desiaks
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आखिर उसने जानबूझ कर आवाज करते हुए रिसीवर क्रेडल पर पटका और महाले को आवाज लगाई ।
लपकता हुआ सिपाही अनंत राम महाले वहां पेश हुआ ।
“अरे, कोई जना फोन भी सुना करो !” - महाबोले झल्लाया ।
“फोन !” - महाले सकपकाया - “कब बजा ?”
“साली ताश से फुरसत हो तो पता लगे न !”
“ताश ! वो तो कब की बंद है !”
“तो सो रहे होगे सबके सब । अभी फोन बजा, किसी ने न उठाया तो इधर मैंने उठाया....”
“साब जी, हमें बिल्कुल घंटी सुनाई न दी....”
“अब छोड़ वो बात । मैंने सुन लिया न ! एक ट्रक वाले का फोन था जो कि रूट फिफ्टीन से गुजर रहा था । बोलता है उसने नाले की साइड की रेलिंग से पार ढ़लान पर एक औरत की लाश पड़ी देखी....”
“ऐसीच पिनक में होगा कोई साला ।”
“नहीं होगा तो ? जो उसने रिपोर्ट किया, उस पर हम कान मे मक्खी उड़ायेंगे ?”
“अरे, नहीं साब जी ।”
“जा के देखो । तफ्तीश करो ।”
“साब जी, रूट फिफ्टीन तो बहुत लम्बी सड़क है.....”
“ठीक ! ठीक ! उधर एक सेलर्स बार है, मालूम ?”
“मालूम ।”
“उससे कोई आधा किलोमीटर आबादी की ओर बोला वो । जहां ‘डीप कर्व अहेड । ड्राइव स्लो’ का बोर्ड लगा है, वहां ।”
“मैं समझ गया ।”
“जा के पता करो कि केस है या सच में ही कोई पिनक में बोला ।”
“मैं अकेला, साब जी.....”
“अरे, हवलदार खत्री साथ जायेगा न ! आज गश्त पर भी नहीं निकला कुछ तो करे कम्बख्त !”
“अभी, साब जी ।”
“बोले तो भाटे को भी ले के जाओ । मेरी तरफ से खास बोलना ये उसकी सजा ।”
“ठीक !”
महाले लपकता हुआ वहां से रूखसत हुआ ।
दो मिनट बाद महाबोले को बाहर से जीप के रवाना होने की आवाज आयी ।
एक घंटे में जीप वापिस लौटी ।
हवलदार जगन खत्री ने महाबोले के कमरे में कदम रखा ।
“क्या हुआ ?” - महाबोले सहज भाव से बोला - “होक्स काल निकली ?”
“नहीं, सर जी” - खत्री उत्तेजित भाव से बोला - “लाश मिली । वैसे ही मिली जैसे ट्रक ड्राइवर आपको बोला । वहीं मिली जहां वो बोला ।”
“कोई टूरिस्ट ! कोई एक्सीडेंट.....”
“टूरिस्ट नहीं, सर जी, जानी पहचानी लड़की ।”
“कौन ?”
“नाम सुनेंगे तो हैरान हो जायेंगे ।”
“कर हैरान मेरे को !”
“रोमिला सावंत ।”
“रोमिला !” - खत्री को दिखाने के लिये महाबोले कुर्सी पर सीधा हो कर बैठा - “पुजारा की बारबाला !”
“वही ।”
“ठीक से पहचाना ?”
“सर जी, मैं ठीक से नहीं पहचानूंगा तो कौन पहचानेगा ! रोज तो वास्ता पड़ता था ।”
“पक्की बात, मरी पड़ी थी ? बेहोश तो नहीं थी ?”
“अरे, नहीं, सर जी । मैंने क्या मुर्दा पहली बार देखा ! लट्ठ की तरह अकड़ी पड़ी थी ।”
“देवा ! तभी रात को घर न लौटी ।”
“जब रूट फिफ्टीन पर मरी पड़ी थी तो कैसे घर लौटती !”
“ठीक !”
“महाले और भाटे उधर ही हैं । मैं आपको खबर करने आया ।”
“किसी चीज को छुआ तो नहीं ? मौकायवारदात के साथ कोई छेड़ाखानी तो नहीं की ?”
“अरे, नहीं, सर जी । सड़क के पास रेलिंग के पार उसकी एक सैंडल लुढ़की पड़ी थी, उस तक को नहीं छेड़ा ।”
“गुड !”
“लगता है, रेलिंग के साथ साथ चल रही थी कि पांव फिसल गया । गिरी तो रेलिंग के नीचे से होती-या ऊपर से पलट कर-ढ़लान पर लुढ़कती चली गयी । सिर एक चट्टान से टकराया तो....मगज बाहर । बुरी हुई बेचारी के साथ ।”
“अरे, ये गारंटी है न कि है वो अपनी रोमिला ही ?”
“सर जी, शक की कोई गुंजायश नहीं । मैं रोमिला को घुप्प अंधेरे में पहचान सकता हूं ।”
“बुरा हुआ । लेकिन इतनी दूर रूट फिफ्टीन पर कर क्या रही थी ? वो भी पैदल चलती ?”
“क्या पता ! बोले तो मौत ने जिधर बुलाना था, बुला लिया ।”
लपकता हुआ सिपाही अनंत राम महाले वहां पेश हुआ ।
“अरे, कोई जना फोन भी सुना करो !” - महाबोले झल्लाया ।
“फोन !” - महाले सकपकाया - “कब बजा ?”
“साली ताश से फुरसत हो तो पता लगे न !”
“ताश ! वो तो कब की बंद है !”
“तो सो रहे होगे सबके सब । अभी फोन बजा, किसी ने न उठाया तो इधर मैंने उठाया....”
“साब जी, हमें बिल्कुल घंटी सुनाई न दी....”
“अब छोड़ वो बात । मैंने सुन लिया न ! एक ट्रक वाले का फोन था जो कि रूट फिफ्टीन से गुजर रहा था । बोलता है उसने नाले की साइड की रेलिंग से पार ढ़लान पर एक औरत की लाश पड़ी देखी....”
“ऐसीच पिनक में होगा कोई साला ।”
“नहीं होगा तो ? जो उसने रिपोर्ट किया, उस पर हम कान मे मक्खी उड़ायेंगे ?”
“अरे, नहीं साब जी ।”
“जा के देखो । तफ्तीश करो ।”
“साब जी, रूट फिफ्टीन तो बहुत लम्बी सड़क है.....”
“ठीक ! ठीक ! उधर एक सेलर्स बार है, मालूम ?”
“मालूम ।”
“उससे कोई आधा किलोमीटर आबादी की ओर बोला वो । जहां ‘डीप कर्व अहेड । ड्राइव स्लो’ का बोर्ड लगा है, वहां ।”
“मैं समझ गया ।”
“जा के पता करो कि केस है या सच में ही कोई पिनक में बोला ।”
“मैं अकेला, साब जी.....”
“अरे, हवलदार खत्री साथ जायेगा न ! आज गश्त पर भी नहीं निकला कुछ तो करे कम्बख्त !”
“अभी, साब जी ।”
“बोले तो भाटे को भी ले के जाओ । मेरी तरफ से खास बोलना ये उसकी सजा ।”
“ठीक !”
महाले लपकता हुआ वहां से रूखसत हुआ ।
दो मिनट बाद महाबोले को बाहर से जीप के रवाना होने की आवाज आयी ।
एक घंटे में जीप वापिस लौटी ।
हवलदार जगन खत्री ने महाबोले के कमरे में कदम रखा ।
“क्या हुआ ?” - महाबोले सहज भाव से बोला - “होक्स काल निकली ?”
“नहीं, सर जी” - खत्री उत्तेजित भाव से बोला - “लाश मिली । वैसे ही मिली जैसे ट्रक ड्राइवर आपको बोला । वहीं मिली जहां वो बोला ।”
“कोई टूरिस्ट ! कोई एक्सीडेंट.....”
“टूरिस्ट नहीं, सर जी, जानी पहचानी लड़की ।”
“कौन ?”
“नाम सुनेंगे तो हैरान हो जायेंगे ।”
“कर हैरान मेरे को !”
“रोमिला सावंत ।”
“रोमिला !” - खत्री को दिखाने के लिये महाबोले कुर्सी पर सीधा हो कर बैठा - “पुजारा की बारबाला !”
“वही ।”
“ठीक से पहचाना ?”
“सर जी, मैं ठीक से नहीं पहचानूंगा तो कौन पहचानेगा ! रोज तो वास्ता पड़ता था ।”
“पक्की बात, मरी पड़ी थी ? बेहोश तो नहीं थी ?”
“अरे, नहीं, सर जी । मैंने क्या मुर्दा पहली बार देखा ! लट्ठ की तरह अकड़ी पड़ी थी ।”
“देवा ! तभी रात को घर न लौटी ।”
“जब रूट फिफ्टीन पर मरी पड़ी थी तो कैसे घर लौटती !”
“ठीक !”
“महाले और भाटे उधर ही हैं । मैं आपको खबर करने आया ।”
“किसी चीज को छुआ तो नहीं ? मौकायवारदात के साथ कोई छेड़ाखानी तो नहीं की ?”
“अरे, नहीं, सर जी । सड़क के पास रेलिंग के पार उसकी एक सैंडल लुढ़की पड़ी थी, उस तक को नहीं छेड़ा ।”
“गुड !”
“लगता है, रेलिंग के साथ साथ चल रही थी कि पांव फिसल गया । गिरी तो रेलिंग के नीचे से होती-या ऊपर से पलट कर-ढ़लान पर लुढ़कती चली गयी । सिर एक चट्टान से टकराया तो....मगज बाहर । बुरी हुई बेचारी के साथ ।”
“अरे, ये गारंटी है न कि है वो अपनी रोमिला ही ?”
“सर जी, शक की कोई गुंजायश नहीं । मैं रोमिला को घुप्प अंधेरे में पहचान सकता हूं ।”
“बुरा हुआ । लेकिन इतनी दूर रूट फिफ्टीन पर कर क्या रही थी ? वो भी पैदल चलती ?”
“क्या पता ! बोले तो मौत ने जिधर बुलाना था, बुला लिया ।”