Thriller Sex Kahani - कांटा - Page 6 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - कांटा

जब 'जश्न' खत्म हुआ तो दोनों इस तरह हांफते हुए अलग हो गए जैसे कि मीलों लम्बी दौड़ लगाकर आए हों।

बिस्तर पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो चुका था। संजना ने अपने कपड़े बटोरकर इकट्ठा किए और पहनना आरंभ कर दिया जबकि सहगल ने वैसी कोई कोशिश नहीं की थी।

तभी एकाएक संजना के मोबाइल की घंटी बजी। उसने फ्लैश होता नंबर देखा तो बेसाख्ता चौंक पड़ी। उसके सुंदर मुखड़े पर किंचित बौखलाहट के भाव उभर आए। वह मोबाइल नम्बर जतिन का था।

“क...क्या हुआ?" सहगल ने उसके हाव-भावों को रीड करके पूछा।

“चुप करो।” संजना बोली और उसने जल्दी से फोन रिसीव किया। फिर जब उसने डिस्कनेक्ट करके मोबाइल कान से हटाया तो वह एकाएक काफी उत्तेजित नजर आने लगी थी।

“कि..किसका फोन था?” सहगल ने पूछा। उसके चेहरे पर सस्पेंस उमड़ आया था।

“ज...जतिन का?"
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“क...क्या ?" सहगल धीरे से चौंका था "क्या कह रहा था?"

“वह यहां आ रहा है। फौरन अपने कपड़े पहनो और यहां से चलते फिरते नजर आओ।"

"म..मगर..."

“मैंने कहा न फौरन यहां से चलते फिरते नजर आओ। ।" वह अधीर होकर बोली “जतिन किसी भी वक्त यहां पहुंच सकता है। अगर उसने तुम्हें यहां देख लिया तो गजब हो जाएगा हमारा सारा भांडा फूट जाएगा।"

"ओह!"

"और अभी मुझे यहां की हालत भी दुरुस्त करनी है। देख नहीं रहे बिस्तर अपनी चुगली आप कर रहा है। जतिन को समझने में पल भर भी नहीं लगेगा कि यहां अभी क्या होकर हटा है। समझ में आया कुछ।"

“हां। आया तो सही कुछ समझ में।"

“फिर भी अभी तक यहीं जमे बैठे हो, हिलने का नाम नहीं ले रहे।”

“डोंट माइंड! अभी हिलता हूं।" वह बिस्तर से उछलकर खड़ा हो गया। उसने फुर्ती से अपने कपड़े पहन लिए।

संजना जल्दी-जल्दी बिस्तर दुरुस्त करने लगी।

सहगल एकाएक चौंका और ठिठक गया। उसके कान ठीक किसी शिकारी कुत्ते की तरह खड़े हो गए, जिसने एकाएक किसी शिकार की आहट महसूस कर ली हो।

“क...क्या हुआ बॉस?” संजना ने गहन असमंजस से पूछा।

“च...चुप रहो।” सहगल ने अपने होठों पर अंगुली रखकर सख्ती से उसे चुप रहने का इशारा किया। संजना आश्चर्य से भरती चली गई। उसकी समझ में नहीं आया था कि अचानक सहगल को क्या हो गया था।
 
उससे बेपरवाह सहगल की निगाह बेहद तेजी से कमरे में चारों ओर पेवस्त होने लगी थी, फिर बेडरूम से अटैच उस दरवाजे पर जाकर ठहर गई, जो कि बंद था और जिसके पास संजना का ड्राइंगरूम था। बेडरूम की तरफ से ही उस दरवाजे की चिटकनी लगी हुई थी।

“य...यह दरवाजा है?" उसने असमंजस भरे भाव से संजना से पूछा। उसका लहजा वैसा ही रहस्यमय और फुसफुसाने वाला था “कहां खुलता है?"

“ब...बाहर ड्राइंगरूम में।” संजना व्यग्र हो उठी थी “जैसे तुम्हें नहीं मालूम। कुल दो कमरे का ही तो यह फ्लैट है यह। म...मगर बात क्या है?"

“वहां कोई है?"

“क्या?" संजना चौकी और आश्चर्य से आंखें फैलाकर बोली “क्या कहा तुमने बॉस ? वहां कोई है?"

"हां। ध...धीरे बोलो।"

“मगर यह कैसे हो सकता है?"

"अभी मालूम हो जाएगा।” उसने संजना को एक ओर हटने का इशारा किया और फिर बिल्ली की तरह दबे पांव चलता हुआ वह दरवाजे के पास पहुंचा। वह पूरी तरह चौकन्ना नजर आने लगा था। संजना का चेहरा देखने लायक हो गया था।

सहगल ने फुर्ती से दरवाजे की चिटकनी गिराई और फिर एक झटके से उसने दरवाजे के दोनों पट खोल दिए।

सामने सचमुच ड्राइंगरूम था जो कि खाली पड़ा था।

वहां कोई भी नहीं था। उसका बाहर की ओर खुलने वाला प्रवेश द्वार भी मजबूती से बंद था।

संजना भी उसके पीछे ही वहां पहुंच गई थी।

“य..यहां कोई भी नहीं है?" वह खाली कमरे में चारों ओर निगाह फिराती हुई असमंजस भरे भाव से बोली।
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“वह तो मुझे भी नजर आ रहा है।" सहगल अनिश्चित सा बोला। उसके चेहरे पर गहरी उलझन के भाव आ गए थे "लेकिन मैंने इ...इधर आहट महसूस की थी।"

“जरूर तुम्हें भ्रम हुआ होगा।"

“पहले कभी तो मुझे ऐसा भ्रम नहीं हुआ।"

“इस बारे में बाद में तबसरा करेंगे बॉस, तुम शायद भूल गए कि फिलहाल तम्हारा एक पल भी यहां रुकना ठीक नहीं है। जतिन कभी भी यहां पलटकर पहुंच सकता है।"

“ओह।” सहगल के जहन को झटका लगा था। वह पलटकर सजग होता हुआ बोला “यह तो मैं भूल ही गया था। अच्छा मैं चलता हूं। अपना ख्याल रखना हनी। बॉय।"

संजना हौले से सहमति में सिर हिलाकर रह गयी।

सहगल ने आगे बढ़कर फ्लैट का प्रवेश द्वार खोला, फिर अधखुले दरवाजे से उसने सावधानीपूर्वक बाहर का जायजा लिया। आगे सीढ़ियां खाली पड़ी थीं। वहां कोई संदिग्ध व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था।

सहगल ने आहिस्ता से सहमति में सिर हिलाया, लेकिन अंदर कमरे में उसने जो अजनबी आहट महसूस की थी, उसकी खुमारी से वह फिर भी आजाद न हो सका था। फिर वह सीढ़ियों से उतरता चला गया और दिखाई देना बंद हो गया।

तब कहीं जाकर संजना ने राहत की सांस ली और फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया।
 
दरवाजा बंद करके वह अभी पलटी ही थी कि एकाएक फ्लैट की कॉलबेल बजी।

शायद जतिन आ पहुंचा था।

यह सोचकर वह सिहर गई कि अगर सहगल ने वहां से जाने में जरा सी भी देर कर दी होती तो आज निश्चित रूप से उसका भांडा फूट गया होता।

शुक्र था कि ऐसा नहीं हुआ था।

उसने निःश्वास छोड़ी और फिर वह पुनः फ्लैट के प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गई।
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श्मशान घाट में धूं-धूंकर चिता जल रही थी। वह जानकी लाल की चिता थी।

उसकी लाश का पोस्टमार्टम कल दोपहर बाद हो गया था और शाम से पहले ही लाश उसकी बेटी रीनी और दामाद संदीप को सौंप दी गई थी।

उस वक्त सूर्यास्त नहीं हुआ था और अंतिम संस्कार किया जा सकता था। लेकिन महज अंतिम दर्शन के लिए आने वालों की वजह से अंतिम संस्कार को अगले रोज तक के लिए स्थगित कर दिया गया था।

और कितनी मजे की बात थी शहर की इतनी बड़ी शख्सियत के अंतिम दर्शनों के लिए चुनिंदा लोगों को छोड़कर और कोई भी नहीं आया। उन चुनिंदा लोगों में भी ज्यादातर उसकी कम्पनी से जुड़े लोग थे उसके एम्प्लाई थे, जो उससे तनख्वाह पाते थे।

बाहर के लोगों में जो जिक्र के काबिल लोग थे, वह संदीप के मां-बाप थे, जो कि जानकी लाल के रिश्तेदार थे। यह अलग बात थी कि अपनी जिंदगी में जानकी लाल ने जिन्हें रत्ती भर भाव नहीं दिया था और कभी उन्हें अपना रिश्तेदार नहीं माना था, दूसरी जिक्र के काबिल जो शख्सियत वहां पहुंची थी, वह हैरानी की बात थी कि नैना चौधरी थी। तीसरी जानकी लाल की सौतेली बेटी कोमल थी। चौथा शख्स सुमेश सहगल था। अजय और जतिन भी वहां रात तक मौजूद रहे थे।

कितनी अजीब बात थी, जानकी लाल के अंतिम दर्शनों के लिए जितने भी लोग उमड़े थे, उनमें से ऐसा एक भी नहीं था, जिसे कि सही मायने में उसकी मौत का अफसोस होता। बल्कि ये वह लोग थे जिन्होंने उसकी मौत पर जश्न मनाया था और एकजुट होकर उसकी मौत का सामान किया था।

उसकी मौत का अगर सही मायने में किसी को अफसोस था तो वह रीनी थी जानकी लाल की अपनी बेटी रीनी। जिसका कि रो-रोकर बुरा हाल हो गया था और जो सारी रात रोती रही थी।

फिर उनमें से लगभग ज्यादातर लोग श्मशान घाट भी पहुंचे थे और उस वक्त भी धूं-धूकर जलती चिता के सामने मौजूद थे।
उसकी चिता को संदीप ने आग दी थी उस संदीप ने जिससे जानकी लाल बेपनाह नफरत करता था।

फिर चिता की लपटें ठंडी होने लगी थीं। और लोग अपने घरों को जाने लगे। सबसे अंत में वहां से जाने वाला शख्स अजय था।

वह अजय, जो कि जानकी लाल से नफरत करने वालों की लिस्ट में शामिल था, जो हर पल उसकी मौत की कामना करता आया था। और जिसने केवल एक मकसद के तहत उसकी कंपनी में नौकरी की थी। असल में तो उसे जानकी लाल की मौत पर खुश होना चाहिए था जश्न मनाना चाहिए था। लेकिन नामालूम क्यों वह तब खुश नहीं हो सका था। फिर भी आज वह अपने आपको काफी हल्का महसूस कर रहा था, जैसे कि बरसों से सीने पर रखा कोई भारी बोझ उतर गया हो, अंदर एक धधकता ज्वालामुखी शांत हो गया हो।

आखिरकार वह घूमा और अपने पीछे भड़कते शोलों को छोड़कर आगे बढ़ गया।

पार्किंग में उसकी कार मौजूद थी। वह अपनी कार के करीब पहुंचा तो वहां अपनी कार को उसने बिल्कुल अकेले मौजूद पाया। केवल वही एक इकलौती कार वहां खड़ी थी। यह तब साफ था उसके अलावा बाकी तमाम लोग वहां से जा चुके थे। मगर फिर भी उसकी कार वहां बिल्कुल ही अकेली नहीं थी।

कार के अंदर कोई मौजूद था। जिसे अजय ने फौरन पहचान लिया था और उसे पहचानते ही वह हौले से चौंक पड़ा था। वह सुगंधा थी।

सुगंधा।
जो उसी की राह देख रही थी।

अजय के होंठों से एक ठंडी सांस निकल गई।

वह ड्राइविंग डोर खोलकर सुगंधा की बगल में ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।

उसने देखा सुगंधा ने उस वक्त दूधिया सफेद जींस और उसी रंग की टॉप पहन रखी थी। यहां तक कि उसने जो स्पोर्ट्स
शू पहन रखे थे, वह भी बेदाग सफेद थे। खुद उसकी रंगत भी तो बर्फ जैसी ही सफेद थी।

अजय ने आज पहली बार उसे नख से शिख तक सफेद परिधान में लिपटे देखा था। शायद वह मौके की नजाकत भांपकर ही वहां आई थी। मगर उस लिबास में भी वह बला की हसीन लग रही थी।

अजय के होंठों से बेसाख्ता आह निकल गई।

अगर सुगंधा ने सफेद जींस टॉप के बजाए सफेद सलवार सूट पहन रखा होता और सफेद दुपट्टा ओढ़ रखा होता तो शायद वह और भी ज्यादा हसीन लगती।

___ एकदम आलोका की तरह। नहीं। शायद उससे जरा सी कम।

"हल्लो अजय।” तभी सुगंधा बोली “ऑय एम सॉरी।"

“स...सॉरी किसलिए?” अजय ने गरदन घुमाकर उसे देखा।

“मुझे शायद यहां नहीं आना चाहिए था पर मैं खुद को रोक नहीं पाई।"

“हूं।” उसने तनिक संजीदगी से हुंकार भरी, फिर बोला “मेरे ख्याल से हमें यहां से चलना चाहिए।"
सुगंधा ने सहमति में सिर हिला दिया।

अजय ने स्टार्ट करके कार को बैक किया, फिर धीरे-धीरे चलाता हुआ सड़क पर ले आया।

“यहां तक कैसे आई?” कार जब सड़क पर पहुंच गई तो अजय ने गियर बदलते हुए सुंगधा से पूछा।

“अपनी स्कूटी से।”

“स्कूटी कहां है?"

“एक सहेली को साथ लाई थी, वह स्कूटी वापस ले गई।"

“तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था सुगंधा।"

"मुझे मालूम है। लेकिन कहा न, मैं खुद को रोक नहीं सकी। मुझे ल...लगा कि दुख की इस घड़ी में...।"

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“दुख.... । दुख कहां है?" उसने झटके से चेहरा घुमाया। और एक हैरानी भरी निगाह सुगंधा पर डालकर पुनः सामने देखने लगा।

“अ...अजय।” सुगंधा असहाय भाव से गरदन हिलाती हुई बोली “माई लाइफ, माई लव, मौत चाहे अपने की हो या बेगाने की, वह हमेशा दुख का विषय होती है।"

“मुझे फिलास्फी नहीं चाहिए।” वह अपलक विंडस्क्रीन को देखता हुआ बोला।
 
“मैं भी फिलास्फर नहीं हूं। दरअसल मेरा मतलब कुछ और ही है।”

“क्या क्या मतलब है तुम्हारा?"

“मैं तुम्हारे लिए बहुत फिक्रमंद हूं।" "क्यों फिक्रमंद हो तुम मेरे लिए?"

“क्योंकि तुम्हारी जिंदगी किसी रहस्य से कम नहीं है। बेइंतहा नफरत करते थे तुम अपने बॉस जानकी लाल से और शायद एक मकसद को लेकर ही तुम दिल्ली आए थे। और जो कि आज..."

वह एक क्षण को ठिठकी फिर उसने अपना वाक्य पूरा किया “पूरा हो गया। वह इंसान दुनिया से उठ गया, जिससे तुम बेइंतहा नफरत करते थे और शायद जिसकी तबाही का मकसद लेकर ही तुम यहां आए थे।"

"इसमें फिक्रमंद होने की क्या बात है?"

“क्योंकि वह इंसान अपनी स्वाभाविक मौत नहीं मरा।” सुगंधा ने बताया “उसे कत्ल किया गया, जिसकी सजा या तो फांसी होती है या फिर उम्रकैद।"

“और तुम्हारा ख्याल है कि यह सजा मुझे मिलने वाली है, क्योंकि जानकी लाल को मैंने मारा है उसका कत्ल मैंने किया

“अगर तुमने सचमुच कुछ नहीं किया है तो इससे खुशी की बात और क्या हो सकती है। लेकिन अगर तुम गुनाहगार हो तो...।"

"त...तो क्या?"

“अभी वक्त है। तुम्हारी गलती को सुधारा जा सकता है इस बरबादी से बचा जा सकता है।"

"कैसे बचा सकता है?"

"हम अभी इसी वक्त यह शहर बल्कि यह देश ही छोड़ देंगे।"

“फिर कहां जाएंगे?"

“यूएसए।

“य..यूएसए ही क्यों? दुनिया में बहुत सारे मुल्क हैं।"

“लेकिन मुझे यूएस पसंद है। मैंने कई जगह अपना रिज्यूमे मेल कर रखा है। देर सवेर भले ही हो जाए, लेकिन वहां से कोई पॉजिटिव जवाब मुझे जरूर मिलेगा, जो कि मेरे हक में होगा। वैसे भी मेरी एक फॉस्ट फ्रैंड वहां शिफ्ट हो चुकी है, उससे भी मुझे मदद जरूर हासिल होगी। एक बार अगर हमने यह मुल्क छोड़ दिया तो फिर यहां का कानून हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। हम पूरी तरह महफूज होंगे।”

“शुक्रिया।” अजय ने लापरवाही से कंधे उचकाये और शुष्क स्वर में बोला “मगर मुझे नहीं लगता कि मुल्क छोड़ने की नौबत आएगी। यूएसए तुम्हें ही मुबारक हो।”
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“प...पार्टनर।” सुगंधा ने आहत होकर उसकी ओर देखा “ऐसे मेरा उपहास मत करों। वह केवल तुम हो जिसने मुझे इस मुल्क में रोक रखा है, वरना यूएसए मेरा बचपन का ख्वाब है और मैं कब की वहां शिफ्ट हो चुकी होती।"

"ऑय एम सॉरी! मेरा इरादा तुम्हारे जज्बातों को चोट पहुंचाना नहीं था सुगंधा।"

सुगंधा कुछ नहीं बोली। वह बस खामोशी से विंडस्क्रीन को देखती रही।

“मैंने अपने बॉस को नहीं मारा।” अजय ने बेचैन होकर पहलू बदला, फिर उसने सुगंधा को अपनी सफाई पेश की “और मुझे इसका ताजिंदगी अफसोस रहेगा। उस शैतान को मेरे हाथों से ही मरना चाहिए था। मगर यह नेक काम कोई और ही कर गया।"

“अपने जख्म मुझे नहीं बताओगे? क्या अदावत थी आखिर जानकी लाल से तुम्हारी?”

“जख्म कुरेदने से केवल दर्द ही मिलता है। वैसे भी यह किस्सा खत्म हो चुका है सुगंधा।”

“तब तो तुम्हारी जिंदगी का अब कोई मकसद नहीं रह गया होगा।” “शायद तुम ठीक कह रही हो। म...मैं कल ही अपनी कम्पनी से रिजाइन कर रहा हूं।”

“उसके बाद क्या करोगे कहां जाओगे!"

"तुम्हारे साथ शादी करके यूएसए तो हरगिज भी नहीं जाऊंगा।”

“तो फिर?”
“यहीं अपने मुल्क में ही रहूंगा और जीने के लिए कोई मकसद ढूंढ ही लूंगा। बहरहाल मकसद न हो तो जिंदगी बहुत बेमानी हो जाती है।”
 
"तब तो यूएसए में बसने का मेरा सपना, सपना ही रह जाएगा।” वह मायूस होकर बोली। उसका खिला निखरा चेहरा एकदम से बुझ गया था “क्योंकि तुमसे दूर जाने का तो मैं ख्याल भी नहीं कर सकती।"

"क्यों तुमने ऐसा लक्ष्य बनाया सुगंधा, जिसमें इतनी ऊंची बाधाएं हैं?"

“हर लक्ष्य के रास्ते में बाधाएं होती हैं पार्टनर। लक्ष्य जितना बुलंद होता है बाधाएं भी उतनी ही मजबूत होती हैं। लेकिन इरादे अगर सच्चे हों तो लक्ष्य हासिल होकर रहता है।”

“यानि कि तुम्हें विश्वास है कि तुम्हारा लक्ष्य तुम्हें हासिल होकर रहेगा?”

“हां।" वह मुकम्मल दृढ़ता से बोली “क्योंकि मेरे इरादे बहुत सच्चे और मजबूत हैं।"

“इसका मतलब तुम मेरा साथ छोड़ दोगी।"

“पागल हुए हो।” वह तड़पकर बोली “यह तुमसे किसने कहा कि मैं तुम्हारा साथ छोड़ सकती हूं?"

“कहा तो किसी ने भी नहीं है, मगर मैं किसी भी हालत में अपने मुल्क की धरती नहीं छोड़ने वाला। क्योंकि जितना प्यार मैं तमसे करता है उतना ही अपने वतन की मिटटी से भी करता हूं। बल्कि शायद उससे ज्यादा करता हूँ। जानती हो, कभी-कभी मैं बहुत हैरान हो उठता हूं।"

“क...क्यों हैरान हो उठते हो तुम पार्टनर?"

"हमारे ख्यालात में हमारे मकसद में इतना बड़ा फासला है। दोनों नदी के दो किनारे हैं, जो कभी नहीं मिल सकते।” वह एक सूखी हंसी हंसकर बोला “फिर भी प्यार करते हैं एक दूजे के लिए जीने मरने की कसमें खाते हैं। यह नहीं होना चाहिए था सुगंधा।”
“मगर यह हमारे बस में भी तो नहीं था। हम मिले, एक दूसरे को भा गए, अच्छे लगने लगे प्यार करने लगे। इसमें कहीं कुछ भी तो ऐसा नहीं है जो हमारे वश में होता और जिसे हम रोक पाते। और अब तो हम कर भी क्या सकते हैं। इस रास्ते पर इतना आगे जो निकल गए हैं, जहां से लौटना मुझे नहीं लगता कि हमारे अपने वश में भी होगा।"

“इसका मतलब यह हुआ सुगंधा कि तुम मुझे कभी नहीं छोड़ोगी। तुम्हारा लक्ष्य तुम्हारा मकसद हमारे प्यार के रास्ते की दीवार नहीं बनेगा।"

“तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम्हें छोड़ सकती हूं?”

"बहुत संकोच के साथ कह रहा हूं सुगंधा कि हां, तुम ऐसा कर सकती हो। तुम अपने मकसद के लिए अपने प्यार को ठुकरा सकती हो। अगर वक्त ने इम्तहान लिया और तुम्हें कभी हम दोनों में से किसी एक को चुनना पड़ा तो तुम निश्चित रूप से अपने मकसद को ही चुनोगी केवल अपने मकसद को।”

"बहुत डरते हो मुझे खोने से। शायद पहले किसी को खो चुके हो?” अजय के सामने अनायास आलोका का हंसता-खिलखिलाता चेहरा घूम गया।

“ज....जेंटलमैन। अरे तुम तो जेंटलमैन हो।”

उसके दिल में अचानक एक हुक सी उठी।

"हां...हां...तुम सच कह रही हो।" वह तड़पकर बोला “इसीलिए सिहर जाता हूं। दोबारा शायद मैं यह दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा। एक बार किसी तरह खुद को संभाल लिया था, अगली बार शायद नहीं संभाल पाऊंगा और टूटकर बिखर जाऊंगा।"

“उसका न..नाम नहीं बताओगे मुझे पार्टनर?"

"कैसे बता सकता हूं। उस कमबख्त ने भी तो कितना तड़पाया था मुझे अपना नाम बताने में कितना लम्बा इंतजार कराया था।"

“आज भी तुम शायद उसे भुला नहीं पाए हो। बहुत चाहते हो उसे?” “याद आती है अक्सर तो रोता हूं बेबसी में।” वह ठंडी आह भरता हुआ बोला “इस बेवफा को मैंने पूजा था जिंदगी में।"

"नाम क्या था उसका?"

“आलोका।"

“कहीं और शादी कर ली उसने?"

“जाहिर है।”

" हक नहीं जताया था. विरोध नहीं किया, जिसका कि तुम्हें पूरा हक था।”

“उसने मौका ही नहीं दिया मुझे मेरे हक को इस्तेमाल करने का?" “क...क्यों? क्या किया था उसने?"

“उसने पहले ही मुझसे वचन मांग लिया था।"

“क...कैसा वचन पार्टनर?"

“वहीं, जो कभी राजा शांतनु से गंगा ने मांगा था कि तुम मुझसे कभी सवाल नहीं करोगे।"

“और त...तुमने उसे वचन दे दिया?"

“मैं सोच भी नहीं सकता था कि उसके इरादों में क्या चल रहा था और वह मेरे उस वचन को किस तरह हथियार बनाकर मेरे ही खिलाफ इस्तेमाल करने वाली थी, जो कि आखिरकार उसने किया।”

“क..क्या किया उसने? कैसे किया था?"

“कहने लगी प्यार इम्तहान लेता है, और शायद हमारे प्यार के इम्तहान की घड़ी भी आ पहुंची थी। और अब मुझे अपने प्यार के इम्तहान में पास होकर दिखाना था।”

"तुमने पूछा नहीं था कि...क क्या इम्तहान देना था मुझे?"

“क्यों नहीं? वह भला मैं कैसे नहीं पूछता?"

"क्या जवाब दिया उसने?"

"कहने लगी कि मुझे भूल जाओ कहीं और शादी कर लो।" “क्या?” सुगंधा मुंह बाए उसे देखने लगी थी “त..तुमने क्या कहा?"
 
“वही, जो स्वाभाविक था। मैं आश्चर्य और अविश्वास से चीख पड़ा था क्यों भूल जाऊं तुम्हें, क्यों कहीं और शादी कर
लूं?"

“क्या जवाब दिया उसने?”

“कहने लगी है कि मैं...मैं वादा खिलाफी कर रहा था अपना वह वचन तोड़ रहा था जो कि मैंने उसे दिया था सवाल न करने का वचन।"

सुगंधा अवाक् सी होकर उसे देखने लगी थी।

“बहुत मुहब्बत की थी मैंने उससे।” अजय कह रहा था । भावावेश में उसका स्वर लरज गया था “टूट-टूटकर चाहा था उसे। शायद इसीलिए अपने वचन को तोड़ने का ताब न ला सका था और फिर एक ही झटके में सब खत्म हो गया। उसने मुझे ठुकरा दिया। हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर चली गई।"

"क....कहां चली गई?"

“अपने पिया के घर। उसने किसी और से शादी कर ली। अपने महकते प्यार से किसी और का आंगन आबाद कर दिया।"

“अ...और तुम खामोशी से अपनी बरबादी का तमाशा देखते रहे? तुमने कुछ भी नहीं कहा उसे? आखिर क्या हक था उसे
यूं तुम्हारी जिंदगी से खेलने का?" सुगंधा किसी हद तक आवेश में बोली।

“सारे हक मैं पहले ही खो चुका था, उसे सवाल न करने का वचन देकर।"

“उ...उसके बाद फिर कभी तुम दोनों की मुलाकात नहीं हुई?" “न...नहीं, कभी नहीं। मुझे तो यह भी नहीं पता कि वह इसी शहर में है या अपनी दुनिया उसने कहीं और जाकर आबाद की है।"

"कभी ख्याल भी नहीं आया दिल में पता करने का?"

"नहीं।"

“वजह।"

“उसने अपने हमसफर को न जाने अपने अतीत के बारे में कुछ बताया भी है या नहीं। मुझे डर है कि उसकी जिंदगी का यह गुजरा कल कहीं उसकी जिंदगी में कोई हलचल न पैदा कर दे कोई तूफान न ला दे। अगर ऐसा हुआ तो शायद मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।”

“उफ्फ! इतना चाहते हो तुम उस बेगैरत बेवफा को?”

"तुम्हारी हर सोच से ज्यादा सुगंधा। इतना प्यार शायद दुनिया में किसी ने भी किसी को नहीं किया होगा।"

"काश, उसने भी तुम्हें समझा होता इस महान प्यार की जरा सी भी कद्र की होती।"

“जो उसने नहीं समझा, उसमें मेरा क्या कसूर। उससे मेरे प्यार की सच्चाई और पवित्रता तो कम नहीं हो जाती।"

"तुम्हारे दिल में कभी कोई जलजला नहीं उठा उस नामाकूल के लिए?"

“जलजला क्या उठेगा पगली। जिससे प्यार किया जाता है, उसके लिए जलजला कैसे उठ सकता है।"

“व...वह लड़की तुम्हारे प्यार के काबिल हरगिज भी नहीं थी पार्टनर।"

“हो सकता है।”

“तुम्हें उस पर कोई रंज नहीं?"

“रंज कैसा? और फिर प्यार लेने का नहीं, वह तो हमेशा देते रहने का नाम होता है। सच्चा प्यार अपने उसूलों से छल करने की इजाजत किसी को भी नहीं देता। वह प्यार का अपमान होता है और प्यार का अपमान विधाता को सबसे ज्यादा नागवार गुजरता है।”

"तुम..तुम कितने महान हो पार्टनर...।” वह लफ्ज सुगंधा के होठों से स्वतः फिसल गए थे “और आलोका कितनी नादान, कितनी बदकिस्मत। वह तुम्हारे प्यार की गहराई तक सात जन्मों तक भी नहीं पहुंच सकती।

अजय ने जवाब न दिया। वह खामोशी से कार ड्राइव करता रहा। अपने दिल के दर्द को पीने के लिए उसने अपने होंठ भींच लिए थे। कितने पल यूं ही बीत गए।

“मैं तुम्हारे प्यार को सलाम करती हूं।” सहसा सुगंधा बोली “जानते हो पार्टनर, आज तक मैं तुमसे प्यार करती थी, पर आज से तुम्हारी पूजा किया करूंगी।"

अजय फिर भी कुछ न बोला। होंठ भींचे खामोशी से कार ड्राइव करता रहा और अपने दिल के दर्द को पीता रहा।

“आलोका तो अपने प्यार का इम्तहान न दे सकी, मगर मैं..।” सुगंधा के लहजे में एकाएक दृढ़ता उभर आयी थी। उसने कहा “अपने प्यार का इम्तहान देकर दिखाऊंगी और उस इम्तहान में पास होकर भी दिखाऊंगी।"

“क...क्या मतलब?" तब अजय की खामोशी भंग हुई थी। उसने चौंककर सुगंधा को देखा।

“मेरे प्यार पर संदेह मत करो पार्टनर ।” उसने स्पष्ट किया "हर लड़की आलोका नहीं होती। तुम मेरे कॅरियर को लेकर आशंकित हो। आज मैं तुमसे वादा करती हूं, बल्कि यह भीष्म प्रतिज्ञा करती हूं, अगर मेरे सामने कभी मेरे कॅरियर और मेरे प्यार में से किसी एक को चुनने की नौबत आई तो मैं निस्संदेह अपना प्यार ही चुनूंगी। जीवनसाथी अगर ऐसा सच्चा हो तो उस पर सौ कॅरियर भी कर्बान किए जा सकते हैं हजार कॅरियर भी कुर्बान किए जा सकते हैं।"
 
अजय की जुबान तालू से जा चिपकी। वह भौंचक्का सा होकर सुगंधा को देखने लगा था।

“सामने देखो पार्टनर।” सुगंधा ने उसे सचेत किया “वरना एक्सीडेंट कर बैठोगे।"

अजय ने हड़बड़ाकर सामने देखा। उसी समय एक तेज रफ्तार लो फ्लोर बस ने उसे ओवर टेक किया था। उसने फुर्ती से स्टेयरिंग दाहिनी ओर घुमाया और कार बुरी तरह लहरा गई, लेकिन फिर तुरंत ही संभल गई। सचमुच एक्सीडेंट होते-होते बचा था।

सुगंधा से उसकी निगाह मिली तो सुगंधा अनायास ही खिलखिलाकर हंस पड़ी। अजय भी अपनी हंसी को रोक न सका।

“यहीं रोक दो।” तभी एकाएक सुगंधा ने कहा।

“मगर क्यों?” अजय उस जगह पर चारों तरफ निगाह घुमाता हुआ उलझकर बोला “कोई काम है यहां?"

"हां। यहां से मेरे घर के लिए सीधे मेट्रो जाती है।"

“ओह।" उसके होठों से निःश्वास निकल गई। उसने कार को साइड से लगाकर रोक दिया।

“आलराइट पार्टनर ।” सुगंधा अपनी तरफ का दरवाजा खोलकर बाहर निकलती हुई बोली “अपना ख्याल रखना। बॉय। लव यू।"

अजय प्रत्युत्तर में हाथ हिलाकर रह गया।
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संजना ने दरवाजा खोला।

आने वाला सचमुच जतिन था। उसने एक शानदार टू पीस सूट पहन रखा था और हाथ में एक छोटा सा सूटकेस उठा रखा था, जैसे कि आमतौर पर सेल्स एक्जीक्यूटिव अपने साथ रखते हैं।

"हॉय।” उसे देखते ही संजना चहकी।

“हल्लो स्वीट हार्ट।” जतिन के होठों पर भी मुस्कराहट उभरी।

“वह तो हुआ, अब यह बताओ कि अंदर आने का क्या लोगे?”

“वही जो अभी देकर हटी हो।"

"व्हॉट?"

"अपनी दिलफरेब मुस्कराहट ।” उसने जस्टीफाई किया “अभी वही तो देकर हटी हो मुझे वह भी बिना मांगे।"

“ओह।” उसके होंठों से निकला और वह फिर से मुस्कराई। जतिन बाग-बाग हो गया।
उसने अंदर कदम रखा।

वह दोनों ड्राइंग रूम में पहुंचे। जतिन ने सूटकेस सोफे के पहलू में रख दिया। उसने एक सरसरी निगाह कमरे में चारों ओर घुमाई, फिर वह धम्म से एक सोफे पर ढेर हो गया।

“लगता है सीधे साइट से आ रहे हो?” संजना ने पूछा।

“कैसे जाना?" उसने चौंककर पूछा।

“यह सूटकेस देखकर जाना, जो आमतौर पर तुम्हारे साथ नहीं होता।"

“काफी समझदार हो गई हो।"

“पहले क्या नहीं थी?" वह इठलाई। अब वह पूरी तरह से खुद को सामान्य कर चुकी थी।

जतिन ने अपलक उसके खूबसूरत चेहरे को देखा।

“ए..ऐसे मुझे क्या देख रहे हो।" वह तनिक सकुचाकर बोली।

"टॉप्स।"

"क्या ?"

“तुम्हारे कान का एक टॉप्स गायब है। लगता है कहीं गिरा दिया।" उसका हाथ फौरन अपने कानों पर गया। वह हड़बड़ाई।
बाएं कान का टॉप्स सचमुच गायब था।

“अ...अरे।” उसके मुंह से चौंका हुआ स्वर निकला “कहां गया मेरा टॉप्स।”

“अंदर देखो, कहीं बिस्तर में तो नहीं है।"

संजना बिना सोचे-समझे अंदर वाले कमरे की ओर लपकी। जहां बिस्तर पर अभी-अभी वह सहगल के साथ कलाबाजियां खाकर हटी थी, टॉप्स वहां गिरा हो सकता था।


टॉप्स वहां मौजूद था। बेडशीट के एक कोने में वह उलझा पड़ा था। उसने चैन की सांस ली। टॉप्स अपने कब्जे में करके उसने वापस अपने कान में पिरोया। वह पुनः ड्राइंगरूम की तरफ लपकी, लेकिन अगले ही पल ठिठककर खड़ी हो गई। बीच में अटैच दरवाजे पर दोनों चौखट पर हाथ टिकाये जतिन खड़ा था और बेहद गौर से उसे ही देख रहा था।

संजना के जेहन को झटका सा लगा था। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।

जतिन को आखिर कैसे मालूम हुआ था कि उसका गायब टॉप्स बिस्तर पर हो सकता था, जबकि वह सोकर उठने का भी वक्त नहीं था।

"देखा स्वीट हार्ट ।” जतिन विजयात्मक भाव से बोला “मैंने कहा था कि बिस्तर में जाकर देखो।"

“व..वह... ।” संजना तनिक खिसियाए भाव से बोली। उसने तत्काल सफाई पेश की “मैं अभी यहां सोई हुई थी। त...तुम्हारे फोन ने ही तो मुझे जगाया था। लगता है तभी गिर गया था।"

“वही तो?"

“त...तुम बताओ, आ..आज अचानक इस वक्त यहां कैसे आना हो गया।"

"लगता है मेरा इस वक्त यहां आना तुम्हें पसंद नहीं आया?"

"अरे नहीं।" वह जल्दी से बोली “यह तुम क्या कह रहे हो। ऐसा भला कैसे हो सकता है कि तुम मेरे घर आओ और मुझे पसंद न आए।"

"वही तो।"
“म...मगर क्या तुम्हें नहीं लगता कि आजकल तुम कुछ ज्यादा ही जल्दी-जल्दी मेरे घर तशरीफ ला रहे हो। पहले कभी तुम इतना नहीं आते थे। पहले कभी मुझसे इतने बेतकल्लुफ भी नहीं हुए थे।"

“यह तो है।” जतिन ने स्वीकार किया।

“इसीलिए तो मैं जरा दुविधा में पड़ गई थी। अरे... तुम खड़े क्यों हो, बैठो न प्लीज।”

“तुम बैठने की क्या बात करती हो। मैं तो आज लेटने का इरादा बनाकर आया हूं।"

"क...क्या ?"

“यह....।” उसने अचानक डाइव लगाई और जूतों समेत बेड पर जा गिरा था।

संजना के लिए उसकी वह हरकत अप्रत्याशित थी। वह एक बार फिर हड़बड़ा गई।

“अरे... रे...क्या करते हो।" वह बौखलाकर बोली।

“अभी मैंने कहां कुछ किया है?" वह कोहनी से अपनी एक बांह उठाकर उस पर अपना सिर रखता हुआ बोला “वह तो मैं अब करने वाला हूं।"

“क..क्या करने वाले हो तुम?"

“अभी तुम अपनी आंखों से देखोगी।"

“जतिन । यह तुम आज कैसा अजीबो-गरीब बिहेव कर रहे हो। पहले तो तुमने कभी ऐसा नहीं किया।”

"कभी तो पहल होती ही है जानेमन।"

"लेकिन..."

“मेरा एक काम करोगी प्लीज।"

"क...क्या ?"

"मेरा सूटकेस उठाकर यहां ले आओ। मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं।” “क...क्या देना चाहते हो तुम मुझे ?"

"तोहफा एक ऐसा शानदार तोहफा, जिसे देखकर तुम हैरत में पड़ जाओगी।"

"क...क्या सच?" वह चहकी।
 
"एकदम सच।”

"फिर तो मैं अभी लाती हूं।” वह खुशी से झूम उठी और जाकर फुर्ती से सूटकेस उठा लाई। सूटकेस वह बिस्तर पर उसके सामने पटकती हुई बोली “यह लो और जल्दी से मेरा तोहफा मेरे हवाले करो।”

“जो हुक्म जाने तमन्ना।” जतिन ने किसी गुलाम की तरह सिर नवाया और सूटकेस का कम्बीनेशन लॉक खोलकर उसने एक छोटा सा पैकेट निकाला, जो बेहद पतला था। मगर जो गिफ्ट पैक वाले सुंदर रैपिंग पेपर में लिपटा हुआ था।

"लो स्वीट हार्ट। अपना गिफ्ट संभालो।" वह पैकेट उसकी ओर उछालता हुआ बोला और उसने सूटकेस वापस बंद कर दिया।

संजना ने पैकेट हवा में ही लपक लिया। उसने उसे पलट कर देखा, फिर अपार खुशी का प्रदर्शन करते हुए उसे खोला।
यह देखकर वह सकपकाई कि एक डीवीडी थी।
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“य...यह तो डीवीडी कैसेट है।” उसके मुंह से स्वतः निकला।

"बहुत रोमांटिक फिल्म की कैसेट है।” जतिन से बोला “पिछले हफ्ते ही रिलीज हुई है। ऐसी शानदार लवस्टोरी तुमने पहले कभी नहीं देखी होगी।"

“अच्छा। तब तो इसे जरूर देखूगी।”

"लगाओ।"

"क्या।"

"मेरा मतलब है कि प्लेयर में लगाओ, दोनों साथ ही देखते हैं। आज मैं पूरा मूड बनाकर आया हूं।"

“फिल्म देखने का?”

“और नहीं तो क्या? वह सामने ही तो डीवीडी प्लेयर रखा है।"

संजना तनिक सकुचाई, फिर सोचती हुई टेलीविजन की ओर बढ़ गई। उसने डीवीडी प्लेयर में डीवीडी फंसाकर टीवी ऑन कर दिया और रिमोट लेकर जतिन के पास आ कर बैठ गई। जतिन टेलीविजन स्क्रीन को ही देख रहा था। कुछ पलों तक स्क्रीन पर सुनहरी प्रकाश झिलमिलाता रहा, फिर उस पर दृश्य उभरने आरंभ हो गए।

अगले पल संजना बुरी तरह चौंकी।

बल्कि यह कहना चाहिए कि उछल पड़ी। वह उसके उसी बेडरूम का दृश्य था, जिसमें वह स्वयं नजर आ रही थी। वह अकेली नहीं थी। उसके साथ सहगल भी नजर आ रहा था, जिसने उसे अपनी दोनों बांहों में उठा रखा था।
फिर उसने संजना के गुदाज जिस्म को बिस्तर पर पटक दिया। उसी बिस्तर पर, जिस पर उस वक्त उसके साथ जतिन भी बैठा था। “उई मां।” उसके हलक से घुटी-घुटी सी चीख निकल गई थी “क्या करते हो।"

“अभी कहां कुछ किया है मेरी जान।” सहगल ने भूखे भेड़िये की तरह उसके गदराये बदन को झिंझोड़ना आरंभ कर दिया “वह तो मैं अब आगे करने वाला हूं।"

संजना की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। जबकि जतिन की स्थिति में रत्तीभर फर्क नहीं आया था। वह इस तरह दिलचस्प निगाहों से वह सब देख रहा था जैसे कि पता नहीं कितनी रोमांटिक, कितनी दिलचस्प फिल्म देख रहा हो।
दृश्य आगे बढ़ते चले गए।

संजना और सहगल की बातचीत के मुकम्मल दृश्य, जिसमें कि सहगल बाकायदा उसे डिक्टेशन देता नजर आ रहा था।
एक आगामी साजिश को अमलीजामा पहनाने का डिक्टेशन।
और पूर्व में अमली जामा पहनाई जा चुकी साजिश का डिक्टेशन, जिसमें एक बार जतिन का भी जिक्र था।

संजना को काटो तो खून नहीं।

उसका चेहरा पीला जर्द पड़ गया। उसके बाद आगे अभिसार का नजरें झुका देने वाला दृश्य था। उसी बिस्तर पर अपने बाप की उम्र के आदमी के साथ कलाबाजियां खिलाए जाने वाला गरमागरम नजारा! संजना का धैर्य जवाब दे गया। इससे ज्यादा देखने का ताब वह अपने अंदर न ला सकी थी।

उसने रिमोट उठाकर टेलीविजन ऑफ कर दिया और एक झटके से उठ बैठी।

उसकी सांसें धौंकनी की तरह चलने लगी थीं। चेहरे की यौवन झलकाती सुर्जी पलक झपकते गायब हो गई थी। ऐसा लगता था कि जैसे कि चेहरे से खून की आखिरी बूंद भी निचोड़ ली गई हो।

जबकि जतिन की स्थिति में जरा सा भी फर्क नहीं आया था। “अ...अरे यह क्या स्वीटहार्ट!” उसने अचानक फिर इस तरह शिकायती नजरों से संजना को देखा, जैसे कि उसने किसी खेल में मग्न होते बच्चे का खिलौना छीनकर तोड़ दिया हो "तुमने बंद क्यों कर दिया? कितनी गजब की रोमांटिक फिल्म चल रही थी।"

“त..तो यह बात है?" वह जतिन को अपलक घूरती हुई इस बार एकदम से बदले स्वर में बोली “म..मेरी जासूसी के लिए तुमने यहां स्पाई कैमरे लगा रखे हैं।”

“क्या करता जाने तमन्ना। माशूका जब ऐसी हरजाई हो तो करना पड़ता है। वैसे...हरजाई या हरामजादी में कोई फर्क होता है क्या?”

“क...कब से कर रहे हो तुम मेरी जासूसी?"

तब जतिन का धैर्य जवाब दे गया। वह उछलकर बिस्तर से खड़ा हो गया।

उसकी आंखों में एकाएक शोले भड़कने लगे थे। चेहरे के जर्रे-जर्रे पर नफरत उमड़ आई थी।

"हरामजादी, कमीनी...।” उसके अंदर का बांध तब जैसे टूट गया “तुझे तवायफ कहना तो तवायफ का अपमान करना होगा। वह कम से किसी के जज्बातों से तो नहीं खेलती अपनी कीमत लेकर उसका चेहरा भी भूल जाती है। उस सजायाफ्ता के साथ सरेआम हवस का खेल खेलते हुए तो मैंने तुझे बेनकाब कर दिया। कितने दिनों से उससे फिट है, बहुत ज्यादा वक्त तो नहीं हुआ उसे जेल से छूटे हुए। जब वह जेल में था तो क्या जेल में जाकर उसका पहलू गर्म करती थी? या फिर जब वह पेरोल पर बाहर आता था तो उसकी हवस शांत किया करती थी?"

“श...शटअप जतिन।"

“वह तुझे उस किलर के बिस्तर पर परोसने को कह रहा था, उसके अलावा आज तक और कितनों के बिस्तर की परिक्रमा कर चुकी है। स्कोर दर्जन से ऊपर है या अभी बेहयाई की हद बाकी है?”

“म...मेरी बात सुनो जतिन। प्लीज।”

“क्या बचा है अब तेरे पास कहने के लिए जलील औरत।

और किस हक से तू समझती है कि तू मुझसे कुछ कह सकती है?"

"ज...जतिन..."
.
“ऊपर वाले का करम है तुझ पर, कितना हसीन जिस्म दिया उसने तुझे। अगर तूने इसकी पवित्रता और इसका मान रखा होता तो शायद तू जरूर सौ साल तक जीने वाली थी पचास साल तक अपने शरीर का सुख भोगने वाली थी। क्या फायदा हुआ। इतनी जल्दी वक्त पूरा हो गया।"

"क....क्या मतलब?” वह तीखे स्वर में बोली।

"अभी नहीं समझी।"

"न...नहीं।"
"तो समझ जा।" वह एकाएक बाज की तरह झपटा और फिर उसने संजना की सुराहीदार गरदन को अपने दोनों हाथों में जकड़ लिया।

संजना बुरी तरह हड़बड़ा गई।
 
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