Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 7 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

सुरज ने मनीषा का हाथ अपने लंड से हटाते हुए उसे सीधा लेटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया । सूरज उसके गुलाबी होंठो को चूमते हुए नीचे होते हुए मनीषा की गोरी चुचियों के हलके गुलाबी दानों को मूह में भरकर चूसने लगा।

सुरज अब और नीचे होते हुए मनीषा की टांगों को फ़ैलाते हुए उसकी हलके बालों वाली गोरी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा । मनीषा ने सूरज से कहा "हमे भी आपके लंड से प्यार करना है", सूरज मनीषा की बात सुनते ही उसको छोडकर सीधा लेट गया ।
मानिषा सूरज के ऊपर ६९ पोजीशन में आ गयी और सूरज के लंड अपने हाथ में लेते हुए उसकी झाँटों को सहलाने लगी । सूरज ने जैसे ही अपनी जीभ को मनीषा की चूत के छेद पर रखा वह सिसकते हुए सूरज के लंड के टोपे को चूमने लगी ।

सुरज ने मनीषा की चूत पर अपनी जीभ को फिराते हुए अचानक उसके छेद में घुसा दिया । आअह्ह्ह्ह मनीषा के मूह से सिसकी निकली और उसने मज़े से सूरज के लंड का टोपा अपने मूह में भर लिया, सूरज थोडी देर तक मनीषा की चूत को चाटने के बाद उसे सीधा लेटा दिया।
सुरज ने मनीषा की टांगों को घुटनों तक मोडते हुए उसके नीचे एक तकिया रख दिया । सूरज मनीषा की टांगों के नीचे आते हुए अपना लंड उसकी खुली हुयी चूत पर रगडने लगा।
"हाहहह आराम से डालना तुम्हारा बुहत बड़ा और मोटा है" मनीषा ने सिसकते हुए कहा।

सुरज ने अपने लंड को मनीषा की चूत के छेद पर सेट करते हुए एक ज़ोरदार धक्का मार दिया ।
"उहह आअह्ह्ह तुम्हारा बुहत मोटा है बुहत दर्द हो रहा है" सूरज का लंड एक झटके में ही आधा अपनी चूत में घूसने से वह दर्द से चिल्लाते हुए बोली ।
सुरज अपने आधे लंड को ही मनीषा की चूत में अंदर बाहर करने लाग, कुछ ही देर में मनीषा को बुहत मजा आने लगा और वह अपने गाँड उछाल उछाल कर सूरज का लंड अपनी चूत में लेने लगी ।

सुरज ने मनीषा का दरद ख़तम होते ही अपने लंड से उसकी चूत में धक्के देते हुए अचानक एक बुहत ज़ोर का धक्का मार दिया । सूरज का लंड मनीषा की कसी हुयी छूट को चीरता हुआ उस में जड़ तक घुस गया ।

"आईईए माँ सीईई मर गयी ओहहहह फट गई" सूरज का पूरा लंड घूसने से मनीषा दरद के मारे तड़पते हुए चीख़ने लगी । मनीषा की शादी को 6 महिने हुए थे और उसने अपने पति के 6 इंच के लंड के अलावा किसी से नहीं चुदवाया था, इसी लिए उसकी चूत अब तक पूरी खुली नहीं थी।
 
सुरज का 9 इंच लम्बा और मोटा मुसल घूसने से मनीषा को अपनी चूत में बुहत दरद और जलन महसूस हो रही थी । सूरज मनीषा को तडपता हुआ देखकर उसके ऊपर झुक गया और मनीषा की चुचियों से खेलने लगा।

सुरज का चुचियों से खेलने से मनीषा की चूत से थोडी देर में ही दरद कम हो गया । मनीषा को सूरज का लंड अपनी चूत में बच्चेदानी तक महसूस हो रहा था, उसके पति का लंड कभी भी उसकी चूत को इतना फ़ैलाकर उसकी गहराइयों तक नहीं पुहंचा था ।

सुरज ने देखा की मनीषा का दरद कम हो गया तो वह उसके ऊपर से उठकर अपने लंड को उसकी चूत से बाहर खीचने लगा। सूरज का लंड मनीषा की टाइट चूत को बुरी तरह फैलाये हुआ था ।
सुरज ने जैसे ही अपने लंड को बाहर खीचना शुरू किया मनीषा को ऐसा महसूस हुआ की सूरज का लंड उसकी चूत से निकलते हुए अपने साथ उसकी चूत में से किसी और चीज़ को भी बाहर खीँच रहा है । मनीषा का सारा जिस्म अकड़ कर काम्प रहा था, उसकी सारी ताक़त जमा होकर उसकी चूत की तरफ जाने लगी।

सुरज जैसे जैसे अपना लंड पीछे खीचता उसकी जोर की रगड से मनीषा का अंग अंग मज़े से झूम उठता और वह ज़ोर से हाँफने लगी । मनीषा की चूत से सूरज ने जैसे ही अपना लंड टोपे तक बाहर खींचा मनीषा की चूत से उसके लंड के साथ मनीषा की चूत का पानी भी निकल गया ।
"हाहहह श ऊफफ" मनीषा ज़ोर से सिसक कर हाँफते हुए झर रही थी । सूरज ने मनीषा को इतनी जल्दी झरता देखकर अपना लंड वापस उसकी चूत में जड़ तक घुसा दिया ।

सुरज का लंड फिर से अपनी चूत में जाते हुए उसकी रगड से मनीषा की चूत और ज़्यादा पानी बहाने लगी और वह मज़े से हवा में उडते हुए अपने चूतड़ उछालते हुए सिसकार कर सूरज से बोली "इश आअह्ह्ह सूरज हमें जाने क्या हो गया है, हमें कभी ऐसा मजा नहीं आया अपना लंड बुहत ज़ोर से मेरी चूत में अंदर बाहर करो । तुम्हारे लंड की रगड हमें पागल बना रही है"। सूरज मनीषा के मूह से ऐसी बात सुनकर अपने लंड को बुहत तेज़ी और ज़ोर के साथ उसकी चूत में अंदर बाहर करने लगा।

ओहह सीई ऐसे ही आह्ह्ह्ह तुम्हारा लंड हमारी चूत की गहराइयों में महसूस हो रहा है । हमारे पति ने आज तक इतना मजा कभी नहीं दिया ओह्ह सूरज तुम्हारे लंड की मैं दीवानी हो गई हूँ ।
सुरज की चुदाई से वह दो दफ़ा और झडी और उस दिन से मनीषा और सूरज जब भी मोका मिलता अपनी प्यास ज़रूर बुझाते थे । सूरज जब भी मनीषा अकेली होती उसके घर आ जाता और जी भरकर मनिषा को चोदता था।मनिषा भी बहुत गरम थी वह भी सूरज से खुलकर रंडियों की तरह चुदवाती थी।सूरज को मनिषा की गांड बहुत पसंद थी।वह मनिषा की गांड भी मार चूका था।
 
मनीषा सूरज से चुदवाने के बाद चुदासी बन गयी थी और उसने सूरज के कई और दोस्तोँ से भी अपने सम्बन्ध बना दिए थे ।

मानिषा के पति को पता चल चूका था की उसकी पत्नी उसके बॉस से चुदवा चुकी है, मगर उसने भी अपने कैरियर के लिए यह समझोता कर लिया । मनीषा को इस बीच तीन औलादें हो चुकी थी । लड़का अपने पति से और दोनों लड़कियाँ सूरज से और यह बात सूरज को भी पता थी ।
सुरज आज भी मनीषा के घर पर उसके साथ बैडरूम में नंगा सोया हुआ था । वह दोनों दो बार की चुदाई कर चुके थे।
"अचानक तुम्हें अपने भाई और पिता की याद आ गयी ?" सूरज ने मनीषा की चूचि जो अब ३८ की हो गई थी उससे खेलते हुए कहा।

"मुझे याद नहीं आई मगर बच्चे ज़िद कर रहे है। वैसे भी उनके स्कूल की छुट्टी है" मनीषा ने जवाब दिया।
"हमारा क्या होगा इतने दिन तक" सूरज ने परेशान होते हुए कहा ।
"बुढे होगये हो फिर भी इसी काम के पीछे लगे रहते हो, शादी क्यों नहीं कर लेते" मनीषा ने सूरज को चिढाते हुए कहा।
"बुढा मत कहो हमें हमारे लंड में अब भी इतनी जान है की हम किसी भी लौंडिया को खुश कर सकते हैं । हमारी बेटियाँ भी जवान हो चुकी है" सूरज ने गुस्से से कहा ।

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मनीषा ने हैंरान होते हुए कहा।
"तुम्हारी दोनों बेटियाँ मेरी मेंहनत का नतीजा है, फिर हम अपनी महनत का फल तो उन्ही से वसूल करेंगे" सूरज ने हँसते हुए कहा।
"तुम अपनी बेटियों के बारे में ऐसा सोच रहे हो" मनीषा ने ज़्यादा हैंरान होते हुए कहा।
"आजकल की लौंडियों को तुम जानती नहीं। स्कूल कॉलेज में ही अपनी चूत फडवा लेती है, अगर हम ने उनकी चूत का उदद्घाटन कर दिया तो इसमें बुरा ही क्या है" सूरज ने मनिषा का जवाब देते हुए कहा ।

"तुम अपने बाप और भाई से मिलकर आओ । मैं अब चलता हूं, जब लौट आओ तो फ़ोन कर देना और तुम अपनी बेटियों की चिंता मत करो उनके साथ मैं कोई ज़बर्दस्ती नहीं करूँगा । वह खुद अपनी चूत मेरे से फडवाएँगी" सूरज ने कपडे पहन कर जाते हुए कहा ।
 
कंचन का आज कॉलेज में बिलकुल मन नहीं लग रहा था, फ्री पीरियड होते ही वह पार्क में जा बैठी । कंचन जो रोज़ नीलम के न आने की दुआएँ करती थी आज उसका दिल कह रहा था की भगवान करे की नीलम आज आ जाये और वह उससे कुछ पूछ सके ।
"क्या सोच रही हो मेरी रानी" नीलम ने आते ही कंचन को गुमशूम देखकर कहा।
"नीलम तुम आ गई" कंचन ने उसे देखते ही खुश होते हुए कहा ।
"क्यों कोई काम था" नीलम ने कंचन के साथ बैठते हुए कहा।
"नही ऐसे ही कह रही थी" कंचन ने अपनी चोरी पकरे जाने पर घबराते हुए कहा।

"यार शर्मा मत जो पूछना है जल्दी पूछ, आज मुझे जल्दी घर जाना है" नीलम ने कंचन की तरफ देखते हुए कहा।
"नीलम तुम ने कल कहा था । " इतना कहकर कंचन चुप हो गई ।
"कंचन बोल न, हाँ तो क्या तुमने भी अपनी जवानी का मजा लेने का सोच लिया है" नीलम को जैसे ही कल वाली बात याद आई। उसने उछलते हुए कहा ।
"मगर नीलम मैं किसी के साथ रिस्क नहीं ले सकती" कंचन ने अपनी मजबूरी नीलम को बताते हुए कहा ।

"मैंने कहा था न की तुम अपने भाई पर ट्राई करो" नीलम ने जल्दी से कहा।
"नीलम तुम मुझे अपने सगे भाई के साथ गलत काम करने को कह रही हो, तुम्हारा भाई होता तो ऐसा करती"
कंचन ने नीलम को गुस्से से कहा ।
"कंचन अगर मेरा कोई भाई होता और वह जवान होता तो मुझे बदनाम होने की क्या ज़रूरत थी" नीलम ने कंचन को समझाते हुए कहा।
"मगर यह पाप नहीं है" कंचन ने नीलम से कहा।
"पाप पुण्य की सोचेगी तो भूखी मर जाएगी" नीलम ने कंचन से कहा।

नीलम ने कंचन को खमोश देखकर कहा "एक राज़ की बात बताउं, किसी को बताना मत ?",
"हा बताओ नीलम, मैं किसी को नहीं बताऊँगी" कंचन ने जल्दी से उतावली होते हुए कहा।
"तुम्हेँ पता है मुझे चुदाई का चस्का किसने ड़ाला था ?"
"नीलम बताओ न मुझे क्या पता" कंचन ने नीलम की बात का जल्दी से जवाब देते हुए कहा।
तुम्हेँ पता है की जब मैं १८ साल की थी तो मेरी माँ का इंतक़ाल हो गया और मेरा कोई भाई बहन भी नहीं है ।माँ के मरने के बाद मेरे बापु गुमसुम रहने लगे ।
 
माँ को मरे हुए ३ महिने बीत चुके थे सर्दि के दिन चल रहे थे, एक रात जब खाना खाने के बाद मैं सोने के लिए खटिया पर गयी तो बापुजी को खोया हुआ देखकर मुझसे रहा नहीं गया । "मैंने बापू जी से पुछा की आप मम्मी के गुज़रने के बाद बुहत उदास रहते हो क्या बात है?" ।
बापु जी मेरा सवाल सुनकर चौंकते हुए मेरी तरफ गौर से देखते हुए बोले "बेटी तुम अब जवान हो चुकी हो इसीलिए तुम्हें मालूम होना चाहिए की औरत और मरद का आपस में क्या रिश्ता होता है, जब मरद और औरत शादी करते हैं तो वो आपस में क्या करते हैं"।

मैं उस वक्त बापु जी की बात बड़े गौर से सुन रही थी, क्योंकी उस वक्त मुझे मालूम नहीं था की मरद के पास लंड और औरत के पास चूत होती है जिसका उपयोग वह शादी के बाद करते हैं ।
बापु जी ने आगे कहा "बेटी जब कोई मरद किसी औरत से शादी करता है तो वह अपना लंड जो यहाँ होता है (अपनी धोती की तरफ इशारा करते हुए) उस औरत की चूत जहाँ से तुम पेशाब करती हो वहां डालता है, जिससे मरद और औरत दोनों को बुहत मजा आता है" बापू ने मुझे समझाते हुए कहा ।

मैं बड़े गौर से बापू की तरफ देख रही थी, उनकी धोती में मुझसे बात करते हुए बुहत बड़ा उभार बन चूका था । मुझे उस वक्त पता नहीं था की वह मेरे बापु का लंड था जो अपनी बेटी को गन्दी बातें बताते हुए खडा हो चुका था ।
"बेटी जब मरद औरत की चूत में इसे डालता है तो मज़े की चरम सीमा तक पहचने के बाद इसमें से वीर्य निकलता है जिस से औरत गारभवती होती है और मरद को बुहत मजा आता है । अब जब तुम्हारी मम्मी मर चुकी है तो हमारा लंड हमें बुहत तँग करता है, इसी लिए हम उदास है"।

बापु जी की बात सुनने से मुझे अपने जिस्म में अजीब गुदगुदी महसूस हो रही थी, मुझे उस वक्त पता नहीं था की मैं एक जवान लड़की हूँ जिसको अपने बाप के मूह से लंड और चूत के शब्द सुनने से उसकी चूत से पानी बह रहा है ।
"बापु जी जो सुख आप को माँ देती थी क्या मैं दे सकती हूँ?" मैंने बापू जी की बात सुनने के बाद मासूमियत से कहा।
"हा बेटी तुम वह हर सुख दे सकती हो, पर तुम मेरी बेटी हो" बापू जी ने मुझे समझाते हुए कहा ।

"तो क्या हुआ बापू हम आपको ऐसे उदास नहीं देख सकते" मैंने बापु जी से कहा । कंचन उस वक्त मुझे सेक्स का कोई ज्ञान नहीं था, हम गाँव में ही रहते थे और १० तक वहीँ पढे थे । हमें पता नहीं था की हम कितना बड़ा पाप कर रहे हैं ।
"मगर बेटी यह सब गलत है" बापु जी फिर से कहा।
"हम कुछ नहीं जानते, हमें अपने बापू जी को खुश देखना है" हम ने ज़िद करते हुए कहा।
"ठीक है बेटी मगर यह कभी किसी को नहीं बताना" बापू जी ने मेरी तरफ एक मरद की नज़र से देखते हुए कहा।
 
"ठीक है बापु जी हम किसी को नहीं बताएंगे" मैंने खुश होते हुए कहा ।।।। मुझे क्या पता था की मैं अपने पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मार रही हूं, बापू मेरी बात सुनकर अपनी चारपाई से उठते हुए मेरी चारपाई पर आकर बेठ गये ।
बापु जी सिर्फ एक धोती में थे, वह क़रीब बैठते ही मेरी तरफ गौर से देखते हुए मेरा सर अपने हाथों में पकड लिये और अपने गरम होंठ मेरे होंठो पर रख दिये, बापू जी के होंठ अपने होठो पर महसूस होते ही मेरे सारे शरीर में चींटियाँ रेंगने लगी ।

बापु हमारे होंठो को कई मिनटों तक चूसते रहे, पहले तो मुझे अजीब लगा मगर थोडी देर में मुझे बुहत अच्छा लगने लगा । बापू जी जैसे जैसे मेरे होंठो को चूसते जा रहे थे। मुझे सारे शरीर में अजीब किस्म के मज़े का अहसास हो रहा था ।
बापु जी ने अचानक अपने होंठ हमारे होंठो से हटा दिये और मुझसे कहा "बेटी अगर पेशाब लगी है तो करके आजा" । मैं हैंरान थी के बापू जी को कैसे पता लगा की मुझे पेशाब आई है, मैं बाथरूम में जाकर मूतने लगी।

मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की मुझे बुहत ज़ोर की पेशाब लगी है । मगर जब मैं अपनी कच्छी को नीचे करते हुए मूतने बैठी तो मेरी छूट से थोडा ही पेशाब निकला, मैंने बुहत ज़ोर लगाये मगर कोई फ़ायदा नहीं हुआ ।
मुझे अपनी चूत में बुहत ज़ोर की सिहरन हो रही थी । मैंने अपने हाथ से जैसे ही अपनी चूत को छुआ। मैं हैंरान रह गयी मेरी चुत बुहत गीली थी, मैं वहां से उठते हुए अपनी खटिया की तरफ जाने लगी । बापू जी ने मुझे देखकर खटिया से उठते हुए मुझे खटिया के पास ही रोक लिया ।

बापु ने मेरी साड़ी को पकड कर उतार दिया । मैं अब सिर्फ पेटिकोट और पेंटी में बापू जी के सामने खडी थी, बापू मेरे आधे नंगे गोरे जिस्म को देखते हुए खटिया पर बैठ गए और मुझे कमर में हाथ ड़ालते हुए अपने क़रीब कर लिया ।
मैं खडी थी इसीलिए मेरा नंगा पेट बापू के मुँह के सामने आ गया । बापू ने अपने होंठ मेरे नंगे पेट पर रख दिया और मेरे सारे पेट को बेतहाशा चूमने लगे, मेरा नंगे पेट पर बापू के होंठ पड़ते ही मेरे सारे शरीर में झुरझुरी होने लगी।

बापु ने मेरे पेट को जी भरकर चूमने के बाद मुझे कमर से पकड कर उल्टा कर दिया । बापू मेरे उलटे होते ही मेरे चूतड़ों को अपने हाथों से दबाने लगे, बापू के हाथ अपने चुतड़ों पर लगते ही मुझे अपनी चूत में ज़ोर की सनसनाहट होने लगी ।
बापु ने मेरे चुतडो को थोडी देर दबाने के बाद मुझे उल्टा ही अपनी गोद में बिठा दिया । बापु की गोद पर बैठते ही मुझे अपने चूतडों में कोई मोटी चीज़ चुभने लगी, मैं उस चीज़ के चुभने से सही से बैठ नहीं पा रही थी ।
 
बापु जी समझ गए के उनका लंड मुझे चूभ रहा है इसी लिए उसने मुझे थोडा उठा कर अपना लंड पीछे कर दिया । मुझे अब चुतडो में कुछ महसूस नहीं हो रहा था मगर मेरे गाण्ड के ऊपर वह चीज़ महसूस हो रही थी।

बापु ने अपने होंठो से मेरी पीठ को चूमते हुए मेरा पेटिकोट उतार दिया और अपनी जीभ से मेरी चिकनी गोरी पीठ को चाटने लगे । बापु ने मेरी पीठ को चाटते हुए मेरी ब्रा को भी उतार दिया और अपने हाथ आगे करते हुए मेरी ३६ की गोल चुचियों को पकड़ लिया।

बापु का हाथ अपनी नंगी चुचियों पर पडते ही मेरी साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी । बापु धीरे धीरे मेरी चुचियों को सहला रहा था और मैं मज़े से बुहत ज़ोर की साँसें ले रही थी, मुझे अपने पूरे शरीर में बुहत ज़ोर की उत्तेजना हो रही थी ।
बापु ने मेरी चुचियों को सहलाते हुए मुझे अपनी गोद से उठाते हुए खटिया पर सीधा लेटा दिया । बापू मेरे ऊपर आते हुए अपना मूह मेरी चुचियों पर रखकर उन्हें चूमने लगे, बापू जी की हरक़तों से मुझे अपनी चूत में बुहत ज़ोर की सिहरन हो रही थी ।

बापु ने मेरी चुचियों को चूमते हुए अचानक मेरी एक चूचि के गुलाबी निप्पल को अपने मूह में भर लिया और उसे ज़ोर से चूसते हुए मेरी दूसरी चूचि को अपने होठ से सहलाने लगे । बापु मेरी चूचि को बुहत ज़ोर से चूस रहे थे जैसे मेरी चुचियों का वह दूध पी रहें हो ।
मुझे अपनी चूचि चुसवाते हुए अपनी चूत में बुहत ज़ोर की सनसनाहट हो रही थी ।
"बापु जी हमें अपनी चूत में कुछ हो रहा है" मेने उत्तेजना के मारे बापु से कह दिया।
"पहले हमें अपनी बच्ची का मीठा दूध तो पी लेने दो" बापू ने अपना मूह मेरी चूचि से हटाते हुए कहा।

"बापु जी हमारी चुचियों में दूध किधर है जो आप पी रहे हो ?" मैंने हैंरान होते हुए बापू से पुछा।
"बेटी दूध से ज़्यादा मीठी तो तुम्हारी कुंवारी चुचियां है" बापू ने जवाब दिया ।
बापु हमारी दोनों चुचियों को बारी बारी चूसने के बाद नीचे होते हुए मेरी पेंटी तक आ गये।
"बेटी कहाँ तकलिफ हो रही है?" बापू ने मेरी गीली पेंटी को सूँघते हुए कहा "बापु जी हमारी कच्छी के अंदर" मैंने बापू को बताया ।

"बेटी तुम्हारी चूत की गंध तो बुहत बढ़िया है" बापू जी ने अपनी साँसें ज़ोर से पीछे खिचते हुए कहा । बापू जी ने यह कहते हुए मेरी कच्छी में हाथ ड़ालते हुए उसे उतारने लगे, मैंने अपने चूतड़ उठाते हुए मेरी कच्छी उतारने में बापू की मदद की ।
"वाह बेटी तुम्हारी चूत तो बुहत गोरी और फूली हुई है, तुम्हारी माँ की तो काली थी" बापू ने मेरी हलके बालों वाली गोरी चूत को देखते हुए कहा । बापू ने मेरी दोनों टांगों को अपने हाथों से चौडा कर दिया।
"हमारी बेटी की चूत से तो पानी निकल रहा है, इसी लिए तो तुम्हें यहाँ पर कुछ हो रहा था" बापू ने मेरी टांगों को चौडी होते ही मेरी चूत की तरफ देखते हुए कहा।
 
"हमारी बेटी तो बिलकुल जवान हो चुकी है, तुम्हें अपनी चूत में इसीलिए कुछ हो रहा है क्योंकि इसे अब अपने अंदर एक लंड चाहिए बेटी।जो इस की खुजलि को ख़तम कर सके" बापू ने मेरी टांगों को घुटनों तक मोडते हुए कहा । बापू ने मेरे चुतडो के नीचे एक तकिया दे दिया जिसकी वजह से मेरी चूत खुलकर ऊपर हो गई।
बापु ने नीचे झुकते हुए अपने होंठ मेरी चूत के दोनों पतले लबों पर रखते हुए उसे चूसने लगा।
बापु के होंठ मेरी चूत पर पडते ही मेरा सारा शरीर कम्पने लगा और मैंने चील्लाते हुए बापू से कहा।
"आह्ह्ह्ह बापू जी हमें वहां कुछ हो रहा है"

बापु ने मेरी बात सुनते ही अपना मूह खोल कर मेरी चूत के होंठो को अपने मूह में भर लिया और उन्हें ज़ोर से चूसते हुए अपने दुसरे हाथ से मेरी चूत के दाने को रगडने लगे । बापू जी की यह हरकत मुझसे बर्दाशत नहीं हुए और मेरी चूत ज़ोर के झटके खाते हुए अपना पानी छोड़ने लगी ।

"ओहहहह बापू जी इस्स्स्सस्ठ अपना मूह हटा लो। हमने पेशाब कर दिया । आह्ह" में झरते हुए अपनी आँखें बंद करके बुहत ज़ोर से चिल्ला रही थी । मुझे उस वक्त पता नहीं था की यह मेरा पहले ओर्गास्म है, मुझे लगा था के मेरी छूट से पेशाब निकल रही है ।
बापु मेरी चुत से निकलता हुआ सारा पानी चाटने लगा । मेरी चूत से इतना पानी निकला था की बापू का सारा चेहरा भीग चूका था । थोड़ी देर बाद जैसे ही मेने आँखें खोली बापू जी मेरी चूत को ही चाट रहे थे, उसकी नज़र जैसे ही मुझ पर पडी उसने कहा।
"बेटी अब कैसा लग रहा है"
"जी मुझे अपना जिस्म हल्का महसूस हो रहा है । और चूत में भी अब सिहरन नहीं हो रही है । मगर बापूजी मैंने आपके चेहरे पर मूत दिया" मैंने भोलेपन से कहा।

"नही बेटी यह तुम्हारा मूत नहीं है, यह तुम्हारी चूत का पानी है जो मरद से सेक्स करते वक़त मज़े से औरत की चूत से निकलता है" बापू ने मुझसे कहा।
"बापु जी सच में मुझे बुहत मजा आ रहा था जिस वक़त मेरा पानी निकला मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं जन्नत की सैर कर रही थी" मैने बापू की बात सुनते हुए कहा।
"बेटी अभी तुमने मजा लिया कहाँ है यह लंड जब तुम्हारी चूत में जाकर उसको गहराई तक रगड देगा तुम यह मज़ा भूल जाओगी" बापू ने अपनी धोती को उतारते हुए अपने लंड को सहलाते हुए कहा । कंचन तुम एतबार नहीं करोगी बापू जी लंड देखकर मेरा सारा बदन एक्साईटमेंट से फिर से काम्पने लगा।

बापु जी का लंड बिलकुल काला 9 इंच लम्बा और 3 इंच मोटा था, मेरी चूत यह सोचकर ही डर के मारे झटके खा रही थी की इतना बड़ा और मोटा लंड मेरी छोटी सी चूत में घुसेगा कैसे।
"बापु जी यह तो बुहत लम्बा और मोटा है,यह मेरी चूत में कैसे घुसेगा" मैंने बापू जी के मुसल लंड को ऑंखें फाड कर देखते हुए कहा ।
"बेटी भगवान ने औरत की योनि की दीवार बनायी ही ऐसी है के मरद का कितना भी बड़ा और मोटा लंड हो उसे वह अपने आप में समां लेती है । बस पहली बार थोडा दर्द होता है" बापू ने मुझे समझाते हुए कहा।
 
बापु जी हमें डर लग रहा है, यह बुहत लम्बा और मोटा है हमारी चूत फट जाएगी " मैंने डर के मारे बापू से कहा।
"बेटी तुम मुझ पर भरोसा करो। मैं तुझे बुहत आराम से चोदुँगा, इसे अपनी जाभ से गीला कर दो ताकी तुम्हें तकलीफ न हो" बापू जी नीचे से उठते हुए अपना लंड मेरे मूह के पास करते हुए बोले ।

मुझे बापू के लंड से अजीब गंध आ रही थी, मैंने अपनी जीभ निकालकर उनके लंड पर फिराने लगी । पहले मुझे उसके लंड का स्वाद अजीब लगा मगर फिर मुझे उसे चाटते हुए मजा आने लगा । मैंने बापू जी के पूरे लंड को अपनी जीभ से गीला कर दिया, बापू का लंड अब और ज्यादा अकड़ता हुआ और फूला हुआ लग रहा था ।
बापु अब मेरी टांगों को जो मैंने सिधी कर दी थी फिर से घुटनों तक मोड़ दिया और अपने लंड को मेरी फूली चूत पर रगडने लगे । बापू का लंड अपनी चूत पर लगते ही मेरा पूरा शरीर काम्पने लगा और मेरे मूह से सिसकियाँ निकलने लगी।

बापु ने अपना लंड अब मेरी चूत के दोनों होठो को खोलते हुए उसमें फँसा दिया । मेरा दिल आने वाले पल के बारे में सोचते हुए बुहत ज़ोर से धडक रहा था, बापू ने मेरी टांगों को पकड कर एक धक्का मारा। बापू जी का लंड मेरी चूत में जाने के बजाये फिसल कर बाहर आ गया ।
मेरा सारा शरीर गरम हो चुका था, मैंने बापू का लंड अपनी चूत में लेने के लिए उतावली हो रही थी । बापू का लंड दुसरी बार में भी अंदर जाने की बजाये फिसल गया।

"एक मिनट ठहरो बेटी" यह कहता हुआ बापू खटिया से उठकर किचन में चला गया । बापू जब लौटे तो उसके हाथ में मक्खन था, बापू ने मक्खन को मेरी चूत के छेद में अच्छी तरह से ड़ालते हुए बाकी का बचा हुआ अपने लंड पर लगा दिया ।
बापु ने इस बार अपने लंड को मेरी चूत में ड़ालने के बजाये अपनी एक ऊँगली मेरी छूट में डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा । ऐसे ही बापू ने अब दो उँगलियाँ मेरी चूत में डालकर अंदर बाहर करने लाग, मुझे बापू की उँगलियों से बुहत मजा आ रहा था । मेरी चूत से पानी टपक रहा था और वह बिलकुल गीली हो चुकी थी।

बापु ने मेरी चूत के होंठो को खोलते हुए अपना लंड उनके बीच फँसा दिया । बापू ज़ोर का धक्का देने के बजाये अपने लंड को वहां पर ही हलके हलके धक्कों के साथ सेट करने लगे । मेरा पूरा शरीर पसीने से भीग चूका था और मेरा सारा शरीर एक्साईटमेंट में कांप रहा था, मैं चाहती थी की बापू जल्दी से अपना लंड मेरी चूत में पेल दे । ऐसा करने से बापू जी लंड का मोटा टोपा मेरी चूत के होंठो को फ़ैलाता हुआ अंदर फँस चूका था ।
 
बापु जी डाल दो न बुहत तडपा लिया" मैंने सिसकते हुए बापू से कहा। बापू ने मेरी बात सुनकर मेरी टांगों को पकडते हुए मेरी चूत में अपने लंड को ज़ोर का धक्का दे दिया ।
"उईईईईईई माँ मर गयी ओह्ह्ह फट गयी निकाल लो बापू निकालो" एक ही धक्के में बापू का आधा लंड घूसने से मैं ज़ोर से चील्लाते हुए रोने लगी । बापू ने इतनी ज़ोर का धक्का मारा था की उसका आधा लंड मेरी चूत की झीली को तोड़ता हुआ मेरी चूत में घुस चूका था, मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे मेरी चूत को किसी ने काट कर दो टुकडो में तक़सीम कर दिया है।

मैं दर्द के मारे बुहत ज़ोर से चील्लाते हुए बापू को अपने ऊपर से दूर करने लगी । मगर बापू ने मुझे बुहत ज़ोर से जकड रखा था, वह अपना आधा लंड मेरी चूत में डाले ही मेरे ऊपर झुक गए ।
बापु मेरी एक चूचि को अपने मूह में भरकर चूसने लगे, बापू बारी बारी मेरी दोनों चुचियों को चूसने लगे । बापू की मेरी चुचियों को चूसने से मुझे कुछ आराम मिला और मेरी चूत का दर्द भी कम होने लगा ।अब मेरे मूह से सिसकिया निकलने लगी ।

"बेटी अब दर्द कैसा है" बापू ने मेरी चुचियों से मूह हटाते हुए कहा।
"बापु अब कुछ काम है" मैंने सिसकते हुए कहा।
"बेटी देखना थोडी ही देर में तुम्हारा सारा दर्द ख़तम हो जायेगा और तुम मज़े लेकर चुदवाओगी" बापू ने मेरे ऊपर से उठते हुए कहा ।
बापु ने उठते हुए अपने लंड को मेरी चूत में धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू कर दिया।
"आजहहह ओफ़्फ़्फ़ बापू दर्द हो रहा है" बापू का लंड अपनी चूत में आगे पीछे होते ही मेरी चूत फिर से दर्द करने लगी जिस वजह से मैंने चिल्लाते हुए कहा।

"बेटी थोडा सबर कर तुम्हारा दर्द ग़ायब हो जाएगा। तुम्हारी चूत बुहत टाइट है इसीलिए ज़्यादह तकलीफ हो रही है" बापू ने वैसे ही धीरे से अपना लंड अंदर बाहर करते हुए कहा ।
थोड़ी ही देर बाद मेरी चूत में दर्द बुहत कम हो गया और बापू जी का लंड अंदर बाहर होने से मुझे मजा आने लगा।
"आजहहह इसशह बापू जी मुझे अब मजा आ रहा है" मैंने अपने चूतड उछालते हुए बापू से कहा।
"बेटी मैंने कहा था न की थोडी देर में तुझे मजा आने लगेंगा" बापू ने खुश होते हुए कहा ।

"हाहह बापू मुझे आपके लंड की रगड पागल बना रही है, अपना लंड मेरी चूत में थोडा तेज़ी के साथ अंदर बाहर करो" अब मुझे बापू का लंड इतना मजा दे रहा था की मैंने उसे तेज़ी के साथ अपना लंड बाहर करने को कहा ।
बापु मेरी बात सुनकर अपने लंड को तेज़ी के साथ अंदर बाहर करने लगे, मेरा पूरा शरीर अकडने लगा और मज़े से मेरे मूह से ज़ोर की सिस्क़िया निकलने लगी । बापू के लंड के हर धक्के के साथ मेरा पूरा जिस्म मज़े से काप उठता और मैं चिल्लाते हुए बापू को जोश दिलाने लगी "हाँ बापू ऐसे ही ज़ोर लगा कर धक्का मारो"।
 
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