Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) - Page 5 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )

सुभाष मार्ग पर कार ड्राइव करते राज को याद आया उसकी जेब में चरस की भरी सिगरेटों का एक पैकेट पड़ा था।

विशालगढ़ में उसकी कार के पास दो नशेड़ियों में झगड़ा हो रहा था। झगड़े की वजह वही पैकेट था। राज ने बीच बचाव करने की कोशिश की तो वे दोनों उसी से उलझ गए। मजबूरन राज को उनकी ठुकाई करके उनसे पैकेट छीन लेना पड़ा था। बाद में उसे फेंकना वह भूल गया। अब वही पैकेट एकाएक महत्वपूर्ण बनता नजर आ रहा था।

इंद्रा अपार्टमेंट्स वही इमारत निकली जिसमें कुछेक घंटे पहले राज ने सैनी की मंजूरे नजर को गायब होते देखा था। इस वक्त वे छोकरे आस-पास कहीं नजर नहीं आए।

कार पार्क करके राज इमारत में दाखिल हुआ।

प्रवेश हाल में लैटर बॉक्सेज पर लगे कार्डों में से एक के मुताबिक लीना दूसरी मंजिल पर सात नंबर फ्लैट में रहती थी।

राज सीढ़ियों द्वारा ऊपर पहुंचा।

सात नंबर बायीं ओर आखिरी फ्लैट था।

अंधेरे गलियारे में खड़े राज ने हौले से दस्तक दी।

-“तुम आ गए डार्लिंग?” अंदर से कहा गया।

-“हां।” राज ने धीरे से कहा।

दरवाजा थोड़ा सा खुला। धीमी रोशनी की चौड़ी लकीर बाहर झांकने लगी।

राज साइड में खिसक गया।

लड़की ने गर्दन बाहर निकालकर आंखें मिचमचाईं।

-“मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी जल्दी आ जाओगे। मैं नहाने जा रही थी।”
वह राज की ओर बढ़ी। पीछे से पड़ती रोशनी में पारदर्शी गाउन से उसके सुडौल शरीर का स्पष्ट आभास मिल रहा था। उसका एक हाथ स्वयमेव राज की बांह और साइड के बीच सरक गया।
-“वेलकम किस टू डार्लिंग देवा।”
गीले होठों का स्पर्श राज ने अपने गाल पर महसूस किया। फिर घुटी सी हैरानी भरी कराह सुनाई दी और वह पीछे हट गई। इस प्रयास में उसके फ्रंट ओपन डिजाइन वाले गाउन का सामने वाला हिस्सा पूरी तरह खुल गया।
-“कौन हो तुम? तुमने कहा था, वह हो।”
-“तुमने गलत समझ लिया, लीना। मुझे सैनी ने भेजा है।”
-“लेकिन उसने तो तुम्हारे बारे में कुछ नहीं बताया।”
अचानक उसे खुले गाउन से झांकती अपनी नग्नता का अहसास हुआ। गाउन के दोनों हिस्सों को आपस में मिलाकर उसने बैल्ट कस ली। बांहें परस्पर छाती पर बांध लीं। उसका चेहरा पीला पड़ गया था।
-“वह कहां है?” फंसी सी आवाज में पूछा- "खुद क्यों नहीं आया?”
-“निकल नहीं सका।”
-“वह नहीं आने दे रही?”
-“पता नहीं। मुझे अंदर आने दो। उसने तुम्हारे लिए एक चीज भेजी है।”
-“क्या?”
-“अंदर दिखाऊंगा। यहां नहीं।”
-“आओ।”
राज उसके पीछे अंदर दाखिल हुआ।
रोशनी में राज ने गौर से उसे देखा। मेकअप न होने के बावजूद चेहरा सुंदर था। उसकी उम्र मुश्किल से चौबीस साल थी। पुराने फर्नीचर के बीच खड़ी वह उस बच्चे की तरह देख रही थी जिसे उपहार देने का वादा किया गया हो।
-“क्या भेजा है देवा ने?”
राज ने दरवाजा बंद करके जेब से चरस की सिगरेटों वाला पैकेट निकालकर उसे दे दिया।
उसने इतनी उतावली से पैकेट खोला की सिगरेटें नीचे गिर गईं।
वह फौरन नीचे बैठकर उन्हें उठाने लगी।
एक सिगरेट मुंह में दबाए और बाकी पैकेट में रखकर खड़ी हो गई।
 
राज ने अपना लाइटर जलाकर सिगरेट सुलगवा दी। उसने गहरा कश लिया।
चार कशों में ही सिगरेट आधी खत्म कर दी।
उसकी आंखें चमक रही थीं। चेहरे पर संतुष्टिपूर्ण मुस्कराहट उभर आई।
शेष बची आधी सिगरेट को सावधानीपूर्वक एश ट्रे में बुझाकर पैकेट में रख लिया।
चरस का प्रभाव होना आरंभ हो चुका था। वह हवा में तैरती हुई सी आगे बढ़ी। दीवान पर बैठकर अपने हाथ मुट्ठियों की तरह बांधकर टांगों के बीच में रख लिए। उसकी पल-पल बदलती मुस्कराहट से स्पष्ट था नशे के प्रभाववश सपनों की दुनिया में विचरना आरम्भ कर चुकी थी।
राज उसकी बगल में बैठ गया।
-“कैसा महसूस कर रही हो लीना?”
-“वंडरफुल।” उसके होंठ धीरे से हीले और आवाज कहीं दूर से आती प्रतीत हुई- “ओ, गॉड आई वाज डाइंग....आई नीडेड इट। देवा को मेरी ओर से धन्यवाद देना।”
-“अगर मिला तो जरूर दूंगा। वह शहर से जा रहा है न?”
-“हां....मैं तो भूल ही गई थी....हम जा रहे हैं।”
-“कहां?”
-“नेपाल।” वह चहकती हुई सी बोली....” हम दोनों साथ-साथ एक नई जिंदगी शुरु करेंगे....बड़ी ही खूबसूरत नई जिंदगी.... जिसमें न कोई चख-चख होगी और न ही कोई पाबंदी। बस वह और मैं होंगे।”
-“तुम्हारा गुजारा कैसे होगा?”
-“हमारे पास साधन और तरीके हैं।” वह स्वप्निल स्वर में बोली- “देवा ने सब इंतजाम कर लिया है।”
-“मुझे नहीं लगता ऐसा होगा।”
-“क्यों?” वह गुर्राई।
-“उनकी निगाहें उस पर है।”
वह सीधी तनकर बैठ गई।
-“किसकी?” उत्तेजित स्वर में पूछा- “पुलिस की?”
राज ने सर हिलाकर हामी भरी।
लीना उसकी ओर झुक गई। उसकी बांह दोनों हाथों में थामकर हिलाई।
-“क्या चक्कर है? प्रोटेक्शन काम नहीं कर रही?”
-“मर्डर को कवर करने के लिए बड़ी सॉलिड प्रोटेक्शन चाहिए।”
लीना की होठ खिंच गए। कड़ी निगाहों से उसे घूरा।
-“क्या कहा तुमने? मर्डर?”
-“हां। तुम्हारे एक दोस्त को शूट किया गया था।”
-“कौन दोस्त? इस शहर में मेरा कोई दोस्त नहीं है।”
-“मनोहर दोस्त नहीं था?”
राज पर निगाहें जमाए वह अलग हटी और हाथों और नितंबों के सहारे दीवान के दूसरे सिरे पर खिसक गई।
-“मनोहर?” दांत पीसकर बोली- “वह कौन है?”
-“मुझे बनाने की कोशिश मत करो, लीना। वह तुम्हारे पीछे लगे रहने वालों में से एक था। इतवार रात को तुम उसे अपने साथ यहां लाई थी।”
-“यह तुम्हें किसने बताया? यह झूठ है।” उसके स्वर में भय का पुट था और चेहरे पर चोरी पकड़े जाने जैसे भाव- “क्या उन्होंने मनोहर को मार डाला?”
-“यह तो तुम्हें पता होना चाहिए। तुम्हीं ने उसकी मौत का सामान किया था।”
-“नहीं। यह झूठ है। ऐसा कुछ मैंने नहीं किया। मैं एकदम बेकसूर हूं।” नशे के प्रभाव में सपनों की जिस दुनिया में पहुंच गई थी उससे बाहर निकलती प्रतीत हुई। आंखों में संदेह के बादल उमड़ आए- “मनोहर मरा नहीं है। तुम मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हो।”
-“मेरी बात पर यकीन नहीं है?”
-“नहीं।”
-“तो फिर मोर्ग में जाकर उसकी लाश देख लो।”
-“देवा ने ऐसा कुछ नहीं बताया। अगर मनोहर मारा गया होता तो उसने मुझे बता देना था। यह तो किया ही नहीं जाना था।”
-“जिस बात की तुम्हें पहले से जानकारी थी उसके बारे में वह तुम्हें बताता ही क्यों? मनोहर को तुम्हीं ने तो बलि का बकरा बनाया था।”
-“नहीं, मैंने कुछ नहीं किया। इतवार रात के बाद से तो मैंने उसे देखा तक नहीं। मैं सारा दिन घर पर रही हूं।” वह उठकर राज के सामने खड़ी हो गई। चेहरा ज्यादा पीला पड़ गया- “क्या कोई मुझे फंसाने की कोशिश कर रहा है” और तुम....तुम कौन हो?”
-“सतीश का दोस्त।” राज ने गोली दी- “आज रात उससे मिला था।”
-“देवा मेरे साथ ऐसा नहीं करेगा। क्या वह अरेस्ट हो गया है?”
-“अभी नहीं।”
-“तुम्हें उसी ने भेजा था?”
-“हां।”
-“सिगरेट पहुंचाने के लिए?”
-“हां।”
-“देवा को सिगरेट कहां से मिले?”
-“जौनी से। सतीश खुद नहीं आ सकता था इसलिए उसने मुझे भेजा।”
-“अजीब बात है। तुम्हारा कभी जिक्र तक उसने नहीं किया।” राज मुस्कराया।
-“तुम समझती हो, वो हरएक बात तुम्हें बताता है?”
-“नहीं। मुझे नहीं लगता।”
भारी उलझन में पड़ी लीना बंद खिड़की के पास जा खड़ी हुई फिर पलटी और पैरों को घसीटती हुई सी चलकर दीवान के सिरे पर आ बैठी।
-“किस सोच में पड़ गई?” राज ने टोका।
-“मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। तुम कहते हो मनोहर मर गया और देवा मुझे लटका रहा है।”
-“तुम्हें इस पर यकीन नहीं है?”
-“नहीं।”
-“लेकिन यह सच्चाई है और इस पर यकीन न करके तुम बेवकूफी कर रही हो।”
-“क्या इस मामले में तुम भी शरीक हो?”
-“मेरा भी ख्याल तो यही था। लेकिन ऐसा लगता है वह हम दोनों को लटका रहा है।” राज एक और गोली देता हुआ बोला- “जिस ढंग से उसने मुझे योजना समझाई थी उसके मुताबिक मनोहर को तुमने ही फंसाना था।”
-“ओरीजिनल प्लान यही था।” वह बोली- “मैंने हाथ देकर उसे रोकना था। कोई गोली नहीं चलनी थी। क्योंकि इस हक में मैं बिल्कुल नहीं थी। बस मैंने हाईवे पर ट्रक रुकवाना था और दूसरों ने उस पर कब्जा कर लेना था।”
-“दूसरे यानी सतीश और जौनी?”
-“हां। फिर उन्होंने प्लान बदल दिया। देवा नहीं चाहता था मैं इस झमेले में अपनी गरदन फंसाऊं।” लीना ने यूं अपनी गरदन पर हाथ फिराया मानों यकीन करना चाहती थी कि वो सही सलामत थी- “फिर एक और बात सामने आई....एक ऐसी बात जो इतवार रात में मनोहर ने मुझे बताई थी। जब उसने बताया वह नशे में था। इसलिए मैंने उस पर यकीन नहीं किया। वह उस लड़की के बारे में हमेशा बेपर की उड़ाता रहता था। मगर जब मैंने देवा को वो बात बताई तो उसने यकीन कर लिया।”
 
-“कौन सी बात? किसके बारे में?”
-“वही मीना बवेजा की कहानी।”
-“मुझे भी बताओ।”
लीना ने खोजपूर्ण निगाहों से उसे देखा फिर अनिश्चित सी नजर आई।
-“तुम जब से आए हो बराबर सवाल किए जा रहे हो। आज से पहले कभी तुम्हारी सूरत तक मैंने नहीं देखी। हो सकता है तुम पुलिस वाले हो और सिगरेट के उस पैकेट को तुमने यहां आने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया है।”
राज खड़ा हो गया।
-“तुम जो चाहो समझ सकती हो।” कृत्रिम रोषपूर्वक बोला –“मैं तुम्हारी मदद करने आया था। अगर तुम नहीं चाहती तो जहन्नुम में जाओ....।”
वह दरवाजे की ओर बढ़ा।
लीना फौरन उठकर उसकी ओर लपकी।
-“ठहरो। बेकार नाराज हो रहे हो। मुझे यकीन आ गया तुम देवा के दोस्त हो और इस मामले में भी शरीक हो। लेकिन अब तुम क्या करोगे?”
राज पलट गया।
-“मैं इससे अलग हो रहा हूं। मुझे यह सिलसिला जरा भी पसंद नहीं आ रहा।”
-“तुम्हारे पास कार है?”
-“बाहर खड़ी है।”
-“मुझे कहीं पहुंचा दोगे?”
-“जरूर। कहां?”
-“यह तो अभी मैं नहीं जानती। लेकिन यहां बैठी रहकर गिरफ्तार किए जाने का इंतजार मैं नहीं कर सकती।” यह बैडरूम के बंद दरवाजे पर पहुंची। डोर नॉब घुमाकर मुस्कराती हुई बोली- “मैं नहाकर कपड़े बदलती हूं। देर नहीं लगेगी।”
उसने अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया।
शावर से पानी गिरने की आवाज सुनता राज इंतजार करने लगा।
सिगरेट फूंकता हुआ वह रैक में रखी मैगजीनें देख रहा था। रोमांटिक और सैक्सी कहानियों वाली सभी घटिया दर्जे की थीं। उन सभी के कवर पर अलग-अलग पोज में लीना की ग्लैमरस तस्वीरें छपी थीं। उन्हीं में से एक पर सतीश सैनी के घर का पता और फोन नंबर लिखा था।
उन्हें मन ही मन दोहराता राज चौंका। अपनी रिस्टवॉच पर निगाह डाली।
लीना को गए पूरे पच्चीस मिनट हो चुके थे।
उसने उठकर बैडरूम का दरवाजा खोला।
लीना वहां नहीं थी। आलमारी और ड्रेसिंग टेबल के ड्राअर्स खुले और लगभग खाली पड़े थे।
बाथरूम में शावर से पानी गिर रहा था। लेकिन लीना वहां भी नहीं थी।
किचिन में अंधेरा था। पिछला दरवाजा खोलकर नीचे गई सीढ़ियों पर निगाह पड़ते ही सब समझ में आ गया।
उसे नहाने के बहाने बेवकूफ बनाकर लीना भाग गई थी।
*****
 
राज तेजी से सीढ़ियां उतर गया।
इमारतों के पिछली तरफ से गुजरती वो एक संकरी गली थी। पास ही अंधेरे में एक आदमी दीवार से पीठ लगाए टांगें फैलाए बैठा था। उसका सर दाएं कंधे पर टिका था।
राज ने नीचे झुककर उसे हिलाना चाहा। खुले मुंह से आती शराब की तेज बू उसके नथुनों से टकराए तो पीछे हट गया।
वह नशे में धुत्त पड़ा था।
राज गली के दहाने ओर बढ़ गया।
स्ट्रीट लाइट की रोशनी छोटे से आयत के रूप में सिरे पर पड़ रही थी। एक मानवाकृति उस आयत में दाखिल हुई। चौड़े कंधों वाले उस आदमी ने काला विंडचीटर पहना हुआ था। चाल में सतर्कता थी और पैरों से जरा भी आहट नहीं हो रही थी। चेहरा पीला था। बाल लंबे। उसका दायां हाथ विंडचीटर के अंदर था।
-“एक लड़की को यहां से बाहर जाते देखा था?” राज ने पूछा।
-“कैसी थी?”
राज ने लीना का हुलिया बता दिया।
वह आदमी आगे आ गया।
-“हां, देखा था।”
-“किधर गई?”
-“क्यों?” तुम उसे किसलिए पूछ रहे हो?”
राज ने गौर से देखा। वह एक बलिष्ठ युवक था। संभवतया बॉक्सर रह चुका था। और कुपित निगाहों से अपलक उसे घूर रहा था।
-“तुम जौनी हो?” राज ने संदिग्ध स्वर में पूछा।
युवक ने मुट्ठी की तरह बंधा हुआ अपना हाथ बाहर निकाला।
-“हां, दोस्त।”
साथ ही उसका घूंसा राज की कनपटी पर पड़ा।
अचानक पड़े बजनी घूंसे ने उसे त्यौरा दिया।
-“मैं ही जौनी हूं।” युवक ने कहा और एक घूंसा जड़ दिया।
राज को अपने घुटने मूड़ते महसूस हुए। तभी एक और घुंसा पड़ा। उसकी चेतना जवाब दे गई। वह नीचे जा गिरा।
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होश में आने पर राज ने स्वयं को अपनी फीएट की अगली सीट पर पड़ा पाया। गरदन और कनपटी में तेज दर्द था।
कुछ देर उसी तरह पड़ा रहने के बाद धीरे-धीरे उठकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
सड़क सुनसान थी। रियर-व्यू-मिरर में गाल और ठोढ़ी से खून बहता दिखाई दिया। हल्की सूजन भी थी।
उसने समय देखने के लिए अपनी बायीं कलाई ऊपर उठाई।
रिस्टवॉच गायब थी।
कुछ सोच कर हिप पाकेट थपथपाई। जेब में पर्स तो था लेकिन नगदी मार दी गयी थी। गनीमत थी कि क्रेडिट कार्ड और ट्रेवलर चैक बच गए थे।
उसने ग्लोब कंपार्टमेंट खोला। बत्तीस कैलीबर की लोडेड रिवाल्वर यथा स्थान मौजूद थी। रिवाल्वर निकालकर जेब में डाली। इंजिन स्टार्ट करके कार आगे बढ़ा दी।
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सतीश सैनी का निवास स्थान एक पुरानी शानदार हवेली निकली। शहर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में उसकी लोकेशन भी एकदम बढ़िया थी।
हवेली में रोशनी थी। बाहर जिप्सी खड़ी थी।
फीएट पार्क करके राज ऊंची बाउंड्री वॉल के साथ-साथ चल दिया। एक स्थान पर दीवार इस ढंग से टूटी नजर आई कि वहां से अंदर जाया जा सकता था।
उसने वही किया।
पेड़ों के बीच से गुजरकर मुख्य इमारत की ओर जाते राज को खिड़कियों से लॉन में पड़ती रोशनी दिखाई दी। रात के सन्नाटे में अंदर से आवाजें भी आती सुनाई दे रही थीं।
खिड़कियां इतनी ज्यादा ऊंची थीं कि उनसे अंदर नहीं देखा जा सकता था।
राज हवेली की दीवार के साथ-साथ प्रवेश द्वार की ओर बढ़ता रहा।
आवाजें दो थी- स्त्री और पुरुष की। दोनों ऊंचे स्वर में बोल रहे थे।

सामने की तरफ वाला बरांडा पेड़ों और बेलों से काफी हद तक इस तरह घिरा था कि सड़क से वहां नहीं देखा जा सकता था। बरांडे में पहुंचकर राज दीवार के साथ कोने में खड़ा हो गया। अपनी इस स्थिति में वह साफ अंदर देख पा रहा था। लेकिन अंदर से उसे नहीं देखा जा सकता था।
लंबा-चौड़ा कमरा पुराने भारी फर्नीचर, कलाकृतियों वगैरा से विलासपूर्ण ढंग से सुसज्जित था।
अंदर मौजूद स्त्री पुरुष फायरप्लेस के पास आमने-सामने एक दूसरे को बता रहे थे कि उनके संबंध खत्म हो चुके थे।
सीधी तनी खड़ी स्त्री की राज की ओर पीठ थी। उसके गले में पड़ी मोतियों की माला रोशनी में चमक रही थी।
-“जो कुछ मेरे पास था खत्म हो चुका है।” वह कह रही थी- “इसलिए तुम यहां से भाग रहे हो। मैं जानती थी ऐसा ही करोगे।”
उसके सामने सैनी शॉट दे रहे किसी एक्टर की भांति खड़ा था- एक हाथ जेब में डाले दूसरे में पाइप थामें मैंटल से तनिक टिका हुआ था।
-“तो तुम जानती थी?”
-“हां। तुम्हें एक अर्से से जानती हूं। कम से कम चार-पांच साल तो हो ही गए जब तुमने इस बवेजा लड़की के साथ चक्कर चलाया था।”
-“वो सब काफी पहले खत्म हो गया।”
-“तुमने यकीन तो यही दिलाया था लेकिन मेरे साथ तुम ईमानदार कभी नहीं रहे।”
-“मैंने बहुत कोशिश की है। सच्चाई जानना चाहती हो?”
-“सच बोलने का हौसला तुममें नहीं है, सतीश। तुम निहायत झूठे आदमी हो। हमेशा झूठ बोलते रहे हो। शादी से पहले भी तुमने झूठ बोला था- अपनी आमदनी के साधनों और अपनी हैसियत के बारे में। मुझे दिलो जान से प्यार करने के बारे में।” रजनी के स्वर में कड़वाहट थी- “तुम जिंदगी भर मुझसे झूठ बोलते रहे हो। सही मायने में पत्नी का दर्जा तक तुमने कभी मुझे नहीं दिया।”
-“साबित करो।”
-“ऐसा करने की कोई जरूरत मुझे नहीं है। मैं अच्छी तरह जानती हूं। यही मेरे लिए काफी है। तुम समझते हो अपने बचकाना बहानों से मुझे बेवकूफ बना दिया था। जब तुम अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों में लाल रंगा मुंह लेकर आए थे मेरी हवेली में...।”
-“ठहरो।” सैनी ने अपने पाइप के सिर को पिस्तौल की तरह उसकी ओर तानते हुए कहा- “तुम्हें पता है, क्या कहा है तुमने? तुमने कहा है- मेरी हवेली। हमारी या अपनी नहीं। फिर भी तुम मुझे ही लालची और खुदगर्ज कहती हो।”
 
-“ठहरो।” सैनी ने अपने पाइप के सिर को पिस्तौल की तरह उसकी ओर तानते हुए कहा- “तुम्हें पता है, क्या कहा है तुमने? तुमने कहा है- मेरी हवेली। हमारी या अपनी नहीं। फिर भी तुम मुझे ही लालची और खुदगर्ज कहती हो।”
-“बेशक कहती हूं। क्योंकि तुम हो ही लालची और खुदगर्ज। मेरे दादा ने यह हवेली मेरी दादी के लिए बनाई थी। वे इसे मेरे पिता के लिए छोड़ गए। मेरे डैडी मेरे लिए छोड़ गए। अब यह मेरी है सिर्फ मेरी। और हमेशा मेरी ही रहेगी।”
-“इसकी जरूरत भी किसे है?”
-“तुम्हें। तुम्हारी नजरें इस पर लगी हैं। अभी उस रोज की ही तो बात है तुम मनाने की कोशिश कर रहे थे कि मैं इसे बेचकर पैसा तुम्हें दे दूं।”
-“हां, मैंने कोशिश की।” वह धूर्ततापूर्वक मुस्कराया- “लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। तुम अपनी इस हवेली की मालकिन बनी रहकर अकेली इसमें रह सकती हो। असल में यहां तो मैं कभी रहा ही नहीं। इसके पीछे अस्तबल में रहता था और तुमने मुझे वहां रखा था। उस अस्तबल को भी तुम अपने पास रख सकती हो। अपने अगले पति के लिए तुम्हें उसकी जरूरत पड़ेगी।”
-“तुम समझते हो तुम्हारे साथ हुए तजुर्बे के बाद भी मैं शादी करूंगी?”
-“तजुर्बा इतना बुरा तो नहीं था, रजनी। तुम्हारी फिगर भी खराब नहीं है। दूसरा पति आसानी से मिल जाएगा। मैं मानता हूं जब हमने शादी की तुमसे प्यार मैं नहीं करता था। सुन रही हो ना? मैं कबूल करता हूं मैंने तुम्हारी जायदाद और पैसे की वजह से तुमसे शादी की थी। क्या यह इतना संगीन जुर्म है? बड़े शहरों में तो ऐसा आमतौर पर होता रहता है। मैंने भी तुम्हें पत्नी बनाकर तुम्हारा भला ही किया था।”
-“इस मेहरबानी के लिए शुक्रिया...।”
-“मुझे बात पूरी करने दो।” उसका स्वर भारी हो गया और अपना पोज वह भूल गया- “तुम बिल्कुल अकेली थीं। तुम्हारे मां-बाप मर चुके थे। तुम्हारा कैप्टन प्रेमी कश्मीर में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में मारा गया...।”
-“अरुण मेरा प्रेमी नहीं था।”
-“मैं भी मान लेता हूं। खैर, उस वक्त तुम्हें अपनी दौलत से ज्यादा जरूरत एक आदमी की थी। तुम्हारी कमी को पूरा करने के लिए मैंने खुद को पेश कर दिया। लेकिन पूरा नहीं कर पाया हालांकि अपनी ओर से हर मुमकिन कोशिश मैंने की थी। मैंने फिफ्टी-फिफ्टी के बेसिस पर शादी को कामयाब बनाना चाहा मगर नहीं बना सका। कोई मौका नहीं मिला। मुझ पर विश्वास करना तो दूर रहा तुमने कभी मुझे पसंद तक नहीं किया।”
-“फिर भी तुम्हें प्यार तो करती थी।” रजनी पलटकर पीछे हट गई। अपने हाथ वक्षों पर यूँ रख लिए मानों उनमें दर्द हो रहा था।
-“यह महज तुम्हारा वहम था कि मुझसे प्यार करती थीं। अगर करती भी थीं तो सिर्फ खयालों में करती होओगी। ऐसे ख्याली प्यार का फायदा क्या है? यह महज एक लफ़्ज़ है जहां तक मेरा संबंध है, तुमने कभी तन मन से अपने आप को मेरे हवाले नहीं किया। इस लिहाज से तुम अभी भी क्वांरी हो। तुम्हारा पति बना रहने के लिए कितनी मेहनत मुझे करनी पड़ी है मैं ही जानता हूं। लेकिन तुमने कभी यह अहसास भी मुझे नहीं होने दिया कि मैं एक मर्द हूं।”
रजनी का चेहरा तनावपूर्ण था।
-“मैं जादूगर नहीं हूं।” वह बोली।
-“फायदा भी क्या है?”
-“कोई फायदा नहीं। अगर इस रिश्ते में कभी कुछ था भी तो सब खत्म हो चुका है। जब मैंने तुम्हें अपने सूटकेस पैक करते पाया तो उस सबकी पुष्टि हो गई जो मैं जानती थी। जरा भी ताज्जुब मुझे नहीं हुआ। मुझे महीना पहले ही पता चल गया था। क्या होने वाला है?”
-“पिछली दफा तो यह अर्सा पांच साल चला था।”
-“हां, लेकिन मैं उम्मीद लगाए रही। जब तुमने मीना बवेजा के साथ ताल्लुकात खत्म कर दिए या खत्म करने का दावा किया तब मैंने सोचा था शायद हमारी शादी बच जाएगी। लेकिन ऐसी उम्मीद पालना मेरी बेवकूफी थी। मैं कितनी बेवकूफ हूं इसका पता मुझे पिछले महीने तब चला जब मैंने ‘ओल्ड इन’ के बाहर तुम्हारे पहलु में उस लड़की को देखा था और तुमने ऐसा जाहिर किया जैसे मुझे जानते ही नहीं। मुझे देखकर भी अनदेखा करके उसी को देखते रहे।”
-“पता नहीं, क्या कह रही हो तुम।” वह खोखले स्वर में बोला- “मैं कभी किसी लड़की के साथ ओल्ड इन नहीं गया।”
-“बिल्कुल नहीं गए।” अचानक रजनी मुट्ठियाँ भींचे उसकी ओर पलट गई- “क्या वह लड़की तुम्हें मर्द होने का एहसास दिलाती है? क्या वह तुम्हारी चापलूसी करके तुम्हें वहम पालने देती है कि तुम एक शानदार मर्द हो जिसकी जवानी लौट आई है?”
-“उसे इससे दूर ही रखो।”
-“क्यों? क्या वह इतनी डरपोक है? क्या तुम उसके साथ नहीं भाग रहे हो? क्या यही आज रात का बड़ा प्रोजेक्ट नहीं है?”
-“तुम पागल हो?”
-“अच्छा? क्या तुम भाग नहीं रहे? अकेले जाने वाले आदमी तुम नहीं हो। तुम्हें अपने साथ एक ऐसी औरत की जरूरत है जो तुम्हारे अहम को सहेजकर रख सके। मैं न तो उस औरत को जानती हूं और न ही उसकी कोई परवाह मुझे है। मैं सिर्फ इतना जानती हूं तुमने मीना बवेजा के साथ फिर से चक्कर चला लिया है या फिर हो सकता इस पूरे अर्से में बराबर उसे उलझाए ही रखा है।”
-“तुम वाकई पागल हो गई हो।”
-“अच्छा? मैं जानती हूं पिछले शुक्रवार को तुमने उसे लॉज की चाबियां दी थीं। मैंने उसे चाबियों के लिए तुम्हारा शुक्रिया अदा करते सुना था। इसलिए मुझे यह सुनकर भी कोई ताज्जुब नहीं होगा कि वह मोती झील पर बैठी तुम्हारे आने का इंतजार कर रही है।”
-“बको मत। मैं बता चुका हूं वो सब खत्म हो गया। मैं नहीं जानता वह अब कहां है।”
-“उसने वीकएंड मोती झील पर गुजारा था। यह सच है न?”
-“हां। मैंने उसे कहा था वीकएंड के लिए वहां जा सकती है। लॉज को हम तो इस्तेमाल कर नहीं रहे हैं। वो खाली पड़ी थी। मैंने चाबियां उसे दे दीं। क्या ऐसा करना जुर्म है?”
-“अब तुम भी वहीं जा रहे हो?”
-“नहीं। मीना भी वहां नहीं है। सोमवार को मैं कार लेकर उसे वहां देखने गया था। वह जा चुकी थी।”
-“कहां?”
-“पता नहीं। क्या तुम्हारे भेजे में यह बात नहीं आती कि मैं नहीं जानता?” इस विषय से वह बहुत ज्यादा विचलित हो गया प्रतीत हुआ- “या तुम समझती हो मैंने औरतों का हरम बना रखा है।”
-“तुम्हारे ऐसा करने पर भी मुझे हैरानी नहीं होगी। औरतों के मामले में तुम्हारा यह हाल है अपने वजूद तक का पता तुम्हें नहीं चलता जब तक कि कोई औरत तुम्हारे कान में न कहे कि तुम हो।”
-“वो कोई औरत तुम तो नहीं हो सकती।”
-“बिल्कुल नहीं। मैं नहीं जानती इस दफा तुम किसके फेर में हो लेकिन इतना जरूर कह सकती हूं यह सिलसिला ज्यादा दिन नहीं चलेगा।”
-“यह तुम्हारा ख्याल है।”
-“नहीं, मैं जानती हूं। तुम्हारे लिए सैक्स और पैसा एक ही जैसी चीजें हैं। दोनों को एक ही तरह इस्तेमाल करते हो- खुले हाथों। इसलिए न तो पैसा तुम्हारे पास रुक सकता है और न ही एक औरत के साथ तुम ज्यादा दिन रह सकते हो।”
-“तुम कुछ नहीं जानतीं। बस किताबों में पढ़ी बातें दोहरा रही हो। इस असलियत को नहीं समझतीं कि ये सब नहीं होना था अगर तुमने उस वक्त मुझे ब्रेक दे दिया होता जब मैंने मांगा था।”
-“मैंने तुम्हें ढेरों ब्रेक दिए हैं।” रजनी पहली बार बचाव सा करती हुई सी बोली- “तुम मुसीबत में हो न? बड़ी भारी मुसीबत में?”
-“तुम कभी नहीं समझोगी।”
-“क्या हम एक दूसरे के साथ ईमानदारी नहीं कर सकते- बस इस बार? मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगी।”
-“अच्छा?”
-“हां। चाहे इसके लिए तुम्हारी खातिर मुझे अपनी हवेली क्यों न छोड़नी पड़े।”
-“तुम्हारी किसी चीज की जरूरत मुझे नहीं है।”
रजनी ने गहरी सांस ली मानों पूरी तरह ना उम्मीद हो चुकी थी।
-“सतीश।” संक्षिप्त मौन के पश्चात बोली- “आज रात कौशल चौधरी क्यों आया था?”
-“रूटीन इनवेस्टीगेशन के लिए।”
 
-“मुझे तो ऐसा नहीं लगा।”
सैनी उसकी ओर बढ़ा।
-“तुम चोरी से सुन रही थी?”
-“बिल्कुल नहीं। तुम्हारी आवाजें मुझ तक आ रही थीं। तुम दोनों में खासी झड़प हुई थी।”
-“फारगेट इट।”
-“क्या यह मर्डर के बारे में थी?”
-“आई सैड फारगेट इट।” उसकी उंगलियां एकाएक पाइप पर इतनी जोर से कस गईं कि वो टूट गया। स्वर में तेजी आ गयी- “मेरे बारे में सब कुछ भूल जाओ। तुम मुझे एक पूरी तरह नाकामयाब आदमी समझती रही हो और तुम्हारा ऐसा समझना ठीक भी है। लेकिन इसमें सारा कसूर मेरा नहीं है। इस शहर में भी कुछ गड़बड़ है। कम से कम मुझे तो यह रास आया नहीं। मेरी किस्मत भी खराब ही रही। अगर गवर्नमेंट ने इस टेम्प्रेरी एयरबेस को फिर से चालू कर दिया होता तो डीलक्स मोटल में नोटों की बारिश होनी थी और मेरे पास दौलत का ढेर लग जाना था।”
-“तुम्हें बिजनेस की कोई समझ नहीं है। तुम सिर्फ गँवाना जानते हो। लेकिन अपनी तसल्ली के लिए दोष सरकार को देते हो। मुझे और इस शहर को कसूरवार ठहराते हो।”
सैनी ने अपना टूटा पाइप उसकी ओर हिलाया।
-“बस बहुत हो गया। और ज्यादा बरदाश्त मैं नहीं कर सकता। मैं जा रहा हूं।”
वह दरवाजे की ओर बढ़ा।
-“मुझे बेवकूफ मत बनाओ।” रजनी ने पीछे से कहा- “तुम हफ्तों पहले यह फैसला कर चुके थे। तभी से योजना बनाते रहे हो। लेकिन इसे कबूल करने का हौसला और मर्दानगी तुममें नहीं है।”
सैनी रुक गया।
-“तुम्हें मर्दानगी में कब से दिलचस्पी होने लगी।” पलटकर बोला- “इसने तो कभी तुम्हें अपील नहीं किया।”
-“मैं कभी इस काबिल समझी ही नहीं गई।”
-“तो फिर मुझे गौर से देख लो। अब हम कभी नहीं मिलेंगे।” उसने नथुने फुलाकर भारी सांस लेते हुए चेहरा आगे कर दिया। रजनी हंसी। मानों उसके अंदर कहीं चटककर कुछ टूट रहा था।
-“क्या इसी को मर्दानगी कहते हैं? क्या मर्द इसी तरह बातें करता है? क्या एक पति अपनी पत्नि से इसी तरह पेश आता है?”
-“पत्नि? कैसी पत्नि? मुझे तो कोई पत्नि नजर नहीं आ रही।”
वह पलटकर कारपेट को पैरों से रौंदता हुआ सा आगे बढ़ा और दरवाजा खोल दिया।
राज को अब दिखाई तो वह नहीं दे रहा था लेकिन सीढ़ियों पर उसके भारी कदमों की आहटें सुनाई दे रही थीं।
रजनी ने मेंटल के पास जाकर अपना सर और बांह उस पर टिका दी। उसके बाल चेहरे पर बिखर गए।
राज ने उसकी तरफ से गरदन घुमा ली।
कुछ देर बाद वरांडे के दूसरे सिरे पर एक दरवाजा खुला।
राज अंधेरे कोने में सिमिट गया।
दोनों हाथों में चमड़े के भारी सूटकेस उठाए सैनी बाहर निकला।
-“हमेशा के लिए जा रहे हो?” पीछे से रजनी ने पुकारा।
-“हां, मैं अपनी कार ले जा रहा हूं। और मेरे पास सिर्फ मेरे कपड़े हैं।”
-“और हो भी क्या सकता है? तुम्हारे पास सिर्फ एक चीज और है- कर्जे। वो तुम पीछे ही छोड़े जा रहे हो।”
-“मैं बिजनेस भी छोड़कर जा रहा हूं। कर्जे उस से कवर हो जाएंगे और अगर नहीं हो सके तो बुरा होगा।”
-“मेरे लिए?”
-“हां।”
रजनी दरवाजे में प्रगट हुई।
-“जा कहां रहे हो सतीश?”
सैनी की पीठ उसकी तरफ थी।
-“तुम्हें कभी पता नहीं चलेगा।”
-“तुम इस तरह चले जाने के ही काबिल हो।”
-“ले जाए जाने से तो बेहतर ही है।” सैनी ने गरदन घुमाकर कहा- “अलविदा रजनी। मेरे लिए मुसीबत खड़ी मत करना। अगर तुमने ऐसा किया तो खुद दो गुनी मुसीबत का सामना करोगी।”
वरांडे की सीढ़ियां उतरकर वह अपनी जिप्सी की ओर बढ़ गया।
रजनी उसे जाते देखती रही। उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था। आंखें गुस्से से सुलग रही थीं। अचानक उसका हाथ अपनी माला पर कस गया। जोर से झटका दिया। माला टूट गई और मोती नीचे गिरकर बिखर गए।
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राज अपनी फीएट में सैनी की जिप्सी का पीछा कर रहा था। शहरी सीमा में वह जानबूझकर उससे खासा फासला बनाए रहा था। लेकिन हाईवे पर इस वक्त भी काफी ट्रैफिक था इसलिए अन्य वाहनों में मिलकर फीएट को अपेक्षाकृत जिप्सी के नजदीक ले आया।
वे डीलक्स मोटल से मुश्किल दो मील-दूर थे। राज के विचारानुसार सैनी वहीं जा रहा था।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सैनी ने अपनी जिप्सी वाहनों की कतार से अलग की और उस सड़क पर घुमा दी जो एक रेस्टोरेंट तक जाती थी।
पार्किंग स्पेस में खड़ी दो कारों में दो जोड़े रोमांस करने में व्यस्त थे। तीसरी कार एक लाल मारुति थी जिसके मडगार्ड पिचके हुए थे।
वहां से आगे गुजरते राज ने सैनी को मारुति की बगल में रुकते देखा।
रेस्टोरेंट के पास ही एक पैट्रोल पम्प था। पम्प बंद हो चुका था वहां कोई नहीं था। राज ने वही ले जाकर फीएट रोकी।
ड्राइविंग सीट पर बैठे राज को अपनी उस स्थिति में रेस्टोरेंट का प्रवेश मार्ग और इमारत की एक शीशे की दीवार दिखाई दे रही थी। दीवार के पीछे तीन कस्टमर एक वेटर से बातें कर रहे थे। दूर दूसरी दीवार के शीशे से सैनी की जिप्सी और मारुति भी धुंधली सी नजर आई।
दोनों कारों के बीच खड़ा सैनी मारुति में मौजूद किसी से बातें कर रहा था। मारुती में बैठे शख्स का चेहरा तो राज को नजर नहीं आया लेकिन मैले से किसी पेपर या अखबार में लिपटा बड़ा सा मोटा पैकेट सैनी की ओर बढ़ाया जाता दिखाई दिया। सैनी पैकेट लेकर जिप्सी में बैठ गया।
मारुति की हैडलाइट्स जलीं। वह बैक होकर प्रवेश मार्ग की ओर मुड़ गई।
राज को लंबे बालों, कठोर चेहरे और विंडचीटर की एक झलक दिखाई दी।
वह जौनी था।
राज का रोम-रोम गुस्से से कांप उठा। फीएट का इंजिन स्टार्ट करके वह भी उसके पीछे लग गया।
मारुति शहर से बाहर दक्षिण की ओर जा रही थी।
फीएट की स्पीड के साथ-साथ राज की उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी।
सैनी के डीलक्स मोटल के सामने से गुजरती फीएट की स्पीड साठ-पैंसठ के बीच थी।
मारुति सामने जा रही थी।
चंदेक मील जाने के बाद स्पीड कम हो गई फिर वो हाईवे से दायीं ओर मुड़ गई। उसकी हैडलाइट्स की रोशनी दोनों ओर तारों की बाड़ से घिरी एक साइड रोड पर पड़ रही थी।
अचानक हैडलाइट्स बुझ गई।
चौराहे से गुजरकर रफ्तार कम करते राज को मारुति रेंगती सी नजर आई।
राज ने जोर से ब्रेक लगाए। लाइटें ऑफ करके यू टर्न लिया। सुस्त रफ्तार से वापस चौराहे की ओर जाते राज को न तो मारुति दिखाई दी और न ही उसके इंजिन की आवाज सुनाई दी। उसने फीएट वापस घुमा दी।
करीब आधा मील तक वह बगैर लाइटों के ही कार ड्राइव करता रहा।
आसमान में तैरते बादलों में चांद तारे छुपकर रह गए थे। लेकिन अंधेरा ज्यादा नहीं था। दोनों तरफ तारों की ऊंची बाड़ से घिरी सड़क एकदम सीधी थी। इसलिए ड्राइविंग में खास असुविधा राज को नहीं हो रही थी। उसके बायीं और खुला ढलुवां मैदान था। दायीं और सुनसान पड़ी एयरबेस के ऊंचे ऊंचे हैंगर्स का आभास मिल रहा था। उनके चारों ओर घास में छिपे रनवेज भी धुंधले से नजर आ रहे थे।
तारों की बाड़ में एक स्थान पर चौड़ा रास्ता बना था। राज ने उससे आगे ले जाकर साए में फीएट रोक दी। जेब से रिवाल्वर निकालकर चैक की। वो लोडेड ही थी।
वह कार से निकला। हवा में झाड़ियों की पत्तियों की सरसराहट के अलावा सर्वत्र शांति थी। फलस्वरूप घास में उसके कदमों की आहट साफ सुनाई दे रही थी।
बाड़ में तारों का करीब बीस फुट चौड़ा दोहरा गेट खुला पड़ा था। उसमें झूलते मोटे ताले को राज ने हाथ से टटोला। उसे चाबी से खोलने की बजाय तोड़ा गया था।
गेट से गुजरती सड़क एक रनवे से जा मिली थी। निकटतम हैंगर का विशाल दरवाजा भी खुला पड़ा था। उसकी बगल में मारुति खड़ी थी।
खुली सड़क पर वो करीब दो सौ गज दूर था।
राज उधर ही बढ़ा।
कहीं कोई हरकत नहीं थी। स्वयं को अरक्षित महसूस करते राज को हाथ में थमें रिवाल्वर से ही राहत का थोड़ा अहसास हुआ।
सहसा एक डीजल इंजिन के स्टार्ट होने का शोर वातावरण में उभरा साथ ही गुफा की भांति नजर आते हैंगर में हैडलाइट्स जल उठीं।
राज तेजी से दौड़ पड़ा। इंजिन गर्म होने से पहले ही वहां पहुंचना चाहता था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
हैंगर से सैमी ट्रेलर टाइप ट्रक बाहर निकला- ठीक वैसा ही जैसे राज ने बवेजा ट्रांसपोर्ट कम्पनी में खड़े देखे थे।
ट्रक की हैडलाइट्स उसकी ओर घूमी। ड्राइविंग सीट पर एक सफेद चेहरा चमका।
सीधे अपनी ओर आते ट्रक की विंडशील्ड के नीचले दायें सिरे का निशाना लेकर राज ने लगातार दो फायर झोंक दिए। कांच पर मकड़ी के जाले की तरह क्रेक तो बन गए लेकिन चूर-चूर वो नहीं हुआ।
बगैर स्पीड कम किए ट्रक सीधा उसकी ओर झपटता रहा।
राज को तीसरे फायर का मौका नहीं मिल सका। जान बचाने के लिए एक तरफ कूदा और उससे दूर दौड़ता चला गया। अचानक कोई चीज उसकी पैंट के पाउचे में अड़ी और उसे घुमा दिया। उसने हवा में हाथ मारते हुए संभलने की कोशिश की मगर संभल नहीं सका। नीचे गिरा और तेजी से लूढ़कता चला गया।
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लंबे ढलान पर दूर तक लुढ़कने के कारण उसका पोर-पोर हिल गया था। कपड़े फट गए। चेहरे और हाथों पर खरोंचें आ गईं। पीठ, कंधों और सर में दर्द के साथ भारी जलन भी हो रही थी। दिमाग सुन्न सा था।
कुछेक पल पड़ा रहने के बाद उठकर चारों ओर निगाहें दौड़ाई।
खुले हैंगर और उसकी बगल में खड़ी मारुति के अलावा अन्य कोई चिन्ह उस दृश्य का नजर नहीं आया जो कुछ देर पहले उसने देखा था। अब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। जल्दबाजी में ट्रक पर फायर करने की बेवकूफी कर बैठने की बजाय उसे चुपचाप पीछा करना चाहिए था।
मन ही मन खुद को कोसते हुए अपनी रिवाल्वर ढूंढ़कर फीएट के पास पहुंचा।
खुले गेट से फीएट को अंदर ले जाकर उसी हैंगर के सामने जा रुका। हैडलाइट्स की रोशनी में खाली पड़े हैंगर के फर्श पर एक जगह काफी तेल पड़ा नजर आया। स्पष्टत: ट्रक उसी स्थान पर खड़ा रहा था।
उसने हैंगर में जाकर उसी स्थान के आस-पास मुआयना किया। कोका कोला की एक खाली कैन के अलावा फर्श पर एल्युमीनियम पेंट की बूंदे भी फैली नजर आयीं। उसने एक बूंद को उंगली से छुआ। वो पूरी तरह नहीं सुखी थी।
बाहर निकलकर मारुति का निरीक्षण किया। कार ज्यादा पुरानी नहीं थी लेकिन उसे लापरवाही से इस्तेमाल किया गया था और मेंटेनेंस की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया था। उसका नंबर मन ही मन रटते राज ने अंदर देखा। अगली सीट के फर्श पर सिगरेट के कई टोंटे पड़े थे। उनमें से एक को उठाकर सूंघा। वो चरस की सिगरेट का अवशेष था। अगली सीट के कुशन के पीछे उस इलाके का एक रोड मैप पड़ा था। उसे निकालकर राज फीएट में सवार होकर वापस हाईवे की ओर रवाना हो गया।
चौराहे पर पहुंचकर उसने चारों ओर निगाहें दौड़ाई।
हाईवे पर दूर एक साइन बोर्ड लगा था- अलीगढ़ बाई पास।
राज ने स्वयं को जौनी के स्थान पर रखकर सोचने की कोशिश की। अगर वह दायीं ओर और दक्षिण में मुड़ा तो पुलिस द्वारा बार्डर पर किए गए रोड ब्लॉक्स से बच नहीं सकेगा। उत्तर की ओर जाने पर हाईवे से वापस शहर में जा पहुंचेगा। इसलिए ज्यादा संभावना इसी बात की थी कि वह बाईपास से ही गया होगा।
राज ने भी फीएट उधर ही घुमा दी।
चौराहे से चार-पांच मील आगे, जहां सड़क चढ़ाईदार और संकरी हो गई थी, एक हेअरपिन कर्व पर लाल रोशनी चमकती दिखाई दी। एक कार सड़क को चौड़ाई में घेरे इस ढंग से खड़ी थी कि अन्य किसी भी वाहन का वहां से गुजर पाना नामुमकिन था।
वो पुलिस कार थी।
राज ने फीएट रोक दी।
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इन्सपैक्टर चौधरी बाएँ हाथ में लाल टार्च और दाएँ में गन थामें आगे आया।
-“कार साइड में लगाकर नीचे उतरों- हाथ ऊपर करके।” फिर उसने टार्च की रोशनी राज के चेहरे पर डाली- “ओह तुम फिर सामने आ गए।”
राज ने गौर से उसे देखा। वह गुस्से में नजर आया।
-“तुम भी फिर सामने आ गए। ट्रक को देखा था?”
-“कैसा ट्रक?”
-“बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी का सेमी ट्रेलर टाइप।”
-“अगर मैंने उसे देखा होता तो क्या इस वक्त यहां मौजूद होता?” उसके स्वर में अधीरता थी। अब क्रोधित नजर नहीं आ रहा था।
-“यहां कितनी देर से हो इन्सपैक्टर?”
-“एक घंटे से ज्यादा हो गया।”
-“इस वक्त क्या बजा है?”
-“एक बज कर बीस मिनट। कुछ और जानना चाहते हो? मसलन आज रात डिनर में मैंने क्या खाया था?”
-“बता दो।”
-“मुझे डिनर नसीब ही नहीं हुआ।” इन्सपैक्टर ने खिड़की से अंदर झुककर उसे देखा- “तुम्हारी यह हालत किसने की?”
राज ने नोट किया टार्च की लाल रोशनी के रिफ्लैक्शन में इन्सपैक्टर के चेहरे की रंगत गुलाबी नजर आ रही थी।
-“अचानक मेरी हालत की फिक्र तुम्हें क्यों होने लगी?”
-“बेकार की बात मत करो। मेरे सवाल का जवाब दो।”
-“ओ के। मैं ढलान से लुढ़क गया था।” राज ने कहा और कैसे बताने के बाद कहा- “उस आदमी ने ट्रक को एयरबेस के खाली हैंगर में छिपाया हुआ था। ट्रक की साइडों में लिखे बवेजा ट्रांस्पोर्टर कंपनी के नाम को एल्युमीनियम पेंट से पोत दिया गया। और सरगर्मी खत्म होने का इंतजार किया। मुश्किल से घंटा भर पहले सैनी एक रोड साइड रेस्टोरेंट में उसे मिला और ट्रक निकाल लाने की हिदायत दे दी।”
-“तुम यह कैसे जानते हो?”
-“मैंने उन दोनों को साथ-साथ देखा था। ट्रक ले जाने वाले युवक का नाम जौनी है। उसने सैनी को मोटा सा एक पैकेट दिया था जिसमें संभवतया नोट थे। सैनी की कीमत।”
-“कीमत? किसलिए?”
-“ट्रक को छिपाने और फिर सही सलामत निकलवा देने की।”
-“सैनी ने यह कैसे करना था?”
राज ने जवाब नहीं दिया।
दोनों ने खामोशी से एक दूसरे को देखा। इन्सपैक्टर के कठोर चेहरे पर रहस्यमय भाव थे।
-“तुम सैनी की बात को बेवजह तूल दे रहे हो। यह ठीक है उस हरामजादे को मैं खुद भी पसंद नहीं करता लेकिन इसका मतलब यह नहीं है वह लुटेरों के किसी गैंग में शामिल है।”
-“तमाम तथ्य उसकी ओर ही संकेत करते हैं। उनमें से कुछक के बारे में मैं तुम्हें बता चुका हूं। उनके अलावा और भी है।”
-“मसलन?”
-“उसने विस्की का बहुत ही मोटा आर्डर दिया था जिसका कोई यूज़ उसके लिए नहीं है।”
-“यह तुम कैसे जानते हो?”
-“उसने अपनी बार आज सुबह बेच दी। एक दूसरी औरत के लिए अपनी पत्नी को छोड़कर शहर से भाग रहा है। उसे मोटी नगद रकम की सख्त जरूरत है।”
-“दूसरी औरत कौन है?”
-“अगर तुम यह सोचकर परेशान हो रहे हो वह तुम्हारी साली है तो वह नहीं है। वह इस मामले से बाहर ही लगती है। उस लड़की का नाम लीना है। वह उसी बार में सिंगर हुआ करती थी। पिछले दो हफ्तों से वह मनोहर के साथ प्यार का नाटक कर रही थी ताकि उसे शीशे में उतार सके। उन्हें अरेस्ट करके चार्ज लगाने के काफी एवीडेंस तुम्हारे पास हैं...।”
-“एवीडेंस? नहीं, मेरे पास सिर्फ तुम्हारी कहानी है।”
-“इसे चैक कर लो। असलियत का पता चल जाएगा। मेरी सलाह मानो और इससे पहले कि सस्पेक्ट्स शहर से भाग जाएँ, उन्हें गिरफ्तार कर लो।”
-“मुझे मेरा धंधा सिखा रहे हो?”
-“नहीं। जो जरूरी है वो बता रहा हूं।”
-“अपनी इस सलाह को अपने पास ही रखो। तुम्हारी हालत देखकर मैं तुम्हारे साथ हमदर्दी कर सकता हूं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जो तुम्हारे साथ हुआ है उससे ज्यादा बुरा नहीं हो सकता।”
-“यह धमकी है?”
-“नहीं। अगर तुम मेरे इलाके में बुरी तरह जख्मी हो जाते हो तो यह मेरे हक में भी अच्छा नहीं होगा। तुम्हारी जान भी जा सकती है।”
-“पुलिस की गोली से?”
-“तुम मेरा मतलब नहीं समझ रहे। मैं नहीं चाहता तुम्हारा कोई अहित हो। इसलिए मेरी सलाह मानो हॉस्पिटल में जाकर अपनी चोटों का इलाज कराओ और आराम करो। समझ गए?”
-“हां। सैनी और उसके शरीफ दोस्तों से मुझे दूर रहना चाहिए।”
-“इस मामले से ही दूर रहो। अगर तुम इसी तरह इधर-उधर अपनी टांग अड़ाते रहे तो तुम्हारी जिम्मेदारी मैं नहीं ले पाऊंगा। जा सकते हो।”
वह पीछे हट गया।
राज ने फीएट मोड़ कर आगे बढ़ा दी।
इन्सपैक्टर चौधरी पुलिस कार की बगल में खड़ा उसे देखता रहा।
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बाई पास से वापस लौटकर राज शहर की दिशा में मुड़ गया।
रास्ते में कुछेक ट्रक दक्षिण की ओर जाते मिले लेकिन उनमें से कोई भी वैसा ऐसा नहीं था जैसा जौनी लेकर भागा था।
जौनी अब तक इस इलाके में मीलों दूर निकल गया होगा। और सैनी नेपाल का अपना सफर तय कर रहा होगा।
लेकिन जल्दी ही उसे अपना दूसरा अनुमान गलत साबित होता नजर आया। सैनी की जिप्सी डीलक्स मोटल के बाहर खड़ी थी। इंजिन चालु था।
राज हाईवे पर साइड में कार पार्क करके उसके पास पहुंचा। जिप्सी खाली थी। इंजिन बंद करके उसने चाबियां अपनी जेब में डाली और अपनी रिवाल्वर निकाल ली।
मोटल के सिर्फ एक काटेज में रोशनी थी। बाकी सब काटेजों में अंधेरा था। लेकिन मुख्य इमारत में रोशनी थी। बगल की एक खिड़की से झांकती वो रोशनी अंडाकार स्वीमिंग पूल की सतह पर भी पड़ रही थी।
पूल का चक्कर काटकर राज इमारत के पिछवाड़े पहुंचा।
रोशनी ऑफिस में थी। पिछला दरवाजा थोड़ा खुला था।
राज ने अंदर झांका।
हाल ही में फर्नीश किए गए कमरे में डेस्क और खुली सेफ के बीच में सैनी मरा पड़ा था। उसके फटे सर से भेजा बाहर झांक रहा था। सर के आसपास फर्श पर खून फैला हुआ था।
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कई पल ठिठका खड़ा राज हैरानी से आंखें फैलाए देखता रहा फिर सावधानीपूर्वक भीतर दाखिल हुआ।
उसने सैनी के बाल पकड़कर मुर्दा सर ऊपर उठाया। गोली माथे को फाड़ती हुई भीतर दाखिल हुई थी। माथे पर झांकते सुराख के आकार से अनुमानत: गोली बत्तीस कैलीबर की रही थी। सैनी की मुर्दा आंखें हैरानी से फटी नजर आ रही थीं।
राज जल्दी-जल्दी उसकी जेबों की तलाशी लेने लगा।
दूर कहीं से आती सायरन की आवाज भी सुनाई देनी आरंभ हो गई।
सैनी की जेब में न तो कोई पर्स था और ना ही किसी और शक्ल में कोई पैसा उसके पास था। जौनी ने जो पैकेट उसे दिया था वह न तो उसके पास कहीं था न ही सेफ में नजर आ रहा था।
राज ने सेफ में रखी चीजें बाहर निकालीं। बिल, चैक बुक्स, लैजर बगैरा।
लैजर से साफ जाहिर था मोटल घाटे में जा रहा था।
मोटल की दूसरी साइड में एक इंजिन कराहा और खामोश हो गया। फिर बार-बार इंजिन स्टार्ट करने की कोशिश की जाने लगी।
राज ऑफिस से निकलकर बाहर उसी ओर दौड़ा।
आवाज काटेजों के पीछे वाली गली की ओर खुलने वाले द्वारविहीन गैराजों में से एक से आ रही थी।
अचानक जोर से गरजे इंजिन से जाहिर था वो स्टार्ट हो गया था।
राज पूल के पास से होकर गली के दहाने की ओर दौड़ा।
एक सफेद मारुति रोशन काटेज के पीछे मौजूद गैराज से बाहर निकली। एक संक्षिप्त पल के लिए रुकी। फिर तेजी से हाईवे की ओर झपटी।
ड्राइविंग सीट पर मौजूद लीना को राज ने साफ पहचाना।
अपनी रिवाल्वर ऊपर उठाकर चिल्लाया।
-“ठहरो। वरना शूट कर दूंगा।”
तभी कोई भारी कठोर चीज पीछे से उसकी टांगों से टकराई और वह गली की साइड में औंधे मुंह जा गिरा।
सफेद मारुति उससे बचती हुई दौड़ गई।
राज की पीठ पर दो घुटनों का भारी प्रहार एक साथ हुआ। एक बाँह ने उसकी गरदन जकड़ ली। दूसरी उसकी रिवाल्वर की ओर बढ़ी।
राज ने रिवाल्वर हाथ में थामें रखी। उससे अपने गले पर लिपटी बाँह का प्रहार किया।
पीठ पर लदा आदमी गुर्राया। उसकी पकड़ ढीली पड़ गई।
उसकी बाँह को लीवर की तरह इस्तेमाल करते हुए राज ने उसे अपने कंधों पर लाद लिया।
आदमी काफी भारी था।
उसी अवस्था में घुटनों के बल उठने के लिए राज को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा। लेकिन कोशिश कामयाब रही।
पीठ पर लगा आदमी उसके सर के ऊपर से होता हुआ पीठ के बल आगे आ गिरा। राज ने एक बाँह से उसकी गरदन दबोच ली और दूसरी उसकी टांगों के बीच फंसा दी।
उसने फंसी आवाज में अरेस्ट करने की बात की तब राज को पता चला वह पुलिस की वर्दी में था।
उसे छोड़कर राज ने हाथ से फिसल गई अपनी रिवाल्वर उठा ली फिर जैसे ही वह उठा रिवाल्वर उस पर तान दी।
वह एस. आई. सतीश था- मनोहर का कजिन। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। सांसे उखड़ी हुई थीं।
-“रिवाल्वर मुझे दो।”
-“नहीं, यह मेरे पास ही ठीक है।” राज बोला।
-“बको मत। मैंने तुम्हें उस लड़की पर इसे तानते देखा था।”
-“मैं उसे रोकने की कोशिश कर रहा था।”
-“क्यों?”
-“वह उसी गिरोह में शामिल थी जिसने मनोहर को शूट करके ट्रक उड़ाया था। लेकिन तुमने बड़ी सफाई से उसे भाग जाने दिया।”
-“ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करो...।”
वह आगे आया।
राज ने रिवाल्वर हिलाई।
-“चुपचाप खड़े रहो।”
एस. आई. ठिठक गया।
-“ध्यान से सुनो।” राज बोला- “वह लड़की सैनी की रखैल थी। सैनी अपने ऑफिस में मरा पड़ा है। उसका भेजा उड़ा दिया गया।”
-“क्या उसी पर गोली चलायी जाने की आवाज सुनी गई थी? तुमने ही फोन पर इसकी सूचना दी थी?”
-“नहीं।”
एस. आई. के कठोर चेहरे पर विचारपूर्ण भाव थे।
-“यह एक औ र इत्तिफाक है। मर्डर विक्टिम्स का पता तुम्हें ही कैसे लगता है?”
-“मैं सैनी का पीछा कर रहा था। क्यों कर रहा था। अगर यह जानना चाहते हो तो इन्सपैक्टर से पूछ लेना। कुछ देर पहले मैंने उसे सब बताया है।”
-“तुम झूठ बोल रहे हो। वह बाई पास रोड ब्लाक पर है।”
-“मैंने भी वही बातें की थीं उससे। जहां तक इत्तिफाक की बात है क्या इन्सपैक्टर चौधरी ने पहले भी कभी इस तरह अकेले रोड ब्लॉक पर ड्यूटी दी है?”
-“तुम्हें सवाल पूछने का कोई हक नहीं है। लाओ, रिवाल्वर मुझे दो।”
-“सॉरी। यह मैं नहीं दूंगा। मुझे उस लड़की को तलाश करना है।”
-“तुम कुछ नहीं करोगे। यही रुकोगे।”
एस. आई. ने अपनी सर्विस रिवाल्वर की ओर हाथ बढ़ाया।
राज पहले ही तय कर चुका था उसे क्या करना था। वह न तो एस. आई. को शूट करना चाहता था और न ही उसके द्वारा शूट किया जाना। फुर्ती से आगे बढ़ा और हाथ में थमी रिवाल्वर भड़ाक से उसकी कनपटी पर दे मारी।
एस. आई. के चेहरे पर घोर अविश्वास भरे भाव उत्पन्न हुए फिर उसके घुटने मुड़े और वह चेतना शून्य होकर जमीन पर जा गिरा।
तभी पीछे हल्की सी क्लिक की आवाज सुनकर राज पलटा। जिस काटेज में रोशनी थी उसका दरवाजा खुला। नाइट सूट पहने एक युवक बाहर निकला। नींद में चलता हुआ सा उसकी ओर बड़ा।
नीचे पड़े एस. आई. और आंगतुक नवयुवक के बीच में आकर राज जल्दी से उसके पास पहुंचा।
-“कौन हो तुम?” रोबीले स्वर में बोला।
-“रमन कुमार शर्मा।” युवक हिचकिचाता सा बोला- “आप वही पुलिस आफिसर हैं जिसे मैंने फोन किया था। मैंने गोली चलने की आवाज सुनी थी।”
-“किस वक्त?”
-“करीब डेढ़ बजे। शोर सुनकर मेरी आंखें खुली तो रिस्टवाच पर निगाह चली गई थी। फिर मैंने भागते कदमों की आवाज सुनी थी।”
-“इस तरफ गली की ओर आती हुई?”
-“नहीं। दूसरी तरफ हाईवे की ओर जाती हुई।”
-“कदमों की आहट आदमी की थी या औरत की?”
-“पता नहीं। जब मैं बाहर निकला तो कोई दिखाई नहीं दिया। फिर पब्लिक टेलीफोन से आपको फोन करके काटेज में आकर कम्पोज की एक गोली खा ली। मुझे शॉक जैसा लगा था- अभी उससे उबरा हूं। मैं हौसलामंद नहीं हूं। जल्दी घबरा जाता हूं।”
-“तुम्हारे पास कार है?”
-“हां। सफेद मारुति है। यहीं खड़ी है।”
-“तुम्हें चाबियां उसमें नहीं छोड़नी चाहिए थी। कार चोरी हो गई है।”
युवक को तेज झटका लगा।
-“क्या? ओह, मेरी मम्मी मुझे घर से निकाल देगी।म.....मैं सुबह घर कैसे लौटूंगा.......?”
राज उसे कलपता छोड़कर अपनी कार की ओर दौड़ गया।
 
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