Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात - Page 3 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात

राज जब घर पहुँचा, तो वहाँ डॉली बड़ी बेसब्री से उसी का इंतजार कर रही थी ।

वह घबराहट के मारे आज ऑफिस भी नहीं गयी थी ।

“क्या हुआ ?” राज को देखते ही वह उसकी तरफ लपकी- “कोई खास बात पता चली ?”

“हाँ ।” राज गहरी सांस लेता हुआ कुर्सी पर बैठ गया- “उस अजनबी का नाम मालूम हो गया है ।”

“क...कौन था वो ?”

“कोई चीना पहलवान नाम का अपराधी था, जिसके ऊपर डकैती और हत्या के कई केस दर्ज थे ।”

“ओह, इसके अलावा कुछ और पता चला ?”

“नहीं, बाकी तो कुछ नहीं पता चला ।” राज ने सस्पेंसफुल मुद्रा में कहा- “अब शाम को सांध्य टाइम्स आयेगा, शायद उसी से कोई और नई जानकारी मालूम हो ।”

☐☐☐
 
उसके बाद बड़ी बेसब्री से “सांध्य टाइम्स” का इंतजार शुरू हुआ ।

वह दोनों नटराज मूर्तियों के बारे में कोई जानकारी हासिल करने के लिये कुछ ज्यादा ही उत्सुक थे ।
खासतौर पर राज तो इस मामले में हद से ज्यादा बेकरार था ।

शाम को तीन बजे के करीब सांध्य टाइम्स आया ।

चीना पहलवान से सम्बन्धित खबर अखबार के कवर पेज पर ही मोटी-मोटी हैडलाइनों में छपी थी ।
लिखा था :
कुख्यात अपराधी चीना पहलवान की रहस्यमयी हत्या
शव बरामद

नई दिल्ली, 4 जुलाई । आज सुबह दिल्ली शहर के कुख्यात अपराधी चीना पहलवान की क्षत-विक्षिप्त लाश पुलिस को इंडिया गेट के नजदीक बेहद रहस्यमयी हालत में पड़ी मिली । मृत्यु का कारण वह दो गोलियां बतायी जाती हैं, जो चीना पहलवान की पीठ में लगी हुई थीं ।

इस सम्बन्ध में गश्तीदल के दो पुलिसकर्मियों का कहना है कि उन्होंने रीगल सिनेमा के नजदीक गश्त लगाते समय पौने बारह बजे के करीब गोलियों के दो धमाके सुने थे, गोलियों की आवाज सुनकर वह फौरन आवाज की दिशा में दौड़े, जहाँ उन्होंने चीना पहलवान को भागते हुए देखा । उसके हाथ में काले रंग का एक ब्रीफकेस था, वह पुलिसकर्मी चीना पहलवान को पकड़ पाते, उससे पहले ही वो रीगल के सामने अंधेरे में खड़ी एक ऑटो रिक्शा में बैठकर फरार हो गया । गश्तीदल के पुलिसकर्मियों ने ऑटो का नम्बर भी नोट करने का प्रयास किया, लेकिन उसकी नम्बर प्लेट पर मिट्टी पुती होने के कारण वह अपने मकसद में कामयाब न हो सके ।

पुलिस का अनुमान है कि ऑटो रिक्शा ड्राइवर चीना पहलवान का कोई सहयोगी था, पुलिस मामले की तह तक पहुँचने के लिये ऑटो रिक्शा ड्राइवर और चीना पहलवान के ब्रीफकेस की बड़ी सरगर्मी से तलाश कर रही है ।
राज ने वह खबर खुद भी पढ़ी और डॉली को भी सुनाई । पूरे समाचार में नटराज मूर्तियों का कहीं भी कोई जिक्र न था । लेकिन एक बात बड़ी भयानक थी- दिल्ली पुलिस, ऑटो रिक्शा ड्राइवर का चीना पहलवान से जो सम्बन्ध निकाल रही थी, उसने उन दोनों के होश उड़ाकर रख दिये ।
☐☐☐
“य...यह तो बड़ी खतरनाक खबर है ।” सांध्य टाइम्स अखबार में छपी उस खबर को सुनकर डॉली के शरीर में कंपकंपी दौड़ी ।
“क्यों ?”
“मालूम नहीं- पुलिस तुम्हारे और चीना पहलवान के बीच क्या सम्बन्ध निकाल रही है ? वह तुम्हें उसका कोई सगेवाला समझ रही है ।”
“मुझे नहीं समझ रही ।” राज गुर्राया - “बल्कि वह उस ऑटो ड्राइवर को उसका सगेवाला समझ रही है, जो उसे रीगल सिनेमा के पास से लेकर भागा था ।”
“लेकिन राज !” डॉली की आंखों में हैरानी के भाव थे - “वह ऑटो ड्राइवर तू ही तो था ।”
“अभी यह बात सिर्फ हम दोनों को मालूम है, हम दोनों को । पुलिस यह रहस्य नहीं जानती कि वो ऑटो ड्राइवर मैं ही था ।”
“अगर पुलिस अभी इस रहस्य को नहीं जानती ।” डॉली थर-थर कांपते हुए स्वर में बोली- “तो बहुत जल्द वो जान भी जायेगी । मैं तुझसे पहले ही कहती थी राज, इस चक्कर में मत पड़ ! मत पड़ !! फंस जायेगा । लेकिन नहीं, तब तो मेरी बात तेरे कान पर नहीं रेंग रही थी, तब तो तुझे सिर्फ धनवान बनने का शौक चढ़ा था ।”
“अब इन बेकार की बातों को छोड़ डॉली !” राज झुंझला उठा- “सच बात तो यह है कि अभी भी हमारा कुछ नहीं बिगड़ा है । अगर हम ठण्डे दिमाग से सारे हालातों का जायजा लें, तो खुद हमें भी महसूस होगा कि पुलिस हम तक कभी भी नहीं पहुँच सकती ।”
“क्यों नहीं पहुँच सकती ?”
“क्योंकि पुलिस अभी सिर्फ यह जानती है डॉली !” राज एक-एक शब्द चबाता हुआ बोला- “कि कोई चीना पहलवान को ऑटो रिक्शा में लेकर भागा । शब्दों पर गौर करो- ‘कोई’ । अभी यह बात मुकम्मल अंधेरे में है कि वह ‘कोई’ कौन था ? दिल्ली पुलिस अभी न तो मेरे नाम से ही वाकिफ है और न उसे मेरी ऑटो रिक्शा का नम्बर ही मालूम है । डॉली !” राज की आवाज और ज्यादा रहस्यमयी हो उठी- “दिल्ली शहर में ऑटो रिक्शाओं की कमी नहीं है । यहाँ हजारों की संख्या में ऑटो हैं । इसलिये दिल्ली पुलिस को यह बात इतनी आसानी से नहीं पता चलेगी कि जिस ऑटो रिक्शा में चीना पहलवान रीगल के पास से भागा, उस ऑटो रिक्शा का ड्राइवर कौन था ।”
“अ...और मूर्तियां !” डॉली ने सकपकाये स्वर में पूछा- “मूर्तियों का क्या होगा ?”
“मूर्तियों के सम्बन्ध में एक बड़ी अच्छी बात है ।” राज उत्साहपूर्वक बोला- “उनके बारे में अभी दिल्ली पुलिस को कुछ भी मालूम नहीं है ।”
“त...तुम कहना क्या चाहते हो ?”
“देखो डॉली !” राज ने उसे विस्तार से समझाया- “इस समय जो बात चीना पहलवान से हमारा लिंक जोड़ती है, वो है हमारे पास मौजूद सोने की छः नटराज मूर्तियां । उन मूर्तियों के अलावा हमारे पास ऐसा कोई सूत्र नहीं है, जो पुलिस के सामने इस बात की शहादत बन सके कि हमारा चीना पहलवान से या उसकी लाश से कैसा भी कोई रिश्ता था । और फिलहाल हमारे पास सबसे दूसरा ट्रम्प कार्ड यह है कि पुलिस उन मूर्तियों की तरफ से भी पूरी तरह अंजान है, इसलिये इससे पहले कि दिल्ली पुलिस ऑटो ड्राइवरों की छानबीन करती हुई मेरे तक पहुंचे, उससे पहले ही क्यों न हम मूर्तियां बेचकर दिल्ली से ही फरार हो जायें ।”
“यह...यह क्या कह रहे हो तुम ?” डॉली चौंकी ।
“ठीक ही तो कह रहा हूँ ।” राज सनसनीखेज स्वर में ही बोला- “पुलिस को सभी ऑटो ड्राइवरों की जांच-पड़ताल करने में कम-से-कम तीन-चार दिन का समय लग जायेगा । इस बीच हम आराम से वह नटराज मूर्तियां बेच सकते हैं । मूर्तियां बेचने के बाद हमारे पास कोई सबूत भी नहीं रहेगा ।”
“ल...लेकिन सवाल तो ये है राज, वो मूर्तियां बेची भी किस तरह जायेंगी ?” डॉली शुष्क स्वर में बोली- “मैं पहले ही आशंका जाहिर कर चुकी हूँ, अगर वह मूर्तियां चोरी की हुई तो...?”
“तो क्या होगा ?”
“तब तू पकड़ा नहीं जायेगा ?”
“नहीं ।” राज ने बड़े ही विश्वास के साथ इंकार में गर्दन हिलाई- “मैं तब भी नहीं पकड़ा जाऊंगा ।”
“क...कैसे ?” डॉली ने हैरानी से नेत्र फैलाकर पूछा ।
“जरा सोचो डॉली !” राज ने आइडिया बताया- “अगर कोई आदमी किसी ऐसी दुकान पर जाकर चोरी का माल बेचे, जो दुकानदार ज्यादातर चोरी का ही माल खरीदता हो, तो फिर खतरा कैसा ? फिर वो दुकानदार भला पुलिस को इन्फॉर्मेशन क्यों देगा ?”
“त...तुम ऐसे किसी सर्राफ को जानते हो ?” डॉली के मुँह से सिसकारी छूटी- “जो चोरी का सोना खरीदता है ?”
“हाँ, जानता हूँ । और आज रात को ही मैं उससे मूर्तियों का सौदा करूंगा, क्योंकि इस मामले में मैं ज्यादा देर नहीं करना चाहता ।”
डॉली हैरानी से राज को देखती रह गयी ।
उस राज को, जो हर पल एक गहरी पहेली बनता जा रहा था ।
☐☐☐
 
दरीबा कलां !
यह जगह दिल्ली में चांदनी चौक के नजदीक ही है ।
उस समय रात के ग्यारह बज रहे थे, सर्राफे की रिटेल मार्केट के रूप में प्रसिद्ध दरीबा कलां की तब तक लगभग हर दुकान बंद हो चुकी थी । सिर्फ अपवाद के तौर पर एक दुकान खुली थी, जिसके शटर के ऊपर एक नियोन साइन बोर्ड जल-बुझ रहा था ।
उस नियोन साइन पर लिखा था-
सेठ दीवानचन्द एण्ड सन्स
सनमाइका के विशाल काउण्टर के पीछे सेठ दीवानचन्द एण्ड सन्स का एक सेल्समैन खड़ा था ।
सेल्समैन ने सबसे पहले अपना चश्मा दुरुस्त किया, फिर तीक्ष्ण दृष्टि काउंटर पर कोहनी टिकाये खड़े राज पर डाली और उसके बाद अपनी बेहद पारखी नजरों से उस नटराज मूर्ति को देखने लगा, जिसे राज ने अभी-अभी उसे बेचने की खातिर सौंपी थी ।
मूर्ति देखते-देखते सेल्समैन की आंखों में एकाएक हैरानी के चिन्ह उभरने लगे ।
फिर उसने घोर आश्चर्य से पूछा- “य...यह मूर्ति तुम्हारे पास कहाँ से आयी ?”
“मैंने चुराई है ।” राज ने बड़ी दिलेरी के साथ जवाब दिया ।
“च...चुराई है ?” एक पल के लिये सेल्समैन के होश उड़ गये ।
“हाँ ।”
“अगर यह चोरी की हैं, तो तुम इसे यहाँ क्यों लेकर आये हो ?” सेल्समैन थोड़ा भड़ककर बोला- “हम चोरी का माल बिल्कुल नहीं खरीदते, समझे !”
मुस्कराया राज ।
उसकी ‘मुस्कान’ ने सेल्समैन को और ज्यादा सस्पेंस में फंसा दिया- “त...तुम मुस्करा क्यों रहे हो ?”
“क्योंकि मुझे सब मालूम है बिरादर !” राज बोला- “मैं जानता हूँ कि तुम और तुम्हारे सेठजी रात के दो-दो बजे तक यहाँ बैठकर क्या करते हैं ।”
“क्या करते हैं ?” सेल्समैन ने अपनी आंखें लाल-पीली कीं ।
“देखो, मैं यहाँ लड़ाई-झगड़ा करने नहीं आया ।” राज ने अपनी आवाज नरम की- “अगर तुम्हारी इच्छा हो, तो मूर्ति खरीदो । न इच्छा हो, तो मना करो ।” उसके बाद राज ने सेल्समैन के हाथ से अपनी इकलौती नटराज मूर्ति ले ली और फिर चलने का उपक्रम करता हुआ बोला- “वैसे एक बात कहूँ ?”
“कहो ।”
“मेरे जिस दोस्त ने मूर्ति बेचने के लिये मुझे यहाँ का एड्रेस दिया था, वह एड्रेस गलत नहीं हो सकता । क्योंकि मेरा दोस्त बहुत भरोसे वाला आदमी है और उसने अपने जीते जी कभी कोई गलत बात जबान से बाहर नहीं निकाली ।”
वह बात कहने के बाद राज जैसे ही जाने के लिए मुड़ा ।
“सुनो !” सेल्समैन ने फौरन उसे पुकारा ।
राज ठिठका ।
“क्या है ?”
“तुम अपने उस दोस्त का नाम बता सकते हो, जिसने तुम्हें यहाँ का एड्रेस दिया ?”
अब राज सकपकाया ।
उसे एकाएक कोई जवाब न सूझा ।
“बताया नहीं तुमने, तुम्हारे दोस्त का क्या नाम है?”
“च...चीना… चीना पहलवान ।” राज के मुँह से चीना पहलवान का नाम अनायास ही निकल गया- “च...चीना पहलवान ने मुझे यहाँ का एड्रेस दिया था ।”
चीना पहलवान !
उस नाम को सुनकर सेल्समैन के नेत्र यूं अचम्भे से फटे, मानो उसके सिर पर एकाएक बम आकर गिर गया हो ।
“त...तुम चीना पहलवान के दोस्त हो ?” सेल्समैन के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“हाँ ।”
“ठीक है, तुम मुझे मूर्ति दिखाओ ।” सेल्समैन आश्चर्यपूर्ण मुद्रा में ही बोला- “मैं अभी अंदर सेठ जी से बात करके आता हूँ ।”
राज ने खुशी-खुशी मूर्ति उसे सौंप दी।
सेल्समैन मूर्ति लेकर दुकान के अंदर वाले पोर्शन में चला गया ।
राज नहीं जानता था, अब वो एक और कितनी बड़ी आफत में फंसने जा रहा है ।
कितनी बड़ी मुश्किल उसके सिर पर टूटने वाली है ।
☐☐☐
दरअसल ‘सेठ दीवानचंद एण्ड संस’ की ज्वैलरी शॉप दो पोर्शन में बंटी हुई थी ।
एक फ्रंट पोर्शन !
जबकि दूसरा फ्रंट पोर्शन से ही होता हुआ अंदर का पोर्शन ।
उस अंदर के पोर्शन में ही सर्राफों के सर्राफ सेठ दीवानचंद बैठते थे और वहाँ तक सिर्फ सेल्समैन की पहुँच थी, वहाँ कोई कस्टमर नहीं जा सकता था ।
वह सर्राफे की दुकान रोजाना रात के दो बजे तक खुलती थी । इतना ही नहीं, तब तक वहाँ राज जैसे इक्का-दुक्का ग्राहक भी आते रहते थे ।
ऐसे ही कई ग्राहकों को राज पहले भी कई मर्तबा अपनी ऑटो रिक्शा में बिठाकर वहाँ लाया था । उनमें से कुछेक ग्राहक नशे में बुरी तरह धुत्त होते और वह ऑटो में बैठे-बैठे सेठ दीवानचंद को माल बेचकर बस रुपया हासिल होने की बात करते रहते । राज को तभी मालूम हुआ, रात के समय वहाँ कौन-सा धंधा होता है ।
इस समय राज फ्रंट पोर्शन में बिल्कुल अकेला खड़ा था ।
ज्वैलरी के वहाँ जितने भी शोकेस थे, वह सब लॉक्ड थे, ताकि कोई उनके साथ छेड़छाड़ न कर सके ।
राज ने अपने चेहरे पर नकली दाढ़ी-मूंछे भी चिपकाई हुई थीं।
उसे वहाँ खड़े-खड़े दस मिनट से भी ज्यादा गुजर गये, लेकिन सेल्समैन अंदर वाले पोर्शन से बाहर न निकला ।
अब राज बेचैन हो उठा ।
“क...क्या चक्कर है ? यह बाहर क्यों नहीं आ रहा ?”
राज बेचैनीपूर्वक इधर-से-उधर टहलने लगा ।
पांच मिनट और इसी तरह गुजर गये, लेकिन सेल्समैन फिर भी बाहर न निकला ।
अब राज की बेचैनी हद से ज्यादा बढ़ चुकी थी ।
उसके दिमाग में रह-रहकर खतरे की घण्टियां बजने लगी ।
“ज...जरूर कुछ चक्कर है ?”
“ज...जरूर कुछ घपला है ?”
“भाग राज, भाग !”
“भाग !”
राज के माथे पर पसीने चुहचुहाने लगे ।
एकाएक राज बड़ी फुर्ती के साथ ज्वैलरी शॉप से बाहर निकला और नजदीक ही बने कारपोरेशन के पेशाबघर में जा घुसा ।
पेशाबघर की जालियों के पीछे से ज्वैलरी शॉप का नजारा बिल्कुल साफ देखा जा सकता था ।
☐☐☐
 
तभी घटना ने एक और नया मोड़ लिया ।
राज ने देखा- उसके पेशाबघर में घुसते ही भड़ाक से सेकंड पोर्शन का दरवाजा खुला था, फिर उसमें से सेल्समैन के साथ-साथ बुरी तरह हड़बड़ाया एक और आदमी भी बाहर निकला ।
जरूर वह सेठ दीवानचंद था ।
उसकी उम्र तक़रीबन चालीस-पैंतालीस के बीच थी । गेंहुआ रंग, लम्बी-चौड़ी कद काठी, साधारण सेठों की भांति उसका शरीर थुलथुला होने की बजाय काफी तंदरुस्त था । उसने काले रंग का बंद गले का कोट और काली पैंट के साथ ही अपने गले में ढेरों किस्म की रंग-बिरंगी मालायें भी पहनी हुई थीं । दोनों हाथों में रत्नजड़ित अंगुठियां थीं । कुल मिलाकर सेठ दीवानचंद अपने पहनावे से ही धनकुबेर नजर आ रहा था । लेकिन उसके चेहरे पर ऐसी क्रूरता विद्यमान थी, जो ज्यादातर खतरनाक अपराधियों के चेहरे पर ही पाई जाती है ।
राज को ज्वैलरी शॉप के अंदर से गायब देख वह दोनों चौंके ।
“य...यह कहाँ गया?” सेल्समैन की साफ-साफ भौंचक्की आवाज राज के कानों में पड़ी ।
“वडी तेरे को ही मालूम होगा नी, कहाँ गया ?” सेठ दीवानचंद अपनी 'सिन्धी' भाषा में बोला-"मेरे से क्या पूछता है नी ?”
“ल...लेकिन अभी तो यहीं था ।” सेल्समैन दौड़कर ज्वैलरी शॉप से बाहर निकला और सड़क पर दायें-बायें देखने लगा- “अभी-अभी में वो कहाँ गायब हो गया ?”
पेशाबघर में छिपा राज माजरा समझ पाता, तभी उसके देखते ही देखते सेठ दीवानचंद की ज्वैलरी शॉप के सामने एक फियेट धड़धड़ाती हुई आकर रुकी ।
फिर फियेट में से एक-एक करके दनादन तीन मवाली बाहर कूदे ।
दो के हाथ में हॉकियां थीं ।
एक के हाथ में साइकिल की चैन ।
नीचे कूदते ही उन्होंने सेठ दीवानचंद और सेल्समैन से धीरे-धीरे कुछ बातें कीं, उनके हाव-भाव बता रहे थे कि चर्चा उसी के बारे में हो रही है ।
“वह जरूर इधर गया है ।” तभी सेल्समैन ने गली में दायीं तरफ उंगली उठाई ।
“तुमने देखा था उसे भागते हुए ?” एक गुण्डे ने सेल्समैन से पूछा ।
“न...नहीं ।” सेल्समैन सकपकाया- “भागते हुए तो नहीं देखा ।”
“फिर क्या गारंटी है कि वो इसी तरफ गया है ?” दूसरा गुण्डा बोला- “सम्भव है कि वो इस तरफ गया हो ।” गुण्डे ने दूसरी दिशा में उंगली उठाई ।
“वडी तुम लोग यूं ही बक-बक किये जाओगे नी ।” सेठ दीवानचंद झल्ला उठा- “या फिर दौड़कर उस हरामी को पकड़ोगे भी । भई सब हर तरफ फैल जाओ, वह जिस तरफ भी भागा होगा, अपने आप पकड़ा जायेगा ।”
सेठ दीवानचंद के तर्क में जान थी ।
फौरन वह तीनों मवाली और सेल्समैन अलग-अलग दिशाओं में दौड़ पड़े ।
जबकि पेशाबघर में छिपे राज का दिमाग सुनसान पड़ी वीरान घाटियां बन चुका था ।
उसके मस्तिष्क में रह-रहकर एक ही सवाल डंके की तरह बज रहा था- “सेठ दीवानचंद को उसके पीछे गुण्डे लगाने की क्या जरूरत थी ?”
“वह इस तरह उसे क्यों ढूंढ रहे थे ?”
“क्या चक्कर था ?”
राज को लगा- जैसे रहस्य का जाल हर पल उसके चारों तरफ कसता जा रहा हो ।
कसता ही जा रहा हो ।
☐☐☐
उस दिन राज चोरों की तरह छिपता-छिपाता सोनपुर में दाखिल हुआ, दरीबा कलां से वहाँ तक का रास्ता उसने दौड़कर पूरा किया था ।
इसलिए उसकी सांस बेहद तेज चल रही थी ।
आज वो एक नये संकट में फंसते-फंसते बचा था, यह तो ऊपर वाले की कृपा थी कि वह आज डॉली के पास से सिर्फ एक ही नटराज मूर्ति लेकर चला था, वरना आज उन तमाम नटराज मूर्तियों से उसे हाथ धोना पड़ता ।
सोनपुर में आकर राज ने चैन की सांस ली, लेकिन उसे कहाँ मालूम था कि अब चैन उसकी किस्मत से पूरी तरह छिन चुका है ।
नकली दाढ़ी-मूंछे वो पेशाबघर में ही उतार चुका था ।
तभी उसके साथ एक और घटना घटी ।
खतरनाक घटना ।
रोजाना की तरह उस दिन भी सोनपुर में सन्नाटा फैला था । तभी एकाएक राज को अपने पीछे सरसराहट-सी सुनाई दी ।
“क...कौन है ?”
राज जैसे ही बौखलाकर पलटा, तुरन्त उसके मुँह से हृदयविदारक चीख निकल गयी ।
एक लम्बे फल वाला चाकू बिजली की तरह चमचमाता हुआ अंधेरे में कौंधा था और फिर उसके बायें बाजू से रगड़ खाकर गिरा ।
अगर राज से पलटने में एक क्षण का भी देर हो जाती, वह चाकू उसकी पीठ में आर-पार जा धंसना था ।
एकाएक हुए इस हमले से राज के होश फना हो गये ।
अंधेरा होने के बावजूद उसने हमलावर को बिल्कुल साफ-साफ पहचाना, चाकू बल्ले ने चलाया था ।
बल्ले !
यानि सोनपुर का नम्बर एक गुण्डा ।
बल्ले, राज पर दोबारा हमला करने के लिये पुनः चाकू के ऊपर झपटा ।
“क्या हुआ? क्या हुआ?”
उसी क्षण भड़ाक से डॉली के घर का दरवाजा खुला और फिर वह लगभग चीखती-चिल्लाती राज की तरफ लपकी ।
डॉली द्वारा एकदम से मचायी चीख-पुकार से घबराकर बल्ले भाग खड़ा हुआ ।
“क्या हुआ राज, क्या हुआ ?”
डॉली दौड़कर राज के करीब पहुँची और उसने उसे अपनी बांहों में भर लिया ।
“व...वो...वो...।” राज की दहशत के मारे बुरी हालत थी ।
“क्या हुआ ?”
“व...वो बल्ले मुझे चाकू मारकर भाग गया ।”
“व...वो बल्ले था ?” डॉली के मुँह से सिसकारी छूटी ।
डॉली भी घबरा उठी ।
“ह...हाँ, वो बल्ले ही था ।”
“चल, तू जल्दी घर चल राज !”
“ल...लेकिन बात क्या है ?”
“तूने सुना नहीं ।” डॉली गुर्रा उठी- “जल्दी घर चल ।”
“म...मगर... !”
राज के आगे के तमाम शब्द अधूरे रह गये, क्योंकि बुरी तरह दहशतजदां डॉली ने उसकी शर्ट का कॉलर पकड़ा था और फिर वह उसे लगभग घसीटती हुई घर की तरफ ले गयी ।
किसी भूसे के बोरे की तरह उसने राज को चारपाई पर पटका और फिर बेपनाह फुर्ती के साथ दरवाजा बंद करती हुई बोली- “तेरे पीछे यहाँ पुलिस आयी थी बेवकूफ ।”
☐☐☐
 
“प...पुलिस !”
वह ‘शब्द’ राज के दिमाग में इस तरह टकराया, मानो धायं से राइफल की गोली लगी हो ।
शरीर फ्रीज !
हाथ-पैर सुन्न !
चेहरे का रंग उड़ गया ।
थर-थर कांपते स्वर में पूछा उसने- “ल...लेकिन पुलिस यहाँ क्यों आयी थी ?”
“तुझे पकड़ने आयी थी ।” डॉली ने एक और भयंकर धमाका किया- “गिरफ्तार करने आयी थी तुझे ।”
“ग...गिरफ्तार करने ।” राज का जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा हो गया- “य...यह तू क्या कह रही है डॉली ?”
“वही कह रही हूँ बेवकूफ, जो सच है ।” डॉली ने दांत किटकिटाये- “पुलिस की एक पूरी जीप भरकर सोनपुर में आयी थी, वह तेरे बारे में ही पूछताछ कर रहे थे । कोई इंस्पेक्टर योगी नाम का बड़ा कड़क पुलिसिया था, वह बोलता था कि तूने चीना पहलवान का खून किया है ।”
“ख...खून ! च...चीना पहलवान का खून !!!” राज इस तरह थर-थर कांपने लगा, जैसे जूड़ी का मरीज कांपता है ।
“उस इंस्पेक्टर ने मोहल्ले वालों के सामने तेरे घर का ताला भी तोड़ा और वहाँ की तलाशी भी ली ।”
“फ...फिर मिला उसे कुछ वहाँ से ?”
“कहाँ से मिलता ?” डॉली गुर्रायी- “मूर्तियां तो तूने मेरे पास रख छोड़ी हैं । राज, मैं तेरे से पहले ही बोलती थी, कोई भी अपराधी पुलिस के फंदे से ज्यादा दिन तक नहीं बचा रह सकता । अब देख तेरी तमाम चालाकियों के बावजूद, तेरी तमाम योजना के बावजूद पुलिस तेरे तक कितनी जल्दी पहुँच गयी । कितनी जल्दी तेरी करतूत का पर्दाफाश हो गया ।”
उस हादसे ने राज की खोपड़ी और ज्यादा फिरकनी की तरह घुमाकर रख दी ।
“ल...लेकिन मेरे एक बात समझ नहीं आयी ।” राज झल्लाकर बोला- “इंस्पेक्टर योगी को इतनी जल्दी यह हकीकत कैसे मालूम हो गयी कि चीना पहलवान की लाश हम दोनों ने ठिकाने लगायी थी ?”
“हम दोनों ने नहीं ।” डॉली नागिन की तरह फुंफकार उठी- “हम दोनों ने नहीं राज- सिर्फ खुद को बोल । मैं तेरे इस बेहद खतरनाक और जानलेवा चक्कर में नहीं पड़ने वाली ।”
“मैं ही सही, लेकिन इंस्पेक्टर योगी को यह खबर हुई कैसे ?” राज विचलित मुद्रा में बोला- “उसने यह कैसे पता लगाया कि चीना पहलवान की हत्या में या उसकी लाश ठिकाने लगाने में मेरा कैसा भी कोई हाथ था ?”
“मुझे क्या मालूम ? इंस्पेक्टर योगी को किस तरह मालूम हुआ ? पुलिस वालों के अपने सोर्स होते हैं । जांच करने का अपना स्टाइल होता है । जरूर इंस्पेक्टर योगी ने किसी तरह यह सारी हकीकत पता लगा ली होगी ।”
राज के दिमाग में धमाके होने लगे ।
तेज धमाके ।
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सारी घटनायें इतनी सुपर फास्ट स्पीड से घट रही थीं, जिनकी राज ने कल्पना भी न की थी ।
हर क्षण चौंका देने वाला था ।
हर कदम रहस्य से भरा हुआ ।
तभी डॉली ने एक और भयंकर विस्फोट किया ।
“जानता है बल्ले कौन है ?” डॉली का सनसनाया स्वर ।
“क...कौन है ?”
“वो चीना पहलवान का सगा भतीजा है ।”
“भ...भतीजा ? च...चीना पहलवान का भतीजा ?”
“हाँ ।”
“क...कमाल है, पहले तो मुझे यह बात मालूम नहीं थी ।”
“सिर्फ तुझे क्या, सोनपुर में पहले यह बात किसी को मालूम नहीं थी ।” डॉली बोली- “एक बात सुनकर तू और हैरान होगा राज, चीना पहलवान रहता भी सोनपुर में ही था । आगे जो कोने वाला मकान है, उसी में ।”
“यह कैसे हो सकता है ?” राज के मुँह से तेज सिसकारी छूटी- “अ...अगर चीना पहलवान सोनपुर में ही रहता था, तो वह पहले कभी दिखाई क्यों नहीं दिया ? जबकि मैंने पहले उसे किशनपरा में तो क्या पूरी दिल्ली में कहीं नहीं देखा था ।”
“मैंने खुद पहली कभी उसे सोनपुर में नहीं देखा था ।” डॉली बोली- “दरअसल वह आधी रात के समय कभी-कभार ही उस घर में आता था, जिसमें बल्ले रहता है । इसलिये हममें से कोई भी उसे न देख सका ।”
“ओह ।”
सचमुच सारी परिस्थितियां बेहद चौंका देने वाली थीं । चौंका देने वाली भी और हद से ज्यादा सस्पेंसफुल भी ।
“चीना पहलवान की लाश का क्या हुआ ?”
“वह शाम तक ताबूत में बंद शवगृह के अंदर रखी थी । इंस्पेक्टर योगी बता रहा था कि लावारिस लाशों को तीन-चार दिन तक इसलिये शवगृह में रखा जाता है कि क्या पता उन्हें कोई हासिल करने वाला आ ही जाये । अगर कोई नहीं आता, तो फिर उन लावारिस लाशों का सरकार ही दाह-संस्कार कर देती है । आज इंस्पेक्टर योगी की बल्ले से मुलाकात न होती, तो बहुत मुमकिन था कि चीना पहलवान की लाश को भी लावारिस समझकर सरकार ही उसका दाह संस्कार कर देती ।”
“इ...इसका मतलब इंस्पेक्टर योगी भी इस बात से वाकिफ नहीं था ।” राज भौंचक्के स्वर में बोला- “कि चीना पहलवान बल्ले का चाचा है ?”
“नहीं, अगर इंस्पेक्टर योगी इस बात से वाकिफ होता, तो सुबह ही बल्ले को चीना पहलवान की हत्या की इन्फॉर्मेशन न दे दी जाती । दरअसल बल्ले को तो अपने चाचा की मौत की खबर तब मिली, जब इंस्पेक्टर योगी तुझे गिरफ्तार करने सोनपुर आया था ।”
“ओह !” राज भयभीत मुद्रा में बोला- “तब तो बल्ले बहुत भड़क रहा होगा ?”
“भड़कता ही । आखिर उसके चाचा की हत्या हुई थी, वह इंस्पेक्टर योगी के सामने ही खूब गरज-गरजकर कह रहा था कि अगर राज ने उसके चाचा को मारा है, तो वह राज को किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ेगा, उसे भी मार डालेगा ।”
राज के शरीर में झुरझुरी दौड़ गयी ।
अब सारा माजरा उसकी समझ में आया ।
अब वो समझा कि सोनपुर में घुसते ही बल्ले ने उसके ऊपर जानलेवा हमला क्यों किया था ।
☐☐☐
“बल्ले जब चिल्ला-चिल्लाकर मुझे जान से मार डालने के लिये कह रहा था ।” राज अपने शुष्क होठों पर जबान फिराता बोला- “तो इंस्पेक्टर योगी ने उससे कुछ नहीं कहा ?”
“वह क्या कहता? आखिर चाचा मरा था बल्ले का । इसलिये उसका यूँ गुस्से में गरजना-बरसना जायज ही था । कौन सदमे की हालत में इस तरह की बातें नहीं बोलता ।”
“एक बात कहूँ राज ?” डॉली ने अपलक उसे देखते हुए कहा ।
“क्या ?”
“जरूर बल्ले बहुत देर से सोनपुर में तेरे आने का इंतजार कर रहा होगा, जो उसने यूं एकदम से तेरे ऊपर हमला कर दिया ।”
राज के गले की घण्टी जोर से उछली ।
“ल...लेकिन मुझे यह थोड़े ही मालूम था ।” राज सकपकाये स्वर में बोला- “कि चीना पहलवान, बल्ले का चाचा है । फिर चीना पहलवान ने भी तो मुझे कल रात यह बात नहीं बतायी कि वो सोनपुर में ही रहता है । अगर उसने मुझे यह बात बतायी होती, तो फिर क्या मैं पागल था, जो उससे मूर्तियां हड़पने की सोचता । फिर यह बात भी बड़ी अजीबोगरीब है कि सोनपुर में आने के बाद भी चीना पहलवान अपने घर नहीं गया बल्कि मेरे घर आया । वाकई एक के बाद एक नये-नये मायाजाल जन्म ले रहे हैं ।”
“इस बात के पीछे तो एक सॉलिड वजह हो सकती है, जो चीना पहलवान अपने घर नहीं गया ।”
“क्या सॉलिड वजह हो सकती है ?”
“मत भूलो, चीना पहलवान के पास सोने की छः बेशकीमती मूर्तियां थीं । मुमकिन है कि उन बहुमूल्य मूर्तियों को लेकर चीना पहलवान ने अपने भतीजे के पास जाना मुनासिब न समझा हो । आखिर उसका भतीजा था तो एक गुण्डा ही, मवाली ही । क्या पता चीना पहलवान को यह शक हो कि अगर वो मूर्तियां लेकर बल्ले के पास गया, तो बल्ले उन मूर्तियों को डकार जायेगा ।”
डॉली काफी हद तक ठीक कह रही थी ।
यह बात संभव थी ।
“भू...राज, अब तू जितनी जल्दी हो सके, यहाँ से चला जा ।”
“क...क्यों ?”
“पागल आदमी !” डॉली दांत किटकिटाकर बोली- “तू नहीं जानता, तुझे गिरफ्तार करने यहाँ कभी भी इंस्पेक्टर योगी आ सकता है । फिर बल्ले के सिर पर भी खून सवार है, वो इतनी आसानी से खामोश बैठने वाला नहीं है । इस बार तो उसका वार खाली चला गया, लेकिन बहुत मुमकिन है कि उसका दूसरा वार खाली न जाये ।”
राज का पोर-पोर कांप उठा ।
“इसलिए जितना जल्द से जल्द हो ।” डॉली बोली- “यहाँ से चला जा ।”
“ल...लेकिन मैं इतनी रात को कहाँ जाऊं ?”
“कहीं भी जा ।” डॉली का स्वर जज्बाती हो उठा- “लेकिन अगर तुझे अपनी जान की थोड़ी-सी भी परवाह है, अपने हाथ-पैरों को हिलते-डुलते देखना चाहता है, तो सोनपुर में एक सेकेंड के लिये भी मत रुक । वरना तू खामख्वाह अपनी इस जिंदगी से हाथ धो बैठेगा ।”
राज के शरीर से पसीने की धारायें छूटने लगीं ।
कैसी विचित्र हालत हो गयी थी उसकी ।
सोनपुर के अलावा उसका कहीं कोई और ठिकाना भी तो नहीं था, जहाँ वो जाता ।
“अब खड़े-खड़े सोच क्या रहा है ?”
राज मरे-मरे कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़ा ।
“और सुन !”
राज के कदम ठिठक गये ।
“उस मूर्ति का क्या हुआ, जिसे तू बेचने गया था ?” डॉली जल्दी से उसके सामने पहुँचकर बोली ।
‘मूर्ति’ के नाम राज की गर्दन लटक गयी ।
“बताता क्यों नहीं, क्या हुआ मूर्ति का ? क्या वो बिक गयी ?”
“न...नहीं ।”
“फिर ?”
राज ने फंसे-फंसे स्वर में पूरी घटना डॉली को बता दी ।
डॉली हैरानी से उसे देखती रह गयी ।
“कोई बात नहीं ।” फिर डॉली ने उसकी हिम्मत बंधाई- “मूर्ति गयी, तो गयी । जिंदगी बची रहनी चाहिये । इंसान की जिंदगी सलामत रहे, तो हजार मर्तबा उसके सामने धनवान बनने के मौके आते हैं ।”
राज चुप रहा ।
“अब तू जा, जल्दी जा । तेरा यहाँ ज्यादा ठहरना ठीक नहीं है ।”
राज पुनः मरे-मरे कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
☐☐☐
 
तभी फिर एक और बेहद हृदयविदारक घटना घटी ।
राज दरवाजे तक पहुँच पाता, उससे पहले ही इतनी जोर-जोर से दरवाजा भड़भड़ाया गया, मानो कोई उसे तोड़ ही डालेगा ।
“कौन है ?” डॉली चिल्लायी ।
“दरवाजा खोलो ।” बाहर से इंस्पेक्टर योगी का कड़कड़ाता स्वर उभरा- “पुलिस ।”
“प...पुलिस !” रूह कांप गयी राज और डॉली की ।
दोनों दहल उठे ।
“ज...जरूर...जरूर बल्ले ने पुलिस को तुम्हारे बारे में इन्फॉर्मेशन दे दी है ।” डॉली फुसफुसाई ।
“दरवाजा खोलो ।” इस बार इंस्पेक्टर योगी पहले से भी ज्यादा जोर से हलक फाड़कर चिल्लाया ।
साथ ही उसने अपने कंधे की प्रचण्ड चोट भी दरवाजे पर मारी ।
“भ...राज !” डॉली का चेहरा सफेद झक्क पड़ चुका था- “राज, तू पिछली खिड़की से कूदकर भाग जा ।”
“ल...लेकिन... ।”
“बहस मत कर । जल्दी भाग, जल्दी ।”
राज फौरन खिड़की की तरफ झपट पड़ा । खिड़की सड़क से चार, साढ़े चार फुट ऊपर थी ।
वह एक क्षण के लिये हिचकिचाया ।
“दरवाजा खोलो ।” तभी इंस्पेक्टर योगी की खौफनाक आवाज पुनः उसके मस्तिष्क पर हथौड़े की तरह पड़ी ।
राज तुरन्त खिड़की से नीचे कूद गया ।
कूदते समय उसके कानों में दरवाजा भड़भड़ाये जाने की भी तेज आवाज पड़ी ।
लेकिन अब राज को मुड़कर कहाँ देखना था ।
राज ने एक बार भागना शुरू किया, तो वह रेस के घोड़े की तरह भागता ही चला गया ।
☐☐☐
राज की जिंदगी में एक ऐसे खतरनाक सिलसिले की शुरुआत हो चुकी थी, जिसका अन्त खुद उसे भी मालूम नहीं था ।
वह उस क्षण को कोसने लगा, जब रातों-रात धनवान बनने की लालसा में नटराज मूर्तियों हड़पने का ख्याल उसके मन में आया था ।
थोड़ी ही देर बाद वो डी.टी. सी. के बस स्टॉप शेल्टर के नीचे खड़ा था ।
भागने के कारण उसकी सांस धोकनी की तरह चल रही थीं ।
चेहरे पर हवाइयां थीं ।
राज ने सोचा, वह बच गया ।
लेकिन नहीं, बचा तो वह तब भी नहीं ।
उसकी किस्मत में तो पूरी खानाखराबी लिखी थी ।
वह एक और बड़े ‘नरक’ में जाकर गिरा ।
राज की जेब में उस समय सिर्फ बीस रुपये थे, वह भी उसने दरीबा कलां जाने से पहले डॉली से उधार लिये थे । जल्द ही बस स्टॉप पर एक बस आकर रुकी, वह उसी में चढ़ गया ।
इतनी रात के समय भी बस में खूब भीड़भाड़ थी ।
अगला सितम राज के ऊपर यह टूटकर गिरा कि वह जब टिकट लेने के उद्देश्य से कंडक्टर के पास पहुँचा और उसने अपनी जेब में हाथ डाला, तो फौरन उसके होश उड़ गये ।
जेब साफ थी ।
“हे भगवान !” राज के शरीर में थरथरी दौड़ गयी- “किसी को जेब भी मेरी ही काटनी थी ?”
“मैं ही मिला था उसे ?”
लेकिन जिस भगवान के सामने वो दुहाई दे रहा था, उसी भगवान ने उसके सर्वनाश की फुल योजना बना रखी थी ।
और सर्वनाश न सही, परन्तु नाश तो राज का तभी हो गया ।
बस जैसे ही अपने अगले स्टॉप पर जाकर रुकी, तभी उसमें आगे-पीछे से दो टिकट-चेकर दनदनाते हुए चढ़ गये ।
☐☐☐
परिणाम !
राज को टिकट न लेने के अपराध में बाकी की सारी रात हवालात के अन्दर गुजारनी पड़ी ।
वह रात उसके ऊपर बड़ी भारी गुजरी ।
दरअसल रात उसी के साथ-साथ हवालात में एक कत्ल का अपराधी भी बंद हुआ था । वह बड़ी-बड़ी मूंछों वाला विशालकाय जिस्म का मालिक था । उसे जब यह मालूम हुई कि राज टिकट न लेने के अपराध में बंद हुआ है, तो उसने राज पर रौब गाँठना शुरू कर दिया, उसे धमकाना शुरू कर दिया ।
जिसका रिजल्ट यह निकला कि थोड़ी ही देर बाद राज बड़ी तन्मयता से उसके हाथ-पैर दबा रहा था ।
आधी से ज्यादा रात उसकी हाथ-पैर दबाते हुए गुजरी ।
सुबह दस बजे के करीब वहाँ दो कांस्टेबल आये और उन्हें हवालात में से निकालकर उसी थाने के इंस्पेक्टर के सामने पेश करने के लिये ले गये ।
वहाँ एक और नई आफत राज का इंतजार कर रही थी । उसकी दृष्टि इंस्पेक्टर योगी पर पड़ी ।
इंस्पेक्टर योगी, स्थानीय थानाध्यक्ष के बिल्कुल पहलू में पड़ी एक कुर्सी पर बैठा था ।
योगी को देखते ही राज के शरीर में यूं भीषण प्रकंपन हुआ, मानो उसने साक्षात् यमराज के दर्शन कर लिये हों । निश्चय ही इंस्पेक्टर योगी ने बड़ी-बड़ी मूंछों वाले उस कत्ल के अपराधी को गिरफ्तार किया था और इसी सिलसिले में वो वहाँ मौजूद था ।
तभी टेलीफोन की घण्टी बजी ।
फोन स्थानीय थानाध्यक्ष ने रिसीव किया ।
कुछ देर वो बड़े ध्यान से कोई आदेश सुनता रहा और हूँ-हाँ करता रहा, फिर उसने रिसीवर वापस क्रेडिल पर रख दिया ।
“किसका फोन था ?” इंस्पेक्टर योगी ने मनपसन्द ब्राण्ड ‘फोर स्क्वायर’ की सिगरेट सुलगाते हुए पूछा ।
“हेडक्वार्टर से फोन था ।” थानाध्यक्ष ने बताया- “संग्रहालय से सोने की जो छः नटराज मूर्तियां चोरी हुई थीं, आज उन्हीं के सिलसिले में दोपहर दो बजे हेडक्वार्टर के अंदर एक मीटिंग है ।”
नटराज मूर्तियों के नाम से राज के कान खड़े हो गये ।
“सुना है ।” इंस्पेक्टर योगी बोला- “उन मूर्तियों की कीमत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में दो करोड़ रुपये आंकी गयी है ।”
“ऑफकोर्स, यह सच है ।” थानाध्यक्ष थोड़े व्यग्र स्वर में बोला- “और सबसे बड़ी हैरतअंगेज बात यह है कि दिल्ली के विभिन्न संग्रहालयों से ऐसी दुर्लभ (एंटिक) वस्तुओं की लगभग आठ चोरियां हो चुकी हैं, लेकिन चोर आज तक नहीं पकड़ा जा सका ।”
“दिल्ली पुलिस कोशिश तो बहुत कर रही है ।” इंस्पेक्टर योगी बोला ।
“कोशिश, सिर्फ कोशिश ।” स्थानीय थानाध्यक्ष ने कसैला-सा मुँह बनाया- “हमारी उन कोशिशों का आज तक कोई भी रिजल्ट नहीं निकल सका । क्या कर सके हैं हम आज तक ? सिवाय यह पता लगाने के कि इन दुर्लभ वस्तुओं की चोरी के पीछे जरूर ही कोई बड़ा अपराधी संगठन सक्रिय है ।”
वह भौंचक्का-सा खड़ा रह गया ।
द...दो करोड़ !
बाप रे !
तो उन मूर्तियों की कीमत दो करोड़ रुपये है ।
उन्हें संग्रहालय से चुराया गया है ?
और...और अब दिल्ली पुलिस में उन्हीं मूर्तियों को लेकर इतनी हायतौबा मची है ।
इतना हड़कम्प मचा है ।
राज की हवा खुश्क हो गयी ।
☐☐☐
 
यही वो पल था, जब स्थानीय थानाध्यक्ष की बड़ी कड़कदार आवाज राज के कानों में पड़ी- “इसने क्या किया है ?”
फौरन राज की विचार-श्रृंखला टूटी ।
“साहब!” वहीं खड़ा एक हवलदार बोला- “यह बस में बिना टिकट यात्रा कर रहा था, रात ही पकड़ा गया है ।”
“क्यों बे ?” थानाध्यक्ष चिंघाड़ा- “बिना टिकट यात्रा क्यों कर रहा था ?”
“प...पैसे नहीं थे साहब ।”
“उल्लू के पट्ठे !” थानाध्यक्ष ज्यालामुखी की तरह फटा- “पैसे नहीं थे, तो बस में ही क्यों चढ़ा था ? पैदल चलते टांगें टूटती हैं साले ?”
राज जबड़ा भींचे खड़ा रहा ।
वो जानता था कि वहाँ जेब कटने वाली उसकी बात पर कोई यकीन नहीं करेगा ।
अगर उसने वह बात अपनी जबान से बाहर निकाली, तो उसकी धुनाई के चांस बढ़ जाने थे ।
वह घुटा हुआ मुजरिम साबित हो जाना था ।
“नाम क्या है तेरा ?” थानाध्यक्ष ने उसे कोड़े जैसी फटकार लगायी ।
राज ने एक सकपकायी-सी नजर योगी पर डाली ।
“उधर क्या देख रहा है हरामी !” थानाध्यक्ष पुनः आंखें लाल-पीली करके चिंघाड़ा- “इधर देख, नाम क्या है तेरा ?”
“क...राज ।”
“रहता कहाँ है ?”
यहीं, दिल्ली में ।”
“अबे भूतनी के दिल्ली में कहाँ रहता है ?” थानाध्यक्ष गुर्राया- “मोहल्ले का भी कुछ नाम होगा ?”
अब...अब राज की जान हलक में आ फंसी ।
उसे मालूम था कि इधर उसने सोनपुर का नाम अपनी जबान से बाहर निकाला और उधर इंस्पेक्टर योगी फौरन हरकत में आ जायेगा, एकदम पहचान लेगा उसे और उसके बाद उसकी खैर नहीं थी ।
“अबे तेरी माँ का पैंदा मारूं, जवाब नहीं दिया ।” थानाध्यक्ष ने दांत किटकिटाये- “कहाँ रहता है ?”
राज चुप !
“साले- हरामी, बोलता नहीं है । कुत्ता समझता है मुझे ! मुँह में जबान नहीं है तेरे ।” आक्रोश में चिंघाड़ते हुए थानाध्यक्ष कुर्सी से उछलकर खड़ा हुआ तथा फिर बिजली जैसी फुर्ती से अपने डंडे की तरफ झपटा ।
राज का पोर-पोर कांप उठा ।
“मैं देखता हूँ सूअर !” थानाध्यक्ष फिर दहाड़ा- “मैं देखता हूँ कि तू कैसे नहीं बोलता । तेरा तो बाप भी बोलेगा । अगर आज मैंने मार-मारकर तेरे जिस्म से चमड़ी अलग न कर दी, तो मैं अपने बाप से पैदा नहीं ।”
गुस्से में गरजते हुए थानाध्यक्ष ने झपटकर अपना डंडा उठाया, फिर वह जैसे ही उसे मारने के लिए दौड़ा ।
“न...नहीं ।” राज आतंकित होकर चिल्ला उठा- “नहीं ।”
“क्या नहीं ?”
“म...मारना नहीं, मारना नहीं साहब !” राज खौफजदां आलम में बोला- “म...मैं बताता हूँ- सब कुछ बताया हूँ ।”
“जल्दी बता ।”
“क...सोनपुर, म...मैं सोनपुर में रहता हूँ साहब !”
☐☐☐
और जिस बात का राज को डर था, वही हुआ ।
‘सोनपुर’ का नाम लेते ही धमाका-सा हो गया ।
सोनपुर का नाम सुनकर थानाध्यक्ष तो न चौंका, लेकिन इंस्पेक्टर योगी जरूर उछल पड़ा ।
उसकी आंखों में एकाएक अचम्भे जैसे भाव उभरे ।
“त...तू सोनपुर में रहता है ?”
राज चुप !
“त...तू वही राज है न ।” इंस्पेक्टर योगी झटके से कुर्सी छोड़कर उठा और फिर तेजी से उसकी तरफ बढ़ा- “व...वही राज, जो ऑटो चलाता है ?”
राज की आंखों में अब खौफ की छाया डोल गयी ।
उसने अपने हाथ-पैर ढीले छोड़ दिये, वह समझ चुका था कि तमाम कोशिशों के बावजूद वह आखिरकार योगी के शिंकजे में फंस गया है ।
“जवाब दे ।” योगी ने उसका गिरेहबान पकड़कर बुरी तरह झंझोड़ा- “तू ऑटो ड्राइवर राज ही है न ?”
“ह...हाँ ।” राज भारी मन से बोला- हाँ, मैं वही हूँ ।”
“और...और वह भी तू ही था ।” योगी उत्तेजित हो उठा- “जो बुधवार की रात को ऑटो ड्राइवरों की हड़ताल के बावजूद रीगल सिनेमा के सामने खड़ा था ?”
“व...वो मैं नहीं था ।”
“झूठ बोलता है साले !” योगी हिंसक लहजे में बोला- “झूठ बोलता है । मैंने पूरे केस की खूब अच्छी तरह इंवेस्टीगेशन की है. मेरे पास ऐसी सरकमस्टेंशनल एविडेन्सिज (मौका-ए-वारदात की गवाहिया) और सबूत हैं, जो साफ-साफ तेरी वहाँ उपस्थिति साबित करते हैं ।”
“आप चाहे कुछ भी कहें साहब !” राज दृढ़ लहजे में बोला- “मैं बुधवार की रात रीगल सिनेमा के सामने नहीं था, तो नहीं था । फिर पूरे दिल्ली शहर में ऑटो ड्राइवरों की हड़ताल चल रही है, मुझे क्या अपनी आफत बुलानी थी साहब, जो मैं यूनियन के नियम तोड़कर ऑटो के साथ रीगल के सामने जाकर खड़ा होता ?”
“यानि तूने नियम नहीं तोड़ा ?” योगी ने उसे भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा ।
“ब...बिल्कुल भी नहीं साहब ।”
“झूठ बोलता है हरामी !” योगी ने उसका गिरेहबान और बुरी तरह झंझोड़ा- “झूठ बोलता है ।”
“म...मेरी क्या मजाल साहेब, जो मैं आपसे झूठ बोलूं ? आप जैसे बड़े सरकारी अफसर से झूठ बोलूं ?”
“यानि तू !” इंस्पेक्टर योगी जहरीले नाग की तरह फुंफकारा- “तू बुधवार की रात वाकई रीगल सिनेमा के सामने नहीं था ?”
“बिल्कुल नहीं ।”
“फिर तू रात डॉली के घर से भागा क्यों ?” योगी चीखता चला गया- “अगर तू बेकसूर था साले ।” योगी ने उसे झंझोड़ा- “तूने कुछ नहीं किया था, तो रात मेरी आवाज सुनकर तेरी हवा खराब क्यों हुई ?”
“क...कौन कहता है ।” राज ने पूरे ढीठपने से उत्तर दिया- “कि मैं रात डॉली के घर से भागा था ?”
“मैं कहता हूँ ।”
“ज...जरूर आपको कोई गलतफहमी हो गयी है साहब, म...मैं तो नहीं भागा ।”
“झूठ बोलता है- फिर झूठ बोलता है ।” आक्रोश में चिंघाडते हुए योगी ने अपने लोहे जैसे हाथ का एक ऐसा प्रचण्ड झांपड़ राज के मुँह पर मारा कि वह हलक फाड़कर चिल्ला उठा ।
उसकी आंखों के गिर्द रंग-बिरंगे तारे घूम गये ।
“मुझे झूठा साबित करता है, मेरे से जबानदराजी करता है ।” योगी ने धड़ाधड़ दो झांपड़ और उसके मुँह पर जड़े, फिर चीखता हुआ बोला- “रात बल्ले ने एकदम साफतौर पर मुझे रिपोर्ट दी थी कि उसने तुझे अपनी आंखों से डॉली के घर में घुसते देखा है, उसकी रिपोर्ट मिलते ही मैं फौरन भागा-भागा सोनपुर पहुँचा ।”
“ब...बल्ले ने जरूर आपसे झूठ बोला होगा साहब !” राज कंपकंपाये स्वर में बोला- “व...वो समझता है कि मैंने उसके चाचा का खून किया है, इसी वजह से वो मुझसे बदला लेना चाहता है ।”
इंस्पेक्टर योगी फौरन हवलदार की तरफ घूमा ।
“रात टिकट चेकर इसे किस वक्त यहाँ पकड़कर लाये थे ?”
हवलदार सकपकाया ।
“जवाब दो, क्या बज रहा होगा उस समय ?”
“ए...एकदम कन्फर्म तो मुझे नहीं मालूम साहब !”
“फिर भी अंदाजन ?”
‘य...यही कोई साढ़े बारह और एक के बीच का समय रहा होगा ।”
“सुना-सुना ।” योगी फिरकनी की तरह वापस राज की तरफ घूम गया- “सुना, हवलदार क्या कह रहा है ।”
“क्या कह रहा है ?”
“उल्लू के पट्ठे !” योगी तिलमिलाया- “यह कहता है कि टिकट चेकर तुझे साढ़े बारह और एक बजे के बीच में यहाँ लेकर आये । यानि उन्होंने साढ़े बारह बजे के करीब तुझे बस के अंदर पकड़ा और बारह बजे के आसपास मैंने बल्ले की इन्फॉर्मेशन पर डॉली के घर रेड डाली थी । इन सभी घटनाओं की टाइमिंग से यह बात पूरी तरह साबित होती है कि तूने डॉली के घर से फरार होकर सीधे बस पकड़ी और तभी तू बिना टिकट यात्रा करने के अपराध में गिरफ्तार भी हो गया ।”
“मैं पुलिस से बचकर नहीं भागा ।”
“अगर तू पुलिस से बचकर नहीं भागा ।” इंस्पेक्टर योगी दांत किटकिटाता हुआ बोला- “तो तूने बस क्यों पकड़ी ? इतनी रात को कहाँ जा रहा था तू ?”
“म...मैंने बस ऐसी ही पकड़ ली ।”
“ऐसे ही !”
“द...दरअसल मेरा थोड़ा सैर-सपाटा करने को दिल चाहा था ।”
“इतनी रात गये ?” योगी ने उसे भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा- “इतनी रात गये तेरा सैर-सपाटा करने को दिल चाहा था साले ! जेब में एक पैसा नहीं था और तेरा सैर-सपाटा करने को दिल चाहा था । वाह, क्या कहानी है ।”
राज सकपकाकर दायें-बायें बगलें झांकने लगा ।
उसकी खामोशी ने योगी के गुस्से पर घी डालने जैसा काम किया, योगी ने आवेश में फुंफकारते हुए राज के शरीर पर लात-घूंसे बरसा डाले ।
हाहाकार कर उठा राज !
उसके करुणादाई रूदन से कक्ष की दीवारें दहल गयीं ।
परन्तु योगी ने उस पर तरस नहीं खाया, उसका कलेजा नहीं कांपा ।
तीन-चार मिनट में ही उसने राज की वो दुर्गति कर डाली, जो शायद ही उसकी जीवन में पहले कभी हुई हो ।
कपड़े शरीर पर तार-तार होकर झूलने लगे ।
राज अब जमीन पर चारों खाने चित्त पड़ा जोर-जोर से हिचकियां लेकर रो रहा था ।
“अभी देखता हूँ साले !” योगी ने भड़ाक से उसके एक लात जड़ी और फुंफकारा- “अभी देखता हूँ कि तू कैसे कबूल नहीं करता कि उस रात रीगल सिनेमा के सामने तू ही था ।”
फिर योगी टेलीफोन की तरफ बढ़ गया ।
स्थानीय थानाध्यक्ष जो अभी तक वस्तुस्थिति से अंजान था, उसने जिज्ञासावश पूछा- “आखिर बात क्या है योगी- इसने क्या किया है ?”
“इसने !” इंस्पेक्टर योगी ने हिचकियों से रोते राज की तरफ भाले की तरह उंगली उठाई- “इसने चीना पहलवान की हत्या की है ।”
“च...चीना पहलवान की हत्या !”
वहाँ मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के मुँह से चीना पहलवान के नाम सिसकारी छूट गयी ।
खासतौर पर बड़ी-बड़ी मूंछों वाला वह हत्यारा तो सन्न ही खड़ा रह गया, जिसने राज से सारी रात टांगें दबवाई थीं ।
सब दंग !
जबकि राज अभी भी जोर-जोर से हिचकियां लेकर रो रहा था ।
☐☐☐
 
इंस्पेक्टर योगी ने कहीं फोन किया ।
फोन करने के लगभग पंद्रह मिनट बाद जिस व्यक्ति ने पुलिस स्टेशन में कदम रखा, उसे देखते ही राज के होश फना हो गये ।
वह फ्लाइंग स्क्वॉयड के उस दस्ते का सब-इंस्पेक्टर था, जिसने बुधवार की रात राज की ऑटो रिक्शा को आई.टी.ओ. के ओवर ब्रिज से थोड़ा आगे स्पीडिंग के अपराध में रोका था ।
वहाँ मौजूद हवलदार और बड़ी-बडी मूंछों वाला हत्यारा, वह सभी अब राज से दहशतजदां नजर आ रहे थे । जैसाकि होना था, फ्लाइंग स्क्वॉयड दस्ते के सब-इंस्पेक्टर ने आते ही राज को पहचान लिया । उसने कहा कि बुधवार की रात उसने जिस ऑटो रिक्शा को मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर रोका, उसका चालक वही था ।
उसने यह भी कहा कि इसके ऑटो रिक्शा में एक बड़े मोटे पेट वाली लड़की थी, जिसके फौरन बच्चा होने वाला था ।
“तुम उस लड़की को पहचान सकते हो ?” योगी ने सब-इंस्पेक्टर से पूछा ।
सब-इंस्पेक्टर थोड़ा हिचकिचाया ।
“जवाब दो ।”
“स...सॉरी सर !” उस इंस्पेक्टर की आवाज निराशा में डूबी हुई थी- “दरअसल रात गहरी थी, फिर सड़क पर बिल्कुल करीब कोई रोड लैम्प भी न जल रहा था, इसलिए मैं लड़की का चेहरा बिल्कुल साफतौर पर न देख सका । मैंने तो इसकी ऑटो का नम्बर भी इसलिये नोट कर लिया था सर, क्योंकि सभी ऑटो ड्राइवरों की हड़ताल चल रही थी । अगले दिन मुझे जब यह मालूम हुआ कि कोई चीना पहलवान को ऑटो में लेकर फरार हुआ है और चीना पहलवान की लाश इंडिया गेट पर पड़ी पायी गयी है, तो मैंने इसकी ऑटो का नम्बर आपको सौंपना ज्यादा मुनासिब समझा ।”
“ल...लेकिन इससे यह कहाँ साबित होता है ।” पूरी बात सुनकर राज के अंदर हौसला जाग गया- “कि चीना पहलवान को मैं ही रीगल सिनेमा से लेकर भागा था । दिल्ली शहर में हजारों की तादाद में ऑटो रिक्शा हैं साहब, हो सकता है कि जो चीना पहलवान को रीगल सिनेमा के सामने से लेकर फरार हुआ, वह कोई और ऑटो ड्राइवर हो । इस घटना से मेरा अपराध तो साबित ही नहीं होता ।”
“होता है, होता है तेरा अपराध भी साबित ।” इंस्पेक्टर योगी गजब के आत्मविश्वास के साथ बोला- “तेरा चीना पहलवान की हत्या में इसलिये अपराध साबित होता है राज, क्योंकि तूने बुधवार की रात इन सब-इंस्पेक्टर साहब को जिस लड़की के बारे में यह बताया था कि यह पेट से है, वह लड़की हकीकत में पेट से थी ही नहीं ।”
राज चौंका ।
“य...यह बात आप इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हो ?”
“क्योंकि वह एक बेहद पतली-दुबली लड़की थी ।” योगी धमाके पर धमाके करता हुआ बोला- “और उस समय वह एक लाश के ऊपर लेटी थी ।”
“ल...लाश के ऊपर !” राज के मुँह से चीख निकली ।
“हाँ !” योगी बड़े सहज भाव से बोला- “लाश के ऊपर ।”
“क...किसकी लाश के ऊपर ?”
“चीना पहलवान की लाश और किसकी लाश ।”
राज के दिल-दिमाग पर बिजली-सी गड़गड़ाकर गिरी । उसके नेत्र हैरत से फैल गये ।
“य...यह आपको कैसे मालूम कि वो लड़की चीना पहलवान की लाश के ऊपर लेटी थी ?”
यह शब्द कहते ही राज ने अपने होंठ सी लिये ।
उससे गलती हो चुकी थी, भयंकर गलती ।
यह सवाल पूछकर उसने लगभग कबूल ही कर लिया था कि वो अपराधी है ।
☐☐☐
जबकि मुस्कराया योगी !
बड़े ही खतरनाक ढंग से मुस्कराया ।
“मैं तुझे बताता हूँ ।” योगी बोला- “कि मुझे यह बात कैसे मालूम हुई, वो लड़की एक लाश के ऊपर लेटी है । दरअसल अगर वह लड़की सचमुच पेट से होती और उसकी हालत वाकई उतनी ही सीरियस होती, जितनी तू बयान कर रहा था, तो तूने उस लड़की को फौरन किसी हॉस्पिटल के मैटरनिटी वार्ड में जरूर भर्ती कराया होता । बोल, कराया होता या नहीं ?”
राज चुप !
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा ।
“यही बात तूने बुधवार की रात इन सब-इंस्पेक्टर साहब के सामने भी कही थी ।” योगी आगे बोला- “तूने बेहद बौखलाये हुए अंदाज में कहा था कि लड़की की हालत काफी सीरियस है, दाई ने कहा है कि अगर लड़की की जिंदगी चाहते हो, तो इसे फौरन किसी बड़े हॉस्पिटल ले जाओ । लेकिन... ।”
“ल...लेकिन क्या ?”
“तू उस लड़की को किसी हॉस्पिटल में लेकर नहीं गया ।” योगी ने झटके के साथ कहा ।
“क्या सबूत है आपके पास ?” राज बोला- “कि मैं उस लड़की को किसी हॉस्पिटल में लेकर नहीं गया ?”
“सबूत- सबूत मांगता है मुझसे ।” इंस्पेक्टर योगी गुर्रा उठा, उसकी आंखों में खून उतर आया- “साले- मुझे सब-इंस्पेक्टर से जैसे ही तेरी ऑटो रिक्शा का नम्बर मिला, तो मैंने फौरन तमाम हॉस्पिटलों की चैकिंग की थी, वहाँ के मेटरनिटी वार्डों की भर्ती रजिस्ट्री चेक की थी । और मालूम मेरी उस सारी भागा-दौड़ी का क्या नतीजा निकला ?”
“क...क्या नतीजा निकला ?”
“मुझे मालूम हुआ ।” योगी दांत पीसता हुआ बोला- “कि बुधवार की रात दिल्ली शहर के किसी भी हॉस्पिटल के किसी भी मेटरनिटी वार्ड में उस समय के आसपास डिलीवरी का कैसा भी कोई केस एडमिट नहीं हुआ था ।”
☐☐☐
 
राज सन्न रह गया ।
एकदम सन्न ।
वह हैरत से आंखें फाड़-फाड़कर इंस्पेक्टर योगी को इस तरह देखने लगा, मानों साक्षात् कुतुबमीनार उसके सामने आकर खड़ी हो गयी हो ।
उसने तो कल्पना भी नहीं की थी कि पुलिस इतने मामूली से प्वॉइंट को लेकर इतनी जल्दी उस तक पहुँच जायेगी ।
बहरहाल योगी ने उसके तमाम सपनों को तोड़ दिया था ।
योगी ने साबित कर दिया था, कानून के हाथ वाकई बहुत लम्बे होते हैं ।
जिनसे कोई नहीं बच सकता ।
“अगर तू अब भी यही कहता है ।” इंस्पेक्टर योगी बड़े सब्र के साथ बोला- “कि तेरी ऑटो रिक्शा की पिछली सीट पर चीना पहलवान की लाश नहीं बल्कि गर्भ धारण किये हुए कोई लड़की ही थी, तो तू कह सकता है । मुझे कोई ऐतराज नहीं । लेकिन फिर तू मुझे उस हॉस्पिटल का नाम बता, जिसमें तूने गर्भधारण किये हुए उस लड़की को एडमिट कराया था ?”
राज चुप !
“इसके अलावा मुझे उस लड़की का भी नाम बता ।” योगी बोला- “जो गर्भ से थी । उस लड़की का एड्रेस भी बता, ताकि पुलिस उसके घर जाकर उससे पूछताछ कर सके और अपना यह शक दूर कर सके कि बुधवार की रात तेरी ऑटो रिक्शा में गर्भ धारण किये हुए कोई लड़की थी भी या नहीं थी ।”
राज फिर चुप !
फिर खामोश !
वह सिर्फ दहशतजदां आंखों से बार-बार सबके चेहरे देख रहा था ।
वो जानता था, वो एक बड़ी मुश्किल में फंस चुका है ।
“इन सब बातों के अलावा इसलिये भी तेरा अपराध साबित होता है ।” इस बार फ्लाइंग स्क्वॉयड का सब-इंस्पेक्टर बोला- “क्योंकि बुधवार की रात फ्लाइंग स्क्वॉयड दस्तों ने पूरी दिल्ली में सिर्फ दो बार ऑटो रिक्शा देखी । पहली बार ऑटो रिक्शा रीगल सिनेमा के पास देखी गयी, जबकि दूसरी बार मैंने मण्डी हाउस के करीब देखी । चूँकि रीगल सिनेमा के पास गश्तीदल के गार्डो ने चीना पहलवान को अपने पैरों से दौड़कर ऑटो रिक्शा में सवार होते देखा था, तो बात भी खुद-ब-खुद ही साबित हो जाती है कि चीना पहलवान ऑटो में बैठने के बाद मरा और ऑटो रिक्शा ड्राइवर ने ही उसे इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति के पास फेंका । इसके अलावा एक सबसे महत्वपूर्ण बात ये है ।” सब-इंस्पेक्टर ने अपने शब्दों पर पूरी तरह जोर दिया- “कि इंडिया गेट के आसपास गश्त लगाते फ्लाइंग स्क्वॉयड के और दस्तों ने भी तेरे अलावा किसी दूसरी ऑटो रिक्शा को उस इलाके में नहीं देखा । अगर वो किसी दूसरी ऑटो रिक्शा को देखते, तो हड़ताल होने की वजह से उनका खास ध्यान जरूर उस तरफ जाता । तुझे यह बात सुनकर हैरानी होगी राज, इंडिया गेट के आसपास गश्त लगाते फ्लाइंग स्क्वॉयड के अभी ऐसे दो दस्ते और हैं, जिन्होंने बुधवार की रात तेरी ऑटो रिक्शा उस इलाके में देखी और हड़ताल होने की वजह से उन्होंने तेरी ऑटो रिक्शा का नम्बर भी नोट किया ।”
राज के मस्तिष्क में अनार-पटाखे छूटने लगे ।
उसे अपना दिमाग अंतरिक्ष में चक्कर काटता महसूस हुआ ।
☐☐☐
“ल...लेकिन यह जरूरी तो नहीं ।” राज लगभग हथियार डालता हुआ बोला- “कि चीना पहलवान की हत्या भी उसी ऑटो रिक्शा ड्राइवर ने की हो, जो ऑटो रिक्शा में चीना पहलवान को रीगल के पास से लेकर भागा था ?”
“बिल्कुल जरूरी है ।” योगी दृढ़ लहजे में बोला- “बिल्कुल उसी ऑटो ड्राइवर ने ही चीना पहलवान की हत्या की है ।”
“क...क्यों जरूरी है ?”
“क्योंकि कोई और हत्या कर ही नहीं सकता ।” योगी पहले की तरह ही दृढ़ लहजे में बोला- “कोई और प्राइम सस्पेक्ट है ही नहीं । जब चीना पहलवान सही-सलामत अपने पैरों पर भागता हआ ऑटो में बैठा, तो उसकी हत्या ऑटो ड्राइवर के अलावा और कौन कर सकता है ? फिर उसी ऑटो ड्राइवर ने ही चीना पहलवान की लाश को ठिकाने भी लगाया । यानि दोनों जगह एक ही आदमी मौजूद था । चीना पहलवान की सलामती पर भी और उसके इस दुनिया से कूच कर जाने के बाद भी । यह सारी हरकत एक ऑटो ड्राइवर की है और वह ऑटो ड्राइवर तू है, सिर्फ तू ।”
“न...नहीं, मैं नहीं हूँ ।”
“तू झूठ बोल रहा है ।” इंस्पेक्टर योगी ने एकाएक उसे इतनी जोर से घुड़का कि राज की सारी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी ।
“म...मैं निर्दोष हूँ ।” फिर भी राज ने आर्तनाद किया- “म...मैं बेकसूर हूँ साहब !”
“तू बेकसूर नहीं, तू निर्दोष भी नहीं ।” योगी उसे कहर बरपा करती आंखों से घूरता हुआ बोला- “सच्चाई ये है कि तू एक बेहद चालाक अपराधी है, तू आदि मुजरिम है, मुझे तो यही सोचकर हैरानी हो रही है कि तेरे जैसा दुर्दान्त अपराधी आज तक दिल्ली पुलिस की नजरों से बचा कैसे रहा ? तेरा नाम तो अपराधियों की लिस्ट में सबसे ऊपर होना चाहिये था ।”
“अ...आप मेरे बारे में बहुत खतरनाक अंदाजा लगा रहे हैं साहब, म...मैं ऐसा नहीं ।” राज थर-थर कांपते स्वर में बोला- “अच्छा, आप मेरे एक सवाल का जवाब दो ।”
“पूछ, वह भी पूछ ।”
“रीगल सिनेमा के पास वह दो गोलियां किसने चलायी थीं, जिनकी आवाज सुनकर आपके मुताबिक गश्तीदल के दोनों पुलिसकर्मी गली में दौड़े थे ?”
“खुद चीना पहलवान ने वो गोलियां चलायी थीं ।” योगी ने एकदम से जवाब दिया ।
“च...चीना पहलवान ने ?” राज के दिमाग में एक और बम फटा- “प...पुलिसकर्मियों ने क्या चीना पहलवान को गोलियां चलाते देखा था ?”
“नहीं देखा ।”
“फ...फिर आप कैसे कह सकते हैं कि वह गोलियां चीना पहलवान ने चलायी थीं ? यह भी तो हो सकता है साहब, वह गोलियां चीना पहलवान के ऊपर किसी ने चलायी हों ?”
“नहीं, ऐसा नहीं हो सकता ।” योगी ने पूरे यकीन के साथ इंकार में गर्दन हिलाई ।
“क्यों नहीं हो सकता ?” राज की आंखों में हैरानी के भाव तैरे- “क्या मुश्किल है ?”
“क्योंकि अगर किसी ने वह गोलियां चीना पहलवान पर चलाई होतीं, तो चीना पहलवान के जिस्म पर खून के धब्बे तो होते ? कुछ निशान तो होते, जिनसे साबित होता कि उसे गोलियां लगी हैं ? जबकि रीगल सिनेमा के सामने गश्तीदल के जिन पुलिसकर्मियों ने पहलवान के शरीर पर खून का कैसा भी कोई धब्बा नहीं देखा था ।”
राज सन्न-सा खड़ा रह गया ।
उसे फौरन याद आया कि चीना पहलवान जब उसकी ऑटो में आकर बैठा था, तो खून के धब्बे उसे भी नहीं दिखाई दिये थे, क्योंकि चीना पहलवान ने ऊपर से नीले रंग की बरसाती जो पहन रखी थी ।
“ज...जरूर चीना पहलवान ने वो बरसाती गोलियां लगने के बाद भागते-भागते पहनी होगी ।
राज को अपने हाथ-पैरों की जान निकलती महसूस हुई ।
उसे लगा, जैसे वह किसी भयानक षड्यन्त्र का शिकार होता जा रहा है ।
“ल...लेकिन चीना पहलवान ने रीगल सिनेमा के पास वह दो गोलियां क्यों चलायी थीं ?”
“जरूर उसने किसी से काले रंग का वह ब्रीफकेस छीनने के लिये उस पर गोलियां चलायी होंगी, जिसे लेकर वह भागते देखा गया ।” योगी ने कल्पना की एक नई उड़ान बड़े खूबसूरत ढंग से पेश की ।
“क्या किसी ने छीना-झपटी की ऐसी कोई रिपोर्ट पुलिस स्टेशन में दर्ज करायी ?”
“नहीं ।”
“अगर किसी के साथ ऐसा हादसा हुआ था ।” राज बोला- “तो उसने रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं करायी ?”
“मूर्ख आदमी, तुम क्या समझते हो कि गैंगस्टर या मवाली किस्म के लोग ऐसी वारदातों की रिपोर्ट पुलिस स्टेशन में दर्ज कराते हैं ?”
“य....यानि आपका मतलब !” राज चौंककर बोला- “जिससे चीना पहलवान की झड़प हुई, वह भी चीना पहलवान की तरह ही कोई बड़ा बदमाश था ? हिस्ट्रीशीटर मवाली था ?”
“एग्जेक्टली ! वह भी कोई मवाली ही था ।” योगी बोला- “और उस ब्रीफकेस को हथियाने के लिए तुम चीना पहलवान के मददगार के तौर पर उसके साथ थे । चीना पहलवान को ब्रीफकेस छीनना था और तुम्हें चीना पहलवान को ऑटो में बिठाकर घटनास्थल से फरार होना था । परन्तु तुमने ऐन मौके पर चीना पहलवान के साथ विश्वासघात कर दिया ।”
“व...विश्वासघात !!! वह क्यों ?”
“दरअसल चीना पहलवान जो ब्रीफकेस किसी से हथियाकर भागा था, उसमें जरूर कोई बहुत मूल्यवान वस्तु थी ।” इंस्पेक्टर योगी बोला- “कोई बड़ा माल-मत्ता था । उस मूल्यवान वस्तु को देखकर तुम्हारी नीयत खराब हो गयी और इसीलिये तुमने उस ब्रीफकेस को हड़पने की खातिर सबसे पहले चीना पहलवान की चुपचाप हत्या कर दी और फिर उसकी लाश भी इंडिया गेट की सुनसान झाड़ियों में डाल दी । यही वजह है कि वो ब्रीफकेस झाड़ियों में चीना पहलवान की लाश के नजदीक न पाया गया और उस ब्रीफकेस का वहाँ न पाया जाना ही इस बात की शहादत देता है कि उसके अंदर जरूर कोई खास वस्तु थी ।”
राज के दिमाग में और तेज धमाके होने लगे ।
जबकि उसके बाद इंस्पेक्टर योगी ने राज पर सीधे-सीधे चीना पहलवान की हत्या का इल्जाम लगाते हुए जो मनगढ़ंत कहानी सुनायी, उसने राज के रहे-सहे होश भी फना कर दिये ।
इंस्पेक्टर योगी एक-एक शब्द चबाते हुए बोला- “राज- तू बुधवार की रात को रीगल सिनेमा के सामने उपस्थित ही इसलिये हुआ था, ताकि तू चीना पहलवान को घटनास्थल से भगाकर ले जा सके । तू चीना पहलवान का पक्का हिमायती था, उसका दोस्त था । इतना ही नहीं, तुम दोनों के बीच पहले से ही सांठ-गांठ थी, तुम दोनों को यह बात एडवांस में ही मालूम थी कि रात के ग्यारह और बारह बजे के बीच में कोई अपराधी मोटा माल लेकर रीगल सिनेमा के पास से गुजरेगा, इसीलिये तुम दोनों वहाँ शिकारी कुत्ते की तरह घात लगाये बैठे थे । तुम दोनों की योजना उस अपराधी को लूटने की थी और जैसाकि हालातों से जाहिर है, तुम अपनी योजना में कामयाब हुए । यह बात अलग है कि ब्रीफकेस में मोटा माल देखकर तुम्हारी भी नीयत खराब हो गयी और तुमने उस मोटे माल को अकेले ही हड़पने की खातिर अपने दोस्त चीना पहलवान को भी ठिकाने लगा दिया ।”
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।” राज चिल्लाया- “और न ही मैं रीगल सिनेमा के सामने इसलिये मौजूद था, ताकि मैं पहलवान की मदद कर सकूँ ।”
“यानि तेरा चीना पहलवान के साथ कोई सम्बन्ध नहीं था ?”
“बिल्कुल भी कोई सम्बन्ध नहीं था ।” राज गुर्राकर बोला- “मैं सोनपुर में जरूर रहता हूँ, लेकिन मैंने पहले कभी चीना पहलवान की शक्ल तक नहीं देखी थी ।”
“ठीक है, मैं मानता हूँ तेरी बात कि तूने पहले कभी चीना पहलवान की शक्ल तक नहीं देखी थी ।” इंस्पेक्टर योगी आवेश में नहले पर दहला मारता हुआ बोला- “तो फिर यह बता मेरे भाई, तू आधी रात के समय रीगल सिनेमा के सामने खड़ा क्या कर रहा था ? जब ऑटो ड्राइवरों की हड़ताल चल रही थी, तब तू इतनी रात को वहाँ क्या करने गया था ? कोई तो काम होगा तुझे वहाँ ?
कुलभूषणं फिर चुप !
फिर खामोश !
वो जानता था, उसकी उधार चुकाने वाली बात पर ‘योगी’ जैसा धुरंधर इंस्पेक्टर किसी हालत में यकीन नहीं करेगा ।
“और तूने अपनी ऑटो रिक्शा रीगल सिनेमा के सामने अंधेरे में क्यों खड़ी कर रखी थी ?” योगी कर्कश लहजे में बोला- “उसके पीछे भी तो कोई वजह होगी ? क्या उसकी इकलौती वजह यह नहीं थी कि तू चीना पहलवान के वहाँ पहुँचने से पहले गश्तीदल की आंखों से छिपना चाहता था ? क्या इसीलिये तूने अपनी ऑटो की पिछली नम्बर प्लेट पर मिट्टी भी नहीं पोत रखी थी ? ताकि भागते समय गश्तीदल के पुलिसकर्मी तेरी ऑटो रिक्शा का नम्बर भी नोट न कर सकें ? क्या यह सारी बातें झूठी हैं ?” योगी आंदोलित लहजे में बोला- “क्या इतनी ढेर सारी बातें झूठी हो सकती हैं राज ? और अगर यह सारी बातें झूठी हैं, तो फिर यह बता कि तेरी ऑटो रिक्शा की नम्बर प्लेट पर मिट्टी किसने पोती ?”
राज के दिमाग में आंधी चलने लगी ।
सांय-सांय आंधी !
उफ !
कितनी बुरी तरह फंस चुका था वह ।
अब राज इंस्पेक्टर योगी को कैसे समझाता कि ऑटो रिक्शा की नम्बर प्लेट पर मिट्टी उसने खुद नहीं पोती थी, वह तो इत्तेफाक से ऑटो का पिछला पहिया गारा भरे गड्ढे में जा गिरा और जरूर इसीलिये खुद-ब-खुद नम्बर प्लेट पर मिट्टी पुत गयी ।
फिर रीगल सिनेमा के सामने उसने अपनी ऑटो अंधेरे में भी इसलिये खड़ी कर रखी थी, ताकि यूनियन की हड़ताल चलने की वजह से गश्तीदल के पुलिसकर्मी उसे वहाँ से भगा न दें ।
फिर यह बात भी राज से बेहतर और किसको मालूम हो सकती थी कि जिन दो गोलियों की आवाज सुनकर गश्तीदल के पुलिसकर्मी गली में दौड़े थे, वह गोलियां चीना पहलवान ने नहीं चलायी थीं बल्कि वह गोलियां तो किसी ने चीना पहलवान पर चलायी थीं, जो बाद में उसकी मौत का कारण बनीं । अब यह तो भगवान जाने कि चीना पहलवान ने गोलियां लगने के बावजूद भागते-भागते इतनी जल्दी प्लास्टिक की बरसाती कैसे पहन ली ?
राज को लग रहा था, अगर उसने इंस्पेक्टर योगी को सारी हकीकत बता भी दी, तब भी वह उसकी बात पर यकीन नहीं करेगा ।
तब भी वो यही समझेगा कि वह कोई नया ‘षड्यन्त्र’ रच रहा है ।
फिर राज के पास अपनी बात को साबित करने के लिये सबूत भी तो नहीं थे, जबकि योगी के पास ऐसे ढेरों तर्क और सबूत थे, जिसके बलबूते पर वह अपनी मनगढ़ंत कहानी को भी अदालत में सच साबित कर सकता था ।
राज अपनी बेबसी पर झल्ला उठा ।
कल रात तक जो बातें उसे अपनी ताकत नजर आ रही थीं, वही अब उसकी कमजोरी बन चुकी थीं ।
पूरा खेल, पूरी कहानी पलट चुकी थी ।
☐☐☐
 
“इस पूरे ड्रामे में तुझसे एक गलती हुई राज- और बड़ी भारी गलती हुई ।” इंस्पेक्टर योगी ने अपनी मनगढ़ंत कहानी का उसे आखिरी हिस्सा सुनाया- “दरअसल जब तू चीना पहलवान की लाश को किसी लड़की के सहयोग से ठिकाने लगाने जा रहा था, तभी फ्लाइंग स्क्वॉयड दस्ते द्वारा रोक लिये जाने पर तूने लड़की के बच्चा होने वाला जो ड्रामा रचा, वही ड्रामा वास्तव में तेरी बर्बादी का कारण बना । उसी ड्रामे की वजह से तू इस वक्त गिरफ्तार है । तुझे अब खुद भी लग रहा होगा कि वह नाटक सचमुच तुझे बहुत महंगा पड़ा । न डिलीवरी होने वाली बात बोलता, न मैं मेटरनिटी वार्डों की भर्ती रजिस्ट्री चेक करता और न तू इस वक्त अपराधी बना हम सबके सामने खड़ा होता ।”
राज की इच्छा हुई, वो दहाड़ें मार-मारकर रोने लगे ।
कितनी खतरनाक आफत उसके गले पड़ चुकी थी ।
“अब अगर तू अपनी खैरियत चाहता है ।” इंस्पेक्टर योगी ने उसे साफ-साफ धमकी दी- “अगर तू चाहता है कि तेरे ऊपर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल न हो, तेरी धुनाई न हो, तो तू मुझे साफ-साफ यह बता कि काले रंग के उस ब्रीफकेस के अंदर क्या था, जिसे चीना पहलवान रीगल सिनेमा के सामने से लेकर भागा ? वह लड़की कौन थी, जिसने चीना पहलवान की लाश ठिकाने लगाने में तुझे सहयोग दिया ? और वह आदमी कौन था, जिससे चीना पहलवान ने काले रंग का वो ब्रीफकेस छीना ?”
“मैं कुछ नहीं जानता ।” राज पागलों की तरह चिल्ला उठा- “मुझे कुछ नहीं मालूम ।”
“तुझे सचमुच कुछ नहीं मालूम ?” योगी ने उसे एकाएक भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा ।
“न... नहीं, मुझे कुछ नहीं मालूम ।”
इंस्पेक्टर योगी ने फौरन लपककर अपनी फौलाद जैसी मुट्ठी में उसके सिर के बाल कसकर जकड़ लिये, फिर उन्हें इतना तेज झटका दिया कि राज भैंसे की तरह डकरा उठा, उसका मुँह झटके से छत की तरफ उठ गया ।
“एक बार !” योगी अब साक्षात दरिन्दा नजर आने लगा था- “एक बार फिर बोल कि तुझे कुछ नहीं मालूम ।”
“म...मेरी बात पर यकीन करो ।” राज दयनीय अवस्था में गिड़गिड़ा उठा- “म...मैं सचमुच कुछ नहीं जानता, कुछ नहीं ।”
योगी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा ।
उसने गुस्से में चिंघाड़ते हुए राज पर लात-घूंसों की बारिश कर डाली ।
वह उसे रूई की तरह धुनने लगा ।
राज की चीखों से पूरा पुलिस स्टेशन थर्रा उठा, उसकी हृदयविदारक और करुणादायी चीखों ने वहाँ मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के दिल-दिमाग को झंझोड़ डाला ।
परन्तु योगी रुका नहीं ! वह बेहद जुनूनी अंदाज में उसकी धुनाई करता रहा ।
वह सचमुच दरिन्दा बन चुका था ।
खूनी दरिन्दा !
☐☐☐
तभी पुलिस स्टेशन में बल्ले के कदम पड़े ।
बल्ले के आते ही घटनाक्रम ने फिर एक बड़ा अजीबोगरीब मोड़ लिया ।
बल्ले एकदम काला भुर्राट व्यक्ति था, उसके जिस्म की त्वचा ऐसी थी, मानो किसी ने उसके स्याही मल दी हो । उसकी आंखें लाल सुर्ख थीं, जो उसके काले भुर्राट चेहरे पर यूं चमकती थीं, मानों दो जलते अंगारे ! अगर रात के अंधेरे में कोई बच्चा बल्ले को देख ले, तो इसमें कोई शक नहीं कि वो उसे भूत समझकर चिल्ला उठे ।
शक्ल-सूरत में इतना खतरनाक था बल्ले !
उसे न जाने कैसे यह मालूम हो गया था कि राज को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, थाने में आते ही उसने एक बड़ी सनसनीखेज घोषणा की ।
“इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले आते ही इंस्पेक्टर योगी से बोला- “मैं उस लड़की का नाम बता सकता हूँ, जिसने बुधवार की रात मेरे चाचा की लाश ठिकाने लगाने में राज की मदद की थी ।”
बल्ले के उन शब्दों का इंस्पेक्टर योगी पर तुरन्त असर हुआ- राज की धुनाई करते उसके हाथ ठिठक गये ।
उसने घूमकर बल्ले की तरफ देखा ।
पीड़ा से बुरी तरह कराहते राज के ऊपर भी बल्ले के वह शब्द गाज की तरह गिरे ।
“कौन है वो लड़की ?” योगी ने फौरन पूछा ।
“उसका नाम डॉली है ।”
“म...डॉली !”
“हाँ, इंस्पेक्टर साहब ! वह डॉली है ।”
“यह झूठ बोल रहा है ।” राज एकाएक हलक फाड़कर चिल्ला उठा- “डॉली उस रात मेरे साथ नहीं थी, डॉली का इस पूरे हादसे से कोई वास्ता नहीं है ।”
“झूठ मैं नहीं तू बोल रहा है ।” बल्ले ने आक्रोश में दांत किटकिटाये- “बुधवार की रात डॉली ही तेरे साथ थी, तुम दोनों ने ही मिलकर पूरी घटना का जाल बुना ।”
“यह झूठ है ।” राज चिंघाड़ा- “गलत है ।”
दोबारा राज की तरफ बढ़ा योगी !
फिर उसने राज की शर्ट का कॉलर कसकर अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया और बड़ी खूंखार नजरों से उसकी तरफ देखा ।
काँप गया राज!
“यानि बुधवार की रात वाकई तेरे साथ डॉली नहीं थी ?”
“न...नहीं ।” राज का कंपकंपाया स्वर- “म...डॉली का इस घटना से कोई वास्ता नहीं ।”
“अगर वो डॉली नहीं थी, तो फिर कौन थी ?” योगी गुर्राया- “मुझे उस दूसरी लड़की का नाम बता ?”
राज चुप !
“मैं तेरे से कुछ पूछ रहा हूँ राज !” योगी ने शर्ट का कॉलर पकड़े-पकड़े उसे बुरी तरह झंझोड़ा- “मेरे सवाल का जवाब दे हरामजादे ! वरना तेरी अभी तो कम धुनाई हुई है, इस बार तेरे जिस्म से हड्डियां तक गायब हो जानी है । बोल, क्या नाम है उस लड़की का ?”
“म...मैं उस लड़की का नाम नहीं बता सकता ।” राज ने हिम्मत करके कहा ।
“क्यों नहीं बता सकता ?” बल्ले चीखा- “इसलिये नहीं बता सकता, क्योंकि वह लड़की डॉली के अलावा कोई थी ही नहीं । इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले उत्तेजना में भरा हुआ योगी की तरफ घूमा- “सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि सोनपुर के हर आदमी को मालूम है कि डॉली, राज के वास्ते कुछ भी कर सकती है । इतनी बड़ी दुनिया में एक वही लड़की ऐसी है, जो इसके लिये अपने आपको बड़े-से-बड़े खतरे में डाल देगी ।”
“यह सब झूठ है ।”
“चुप कर ।” योगी ने फौरन उसे घुड़क दिया- “चुप !”
राज ने सहमकर होंठ बंद कर लिये ।
“यह डॉली तो वही लड़की है न !” योगी, बल्ले से सम्बोधित हुआ- “जिसके घर से यह कल रात फरार हुआ था ?”
“हाँ, इंस्पेक्टर साहब ! वही लड़की डॉली है ।”
इंस्पेक्टर योगी ने फौरन स्थानीय थानाध्यक्ष के माध्यम से एक कांस्टेबल को तलब किया ।
कांस्टेबल का नाम चट्टान सिंह था ।
“बोलिये सर, क्या काम है ?” चट्टान सिंह ने आते ही योगी को जोरदार सैल्यूट मारकर पूछा ।
“चट्टान सिंह, तुम फ़ौरन एक काम करो ।” योगी ने आदेश दनदनाया- “सोनपुर चले जाओ और वहाँ जाकर डॉली को अपने साथ ले आओ । उससे बोलना, इंस्पेक्टर साहब ने बुलाया है ।”
“ओ.के. सर !” चट्टान सिंह ने तत्परता के साथ कहा- “मैं अभी डॉली को लेकर आता हूँ ।”
“लेकिन आप डॉली को यहाँ क्यों बुला रहे हैं साहब !” राज एकाएक हलक फाड़कर चिल्ला उठा- “वह बुधवार की रात सचमुच मेरे साथ नहीं थी, वह बेकसूर है ।”
“बोलता है, बोलता है स्साले !!!!” योगी ने उसे नीचे गिरा दिया तथा फिर अपने फौलादी जूते की उसके मुँह पर धड़ाधड़ कई सारी प्रचण्ड चोटें जड़ी- “जबान चलाता है हरामी !”
राज हाहाकर कर उठा ।
उसकी हृदयविदारक चीखों से एक बार फिर पूरा पुलिस स्टेशन दहल गया ।
☐☐☐
 
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