hotaks444
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[color=rgb(184,]#9 And they meet....[/color]
अमर उछल कर अनामिका को अपने आगोश में ले कर रोड के एक साइड लुढ़क जाता है, और तभी वो वैन एकदम नजदीक से अमर की बांह पर रगड़ बनाते हुए निकल जाती है।
अमर और अनामिका एक दूसरे से लिपटे हुए रोड के किनारे बनी ढलान से लुढ़क कर नीचे आ जाते हैं। और दोनो एक दूसरे की आंखों में को से जाते हैं। तभी आस पास के लोग उनके तरफ आते हैं, जिनकी आवाजें सुन कर दोनो को होश आता है।
अमर की बांह पर गहरी खरोंचों के निशान आ जाते है और शर्ट की बाजू भी फट जाती है। अनामिका ये देख कर घबरा जाती है, और अमर से उसका हाल पूछती है। अमर कहता है कि वो ठीक है, और वो अनामिका से पूछता है की चोट तो नही लगी? रोड के किनारे पर घास होने से दोनो में से किसी को और कोई चोट नहीं आती है। दोनो वापस होटल के अंदर आते हैं।
आज अमर को अनामिका की आंखों में अपने लिए कुछ अलग सा दिखा, मगर वो उसे अपने नाम से मिला कर ज्यादा ध्यान नहीं देता उस पर। घर आ कर अनामिका फर्स्ट एड बॉक्स ले कर उसके घाव को साफ करती है।
रमाकांत जी अमर का हाल चाल लेते हैं और अमर से पूछते हैं कि ये कैसे हुआ, इस बार अमर झूठ बोल देता है की शायद उस गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया था। अमर नही चाहता था कि उसके कारण इन लोगो को तकलीफ हो।
शाम को रमाकांत जी अमर को स्टडी में बुलाते है, वहां पर एक लड़का पहले से बैठा होता है।
रमाकांत जी: अमर, ये सूरज है, हमारे शेफ का भाई। इसका घाटी के उस पार वाले गांव में कैफे है जिसमे यहां आने वाले अक्सर ब्रेक लेते हैं। सूरज क्या यही हैं वो??
सूरज: जी साहब, ये वही हैं। लेकिन मेरी इनसे ऐसी कोई बात नही हुई थी कि ऐसा कुछ पता चले कि ये कहां से आ रहे थे।
रमाकांत जी: अच्छा, चलो ठीक है फिर तुम जाओ। और कोई काम है या वापस जाओगे।
सूरज: साहब वो जो पास में नया होटल बन रहा है, वहां भैया ने बात की है शायद, अब कैफे से उतनी कमाई होती नही, मेरी शादी भी तय हो चुकी है, इसीलिए देखता हूं कुछ वहां पर।
रमाकांत जी: ठीक है तुम जाओ।
उसके जाने के बाद, रमाकांत जी ने अपने टेबल पर रखे हुए एक पर्स को अमर की तरफ बढ़ते हुए कहा, "ये तुम्हारा है, देख लीजिए शायद कुछ मिल जाय जिससे कुछ पता चल सके। ये तुम सूरज के कैफे में छोड़ आए थे।"
अमर: आपने नही देखा?
रमाकांत जी, अब ये तुम्हारा ही है, और तुम खुद यहीं हो तो खुद ही देख लो।
अमर उस पर्स को खोल कर देखता है, उसमे बस कुछ पैसे होते हैं, और अमर की एक फोटो, और कुछ भी नही।
अमर: इसमें तो कुछ भी नही है।
रमाकांत जी: ओह बैडलक अगेन। ठीक है देखते है और क्या किया जा सकता है।
रात को अमर बेड पर बैठा उसी पर्स को देख रहा होता है, अपनी फोटो को जब वो ध्यान से देखता है तो उसे लगता है कि ये फोटो मुड़ी हुई है और बस सामने उसका चेहरा दिख रहा है। अमर उस फोटो को बाहर निकलता है और खोलने पर उसे दिखता है कि उस फोटो में उसके साथ मोनिका है और दोनो इस तरह से हैं उस फोटो में जैसे दोनो एक दूसरे के करीबी हों। ये देख अमर सोच में पड़ जाता है कि "क्या वो मोनिका का प्रेमी, या पति है क्या?? उसे रमाकांत जी को ये बता देना चाहिए?? लेकिन उनको मोनिका से ज्यादा मतलब है नही, और वो तो ये जनता भी नही की वो और मोनिका साथ में हैं या नहीं।"
इसी उधेड़बुन में अमर की आंख लग जाती है।
सुबह अनामिका उसे उठाने आती है, आज वो आसमानी रंग के सूट में बहुत प्यारी दिख रही होती है, और उसकी आंखों में एक चमक सी होती है। उसे देख अमर के दिल को बड़ा सुकून आता है, मगर तभी उसका दिमाग उसे फोटो वाली बात याद दिलाता है, जिसको याद कर के वो तुरंत अपनी नजरें अनामिका से हटा लेता है।ये देख अनामिका को थोड़ा दुख होता है।
दोपहर को बाहर गार्डन में अनामिका कुछ काम कर रही होती है, और अमर उधर जाता है, पवन वहीं पर खेल रहा होता है। अमर पवन की ओर चला जाता है, जिसे देख अनामिका फिर चिढ़ जाती है।
तभी एक होटल का स्टाफ अनामिका के पास आता है, और गलती से गार्डन की एक क्यारी में उसका पैर पद जाता है। जिसे देख अनामिका बहुत जोर से उसके ऊपर चिल्लाती है। उसका चिल्लाना सुन कर पवन बहुत डर जाता है, और रमाकांत जी आ कर अनामिका को अंदर ले जाते हैं।
पवन: आज दीदी को बहुत दिन के बाद ऐसे गुस्से में देखा है, और वो भी गार्डेनिंग के समय, जबकि इसी गार्डेनिंग से तो उनका गुस्सा शांत हुआ था।
अमर ये सुन कर सोच में पड़ जाता है कि क्या उसके बर्ताव से ऐसा हो रहा है अनामिका के साथ? मगर वो भी तो मजबूर था जब तक उसे अपने और मोनिका के बारे में पूरी सच्चाई ना पता चल जाए तब तक वो कैसे अनामिका के बारे में कुछ सोच पता, वैसे भी उसके कारण इस घर के लोगों की जान पर भी बन आई है।
वो फैसला लेता है कि वो ये घर छोड़ कर कहीं और चला जायेगा, और घर क्या, वो ये कस्बा भी छोड़ देगा, ताकि यहां पर लोग सुरक्षित रहें। और मोनिका तो शहर में ही है, मतलब वो भी वहीं से आया है।
रात को सबके सोने के बाद, अमर चुपके से घर से बाहर निकल जाता है, और अंदाज से एक ओर बढ़ने लगता है, कुछ आगे जाने पर उसे एक पान की दुकान दिखाई देती है, वहां से वो बस स्टैंड का पूछ कर वहां के लिए निकल जाता है।
बस स्टैंड पर पहुंचने पर उसे बताया जाता है की शहर की बस 1 घंटे बाद मिलेगी। वो बस स्टैंड पर ही बैठ जाता है। तभी उसे लगता है की सामने वाली दुकान पर वही काले कोट वाला शख्स खड़ा सिगरेट पी रहा है।
अमर चुपके से उसके नजरों से बच कर एक कोने में खड़ा हो कर उसको देखने लगता है, कुछ देर बाद वो आदमी एक ओर बढ़ जाता है, अमर चुपके से उसका पीछा करने लगता है। एक पुराने और छोटे से घर के बाहर पहुंच कर वो आदमी उसको खोलने लगता है, तभी अमर को एक नुकीला सा लोहे का चालू जैसा दिखता है जिसे उठा कर अमर उस आदमी की पीठ पर लगा कर......
अमर उछल कर अनामिका को अपने आगोश में ले कर रोड के एक साइड लुढ़क जाता है, और तभी वो वैन एकदम नजदीक से अमर की बांह पर रगड़ बनाते हुए निकल जाती है।
अमर और अनामिका एक दूसरे से लिपटे हुए रोड के किनारे बनी ढलान से लुढ़क कर नीचे आ जाते हैं। और दोनो एक दूसरे की आंखों में को से जाते हैं। तभी आस पास के लोग उनके तरफ आते हैं, जिनकी आवाजें सुन कर दोनो को होश आता है।
अमर की बांह पर गहरी खरोंचों के निशान आ जाते है और शर्ट की बाजू भी फट जाती है। अनामिका ये देख कर घबरा जाती है, और अमर से उसका हाल पूछती है। अमर कहता है कि वो ठीक है, और वो अनामिका से पूछता है की चोट तो नही लगी? रोड के किनारे पर घास होने से दोनो में से किसी को और कोई चोट नहीं आती है। दोनो वापस होटल के अंदर आते हैं।
आज अमर को अनामिका की आंखों में अपने लिए कुछ अलग सा दिखा, मगर वो उसे अपने नाम से मिला कर ज्यादा ध्यान नहीं देता उस पर। घर आ कर अनामिका फर्स्ट एड बॉक्स ले कर उसके घाव को साफ करती है।
रमाकांत जी अमर का हाल चाल लेते हैं और अमर से पूछते हैं कि ये कैसे हुआ, इस बार अमर झूठ बोल देता है की शायद उस गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया था। अमर नही चाहता था कि उसके कारण इन लोगो को तकलीफ हो।
शाम को रमाकांत जी अमर को स्टडी में बुलाते है, वहां पर एक लड़का पहले से बैठा होता है।
रमाकांत जी: अमर, ये सूरज है, हमारे शेफ का भाई। इसका घाटी के उस पार वाले गांव में कैफे है जिसमे यहां आने वाले अक्सर ब्रेक लेते हैं। सूरज क्या यही हैं वो??
सूरज: जी साहब, ये वही हैं। लेकिन मेरी इनसे ऐसी कोई बात नही हुई थी कि ऐसा कुछ पता चले कि ये कहां से आ रहे थे।
रमाकांत जी: अच्छा, चलो ठीक है फिर तुम जाओ। और कोई काम है या वापस जाओगे।
सूरज: साहब वो जो पास में नया होटल बन रहा है, वहां भैया ने बात की है शायद, अब कैफे से उतनी कमाई होती नही, मेरी शादी भी तय हो चुकी है, इसीलिए देखता हूं कुछ वहां पर।
रमाकांत जी: ठीक है तुम जाओ।
उसके जाने के बाद, रमाकांत जी ने अपने टेबल पर रखे हुए एक पर्स को अमर की तरफ बढ़ते हुए कहा, "ये तुम्हारा है, देख लीजिए शायद कुछ मिल जाय जिससे कुछ पता चल सके। ये तुम सूरज के कैफे में छोड़ आए थे।"
अमर: आपने नही देखा?
रमाकांत जी, अब ये तुम्हारा ही है, और तुम खुद यहीं हो तो खुद ही देख लो।
अमर उस पर्स को खोल कर देखता है, उसमे बस कुछ पैसे होते हैं, और अमर की एक फोटो, और कुछ भी नही।
अमर: इसमें तो कुछ भी नही है।
रमाकांत जी: ओह बैडलक अगेन। ठीक है देखते है और क्या किया जा सकता है।
रात को अमर बेड पर बैठा उसी पर्स को देख रहा होता है, अपनी फोटो को जब वो ध्यान से देखता है तो उसे लगता है कि ये फोटो मुड़ी हुई है और बस सामने उसका चेहरा दिख रहा है। अमर उस फोटो को बाहर निकलता है और खोलने पर उसे दिखता है कि उस फोटो में उसके साथ मोनिका है और दोनो इस तरह से हैं उस फोटो में जैसे दोनो एक दूसरे के करीबी हों। ये देख अमर सोच में पड़ जाता है कि "क्या वो मोनिका का प्रेमी, या पति है क्या?? उसे रमाकांत जी को ये बता देना चाहिए?? लेकिन उनको मोनिका से ज्यादा मतलब है नही, और वो तो ये जनता भी नही की वो और मोनिका साथ में हैं या नहीं।"
इसी उधेड़बुन में अमर की आंख लग जाती है।
सुबह अनामिका उसे उठाने आती है, आज वो आसमानी रंग के सूट में बहुत प्यारी दिख रही होती है, और उसकी आंखों में एक चमक सी होती है। उसे देख अमर के दिल को बड़ा सुकून आता है, मगर तभी उसका दिमाग उसे फोटो वाली बात याद दिलाता है, जिसको याद कर के वो तुरंत अपनी नजरें अनामिका से हटा लेता है।ये देख अनामिका को थोड़ा दुख होता है।
दोपहर को बाहर गार्डन में अनामिका कुछ काम कर रही होती है, और अमर उधर जाता है, पवन वहीं पर खेल रहा होता है। अमर पवन की ओर चला जाता है, जिसे देख अनामिका फिर चिढ़ जाती है।
तभी एक होटल का स्टाफ अनामिका के पास आता है, और गलती से गार्डन की एक क्यारी में उसका पैर पद जाता है। जिसे देख अनामिका बहुत जोर से उसके ऊपर चिल्लाती है। उसका चिल्लाना सुन कर पवन बहुत डर जाता है, और रमाकांत जी आ कर अनामिका को अंदर ले जाते हैं।
पवन: आज दीदी को बहुत दिन के बाद ऐसे गुस्से में देखा है, और वो भी गार्डेनिंग के समय, जबकि इसी गार्डेनिंग से तो उनका गुस्सा शांत हुआ था।
अमर ये सुन कर सोच में पड़ जाता है कि क्या उसके बर्ताव से ऐसा हो रहा है अनामिका के साथ? मगर वो भी तो मजबूर था जब तक उसे अपने और मोनिका के बारे में पूरी सच्चाई ना पता चल जाए तब तक वो कैसे अनामिका के बारे में कुछ सोच पता, वैसे भी उसके कारण इस घर के लोगों की जान पर भी बन आई है।
वो फैसला लेता है कि वो ये घर छोड़ कर कहीं और चला जायेगा, और घर क्या, वो ये कस्बा भी छोड़ देगा, ताकि यहां पर लोग सुरक्षित रहें। और मोनिका तो शहर में ही है, मतलब वो भी वहीं से आया है।
रात को सबके सोने के बाद, अमर चुपके से घर से बाहर निकल जाता है, और अंदाज से एक ओर बढ़ने लगता है, कुछ आगे जाने पर उसे एक पान की दुकान दिखाई देती है, वहां से वो बस स्टैंड का पूछ कर वहां के लिए निकल जाता है।
बस स्टैंड पर पहुंचने पर उसे बताया जाता है की शहर की बस 1 घंटे बाद मिलेगी। वो बस स्टैंड पर ही बैठ जाता है। तभी उसे लगता है की सामने वाली दुकान पर वही काले कोट वाला शख्स खड़ा सिगरेट पी रहा है।
अमर चुपके से उसके नजरों से बच कर एक कोने में खड़ा हो कर उसको देखने लगता है, कुछ देर बाद वो आदमी एक ओर बढ़ जाता है, अमर चुपके से उसका पीछा करने लगता है। एक पुराने और छोटे से घर के बाहर पहुंच कर वो आदमी उसको खोलने लगता है, तभी अमर को एक नुकीला सा लोहे का चालू जैसा दिखता है जिसे उठा कर अमर उस आदमी की पीठ पर लगा कर......