desiaks
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जब 'जश्न' खत्म हुआ तो दोनों इस तरह हांफते हुए अलग हो गए जैसे कि मीलों लम्बी दौड़ लगाकर आए हों।
बिस्तर पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो चुका था। संजना ने अपने कपड़े बटोरकर इकट्ठा किए और पहनना आरंभ कर दिया जबकि सहगल ने वैसी कोई कोशिश नहीं की थी।
तभी एकाएक संजना के मोबाइल की घंटी बजी। उसने फ्लैश होता नंबर देखा तो बेसाख्ता चौंक पड़ी। उसके सुंदर मुखड़े पर किंचित बौखलाहट के भाव उभर आए। वह मोबाइल नम्बर जतिन का था।
“क...क्या हुआ?" सहगल ने उसके हाव-भावों को रीड करके पूछा।
“चुप करो।” संजना बोली और उसने जल्दी से फोन रिसीव किया। फिर जब उसने डिस्कनेक्ट करके मोबाइल कान से हटाया तो वह एकाएक काफी उत्तेजित नजर आने लगी थी।
“कि..किसका फोन था?” सहगल ने पूछा। उसके चेहरे पर सस्पेंस उमड़ आया था।
“ज...जतिन का?"
.
.
.
“क...क्या ?" सहगल धीरे से चौंका था "क्या कह रहा था?"
“वह यहां आ रहा है। फौरन अपने कपड़े पहनो और यहां से चलते फिरते नजर आओ।"
"म..मगर..."
“मैंने कहा न फौरन यहां से चलते फिरते नजर आओ। ।" वह अधीर होकर बोली “जतिन किसी भी वक्त यहां पहुंच सकता है। अगर उसने तुम्हें यहां देख लिया तो गजब हो जाएगा हमारा सारा भांडा फूट जाएगा।"
"ओह!"
"और अभी मुझे यहां की हालत भी दुरुस्त करनी है। देख नहीं रहे बिस्तर अपनी चुगली आप कर रहा है। जतिन को समझने में पल भर भी नहीं लगेगा कि यहां अभी क्या होकर हटा है। समझ में आया कुछ।"
“हां। आया तो सही कुछ समझ में।"
“फिर भी अभी तक यहीं जमे बैठे हो, हिलने का नाम नहीं ले रहे।”
“डोंट माइंड! अभी हिलता हूं।" वह बिस्तर से उछलकर खड़ा हो गया। उसने फुर्ती से अपने कपड़े पहन लिए।
संजना जल्दी-जल्दी बिस्तर दुरुस्त करने लगी।
सहगल एकाएक चौंका और ठिठक गया। उसके कान ठीक किसी शिकारी कुत्ते की तरह खड़े हो गए, जिसने एकाएक किसी शिकार की आहट महसूस कर ली हो।
“क...क्या हुआ बॉस?” संजना ने गहन असमंजस से पूछा।
“च...चुप रहो।” सहगल ने अपने होठों पर अंगुली रखकर सख्ती से उसे चुप रहने का इशारा किया। संजना आश्चर्य से भरती चली गई। उसकी समझ में नहीं आया था कि अचानक सहगल को क्या हो गया था।
बिस्तर पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो चुका था। संजना ने अपने कपड़े बटोरकर इकट्ठा किए और पहनना आरंभ कर दिया जबकि सहगल ने वैसी कोई कोशिश नहीं की थी।
तभी एकाएक संजना के मोबाइल की घंटी बजी। उसने फ्लैश होता नंबर देखा तो बेसाख्ता चौंक पड़ी। उसके सुंदर मुखड़े पर किंचित बौखलाहट के भाव उभर आए। वह मोबाइल नम्बर जतिन का था।
“क...क्या हुआ?" सहगल ने उसके हाव-भावों को रीड करके पूछा।
“चुप करो।” संजना बोली और उसने जल्दी से फोन रिसीव किया। फिर जब उसने डिस्कनेक्ट करके मोबाइल कान से हटाया तो वह एकाएक काफी उत्तेजित नजर आने लगी थी।
“कि..किसका फोन था?” सहगल ने पूछा। उसके चेहरे पर सस्पेंस उमड़ आया था।
“ज...जतिन का?"
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“क...क्या ?" सहगल धीरे से चौंका था "क्या कह रहा था?"
“वह यहां आ रहा है। फौरन अपने कपड़े पहनो और यहां से चलते फिरते नजर आओ।"
"म..मगर..."
“मैंने कहा न फौरन यहां से चलते फिरते नजर आओ। ।" वह अधीर होकर बोली “जतिन किसी भी वक्त यहां पहुंच सकता है। अगर उसने तुम्हें यहां देख लिया तो गजब हो जाएगा हमारा सारा भांडा फूट जाएगा।"
"ओह!"
"और अभी मुझे यहां की हालत भी दुरुस्त करनी है। देख नहीं रहे बिस्तर अपनी चुगली आप कर रहा है। जतिन को समझने में पल भर भी नहीं लगेगा कि यहां अभी क्या होकर हटा है। समझ में आया कुछ।"
“हां। आया तो सही कुछ समझ में।"
“फिर भी अभी तक यहीं जमे बैठे हो, हिलने का नाम नहीं ले रहे।”
“डोंट माइंड! अभी हिलता हूं।" वह बिस्तर से उछलकर खड़ा हो गया। उसने फुर्ती से अपने कपड़े पहन लिए।
संजना जल्दी-जल्दी बिस्तर दुरुस्त करने लगी।
सहगल एकाएक चौंका और ठिठक गया। उसके कान ठीक किसी शिकारी कुत्ते की तरह खड़े हो गए, जिसने एकाएक किसी शिकार की आहट महसूस कर ली हो।
“क...क्या हुआ बॉस?” संजना ने गहन असमंजस से पूछा।
“च...चुप रहो।” सहगल ने अपने होठों पर अंगुली रखकर सख्ती से उसे चुप रहने का इशारा किया। संजना आश्चर्य से भरती चली गई। उसकी समझ में नहीं आया था कि अचानक सहगल को क्या हो गया था।