vasna story इंसान या भूखे भेड़िए - Page 17 - SexBaba
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vasna story इंसान या भूखे भेड़िए

अखिल..... मेरी सोणिये, मेरी हीरिए... मैनु छड के कित्थे भाग गयी ओये....


काया.... कुछ नही अखिल, बस देल्ही मे अच्छा नही लग रहा था इसलिए यहाँ चली आई...


अखिल.... क्या हुआ काया... कुछ परेशान सी लग रही हो....


काया.... थोड़ी अपसेट हूँ अखिल, क्या तुम मनु भाई के पास मेरा एक संदेश पहुँचा दोगे....


अखिल.... हां बोलो ना क्या....


काया.... उन से कहना, दूसरी ओर भी परिवार के लोग हे हैं, हो सके तो दोबारा सोचना.....


अखिल.... ह्म ! समझ गया, कह दूँगा उसे मैं. पर इस वक़्त मैं भी बहुत परेशान हूँ...


काया.... क्या हुआ अखिल...


अखिल..... मेरी धड़कन कहीं दूर हो गयी मुझ से और वो धड़कना बंद कर चुकी है...


काया.... मतलब...


अखिल.... मतलब तुम दूर कहीं जा कर ऐसे मायूस रहोगी, तो मेरी धड़कनें समझो रुकी हुई हैं...


काया.... अखिल प्लीज़ अभी नही, मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा है...


अखिल.... मैं कुछ कहूँ...


काया..... हां कहो...


अखिल.... जब कुछ समझ मे नही आए ना तो उसे वक़्त पर छोड़ दो. उन के साथ कभी बुरा नही हो सकता जो अच्छे हों. एग्ज़ॅंपल मे तुम्हारा भाई मनु है. इसलिए चेहरे पर स्माइल लाओ और सब कुछ वक़्त पर छोड़ दो. एक बात मैं अच्छे से जानता हूँ, मनु तुम्हे रुला कर कुछ भी हासिल नही करेगा....


काया.... हां मैं जानती हूँ ये बात. फिर भी पता नही क्यों अजीब सा लग रहा है. रखती हूँ फोन, मैं बाद मे बात करती हूँ....
 
ईव्निंग.... मुंबई काया फ्लॅट....


घर को आपस मे ही लड़ते देख और अपने भाई रजत की हरकतें सुन अब जैसे देल्ही उसे काटने के लिए दौड़ रही थी. एक दिन पहले ही वो मुंबई आ गयी थी, और आज हर्षवर्धन और अमृता पहुँच गये थे....


काया को समझ मे नही आया कि अभी कल ही वो आई थी, और आज मोम-डॅड दोनो सामने.... काया अंदाज़ा लगा सकती थी ये दोनो क्यों आए होंगे...


काया.... मोम-डॅड, अभी कल ही तो आई मैं देल्ही से, ऐसी भी क्या एमर्जेन्सी कि आप दोनो आज यहाँ...


अमृता.... बात ही कुछ ऐसी थी काया....


अमृता और हर्ष ने अपने दिल का पूरा दर्द काया के सामने रख दिया. हर वो बात जो शुरू से हुई थी काव्या, अमृता और हर्ष के बीच. शम्शेर और एसएस ग्रूप को ले कर. और फाइनली मनु और मानस से नफ़रत की वजह भी.

बीती किसी बात का अफ़सोस नही था उन दोनो को, सिवाय इतना कि उसने उन दोनो भाई के साथ कभी जस्टिफाइ नही किया. फिर मानस और मनु के अलग होने की ज़िम्मेदारी अपने उपर लेती अमृता कहने लगी..... "दोनो भाई के अलग होने की वजह एक तरह से हम ही हैं, पर
बेटा तुम चाहो तो हमारा परिवार फिर एक हो जाएगा, सब लोग एक छत के नीचे बस तुम ही कर सकती ही यदि तुम कोसिस करो तो"


काया को अपने मोम-डॅड का पछतावा सच्चा लगा...... पर डर के मारे उसकी धड़कनें बहुत तेज हो गयी, क्योंकि मनु अब अपने ही परिवार को बर्बाद करने पर तुला था. काया..... वो मनु को जानती थी उसने अगर सोच लिया तो कर के छोड़ेगा.


अपने मोम-डॅड को सुन'ने के बाद, दोनो अब इनोसेंट से नज़र आ रहे थे. रजत से भी कोई शिकवा नही रहा क्योंकि वो समझ चुकी थी कि
उसके दिमाग़ मे उसके मोम-डॅड ने क्या बीज बोया था.... पर जो सब से बड़ी समस्या थी वो थी मनु का दृढ़ प्रण.


काया सोच मे पड़ गयी. दिल से एक ही आवाज़ आ रही थी ..... "कहीं देर ना हो जाए, उसे मनु का प्लान बता देना चाहिए". काफ़ी असमंजस मे काया फसि थी और अंत मे ना चाहते हुए भी ऐसा फ़ैसला करना पड़ा जिसके लिए उसे अफ़सोस सा हो रहा था.... पर कोई ना कोई नतीजे
पर पहुँच कर एक जबाव तो देना ही था....


काया गहरी साँसे लेती कहने लगी....... "मैं इन किसी भी मसलों मे आप सब के बीच नही पड़ूँगी. जो भी आप लोगों ने किया उस का कुछ तो परिणाम होगा हे. मैं रजत को भी देख चुकी हूँ, और उसकी नफ़रत भी. दोनो भाई उस छत के नीचे आ भी गये तो भी उन-दोनो भाई के लिए
जो नफ़रत का बीज आप ने रजत के दिल मे बो चुकी हैं, क्या वो ख़तम हो जाएगा. पहले रजत को सम्भालो, जिस दिन वो सम्भल गया, मैं
वादा करती हूँ उन दोनो भाई को उस छत के नीचे ले आउन्गि. मैं चलती हूँ मेरे क्लास का टाइम हो गया है"


काया फिर वहाँ रुकी नही. खुद से सॉरी कहती वो निकली, सब जानती हुए भी उसने सारी बातें छिपा ली. निर्दोष से लग रहे अपने पेरेंट को
छोड़ दिया उसके हाल पर. बाहर आते ही उसने तुरंत कॉल अखिल को लगाया....
 
श्रेया... इन मनु ऑफीस......


दो दिन से कोई मुलाकात नही हुई थी मनु से. अपने जाल को और मजबूत करने के इरादे से श्रेया, मनु के ऑफीस पहुँच गयी. ऑफीस मे
स्नेहा.... स्नेहा को देख कर ही श्रेया चिल्लाती हुई कहने लगी.... "ये बचल्लन लड़की यहाँ क्या कर रही है"


ना कोई बात, ना ही कोई दुआ सलाम, और आते ही सीधे ऐसे शब्द... स्नेहा का मुँह खुला का खुला रह गया था... उसे समझ मे ही नही आया की वो क्या जबाव दे और वो रोई सी आँखें लिए मनु को देखने लगी.


दो पल लगे मनु को कॉर्डिनेट करने मे, फिर बोला मनु..... "श्रेया, दिस इस नोट दा मॅनर टू टॉक माइ एंप्लायी, या तो तुम इससे अभी सॉरी बोल रही हो या हमारी कभी बात नही होगी".


श्रेया, महॉल को देखती हुई, ना चाहते हुए भी स्नेहा को सॉरी बोली. बोलते वक़्त उसकी कड़ी सी ज़ुबान से निकलता सॉरी देखने लायक था.... मनु फिर ऑफीस के कुछ काम स्नेहा को समझा कर श्रेया के साथ निकल गया.


मनु जब जा रहा था, उसने दबी सी नज़रों से स्नेहा को देखा. उस की आखें ऐसी थी मानो वो खा जाए अभी मनु को. खैर मनु, श्रेया को ले कर
बाहर आ गया. दोनो जैसे हे अकेले मे आए श्रेया, मनु के गले लगती उसका होंठ चूम ली...


श्रेया.... मनु दिस ईज़ नोट फेर, तुम्हारी वजह से मुझे उस दो कौड़ी के घटिया नौकर को सॉरी बोलना पड़ा.


मनु.... कोई बात नही, कभी-कभी हमे वो भी करना पड़ता है जो हम नही चाहते. अब स्नेहा को देख कर ही तुम्हे स्मझ जाना था कि मुझे
उस की ज़रूरत है तभी वो मेरे ऑफीस मे है...


श्रेया.... हां वो तो समझ मे आ रहा है... और बताओ कहाँ बिज़ी हो आज कल. ना तो फोन करते हो और ना ही मेरे साथ कहीं घूमने जा रहे हो.


मनु... मानस को अलग करने के बाद साजिश कुछ ज़्यादा ही बढ़ गयी है. बस कुछ दिन और ठहर जाओ, इन सब की साजिशो का मुँह तोड़
जबाव दे दूं फिर तो तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है....


श्रेया..... उन्न्ञणणन्.. और तब तक मैं क्या करूँगी....
 
ईव्निंग... मानस & ड्रस्टी.....


प्यार के इज़हार के बाद ये पहली खाली ऐसी शाम थी जिस मे दो दिल मिल रहे थे. बाहों के आगोश मे ड्रस्टी लिपटी हुई थी, और मानस
उस के सिर पर हाथ फेर रहा था.... मानस, ड्रस्टी का चेहरा प्यार से देखते हुए उसे चूम लिया.....


ड्रस्टी मुस्कुराती हुई..... "उन्न्ञणन्, मुझे आराम करने दो ना, काफ़ी सुकून मिल रहा है. डिस्ट्रब ना करो"


मानस..... ड्रस्टी, हम जिस रिश्ते को आगे बढ़ा रहे हैं उस का कोई भविष्य भी है क्या...


ड्रस्टी, थोड़ा सीरीयस होती उठ कर बैठ गयी..... "मानस प्लीज़ अभी ये बात कर के डराओ मत. जब हालात सामने होंगे तो हम मिल कर
सामना कर लेंगे. पर अभी से उस बारे मे बात कर के".....


मानस, ड्रस्टी को अपने बाहों मे जकड़ते...... "उम्म्म्म, ठीक है मी हार्टबीट. वैसे सच कहूँ तो तुम बहुत प्यारी लग रही हो".


ड्रस्टी अचानक ही.... "मानस, मानस... मानस".....


मानस.... क्या हुआ ड्रस्टी....


ड्रस्टी बड़े से झूले की ओर उंगली दिखाती..... "मुझे उस झूले पर झूलना है"


मानस उस झूले को देखते हुए..... "क्या" ?????


ड्रस्टी.... इसमे शॉक जैसा क्या था, चलो ना मुझे वो झूला झूलना है....


मानस..... बच्ची हो क्या जो झूला झूलना है.... बैठो ना यहाँ, तुम्हे जी भर कर देखा भी नही अब तक.....


ड्रस्टी, मानस का हाथ पकड़ती उसे ज़बरदस्ती उठा'ती हुई..... "झूले पर ही आराम से मुझे देख लेना. चलो भी अब".


मानस को जाने मे क्या परेशानी थी, बस वो उँचे गोल वाले झूले को देख कर डर रहा था. पहले भी उस झूले पर झूल चुका था जिस का बहुत
\ बुरा अनुभव था मानस को. अब बेचारा कहे भी तो किस मुँह से, कि उसे झूले से डर लग रहा है....


हार कर जाना ही पड़ा... और जो उस झूले पर हुआ झूलते वक़्त. ड्रस्टी झूले को एंजाय कर रही थी, और मानस उस से लिपट कर.... "हे भगवान, हे भगवान" कर रहा था. ड्रस्टी को समझ मे आ गया, मानस क्यों नखरे कर रहा था. उतरते-उतरते ड्रस्टी उसे चिढ़ाती हुई कह ही
दी..... "डरपोक कहीं के, कह नही सकते थे कि झूले से डर लगता है तो बहाने बना रहे थे कि अभी तो ठीक से देखा भी नही".
 
रात के वक़्त... मनु और स्नेहा....


स्नेहा, अपनी बड़ी-बड़ी आखें दिखाती.... "वो छिप्कलि मेरा मज़ाक उड़ा रही थी, और तुम्हारे एक्सप्रेशन मे कोई चेंज भी नही आया. उल्टा उसके साथ बाहर चले गये. हुहह" !!!!


मनु.... तुम्हे बताया तो था श्रेया के बारे मे. सॉरी बाबा, यूँ समझ लो कुछ चाहिए था उस से इसलिए उस की बदतमीज़ी सहनी पड़ी.


स्नेहा.... सॉरी कहने की ज़रूरत नही, मैं अपने मनु को जानती हूँ. पर मनु तुम्हे नही लगता कि तुम केवल एक तरफ़ा सोच कर अपना सब
कुछ दाव पर लगा रहे हो. श्रेया वो सिग्नेचर ना ला पाई और सब कुछ अपनी माँ को बता दी तो....


मनु.... किसने कहा कि मैं चाहता हूँ श्रेया अपनी माँ के सिग्नेचर चोरी से लाए. यदि वो चोरी से सिग्नेचर करवा कर लाती है तो मैं 50% ही
सफल रहूँगा, और यदि वो सारी बात अपनी माँ से बता देती है तो मैं 100% सक्सेस हो जाउन्गा...


स्नेहा.... वो कैसे मनु...


मनु.... वो तुम्हे कल के न्यूसपेपर से पता चल जाएगा. कल इंडियन एकॉनमी की न्यूज़ मे ऐसी खबर होगी कि एस.एस ग्रूप के सारे पार्ट्नर्स के
बीच भूचाल सा आ जाएगा.... इंतज़ार करो सुबह का.... क्योंकि कल से एस.एस ग्रूप अपना होना शुरू हो जाएगा....


स्नेहा... अच्छा जी, आप और ये आप का एस.एस ग्रूप. इन सब के बीच मेरा क्या होगा...


मनु.... तुम आओ तो बिस्तर पर, जल्दी से तुम्हे एक जूनियर मनु या जूनियर स्नेहा दे दूं ताकि तुम मेरा भेजा खाना कम करो...


स्नेहा.... हटो बेशर्म, पापा ने जान लिया ना कि मैं यहाँ तुम्हारे साथ अकेली हूँ तो जान मार देंगे.


मनु.... ओये, अब ये तुम्हारी जान सिर्फ़ तुम्हारी नही है. तुम्हारे पापा ने तुम्हे हाथ भी लगाया तो देख लेना...


स्नेहा.... क्या, क्या, क्या... खबरदार जो मेरे पापा के बारे मे कुछ बोला तो ... ठीक नही होगा...


मनु.... मैने कब बोला तुम्हारे पापा के बारे मे. तुमने ही चर्चा शुरू किया. मैं तो अपने जूनियर्स की बात कर रहा था...


स्नेहा.... कोई जूनियर्स नही, आज से मैं हड़ताल पर. कोई नॉटी डिमॅंड नही मानी जाएगी....


मनु.... पहले चलो तो बेड पर फिर देखते हैं किस की कितनी नॉटी डिमॅंड होती है....


स्नेहा.... मैं तो आज बिस्तर पर जाउन्गी ही... आप मिस्टर. हॉल मे सोने वाले हो...


मनु.... क्या, क्या, क्या.....


स्नेहा.... लगता है कान खराब है सुना नही... फिर से कहती हूँ... आज तुम हॉल मे सोने वाले हो और ये फाइनल है....


मनु.... पर काहे...


स्नेहा.... बस मैने कह दिया इसलिए. ज़्यादा सवाल जबाव किए तो कल भी हॉल मे सुला दूँगी...


मनु.... हुहह... निष्ठुर... निर्दयी... हुहह हुहह हुहह...


मनु बडबडाता हुआ हॉल मे ही सो गया.

अगली सुबह जब सारे पार्ट्नर्स और बिज़्नेस अस्सोसियटेस एकॉनमी न्यूज़ देख रहे थे... सच मे उन लोगों के बीच भूचाल सा आ गया था...
गहमा-गहमी इस कदर बढ़ी थी कि सब बैठ कर उसी न्यूज़ के बारे मे सोच रहे थे.......

सुबह की खबर और चर्चाएँ शुरू. खबर ये थी कि सरकारी. शिप्पिंग टेंडर ओपन, और वो मानस की कंपनी के नाम से खुला. ये खबर सुनते
ही सारे लोगों की प्लॅनिंग ज़ोर पकड़ चुकी थी. सब को बैठे बिठाए ही कई 1000 करोड़ नज़र आ रहे थे.....
 
मॉर्निंग, सूकन्या हाउस.....


श्रेया, मनु की कल की बात पर सोचती क्या, वो तो घर आते ही सब से पहले वो पेपर अपनी माँ के हाथ मे दे दी, और सब कुछ बता दिया. श्रेया की सारी बातें सुन'ने के बाद, सूकन्या वो पेपर पहले खुद तीन बार पढ़ कर चेक की, फिर अपने वकील से भी 3 बार पढ़वाई. सूकन्या ने
पहले पूरी तसल्ली की, की ये पेपर वाकई एक कन्सेंट पेपर था या कोई चीटिंग हो रहा थी उस के साथ.


सारे क्लॉज़ और सारे स्टेट्मेंट पढ़ कर तसल्ली करने के बाद सुकन्या ने वो पेपर रख कर उस पर बाद मे फ़ैसला करने का सोचा. पिच्छली रात की ये बात थी और सुबह की खबरों मे मानस के टेंडर के बारे मे पढ़ी. आँखों के आगे फिर वो सपने खड़े हो गये जो कई वर्षों से सुकन्या देखते आ रही है... पूरे एस.एस ग्रूप को लीड करना, यानी कि टोटल कंट्रोल.


मनु के रूप मे अब उसे इतना मजबूत मोहरा मिल गया था कि उसे अब अपने सपने साकार होते नज़र आ रहे थे. सुकन्या ने तुरंत मनु को कॉल कर के चाय पर बुलाया.


सुबह का वक़्त, मनु घर पर ही था. मनु ने मुस्कुराते हुए स्नेहा के गालों को चूमा और कहता चला.... "लगता है मछली चारा निगल गयी"...


मनु, सुकन्या के घर पहुँचा. जैसे ही मनु डाइयनिंग टेबल पर बैठा, वैसे ही सुकन्या सारे पेपर्स उस के सामने रखती हुई पूछने लगी..... "ये सब क्या है"


मनु, श्रेया की ओर घूरते हुए.... "इस पर आप के सिग्नेचर चाहिए थे, वो भी चुपके से... और मैने श्रेया को मना भी किया था आप को बताए नही... खैर चलता हूँ"....


सूकन्या.... बैठ जाओ चुप-चाप, मुझे श्रेया ने कुछ नही बताया है. वो तो चोरी से सिग्नेचर करवाने आई थी पर वो भूल गयी कि मैं उसकी माँ हूँ.


मनु.... तो आप मुझ से अब क्या चाहती हैं.


सूकन्या.... पूछ सकती हूँ ये फ्रॉड क्यों...


मनु.... ऐसे ही एक फ्रॉड के ज़रिए मैने मानस से सिग्नेचर करवाया था. उस फ्रॉड का सजेशन और किसी ने नही बल्कि आप की बेटी ने ही दिया था. जब मैं उसके कहने पर अपने भाई को धोका दे सकता हूँ, तो क्या एक अच्छे काम के लिए, श्रेया धोके से आप के सिग्नेचर नही ले सकती.


सूकन्या.... तुम भला मेरी बेटी का कहना क्यों मानोगे. क्या चल रहा है तुम दोनो के बीच...
 
मनु.... वो आप श्रेया से पूछें तो ज़्यादा अच्छा रहेगा. मैं तो बस उस के ख्वाब पूरे कर रहा हूँ. पूरा एस.एस ग्रूप उसके कदमों मे डालने का
उस का ख्वाब.


सूकन्या.... श्रेया, मनु क्या कह रहा है.....


श्रेया.... मम्मा हम एक दूसरे से प्यार करते हैं.... और शादी करना चाहते हैं....


सूकन्या, पेपर्स पर सिग्नेचर करती..... "मैं क्या इतनी बुरी हूँ मनु, हाँ. मैं तो तुम्हारे माँ जैसी हूँ. तुम्हारे बाप ने पवर ऑफ अटर्नी वितड्रॉ की बात किया, तब किस ने तुम्हारा सपोर्ट किया था, हां. मैं तुम पर आखें मूंद कर विस्वास करती हूँ और तुम हो कि".

"अर्रे कोई भी बात थी तो सीधे आ कर मुझ से कहते ना ऐसे चोरी का काम क्यों बेटा. लो सिग्नेचर कर दिया है. ये तो मामूली एक बिजनेस
कन्सेंट लेटर है. यदि तुम्हे मेरी सारी प्रॉपर्टी भी चाहिए होगा तो बता देना उस पर भी हँसते हुए साइन कर दूँगी... जाओ खुश रहो"....


मनु.... सॉरी मुझे मंफ़ कर दीजिए...


सुकन्या, मनु को गले लगाती.... "कोई बात नही ग़लती बच्चों से ही होती है, भूल जाओ इस बात को. और खबरदार जो अगली बार ऐसा कुछ सोचा भी तो".


कुछ देर प्यार मोहब्बत भरी बातें सुन'ने के बाद मनु भी पेपर ले कर निकल गया. मनु के जाते ही श्रेया अपनी माँ से कहने लगी..... "आप तो
पक्की खिलाड़ी हैं मोम. बहुत कुछ सीखना होगा आप से".
 
सुबह के वक़्त ही .... राजीव और रौनक...


राजीव, रौनक को कॉल लगाते...... "खबर देखी आज सुबह की"


रौनक.... हां खबर तो मैने भी पढ़ी, तो क्या कहते हो...


राजीव.... मनु सही था, तुम बताओ क्या करना है....


रौनक.... बोर्ड मीटिंग बुलाया जाए क्या. मार्केट आउट शेर 40 टू 60% करवाए क्या.


राजीव.... नही अभी पहले चल कर कंपनी के अग्रीमेंट पेपर सब्मिट कर के वहाँ से पैसे निकालते हैं.


कहते हैं लालच बहुत बुरी बला होती है. आँखों के आगे जब पैसा और पवर नज़र आता है तो अच्छे-अच्छों के दिमाग़ पर परदा पड़ जाता है. मनु ने पैसा दिखाया और नताली ने पवर, इस जाल मे दोनो ऐसे फसे की जहाँ पैसे 75% तक निकालने थे, दोनो ने 100% का अग्रीमेंट बनवाया.


तकरीबन 11:30एएम बजे रौनक और राजीव दोनो पहुँचे मनु के चेंबेर मे. पहुँचते ही अग्रीमेंट के पेपर दिखाए और मुस्कुराते हुए कहने लगे....
"हमारी जीत की ओर पहली कदम मुबारक हो".


मनु, उन पेपर्स को देखते हुए.... आप लोग 100% पैसा निकालने की अप्लिकेशन दे रहे हो. लेकिन ऐज पर नॉर्म्स तो 75% ही है.


रौनक.... हां कंपनी पॉलिसी के तहत हम 75% ही निकाल सकते हैं. लेकिन यदि एम डी चाहे तो 100% फंड रिलीस कर सकता है, बस केवल लीगल बेंच के कन्सेंट सिग्नेचर पर एम डी के सिग्नेचर होने चाहिए.


मनु.... जैसी आप की मर्ज़ी... बधाई हो एक कदम आप की जीत के नाम.


मनु ने तभी लीगल बेंच के सारे वकील को बुलवाया और सब के कन्सेंट सिग्नेचर लेने के बाद मनु ने अपना सिग्नेचर कर दिया. फिर क्या था
राजीव और रौनक ने भी कंपनी के अग्रीमेंट पेपर साइन किए और जीत की खुशी मनाते चले गये.
 
मॉर्निंग इन मूलचंदानी हाउस......


मानस मिठाई का डब्बा ले कर पहुँच चुका था मूलचंदानी हाउस. सबसे पहले अपने दादू से मिला और अपनी पहली कामयाबी की मिठाई उसे खिलाया....


शम्शेर..... ह्म !!!! मानस तुम्हारी कामयाबी अच्छी लगी. मैने भी इतनी तरक्की केवल शिप्पिंग कंपनी से ही की है. तुझ मे मैं अपना बीता हुआ कल देख रहा हूँ. पर तू ये बता मनु और तेरे बीच चल क्या रहा है...


मानस.... छोड़ो ना उसे दादू.... अभी मैं अपने काम के बारे मे सोच रहा हूँ. ऐसे छोटी-मोटी मुस्किलें तो आती रहती है. मैं जब वो बुरा वक़्त भी काट सकता हूँ, तो उस के मुक़ाबले ये वक़्त क्या है. जाने दो, आप मिठाई खाओ....


शम्शेर..... दट'स माइ ब्रेव बॉय. अच्छा ये बता शिप की सारी अर्रेंग्मेम्ट्स हो गयी है.


मानस.... 2 शिप तो तैयार है, एक कोलकाता डॉक पर है और एक चेन्नई डॉक. पर मुझे नही लगता 2 शिप से काम चलेगा.... मुझे किसी
शिप्पिंग कार्पोरेशन से हाथ मिलाना ही होगा. वरना ये कांट्रॅक्ट पूरा नही हो पाएगा.


शम्शेर..... कुछ सोचा है फिर...


मानस.... हां दादू सोचा तो था, पर बहुत सोचने के बाद इस नतीजे पर पहुँचा कि घर से कोई हेल्प नही मिलेगी, मुझे बाहर से किसी को
पकड़ना होगा....


शमशेर..... ज़रा खुल कर बताओ क्या कहना चाह रहे हो.


मानस.... दादू, मैं यहाँ डॅड के साथ डील करने आया था, फिर अचानक ही ख्याल आया कि डॅड की सारी शिप तो पहले से बुक्ड होंगी इसलिए ये प्लान ड्रॉप कर दिया.


शम्शेर..... ह्म्‍म्म्म ! कोई बात नही है, तुम एक बार बात कर लो हर्ष से यदि बात ना बने तो मुझे बताना.


मानस.... ठीक है दादू, मैं देखता हूँ .... मिल लूँ ज़रा मोम-डॅड से भी....


मानस फिर अपने दादू के पास से सीधा मोम-डॅड के पास आया... अमृता और हर्ष दोनो ही बैठे हुए थे. मानस को देखते ही......


अमृता.... मानस, कैसा है मेरा बच्चा.... अभी न्यूसपेपर मे तुम्हारी खबर देखी. बधाई हो....


मानस थोड़े अचम्भे मे पड़ गया.... इतना ज़्यादा प्यार उस से संभाला नही गया, वो क्या कहने आया था सब भूल गया, और बस खो गया अमृता की बातों मे. कहते हैं जिस प्यार के लिए तडपे हो ता-उम्र, वो प्यार फिर दुशमन से भी मिल जाए तो दिल उसे हे अपना मान'ने लगता है....
ठीक इस वक़्त मानस के साथ यही हो रहा था.....
 
इतने मे अमृता फिर बोल पड़ी.... अर्रे, अब क्या वहीं खड़ा रहेगा, आ ना अंदर. लो जी आप का बेटा आज अंदर नही आएगा, आप ही बुलाओ
तो ही आएगा....


हर्ष.... मानस, आओ बेटा, बाहर खड़ा क्या सोच रहा है....


पता नही क्यों पर आज एक अजीब सा अपनापन मानस को महसूस हो रहा था. कुछ जो आज से पहले कभी महसूस नही हुआ हो. मानस
धीमे अपने कदम बढ़ाता अंदर तक आया....


अमृता..... मानस क्या हुआ बेटा, कोई परेशानी है क्या. इतनी सोच मे क्यों डूबे हो...


मानस.... आमम्म्म ... कुछ नही मोम... आप दोनो बताओ कैसे हो....


हर्ष..... मैं तो ठीक हूँ, पर तेरी माँ ज़िद पकड़े है कि अब उसे अपने पोते का मुँह देखना है...


मानस.... क्या ????


अमृता..... हां सच ही कहा हर्ष ने. अच्छा सुन ना, वो बच्ची कहाँ है जो उस दिन तेरे ऑफीस मे मिली थी... मुझे बहुत ही प्यारी लगी...


मानस.... कौन मोम...


अमृता.... अर्रे वही जिसे तुम ने नीचे गिरा दिया था....


मानस, तो बिल्कुल भूल ही चुका था कि वो क्या बात करने यहाँ आया था. अमृता की बात का जबाव देते हुए मानस कहने लगा..... "अच्छा वो, आप ड्रस्टी की बात कर रही हैं. वो तो नताली के घर पर है".


अमृता..... चल ना अभी, मुझे उस से मिलना है...


अमृता की बात मे छोटे बच्चों जैसी ज़िद थी, जिसका समर्थन हर्ष भी कर रहा था...


मानस..... क्या ????


अमृता.... तू हर बात पर ऐसे चौंक क्यों रहा है, कहा ना हमे अभी उस से मिलना. चल ले चल चुप चाप.


मानस को ना चाहते हुए भी उन दोनो को अपने साथ ड्रस्टी से मिलवाने ले जाना पड़ा. रास्ते मे जब वो चल रहा था, बहुत ही गहरी सोच मे
डूब गया..... "आख़िर इनके हृदय परिवार्तन हुए कैसे"......

मानस को ना चाहते हुए भी उन दोनो को अपने साथ ड्रस्टी से मिलवाने ले जाना पड़ा. रास्ते मे जब वो चल रहा था, बहुत ही गहरी सोच मे
डूब गया..... "आख़िर इनके हृदय परिवार्तन हुए कैसे"......
 
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