desiaks
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वो जगह आइलैंड के घने बसे और रौनक वाले हिस्से से-जो कि वैस्टएण्ड कहलाता था-बहुत बाहर थी इसलिये जाहिर था कि नीलेश ने फासले से आना था और आना कैसे था, इसकी उसे कोई खबर नहीं थी ।
वो जानती थी खुद का कोई वाहन उसके पास नहीं था और रात की उस घड़ी पब्लिक कनवेंस मिलने में दिक्कत हो सकती थी ।
दुश्वारी के उस आलम में वो सब अपने आपको तसल्लियां थीं वर्ना क्या पता उसका ख्याल बदल गया हो और असने उधर का रुख भी न किया हो ! उसने उससे रोकड़ा भी तो मांगा था ! क्या पता रोकडे़ की वजह से बिदक गया हो और मुंह छुपा के बैठ गया हो !
नीलेश वहां पहुंचे ही नहीं, इस खयाल उसे बहुत डराया ।
रात की अस घड़ी वो उजाड़ बियाबान जगह थी जहां परिंदा पर नहीं मार रहा था । करीब ओल्ड यॉट क्लब थी लेकिन वो आइलैंड का एक पुराना लैंडमार्क ही था । वो एक मुद्दत से बंद थी और अब तो उसकी इमारत भी खंडहर में तब्दील होती जा रही थी ।
जहां वो खड़ीं थी, वहां रोशनी का साधन सायबान में टिमटिमाता एक बीमार सा बल्ब था, बार का मालिक जिसे शायद उसी की सहूलियत के मद्देनजर जलाता छोड़ गया था । उस वीराने में और नीमअंधेरे में अब उसे बाकायदा डर लगने लगा था ।
उसने सामने निगाह दौड़ाई ।
सड़क से पार का इलाका पहाड़ी था और वहां बिखरे बिखरे से कुछ मकान बने हुए थे । उनमें से काफी फासले के सिर्फ एक मकान में रोशनी थी, बाकी सब अंधेरे के गर्त में डूबे हुए थे ।
बावक्तेजरूरत क्या उसे उस रोशन मकान से कोई मदद हासिल हो सकती थी?
और नहीं तो वो वहां से नीलेश का फोन ही ट्राई कर सकती थी ।
फिर अपनी नकारात्मक सोच पर उसे खुद अपने पर गुस्सा आने लगा ।
नीलेश आयेगा-उसने खुद को तसल्ली दी-जरुर आयेगा । वो वदाखिलाफी नहीं कर सकता था । रोकड़े के बारे में वो आ कर अपनी कोई मजबूरी जाहिर कर सकता था लेकिन आने में कोताही नहीं कर सकता था ।
वो कोई आम आदमी नहीं था जो कि आम आदमियों जैसी आम हरकतें करता । खास आदमी था वो ।
खास आदमी !
क्या खासियत थी उसमें ! कौन था वो ! आइलैंड पर किस फिराक में था ! किसी फिराक में तो बराबर था । उसकी हरकतें ऐसी थीं कि गनीमत थी कि सिर्फ उसकी तीखी निगाह में आयी थीं ।
कौन था !
क्या उस गोवानी रैकेटियर फ्रांसिस मैग्नारो के किसी दुश्मन का, किसी प्रोफेशनल राइवल का कोई जासूस !
नहीं, नहीं । दुश्मन का जासूस तो कोई दुश्मन जैसा ही रैकेटियर, गैंगस्टर, मवाली होता ! नीलेश तो उसे भला आदमी जान पड़ता था ।
उसकी ये भी मजबूरी थी कि अपनी कोंसिका क्लब की कलीग्स में से किसी से माली इमदाद मांगने वो नहीं जा सकती थी । क्लब में उसकी इतनी करीबी दो ही बारबालायें थीं-यासमीन और डिम्पल-लेकिन उस घड़ी उसका उन पर भी ऐतबार नहीं बन रहा था, उनमें से कोई भी उसकी खबर पुजारा को कर सकती थी और पुजारा उसकी बाबत आगे महाबोले को खबरदार कर सकता था ।
महाबोले के खयाल से ही उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ गयी । उसने महाबोले से पंगा लिया था जो कि उसकी सबसे बड़ी गलती थी । उसकी आमद के वक्त उसे सदानंद रावले को घर नहीं लाना चाहिये था । वो भी किया तो शायद उसकी खता माफ हो जाती लेकिन तो बाकायदा उसके साथ जुबानदराजी की, उसे हूल दी कि वो उसका-महाबोले का-ऐसा बुरा कर सकती थी जो उसे बहुत भारी पड़ता ।
क्यों जोश में उसका माथा फिर गया था और वो महाबोले जैसे दरिंदे की मूंछ का बाल नोंचने पर आमादा हो गयी थी !
हिम्मत करके वो लीडो क्लब में कारमला से-जो कि पहले कोंसिका क्लब में उसके साथ बारबाला थी-मदद मांगने गयी थी लेकिन कारमला ने साफ बोल दिया था कि उसके पास उसको उधार देने के लिये छोटा मोटा रोकड़ा भी नहीं था ।
जो कि सरासर झूठ था । कमीनी देना ही नहीं चाहती थी, उसकी कोई मदद करना ही नहीं चाहती थी, उसके सामने ही ऐसा मिजाज दिखा रही थी जैसे उसकी आमद से बेजार हो ।
कोनाकोना आइलैंड का रुख करना उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी लेकिन गोवा में रोनी डिसूजा ने उसे ऐसे सब्जबाग दिखाये थे, ऐसा यकीन दिलाया था कि वो आइलैंड पर चांदी काटती कि अपने बॉस मैग्नारो के साथ जब उसने आइलैंड का रुख किया था तो वो भी उसके साथ चली आयी थी । वहां पहुंच कर ही उसे मालूम हुआ था कि वहां आने वाली सम्भ्रांत टूरिस्ट महिलाओं में से आधी वहां आती ही खास मौजमेले की तलब लेकर थी इसलिये ‘ईजी ले’ थीं और उस जैसी बारबालाओं का धंधा बिगाड़ती थीं ।
रोकड़े की जरूरत उसको इसलिये तो थी ही कि उसकी जेब खाली थी - उसका सब कुछ पीछे बोर्डिंग हाउस में रह गया था - इसलिये भी थी कि रोकडे़ की मजबूती के बिना वो आइलैंड से कूच नहीं कर सकती थी । स्टीमर पर सवार होने के लिये वो पायर पर कदम भी रखती तो पलक झपकते महाबोले की गिरफ्त में होती । सेलर बार में ही उसे एक सेलर मिला था जो स्टीमर के पायर छोड़ चुकने के बाद उसे बीच समुद्र में उस पर चढ़ा देने का जुगाड़ कर सकता था ।
वो इस हकीकत से वाकिफ थी कि आइलैंड पर कोस्ट गार्ड्स की छावनी थी और छावनी का अपना प्राइवेट पायर था । उस सेलर का दावा था कि उधर भी उसका ऐसा जुगाड़ था कि वो मोटरबोट पर उसे वहां से पिक कर सकता था । लिहाजा उसने कब, कैसे आइलैंड छोड़ा, किसी को हरगिज खबर न लगती ।
फीस दो हजार रूपये ।
एक बार आइलैंड से निजात मिल जाने के बाद फिर आगे की आगे देखी जाती ।
महाबोले की ताकत आइलैंड तक ही सीमित थी, उसे यकीन था कि आइलैंड से बाहर वो न उसे ढूंढ़ सकता था और न उसका कुछ बिगाड़ सकता था ।
तभी दूर कहीं से आती एक कार के इंजन की आवाज उसके कानों में पड़ी । साथ ही कार की हैडलाइट्स से सड़क के दोनों ओर की झाड़ियां और पेड़ रोशन हुए ।
थैंक गॉड ! एट लास्ट !
हैडलाइट्स की रोशनी करीब से करीबतर होती गयी और इंजन की आवाज तेज होती गयी ।
वो सायबान के नीचे से निकल कर सड़क के किनारे आ खड़ी हुई ।
कार करीब पहुंची ।
लेकिन हैडलाइट्स की रोशनी इतनी तीखी थी कि उसे उसके पीछे कुछ दिखाई न दिया ।
वो और करीब पहुंची ।
तब सबसे पहले तो उसे यही दिखाई दिया कि वो कार नहीं, जीप थी ।
जीप !
ब्रेकों की चरचराहट के साथ वो उसके करीब आकर खड़ी हुई ।
उसने आंखे फाड़ फाड़ कर सामने देखा ।
आखिर उसे सामने जो दिखाई दिया, उसने उसके प्राण कंपा दिये ।
जीप के अपनी ओर के पहलू पर ‘पुलिस’ लिखा उसने साफ पढ़ा ।
उसे अपने दिल की धड़कन रूकती महसूस हुई ।
एकाएक वो घूमी और जीप की ओर पीठ करके सड़क पर सरपट दौड़ चली ।
वो जानती थी कि वो सड़क पर ही दौड़ती नहीं रह सकती थी, जीप फिर स्टार्ट होती और पलक झपकते उसके सिर पर पहुंच जाती ।
उसे मालूम था बार के पिछवाड़े में बार की पार्किंग थी जहां कहीं छुपने का जुगाड़ हो सकता था । सड़क छोड़ कर वो बाजू की झाड़ियों में घुस गयी और अंधाधुंध आगे अंधेरे में लपकी ।
वो जानती थी खुद का कोई वाहन उसके पास नहीं था और रात की उस घड़ी पब्लिक कनवेंस मिलने में दिक्कत हो सकती थी ।
दुश्वारी के उस आलम में वो सब अपने आपको तसल्लियां थीं वर्ना क्या पता उसका ख्याल बदल गया हो और असने उधर का रुख भी न किया हो ! उसने उससे रोकड़ा भी तो मांगा था ! क्या पता रोकडे़ की वजह से बिदक गया हो और मुंह छुपा के बैठ गया हो !
नीलेश वहां पहुंचे ही नहीं, इस खयाल उसे बहुत डराया ।
रात की अस घड़ी वो उजाड़ बियाबान जगह थी जहां परिंदा पर नहीं मार रहा था । करीब ओल्ड यॉट क्लब थी लेकिन वो आइलैंड का एक पुराना लैंडमार्क ही था । वो एक मुद्दत से बंद थी और अब तो उसकी इमारत भी खंडहर में तब्दील होती जा रही थी ।
जहां वो खड़ीं थी, वहां रोशनी का साधन सायबान में टिमटिमाता एक बीमार सा बल्ब था, बार का मालिक जिसे शायद उसी की सहूलियत के मद्देनजर जलाता छोड़ गया था । उस वीराने में और नीमअंधेरे में अब उसे बाकायदा डर लगने लगा था ।
उसने सामने निगाह दौड़ाई ।
सड़क से पार का इलाका पहाड़ी था और वहां बिखरे बिखरे से कुछ मकान बने हुए थे । उनमें से काफी फासले के सिर्फ एक मकान में रोशनी थी, बाकी सब अंधेरे के गर्त में डूबे हुए थे ।
बावक्तेजरूरत क्या उसे उस रोशन मकान से कोई मदद हासिल हो सकती थी?
और नहीं तो वो वहां से नीलेश का फोन ही ट्राई कर सकती थी ।
फिर अपनी नकारात्मक सोच पर उसे खुद अपने पर गुस्सा आने लगा ।
नीलेश आयेगा-उसने खुद को तसल्ली दी-जरुर आयेगा । वो वदाखिलाफी नहीं कर सकता था । रोकड़े के बारे में वो आ कर अपनी कोई मजबूरी जाहिर कर सकता था लेकिन आने में कोताही नहीं कर सकता था ।
वो कोई आम आदमी नहीं था जो कि आम आदमियों जैसी आम हरकतें करता । खास आदमी था वो ।
खास आदमी !
क्या खासियत थी उसमें ! कौन था वो ! आइलैंड पर किस फिराक में था ! किसी फिराक में तो बराबर था । उसकी हरकतें ऐसी थीं कि गनीमत थी कि सिर्फ उसकी तीखी निगाह में आयी थीं ।
कौन था !
क्या उस गोवानी रैकेटियर फ्रांसिस मैग्नारो के किसी दुश्मन का, किसी प्रोफेशनल राइवल का कोई जासूस !
नहीं, नहीं । दुश्मन का जासूस तो कोई दुश्मन जैसा ही रैकेटियर, गैंगस्टर, मवाली होता ! नीलेश तो उसे भला आदमी जान पड़ता था ।
उसकी ये भी मजबूरी थी कि अपनी कोंसिका क्लब की कलीग्स में से किसी से माली इमदाद मांगने वो नहीं जा सकती थी । क्लब में उसकी इतनी करीबी दो ही बारबालायें थीं-यासमीन और डिम्पल-लेकिन उस घड़ी उसका उन पर भी ऐतबार नहीं बन रहा था, उनमें से कोई भी उसकी खबर पुजारा को कर सकती थी और पुजारा उसकी बाबत आगे महाबोले को खबरदार कर सकता था ।
महाबोले के खयाल से ही उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ गयी । उसने महाबोले से पंगा लिया था जो कि उसकी सबसे बड़ी गलती थी । उसकी आमद के वक्त उसे सदानंद रावले को घर नहीं लाना चाहिये था । वो भी किया तो शायद उसकी खता माफ हो जाती लेकिन तो बाकायदा उसके साथ जुबानदराजी की, उसे हूल दी कि वो उसका-महाबोले का-ऐसा बुरा कर सकती थी जो उसे बहुत भारी पड़ता ।
क्यों जोश में उसका माथा फिर गया था और वो महाबोले जैसे दरिंदे की मूंछ का बाल नोंचने पर आमादा हो गयी थी !
हिम्मत करके वो लीडो क्लब में कारमला से-जो कि पहले कोंसिका क्लब में उसके साथ बारबाला थी-मदद मांगने गयी थी लेकिन कारमला ने साफ बोल दिया था कि उसके पास उसको उधार देने के लिये छोटा मोटा रोकड़ा भी नहीं था ।
जो कि सरासर झूठ था । कमीनी देना ही नहीं चाहती थी, उसकी कोई मदद करना ही नहीं चाहती थी, उसके सामने ही ऐसा मिजाज दिखा रही थी जैसे उसकी आमद से बेजार हो ।
कोनाकोना आइलैंड का रुख करना उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी लेकिन गोवा में रोनी डिसूजा ने उसे ऐसे सब्जबाग दिखाये थे, ऐसा यकीन दिलाया था कि वो आइलैंड पर चांदी काटती कि अपने बॉस मैग्नारो के साथ जब उसने आइलैंड का रुख किया था तो वो भी उसके साथ चली आयी थी । वहां पहुंच कर ही उसे मालूम हुआ था कि वहां आने वाली सम्भ्रांत टूरिस्ट महिलाओं में से आधी वहां आती ही खास मौजमेले की तलब लेकर थी इसलिये ‘ईजी ले’ थीं और उस जैसी बारबालाओं का धंधा बिगाड़ती थीं ।
रोकड़े की जरूरत उसको इसलिये तो थी ही कि उसकी जेब खाली थी - उसका सब कुछ पीछे बोर्डिंग हाउस में रह गया था - इसलिये भी थी कि रोकडे़ की मजबूती के बिना वो आइलैंड से कूच नहीं कर सकती थी । स्टीमर पर सवार होने के लिये वो पायर पर कदम भी रखती तो पलक झपकते महाबोले की गिरफ्त में होती । सेलर बार में ही उसे एक सेलर मिला था जो स्टीमर के पायर छोड़ चुकने के बाद उसे बीच समुद्र में उस पर चढ़ा देने का जुगाड़ कर सकता था ।
वो इस हकीकत से वाकिफ थी कि आइलैंड पर कोस्ट गार्ड्स की छावनी थी और छावनी का अपना प्राइवेट पायर था । उस सेलर का दावा था कि उधर भी उसका ऐसा जुगाड़ था कि वो मोटरबोट पर उसे वहां से पिक कर सकता था । लिहाजा उसने कब, कैसे आइलैंड छोड़ा, किसी को हरगिज खबर न लगती ।
फीस दो हजार रूपये ।
एक बार आइलैंड से निजात मिल जाने के बाद फिर आगे की आगे देखी जाती ।
महाबोले की ताकत आइलैंड तक ही सीमित थी, उसे यकीन था कि आइलैंड से बाहर वो न उसे ढूंढ़ सकता था और न उसका कुछ बिगाड़ सकता था ।
तभी दूर कहीं से आती एक कार के इंजन की आवाज उसके कानों में पड़ी । साथ ही कार की हैडलाइट्स से सड़क के दोनों ओर की झाड़ियां और पेड़ रोशन हुए ।
थैंक गॉड ! एट लास्ट !
हैडलाइट्स की रोशनी करीब से करीबतर होती गयी और इंजन की आवाज तेज होती गयी ।
वो सायबान के नीचे से निकल कर सड़क के किनारे आ खड़ी हुई ।
कार करीब पहुंची ।
लेकिन हैडलाइट्स की रोशनी इतनी तीखी थी कि उसे उसके पीछे कुछ दिखाई न दिया ।
वो और करीब पहुंची ।
तब सबसे पहले तो उसे यही दिखाई दिया कि वो कार नहीं, जीप थी ।
जीप !
ब्रेकों की चरचराहट के साथ वो उसके करीब आकर खड़ी हुई ।
उसने आंखे फाड़ फाड़ कर सामने देखा ।
आखिर उसे सामने जो दिखाई दिया, उसने उसके प्राण कंपा दिये ।
जीप के अपनी ओर के पहलू पर ‘पुलिस’ लिखा उसने साफ पढ़ा ।
उसे अपने दिल की धड़कन रूकती महसूस हुई ।
एकाएक वो घूमी और जीप की ओर पीठ करके सड़क पर सरपट दौड़ चली ।
वो जानती थी कि वो सड़क पर ही दौड़ती नहीं रह सकती थी, जीप फिर स्टार्ट होती और पलक झपकते उसके सिर पर पहुंच जाती ।
उसे मालूम था बार के पिछवाड़े में बार की पार्किंग थी जहां कहीं छुपने का जुगाड़ हो सकता था । सड़क छोड़ कर वो बाजू की झाड़ियों में घुस गयी और अंधाधुंध आगे अंधेरे में लपकी ।