desiaks
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“आज मेरी छुट्टी है। जब तुम कहो आ जाऊंगी।” उसका वह जवाब तो अजय के लिए कतई प्रत्याशित था। मगर वह उन दोनों के आइंदा सिलसिले की शुरूआत का पहला कदम था। और उस वक्त तो खुद आलोका भी नहीं जानती थी कि उसका अजय की तरफ बढ़ा वह पहला कदम उसे भी अजय की दीवानी बना देगा और वह अजय से कहीं ज्यादा टूटकर उसे चाहने लगेगी। बस अजय ही उसका मकसद बन जाएगा।
फिर वही हुआ था। शहर के आसमान पर दिन-रात दोनों के प्यार के अफसाने लिखे जाने लगे थे। उन दिनों के सच्चे पवित्र प्यार को देखकर सारा शहर जैसे मुस्करा रहा था। वह केवल होनी थी जो चाहकर भी मुस्करा नहीं सकी थी। क्योंकि केवल वही जानती थी कि उन दोनों नादानों के प्यार का अंजाम क्या होने वाला था।
तभी एकाएक अजय के मोबाइल की घंटी बजने लगी, जिसने उसका ध्यान भंग कर दिया। उसकी विचार शृंखलाएं एक झटके से बिखर गईं। अतीत की एक छोटी सी दौड़ लगाकर वह वापस अपने वर्तमान में लौट आया।
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इंस्पेक्टर मदारी ने बारीकी से कमरे के हर कोने-खुदरे का मुआयना किया। संजना की लाश बिस्तर पर चारों खाने चित्त पड़ी थी और फटी हुई पथराई आंखों से ऊपर लिंटर को घूर रही थी। उसके बाएं वक्ष में मौजूद गोली के सुराख से ढेर सारा खून बहकर उसके कपड़ों तथा बिस्तर पर फैला हुआ था। उसका मिनी पिस्टल एक कोने में छिटका पड़ा था।
बिस्तर पर संजना की लाश के करीब ही टेलीविजन का रिमोट लावारिस सा पड़ा था। टेलीविजन की स्क्रीन ऑफ थी लेकिन नीचे रखा डीवीडी प्लेयर ऑफ नहीं था। उसके समूचे फ्रंट पर झिलमिलाती नीली लाइट और उसके डिस्प्ले पर बदलते अंकों ने मदारी को सहज ही बता दिया था कि उसके अंदर डीवीडी कैसेट मौजूद थी और उस वारदात से ठीक पहले मकतूल और वहां मौजूद जतिन टीवी पर कोई फिल्म देख रहे थे।
"कौन सी फिल्म ?"
जाहिर था कि उसकी डीवीडी तब भी प्लेयर के अंदर मौजूद थी। जतिन हक्का-बक्का सा एक तरफ खड़ा था। दो सिपाही उसके दाएं-बाएं मुस्तैदी से खड़े थे। साफ प्रतीत हो रहा था कि वह पुलिस की गिरफ्त में था। होता भी क्यों नहीं, इंस्पेक्टर मदारी जिस वक्त वहां पहुंचा था लगभग उसी समय जतिन भागता हुआ फ्लैट से बाहर निकला था। अगर मदारी को वहां पहुंचने में एक पल की भी देरी हो जाती तो जतिन वहां से फरार हो जाने वाला था। इसके बावजूद बौखलाए जतिन ने सिपाहियों को ढकेल कर वहां से फरार हो जाने की कोशिश की थी, मगर वह कामयाब न हो सका था।
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इंस्पेक्टर मदारी को एक गुमनाम फोनकर्ता ने वहां उस फ्लैट में होने वाली वारदात की खबर दी थी, जिसके बाद फिर मदारी एक पल भी बैठा न रह सका था। वह अपनी पुलिस टीम को साथ लेकर हवा से बातें करता हुआ वहां पहुंचा था,
और जैसे ही उसकी पुलिस जिप्सी संजना के फ्लैट की इमारत के सामने पहुंचकर रुकी थी, ठीक उसी वक्त जतिन भागता हुआ सीढ़ियों से नीचे उतरा था। वह उस वक्त बुरी तरह बदहवास हालत में था, और एकाएक वहां पहुंची पुलिस को देखकर और ज्यादा बदहवास हो गया था और बिना कुछ सोचे-समझे ही वहां से भाग खड़ा हुआ था। मगर जिसे मदारी के इशारे पर उसके सिपाहियों ने कामयाब नहीं होने दिया था।
इंस्पेक्टर मदारी को समझते देर नहीं लगी थी कि जरूर अंदर कोई गड़बड़ थी। गुमनाम फोनकर्ता ने उसे गलत खबर नहीं दी थी।
उसकी आंखें सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गई थीं। अपना डमरू बजाता हुआ फ्लैट में अंदर पहुंचा था और फिर वहां का नजारा देखकर उसके साथ-साथ सभी हक्के-बक्के रह गए थे।
मदारी के साथ तीन सिपाही और एक सब इंस्पेक्टर भी आए थे। सब-इंस्पेक्टर का नाम भूषण शर्मा था।
मदारी के साथ-साथ उसने भी खुर्दबीनी से संजना की लाश का मुआयना किया था, फिर वह आग्नेय नेत्रों से वहां मौजूद जतिन को घूरने लगा था।
पहले से ही बुरी तरह हलकान जतिन की सांसें हलक में फंसने लगी थीं। उसने बड़ी मुश्किल से थूक गटककर अपने सूख गए हलक को तर किया था।
“क्या नाम बताया था तूने अपना?” शर्मा जतिन को कहर भरी नजरों से घूरता हुआ बोला।
सहमे जतिन ने उसे अपना नाम बताया।
“क्यों मारा तूने इसे?” उसने पूर्ववत कहर भरी नजरों से उसे घूरते हुए संजना की तरफ इशारा किया।
“म...मैंने इसे नहीं मारा।"
“ठहर जा रस्साले।” शर्मा लाल कपड़ा दिखाए सांड की तरह भड़का “जुर्म करके भागता हुआ रंगे हाथों पकड़ा गया है, फिर
भी झूठ बोलता है।”
"म...मैं सच कह रहा हूं।” जतिन का दम खुश्क होने लगा था। फिर भी वह हौसला जुटाकर पुरजोर विरोधपूर्ण स्वर में बोला “मैंने इसका कत्ल नहीं किया?"
"फिर झूठ।” शर्मा ने अपनी सुर्ख आंखें निकाली। उसका क्रोध बढ़ गया था “खाल खींच लूंगा चमड़ी उधेड़ दूंगा।"
“अरे शर्मा जजमान...।” तभी इंस्पेक्टर मदारी बीच में दखलअंदाज हुआ, जो अपना फौरी मुआयना मुकम्मल कर
चुका था। वह जतिन की तरफदारी करता हुआ बोला “क्यों बच्चे को हलकान कर रहे हो। दोनों एक ही बात होती है।"
“ज...जी।” शर्मा ने चिहुंककर मदारी को देखा। फिर उलझकर पूछा “आपने क्या कहा सर?"
“मैंने कहा कि खाल खींचना और चमड़ी उधेड़ना एक ही बात होती है।"
शर्मा हड़बड़ाया।
“यही मुजरिम है सर।" फिर वह आवेश से बोला “यह रंगे हाथों पकड़ा गया है। मर्डर वैपन भी यहीं मौजूद है। फिर भी
झूठ बोलने की हिमाकत दिखा रहा है।"
“मर्डर वैपन।” मदारी के चेहरे पर असमंजस के भाव आए “मर्डर वैपन यहां कहां मौजूद है जजमान।"
“यही तो है।” उसने कोने में छिटके पड़े संजना के मिनी पिस्टल की तरफ इशारा किया “यहीं तो पड़ा है। यह
देखिए।"
"ये...ये...।” जतिन ने उत्तेजित होकर कहना चाहा। लेकिन मदारी ने हाथ उठाकर उसे बोलने से रोक दिया।
“यह मर्डर वैपन नहीं है शर्मा कीर्तिमान।” मदारी इत्मिनान से बोला “अगर निकल आए तो मैं रिजाइन कर दूंगा।"
शर्मा के चेहरे पर सख्त हैरानी के भाव आए।
“यह आप कैसे कह सकते हैं सर?” उसने चकित होकर पूछा।
“अगर तुमने लाश के जख्म पर जरा भी गौर किया होता तो तुम भी कह सकते थे।"
“जी?"
"तुम जरा एक बार फिर लाश का मुआयना करो और उसके जिस्म पर मौजूद गोली के सुराख को गौर से देखो। वह
अड़तीस कैलीबर से कहीं ज्यादा भारी कैलीबर के रिवॉल्वर से चलाई गई है। जबकि यहां पड़ा वह मिनी पिस्टल बाईस कैलीबर का भी नहीं है।"
“ओह।” बात फौरन शर्मा के भेजे में घुसी। उसके मुंह से स्वतः निकला “ओह ।”
फिर वही हुआ था। शहर के आसमान पर दिन-रात दोनों के प्यार के अफसाने लिखे जाने लगे थे। उन दिनों के सच्चे पवित्र प्यार को देखकर सारा शहर जैसे मुस्करा रहा था। वह केवल होनी थी जो चाहकर भी मुस्करा नहीं सकी थी। क्योंकि केवल वही जानती थी कि उन दोनों नादानों के प्यार का अंजाम क्या होने वाला था।
तभी एकाएक अजय के मोबाइल की घंटी बजने लगी, जिसने उसका ध्यान भंग कर दिया। उसकी विचार शृंखलाएं एक झटके से बिखर गईं। अतीत की एक छोटी सी दौड़ लगाकर वह वापस अपने वर्तमान में लौट आया।
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इंस्पेक्टर मदारी ने बारीकी से कमरे के हर कोने-खुदरे का मुआयना किया। संजना की लाश बिस्तर पर चारों खाने चित्त पड़ी थी और फटी हुई पथराई आंखों से ऊपर लिंटर को घूर रही थी। उसके बाएं वक्ष में मौजूद गोली के सुराख से ढेर सारा खून बहकर उसके कपड़ों तथा बिस्तर पर फैला हुआ था। उसका मिनी पिस्टल एक कोने में छिटका पड़ा था।
बिस्तर पर संजना की लाश के करीब ही टेलीविजन का रिमोट लावारिस सा पड़ा था। टेलीविजन की स्क्रीन ऑफ थी लेकिन नीचे रखा डीवीडी प्लेयर ऑफ नहीं था। उसके समूचे फ्रंट पर झिलमिलाती नीली लाइट और उसके डिस्प्ले पर बदलते अंकों ने मदारी को सहज ही बता दिया था कि उसके अंदर डीवीडी कैसेट मौजूद थी और उस वारदात से ठीक पहले मकतूल और वहां मौजूद जतिन टीवी पर कोई फिल्म देख रहे थे।
"कौन सी फिल्म ?"
जाहिर था कि उसकी डीवीडी तब भी प्लेयर के अंदर मौजूद थी। जतिन हक्का-बक्का सा एक तरफ खड़ा था। दो सिपाही उसके दाएं-बाएं मुस्तैदी से खड़े थे। साफ प्रतीत हो रहा था कि वह पुलिस की गिरफ्त में था। होता भी क्यों नहीं, इंस्पेक्टर मदारी जिस वक्त वहां पहुंचा था लगभग उसी समय जतिन भागता हुआ फ्लैट से बाहर निकला था। अगर मदारी को वहां पहुंचने में एक पल की भी देरी हो जाती तो जतिन वहां से फरार हो जाने वाला था। इसके बावजूद बौखलाए जतिन ने सिपाहियों को ढकेल कर वहां से फरार हो जाने की कोशिश की थी, मगर वह कामयाब न हो सका था।
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इंस्पेक्टर मदारी को एक गुमनाम फोनकर्ता ने वहां उस फ्लैट में होने वाली वारदात की खबर दी थी, जिसके बाद फिर मदारी एक पल भी बैठा न रह सका था। वह अपनी पुलिस टीम को साथ लेकर हवा से बातें करता हुआ वहां पहुंचा था,
और जैसे ही उसकी पुलिस जिप्सी संजना के फ्लैट की इमारत के सामने पहुंचकर रुकी थी, ठीक उसी वक्त जतिन भागता हुआ सीढ़ियों से नीचे उतरा था। वह उस वक्त बुरी तरह बदहवास हालत में था, और एकाएक वहां पहुंची पुलिस को देखकर और ज्यादा बदहवास हो गया था और बिना कुछ सोचे-समझे ही वहां से भाग खड़ा हुआ था। मगर जिसे मदारी के इशारे पर उसके सिपाहियों ने कामयाब नहीं होने दिया था।
इंस्पेक्टर मदारी को समझते देर नहीं लगी थी कि जरूर अंदर कोई गड़बड़ थी। गुमनाम फोनकर्ता ने उसे गलत खबर नहीं दी थी।
उसकी आंखें सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गई थीं। अपना डमरू बजाता हुआ फ्लैट में अंदर पहुंचा था और फिर वहां का नजारा देखकर उसके साथ-साथ सभी हक्के-बक्के रह गए थे।
मदारी के साथ तीन सिपाही और एक सब इंस्पेक्टर भी आए थे। सब-इंस्पेक्टर का नाम भूषण शर्मा था।
मदारी के साथ-साथ उसने भी खुर्दबीनी से संजना की लाश का मुआयना किया था, फिर वह आग्नेय नेत्रों से वहां मौजूद जतिन को घूरने लगा था।
पहले से ही बुरी तरह हलकान जतिन की सांसें हलक में फंसने लगी थीं। उसने बड़ी मुश्किल से थूक गटककर अपने सूख गए हलक को तर किया था।
“क्या नाम बताया था तूने अपना?” शर्मा जतिन को कहर भरी नजरों से घूरता हुआ बोला।
सहमे जतिन ने उसे अपना नाम बताया।
“क्यों मारा तूने इसे?” उसने पूर्ववत कहर भरी नजरों से उसे घूरते हुए संजना की तरफ इशारा किया।
“म...मैंने इसे नहीं मारा।"
“ठहर जा रस्साले।” शर्मा लाल कपड़ा दिखाए सांड की तरह भड़का “जुर्म करके भागता हुआ रंगे हाथों पकड़ा गया है, फिर
भी झूठ बोलता है।”
"म...मैं सच कह रहा हूं।” जतिन का दम खुश्क होने लगा था। फिर भी वह हौसला जुटाकर पुरजोर विरोधपूर्ण स्वर में बोला “मैंने इसका कत्ल नहीं किया?"
"फिर झूठ।” शर्मा ने अपनी सुर्ख आंखें निकाली। उसका क्रोध बढ़ गया था “खाल खींच लूंगा चमड़ी उधेड़ दूंगा।"
“अरे शर्मा जजमान...।” तभी इंस्पेक्टर मदारी बीच में दखलअंदाज हुआ, जो अपना फौरी मुआयना मुकम्मल कर
चुका था। वह जतिन की तरफदारी करता हुआ बोला “क्यों बच्चे को हलकान कर रहे हो। दोनों एक ही बात होती है।"
“ज...जी।” शर्मा ने चिहुंककर मदारी को देखा। फिर उलझकर पूछा “आपने क्या कहा सर?"
“मैंने कहा कि खाल खींचना और चमड़ी उधेड़ना एक ही बात होती है।"
शर्मा हड़बड़ाया।
“यही मुजरिम है सर।" फिर वह आवेश से बोला “यह रंगे हाथों पकड़ा गया है। मर्डर वैपन भी यहीं मौजूद है। फिर भी
झूठ बोलने की हिमाकत दिखा रहा है।"
“मर्डर वैपन।” मदारी के चेहरे पर असमंजस के भाव आए “मर्डर वैपन यहां कहां मौजूद है जजमान।"
“यही तो है।” उसने कोने में छिटके पड़े संजना के मिनी पिस्टल की तरफ इशारा किया “यहीं तो पड़ा है। यह
देखिए।"
"ये...ये...।” जतिन ने उत्तेजित होकर कहना चाहा। लेकिन मदारी ने हाथ उठाकर उसे बोलने से रोक दिया।
“यह मर्डर वैपन नहीं है शर्मा कीर्तिमान।” मदारी इत्मिनान से बोला “अगर निकल आए तो मैं रिजाइन कर दूंगा।"
शर्मा के चेहरे पर सख्त हैरानी के भाव आए।
“यह आप कैसे कह सकते हैं सर?” उसने चकित होकर पूछा।
“अगर तुमने लाश के जख्म पर जरा भी गौर किया होता तो तुम भी कह सकते थे।"
“जी?"
"तुम जरा एक बार फिर लाश का मुआयना करो और उसके जिस्म पर मौजूद गोली के सुराख को गौर से देखो। वह
अड़तीस कैलीबर से कहीं ज्यादा भारी कैलीबर के रिवॉल्वर से चलाई गई है। जबकि यहां पड़ा वह मिनी पिस्टल बाईस कैलीबर का भी नहीं है।"
“ओह।” बात फौरन शर्मा के भेजे में घुसी। उसके मुंह से स्वतः निकला “ओह ।”