desiaks
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“एक बात है तो सही सोचने लायक ।” - विचारपूर्ण मुद्रा बनाये वो बोला ।
“क्या ?”
“रात जब तुम लड़की से मिलने के वास्ते इधर आया था तो किधर से आया था ?”
“मेन हाइवे से ही आया था जो कि न्यू लिंक रोड कहलाता है ।”
“ठीक । इधर लड़की वेट करती थक गयी तो उसने बोले तो पैदल, वाक करके घर पहुंचने का फैसला किया । इस लिहाज से उसको न्यू लिंक रोड पर होना चाहिये था जहां उसको कोई लिफ्ट मिल जाने का भी चानस था । वो रूट फिफ्टीन पर काहे को पहुंच गयी ?”
नीलेश ने संजीदगी से उस बात पर विचार किया ।
“दो ही बातें हो सकती हैं ।” - फिर बोला - “या तो रात के टाइम भटक गयी या उसने समझा कि वो शार्ट कट था ।”
“ऐन ओपोजिट है ।”
“क्या मतलब ?”
“लांग कट है । आबादी में पहुंचने के लिये छोटा रास्ता न्यू लिंक रोड है ।”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“रुट फिफ्टीन पर कोई नहीं जाता ?”
“बहुत लोग जाते हैं । वो सड़क सीनिक ब्यूटी के लिये मशहूर है और आशिक-माशूकी के लिये मशहूर है । बोले तो आइलैंड की लवर्स लेन है । नौजवान जोड़े उधर हाथापायी, चूमाचाटी के लिये जाते हैं । और भी कुछ करें तो किसी को खबर नहीं लगती । जनरल ट्रेफिक के लिये जनरल रोड न्यू लिंक रोड है जो कि काफी बाद में बनी थी, उसके बनने से पहले अक्रॉस दि आइलैंड जो एक रोड थी वो रुट फिफ्टीन थी ।”
“तो रुट फिफ्टीन पर कैसे पहुंच गयी ?”
“मेरे को तो एक ही वजह सूझती है ।”
“क्या ?”
“खुदकुशी करने के लिये ।”
“क्या !”
“वो बहुत परेशान थी पण क्यों परेशान थी, ये तो वहीच जानती थी ।”
“तुम्हारा वजह को कोई अंदाजा ?”
“प्रेग्नेंट होगी । ब्वायफ्रेंड ने धोखा दिया, मदद की फरियाद तुम्हारे से लगाई, तुम पहुंचे नहीं, हैरान परेशान रूट फिफ्टीन पर चल दी । उसकी बैडलक खराब कि उधर कहीं वो कनफर्म्ड बेवड़ा पाण्डेय मिल गया जिसने अकेली पाकर उसे लूट लिया और फिर जो काम लड़की ने खुद करना था, वो उसने कर दिया ।”
“तुमने दिमाग का घोड़ा बढिया दौड़ाया है पर इसमें एक फच्चर है ।”
“क्या ?”
“लड़की प्रेग्नेंट नहीं थी ।”
“नहीं थी !”
“पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि वो प्रेग्नेंट नहीं थी ।”
“तुम्हें क्या मालूम पोस्टपार्टम रिर्पोट क्या कहती है !”
“था एक जरिया मेरा मालूम करने का ।”
“बोल तो काफी जुगाङू आदमी हो ।”
नीलेश हंसा ।
“प्रेग्नेंट न सही” - मनवार बोला - “ऐसीच सीरियस कोई और लफड़ा होगा उसका । जिस लड़की का लाइफ का लाइफ स्टाइल रात के एक बजे तक बार में अकेले बैठने की इजाजत देता हो, उसकी लाइफ लफड़ों का कोई तोड़ा होगा ?”
“ठीक !”
“बाहर बारिश होने लगी है । कस्टमर साला पहले ही नहीं है, अब आयेगा भी नहीं ।”
नीलेश ने बाहर की ओर निगाह उठाई ।
ग्लास डोर के बाजू में ही प्लेट ग्लास की विशाल विंडो थी जिससे बाहर का अच्छा नजारा किया जा सकता था । बाहर बारिश नहीं, मूसलाधार बारिश हो रही थी ।
“स्टॉम वार्निंग पहले से है ।” - मनावार बड़बड़ाया - “आगे किसी दिन साली ऐसीच बारिश स्टॉर्म बन जायेगी ।”
“वो जो सामने सड़क पार हाइट पर पेड़ों के बीच मकान हैं...”
“कॉटेज ।”
“ओके, कॉटेज । वो काफी हैं उधर ?”
“हैं कोई दर्जन भर । यहां से तो तीन ही दिखते हैं, बाकी आगे ढ़लान पर हैं ।”
“उन तक पहुंचने का रास्ता किधर से है ?”
“दायें बाजू सड़क पर कोई तीन सौ गज आगे जाने का । उधर ओकवुड रोड । वो उन काटेजों के बाजू से गुजरती है ।”
“थैंक्यू ।”
नीलेश ने अपना गिलास खाली किया, बिल चुकता किया और वहां से बाहर निकला ।
कार पर सवार होकर वो निर्देशित रास्ते पर बढ़ा ।
ओकवुड रोड कच्ची-पक्की, ऊबड़-खाबड़ सड़क निकली जिस पर कार चलाता वो कॉटेजों तक पहुंचा । उसने कार को एक जगह खड़ा किया और फिर पहले कॉटेज पर पहुंचा ।
बारिश बदस्तूर हो रही थी, सिर्फ दस गज का फासला तय करने में वो तकरीबन भीग गया था ।
कॉटेज के बाहरी जाली वाले दरवाजे पर उसे कहीं कालबैल न दिखार्इ दी । उसने दरवाजे पर दस्तक दी ।
कोई जवाब न मिला ।
बारिश से बचता, दीवार के साथ साथ चलता वो पिछवाड़े मे पहुंचा ।
वहां भी उसे सन्नाटा मिला ।
लगता था कॉटेज आबाद नहीं था ।
वो फ्रंट में वापिस आया, उसने और अगले कॉटेज तरफ निगाह दौड़ाई जो कि वहां से कोई दो सौ गज दूर था ।
कार पर सवार होकर वो उस कॉटेज तक पहुंचा जो कि कदरन बड़ा था ।
वहां घंटी बजाने की जरूरत ही न पड़ी । उसने सामने के बरामदे में बैठी एक अधेड़ महिला चाय चुसक रही थी और बारिश का आनंद ले रही थी ।
नीलेश ने कार की खिड़की का शीशा गिरा कर उसका अभिवादन किया और उच्च स्वर में बोला - “मैडम, मैं एक मिनट आपसे बात करना चाहाता हूं ।”
“क्या बात ?” - वो सशंक स्वर में बोली ।”
“बोलूंगा न !”
महिला के चेहरे पर अनिश्चय के भाव आये ।
“मैं आपका ज्यादा वक्त नहीं लूंगा ।” - अनुनयपूर्ण स्वर में बोला - “सिर्फ दो तीन मिनट ।”
“ओके ।” - वो बोली - “करो ।”
“यहीं से ?”
उसने उस बात पर विचार किया ।
“यहां आ जाओ ?” - फिर बोली ।
नीलेश कार से उतरा और लपक कर बरामदे में पहुंचा ।
“मैं नीलेश गोखले ।” - वो अदब से बोला ।
“मिसेज जगतियानी ।” - वो बोली - “बैठो ।”
“थैंक्यू ।” - वो उसके सामने बैंत की एक कुर्सी पर बैठा ।
“मैं तुम्हें चाय आफर नहीं कर रही हूं” - महिला बोली - “क्योंकि फिर तुम अपने ‘सिर्फ दो तीन मिनट’ वाले वादे पर खरे नहीं उतर पाओगे ।”
“हा हा । मजाक किया !”
“जहमत बचाई । बोलो अब, क्या चाहते हो ?”
“मैडम, वो उधर सड़क पर एक बार है-सेलर्स बार-जो यहां से दिखाई देता है । सड़क के मुकाबले में आप हाइट पर हैं इसलिये उम्मीद है यहां के अलावा कॉटेज के फ्रंट से भी दिखाई देता होगा ।”
“तो ?”
“मेरा उसी की बाबत एक सवाल है । अगर आप लेट स्लीपर हैं...”
“कितना लेट ?”
“पास्ट मिडनाइट !”
“नो । इधर मैं, मेरा हसबैंड और एक मेड है, कोई खास वजह न हो तो ग्यारह बजे से पहले हम सब सो जाते हैं ।”
“ओह !”
“लोकिन मिसेज परांजपे बेचारी को अनिद्रा की बीमारी है, वो लेट नाइट-बल्कि लेट लेट नाइट मजबूरन जागती है । आज मार्निंग में इधर आयी थी, उस लड़की की बात करती थी जिसका रूट फिफ्टीन पर मर्डर हुआ । तभी बोली बेचारी कि रात को तो कहीं तीन बजे जा कर उसको नींद आयी ।”
“मिसेज परांजपे कौन ?”
“वो जो हमारे से अगला कॉटेज है, परांजपेज वहां रहते हैं ।”
“मर्डर की क्या बात थी ?”
“उस रात को कोई डेढ़ बजे के करीब उसने एक पुलिस जीप को सेलर्स बार पर पहुंचते देखा था । मेरे से पूछ रही थी कि क्या कातिल उधर से गिरफ्तार हुआ था ?”
“मिसेज परांजपे ने एक पुलिस जीप को परसों रात के डेढ़ बजे सेलर्स बार पर पहुंचये देख था !”
“यही बोला उसने मेरे को आज सुबह ।”
“इस वक्त वो घर पर होंगी ?”
“भई, अभी बारिश शुरू होने से पहले तो दिखाई दी थीं ।”
“थैंक्यू मैम ।” - नीलेश उठ खड़ा हुआ - “देखा लीजिये, मैंन तीन मिनट से ज्यादा नहीं लिये ।”
“काफी चालक हो !”
“जी !”
“मैंने बोला होता पुलिस जीप मैंने देखी थी तो टल के न देते ।”
नीलेश हंसा ।
अगले कॉटेज में रहती मिसेज परांजपे एक डाई किये हुए बालों वाली उम्रदराज औरत निकली । नीलेश ने उसे मिसेज जगतियानी का हवाला यूं दिया जैसे वो उसकी पुरानी वाकिफ हो । उस बात का वृद्धा पर असर हुआ, उसने उसे भीतर ड्राईंगरूम में ले जा कर बिठाया ।
“मैं आपका बहुत थोड़ा वक्त लूंगा ।” - नीलेश बोला ।
“क्या ?”
“रात जब तुम लड़की से मिलने के वास्ते इधर आया था तो किधर से आया था ?”
“मेन हाइवे से ही आया था जो कि न्यू लिंक रोड कहलाता है ।”
“ठीक । इधर लड़की वेट करती थक गयी तो उसने बोले तो पैदल, वाक करके घर पहुंचने का फैसला किया । इस लिहाज से उसको न्यू लिंक रोड पर होना चाहिये था जहां उसको कोई लिफ्ट मिल जाने का भी चानस था । वो रूट फिफ्टीन पर काहे को पहुंच गयी ?”
नीलेश ने संजीदगी से उस बात पर विचार किया ।
“दो ही बातें हो सकती हैं ।” - फिर बोला - “या तो रात के टाइम भटक गयी या उसने समझा कि वो शार्ट कट था ।”
“ऐन ओपोजिट है ।”
“क्या मतलब ?”
“लांग कट है । आबादी में पहुंचने के लिये छोटा रास्ता न्यू लिंक रोड है ।”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“रुट फिफ्टीन पर कोई नहीं जाता ?”
“बहुत लोग जाते हैं । वो सड़क सीनिक ब्यूटी के लिये मशहूर है और आशिक-माशूकी के लिये मशहूर है । बोले तो आइलैंड की लवर्स लेन है । नौजवान जोड़े उधर हाथापायी, चूमाचाटी के लिये जाते हैं । और भी कुछ करें तो किसी को खबर नहीं लगती । जनरल ट्रेफिक के लिये जनरल रोड न्यू लिंक रोड है जो कि काफी बाद में बनी थी, उसके बनने से पहले अक्रॉस दि आइलैंड जो एक रोड थी वो रुट फिफ्टीन थी ।”
“तो रुट फिफ्टीन पर कैसे पहुंच गयी ?”
“मेरे को तो एक ही वजह सूझती है ।”
“क्या ?”
“खुदकुशी करने के लिये ।”
“क्या !”
“वो बहुत परेशान थी पण क्यों परेशान थी, ये तो वहीच जानती थी ।”
“तुम्हारा वजह को कोई अंदाजा ?”
“प्रेग्नेंट होगी । ब्वायफ्रेंड ने धोखा दिया, मदद की फरियाद तुम्हारे से लगाई, तुम पहुंचे नहीं, हैरान परेशान रूट फिफ्टीन पर चल दी । उसकी बैडलक खराब कि उधर कहीं वो कनफर्म्ड बेवड़ा पाण्डेय मिल गया जिसने अकेली पाकर उसे लूट लिया और फिर जो काम लड़की ने खुद करना था, वो उसने कर दिया ।”
“तुमने दिमाग का घोड़ा बढिया दौड़ाया है पर इसमें एक फच्चर है ।”
“क्या ?”
“लड़की प्रेग्नेंट नहीं थी ।”
“नहीं थी !”
“पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि वो प्रेग्नेंट नहीं थी ।”
“तुम्हें क्या मालूम पोस्टपार्टम रिर्पोट क्या कहती है !”
“था एक जरिया मेरा मालूम करने का ।”
“बोल तो काफी जुगाङू आदमी हो ।”
नीलेश हंसा ।
“प्रेग्नेंट न सही” - मनवार बोला - “ऐसीच सीरियस कोई और लफड़ा होगा उसका । जिस लड़की का लाइफ का लाइफ स्टाइल रात के एक बजे तक बार में अकेले बैठने की इजाजत देता हो, उसकी लाइफ लफड़ों का कोई तोड़ा होगा ?”
“ठीक !”
“बाहर बारिश होने लगी है । कस्टमर साला पहले ही नहीं है, अब आयेगा भी नहीं ।”
नीलेश ने बाहर की ओर निगाह उठाई ।
ग्लास डोर के बाजू में ही प्लेट ग्लास की विशाल विंडो थी जिससे बाहर का अच्छा नजारा किया जा सकता था । बाहर बारिश नहीं, मूसलाधार बारिश हो रही थी ।
“स्टॉम वार्निंग पहले से है ।” - मनावार बड़बड़ाया - “आगे किसी दिन साली ऐसीच बारिश स्टॉर्म बन जायेगी ।”
“वो जो सामने सड़क पार हाइट पर पेड़ों के बीच मकान हैं...”
“कॉटेज ।”
“ओके, कॉटेज । वो काफी हैं उधर ?”
“हैं कोई दर्जन भर । यहां से तो तीन ही दिखते हैं, बाकी आगे ढ़लान पर हैं ।”
“उन तक पहुंचने का रास्ता किधर से है ?”
“दायें बाजू सड़क पर कोई तीन सौ गज आगे जाने का । उधर ओकवुड रोड । वो उन काटेजों के बाजू से गुजरती है ।”
“थैंक्यू ।”
नीलेश ने अपना गिलास खाली किया, बिल चुकता किया और वहां से बाहर निकला ।
कार पर सवार होकर वो निर्देशित रास्ते पर बढ़ा ।
ओकवुड रोड कच्ची-पक्की, ऊबड़-खाबड़ सड़क निकली जिस पर कार चलाता वो कॉटेजों तक पहुंचा । उसने कार को एक जगह खड़ा किया और फिर पहले कॉटेज पर पहुंचा ।
बारिश बदस्तूर हो रही थी, सिर्फ दस गज का फासला तय करने में वो तकरीबन भीग गया था ।
कॉटेज के बाहरी जाली वाले दरवाजे पर उसे कहीं कालबैल न दिखार्इ दी । उसने दरवाजे पर दस्तक दी ।
कोई जवाब न मिला ।
बारिश से बचता, दीवार के साथ साथ चलता वो पिछवाड़े मे पहुंचा ।
वहां भी उसे सन्नाटा मिला ।
लगता था कॉटेज आबाद नहीं था ।
वो फ्रंट में वापिस आया, उसने और अगले कॉटेज तरफ निगाह दौड़ाई जो कि वहां से कोई दो सौ गज दूर था ।
कार पर सवार होकर वो उस कॉटेज तक पहुंचा जो कि कदरन बड़ा था ।
वहां घंटी बजाने की जरूरत ही न पड़ी । उसने सामने के बरामदे में बैठी एक अधेड़ महिला चाय चुसक रही थी और बारिश का आनंद ले रही थी ।
नीलेश ने कार की खिड़की का शीशा गिरा कर उसका अभिवादन किया और उच्च स्वर में बोला - “मैडम, मैं एक मिनट आपसे बात करना चाहाता हूं ।”
“क्या बात ?” - वो सशंक स्वर में बोली ।”
“बोलूंगा न !”
महिला के चेहरे पर अनिश्चय के भाव आये ।
“मैं आपका ज्यादा वक्त नहीं लूंगा ।” - अनुनयपूर्ण स्वर में बोला - “सिर्फ दो तीन मिनट ।”
“ओके ।” - वो बोली - “करो ।”
“यहीं से ?”
उसने उस बात पर विचार किया ।
“यहां आ जाओ ?” - फिर बोली ।
नीलेश कार से उतरा और लपक कर बरामदे में पहुंचा ।
“मैं नीलेश गोखले ।” - वो अदब से बोला ।
“मिसेज जगतियानी ।” - वो बोली - “बैठो ।”
“थैंक्यू ।” - वो उसके सामने बैंत की एक कुर्सी पर बैठा ।
“मैं तुम्हें चाय आफर नहीं कर रही हूं” - महिला बोली - “क्योंकि फिर तुम अपने ‘सिर्फ दो तीन मिनट’ वाले वादे पर खरे नहीं उतर पाओगे ।”
“हा हा । मजाक किया !”
“जहमत बचाई । बोलो अब, क्या चाहते हो ?”
“मैडम, वो उधर सड़क पर एक बार है-सेलर्स बार-जो यहां से दिखाई देता है । सड़क के मुकाबले में आप हाइट पर हैं इसलिये उम्मीद है यहां के अलावा कॉटेज के फ्रंट से भी दिखाई देता होगा ।”
“तो ?”
“मेरा उसी की बाबत एक सवाल है । अगर आप लेट स्लीपर हैं...”
“कितना लेट ?”
“पास्ट मिडनाइट !”
“नो । इधर मैं, मेरा हसबैंड और एक मेड है, कोई खास वजह न हो तो ग्यारह बजे से पहले हम सब सो जाते हैं ।”
“ओह !”
“लोकिन मिसेज परांजपे बेचारी को अनिद्रा की बीमारी है, वो लेट नाइट-बल्कि लेट लेट नाइट मजबूरन जागती है । आज मार्निंग में इधर आयी थी, उस लड़की की बात करती थी जिसका रूट फिफ्टीन पर मर्डर हुआ । तभी बोली बेचारी कि रात को तो कहीं तीन बजे जा कर उसको नींद आयी ।”
“मिसेज परांजपे कौन ?”
“वो जो हमारे से अगला कॉटेज है, परांजपेज वहां रहते हैं ।”
“मर्डर की क्या बात थी ?”
“उस रात को कोई डेढ़ बजे के करीब उसने एक पुलिस जीप को सेलर्स बार पर पहुंचते देखा था । मेरे से पूछ रही थी कि क्या कातिल उधर से गिरफ्तार हुआ था ?”
“मिसेज परांजपे ने एक पुलिस जीप को परसों रात के डेढ़ बजे सेलर्स बार पर पहुंचये देख था !”
“यही बोला उसने मेरे को आज सुबह ।”
“इस वक्त वो घर पर होंगी ?”
“भई, अभी बारिश शुरू होने से पहले तो दिखाई दी थीं ।”
“थैंक्यू मैम ।” - नीलेश उठ खड़ा हुआ - “देखा लीजिये, मैंन तीन मिनट से ज्यादा नहीं लिये ।”
“काफी चालक हो !”
“जी !”
“मैंने बोला होता पुलिस जीप मैंने देखी थी तो टल के न देते ।”
नीलेश हंसा ।
अगले कॉटेज में रहती मिसेज परांजपे एक डाई किये हुए बालों वाली उम्रदराज औरत निकली । नीलेश ने उसे मिसेज जगतियानी का हवाला यूं दिया जैसे वो उसकी पुरानी वाकिफ हो । उस बात का वृद्धा पर असर हुआ, उसने उसे भीतर ड्राईंगरूम में ले जा कर बिठाया ।
“मैं आपका बहुत थोड़ा वक्त लूंगा ।” - नीलेश बोला ।