

" हां मैडम ! " राजेश कहा ---- " सबसे पहले यही कहा था इन्होंने । उसके बाद जिस्म पर फफोले ... " सबसे पहला फफोला होठों पर नजर आया होगा ! " कहने के बाद विभा हिमानी की मौत का वृतांत इस तरह सुनाने लगो जैसे मुकम्मल घटना की चश्मदीद गवाह हो ।

सभी चकित रह गये । इधर वह चुप हुई उधर चेहरे पर हैरानियों का सागर लिए जैकी ने कहा -- " हैरत की बात है विभा जी । साधारण इन्वेस्टिगेटर जो बातें चश्मदीद गवाहों से पूछते हैं , उन्हें आप स्वयं बता रही हैं । ठीक ऐसे जैसे सब कुछ आपके सामने हुआ हो । "

" हैरत की ऐसी कोई बात नहीं है इसमें । " विभा ने कहा -- " यदि गंधक , पोटेशियम में साइनाइट और सूखे सल्फ्यूरिक की एक निश्चित मात्रा किसी जीव के जिस्म में पहुंचा दी जाये तो यह सब होता है । "

" अ - आपको कैसे मालूम ? "

" सचेत इन्वेस्टिगेटर को ऐसी बातें पता रखनी होती हैं । इसके लिए उसे खाली समय में पुराने केसों की फाइलों का अध्ययन करते रहना चाहिए । सन् 1826 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में एक वैज्ञानिक ने इसी टेक्निक से चार हत्याएं की थी । "
" क - कमाल की नालिज है आपकी ! "
" तीन केमिकल्स से बनने वाला ये जहर जैसे ही निश्चित मात्रा में जिस्म में पहुंचता है , खून को उबालना शुरू कर देता है ।
 
धीरे - धीरे वह इस कदर उबलने लगता है जैसे आग पर रखा पानी । इसी कारण प्रभावित व्यक्ति पहले गर्मी लगने की शिकायत करता है , फिर जिस्म पर फफोले पड़ने शुरू होते हैं और अंततः लहु मुंह के रास्ते आ जाता है । "

मैंने पूछा ---- " लेकिन विभा , जहर इसके जिस्म में पहुंचा कैसे ? "
" लिपस्टिक के जरिए ।
' लिपस्टिक ? "
" हत्यारे को हिमानी की आदतों के बारे में अच्छी तरह पता था । नम्बर वन , इसे मेकअप का शौक है । नम्बर दू , इसकी लिपस्टिक पर जीभ घुमाने की आदत है । इसी का फायदा उठाया उसने । हत्यारे ने जहर इसकी लिपस्टिक पर लगा दिया और यह उसे चाटती कमरे से यहां तक आ गयी । निश्चित मात्रा मिलते ही खून उबलने लगा । अंजाम सामने है । "

उसके बाद हम हिमानी के कमरे में पहुंचे । वहां कदम रखते ही मेरे पैर मानो जाम हो गये । आंखे ड्रेसिंग टेबिल के आइने पर चिपकी रह गयीं । शीशे पर लिपस्टिक से बड़े - बड़े अक्षरों में लिखा था ---- " CHALLENGE "

" फिर वही चैलेंज ! " मेरे मुंह से स्वतः शब्द फूट पड़े --- " विभा , ये है वो वजह जिसने मुझे इस केस में इन्वॉल्व कर दिया । पहेली समझ में नहीं आकर दे रही । आखिर मरने वाला ये शब्द क्यों लिखता है ? पहले सत्या ने लिया । फिर चन्द्रमोहन ने । और अब हिमानी ने । "

" क्या जरूरी है हिमानी ने ही लिखा है ये ? "

" कमरे में कहीं न कहीं उसकी राइटिंग होगी । मिलाकर देखो ! मेरा दावा है .--- हिमानी ने ही लिखा है ये । "

राइटिंग टेबल पर अटेंडेंस रजिस्टर रखा था । विभा ने उठाया । उसमें हिमानी की राइटिंग थी । उस राइटिंग से ड्रेसिंग टेबल पर लिखे अक्षरों का मिलान करने के बाद वह बोली ---- " लगती तो उसी की है । "
" लगती है से मतलब ? " मैंने पूछा । "
राइटिंग के बारे में अंतिम निर्णय एक्सपर्ट की रिपोर्ट के बाद ही किया जाना चाहिए । इस दुनिया में ऐसे बहुत लोग है जो राइटिंग की नकल मारने में माहिर होते हैं । ऐसे लोगों की कारीगरी नंगी आखों से नहीं पकड़ी जा सकती है । उन्हें परीक्षण के याद एक्सपर्ट्स ही पकड़ पाते हैं । "
" सत्या ने यह शब्द सबके सामने लिखा था विभा । " वह होठो पर मुस्कान लिए बोली ---- " मैंने कब कहा नहीं लिखा ? "
" फिर शक की वजह ? " विभा ने मेरे सवाल का जवाब देने की जगह जैकी से कहा ---- " क्या तुमने चन्द्रमोहन की जेब से निकले कागज को एक्सपर्ट के पास भेजा था ? "
 
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