Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - Page 8 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट

“एक बात है तो सही सोचने लायक ।” - विचारपूर्ण मुद्रा बनाये वो बोला ।
“क्‍या ?”
“रात जब तुम लड़की से मिलने के वास्‍ते इधर आया था तो किधर से आया था ?”
“मेन हाइवे से ही आया था जो कि न्‍यू लिंक रोड कहलाता है ।”
“ठीक । इधर लड़की वेट करती थक गयी तो उसने बोले तो पैदल, वाक करके घर पहुंचने का फैसला किया । इस लिहाज से उसको न्‍यू लिंक रोड पर होना चाहिये था जहां उसको कोई लिफ्ट मिल जाने का भी चानस था । वो रूट फिफ्टीन पर काहे को पहुंच गयी ?”

नीलेश ने संजीदगी से उस बात पर विचार किया ।
“दो ही बातें हो सकती हैं ।” - फिर बोला - “या तो रात के टाइम भटक गयी या उसने समझा कि वो शार्ट कट था ।”
“ऐन ओपोजिट है ।”
“क्‍या मतलब ?”
“लांग कट है । आबादी में पहुंचने के लिये छोटा रास्‍ता न्‍यू लिंक रोड है ।”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“रुट फिफ्टीन पर कोई नहीं जाता ?”
“बहुत लोग जाते हैं । वो सड़क सीनिक ब्‍यूटी के लिये मशहूर है और आशिक-माशूकी के लिये मशहूर है । बोले तो आइलैंड की लवर्स लेन है । नौजवान जोड़े उधर हाथापायी, चूमाचाटी के लिये जाते हैं । और भी कुछ करें तो किसी को खबर नहीं लगती । जनरल ट्रेफिक के लिये जनरल रोड न्‍यू लिंक रोड है जो कि काफी बाद में बनी थी, उसके बनने से पहले अक्रॉस दि आइलैंड जो एक रोड थी वो रुट फिफ्टीन थी ।”

“तो रुट फिफ्टीन पर कैसे पहुंच गयी ?”
“मेरे को तो एक ही वजह सूझती है ।”
“क्‍या ?”
“खुदकुशी करने के लिये ।”
“क्‍या !”
“वो बहुत परेशान थी पण क्‍यों परेशान थी, ये तो वहीच जानती थी ।”
“तुम्‍हारा वजह को कोई अंदाजा ?”
“प्रेग्‍नेंट होगी । ब्‍वायफ्रेंड ने धोखा दिया, मदद की फरियाद तुम्‍हारे से लगाई, तुम पहुंचे नहीं, हैरान परेशान रूट फिफ्टीन पर चल दी । उसकी बैडलक खराब कि उधर कहीं वो कनफर्म्‍ड बेवड़ा पाण्‍डेय मिल गया जिसने अकेली पाकर उसे लूट लिया और फिर जो काम लड़की ने खुद करना था, वो उसने कर दिया ।”

“तुमने दिमाग का घोड़ा बढिया दौड़ाया है पर इसमें एक फच्‍चर है ।”
“क्‍या ?”
“लड़की प्रेग्‍नेंट नहीं थी ।”
“नहीं थी !”
“पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि वो प्रेग्‍नेंट नहीं थी ।”
“तुम्‍हें क्‍या मालूम पोस्‍टपार्टम रिर्पोट क्‍या कहती है !”
“था एक जरिया मेरा मालूम करने का ।”
“बोल तो काफी जुगाङू आदमी हो ।”
नीलेश हंसा ।
“प्रेग्‍नेंट न सही” - मनवार बोला - “ऐसीच सीरियस कोई और लफड़ा होगा उसका । जिस लड़की का लाइफ का लाइफ स्‍टाइल रात के एक बजे तक बार में अकेले बैठने की इजाजत देता हो, उसकी लाइफ लफड़ों का कोई तोड़ा होगा ?”
“ठीक !”
“बाहर बारिश होने लगी है । कस्‍टमर साला पहले ही नहीं है, अब आयेगा भी नहीं ।”
नीलेश ने बाहर की ओर निगाह उठाई ।
ग्‍लास डोर के बाजू में ही प्‍लेट ग्लास की विशाल विंडो थी जिससे बाहर का अच्‍छा नजारा किया जा सकता था । बाहर बारिश नहीं, मूसलाधार बारिश हो रही थी ।
“स्‍टॉम वार्निंग पहले से है ।” - मनावार बड़बड़ाया - “आगे किसी दिन साली ऐसीच बारिश स्‍टॉर्म बन जायेगी ।”
“वो जो सामने सड़क पार हाइट पर पेड़ों के बीच मकान हैं...”
“कॉटेज ।”
“ओके, कॉटेज । वो काफी हैं उधर ?”

“हैं कोई दर्जन भर । यहां से तो तीन ही दिखते हैं, बाकी आगे ढ़लान पर हैं ।”
“उन तक पहुंचने का रास्‍ता किधर से है ?”
“दायें बाजू सड़क पर कोई तीन सौ गज आगे जाने का । उधर ओकवुड रोड । वो उन काटेजों के बाजू से गुजरती है ।”
“थैंक्‍यू ।”
नीलेश ने अपना गिलास खाली किया, बिल चुकता किया और वहां से बाहर निकला ।
कार पर सवार होकर वो निर्देशित रास्‍ते पर बढ़ा ।
ओकवुड रोड कच्‍ची-पक्‍की, ऊबड़-खाबड़ सड़क निकली जिस पर कार चलाता वो कॉटेजों तक पहुंचा । उसने कार को एक जगह खड़ा किया और फिर पहले कॉटेज पर पहुंचा ।

बारिश बदस्‍तूर हो रही थी, सिर्फ दस गज का फासला तय करने में वो तकरीबन भीग गया था ।
कॉटेज के बाहरी जाली वाले दरवाजे पर उसे कहीं कालबैल न दिखार्इ दी । उसने दरवाजे पर दस्‍तक दी ।
कोई जवाब न मिला ।
बारिश से बचता, दीवार के साथ साथ चलता वो पिछवाड़े मे पहुंचा ।
व‍हां भी उसे सन्‍नाटा मिला ।
लगता था कॉटेज आबाद नहीं था ।
वो फ्रंट में वापिस आया, उसने और अगले कॉटेज तरफ निगाह दौड़ाई जो कि वहां से कोई दो सौ गज दूर था ।
कार पर सवार होकर वो उस कॉटेज तक पहुंचा जो कि कदरन बड़ा था ।

वहां घंटी बजाने की जरूरत ही न पड़ी । उसने सामने के बरामदे में बैठी एक अधेड़ महिला चाय चुसक रही थी और बारिश का आनंद ले रही थी ।
नीलेश ने कार की खिड़की का शीशा गिरा कर उसका अभिवादन किया और उच्‍च स्‍वर में बोला - “मैडम, मैं एक मिनट आपसे बात करना चाहाता हूं ।”
“क्‍या बात ?” - वो सशंक स्‍वर में बोली ।”
“बोलूंगा न !”
महिला के चेहरे पर अनिश्‍चय के भाव आये ।
“मैं आपका ज्‍यादा वक्‍त नहीं लूंगा ।” - अनुनयपूर्ण स्‍वर में बोला - “सिर्फ दो तीन मिनट ।”
“ओके ।” - वो बोली - “करो ।”

“यहीं से ?”
उसने उस बात पर विचार किया ।
“यहां आ जाओ ?” - फिर बोली ।
नीलेश कार से उतरा और लपक कर बरामदे में पहुंचा ।
“मैं नीलेश गोखले ।” - वो अदब से बोला ।
“मिसेज जगतियानी ।” - वो बोली - “बैठो ।”
“थैंक्‍यू ।” - वो उसके सामने बैंत की एक कुर्सी पर बैठा ।
“मैं तुम्‍हें चाय आफर नहीं कर रही हूं” - महिला बोली - “क्‍योंकि फिर तुम अपने ‘सिर्फ दो तीन मिनट’ वाले वादे पर खरे नहीं उतर पाओगे ।”
“हा हा । मजाक किया !”
“जहमत बचाई । बोलो अब, क्‍या चाहते हो ?”

“मैडम, वो उधर सड़क पर एक बार है-सेलर्स बार-जो यहां से दिखाई देता है । सड़क के मुकाबले में आप हाइट पर हैं इसलिये उम्‍मीद है यहां के अलावा कॉटेज के फ्रंट से भी दिखाई देता होगा ।”
“तो ?”
“मेरा उसी की बाबत एक सवाल है । अगर आप लेट स्‍लीपर हैं...”
“कितना लेट ?”
“पास्‍ट मिडनाइट !”
“नो । इधर मैं, मेरा हसबैंड और एक मेड है, कोई खास वजह न हो तो ग्यारह बजे से पहले हम सब सो जाते हैं ।”
“ओह !”
“लोकिन मिसेज परांजपे बेचारी को अनिद्रा की बीमारी है, वो लेट नाइट-बल्कि लेट लेट नाइट मजबूरन जागती है । आज मार्निंग में इधर आयी थी, उस लड़की की बात करती थी जिसका रूट फिफ्टीन पर मर्डर हुआ । तभी बोली बेचारी कि रात को तो कहीं तीन बजे जा कर उसको नींद आयी ।”

“मिसेज परांजपे कौन ?”
“वो जो हमारे से अगला कॉटेज है, परांजपेज वहां रहते हैं ।”
“मर्डर की क्‍या बात थी ?”
“उस रात को कोई डेढ़ बजे के करीब उसने एक पुलि‍स जीप को सेलर्स बार पर पहुंचते देखा था । मेरे से पूछ रही थी कि क्‍या कातिल उधर से गिरफ्तार हुआ था ?”
“मिसेज परांजपे ने एक पुलिस जीप को परसों रात के डेढ़ बजे सेलर्स बार पर पहुंचये देख था !”
“यही बोला उसने मेरे को आज सुबह ।”
“इस वक्‍त वो घर पर होंगी ?”
“भई, अभी बारिश शुरू होने से पहले तो दिखाई दी थीं ।”

“थैंक्‍यू मैम ।” - नीलेश उठ खड़ा हुआ - “देखा लीजिये, मैंन तीन मिनट से ज्‍यादा नहीं लिये ।”
“काफी चालक हो !”
“जी !”
“मैंने बोला होता पुलिस जीप मैंने देखी थी तो टल के न देते ।”
नीलेश हंसा ।
अगले कॉटेज में रहती मिसेज परांजपे एक डाई किये हुए बालों वाली उम्रदराज औरत निकली । नीलेश ने उसे मिसेज जगतियानी का हवाला यूं दिया जैसे वो उसकी पुरानी वाकिफ हो । उस बात का वृद्धा पर असर हुआ, उसने उसे भीतर ड्राईंगरूम में ले जा कर बिठाया ।
“मैं आपका बहुत थोड़ा वक्‍त लूंगा ।” - नीलेश बोला ।
 
“काहे को ।” - वो विनोदपूर्ण स्‍वर में बोला - “वक्‍त का कोई तोड़ा मेरे को ?”
“तो परसों रात इंसोम्‍निया ने आपको आधी रात से भी बहुत बाद त‍क जगाया !”
“तीन बजे तक ।” - वो पशेमान लहजे से बोली - “रोज की बात है, कभी कभी तो सवेरा हो जाता है ।”
“कोई गोली-वोली नहीं खातीं ?”
“खाती हूं । सब हज्‍म ।”
“तो परसों रात आपने सेलर्स बार पर पुलिस जीप को पहुंचते देखा था ?”
“हां । मास्‍टर बैडरूम में मेरे हसबैंड सोते हैं, अपनी अनिद्रा के दौर में मै उधर रहूं तो उनकी नींद डिस्‍टर्ब होती है इसलीये उनके सो चुकने के बाद जब मुझे नींद नहीं आ रही होती तो अमूमन मैं ड्राईंगरूम में आ जाती हूं । कल भी मैं यहीं थी और वहां खिड़की के पास बैठी एक नावल पढ़ रही थी जिसमें मेरा बिल्‍कुल मन नहीं लग रहा था इसलीये मेरी निगाह बार बार खिड़की से बाहर की ओर भटक जाती थी । परसों मेरी तवज्‍जो सेलर्स बार की तरफ इसलिये ज्‍यादा जा रही थी क्‍योंकि परसों रात वो अपने नार्मल क्‍लोजिंग टाइम के बाद भी खुला था ।”

“आई सी ।”
“आखिर बार बंद हुआ था और मैंने रामदास मनवार को - जो कि बार का मालिक है - अपनी खटारा जेन पर वहां से रवाना होते देखा था । उसको गये अभी दो-तीन मिनट ही हुए थे कि एक पुलिस जीप वहां पहुंच गयी, तब मेरे खयाल से वहां क्‍लोज्‍ड बार के सामने सायबान के नीचे कातिल-जिसका नाम अब मुझे मालूम है कि हेमराज पाण्‍डेय है-मौजूद था जो उसकी बद्‍किस्‍मती कि पुलिस की निगाह में आ गया था...”
“आपके कैसे मालूम ?”
“कैसे मालूम ! भई, उसको थामने के लिये एक पुलिस वाला निकला न जीप में से !”

“आपने उसको पहचाना ?”
“वर्दी को पहचाना । क्‍योंकि जीप से निकलते वक्‍त उसने हैडलाइट्स आफ नहीं की थीं और वो उनके आगे से गुजरा था ।”
“उसने जा कर मुलजिम पाण्‍डेय को थाम लिया ।”
“हं-हां ।”
“आपने मुलजिम को भी देखा ?”
“वो कुछ क्षण खामोशी रही, फिर उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“लेकिन पुलिस ने” - फिर बोली - “किसी को थामा तो उधर बराबर । जीप में भी बिठाया लेकिन जो हुआ हैडलाइट्स की बैक में हुआ इसलीये मुझे हिलडुल ही दिखाई दी, हलचल ही दिखाई दी, कोई सूरत न दिखाई दी ।”
“फिर आप कैसे क‍हती हैं कि गिरफ्त में आने वाला शख्‍स पाण्‍डेय था ?”

“और कौन होगा ?”
“आपकी जानकारी में नहीं आया जान पड़ता, पाण्‍डेय को पुलिस ने जमशेद जी पार्क से गिरफ्तार किया था ।”
“फिर वो कौन था जिसको किसी बावर्दी पुलिस वाले ने सेलर्स क्‍लब पर पकड़ा था और जबरन जीप में बिठाया था ।”
“आप बताइये ।”
“मैं कैसे बताऊं ?”
“कोई ऐसी बात सोचिये, ध्‍यान में लाइये, जो उसकी आइडेंटिटी की तरफ इशारा करती हो लेकिन जिसकी तरफ पहले आपकी तवज्‍जो न गयी हो ! तवज्‍जो गयी हो तो जिसे पहले आपने अ‍हमियत न दी हो !”
वो सोचने लगी ।
नीलेश धीरज से उसके दोबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा ।

“मैंने एक चीख की आवाज सुनी थी ।” - एकाएक वो बोली ।
“वहीं से आती ?”
“हां ।”
“जो आपको यहां इतने फासले पर सुनाई दी ?”
“बहुत तीखी होगी न ! दूसरे, रात का सन्‍नाटा था । मद्धम सी आवाज यहां पहुंची ।”
“आई सी ।”
“उस वक्‍त मेरे को लगा था कि मैंने जनाना चीख की आवाज सुनी थी । लेकिन सुबह जब मुझे गिरफ्तारी की खबर लगी तो मुझे ये सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि रात को मुझे मुगालता लगा था । जरूर मैंने मर्दाना चीख की आवाज सुनी थी ।”
“मैडम, मैंने पहले ही अर्ज किया कि कातिल यहां सामने सेलर्स बार पर से नहीं, यहां से बहुत दूर जमशेद जी पार्क से गिरफ्तार किया गया था ।”

“तब मुझे नहीं मालूम था । अभी भी नहीं मालूम था ।”
“अब जब मालूम है तो क्‍या कहती हैं ?”
“मर्दाना चीख थी । फासले से आयी, धीमी सुनाई दी इसलीये लगा कि जनाना थी ।”
“चीख मर्दाना थी लेकिन कोई मर्द न देखा !”
“न । बोला न, उसने हैडलाइट्स की रोशनी को क्रॉस नहीं किया था, जैसे कि पुलिस वाले ने किया था । लेकिन अंधरे के बावजूद इतना मैंने फिर भी देखा था कि पुलिस वाला किसी को जबरन जीप में सवार करा रहा था ।”
“किसी मर्द को ! जिसे तब आपने कातिल समझा !”

“हां ।”
“किसी औरत को नहीं ?”
“औरत ! औरत का रात की उस घड़ी-जबकि बार भी बंद हो चुका था-क्‍या काम !”
“तफ्तीश से ये स्‍थापित हुआ है कि मकतूला बार बंद हो चुकने के बाद भी उधर किसी का इंतजार करती थी ।”
“मकतूला बोले तो ?”
“जिसका कत्ल हुआ । रोमिला सावंत ।”
“कत्ल तो रूट फिफ्टीन पर हुआ ।”
“जहां हुआ, वो जगह सेलर्स बार से सिर्फ आधा किलोमीटर दूर है ।”
“लेकिन ये कैसे हो सकता है कि पुलिस ने बार के सामने से वो जो मतकूला करके तुम कुछ बोला...”
“मकतूला !”
“वही । कैसे हो सकता है रात पुलिस ने बार के सामने से मतकूला...मकतूला को पिक किया ? वो लड़की अगर पुलिस कस्‍टडी में थी तो उसका मर्डर कैसे हो गया ? वो पाण्‍डेय करके भीङू कैसे उसको खल्‍लास किया ?”

“सोचने की बात है ।”
“सोचो ।”
‘’आपको ये पक्‍का है जो वाहन आपने रात को बार के सामने आ कार रूकते देखा था, वो पुलिस जीप थी ?”
“हां, भई । पुलिस जीप मील से पहचानी जाती है । ये...बड़ा उस पर ‘पुलिस’ लिखा था । ऊपर लाल बत्ती थी ...”
“जल रही थी ?”
“नहीं ।”
“फिर भी आपको दिखाई दी ?”
“हां । वो बत्ती फ्रंट में होती है न ! इस वास्‍ते हैडलाइट्स की रिफ्लेक्‍शन में दिखाई दी ।”
“हैडलाइट्स में आपने पुलिस की खाकी वर्दी देखी, पहनने वाले की सूरत न देखी !”
“न । सूरत न देखी ।”

“रैंक पहचाना ?”
“रैंक बोले तो ?”
“बाजू पर एक, दो या तीन फीती थीं ? कंधों पर एक, दो या तीन स्‍टार थे ?”
“अच्‍छा वो ! नहीं, ये सब मेरे को नहीं दिखाई दिया था ।”
“अपने बंदी को जीप में जबरन बिठाने के बाद पुलिस वाले ने क्या किया था ?”
“कार को स्‍टार्ट किया था, उसको यु टर्न दिया था और जिधर से आया था, उधर वापिस लौट चला था ।”
“वापिस किधर ? रूट फिफ्टीन पर या न्यू लिंक रोड पर ?”
“ये मेरे को इधर से कैसे दिखाई देता !”
“ठीक ! कत्‍ल के बारे में आपका क्‍या खयाल है ?”
 
“ऐसे लाइफ जाना गलत है । पण ये बा‍हर से आने वाला छोकरी लोग भी तो…अभी क्‍या बोलूं मैं ! ...दे इनवाइट ट्रबल । ड्रिंक करती हैं, स्‍मोक करती हैं, सैक्‍सी ड्रेसिज पहनती हैं, कुछ वैसे ही दिखता है तो कुछ इरादतन दिखाती हैं । लेट नाइट में अकेली घूमती हैं । मेल लिबिडो को उकसाती, इनवाइट करती जान पड़ती हैं । दे आर रेडी केस फार रेप, फार मर्डर ।”
“रोमिला सावंत ऐसी लड़की थी ?”
“ये मरने वाली का नाम है ?”
“जी हां ।”
“बराबर ऐसी लड़की थी । तभी तो जान से गयी !”
“पर उसके कत्‍ल की वजह तो लूट बताई जाती है । कातिल की नजर उसकी फिजीकल असैट्स पर नहीं, उसकी मानीटेरी असैट्स पर थी ।”

“क्‍योंकि बेवड़ा था । सुना है फुल टुन्‍न था । जरा होश में होता तो पहले फिजीकल असैट्स पर घात लगता, बोले तो रेप करता, और फिर लूटता ।”
“मैडम, आपने बहुत सहयोग दिया लेकिन ये बात फिर भी क्‍ल‍ियर न हो सकी कि पुलिस वाले ने कल रात बार के सामने से जिसको जबरन जीप पर बिठाया था, वो कातिल था या मकतूला थी या कोई तीसरा ही शख्‍स था ।”
“जाकर थाने से पता करो ।”
“कैसे पता करूं ? थाने में दर्जनों की तादाद में पुलिस वाले हैं । एक एक से इस बारे में सवाल करना क्‍या मुमकिन होगा ? फिर सवाल करने पर क्‍या कोई जवाब देगा ? आप रैंक की शिनाख्‍त कर पायी होतीं तो बात जुदा थी ।”

“मेरे को खाली खाकी वर्दी दिखाई दी थी ।”
“बोला आपने । एक आखिरी सवाल । अपकी दूर की निगाह कैसी है ?”
“पर्फेक्‍ट है । सिक्‍स बाई सिक्‍स है ।”
“इस उम्र में...”
“क्‍या हुआ है मेरी उम्र को !”
“कुछ नहीं ।” - वो उठ खड़ा हुआ - “मैम, आई एम ग्रेटफुल फार दि कोआपरेशन । इजाजत चाहता हूं ।”
उसने अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
नीलेश वहां से रुखसत हुआ ।
मिसेज परांजपे के बयान से उसे कोई नाउम्‍मीदी नहीं हुई थी । उसे गारंटी थी जो पुलिस वाला पुलिस जीप पर रात के डेढ़ बजे बंद हो चुके सेलर्स बार पहुंचा था, वो इंस्‍पेक्‍टर अनिल महाबोले था और जिसे उसने जबरन जीप पर सवार कराया था, वो रोमिला सावंत थी ।

***
बारिश को शुरु हुए चौबीस घंटे हो गये थे और वो अभी बंद होने को नाम नहीं ले रही थी ।
फ्रांसिस मैग्‍नारो की शानदार स्‍पीड बोट कोनाकोना आइलैंड की ओर बढ़ रही थी ।
स्‍पीड बोट में तीन पैसेंजर सवार थे । रोनी डिसूजा व्‍हील सम्‍भाले था और उसके पीछे फ्रांसिस मैग्‍नारो और अनिल महाबोले मौजूद थे ।
“बारिश बहुत तेज है ।” - डिसूजा उच्‍च स्‍वर में बोला ताकि बारिश के शोर में उसकी आवाज दब न जाती - “हम आइलैंड के करीब हैं पण मेरे को अपना पायर दिखाई नहीं दे रहा ।”
“दीदे फाड़ के देखने का ।” - मैग्‍नारो झुंझलाये स्‍वर में बोला - “जब आइलैंड दिखाई दे रहा है तो साला पायर क्‍यों नहीं दिखाई दे रहा ?”

डिसूजा ने गर्दन आगे निकाल के सच में ही आंखें फाड़ फाड़ के सामने देखा ।
“इस बार पायर उसे दिखाई दिया ।”
“अभी बोले तो ?” - मैग्‍नारो बोला ।
“दिखाई दिया बरोबर, बॉस ।” - डिसूजा बोला - “नो प्राब्‍लम नाओ ।”
“गुड ! महाबोले !”
“यस, बॉस !”
“स्टार्म की...क्‍या नाम बोला था आफिशियल करके ?”
“हरीकेन ल्‍यूसिया ।”
“उसकी क्‍या पोजीशन है ? उस बाबत वार्निंग की क्‍या पोजीशन है ?”
“बॉस, हालात खराब जान पड़ते हैं । लोगों को आइलैंड से टैम्‍परेरी करके निकल लेने की सलाह दी जा रही है । वार्निंग है कि बारिश अभी ऐसीच चलेगी ।”

“तूफान तो साला आते आते आयेगा, बारिश ऐसीच चली तो ये तो अभी बर्बाद कर देगी ।
“कुछ नहीं होगा, बॉस । थोड़े टाइम की परेशानी है ।”
“लगनी हो तो थोड़ा टेम में भी वाट लग जाती है ।”
“आपके पास तो सेफ जगह है इसलिये...”
“बोले तो ?”
‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ का टॉप फ्लोर बिल्‍कुल सेफ है । हर लिहाज से । हर काम के लिये ।”
तब तक मोटर बोट पायर पर जा लगी थी । सेफ मूरिंग के लिये उसे डिसूजा के हवाले छोड़कर दोनों पायर पर उतर गये और लपकते हुए उसके ढंके हुए हिस्‍से में पहुंचे । वहां मैग्‍नारो ने जेब से चांदी की फ्लास्‍क निकाल कर उसमें से स्‍काच का नीट घूंट भरा और एक सिगार सुलगाया ।

महाबोले को बहुत मायूसी हुई कि दोनों में कोई भी चीज मैग्‍नारो ने उसके आफर करने की कोशिश न की ।
“मेरा कुछ आइटम्‍स ऐसा है जिसका वास्‍ते ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ भी सेफ नहीं । मेरे को वो ऑफ दि आइलैंड मांगता है । महाबोले, तुम्‍हारे को ये काम हैंडल करने का ।”
“जी !”
“उन आइट्म्‍स को बोट में लोड करवाने का और मुरुड में किसी सेफ ठीये पर पहुंचा के आने का ।”
“मेरे को ?”
“अभी मैं किससे बात करता है ?”
“बॉस, स्‍टार्म वार्निंग की वज‍ह से मेरे को थाने में बहुत काम...”
“करना । करना । मेरा काम हो जाये, करना ।”

वो खामोश रहा ।
“यस, बॉस ।”
“तुम्‍हेरे को गोखले करके भीङू को मेरे पास ले के आने का था !”
“बॉस, मिले तो इस बाबत कुछ करूं न ! अक्खा नाइट ये सोचा के उसके रेन्टिड कॉटेज पर विजिल बिठा के रखा कि आइलैंड पर कहीं भी हो, रात को सोने तो उधर ही आयेगा ! नहीं आया ।”
“किसी होटल में...”
“आइलैंड के एक एक होटल में पता करवाया, कहीं नहीं था ।”
“किधर गया ?”
“क्‍या पता किधर गया ! मिले तो साले को नक्‍की करें । फिर बोल देंगे कि फ्लड मे फंस के मर गया ।
 
“साला मेरे सामने आने से पहले ही ?”
“उसके बाद । आप इजाजत देंगे तो उसके इमीजियेट बाद ।”
“हूं ।”
“आजकल जो हाल इधर है, उसमें किसी के डूब मरने के, समुद्र में बह जाने के चांसिज बहुत है । जब कभी भी इधर तूफान वाले हालात बनते है, सात-आठ लोकल भीङू लापता हो जाते हैं । सब समझते हैं कि तूफान में फंस गये, डूब मरे, बह गये । ऐसा ही हाल गोखले का हो जाना क्‍या बड़ी बात होगी ! हादसा किसी के साथ भी हो सकता है ।”
“हूं ।”
“पर वो पहले मिले तो सही !”

“ये गारंटी कि है वो आइलैंड पर ही ?”
“हां । मेन पायर पर मैंने वाच का इंमजाम किया हुआ है ।
“आइलैंड से निकलने के लिये उधर पहुंचना जरूरी है । अभी तक नहीं पहुंचा ।”
“वांदा नहीं । मैं वेट करता है । अभी मेरे काम का बोलो ।”
“मैं हवलदार जगन खत्री को लगाता हूं ।”
“पण...”
“बॉस, वो पर्फेक्‍ट काम करेगा । मैं उसकी जिम्‍मेदारी लेता हूं । कोई फच्‍चर पड़े तो मेरे को पनिश करना । भले ही गोली मार देना ।”
“हूं । ओके ।”
महाबोले ने चैन की सांस ली ।गार्ड्
***
उस घड़ी नीलेश कोस्‍ट गार्ड्‌स की छावनी में डिप्‍टी कमांडेंट की स्‍पैशल टेलीफोन लाइन पर मुम्‍बई, डीसीपी नितिन पाटिल से बात कर रहा था ।

जायंट कमिश्‍नर मोरावाला और डीसीपी पाटिल पिछले राजे ही मुम्‍बई लौट गये हुए थे ।
लाइन पर डिस्‍टर्बेंस थी इसलिये नीलेश को ऊंचा बोलना पड़ रहा था, दोहरा कर बोलना पड़ रहा था ।
“सर” - वो कह रहा था - “यही टाइम है स्‍ट्राइक का । अब जरा भी देरी ठीक न होगी ।”
“अभी मुमकिन नहीं । ऐसे आपरेशंस को सैट करने में टाइम लगता है ।”
“सर आवाज नहीं आ रही ।”
“वेट करना पडे़गा ।”
“वेट से काम खराब हो सकता है, सर । आइलैंड का माहौल खराब है । स्‍टॉर्म वार्निंग की वजह से इधर भगदड़ मची है । यहां की त्रिमूर्ति भी किसी भी घड़ी इधर से पलायन कर सकती है ।”

“महाबोले ऐसा नहीं कर सकता । वो सरकारी आदमी है । सरकारी हुक्‍म के बिना उधर से नहीं हिल सकता, चाहे कुछ हो जाये ।”
“ले‍किन, सर...”
“तुम समझते नहीं हो । ऐसी बातों में टाइम लगता है । तैयारी में भी और स्‍ट्राइक की बाकायदा परमिशन हासिल करने में भी । ये काम मेरे खुद के करने का होता तो मैं उधर से जाता ही नहीं ।”
“मैं समझता हूं, सर, लेकिन...”
“मैं वार फुटिंग पर तैयारी कराता हूं । तुम बस दो घंटे इंतजार करो ।”
“उतने में वो कहीं के कहीं होंगे ।”
लाइन पर खामोशी छा गयी ।

“तुम उन पर वाच रखो ।” - आखिर डीसीपी बोला - “अगर वो पलायन करेंगे तो इकट्‌ठे करेंगे । मैं डिप्‍टी कमांडेंट अधिकारी को इधर से स्‍पैशल ऑर्डर जारी करवाने का इंतजाम करता हूं कि इमरजेंसी में कोस्‍ट गार्ड्‌स पुलिस का काम करें, तुम्‍हारी मदद करें ।”
“अच्‍छा !”
“यूं तुम्‍हारे हाथ मजबूत होंगे और सूझबूझ से काम लोगे तो तुम्‍हीं वो सब कर गुजरोगे जो हमने वहां आकर करना है । ऐसा कर सके तो तुम्‍हारे और सिर्फ तुम्‍हारे सिर कामयाबी का सेहरा होगा ।”
“मैं अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोङूंगा, कोई कोशिश उठा नहीं रखूंगा ।”

“यस, दैट्स दि स्पिरिट ।”
“सर, मौसम खराब है, और खराब होता जा रहा है, आप लोग इधर पहुंच सकेंगे ?”
“पहुंचना ही होगा, चाहे तबाही आ जाये ।”
“थैंक्‍यू, सर ।”
डीसीपी नितिन पाटिल जायंट कमिश्‍नर बोमन मोरावाला के कमरे में पहुंचा ।
“सर, क्‍या हो रहा है ?” - उसने चिंतित भाव से पूछा ।
“स्‍ट्राइक की रिटन परमिशन आ गयी है ।” - मोरावाला बोला - “जवान तैयार हैं ।”
“गुड ! फिर देर किस बात की है ?”
“मूवमेंट में फच्‍चर है ।”
“जी !”
“उधर मौसम इतना खराब हो गया है कि हैलीकाप्‍टर से नहीं पहुंचा जा सकता । स्‍ट्राइक के तमाम साजोसामान के साथ और जवानों के साथ वहां के मौजूदा मौसम में, जो कि अभी और बिगड़ रहा है, पांच हैलीकाप्‍टर उधर लैंड नहीं कर सकते । कोशिश के डिजास्‍ट्रस रिजल्‍ट्स हो सकते हैं ।”

“फिर ?”
“कमिश्‍नर साहब नेवी की मदद हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं । नेवी की कोई स्‍ट्रांग, वैदरप्रूफ वैसल हमें उधर पहुंचा सकती है ।”
“सर, वो मदद तो हासिल होते होते होगी, तब तक क्‍या होगा ?”
“इंतजार के सिवाय कोई चारा नहीं पाटिल, वुई ऑर टु वेट ।”
“सर, एक घंटा पहले डिप्‍टी कमांडेंट हेमंत अधिकारी को आर्डर इशु कराये जाने की बात हुई थी !”
“उसमें तो और भी बड़ा फच्‍चर पड़ा है ।”
“क्‍या ?”
“हेमंत अधिकारी को हुक्‍म हुआ है कि वो फौरन चौकी खाली कर दे । अपने तमाम के तमाम आदमियों के साथ एक मिनट भी जाया किये बिना आइलैंड से सेफर प्‍लेस के लिये कूच कर जाये ।”

“ओह, नो ।”
“दिस इज राइट फ्रॉम हार्सिज माउथ । कोस्ट गार्ड्‌स का टॉप बॉस खुद मेरे को इस आर्डर की बाबत बोला ।”
“सर, वुई आर लैटिंग डाउन अवर मैन देयर ।”
“वाट्स दैट ?”
“गोखले वहां अकेला है । बेमददगार है । मैंने उसे इस उम्‍मीद पर अपने बलबूते पर एक्‍ट करने को बोला था कि तब तक उसे कोस्‍ट गार्ड्‌स की आफिशियल मदद हासिल हो जायेगी । उसे नहीं मालूम फिलहाल ऐसी कोई मदद उसे हासिल नहीं होने वाली । मैंने उसे भरोसा दिलाया था हम दो घंटे में वहां होंगे, अब लगता है कि वो भी नहीं हो पायेगा ।”
 
“मजबूरी है ।”
“हमारी मजबूरी है और गोखले की जान सूली पर है । वो बेमौत मारा जायेगा ।”
“उसको खबरदार करो । बोलो फिलहाल कोई कदम न उठाये । आस्‍क हिम टु होल्‍ड ऐवरीथिंग ।”
“अब ये भी मुमकिन नहीं । खराब मौसम की वजह से उधर से हमारा हर कांटैक्‍ट टूट गया है ।”
“हमने उस आदमी को मौत के मुंह में धकेला ।”
“नाहक जज्‍बाती हो रहे हो, पाटिल । ये असाइनमेंट कुबूल करने से पहले वो उसके हर अंजाम से वाकिफ था । उसको साफ बोला गया था, बाकायदा खबरदार किया गया था कि वो शेर की मांद में कदम रखने जा रहा था, जिंदा लौटने की कोई गारंटी नहीं थी । हमने कोई जोर नहीं दिया था, कोई दबाव नहीं डाला था, उसके सामने खुली आप्‍शन थी असाइनमेंट को नाकबूल करने की । उसने अपने कंधों पर सलीब उठाया है तो वो ही तो ढ़ोयेगा !”

“अभी तो उसके साथ धोखा हुआ ! हमने उसे आश्‍वासन दिया कि उसे कोस्‍ट गार्ड्‌स की मदद मुहैया होगी...”
“क्या फर्जी आश्‍वासन दिया ? कया ऐसा करते वक्‍त तुम्‍हारी जुबान पर कुछ और था, मन में कुछ और था ?”
मशीनी अंदाज से डीसीपी का सिर इंकार में हिला ।
“ऐसा करते वक्‍त तुम्‍हें इल्‍म था कि कोस्‍ट गार्ड्‌स को फौरन चौकी खाली कर देने का आर्डर हो जायेगा ?”
“नहीं । कैसे हो सकता था ?”
“क्‍या हमारे पास उस आर्डर को रिवर्स करने की अथारिटी है ?”
“नहीं ।”
“तो फिर ?”
“सर, आई स्टिल फील गिल्‍टी । अवर ऑपरेशन इज डूम्‍ड । अवर मैन इज डूम्‍ड ।”

“आल पार्ट आफ गेम, पाटिल, आल पार्ट आफ प्रोविडेंस ।”
“कैसी मजबूरी है !” - डीसीपी आह भर कर बोला - “हम उसकी कोई मदद नहीं कर सकते ।”
“गॉड विल हैल्‍प हिम ।”
 
Chapter 6

आइलैंड पर नर्क का नजारा था ।
पानी यूं बरस रहा था जैसे आसमान फट पड़ा हो । हर तरफ पानी ही पानी था । सड़कों पर यूं बह रहा था कि उसमें लहरें उठती जान पड़ती थीं । ऊंचे इलाकों की तरफ से जगह जगह नीचे बहता पानी झरना जान पड़ता था । जगह जगह पानी में औने पौने डूबे, बिगड़े वाहन खड़े दिखाई दे रहे थे ।
उस हाल में भी कोई सड़क वीरान नहीं थी । किसी को घर लौटने की जल्‍दी थी तो किसी को घर छोड़ कर जैसे तैसे आइलैंड से पलायन कर जाने की जल्‍दी थी ।

जैसे कि नीलेश को कोस्‍ट गार्ड्‌स की छावनी से निकल कर वैस्‍टएण्‍ड पहुंचने की जल्‍दी थी ।
बड़ी मुश्किल से वो कार चला पा रहा था । कार की छत पर बारिश यूं मार कर रही थी जैसे छत फाड़ कर भीतर दाखिल हो जायेगी ।
ऐसे में उसे श्‍यामला मोकाशी का खयाल आया ।
खामखाह आया पर आया ।
कहां होगी ! क्‍या कर रही होगी !
घर पर ही होगी और कहां होगी !
क्‍या गारंटी थी ! एडवेंचरस लड़की थी । क्‍या पता वो प्रलयकारी मौसम भी उसे एंटरटेनमेंट का, एनजायमेंट का जरिया जान पड़ता हो !

वो झील के पास से गुजरा तो उसने पाया कि झील की सतह घनघोर बारिश की वजह से ऐसी आंदोलित थी कि लहरें पुल के ऊपर से गुजर रही थीं । मनोरंजन पार्क में रोशनी तो थी लेकिन लगता नहीं था कि भीतर मनोरंजन का तलबगार कोई पर्यटक मौजूद होगा ।
तौबा तौबा करता वो पुलिस स्‍टेशन पहुंचा ।
वो भीतर दाखिल हुआ तो उसका आमना-सामना भाटे से हुआ । वो रिपोर्टिंग डैस्‍क के पीछे डैस्‍क से घुटने जोड़े कुर्सी पर अधलेटा सा, ऊंघता सा बैठा था ।
“जय हिंद !” - नीलेश मधुर स्‍वर में बोला ।
भाटे ने आंखें पूरी खोलीं और फिर सम्‍भल कर बैठा । नीलेश पर उसकी निगाह पड़ी तो उसके नेत्र फैले ।

“मुझे पहचाना, हवलदार साहब ?”
“हां, पहचाना ।” - भाटे अपेक्षा के विपरीत नम्र स्‍वर में बोला - “और, भई, मैं सिपाही हूं, हवलदार नहीं हूं ।”
नीलेश हंसा ।
“पहचाना” - भाटे अर्थपूर्ण स्‍वर में बोला - “और वो भी पहचाना जो पहले न पहचाना ।”
“क्‍या मतलब ?”
“तुम महकमे के आदमी हो, मुम्‍बई से जो डीसीपी आया था, उसके खास हो ।”
“कौन बोला ऐसा ?”
“महाबोले साब बोला । उसको पूरा पूरा शक कि तुम पुलिस के भेदिये हो, बोले तो अंडरकवर एजेंट हो ।”
“शक ! यकीन नहीं ?”
वो खामोश रहा ।
“मैं बोलूं जो तुम्‍हारा एसएचओ समझता है, मैं वो नहीं हूं तो वो यकीन कर लेगा ?”

“बोल के देखना ।”
“तुम यकीन कर लोगे?”
“मैं तो कर लूंगा । तुम महकमे के कोई बड़े साब निकल आये तो मेरी तो वाट लगा दोगे ।”
“जब समझते हो कि मैं कोई बड़ा साहेब निकल आ सकता हूं तो खाक यकीन कर लोगे ! खाक यकीन किया !”
“मैं बहुत मामूली आदमी हूं, मैं बड़े साब लोगों के पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता ।”
“लगता है इस वक्‍त तुम्‍हारे सिवाय यहां कोई नहीं है !”
“ठीक लगता है, सब इमरजेंसी ड्‌यूटी पर हैं ।”
“श्‍यामला मोकाशी की कोई खबर है ?”
“मेरे को कैसे होगी, भई ?”
“तुम्‍हारे साहब की खास है, सोचा शायद हो !”

“खामखाह !”
“फिर भी...”
“अरे, भई, ऐसे मौसम में घर ही होगी, और कहां होगी ?”
“लिहाजा मोकाशी साहब का आइलैंड छोड़ने का कोई इरादा नहीं !”
“उनका बंगला हाइट पर है, उन्‍हें तूफान से कोई खतरा नहीं ।”
“हूं । ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ का क्‍या हाल है ?”
“समझो कि खाली है ।”
नीलेश को हैरानी थी कि भाटे उसकी हर बात का तत्परता से जवाब दे रहा था ।
“लोग बाग जा रहे हैं ?” - उसने पूछा ।
“पक्‍के बाशिंदे नहीं जा रहे । उन्‍हें ऐसे मौसम की आदत है ।”
“लेकिन आइलैंड खाली कर देने की वार्निंग तो सबके लिये जारी है !”

“उन्‍हें वार्निंग की परवाह नहीं । बोला न, उन्‍हें ऐसे मौसम की आदत है । चले गये तो लौटेंगे तो घर लुटे हुए मिलेंगे ।”
पुलिस वाले ही लूट लेंगे ।
“इसलिये टिके हुए हैं और मौसम का डट कर मुकाबला कर रहे हैं ?”
“यही समझ लो । वैसे कुछ फैमिलीज ने बच्‍चों को भेज दिया है ।”
“कोई जाना तो चाहता हो लेकिन बीमार होने की वजह से या हैण्‍डीकैप्‍ड होने की वजह से न जा पाता हो तो उसका क्‍या होगा ?”
“क्‍या होगा ?”
“सवाल मैंने पूछा, दारोगा जी, लोकल सिविल एडमिनिस्‍ट्रेशन या पुलिस ऐसे किसी शख्‍स की कोई मदद करती है ?”

“लोकल एडमिनिस्‍ट्रेशन का मेरे को नहीं मालूम लेकिन इधर...किसको फुरसत है !”
“कमाल है ! थाने में तुम अकेले बैठे हो, इतने सारे पुलिस वाले फील्‍ड में क्‍या कर रहे हैं जबकि किसी जरूरतमंद की मदद नहीं करनी ?”
“अरे, भई, मैं मामूली सिपाही हूं, महाबोले साब अभी इधर आयेगा न, उससे सवाल करना । मोकाशी साब से सवाल करना ।”
“मोकाशी साहब से ? वो भी इधर आयेंगे ?”
“हां । बैठो । इंतजार करो ।”
“फोन करके पता कर सकते हो वो दोनों कहां है ?”
 
“नहीं ।”
“वजह ?”
“डैड पड़ा है ।”
“हूं । ठीक है, चलता हूं ।”

टखनों से ऊपर आते पानी में छपाक छपाक चलता वो वापिस कार तक पहुंचा । ड्राइविंग सीट पर बैठ कर उसने इग्‍नीशन में चाबी लगाई और उसे आन किया ।
कोई प्रतिक्रिया न हुई ।
उसने कई बार वो क्रिया दोहराई ।
नतीजा सिफर ।
साफ जान पड़ता था कि बैटरी बैठ गयी थी ।
कार से निकल कर वो वापिस भीतर पहुंचा ।
“क्‍या हुआ ?” - भाटे बोला ।
नीलेश ने बताया ।
“ओह !” - भाटे बोला - “अब क्‍या करोंगे ?”
“पता नहीं । तुम बताओ क्‍या करूं ?”
“यहीं बैठो और साब लोगों के लौटने का इंतजार करो । क्‍या पता वो मेहरबान हो जायें और तुम्‍हारा बेड़ा पार लगा दें ।”

“हूं ।”
“या तुम अपनी सरकारी धौंसपट्‌टी से उन्‍हें बेड़ा पार लगाने के लिये मजबूर कर दो ।”
“फिर पहुंच गये उसी जगह पर !”
वो खामोश रहा ।
नीलेश ने जेब से सिग्रेट का पैकेट निकाला जो कि शुक्र था कि भीग नहीं गया हुआ था ।
“लो” - वो पैकेट भाटे की तरफ बढ़ाता बोला - “सिग्रेट पियो ।”
भाटे ने एक बार गर्दन ऊंची करके बाहर निगाह दौड़ाई और फिर कृतज्ञ भाव से एक सिग्रेट ले लिया ।
नीलेश ने खुद भी सिग्रेट लिया और बारी दोनों सिग्रेट सुलगाये ।
कुछ क्षण खामोशी में गुजरे ।
“वक्‍तगुजारी की बात है” - फिर नीलेश बोला - “इजाजत हो तो एकाध सवाल पूछूं ?”

“अरे, मैं कौन होता हूं इजाजत देने वाल !” - भाटे बोला - “पूछो, क्‍या पूछना चाहते हो ?”
“जवाब दोगे ?”
“बोले तो सवाल पर मुनहसर है ।”
“अरे, समझो, टाइम पास कर रहे हैं । जब तुम समझते हो कि मैं सरकारी आदमी हूं तो मेरे से बात करने में क्‍या हर्ज है !”
“समझ ही तो रहा हूं, कोई तसदीक तो नहीं हुई !”
“तसदीक के लिये क्‍या करना होगा ? डीसीपी को बुलाना होगा ?”
“वो तुम जानो ।”
“बहुत होशियार हो गये हो, दारोगा जी !”
“मैं दारोगा नहीं हूं ।”
“भई, इस वक्‍त थाने के इंचार्ज हो तो दारोगा ही तो हुए !”

वो खामोश रहा ।
“लो, सिग्रेट, लो ।”
दोनों ने नये सिग्रेट सुलगाये ।
“क्‍या पूछना चाहते थे ?” - एकाएक भाटे बोला ।
“अभी भी पूछना चाहता हूं ।”
“पूछो । किस बाबत सवाल है तुम्‍हारा ?”
“उस फोन काल की बाबत है जिसके जरिये रूट फिफ्टीन पर पड़ी लाश की यहां खबर पहुंची थी ।”
“अच्‍छा !”
“वो काल यहां किसने रिसीव की थी ?”
“महाबोले साब ने ।”
“खुद ?”
“हां ।”
“ऐसी काल रिसीव करना उनका काम है ?”
“नहीं । खफा हो रहे थे कि यहां बजता फोन किसी ने क्‍यों नहीं उठाया था !”

“थाने आयी काल यहां रिसीव की जाती हैं ?”
“हां ।”
“फिर तो यहां किसी को हर घड़ी मौजूद होना चाहिये !”
“काल रात के...रात किधर की !... बोले तो सुबह चार बजे आयी थी । ऐसे टेम फोन शायद ही कभी बजता है । फिर भी बजे तो पीछे रैस्‍टरूम है, वहां पता चलता है ।”
“तुम रैस्टरूम में थे ?”
“सभी रैस्‍टरूम में थे । ताश खेलते, ऊंघते, सोते ।”
“लेकिन काल रिसीव करने कोई न पहुंचा ! एसएचओ साहब को खुद उठ कर यहां आना पड़ा ।”
“नहीं, भई । इस फोन का पैरेलल उनके आफिस में है । वहीं रिसीव की काल उन्‍होंने ।”

“ओह ! रैस्‍टरूम कहां है ?”
“उनके आफिस के बाजू में ही । वो पीछे !”
“ये अजीब बात नहीं कि कमरे आजू बाजू में होते हुए भी एक जगह बजती घंटी सुनाई दी, दूसरी जगह न सुनाई दी ?”
वो खामोश रहा ।
“या घंटी दोनों जगह बजती है ?”
“बज सकती है लेकिन महाबोले साब अपनी घंटी ऑफ रखते हैं ।”
“यानी यहां बजती घंटी ही उन्‍होंने अपने आफिस में सुनी !”
“जाहिर है ।”
“लेकिन वही घंटी तुम लोगों में से किसी को न सुनाई दी !”
“अब है तो ऐसा ही ।”
“तो उस फोन काल काल की खबर आखिर कैसे लगी ?”
 
“साब ने महाले को तलब किया और उसे फटकार लगाई कि कोई फोन क्‍यों नहीं सुनता था ! फिर उन्‍होंने ही काल की बाबत बताया और महाले को, हवलदार खत्री को मौकायवारदात की तरफ रवाना किया ।”
“हूं । ऐसा हो सकता है कि रैस्‍ट रूम में काल सुनी तो गयी हो लेकिन सबने सोचा हो कि कोई दूसरा उठेगा या काल की परवाह ही न की हो !”
“ऐसा नहीं हो सकता । एसएचओ खुद थाने में मौजूद हो, बगल के कमरे में मौजूद हो तो किस की ऐसा करने की मजाल हो सकती है !”
“ठीक !”
“आपसदारी में बोलता हूं, किसी ने घंटी नहीं सुनी थी । साब के भाव खाने के बाद सबने काल की बाबत एक दूसरे से सवाल किया था, घंटी बजती किसी ने नहीं सुनी थी ।”

“अजीब बात है !”
“अभी मैं क्‍या बोले ! है तो है ।”
“तो किसी ट्रक वाले को लाश दिखाई दी, उसकी खबर पुलिस को करना अपना फर्ज जान कर उसने काल लगाई । न सिर्फ काल लगाई, लाश की ऐग्‍जैक्‍ट लोकेशन भी बताई । ये भी बताया कि लाश किसी औरत की थी, मर्द की नहीं !”
“हां । और जो बताया था, करैक्‍ट बताया था ।”
“काल करने वाले ने अपने बारे में कुछ न बताया ?”
“अपने बारे में क्‍या ?”
“भई, और कुछ नहीं तो नाम ही बताया हो !”
“ऐसी काल करने वाला कोई नहीं बताता कुछ अपने बारे में । बताता तो उसको हुक्‍म होता कि वहीं टिका रहे जब तक कि पुलिस नहीं पहुंचती । कौन ऐसे अपना टेम खोटी करना मंजूर करता है !”

“इसलिये गुमनाम काल !”
“बरोबर । अमूमन तो लोगों को इतना भी करना मंजूर नहीं होता । हर कोई साला पचड़े से बचना चाहता है ।”
“वो काल न करता तो क्‍या होता ?”
“क्‍या होता ! आखिर तो लाश बरामद होती ही । पण टेम लगता ।”
“अब फटाफट बरामद हुई । इधर कत्‍ल हुआ, उधर लाश बरामद !”
“नहीं, फटाफट तो नहीं ! एक्‍सपर्ट लोग कत्‍ल दो बजे के आसपास हुआ बताते हैं, लाश की बाबत काल तो चार बजे आयी थी ।”
“ट्रक वाला रूट फिफ्टीन पर क्‍या पर रहा था ?”
“बोले तो ?”
“आजकल उधर का एक्‍सप्रैस वे तो न्‍यू लिंक रोड है !”

“है तो सही ! अभी मैं क्‍या बोलेगा ! साला पिनक में होगा, बेध्‍यानी में रूट फिफ्टीन पर ट्रक डाल दिया होगा !”
“ताकि उसे अंधेरे में सड़क के नीचे, ढ़लान पर आगे खाई में लुढ़की पड़ी लाश दिखाई देती, उसे अपनी सिविल ड्‌यूटी निभाने का मौका मिलता और वो एक जिम्‍मेदारी शहरी की तरह थाने काल-गुमनाम काल-लगाता !”
“क्‍या कहना चाहते हो ?”
“ये अजीब बात नहीं कि...”
“होगी अजीब बात ! मेरे को क्‍या करने का !”
“बात तो तुम्‍हारी ठीक है !”
“तो ?”
“कुछ नहीं ।”
“कुछ नहीं तो ये किस्‍सा छोड़ो । कोई और बात करो ।”

“करता हूं । उस रात मैं तुम्हें मरने वाली के-रोमिला के -बोर्डिंग हाउस पर मिला था, जबकि तुमने मेरे पर भारी मेहरबानी की थी कि मुझे रोमिला के रूम का चक्‍कर लगाने का मौका दिया था...”
“जिसके लिये साब ने मेरी वाट लगा दी थी ।”
“तभी ? हाथ के हाथ ?”
“हां ।”
“इसका मतलब है मेरे बोर्डिंग हाउस से चले जाने के बाद तुम भी उधर से नक्‍की कर गये थे !”
“हां । थाने लौटा न ! साब को रिपोर्ट पेश की ।”
“फिर ?”
“साब भड़क गया कि क्‍यों मैने तुम्‍हें लड़की के कमरे में जाने दिया । फिर इस बात पर हड़का दिया कि मैं बिना इजाजत ड्‌यूटी छोड़ कर थाने क्‍यों लौट आया ! अच्‍छी दुरगत हुई मेरी तुम्‍हारे से कोआपरेट करने के बदले में ।”

“सॉरी !”
“अब क्‍या सारी और क्‍या आधी ! जो होना था, वो तो हो चुका ।”
“कब थाने लौटे थे ?”
“पौने तीन के करीब । दो-एक मिनट ऊपर होंगे ।”
“इतनी रात गये महाबोले साहब थाने में मौजूद थे ?”
“हां । बाद में पता लगा था कि तभी कोई आधा घंटा पहले गश्‍त से लौटे थे ।”
“रात को गश्‍त लगाते हैं ?”
“बहुत कम । क्योंकि ये हवलदार जगन खत्री की ड्‌यूटी है ।”
“रोजाना की ?”
“हां । आईलैंड पर अमन चैन के लिये लेट नाइट की गश्‍त जरूरी होती है न ! कभी इधर कोई गलाटा होता है तो अमूमन बार्स के, बेवड़े अड्‌डों के क्‍लोजिंग टेम पर होता है । पंगा करने वाले बेवड़े भी तभी पकड़ में आते हैं ।”

“आई सी । तो उस रोज खुद एसएचओ साहब भी हवलदार जगन खत्री के साथ गश्‍त पर निकले ?”
“नहीं । मेरे को बाद में मालूम हुआ था कि हवलदार खत्री उस राज अपनी ड्‌यूटी पर नहीं निकला था ?”
“कैसे मालूम हुआ था ?”
“साब खुद ऐसा बोला था । महाले को, मेरे को जब हवालदार खत्री के साथ रूट फिफ्टीन पर तफ्तीश के लिये भेजा गया था तो साब खुद बोला था कि हवलदार खत्री गश्‍त पर नहीं निकला था, इसी वास्‍ते तब उसे रूट फिफ्टीन पर जाने का था ताकि कुछ तो करे ।”
“एसएचओ साहब के साथ गश्‍त पर कौन था ?”

“कोई नहीं । अकेले ही निकले थे ।”
“ड्राइवर तो होगा साथ !”
“नहीं । मालूम पड़ा था जीप खुद ड्राइव करते निकले थे ।”
“क्‍यों ? ड्राइवर अवेलेबल नहीं था ?”
“था । साब के ड्राइवर की ड्‌यूटी करने वाला सिपाही मेरे को खुद ऐसा बोला । साब खुद उसको नक्‍की किया, बोला खुद ड्राइव करने का ।”
“ये अजीब बात नहीं ?”
“काहे कू अजीब बात ! साब मालिक है थाने का, बल्कि आइलैंड का । वो क्‍या करना मांगता है, क्‍या नहीं करना मांगता, उसके मूड की बात है ।”
“ठीक ! बहरहाल तुम लोग मौकायवारदात पर पहुंचे, उधर तहकीकात की तो लाश बरामद हुई बराबर । फिर ?”

“हम पीछे वहीं रुके । हवलदार खत्री साब को रिपोर्ट करने थोड़ा टेम के वास्‍ते इधर थाने वापिस लौटा ।”
“फिर ?”
“फिर तो जो हुआ वो मेरे को बाद में मालूम पड़ा था ।”
“किससे ?”
“हवलदार खत्री से ।”
“क्या ?”
“यही कि साब जब गश्‍त पर था तो उसने एक फुल टुन्‍न बेवड़ा जमशेद जी पार्क के एक बैंच पर दीन दुनिया से बेखबर लुढ़का पड़ा देखा था । बोले तो जब मैं अपनी बोर्डिंग हाउस की निगरानी की ड्‌यूटी पर निकला था, तब मैंने भी उस बेवड़े को देखा था ।”
“वो तब भी वहां था ?”

“हां ।”
“वहीं ।”
“बरोबर । साला पता नहीं बाटली खींच गया या उससे भी ज्‍यास्‍ती ।”
“लेकिन जब वो...”
“अरे !”
“क्‍या हुआ ?”
“खुद देखो क्‍या हुआ ! पानी तो साला थाने में घुसा आ रहा है !”
नीलेश ने बाहर की तरफ निगाह दौड़ाई ।
सड़क पर पानी की तह दिखाई दे रही थी जो किसी हलचल से डिस्‍टर्ब होती थी तो पानी उछलता था और थाने के भीतर घुस आता था लेकिन हलचल शांत होते ही वापिस लौट जाता था ।
“कैसे बीतेगी ?” - भाटे चिंतित भाव से बोला ।
“तुम्‍हें मालूम हो !” - नीलेश बोला - “आइलैंड के पुराने बाशिंदे हो ।”
 
उसने उत्‍तर न दिया । उसके चेहरे पर चिंता के भाव बदस्‍तूर बने रहे ।
“तो उस बेवड़े को....क्‍या नाम था ?”
“हेमराज पाण्‍डेय ।”
“उसको थामा गया ?”
“हां । थामा गया तो बोले तो वहींच साला केस ही हल हो गया । लड़की को खल्‍लास करने के बाद उसका जो माल उसने लूटा, वो साला अक्‍खा उसके पास से बरामद हुआ । साब इधर लाकर जरा डंडा परेड किया तो गा गा कर अपना गुनाह कुबूल किया । राजी से अपना बयान दर्ज कराया । दस्‍तखतशुदा गवाहीशुदा, इकबालिया बयान !”
“राजी से ?”
“बरोबर ।”
“उसे सब याद था ?”

“किधर याद था ! जब पकड़ के इधर लाया गया था, साला तब भी टुन्‍न था । महाबोले साब को याद दिलाना पड़ा कि नशे में उसने क्‍या किया था, कैसे किया था, क्‍यों किया था !”
“लिहाजा बयान एसएचओ साहब ने दिया, पाण्‍डेय ने न दिया !”
“क्‍या बात करते हो ! उसी ने दिया जो गुनहगार था । बोले तो उसकी याददाश्‍त पर से नशे की परत खुरच कर हटानी पड़ी ।”
“जब उसका इकबालिया बयान दर्ज किया गया था, तब तुम भी मौजूद थे ?”
“हां । मैंने अपनी गवाही भी डाली उसके बयाने पर ।”
“उसका थोबड़ा सेंक दिया, थूंथ सुजा दी, मुंडी पकड़ के पानी में गोते लगवाये, इकबालिया बयान ऐसे होता है !”

“अरे, वो टुन्‍न था । उसका नशा भी उतारने का था या नहीं !”
“जो काम चंद घंटों में अपने आप ही हो जाता, उसे जबरन करने की क्‍या जरूरत थी ?”
“बोले तो ?”
“ला के लॉकअप में बंद करते, दिन चढे़ पर नशा खुद हवा हो गया होता । नहीं ?”
“अभी क्‍या बोलेगा मैं ! साब का मिजाज भी तो गर्म है !”
“बहरहाल मुजरिम ने, हेमराज पाण्‍डेय ने, अपने जुर्म का इकबाल किया ?”
“बरोबर ।”
“अपनी मर्जी से ?”
“बरोबर ।”
“तुमने कहा पार्क के बैंच पर नशे में बेसुध पड़ा पहले तुमने भी उसे देखा था !”

“बरोबर ! बोर्डिंग हाउस पर ड्‌यूटी के लिये जब मैं उधर से गुजरा था तो वो पड़ा था साला उधर ।”
“टुन्‍न ! दीन दुनिया से बेखबर !”
“बरोबर ।”
“रात को किसी घड़ी अपने नशे के आलम से वो उबरा, छ: किलोमीटर चल कर रूट फिफ्टीन पर पहुंचा, जहां कि उसे रोमिला मिली, अपने नशे को फाइनांस करने की खातिर उसे लूट कर उसने उसका कत्‍ल किया, छ: किलोमीटर वापिस चला और आकर उसी बैंच पर पड़ गया जिस पर से उठ कर वो अपने लूट के अभियान पर निकला था । ठीक ?”
“भई, साब बोलेगा न !”

“अभी तो तुम बोलो ।”
“अभी मेरे को एकीच बात बोलने का ।”
“क्‍या ?”
“मेरे को इधर डूब के नहीं मरने का । पानी साला ऐसीच थाने में आता रहा, लैवल साला हाई होता गया तो मैं इधर नहीं रुकने का ।”
“ड्‌यूटी पर हो, भई !”
“डैथ ड्‌यूटी पर नहीं हूं ।”
“अरे, कैसे पुलिस वाले हो !”
“घटिया पुलिस वाला हूं । भड़वा पुलिस वाला हूं । अभी क्‍या बोलता है !”
“नीलेश खामोश रहा ।
“अभी का अभी नौकरी से इस्‍तीफा देता है मैं । और पहला मौका लगते ही लौट के मुम्‍बई जाता है ।”

“नौकरी बिना क्‍या करोगे ?”
“साला भेलपूरी बेचेगा चौपाटी पर । डिब्‍बा उठायेगा । इधर से हर हाल में फ्री होना मांगता है मेरे को । मेरे को साला बहुत टेंशन इधर...”
“तभी बाहर से एक कार के इंजन की आवाज आयी ।
“बोले तो” - भाटे बदले स्‍वर में बोला - “सब लोग आ गया ।”
दोनों की निगाह बाहर की ओर उठी ।
बाहर पुलिस जीप की जगह एक वैगन-आर आ कर खड़ी हुई थी ।
साहब लोग नहीं आये थे, श्‍यामला मोकाशी आयी थी ।
श्‍यामला मोकाशी डकबिल की अपने साइज से बड़ी बरसाती ओढे़ थी जिस वजह से वो उसके घुटनों से नीचे टखनों से जरा ऊपर तक पहुंच रही थी और उसके गले से लेकर आखिरी तक तमाम बटन बंद थे । सिर पर वो डकबिल की ही पीककैप पहने थी, वो भी उसके साइज से बड़ी थी इसलिये बार बार आंखों पर ढुलक रही थी ।

उसने एक उड़ती निगाह नीलेश पर डाली, फिर तत्‍काल भाटे की तरफ देखा ।
“पापा यहीं हैं ?” - वो बोली ।
भाटे ने इंकार में सिर हिलाया ।
“एसएचओ साहब ?”
“वो भी नहीं हैं ।” - भाटे बोला - “दोनों इकट्‌ठे इधर से निकल कर किधर गये हैं ।”
“किधर ?”
“मालूम नहीं ।”
“कब लौटेंगे ?”
“मालूम नहीं ।”
“देवा ! ये मौसम क्‍या भटकते फिरने का है !”
“तुम भी तो” - नीलेश बोला - “ऐसे ही फिर रही हो !”
श्‍यामला की सूरत से न लगा उसने नीलेश की बात की ओर कोई ध्‍यान दिया था ।
 
“मेरे को पापा की फिक्र है ।” - भाटे की ओर देखती वो गहन चिंतापूर्ण स्‍वर में बोली ।
“इंतजार घर बैठ के करना था ।” - नीलेश बोला - “तुम यहां हो, मोकाशी साहब घर पहुंच गये तो वो तुम्‍हारी फिक्र करेंगे । अब एक जना फिक्रमंद है, तब दो होंगे ।”
“आई एम नाट टाकिंग टु यू, मिस्‍टर !”
“नाइस ! तो अब मैं मिस्‍टर हो गया !”
“और क्‍या मिस होना चाहते हो ?”
“मिस तो तुमने कल ही कर दिया था...”
“क्‍या !”
“अपनी जिंदगी से । हमेशा के लिये । अब तो कुछ ऐसा सुझाओ कि मास्‍टर हो सकूं । लॉर्ड एण्‍ड मास्‍टर ।”

“ख्‍वाब देखते रहो ।”
“कोई हर्ज है ख्‍वाब देखने में ?”
“ख्‍वाब देखने के लिये यहां रुके हुए हो तो भारी गलती कर रहे हो । मौसम विभाग की आइलैंड खाली कर दिये जाने की घोषणा अभी भी जारी है । कहा जा रहा है कि जो लोग ऐसा नहीं कर सकते वो आइलैंड की ऊंची जगहों पर चले जायें जहां से उन्‍हें हैलीकाप्‍टर्स के जरिये पिक किये जाने के इंतजाम हो रहे हैं । पता नहीं यहां किसी को मालूम है या नहीं लेकिन आइलैंड पर कई जगह घुटनों घुटनों पानी भर गया है और वाटर लैवल अभी और ऊंचा जा सकता है । ऐसे में पापा घर नहीं हैं तो वो नादान ही नहीं, गैरजिम्‍मेदार भी हैं । उनकी फिक्र में मेरे प्राण सूख रहे हैं ।”

“तुम भी तो घर नहीं हो !”
“ओह, शटअप । मेरी उनकी एक बात नहीं है । वो उम्रदराज शख्स हैं । मौसम की सख्‍ती को वो वैसे नहीं झेल सकते जैसे मैं झेल सकती हूं । फिर पता नहीं उन्हें खबर भी है या नहीं, अहसास भी है या नहीं कि हरीकेन ल्‍यूसिया की मार से आइलैंड किस बुरे हाल तक पहुंच चुका है ! हे भगवान ! कहां ढूंढूं मैं उन्‍हें !”
कोई कुछ न बोला ।
“भाटे” - वो व्‍यग्र भाव से बोली - “पापा आये तो थे यहां ?”
“आये थे ।” - भाटे बोला - “पहले बोला न ! आते ही महाबोले साब के साथ हालात का जायजा लेने निकल पडे़ थे ।”

“कितना अरसा हुआ ?”
“बोले तो एक घंटा ।”
“लौटने के बारे में कुछ बोल कर गये?”
“नहीं । तुम नाहक फिक्र कर रही हो, मैडम । वो लोग तजुर्बेकार हैं और उनके पास अपनी सेफ्टी का हर जरिया है । यहां तक कि एक पावरफुल मोटरबोट भी, जो कि समुद्र पर ही नहीं, आइलैंड पर भर आये पानी में भी दौड़ सकती है ।”
“क्‍या बोल के गये थे ?”
“यही कि मालूम करने का था कि कहां किसी को मदद की जरूरत थी । यहां का टेलीफोन डैड हो जाने से पहले खबर आयी थी कि झील में इतना उफान था कि लोहे के पुल के उखड़ कर बह जाने का खतरा था । और मनोरंजन पार्क में कुछ लोग मौजूद थे जिनका पुल पर कदम रखने का हौसला नहीं हो रहा था और निकासी के लिये उनको मदद की सख्‍त जरूरत थी । दोनों साब लोग वही इंतजाम करने निकले थे ।”

“यहां पानी भर आया तो तुम क्‍या करोगे ?”
“मेरे को बोल के गये थे के वापिसी में मेरे को पिक करेंगे ।”
“ओह ।”
“वापिसी पता नहीं कब होगी ! मेरे को इंतजार भारी पड़ रहा है । हर कोई सेफ जगह पर पहुंच गया या आइलैंड छोड़ गया,मैं साला ढ़क्‍कन इधर फंसा है । ड्‌यूटी करता है । साब लोगों का हुक्‍म बजाता है जिनकी पता नहीं यहां लौटने की मर्जी है भी या नहीं ! जो पता नहीं आइलैंड पर हैं भी या नहीं ! मैडम, तुमने यहां आ कर भारी गलती की । नेलसन एवेन्‍यू हाइट पर है, तुम्‍हारा बंगला हाइट पर है । तुम उधर सेफ थीं । यहां नहीं आना था । अभी भी वापिस चली जाओ ।”

“तुम क्‍या करोगे ?”
“मुझे कहीं के लिये लिफ्ट दे देना ।”
श्‍यामला ने नीलेश की तरफ देखा ।
“ये जगह इतनी अनसेफ नहीं है । पानी आ भी गया...”
“आ ही रहा है ।” - भाटे व्‍याकुल भाव से बोला ।
“...तो कोई इमारत को नहीं बहा ले जायेगा । कोई छत तक नहीं पहुंच जायेगा । भाटे, ऊपर जाने के लिये रास्‍ता तो है न !”
“हां । पिछवाडे़ से सीढि़यां हैं ।”
“तो यहां ठहरने में कोई हर्ज नहीं ।”
भाटे के चेहरे पर आश्‍वासन के भाव न आये ।
“थाने का बाकी स्‍टाफ कहां है ?”
 
Back
Top