hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
मेरी सेक्स कहानी के पहले भाग में आपने पढ़ा कि मैंने अपनी बहू के साथ एक शादी में जाना था. बहू ने इस मौके का फ़ायदा उठाने का पूरा इंतजाम कर लिया था. उसने मुझे अपने पास बैंगलोर लिया. वहाँ से हमने ट्रेन से दिल्ली जाना था. फिर राजधानी एक्सप्रेस के प्राइवेट केबिन में डेढ़ दिन यानि पूरे 36-37 घंटे वासना और चोदन का नंगा धमाल होना तय था. बहूरानी के इस लाजवाब कार्यक्रम का मैं कायल हो गया और आने वाले रोमांच और रोमांस के बारे में सोच सोच कर मेरा मन प्रफुल्लित हुए जा रहा था.
तय कार्यक्रम के अनुसार मैं छह दिसम्बर की सुबह बैंगलोर जा पहुंचा. स्टेशन पर मेरा बेटा अपनी गाड़ी से मुझे रिसीव करने आया हुआ था; स्टेशन से घर पहुँचने में कोई पैंतीस चालीस मिनट लगे. मैं गाड़ी से उतर गया और बेटा गाड़ी को पार्क करने लगा. मेरे हृदय में बहूरानी से मिलने की अभिलाषा तीव्र से तीव्र हो रही थी, मैंने अपने बेटे के आने की प्रतीक्षा नहीं की और मैं अपने बेटे के फ़्लैट की ओर बढ़ गया.
दरवाजे पर पहुंचा और घंटी बजाने पर दरवाजा बहूरानी ने ही खोला.“नमस्ते पापा जी!” बहूरानी ने हमेशा की तरह मेरे पैर आत्मीयता से स्पर्श कर के मेरा स्वागत किया.“आशीर्वाद है अदिति बेटा, खुश रहो!” मैंने भी उसके सिर पर स्नेह से हाथ रख कर उसे आशीष दी और मेरा हाथ अनचाहे ही फिसल कर उसकी पीठ पर जा पहुंचा और उसकी गर्दन के पिछले भाग को सहलाता हुआ नीचे उतर कर उसकी ब्रा के हुक पर ठहर गया. ये सब कुछ ही क्षणों में हो गया. बहूरानी की ब्रा के हुक को मैंने ऐसे ही थोड़ा सा दबा दिया तो मेरी मंशा जान कर बहूरानी का जिस्म सिहर उठा.
बहू रानी तुरन्त उठ के सीधी हुई और मुझे शिकायत भरी निगाहों से लेकिन होंठों पर मुस्कराहट लिए देखती रही, तभी उसके होंठों ने ज़रा सा गोल होकर जैसे हवाई चुम्बन दिया; प्रत्युत्तर में मैंने भी अपने होठों से जवाब दिया.
मैं अपनी बहूरानी के इस आत्मीय और संतुलित व्यवहार से हमेशा ही अचंभित, अवाक्, खुश रहा हूँ. मेरी बहूरानी मुझ से अब तक कम से कम तीस पैंतीस बार तो चुद ही चुकी होगी परन्तु उनके व्यवहार में हमारे इन सेक्स रिश्तों की झलक भी कभी दिखाई नहीं दी.दूसरों के सामने की तो बात ही क्या, जब कभी हम अकेले भी होते तो बहूरानी हमेशा अपने सर पर पल्लू डाल के नज़र नीची करके मुझसे सम्मान से बात करती; उसने कभी भी मुझे यह बात जताई नहीं कि वो मेरी अंकशायिनी भी है.
कोई व्रत उपवास ऐसा नहीं है जिसे अदिति न करती हो. सोमवार तो उसका व्रत हमेशा ही रहता है इसके अलावा एकादशी, प्रदोष और साल में एक बार आने वाले व्रत जैसे जन्माष्टमी, शिवरात्रि, नवदुर्गा इत्यादि न जाने कितने; सब पूरे विधि विधान से ही करती, निभाती है.अल्प शब्दों में कहा जाय तो सभी स्त्रियोचित गुणों से परिपूर्ण है मेरी बहूरानी अदिति… और किसी भी सभ्रान्त परिवार की संस्कारी है मेरी प्यारी बहू!
अब यह बात अलग है कि वो मुझसे चुदवाते समय स्त्रियोचित लाज शर्म संकोच त्याग कर देवी रति का रूप धर किसी चुदासी कामिनी की तरह मेरा लंड हंस हंस के मेरी आँखों में झांकते हुए चूसती चाटती है और फिर उसे अपनी चूत में लील के किसी निर्लज्ज कामिनी की तरह मुझे उसे बलपूर्वक चोदने को उकसाती है और अपनी चूत उछाल उछाल के कामुक बातें कहती हुई अपने स्त्रीत्व को पूर्ण रूप से भोग लेती है. मेरी बहू की कामवासना काफी प्रखर है और मेरे साथ तो वो जैसे कामुकता की मूर्ति बन जाती है.
एक बात यहाँ और, मैं उस दिन अपनी बहूरानी को कोई डेढ़ साल बाद मिल रहा था. इन डेढ़ सालों में उसके जिस्म में आश्चर्यजनक बदलाव मैंने नोट किया; वो पहले से और भी छरहरी हो गयी थी उसका सुतवां जिस्म और भी सांचे में ढल गया था. किशोरियों या टीन गर्ल्स जैसी कमनीयता या आभा, ग्लो, दीप्ति या नूर कुछ भी कह लो; उसके जिस्म के अंग अंग से छलक रहा था.
मैं तो बहूरानी के कमनीय बदन में जैसे खो सा गया था कि “पापा जी, कहाँ खो गए आप?” बहूरानी की आवाज ने जैसे मुझे नींद से जगाया.“अदिति बेटा, तू इतनी बदल कैसे गयी, पहचान में ही नहीं आ रही आज तो?”“अच्छा, ऐसा क्या दिख रहा है मुझमें जो पहले नहीं दिखाई दिया आपको?” बहूरानी जरा इठला कर बोली.
तभी मेरे बेटे के क़दमों की आहट सुनाई दी, वो मेरा बैग वगैरह ले के आ रहा था. बहूरानी ने अपने होंठों पर उंगली रख के मुझे चुप रहने का इशारा किया; मैंने भी वक़्त की नजाकत को समझा और पास की कुर्सी पर बैठ गया.“बहूरानी, एक गिलास पानी ले आ… और फिर चाय बना दे जल्दी से!” प्रत्यक्षतः मैंने कहा.“जी अभी लाई पापा जी!” अदिति ने मुझे मुस्कुरा कर देखा और रसोई की तरफ चल दी.
तय कार्यक्रम के अनुसार मैं छह दिसम्बर की सुबह बैंगलोर जा पहुंचा. स्टेशन पर मेरा बेटा अपनी गाड़ी से मुझे रिसीव करने आया हुआ था; स्टेशन से घर पहुँचने में कोई पैंतीस चालीस मिनट लगे. मैं गाड़ी से उतर गया और बेटा गाड़ी को पार्क करने लगा. मेरे हृदय में बहूरानी से मिलने की अभिलाषा तीव्र से तीव्र हो रही थी, मैंने अपने बेटे के आने की प्रतीक्षा नहीं की और मैं अपने बेटे के फ़्लैट की ओर बढ़ गया.
दरवाजे पर पहुंचा और घंटी बजाने पर दरवाजा बहूरानी ने ही खोला.“नमस्ते पापा जी!” बहूरानी ने हमेशा की तरह मेरे पैर आत्मीयता से स्पर्श कर के मेरा स्वागत किया.“आशीर्वाद है अदिति बेटा, खुश रहो!” मैंने भी उसके सिर पर स्नेह से हाथ रख कर उसे आशीष दी और मेरा हाथ अनचाहे ही फिसल कर उसकी पीठ पर जा पहुंचा और उसकी गर्दन के पिछले भाग को सहलाता हुआ नीचे उतर कर उसकी ब्रा के हुक पर ठहर गया. ये सब कुछ ही क्षणों में हो गया. बहूरानी की ब्रा के हुक को मैंने ऐसे ही थोड़ा सा दबा दिया तो मेरी मंशा जान कर बहूरानी का जिस्म सिहर उठा.
बहू रानी तुरन्त उठ के सीधी हुई और मुझे शिकायत भरी निगाहों से लेकिन होंठों पर मुस्कराहट लिए देखती रही, तभी उसके होंठों ने ज़रा सा गोल होकर जैसे हवाई चुम्बन दिया; प्रत्युत्तर में मैंने भी अपने होठों से जवाब दिया.
मैं अपनी बहूरानी के इस आत्मीय और संतुलित व्यवहार से हमेशा ही अचंभित, अवाक्, खुश रहा हूँ. मेरी बहूरानी मुझ से अब तक कम से कम तीस पैंतीस बार तो चुद ही चुकी होगी परन्तु उनके व्यवहार में हमारे इन सेक्स रिश्तों की झलक भी कभी दिखाई नहीं दी.दूसरों के सामने की तो बात ही क्या, जब कभी हम अकेले भी होते तो बहूरानी हमेशा अपने सर पर पल्लू डाल के नज़र नीची करके मुझसे सम्मान से बात करती; उसने कभी भी मुझे यह बात जताई नहीं कि वो मेरी अंकशायिनी भी है.
कोई व्रत उपवास ऐसा नहीं है जिसे अदिति न करती हो. सोमवार तो उसका व्रत हमेशा ही रहता है इसके अलावा एकादशी, प्रदोष और साल में एक बार आने वाले व्रत जैसे जन्माष्टमी, शिवरात्रि, नवदुर्गा इत्यादि न जाने कितने; सब पूरे विधि विधान से ही करती, निभाती है.अल्प शब्दों में कहा जाय तो सभी स्त्रियोचित गुणों से परिपूर्ण है मेरी बहूरानी अदिति… और किसी भी सभ्रान्त परिवार की संस्कारी है मेरी प्यारी बहू!
अब यह बात अलग है कि वो मुझसे चुदवाते समय स्त्रियोचित लाज शर्म संकोच त्याग कर देवी रति का रूप धर किसी चुदासी कामिनी की तरह मेरा लंड हंस हंस के मेरी आँखों में झांकते हुए चूसती चाटती है और फिर उसे अपनी चूत में लील के किसी निर्लज्ज कामिनी की तरह मुझे उसे बलपूर्वक चोदने को उकसाती है और अपनी चूत उछाल उछाल के कामुक बातें कहती हुई अपने स्त्रीत्व को पूर्ण रूप से भोग लेती है. मेरी बहू की कामवासना काफी प्रखर है और मेरे साथ तो वो जैसे कामुकता की मूर्ति बन जाती है.
एक बात यहाँ और, मैं उस दिन अपनी बहूरानी को कोई डेढ़ साल बाद मिल रहा था. इन डेढ़ सालों में उसके जिस्म में आश्चर्यजनक बदलाव मैंने नोट किया; वो पहले से और भी छरहरी हो गयी थी उसका सुतवां जिस्म और भी सांचे में ढल गया था. किशोरियों या टीन गर्ल्स जैसी कमनीयता या आभा, ग्लो, दीप्ति या नूर कुछ भी कह लो; उसके जिस्म के अंग अंग से छलक रहा था.
मैं तो बहूरानी के कमनीय बदन में जैसे खो सा गया था कि “पापा जी, कहाँ खो गए आप?” बहूरानी की आवाज ने जैसे मुझे नींद से जगाया.“अदिति बेटा, तू इतनी बदल कैसे गयी, पहचान में ही नहीं आ रही आज तो?”“अच्छा, ऐसा क्या दिख रहा है मुझमें जो पहले नहीं दिखाई दिया आपको?” बहूरानी जरा इठला कर बोली.
तभी मेरे बेटे के क़दमों की आहट सुनाई दी, वो मेरा बैग वगैरह ले के आ रहा था. बहूरानी ने अपने होंठों पर उंगली रख के मुझे चुप रहने का इशारा किया; मैंने भी वक़्त की नजाकत को समझा और पास की कुर्सी पर बैठ गया.“बहूरानी, एक गिलास पानी ले आ… और फिर चाय बना दे जल्दी से!” प्रत्यक्षतः मैंने कहा.“जी अभी लाई पापा जी!” अदिति ने मुझे मुस्कुरा कर देखा और रसोई की तरफ चल दी.