Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - Page 7 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट

“साला कोई सीक्रेट करके भीङू” - आखिर वो बोला - “डीसीपी का फिरेंड भीङू इधर आ के एम्पालयमेंट पकड़ा तो किधर ! मोकाशी के अपने ठीये पर !”
“उसे मालूम होगा कि कोंसिका क्लब का असली मालिक मोकाशी था ? उसने जानबूझ कर नौकरी हासिल करने के लिये कोंसिका क्लब को चुना था ?”

“आई डोंट नो । पण ऐसा इत्तफाक मेरे को इधर” - उसने अपने पेट पर हाथ फेरा - “प्राब्लम करता है । और ये सोचने को फोर्स करता है कि उसने जान बूझ कर एम्पालयमेंट के लिये कोंसिका क्लब को चुना क्योंकि वो ‘इम्पीरीयल रिट्रीट’ के ऐन सामने है । मेरे को अभी का अभी ये भी मालूम पड़ा है कि वो साला खुफिया कैमरे से ‘इम्पीरीयल रिट्रीट’ में आने जाने वालों की फोटू निकालता था । पता नहीं साला क्या शूट किया ! कितना डैमेज होयेंगा !”
“बॉस, ऐसा नहीं होगा ।”
“मैं भी यहीच सोच कर अपना बिजनेस आपरेशंस इधर स्‍टैण्‍ड किया कि ऐसा नहीं होयेंगा । क्योंकि इधर मेरे फिरेंड्‍स - मोकाशी करके, महाबोले करके-जो मेरे को प्रोटेक्शन देने का । कैसे देगा साला प्रोटेक्शन ! साला इतना टेम में ये तक तो जान न सका कि कोई नवां सीक्रेट एजेंट इधर पाहुंच गयेला था । कोई साला उस भीङू को मेरा नॉलेज में लाता, मैं साला खुद सैट करता न उसको पर्फेक्ट करके !”

“बॉस, फिक्र नहीं करने का । मैं...”
“क्योंकि मेरा फिरेंड महाबोले फिक्र करता है मेरा वास्ते भी ! नो ?”
महाबोले ने जोर से थूक निगली ।
“क-क्या ?”
“जब तुम्हारे को अर्ली मार्निंग मालूम पड़ गया कि उस भीङू में कोई भेद, वो भीङू डेंजर, तो इधर क्यों न पहुंचा साला बुलेट का माफिक ?”
“त-तो...तो क्या होता ?”
“सांता मारिया ! लुक ऐट दिस गाय ! पूछता है तो क्या होता ! अरे, मैं वार फुटिंग पर कैसीनो से अपना एक्सपैंसिव इक्विपमेंट किसी सेफ, सीक्रेट जगह पर शिफ्ट करता और सैकण्ड फ्लोर को ऐसा सैट करता जैसे कैसीनो कभी उधर थाइच नहीं । ऐसीच मैं अपना ड्रग्स का स्टॉक किसी सीक्रेट प्लेस पर शिफ्ट करता । अब कैसे होयेंगा साला ! मैं बोला कि नहीं बोला कि साला दो नवां भीङू दो मिस्टीरियस भीङू उधर वाच करता है ! क्या !”

महाबोले ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“अभी बोलता काहे नहीं है ?”
“बॉस, आप फिक्र न करे ।” - महाबोले कठिन स्वर में बोला - “गोखले को मै हैंडल करूंगा बराबर । कैसे भी करूंगा । जो दो भीङू ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ को वाच करते हैं उन पर मैं अपनी वाच लगाऊंगा ताकि उनके कोई गलत कदम न उठा पाने कि गारंटी हो सके । मैं ये भी पता निकालने कि कोशिश करूंगा कि वो दो भीङू हैं कौन, किसको रिपोर्ट करते है !”
“कर लेगा तुम ?”
“बॉस - महाबोले आहत भाव से बोला - “मैं आइलैंड का पोलीस चीफ हूं । रिमेम्बर !”

मैग्‍नारो ने जवाब न दिया, उसने सिगार का लम्बा कश लागाया ।
“इधर सब साला मेरे कंट्रोल में है ।”
“प्रूव !”
“क्या बोला ?”
“साबित करके दिखाने का ।”
“कैसे ?”
“वो गोखले करके भीङू जिसमें तुम बोला कि कोई भेद, मेरे को इधर मंगता है ।”
“क्या !”
“अभी बोलो, उसको इधर लाना सकता ?”
“बॉस, ये क्या मुनासिब होगा ?”
“होगा । अपना बिजनेस, अपना पिराब्लम हैंडल करके का मेरा अपना इस्टाइल है । मैं बात करेगा न उससे ! मालूम करेगा न कि क्या मांगता है ! साला आमने सामने बैठ के नोट्स एक्सचेंज करेगा न !”

“कुछा हाथ नहीं आयेगा ।”
“देखेगा ।”
“अगर वो वाकेई सीक्रेट एजेंट है तो उसे आप से बात करना ही कुबूल नहीं होगा । वो...”
“बोलो तो मेरे को तुम्हारे से सीखने का कि मेरे को अपना बिजनेस कैसे कंडक्ट करने का !”
“वो बात नहीं, बॉस, लेकिन...”
“वो बात नहीं तो कोई बात नहीं । कोई बात है तो ये कि तुम मेरे को उस भीङू की बाबत लेट - टू लेट- इनफार्म किया वैल्‍यूएबल टेम वेस्ट किया ।”
“आ-आई एम सारी !”
“यू ऑट टु बी । तुम बोलता है मुम्बई का कोई डीसीपी इधर है और वो भीङू डीसीपी का फिरेंड । फिरेंड माई फुट । वो साला डीसीपी का अपना भीङू जो इधर सीक्रेटली फंक्शन करता था । अभी पता नहीं वो डीसीपी को क्या बोला, क्या नहीं बोला । इसी वास्ते डीसीपी को भी सैट करने का ।”

“जी !”
“टपकाना जरुरी तो टपकाने का ! दोनों को ।”
“जी !!” - इस बार महाबोले हाहाकारी स्‍वर में बोला ।
“आइलैंड के पुलीस चीफ का वास्ते डिफीकल्ट तो अपना रोनी हैंडल करेगा न ऐन पर्फेक्ट करके !”
रोनी डिसूजा ने पुरे इत्मीनान के साथ सहमति में सिर हिलाया ।
“दुश्मन गन से ही फ्लैट नहीं किया जाता” - मैग्‍नारो दार्शनिक से बोला - “मगज से भी किया जाता है ।”
महाबोले के चेहरे पर उलझन के भाव आये ।
 
“नहीं समझा तुम ?”
महाबोले ने इंकार में सिर हिलाया ।
“हर भीङू का कोई पास्ट होता है जिसको वो बाई आल कास्ट्स छुपा कर रखना मांगता है । जो साला नहीं छुपा रहेगा तो भीङू को बर्बाद कर देगा । बर्बाद कौन होता मांगता है ! मांगता है क्या ?”

महाबोले ने फिर इंकार में सिर हिलाया ।
“साला बुलेट काहे ऐसे भीङू को मारेगा ? उसका डार्क सीक्रेट उसको फिनिश करेगा । फिनिश नहीं होना मांगता तो जो बोला जायेगा, करेगा । अभी आया कुछ मगज में ?”
“आया तो सही कुछ कुछ ।” - महाबोले इस बार बोला तो उसके स्वर में स्पष्ट अनिश्‍चय का पुट था ।
“तुम्हारा डार्क सीक्रेट क्या है, महाबोले ?”
“नहीं है, बॉस, मेरा कोई डार्क सीक्रेट नहीं है ।”
“एक तो है बरोबर, जो मेरे को मालूम ।”
“क्या ?”
“नोन रैकेटियर को प्रोटेक्ट करता है । अपनी आफिशियल कपैसिटी में उसके इललीगल कैसीनो को प्रोटेक्शन देता है ।”

“मजाक मत करो, बॉस ।”
“हा हा हा ।”
महाबोले ने बुरा सा मुंह बनाया ।
“अभी बोलो, मुम्बई का डीसीपी इधर तुम्हेरे सिर पर डांस करता है, उसका सीक्रेट एजेंट तुम्हारा आंख में डंडा शायद कर भी चुका है, तुमको फिकर ?”
“है तो सही कुछ कुछ”
“साला अंडरटोन में बोलता है । सच्‍ची बोलेगा तो बोलेगा दहशत ।”
“अरे, नहीं, बॉस...”
“आई नो । इसी वास्ते तुम्हारे काम का एक लैसन है मेरा पास । मांगता है क्या ?”
“क्या लैसन है ?”
“दुश्मन को अपना भेद नहीं देने का । उसको अपने इन साइड में नहीं झांकने देने का । इन साइड में साला कुछ भी होता हो-फिकर, डर, दहशत-दुश्मन को नहीं भांपने देने का । साला बैक आउट नहीं करने का । बैक आउट करेगा तो दुश्मन समझ जायेगा कि तुम साला इनसाइड में पिलपिल ! कावर्ड ! फिर साला दौड़ा दौड़ा के मारेगा । इन साइड में साला कुछ भी चालता हो, मजबुती से तन कर खड़ा होयेंगा, आईज से आईज लॉक करके बात करेंगा तो दुश्मन साला कनफ्यूज होयेंगा, फिर साला वो बैक आउट करेगा । क्या !”

महाबोले का सिर मशीनी अंदाज से सहमति में हिला ।
“एम आई राइट, रोनी ?”
“यू नो यू आर, बॉस ।” - डिसूजा बोला - “बोले तो बराबर !”
“देखा ! रोनी फालो किया । तुम साला मेरे को दिखाने को खाली मुंडी हिलाता है ।”
“ऐसी कोई बात नहीं, बॉस ।” - महाबोले हड़बड़ा कर बोला - “आई हार्ड यू लाउड एण्ड क्लियर । एण्ड आई एग्री विद युवर वर्ड्स आफ विजडम वन हण्‍डर्ड पर्सेट ।”
“थैंक्यू ! एग्री करता है तो एक्ट भी करने का । जा कर अपने थाने में बैठने का और जैसे दुश्मन भीङू लोग इधर का खुफिया जानकारी निकालता है, वैसेच उन भीङू लोगों की कोई खुफिया जानकारी निकालने का और मेरे-खस तौर से गोखले के अगेंस्ट-हाथ मजबूत करने का । फिर मैं गोखले से इधरीच, इसी रूम में बात करेगा और देखेगा वो कितना श्याना ! क्या करना सकता ! क्या !”

“ठीक !”
“अभी नक्‍की करने का ।”
महाबोले ने उसका अभिवादन किया और वहं से रुखसत हुआ ।
वापिसी में सारे रास्ते वो बड़बड़ाता रहा और अपनी आगे कि कोई स्ट्रेटेजी निर्धारित करने के लिये मगज मारता रहा ।
‘गोखले से बात करेगा’ - मन हि मन वो भुनभुनाया - ‘काहे को ! गोखले के साथ कोई डील सैट करने बैठ गया तो मुझे मंजूर होगा ! मैग्‍नारो का मेरी हैसियत घटाने वाला कदम मैं कैसे उठने दूंगा ! पता नहीं क्यों साला गोवानी मेरे को एकाएक कमजोर, पिलपिलाया हुआ समझने लगा है ! मैं मोकाशी को हैंडल कर सकता हूं, उसकी ऐंठ तोड़ सकता हूं, रोमिला सावंत का वजूद मिटा सकता हूं तो उस साले गोखले को हैंडल नहीं कर सकता ! मैग्‍नारो कभी गोखले से नहीं मिल पायेगा । वैसी नौबत आने से पहले ही मैं गोखले को उसी राह का राही बना दूंगा जिसका रोमिला को बनाया । साला मवाली मेरे को लेक्चर देता है ! उंगली पकड़ के चलना सिखाता है ! जैसे सारी जिंदगी मैंने उसी से पूछ पूछ कर गुजारी कि बॉस, आगे क्या करूं ? बात करता है, साला...’

युं ही कलपता, बड़बड़ाता, भुनभुनाता महाबोले थाने पाहुंचा ।
***
 
नीलेश अपनी किराये की आल्टो चलाता कोस्‍ट गार्ड्स की छावनी से निकला और रूट फिफ्टीन से होता आगे आइलैंड की घनी आबादी वाले इलाके में पहुंचा जो कि वैस्टएण्ड कहलाता था ।
म्यूनीसिपैलिटी की इमारत के काले नोटिस बोर्ड पर चाक से बड़े बड़े अक्षरों में ‘स्‍टार्म वार्निंग’ लिखा था । हैडिंग के आगे की तहरीर के अक्षर छोटे थे इसलिये फासले से वो उन्हें न पढ़ सका ।
आइलैंड के मेन पायर पर खड़ी बड़ी मोटर बोट्‍स के लंगर दोहरे किये जा रहे थे और छोटी मोटारबोट्स को घसीट कर किनारे कि खुश्की पर लाया जा रहा था । मुम्बई और मुरुड जाने वाले स्टीमर खचाखच भरे हुये थे जो कि इस बात का साबूत था कि हरीकेन ल्यूसिया की दहशत में पर्यटक थोक में आइलैंड से पलायन कर रहे थे ।

वो ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट के सामने से गुजरा तो उसकी निगाह स्वयमेव हि उन कोस्ट गार्ड्स कि तलाश में इधर उधर भटकी, जायंट कमिश्‍नर बोमन मोरावाला के अनुरोध पर और उन के सर्वोच्‍च अधिकारी के हुक्म पर जो वहां की निगरानी पर तैनात थे ।
जल्दी ही वे दोनों उसे दिखाई दे गये ।
वो बड़ी मुस्तैदी से अपना काम कर रहे थे और दोनों-वो बाखूबी जनता था-सशस्‍त्र थे ।
ड्राइव करता वो मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस पर पाहुंचा ।
कोस्ट गार्ड्स वहां की निगरानी के लिये भी तैनात थे ।
वो कार से निकला, उनके करीब पहुंचा और उन्हें अपने वहां आगमन का मंतव्य समझाया ।

तुरंत सहमति में सिर हिलाता एक गार्ड उसके साथ हो लिया ।
दोनों दूसरी मंजिल पर पहुंचे ।
रोमिला के कमरे का दरवाजा तब भी अनलॉक्‍ड था जो पुलिस की बेपरवाही का नतीजा था । दरवाजा खोल कर वो भीतर दाखिल हुआ तो कोस्ट गार्ड बाहर ही ठिठक गया । इस बात में उसे कोई दिलचस्‍पी नहीं थी कि नीलेश वहां क्यों आया था और क्या चाहता था ! उसको नीलेश से हर तरह का सहयोग करने का निर्देश था और वो निर्देश का पालन कर रहा था ।
पिछली बार जब नीलेश सिपाही दयाराम भाटे के साथ वाहां पहुंचा था तो उसने उस जगह को सरसरी तौर से टटोला था क्योंकि तब भाटे कि वजह से उससे ज्यादा की कोई गुंजायश नहीं थी लेकिन अब वहां कैसी भी तलाशी कि उसे खुली छूट हासिल थी ।

उसने बरीकी से कमरे की हर चीज को टटोलना शुरू किया ।
एक दाराज से कुछ चिटि्‌ठयां बरामद हुईं जिनके मुआयाने से मालूम पड़ा कि वो उसके भाई ने पोंडा से लिखी थी । चिटि्‌ठयों में मोटे तौर पर इसी बात पर जोर था कि मां की तबीयत बहुत खराब रहने लगी थी और जो पैसा वो भेजती थी, उससे घर का ही खर्चा चलता था, उसमें मां के मुनासिब इलाज की गुंजयश नहीं थी ।
दो चिटि्‌ठयां बैंगलोर से थीं जो उसकी ऐंजीला नाम की सखी ने वहां से लिखी थीं । दोनों में इस बात पर जोर था कि वहां पैसा कमाने के बेहतर चांसिज थे और उसे अपना मौजूदा मुकाम छोड़ कर बैंगलोर शिफ्ट करने पर विचार करना चाहिये था ।

उसी दराज से रूम रैंट की कुछ रसीदें बरामद हुईं ।
कमरे का माहाना किराया तीन हजार रुपये ।
जबकि उसके इंडीपेंडेंट काटेज का महाना किराया बाइस सौ रुपये था ।
बाथरूम में जनाना इस्तेमाल के कीमती शैम्पू, कंडीशनर्स, बाडी लोशंस, स्क्रब्स, परफ्युम वगैरह थे ।
उसका खुला सूटकेस अपनी पूर्व स्थिति में तब भी बैड पर मौजूद था और उसके अंदर बाहर उसकी पोशाकें और अंडरगारर्मेट्‍स भी पूर्ववत बिखरे हुए थे ।
दो तीन ड्रैसें अभी वार्डरोब में भी हैंगरों पर टंगी मौजूद थीं और वर्डरोब के नीचे के हिस्से में बने एक बड़े से दराज में कई जोड़े बैली, चप्पल और सैंडल मौजूद थी ।

बैड की मैट्रेस के नीचे से एक बैंक की पास बुक बरामद हुई जिसके मुताबिक उसके सेविंग बैंक एकाउंट में ग्यारह हजार आठ सौ पिच्‍चासी रुपये साठ पैसे जमा थे ।
लेकिन जिस चीज कि उसे असल में तलाश थी, वो वहां उसे कहीं न मिली ।
रोमिला का कोई हैण्डबैग-जनाना सामान समेत या खाली - वहां नहीं था ।
जो कि हैरानी की बात थी ।
हैण्डबैग के बिना वो एक नौजवान लड़की कल्पना नहीं कर सकता था ।
वो रोमिला के साथ नहीं था-सिद्ध हो चुका था कि नहीं था-तो उसे वहां होना चाहिये था ।
क्यों नहीं था ?

वो कमरा खुला दरबार बना हुआ था, कोई आया और उठा के ले गया ।
कोई चोर !
या पुलिस !
वो महाबोले का करतब हो सकता था क्योंकि उसका इसी बात पर जोर था कि हैण्हबैग रोमिला के पास था और वो ही-उसमें मौजूद रोकड़ा ही - उसके कत्ल की वजह बना था ।
अगर सच में ये बात थी तो फिर तो हैण्डबैग की बरामदी भी महज वक्‍त की बात थी । वो जब बरामद होता तो रोकड़े के नाम पर उसमे झाङू फिरा होता और यूं कथित कातिल हेमराज पाण्डेय के ताबूत में एक कील और ठुक जाता ।

वो कमरे से निकला, उसने अपने पीछे दरवाजा बंद किया । फिर वो और गार्ड दोनों वापिस सड़क पर पहुंचे । नीलेश ने गार्ड को थैंक्यू बोला और फ्रंट डोर से इमारत में दखिल हुआ । भीतर लगे एक इंडेक्स बोर्ड से पता लगा कि लैंडलेडी मिसेज वालसन का आवास पहली मंजिल पर था ।
नीलेश पहली मंजिल पर पहुंचा ।
बड़ी मुश्किल से मिसेज वालसन उससे बात करने को तैयार हुई ।
वो कोई पचपन साल की, कटे बालों वाली, सख्त मिजाज - बल्कि चिड़चिड़ी - ऐंग्लोइंडियन महिला थी । उसने असहिष्णुतापूर्ण भाव से नीलेश की तरफ देखा ।

नीलेश ने भी वैसे ही उसकी निगाह का मुकाबला किया ।
वो हड़बड़ाई, तत्‍काल उसकी निगाह नीलेश की सूरत पर से भटकी ।
“क्‍या प्राब्‍लम है तुम लोगों का ?” - फिर भुनभुनाती सी बोली ।
“प्राब्‍लम !” - नीलेश की भवें उठीं
“कितना टेम मेरे को क्‍वेश्‍चन करने का ? कभी हवलदार आता है, कभी सब-इंस्‍पेक्‍टर आता है, कभी मरुड से इधर पहुंचा कोई पुलिस आफिसर आता है...”
“कभी थानेदार आता है ।”
“क्‍या बोला ?”
“थानेदार बोला । थानेदार नहीं समझतीं तो एसएचओ ! महाबोले !”
“उसका इधर क्‍या काम !”
“मैं बताऊं ! अरे, मैं...”
“आप जानती तो हैं न इंस्‍पेक्‍टर महाबोले को ?”

“हां । वो मर्डर केस का इनवैस्टिगेशन का वास्‍ते इधर आया न ! अपना टीम के साथ !”
“उसके बाद अकेला भी आया ?”
“नो !”
“रोमिला के रूम में गया ?”
“नैवर ।”
“यानी खुद न आया, किसी को भेजा ?”
“काहे वास्ते ?”
“एडीशनल इनवैस्टिगेशन के वास्ते ! तफ्तीश कि जो बचत खुचत रह गयी थी, उसको समेटने के वास्ते !”
“मैन, यू आर टाकिंग इन रिडल्स । फर्स्ट टेम के बाद इधर कोई नहीं आया । पण” - वो एक क्षण ठिठकी, फिर बोली - “आया भी !”
“जी !”
“अभी तुम आया न ! क्या प्राब्लम है तुम लोगों का ?”

“पहले भी पूछा ।”
“अभी फिर पूछता है न !”
“कोई प्राब्लम नहीं ।”
“तो काहे डिस्टर्ब करता है ! इधर का म्यूनीसिपैलिटी का प्रेसिडेंट-बिग गन बाबूराव मोकाशी मेरा पर्सनल फ्रेंड । मालूम !”
“अब मालूम ।”
“मै एक टेलीफोन काल लागायेगा तुम ब्लडी इधर से ऐसे क्‍व‍िट करेगा जैसे कभी आया ही नहीं था ।”
“ओके ।”
“वाट ओके ?”
“जो कहा,वो कीजिये । जो रिजल्ट आपको देखने का, वो मेरे को भी देखने का ।”
वो हड़बड़ाई, तड़फड़ाई, कई बार मुंह खोला, बंद किया ।
“अभी क्या प्राब्लम है ?” - फिर बोली - “मैं मर्डर सस्पैक्ट है ?”

“नहीं ।” - नीलेश पूर्ववत्‍ इत्‍मीनान से बोला ।
“तो ?”
“सीटा सस्पैक्ट है ।”
“क्या बोला ?”
“सीटा बोला । सप्रेशन आफ इममारल ट्रैफिक एक्ट ।”
“वाट !”
“बोर्डिंग हाउस नहीं चलाता, कालगर्ल्स की पनाहगाह चलाता है इस वास्ते नार्मल से डबल, ट्रिपल रैंट चार्ज करता है ।”
“वाट नानसेंस !”
“हजार बारह सौ किराये के काबिल कमरे के तीन हजार रुपये महाना चार्ज करता है । थ्री थाउजेंड बक्स फार ए पिजन होल !”
“वाट द हैल !”
“रोमिला सावंत ने किराये की रसीदें सम्भाल के रखीं जो कि अपनी कहानी खुद कहती हैं । बाकी डीसीपी के सामने बोलना । उधर अपने पसर्नल फ्रेंड मोकाशी को भी बुला लेना । कम आन ! मूव नाओ ।”
 
“अरे, काहे खाली पीली बोम मारता है ! रैंट पर कोई गवर्नमेंट कंट्रोल है ! अपना रूम को मैं कोई भी रैंट फिक्‍स कर सकता है । किसी को ज्‍यास्‍ती लगता है तो नक्‍की करे । आइलैंड पर और भी बोर्डिंग हाउस हैं, उधर ट्राई करे ।”
“और बोर्डिंग हाउस किसी को भी रूम रैंट पर देते हैं, आप खाली नौजवान लड़कियों को देती हैं । वो सब धंधे वाली होती हैं, इसलीये आपके हाई रैंट से एतराज नहीं करती ।”
“वाट !”
“आप प्रास्‍टीच्‍यूट्स को पनाह देती हैं, दिस इज वाट !”
उसका मुंह खुले का खुला रह गया । फिर धीरे धीरे उसके चेहरे से असहिष्‍णुता के भाव छंटने लगे ।

“मैन, आई एम एन ओल्‍ड लेडी” - फिर दयनीय भाव से बोली - “काहे को डरता है ! किस वास्‍ते इतना बड़ा बड़ा बात करता है ! आई एम ए विडो । नो किड्स । इंकम का और कोई सोर्स नहीं । बोर्डिंग हाउस चलाता है तो खर्चा पानी चलता है । मेरे को किधर मालूम जो छोकरी लोग इधर रहता है, वो क्‍या करता है ! रैंट चार्ज करने के अलावा उनसे मेरा कोई कंसर्न नहीं । कैसे मैं किसी छो‍करी को रूम रैंट पर देने से पहले उससे सवाल करेगा कि वो प्रास्‍टीच्‍यूट तो नहीं ! कालगर्ल तो नहीं ! कैसे होयेंगा ?”

“उनके कस्‍टमर इधर विजि‍ट करते हैं, आपको मालूम नहीं पड़ता ? या आंखें बंद कर लेती हैं ?”
“आ-आ-आई डोंट इंटरफियर ।”
“यानी मालूम सब पड़ता है, दखल नहीं देती ?”
उसने झिझकते हुए सहमति‍ में सिर हिलाया ।
नीलेश ने जेब से एक तसवीर निकाली जो कि उसने लोकल अखबार ‘आइलैंड न्‍यूज’ में से काटी थी । तसवीर कत्‍ल के अपराधी हेमराज पाण्‍डेय की थी जो कि कत्‍ल की ‘सनसनीखेज’ न्यूज के साथ छपी थी । उसे मालूम पड़ा था कि ‘आइलैंड न्‍यूज’ के प्रकाशन की कोई फ्रीक्‍वेंसी निर्धारित नहीं थी, यानी कभी वो रोज छपता था, कभी दो दिन में एक बार तो कभी हफ्ते में दो बार छपता था, उसका प्रकाशन प्रकाशित की जाने लायक खबर उपलब्ध होने पर निर्भर था जो कि उस शांत आइलैंड पर अक्‍सर नहीं भी उपलब्‍ध हो पाती थी ।

“ये तसवीर देखिये ।” - नीलेश ने कटिंग उसके सामने की - “क्‍या ये आदमी कभी इधर आया ?”
“क्‍या करने ?” - मिसेज वालसन ने पूछा ।
“रोमिला सावंत से मिलने !”
“मेरे खयाल से तो नहीं !”
“आपकी नजदीक की निगाह ठीक है ?”
“नहीं । इस उम्र में कैसे होगी !”
“पढ़ने लिखने के लिये चश्‍मा लगाती हैं ?”
“हां ।”
“ले के आइये ।”
वो भीतर कहीं गयी और रीडिंग ग्‍लासिज के साथ लौटी ।
“पहनिये । और तसवीर को फिर से, ठीक से देखिये ।”
उसने निर्देश का पालन किया ।
“अब क्‍या कहती हैं ?”

“वही, जो पहले कहा ।” - तसवीर लौटाती वो बोली - “ये आदमी कभी इधर नहीं आया ।”
“पहले आपने खयाल से कहा था, अब यकीन से कह रही हैं ?
“हां ।”
“लेकिन” - नीलेश सावधान स्‍वर में बोला - “अनिल महाबोले अक्‍सर आता था ।”
“भई, वो पुलिस आफिसर है । लोकल थाने का एसएचओ है । उसके पास अथारिटी है । चैकिंग के लिये वो किधर भी जा सकता है ।”
“चैकिंग के लिये ?”
“हां ।”
“कैसी चैकिंग !”
“जैसी बोर्डिंग एण्‍ड लॉजिंग की कमर्शियल एस्‍टैब्लिशमैंट्स की होती है ।”
“आई सी । दयाराम भाटे से वाकिफ हैं ?”

“पुलिस कांसटेबल है ।”
“परसों रात इधर वाच करता था । मालूम ?”
“मालूम ।”
“क्‍यों ?”
“ये तो बोला नहीं !”
“इधर जो कुछ भी होता है, आपको उसकी खबर रहती है । ठीक !”
“भाटे मेरे को नहीं बोला काहे वो इधर था ।”
“लेकिन आपको मालूम । उसके बोले बिना आपको मालूम ।”
“क्‍या बात करता है, मैन !”
“आपको मालूम कि वो रोमि‍ला सावंत की फिराक में इधर था ।”
“कैसे मालूम होयेंगा !”
“आप झूठ बोल रही हैं ।”
“नो, मैंन, मैं …”
“अंजाम बुरा होगा । जब होगा तो आपका पर्सनल फ्रेंड मोकाशी भी हाथ खडे़ कर देगा । अपनी हरकत आ बैल मुझे मार जैसी करेंगी तो पछतायेंगी ।”

मिस्‍टर वालसन के चेहरे पर कोई नया भाव न आया लेकिन उसके शरीर में सिहरन दौड़ती नीलेश ने साफ देखी ।
“कबूल कीजिये कि आपको मालूम था कल रात को इंस्‍पेक्‍टर महाबोले को रोमिला की बड़ी शिद्‌दत से तलाश थी ।”
“थी तो क्‍या ! मेरे को क्‍या ! बट आई स्वियर बाई जीसस, मेरी एण्‍ड जोसेफ, मेरे को नहीं मालूम क्यों तलाश थी ! वो मेरे को इस बारे में कुछ न बोला ।”
“महाबोले यहां अक्‍सर आता था ?”
“यहां ?”
“अरे, यहां नहीं, आपके बोर्डिंग हाउस में ! रोमि‍ला सावंत के पास ! उसके कमरे में !”

“बोले तो आता तो था !”
“अक्‍सर ?”
“हां ।”
“पीसफुली आता था, पीसफुली जाता था ?”
“आई डोंट अंडरस्‍टैंड ।”
“अरे, कभी झगड़ा होता था दोनों में । तू तू मैं मैं होती थी ?”
“बोले तो मोस्‍ट आफ दि टाइम यहीच होता था। दोंनो बैड टैम्‍पर्ड थे । बहुत जल्‍दी भड़कते थे । सैवरल टाइम्‍स मेरे को जा के बोलना पड़ा गलाटा न करें, बाकी बोर्डर्स को डिस्‍टर्बेंस होता था ।”
“झगड़ते किस बात पर थे ?”
“मालूम नहीं । आनेस्‍ट, नहीं मालूम ।”
“कोई अंदाजा ?”
“अंदाज बोले तो रोकड़ा !”
“झगडे़ की वजह रोकड़ा होता था ?”
 
“अंदाजा पूछा न ! मैं अंदाजा बोला । दैट गर्ल …रोमिला …शी वाज ग्रीडी । बोले तो लालची थी । रोकड़े पर जान देती थी । बोलती थी बहुत जिम्‍मेदारि‍यां । इस वास्‍ते मजबूरी । बोले तो वो छोकरी रोकडे़ के वास्‍ते कुछ भी कर सकती थी ।”
“आई सी । आप बोर्डिंग हाउस चलाती हैं, ऐसा बोर्डिंग हाउस चलाती हैं जिसकी चैकिंग के लिये गाहे बगाहे पुलिस को आना पड़ता है । आप खुद कुबूल करती हैं ये कैसा बोर्डिंग हाउस है, फिर भी पुलिस आती है, चली जाती है, आपको डिस्‍टर्ब नहीं करती, आपके बोर्डर्स को डिस्‍टर्ब नहीं करती, वर्ना चाहे तो आपको समेत सबको अंदर कर दे । प्रास्‍टीच्‍यूशन बेलेबल ऑफेंस हैं, बाईयां तो ओवरनाइट में छूट जायेंगी, आपको जमानत कराने में दिक्‍कत होगी । धंधा चौपट होगा सो अलग ।”

“मैन” - वो घबराये स्‍वर में बोली - “क्‍या कहना मांगता है ?”
“ये कि ऐसी कोई मिसएडवेंचर आपके साथ नहीं हुई तो इसका मतलब है पुलिस के साथ आपकी कोई सैटिंग है । महाबोले इधर का पुलिस चीफ है, लिहाजा उसको कभी आपसे कोई फेवर-जो कि जाहि‍र है कि रैसीप्रोकल होगी; यू स्‍क्रैच माई बैक, आई स्‍क्रैच युअर बैक सरीखी होगी - मांगता हो तो आप मना नहीं कर पायेंगी । नो ?”
“कैसा फेवर ?”
“कैसा भी । जवाब दीजिये । मना कर पायेंगी ?”
उसने हिचकिचाते हुए इंकार में सिर हिलाया ।
“इफ आई से नो” - फिर दबे स्‍वर में बोली - “ही विल फाल अपान मी लाइक ए टन आफ ब्रिक्‍स । बर्बाद कर देगा ।”

“मैं आपकी साफगोई की दाद देता हूं ।”
वो खामोश रही ।
“बर्बाद कौन होना मांगता है !”
“कोई नहीं ।” - वो बोली ।
“इसलिये महाबोले जो बोले वो सिर माथे !”
“सिर माथे बोले तो ?”
“यस, सर । राइट अवे, सर । युअर वर्ड माई कमांड, सर’ । नो?”
“ओह, दैट ! यस, पण मजबूरी …”
“आई अंडरस्‍टैंड । रोमिला के कमरे से उसका हैण्‍डबैग गायब है । किधर गया ?”
“मेरे को कैसे मालूम होयेंगा ? बोले तो कोई चोर …”
“उसके कमरे में और भी कीमती सामान है । हैण्‍डबैग ही क्‍यों चुराया चोर ने ?”

“मैं क्‍या बोलेगा ! पण” - उसकी आवाज में संदेह का पुट आया - “तुम्‍हेरे को कैसे मालूम उधर ये कोई हैण्‍डबैग मिसिंग है !”
“कल जब आप शापिंग के लिये गयी हुई थी तो मैं डीसीपी साहब के साथ इधर आया था …”
“डीसीपी ! डीसीपी इधर किधर है ? इधर तो टॉप पुलिस ऑफिसर इंस्‍पेक्‍टर है जो कि महाबोले है ।”
“मुम्‍बई से आया ।”
“काहे ?”
“बोलेगा खुद । आप कोआपरेट नहीं करेंगी तो जो मैं पूछ रहा हूं, वो खुद डीसीपी आके पूछेगा ।”
“ओह, नो !”
“देखना आप !”
“तुम…तुम कौन है ?”
“पूछना सूझ गया !”

“पुलिस वाला तो है बराबर । पण … कौन है ! इधर थाने से ही है न !”
“नहीं ।”
“तो ?”
“मुम्‍बई से आया । डीसीपी के साथ । डीसीपी का चीफ असिस्‍टेंट है मैं ।”
“ओह ! पण मुम्‍बई से काहे …?”
“मालूम पडे़गा । अभी छोडि़ये वो किस्‍सा ।”
“इधर का थाना मुरुड के डीसीपी के अंडर । इतना मेरे को मालूम । फिर मुम्‍बई से …”
“बोला न, छोड़िये वो किस्‍सा । अभी मैं क्‍या बोला ? मैं बोला कि कल जब आप शापिंग के लिये गयी हुई थीं तो मैं डीसीपी के साथ इधर आया था । रोमिला का हैण्‍डबैग उसके कमरे में नहीं था ।”

“किधर गया ?”
“यही सवाल तो मैं आपसे कर रहां हूं । आप बताइये किधर गया ?”
“आई हैव नो आइडिया ।”
“मैडम, ये बात महाबोले के इंटरेस्‍ट में है कि वो बैग इधर से बरामद न हो । लिहाजा उसको इधर से हटाने के लिये कल या वो खुद आया, या उसका कोई आदमी आया या …”
“या क्‍या ?”
“या ये काम उसके लिये आपने किया ।”
“वाट !”
“उसको ओब्‍लाइज करने के लिये । इधर आपके करोबार में पंगा न करने आपको ओब्‍लाइज करता है न बराबर ! तो बदले में आपको भी तो लोकल पुलिस चीफ के साथ गुडविल बना के रखने का या नहीं ?”
 
“यू आर टाकिंग नानसेंस । आई डिड नथिंग आफ दि काइंड ।”
“श्‍योर ?”
“ऐज गॉड इज माई जज, आई डिड नो सच थिंग ।”
“चर्च जाती हैं ?”
“हां । ऐवरी संडे ।”
“गले में क्रॉस पहनती हैं, गॉड को जज बना कर जो अभी बोला, वो क्रॉस को छू के बोलिये ।”
झिझकते हुए उसने क्रॉस को छुआ और कांपती आवाज में बोला ।
“आल राइट !” - नीलेश बोला - “मैने यकीन किया आपकी बात पर ।”
वो खामोश रही । एकाएक उसके चेहरे पर टेंशन के ऐसे भाव पैदा हुए थे कि चेहरा विकृत हो उठा था । बड़ी मुश्किल से उसने खुद पर काबू पाया ।

नीलेश ने तभी उसका पीछा न छोड़ दिया । उसने खोद खोद कर और भी कई सवाल महाबोले और रोमिला के बारे में उससे पूछे लेकिन कुछ हाथ न आया । उसका दिल गवाही देता था, उसका बैटर जजमेंट गवाही देता था कि रोमिला के कत्‍ल में महाबोले का बराबर कोई दखल था लेकि‍न उस पर किधर से भी कोई मजबूत उंगली नहीं उठ रही थी ।
असंतुष्‍ट वो वालसंज बोर्डिंग हाउस से रुखसत हुआ ।
पीछे पश्‍चाताप से विचलित, अवसाद की प्रतिमूर्ति बनी मिसेज वालसन बुत की तरह कुर्सी पर ढे़र हुई बैठी थी । उसका रोम रोम इंस्‍पेक्‍टर महाबोले के लिये नफरत से जल रहा था जिसकी वज‍ह से उसे क्रॉस को छू कर झूठ बोलना पड़ा था ।

“मैरी, मदर आफ गॉड !” - कांपती आवाज में वो बार बार कहने लगी - “फारगिव माई सिंज ।”
***
नीलेश वापि‍स रूट फिफ्टीन पर और आगे मौकायवारदात पर पहुंच ।
पुलिस ने मौकायवारदात को ऊपर रेलिंग के साथ और नीचे पेड़ों के साथ रस्सियां बांध बांध कर घेरा हुआ था । उस घेरे के बाहर कई तमाशबीन मौजूद थे । वो जानते थे लाश कब की वहां से हटाई जा चुकी थी, फिर भी वो उस जगह को देखने के इच्छुक थे जहां कि लाश पायी गयी थी । वहां एक इकलौता पुलिसिया मौजूद था जो रेलिंग पर टांगें लटकाये बैठा बड़ी निर्लिप्‍तता से सिग्रेट के कश लगा रहा था । उसे न तमाशाईयों से मतलब था, न मौकायवारदात से, वो महज वहां अपनी ड्‌यूटी की रसमअदायगी कर रहा था, खानापूरी कर रहा था

नीलेश कुछ क्षण कार में बैठा सिग्रेट के कश लगाता रहा फिर कुछ सोच कर उसने सिग्रेट को तिलांजली दी और कार से बाहर निकाला ।
नीचे ढ़लान पर जिस जगह से लाश बरामद हुई थी, वो रेलिंग पर से नहीं दिखाई देती थी लेकिन, सब-इंस्‍पेक्‍टर जोशी का दावा था, उस ट्रक ड्राइवर को दिखाई दी थी, जिसने थाने फोन लगा कर हादसे की खबर की थी, क्‍योंकि ट्रक की सीट ऊंची होती थी ।
कि‍तनी ऊंची होती थी !
जेहन में ट्रक का तसव्‍वुर करके उसने उस बात पर गौर किया ।
फिर वो कार की छत पर चढ़ गया और उस पर खड़ा हो गया ।

क्‍या इतनी ऊंची !
ठीक !
उसने रेलिंग के पार ढ़लान से नीचे की तरफ निगाह दौड़ाई ।
वो चट्‌टान उसे फिर भी न दिखाई दी जिसके करीब लाश पड़ी पायी गयी थी ।
जो उसे दिन की रोशनी में नहीं दिखाई दिया था, वो किसी ट्रक ड्राइवर को रात के अंधेरे में दिखाई दिया था । अंधेरी का ये जवाब बनता था कि किसी तरीके से ट्रक का ऐंगल ऐसा बन गया था कि हैडालाईट्स की रोशनी से ढ़लान नीचे दूर तक चमक गयी थी लेकिन वो जगह तो फिर भी नहीं देखी जा सकती थी जहां कि लाश पड़ी पायी गयी थी !

तो क्‍या काल की कहानी फर्जी थी ?
क्‍या बड़ी बात थी ! बाकी सब कुछ भी तो फर्जी ही जान पड़ता था !
हैट में से खरगोश निकालने जैसी जादूगरी से हाथ के हाथ कातिल मुहैया हो गया - ऐसा ईडियट कातिल मुहैया हो गया जिसने रोकड़ा निकाल कर हैण्‍डबैग तो फेंक दिया लेकिन कायन पर्स, जिसमें चंद सिक्‍कों के सिवाय कुछ भी नहीं था, पास रखे रहा । अब इस बात की भी तसदीक हो चुकी थी कि पिछली रात को किसी बार ने लेट लेट नाइट आवर्स में बार रेट्स पर किसी को विक्‍की की बोतल नहीं बेची थी । इस लिहाज से हैण्‍डबैग से निकाला रोकड़ा पाण्‍डेय के पास होना चाहि‍ये था लेकिन नहीं बरामद हुआ था । न वो रकम कोई मुद्दा बनी थी क्‍योंकि महाबोले की एक ही जिद थी कि वो उसने बाटली की खरीद में सर्फ कर दी थी । कैसे खरीद पाया वो बाटली, कैसे सर्फ कर दी थी, इस बाबत उससे सवाल करने वाला कोई नहीं था ।

न ये बात किसी के लिये मुद्दा थी कि अपनी मौत से पहले रोमि‍ला निहायत खौफजदा थी, इतनी कि छुपती फिर रही थी, घर लौटने की हिम्‍मत नहीं कर पा रही थी ।
फिर लाख रुपये का सवाल था कि उसका हैण्‍डबैग कहां गया ? कैसे वो उसके कमरे से गायब हुआ ? महाबोले ने किया - या करवाया - तो क्‍योंकर ये करतब वो कर पाया !
बाजरिया मिसेज वालसन !
तो क्‍या वो औरत झूठ बोले रही थी ! क्रास को छू कर भी झूठ बोले रही थी !
क्‍या पता लगता था ?
खुदा के नाम पर झूठ बोलने वाले पर बिजली तो गिर नहीं पड़ती थी !

तभी उसकी निगाह एक अपनी ही उम्र के व्‍यक्‍ति‍ पर पड़ी जो कार के करीब खड़ा मुंह बाये उसे देख रहा था ।
खिसियाया सा नीलेश कार की छत से नीचे उतरा ।
“हल्‍लो !” - वो बोला ।
“हल्‍लो !” - वो व्‍यक्‍ति मथुर स्‍वर में बोला - “हाइट से सीनरी एनजाय कर रहे थे !”
नीलेश फिर खिसियाया सा हंसा ।
“या क्राइम सीन का अक्‍स जेहन में उतार रहे थे !”
“आपकी तारीफ ?”
“मैं मंजुनाथ मेहता । आइलैंड के इकलौते टेबलायड ‘आइलैंड न्‍यूज’ का एडीटर, पब्लिशर, रिपोर्टर, आफिस असिस्‍टेंट वगैरह ।”
“तो आप निकालते हैं वो पर्चा ?”

“हां । देखा कभी ?”
“देखा तो सही !”
“कैसा लगा ?”
“पर्चा था ।”
मेहता हंसा ।
“नाइस मीटिंग यू । मेरे को नीलेश गोखले कहते हैं ।”
“नाम से वाकि‍फ हूं । सूरत से भी वाकि‍फ हूं ।”
“अच्‍छा !”
“पत्रकार घूंट न लगाये तो उसकी कलम नहीं चलती न, इसलिये शाम ढ़ले कभी कभार कोंसिका क्‍लब का फेरा लगता है ।”
“ओह !”
“कल सुबह भी मैं यहां था, तब तुम एक बड़ी रोबदार शख्सियत के साथ थे । बाद में सब-इंस्‍पेक्‍टर जोशी से, कांसटेबल भाटे से बात की तो उसकी बाबत पहले एक जवाब मिला, फिर दूसरा जवाब मिला । पहला जवाब मिला कि वो मुम्‍बई से आये कोई पत्रकार थे और तुम उनके लोकल फ्रेंड और गाइड थे । दूसरा जवाब मिला कि डिप्‍टी कमिश्‍नर आफ पुलिस थे ।”

“हूं ।”
“अब आइडेंटिटी चेंज हो जाने से ताल्‍लुकात तो चेंज नहीं हो जाते न !”
“मतलब ?”
“डीसीपी साहब के लोकल फ्रेंड तो तुम फिर भी रहे न !”
नीलेश खामोश रहा ।
 
“एक लोकल बार बाउंसर का फ्रेंड डीसीपी ! मैने दो में दो जोडे़ और बडे आराम से जवाब …छत्‍तीस निकाल लिया ।”
“ग्रेट !” - भीतर से चिंतित नीलेश प्रत्‍यक्षत: उपहासपूर्ण स्‍वर में बोला - “सिग्रेट पीते हो, मेहता सा‍हब ?”
“आम हालात में नहीं ।”
“खास हालात क्‍या हुए ?”
“कोई पिलाये ।”
नीलेश फिर हंसा, उसने जेब से अपना पैकेट निकाला और उसे सिग्रेट पेश किया । उसने पहले उसका और फिर अपना सिग्रेट सुलगाया ।

“थैंक्‍यू ।” - मेहता बोला ।
“वैलकम !”
मेहता ने एक बार दायें बायें देखा और फिर दबे स्‍वर में बोला - “मैं आइलैंड के करप्‍ट निजाम के खिलाफ हूं । उस त्रिमूर्ति के खिलाफ हूं जो आजकाल यहां ट्रिपल एम के नाम से मशहूर है । एक ही दुश्‍मन के दुश्‍मन दोस्‍त होते हैं । हाथ मिलाओ, पार्टनर ।”
नीलेश ने गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाया ।
एकाएक उसके दिलोदिमाग से बोझ हट गया था ।
मंजुनाथ मेहता ठीक आदमी था, भरोसा करने के लायक आदमी था ।
“मुम्‍बई पुलिस के टॉप ब्रास का फेरा लगा है” - मेहता सिग्रेट का कश लगाता बोला - “उम्‍मीद है जल्‍दी ही इधर कोई उथल-पुथल होगी ।”

“डीसीपी साहब की बात कर रहे हो ?”
“और जायंट कमिश्‍नर साहब की, जो अभी नेपथ्‍य में हैं ।”
नीलेश ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“पत्रकार हूं, भई, छोटी जगह का छोटा पत्रकार हूं, लेकिन सूंघ तो पत्रकारों वाली है न बराबर !”
“जो कोस्‍ट गार्ड्स की छावनी तक मार कर गयी !”
“अब है तो ऐसा ही कुछ कुछ ।”
“कमाल है !”
“मैं तुम से तुम्‍हारी असलियत के बारे में सवाल नहीं करुंगा । खुद बताना चाहोगे तो मेरा जवाब होगा मैं नहीं सुनना चाहता । फिर भी बताओगे तो हाथ के हाथ भूल जाऊंगा । क्‍या समझे ?”

“वही, जो तुम समझाना चाहते हो । थैंक्‍यू ।”
“पार्टनर, केस में तुम्‍हारी दिलचस्‍पी तो प्रत्‍यक्ष है । राय क्‍या है तुम्‍हारी उसके बारे में ?”
“ऐसे केस के बारे में” - नीलेश लापरवाही से बोला - “मेरी क्‍या राय होनी है जो पहले ही क्‍लोज हो चुका है ! कातिल पुलिस के कब्‍जे में है, अपना जुर्म कबूल कर चुका है, इकबालिया बयान तक दर्ज करा चुका है, और क्‍या चाहिये पुलिस को !”
“कातिल, यानी कि वो कनफर्म्‍ड अल्‍कोहलिक पाण्‍डेय !”
“जानते हो उसे ?”
“मैं क्‍या, आइलैंड के परमानेंट बाशिंदे तकरीबन सब जानते हैं। इतना काबिल इलैक्‍ट्रीशियन है, बाटली से बर्बाद है । बाटली की वजह से काम में कोताही करता है । कोई मुंह मांगी फीस के वादे पर काम के लिये बुलाये, और वो महकता हुआ पहुंचे तो कोई दोबारा बुलायेगा ?”

नीलेश ने इंकार में सिर हिलाया ।
“किसी अनाड़ी से, नौसिखिये से, अपना काम करा लेगा, पाण्‍डेय को फिर नहीं बुलायेगा। इसी वजह से इतने हुनरमंद आदमी को रोकडे़ का सदा तोड़ा रहता था । कभी चार पैसे ज्‍यादा कमा लेता था तो कोशिश करता था कि चार दिन की इकट्‌ठी ही पी ले ।”
“तौबा !”
“तुम्‍हें महाबोले की इनवैस्टिगेशन से इत्तफाक है कि वो कातिल है ?”
“हो सकता है, नहीं भी हो सकता, बाटलीमार के मिजाज का क्‍या पता लगता है !”
“पार्टनर, डिप्‍लोमैटिक जवाब न दो ।”
“तुम अपने अखबार में छाप दोगे ।”
“पहले स्‍ट्रेट जवाब दो, फिर जवाब दूंगा इस बात का ।”

“नहीं हो सकता ।”
“उसे फंसाया जा रहा है ? बलि का बकरा बनाया जा रहा है ?”
“हां ।”
“अब जवाब देता हूं मैं तुम्‍हारे सवाल का । मैं ये बात अपने अखबार में छापूंगा तो महाबोले मेरी वाट लगा देगा । मुझे अखबार छापने लायक नहीं छोडे़गा । मैं दरिया में रह के मगर से वैर नहीं कर सकता ।”
“कमाल है ! पत्रकार तो बडे़ निर्भीक होते हैं !”
“वो, जिनके पावरफुल सरपरस्‍त होते हैं जिनके अखबारों के मालिकान ऐसे बडे़ बडे़ इंडस्ट्रियलिस्‍ट्स होते हैं जो प्राइम मिनिस्‍टर से हाथ मिलाते हैं, होम मिनिस्‍टर के साथ उठते बैठते हैं । और मैं मंजूनाथ मेहता ! बोले तो क्‍या पिद्दी, क्‍या पिद्दी का शोरबा !”

“मैं तुम्‍हारी साफगोई की दाद देता हूं ।”
“मैं तुम्‍हारी दाद कुबूल करता हूं । अब बोलो, क्‍यों तुम समझते हो कि पाण्‍डेय बेगुनाह है !”
“इस शर्त पर बोलता हूं कि खाली सुनोगे, जो सुनोगे उसका कैसा भी कोई इस्‍तेमाल नहीं सोचने लगोगे ।”
“आई प्रामिस, पार्टनर ।” - उसने निहायत संजीदगी से अपने गले की घंटी को छुआ ।
नीलेश ने सब बयान किया जो जाहि‍र करता था कि पाण्‍डेय कातिल नहीं हो सकता था ।
“देवा !” - मेहता नेत्र फैसला बोला - “नत्‍था मरेगा ।”
“क्‍या बोला ?”
“आई एम सारी । पाण्‍डेय मरेगा । पुलिस केस बनाती है, सजा नहीं देती । सजा देना कोर्ट का काम है जहां मुलजिम को पेश किया जाना लाजमी होता है । जो कुछ तुमने कहा है, उसकी रू में कोर्ट में पाण्डेय के खिलाफ केस पांच मिनट नहीं ठहरने वाला । इस हकीकत से महाबोले नावाकिफ हो, ये नहीं हो सकता । लिहाजा केस कोर्ट में पहुंचेगा ही नहीं ।

“ऐसा कैसे होगा ?”
“मुलजिम लॉकअप में पंखे से लटका पाया जायेगा । महाबोले बयान देगा अपने निश्‍चित अंजाम से घबरा कर खुदकुशी कर ली । ईजी !”
“तौबा !”
“कहते हैं दुनिया में नहीं जिसका कोई उसका खुदा है । पता नहीं ये बात बेचारे पाण्डेय पर लागू होती है या नहीं !”
“आने वाला वक्‍त बतायेगा ।”
“यानी महाबोले आने वाला वक्‍त है !”
“कमाल के आदमी हो ! कमाल की बातें करते हो !”
उसने सिग्रेट का आखिरी कश लगाया और उसे परे उछाल दिया ।
“चलता हूं ।” - फिर बोला - “बहुत खुशी हुई तुमसे मिल कर । कभी आफिस आना । टाउन हाल के ऐन सामने है । टाउन हाल मालूम ?”

“मालूम ।”
“उसके सामने सैकण्ड फ्लोर पर । आइलैंड न्यूज । बोर्ड लगा है । आते जाते दर्शन देना कभी ।”
“जरूर ।”
करीब खड़े अपने स्कूटर पर सवार होकर वो वहां से रुखसत हो गया ।
नीलेश अपनी कार में सवार होने ही लगा था कि आबादी की ओर से एक वैगन-आर वहां पहुंची और उसकी आल्टो के करीब आ कर रुकी ।
कार में श्यामला मोकाशी सवार थी ।
नीलेश ठिठका खड़ा रहा ।
श्यामला कार से बाहर निकली । उसकी निगाह दायें बायें घूमी और फिर नीलेश पर आकर ठिठकी ।
नीलेश ने उंगली से पेशानी छू कर उसका अभिवादन किया और फिर नीलेश उसके करीब पहुंचा ।

“हल्लो !” - वो मुस्कराता हुआ बोला ।
हल्लो का जवाब श्यामला ने जबरन मुस्करा कर दिया ।
“इस वक्‍त कुछ और भी मांगता तो मिल जाता ।”
श्यामला की भवें उठीं ।
“तुमसें मिलना चाहता था । सोच रहा था तुम्हारे घर जाना मुनासिब होगा या नहीं !”
“क्यों मिलना चाहते थे, सरकारी आदमी साहब ?”
“क्या बोला ?”
“क्या सुना ?”
“म-मैं सरकारी आदमी !”
“हां ।”
“वो कौन होता है ?”
“जो सरकार के लिये काम करता है । जैसे जासूस, भेदिया, सीक्रेट एजेंट, अंडरकवर आपरेटर ।”
“वो मैं ?”
“हां ।”
“कौन बोला ऐसा ?”
“कोई तो बोला ही !”

“तुम्हारा पिता बोला । मोकाशी साहब ने ऐसा कहा ?”
“तो क्या गलत कहा ! बहुत बढि़या कल्टीवेट किया मेरे को अपने मकसद की खातिर ! बाकायदा ट्रेनिंग मिलती होगी ऐसे कामों की ।”
“तुम मुझे गलत समझ रही हो ।”
“क्या गलत समझ रही हूं मैं ?”
“ये कि मैंने किसी नापाक मकसद से तुम्हारे से ताल्लुकात बनाये ।”
“न सही । लेकिन जब ताल्लुकात बन गये तो नापाक मकसद भी सिर उठाने लगा । किसी के एक काम करते कोई दूसरा काम भी हो जाये तो ऐसा करने पर कोई पाबंदी तो नहीं लागू न ! या होती है ?”

नीलेश ने उत्तर न दिया ।
 
“मैंने तुम्हें सरकारी आदमी कहा, तुमने इधर उधर की दस बातें की लेकिन एक बार भी इस बात से इंकार न किया, मजबूती से न कहा कि तुम नहीं हो सरकारी आदमी ।”
“किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं ।”
“अभी भी वही कर रहे हो । महाबोले ठीक कहता था...”
“ओह ! तो तुम्हारा कोच तुम्हारा पिता नहीं, महाबोले है !”
“...कि तुम मेरे पीछे पडे़ ही इसलिये थे कि मेरे जरिये उसकी बाबत-या मेरे पापा की बाबत-अपने मतलब की कोई जानकारी निकलवा सको । अच्छा उल्लू बनाया मुझे ।”
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।”

“मेरे से मुलाकात के पीछे तुम्हारा कोई नापाक मकसद नहीं था ?”
“नहीं था ।”
“तुम्हारी दिलचस्पी मुझ में और सिर्फ मुझ में थी ?”
“हां ।”
“हमारी मुलाकात में तुम्हारे किसी खुफिया मिशन का हाथ नहीं था ? वो प्योरली सोशल काल थी ?”
“हां ।”
“तो फिर जवाब दो तुम कौन हो ! अगर मेरे से कोई दिली लगाव महसूस करते हो तो सच सच बताओ तुम कौन हो !”
“मैं मैं हूं । नीलेश गोखले । एक्स एम्पलाई कोंसिका क्लब ।”
“तुम नहीं बाज आओगे । जाती हूं ।”
“अरे, रुको, रुको ।”
“किसलिये ?”
“मेरी बात सुनने के लिये ।”

“सुनाओ ।”
“जैसे तुमने मेरे पर इलजाम लगाया कि मैं सरकारी एजेंट हूं वैसे तुम भी इस वक्‍त महाबोले की एजेंट नहीं बनी हुई हो !”
“क्या !”
“या मोकाशी साहब की ! या उस रैकेटीयर फ्रांसिस मैग्‍नारो की !”
“यू आर टाकिंग नानसेंस ।”
“महाबोले का तो तुमने नाम भी लिया !”
“नाम लेने से मैं उसकी एजेंट हो गयी ?”
“न सही । वो तुम्हारा पुराना वाकिफ है, करीबी है, पति बनने वाला है...”
“वाट द हैल !”
“....जबकि मेरे से तुम अभी हाल ही में वाकिफ हुई हो । इस लिहाज से तुम्हारी निष्ठा महाबोले के साथ होगी या मेरे साथ ! जवाब दो !”

“जब सवाल ही नहीं समझ में आया तो जवाब क्या दूं ?”
“मैं तुमसे कुछ कहता हूं, कुछ कुबूल करता हूं, कुछ कनफैस करता हूं, तुम जा कर महाबोले को बोल दोगी ।”
“खामखाह !”
“अपने पिता को तो जरूर ही ।”
“नहीं ।”
“वादा करती हो कि अभी जो कुछ मेरे से सुनोगी, उसे अपने पास ही रखोगी, आगे कहीं - कहीं भी - पास आन नहीं करोगी ?”
“करती हूं ।”
“जैसे तुम समझती हो, कहती हो, कि तुम्हारे से मिलना मेरी कोई स्ट्रेटेजी थी, तसलीम करती हो कि इस वक्‍त मेरे से मिलना तुम्हारी-तुम्हारी और महाबोले कि-कोई स्ट्रेटेजी नहीं ?”

“करती हूं ।”
“ये महज इत्तफाक है कि मैं तुम्हें यहां मिला ?”
“हां ।”
“क्या काम था इधर तुम्‍हारा ?”
“कोई काम नहीं था । परेशानी थी । ड्राइव पर निकली थी । इस काम के लिये ये मेरा पसंदीदा रूट है । यहां से गुजर रही थी कि तुम्हारी आल्टो खड़ी दिखाई दे गयी । फिर तुम दिखाई दे गये ।”
नीलेश को वो सच बोलती लगी । झूठ बोल रही थी तो कमाल की अभिनेत्री थी ।
“मुझे उम्मीद थी” - वो बोली - “कि वकीलों जैसी इतनी जिरह के सिरे पर तुम कुछ कहोगे ।”
“कहता हूं । श्यामला, कहर, क्राइम, करप्शन कागज की नाव है जो बहुत देर तक बहुत दूर तक नहीं चलती । यूं समझो कि यहां की मशहूर त्रिमूर्ति की नाव ने जितना चलता था, चल चुकी । और मुझे दुख है कि उस नाव का एक सवार तुम्हारा पिता भी है । करप्शन का तरफदार तुम्हारा पिता है, कहर का झंडाबरदार महाबोले है, क्राइम का कारोबार समझो गोवानी रैकेटियर मैग्‍नारो की टैरीटेरी है ।”

“नानसेंस ! मैग्‍नारो कैसीनो चलाता है, तोप दिखा कर लोगों को उधर आने के लिये मजबूर नहीं करता । ये टूरिस्ट टाउन है, ऐसी जगह पर वो पर्यटकों एंटरटेनमेंट का जरिया मुहैया कराता है तो क्या गुनाह करता है ?”
“तुम नादान हो । मुल्क के कायदे कानून को नहीं समझती हो । कैसीनो चलाने के लिये सरकार लाइसेंस जारी करती है जिसके लिये अप्लाई करना होता है, उसकी फीस भरना होता है । ये फैसला भी सरकार करती है कि कौन सी जगह पर कैसीनो होना चाहिये, कौन-सी जगह पर नहीं होना चाहिये । उस रैकेटियर मैग्‍नारो ने तो सारे फैसले खुद ही कर लिये ! काहे को ? इज ही अबोव दि लॉ ऑफ दि लैंड, दि गवर्नमेंट ! इज ही गॉड ! ऑर जीसस क्राइस्ट !”

श्यामला परे देखने लगी ।
“फिर लीगल जुए की - जैसे कि लॉटरी, हार्स रेसिंग, ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसा कांटैस्ट विनिंग पर कमाई पर टैक्स भरना होता है । मालूम !”
उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“वो नॉरकॉटिक्स समगलर है, डिस्ट्रीब्युटर है । आर्म्स डीलर भी बताया जाता है । हथियारों की गैरकानूनी खरीद कौन लोग करते हैं ? उग्रवादी । आतंकवादी । दंगई । डकैत । ऐसे लोगों को हथियार मुहैया कराना शुभ कारज है ! नॉरकाटिक्स का व्यापार, जो नौजवान नसल को निश्‍चित मौत की तरफ धकेलता है, शुभ कारज है !”
“तुम्हें क्या पता आइलैंड पर ये सब होता है ?”

“पाप का घड़ा फूटने दो-जो कि बस फूटने ही वाला है-फिर सबको पता होगा ।”
“ऐसा है भी तो क्या है ! जिसके करम हैं वो भुगतेगा ।”
“मैग्‍नारो ।”
“और कौन ?”
“उसको आइलैंड पर पनाह देने वाले कौन हैं ? प्रोटेक्शन देने वाले कौन हैं ? उसके काले कारनामों की पर्दादारी करने वाले कौन हैं ? काले कारोबार में बाकायदा उसके शेयरहोल्डर्स कौन हैं ? क्या नाम लेने की जरुरत है ?”
“म-मेरे पापा ऐसे नहीं है ।”
“औलाद के लिये कोई पापा ऐसा नहीं होता - ‘माई डैडी बैस्टैस्ट, माई डैडी ग्रेस्टैस्ट, माई प्योरैस्ट’ जैसा ही होता है - लेकिन एक मात्रा हट जाये तो पापा ही पाप बन जाता है ।”

“मेरे पापा की सदारत में आइलैंड ने तरक्‍की की है । यहां टूरिस्ट इन्फलक्स बढ़ा है । उसकी वजह से रेवेन्यू बढ़ा है । और आगे उसकी वजह से यहां खुशहाली आयी है ।”
“ये इलैक्शन कैम्पेन जैसे स्लोगन हैं जो तुम्हें पढ़ाये गये हैं, सिखाये गये हैं, रटाये गये हैं । करप्ट लोगों ने तुम्हारे माईंड को भी करप्ट कर दिया है । जुए से, नॉरकॉटिक्स से, हथियारों के गैरकानूनी व्यापार से खुशहाली नहीं आती, बर्बादी आती है । खुशहाली आती है तो मोमाशी-महाबोले-मैग्‍नारो की त्रिमूर्ति के लिये । कितने बेगुनाह लोग आये दिन होने वाली उग्रवादी घटनाओं में जान से जाते है ! कितने लोग हेरोइन, एलएसडी, एस्टेसी, कोकिन, फॉक्सी, जीएचबी, जैसे नशों के शिकार हो कर सरेराह मरते हैं । कौन लोग है इतनी मौतों के लिये जिम्मेदार ! कौन हैं लाशों के सौदागर ! कौन हैं जो नौजवान नसल को को चरस के सिग्रेट, हेरोइन की पुड़िया, एस्टेसी की गोली पहले फ्री थमाते हैं, फिर जब लत मजबूत हो जाती है तो अंधाधुंध चार्ज करते हैं । जो चार्ज नहीं दे पाते, वो मजबूरन क्राइम की राह पर चलते हैं । एक गोली, एक पुड़िया, एक इंजेक्शन की खातिर चाकू घोंप देते हैं, गोली मार देते हैं । कौन हैं जो टैरेरिस्ट्स को हथियारबंद करते है ! क्या ऐसे लोग शरेआम चौराहे पर फांसी पर लटका देने के काबिल नहीं ? तुम्हें इस बात पर अभिमान है कि तुम्हारा महान पापा ऐसे लोगों में से एक है ?”
 
“मेरे पापा ऐसे नहीं हैं ।” - वो कांपती आवाज में बोली, उसकी आंखें डबडबा आई ।
“जब भरम टूटेगा तो खून के आंसू रोना पड़ेगा ।”
“यू आर एग्जैजरेटिंग । बढ़ा चढ़ा कर कह रहे हो ।”
“अब मैं क्‍या कहूं !”
“तुम बर्बादी का पैगाम ले कर आइलैंड पर आये हो । मौत का फरिश्ता बन कर यहां पहुंचे हो ।”
“मैं !”
“हां, तुम ।”
“मौत का फरिश्ता !”
“आफकोर्स ।”
“बेचारी रोमिला सावंत बेवजह जान से गयी, उसकी मौत की वजह मैं !”
“तुम जानते हो कातिल गिरफ्तार है ।”
“लेकिन वजह मैं ! क्योंकि मैं बर्बादी का पैगाम ले कर यहां आया ! मौत का फरिश्ता बन कर यहां पहुंचा !”

“मैं तुमसे बहस नहीं करना चाहती ।”
“मैं करना चाहता हूं । जो गिरफ्तार है, वो कातिल नहीं है ।”
“तुम्हारे कहने से क्या होता हैं ?”
“होता है । इसीलिये कह रहा हूं ।”
“तो आइलैंड का कोई भी एक बाशिंदा उसकी मौत की वजह हो सकता है । किसी एक जने की नापाक हरकत के लिये सारे आइलैंड को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता । सारे आइलैंड के वजूद पर कालिख नहीं पोती जा सकती ।”
“तुम ऐसा कह सकती हो क्योंकि तुम जानती नहीं हो वो लड़की असल में कौन थी और इस आइलैंड को क्या समझ कर यहां आयी थी !”

“पहेलिया न बुझाओ ।”
“वो लड़की कालगर्ल थी और कोई ये समझा कर उसे गोवा से यहां लाया था कि यहां उसके धंधे के बैटर प्रास्पैक्ट्स थे । ये खास किस्म के मौजमेले के शौकीन पर्यटकों का बड़ा अड्‍डा था इसलिये वो यहां चांदी काट सकती थी । और इस सोच के तहत खास तौर से यहां पहुंची वो अकेली भी नहीं थी । ये जगह प्रास्टीच्यूट्स की बड़ी वर्क प्लेस है और लोकल एडमिनीस्ट्रेशन को उनके यहां फंक्शन करने से कोई ऐतराज नहीं, कोई परेशानी नहीं, क्योंकि इस वजह से भी यहां टूरिस्ट इंफलक्स और बढ़ता है । कर्टसी लोकल एडमिनिस्ट्रेशन, कोनाकोना आइलैंड बैंकाक का कोना बन गया हुआ है । अब कहो जो कहना है अपने आइलैंड के ऊंचे किरदार की बाबत ।”

“सब स्टंट है, पब्लिसिटी है, बल्कि आइलैंड और उसके बाशिंदों के खिलाफ साजिश है । ये एक डीसेंट जगह है जहां डीसेंट लोग रहते है । मेरे पापा यहां के सम्मानित व्यक्‍ति है इसलिये हमेशा इलैक्शन में जीतते हैं । महाबोले सरकारी आदमी है, मैग्‍नारो बाहरी आदमी है, मेरे पापा यहां के लोगों के इलैक्टिव रिप्रेजेंटेटिव हैं । अगर उनका किरदार बेदाग नहीं है तो क्यों पब्लिक उन्हें वोट देती है ? क्यों उन्हें रिजेक्ट नहीं करती ?”
“जब सभी कुछ करप्ट है, जब आवां ही खराब है तो करप्शन से इलैक्शन जीत जाना क्या बहुत बड़ी बात है !”

“और इस सो काल्ड करप्ट जगह पर सांस लेते लेते तुम समझने लगे हो कि तुम मुझे मेरे पापा के खिलाफ करप्ट कर सकते हो !”
“मैं महज तुम्हारी आंखें खोलने की कोशिश कर रहा हूं ।”
“गैरजरुरी कोशिश कर रहे हो । मेरी आंखें पहले से खुली हैं ।”
“ठीक है फिर ।”
“हां, ठीक ही है । थोड़ी देर के लिये मुझे लगा था तुम्हारे मेरे साथ में किसी अदृश्य शक्‍ति का हाथ था, ये साथ और मजबूत हो सकता था क्योंकि इसमें ऊपर वाले की रजा थी । लेकिन लगता है गलत लगा था । हम दोनों एक राह के राही नहीं हो सकते । जो शख्स मेरे पिता के खिलाफ हो, वो मेरी तरफ नहीं हो सकता । जिसका मेरे पिता का कोई अहित करने का मंसूबा हो, वो मेरा कोई हित नहीं कर सकता ।”

“लेकिन, श्यामला...”
“एनफ ! एनफ आफ दैट । ये हमारी आखिरी मुलाकात है इसलिये गुडबाई कबूल करो । हमेशा के लिये ।
अंतिम शब्द कहते कहते उसका गला रुंध गया । एकाएक वो घूमी, कार में सवार हुई और कार को वहां से उड़ा ले चली ।
बुत बना वो उसे जाता देखता रहा ।
पितृभक्‍ति की बड़ी उम्दा मिसाल पेश करके वो लड़की वहां से गयी थी ।
***
 
नीलेश सेलर्स बार पहूंचा ।
परसों रात के अंधेरे में वो वहां ठीक से कुछ नहीं देख पाया था, न ही ऐसा कुछ करने की तब जरुरत थी। तब उसकी तवज्जो का मरकज सिर्फ और सिर्फ रोमिला सावंत थी जिससे मिलने के वाहिद काम से वो वहां पहुंचा था ।

उस घड़ी सूरज डूबने में अभी टाइम था इसलिये उसकी निगाह पैन होती हुई चारों तरफ घूमी । तब उसने महसूस किया कि वो जगह बिल्कुल ही उजाड़ नहीं थी । सड़क से पार, उससे परे हट कर, उससे काफी ऊंचे लैवल पर छितरे हुए कुछ मकान थे जो बसे हुए जान पड़ते थे ।
बार का ग्लास डोर ठेल कर वो भीतर दाखिल हुआ ।
हाल उस घड़ी लगभग खाली पड़ा था, सिर्फ दो तीन मेजों पर ही कुछ लोग बैठे बीयर और बीयर पीते गप्‍पें लडा़ते दिखाई दे रहे थे ।
वो बार काउंटर पर पहुंचा ।
बार से पार जो व्यक्‍ति मौजूद था, वो अपनी तरफ से चलता उसके सामने पहुंचा ।

“क्‍या मांगता है ?” - वो बोला ।
“बोलेगा । मैं अभी इधरीच है । अभी ड्रिंक से पहले कुछ और मांगता है ।”
नीलेश उस व्‍यक्‍ति जैसी ही जुबान उससे भाईचारा जोड़ने के लिये बोल रहा था ।
“क्‍या ?”
“रामदास मनवार ।”
“मनवार से क्‍या मांगता है ?”
“बात करना मांगता है । परसों लेट लेट नाइट में मैं उसके रेजीडेंस पर फोन लगा कर उससे बात किया, अभी और बात करना मांगता है ।”
“तुम वो भीङू है जो रात को उस कड़का छोकरी की बाबत पूछता था जो इधर किसी फिरेंड का वेट करता था, जिसको मेरे को बाई फोर्स इधर से बाहर करना पड़ा था ?”

“हां । और मैं वो फ्रेंड है जिसका वो रात को इधर वेट करता था, जो टेम पर इधर न पहुंच पाया ।”
“ओह ! मैं है रामदास मनवार ।”
नीलेश ने उससे हाथ मिलाया ।
“आई एम सारी फार दि गर्ल ।” - मनवार खेदपूर्ण स्‍वर में बोला - “मेरे को हिंट भी होता कि मेरे पीठ फेरते ही उसके साथ ये कुछ होना था तो मैं उसको कभी आउट न बोलता । थोड़ा टेम और बार खोल के रखता, उसका फिरेंड-जो कि अभी मालूम पड़ा कि तुम थे-आ जाता तो ये टेम वो जिंदा होती ।”
“तुम्‍हें क्‍या पता था आगे क्‍या होने वाला था !”

“वही तो ! बस यहीच बात मैं मेरे को समझाता है वर्ना गिल्‍टी फील करता है कि थोड़ा टेम और क्‍यों न रुक गया !”
“पीछे वो अकेली यहां खड़ी रही ?”
“क्‍या करती ! जब फिरेंड इधर आने वाला था तो इधरीच वेट करती न !”
“तुमने उसे लिफ्ट आफर की थी ?”
“बरोबर । फोन पर बोला न मैं ! मैं तो ये भी बोला बरोबर कि उसका वास्‍ते मैं आउट आफ वे जाने को तैयार था । जिधर बोलती, उधर ड्रॉप करता । पण वो नक्‍की बोली । बोली, लिफ्ट नहीं मांगता था । इधरीच ठहरने का था ।”

“किसी सवारी के बिना वो इधर पहुंच कैसे गयी ?”
“कोई आटो, टैक्‍सी किया होगा...”
“नहीं हो सकता । जब बार के ड्रिंक का बिल भरने के लिये उसके पास रोकड़ा नहीं था तो आटो, टैक्‍सी का बिल भरने के लिये किधर से आता !”
“तो किसी ने लिफ्ट दिया ?”
“यही मुमकिन जान पड़ता है । पहुंची कब थी ?”
“क्‍लोजिंग टाइम से कोई दो सवा दो घंटे पहले । ग्‍यारह बजे । टैन मिनट्स ये बाजू या टैन मिनट्स वो बाजू ।”
“मिजाज कैसा था ?”
“परेशान थी । डरी हुई भी लगती थी । बात बात पर चौंकती थी ।”

“इधर किसी से मिली ? किसी से कोई बातचीत की ?”
“नहीं । अक्‍खा टेम वो उधर-पब्लिक टेलीफोन के करीब बार स्‍टूल पर बैठी रही, बेचैनी से पहलू बदलती रही । जिस टेम भी ग्‍लास डोर खुलता था, उसकी निगाह अपने आप ही उधर उठ जाती थी, फिर चेहरे पर और उदासी और नाउम्‍मीदी छा जाती थी ।”
“उसके कत्‍ल के इलजाम में एक भीङू गिरफ्तार है । मालूम ?”
“हां । हेमराज पाण्‍डेय । छापे में पढ़ा न ! फोटू भी देखा ।”
“रात को उसको इधर कभी मंडराते देखा हो ! बार के अंदर या बाहर !”
“नहीं । देखा होता तो छापे में फोटू देखने के बाद मेरे को वो भीङू जरुर याद आया होता । किधर बाहर अंधेरे में छुप के खड़ेला हो तो...कैसे दिखाई देगा !”

“कोई पुलिस कार देखी ?”
“पुलिस कार !”
“पैट्रोल कार ! जो गश्‍त लगाती है ! या कोई पुलिस की जीप !”
“न ! रात के उस टेम इधर ट्रैफिक न होने जैसा । इसी वास्‍ते तो मैं उस लड़की को लिफ्ट आफर किया । वापिसी में मेरे को रोड पर खाली एक ट्रक मिला था जिसको कि घर पहुंचने की जल्‍दी में मैंने ओवरटेक किया था ।”
“हूं । कोई और बात जो तुम्‍हें जिक्र के काबिल लगती हो !”
वो सोचने लगा ।
“अभी ड्रिंक मांगता है ?” - फिर एकाएक यूं बोला जैसे कोई भूली बात याद आयी हो ।

“मांगता है । लार्ज जानीवाकर ब्‍लैक लेबल विद हाफ वाटर, हाफ सोडा ।”
“सारी ! इधर फॉरेन लिकर की क्‍लायंटेल नक्‍को । रखता नहीं है ।”
“तो ?”
“दि बैस्‍ट आई कैन आफर यू इज वैट-69 ।”
वो भी तो फॉरेन लिकर है ?”
“नाट ओरीजिनल । जो बाहर से बाटल्‍स आता है, वो नहीं । जो इधर ही बनती है, बाहर से मंगाये गये कंसंट्रेट्स से । कंसंट्रेट्स को स्‍पैशल लैवल तक डाइल्‍यूट करके बाटलिंग इधरीच होती है ।”
“अच्‍छा । मेरे को नहीं मालूम था ।”
“ऐसे और भी ब्रांड हैं कंसंट्रेट्स मंगा कर जिनकी बाटलिंग इंडिया में होती है । जैसे टीचर्स, ब्‍लैक डॉग, हण्‍डर्ड पाइपर्स, ब्‍लैक एण्‍ड वाइट ।”

“कमाल है । आके ! वैट-69 ।”
मनवार ने उसे ड्रिंक सर्व किया ।
नीलेश ने चियर्स के अंदाज से गिलास ऊंचा किया, विस्‍की का एक घूंट भरा और गिलास को वापिस अपने सामने बार काउंटर पर रखा ।
“कुछ याद आया ?” - फिर पूछा ।
 
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