Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज

desiaks

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Aug 28, 2015
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ठहाकों के बाद आवाज गूंजी ---- " देखा इस्पक्टर ! देखा ? इसे कहते हैं चमत्कार ! अपने अगले शिकार की हत्या मैंने तेरे हाथों से करा दी । सबके सामने करा दी । और करना क्या पड़ा मुझे ? सिर्फ तेरे रिवाल्वर से छेड़छाड़ ! उसमें तेरे द्वारा डाली गयीं नकली गोलियां निकालकर असली गोलियां डालना कितना आसान था । मुझे पकड़ने के लिए साजिश रचने चला था । मुझे पकड़ने के लिए गुल्लू को मृत घोषित करके उसे मेरी खोज में लगाना चाहता था । चाल तो अच्छी सोची तूने ! आदमी खुद को जिन्दा लोगों की नजरों से छुपाने का प्रयत्न करता है , मरे हुए लोगों की नजरों से नहीं ! तेरी चाल कामयाब हो जाती तो मुमकिन है गुल्लू के हाथ मेरे नकाब तक पहुंच जाते । मगर देख ---- वो बेचारा तो खुद मरा पड़ा है । सचमुच मर गया वह।


इस उपन्यास के लिखे गए हर शब्द के पीछे मि . चैलेंज छुपा है , इसके बावजूद वेद प्रकाश शर्मा का दावा है कि मेरा कोई भी पाठक अंतिम पृष्ट पढ़ने से पूर्व मि . चैलेंज को नहीं पहचान सकता ! दावे में कितना दम है , इसे आप उपन्यास पढ़ना शुरू करके खुद जान सकते है ।​
 
जब मै लेखक नहीं था . आपकी तरह केवल एक पाठक था , तब मर्डर मिस्ट्री वाले उपन्यास बहुत पसंद करता था , परन्तु उन उपन्यासों का ' अंत ' पढ़कर अक्सर झुंझला उठता था । कारण था ---- अंत में लेखक द्वारा किसी भी ऐसे किरदार को अपराधी बता देना जिसका मुख्य कहानी से कुछ लेना - देना नहीं होता था । अन्त में एक नई ही कहानी पाठकों को पढ़ा दी जाती थी ! उस वक्त मैं सोचता --- यह तो लेखक द्वारा पाठकों को बेवकूफ बनाना हो गया । जब कहीं कोई ' क्लू ' ही नहीं छोड़ा गया । असली कहानी ही कुछ और थी तो पाठक अपराधी को पहचानता कैसे ? केवल चौंकाने की गर्ज से लेखक द्वारा किसी ऐसे किरदार को अपराधी खोल देना मुझमें हमेशा खीझ भर देता था जिसके खिलाफ उपन्यास में कहीं कोई इशारा तक न किया गया हो । मैं नहीं चाहता वह खीझ आपमें पैदा हो । भरपूर तौर पर कोशिश मेरी भी यही रहती है कि जब अपराधी खुले तो पाठक चौंके परन्तु खिंझे नहीं । अंत पढ़कर उन्हें लगे ---- ' हा . उपन्यास में जगह - जगह ऐसे पॉइंट छोड़े गए हैं जिन पर ध्यान देने पर अपराधी को पहचाना जा सकता था , नहीं पहचान पाये तो ये हमारी चूक है । जो पकड़ लेते है , उन्हें खुशी होती है कि हां , हमने उपन्यास ध्यान से पढ़ा है । तो मि ० चैलेंज को ध्यान से पढ़ें ! अपराधी की तरफ इशारे किए गए हैं , क्लू छोड़े गए हैं । अगर आप रहस्य खुलने से पहले रहस्य को पकड़ सके तो मुझे खुशी होगी । आप उसी प्यार , विश्वास और सहयोग का इच्छुक जो पैंतीस साल से लगातार मिल रहा है । वहीं मेरी असली ताकत है ।
 
दिन निकलते ही मैं लेखन - कक्ष में बंद हो जाता । सूरज ढलने पर बाहर निकलता तो चेहरा लटका हुआ होता , दिमाग पर सवार होती थी ---- अजीब सी झुंझलाहट । कारण ? पिछले तीन दिन से मैं मि ० चैलेंज लिखने की कोशिश कर रहा था , परन्तु शुरू नहीं कर पा रहा था । ऐसा नहीं कि दिमाग में कोई प्लाट ' न था । प्लॉट एक नहीं कई थे । और शायद मेरी असली समस्या भी यही थी । निश्चय नहीं कर पा रहा था उन कई प्लाटस में से किस पर मि ० चैलेंज के कथानक की इमारत खड़ी करू । कक्ष का दरवाजा खुला । आहट बहुत हल्की थी , इसके बावजूद मेरी तंद्रा भंग कर गयी । पलकें उठाकर देखा । दरवाजे पर मधु खड़ी थी ! मेरी पत्नी । होठों पर मुस्कान , हाथों में शाम का अखबार । उसकी मुस्कान के जवाब में मुस्करा नहीं सका मैं । दिमाग पर चिड़चिड़ाहट सवार थी परन्तु जानता था , वह बगैर ' एमरजेंसी " के मुझे डिस्टर्ब नहीं कर सकती थी । अतः स्वयं को नियंत्रित रखकर पूछा ---- " क्या बात है ? " "

अखबार लाई हूँ । " उसके होठों पर शरारत नाच रही थी । मेरे दिमाग का मानो फ्यूज उड़ गया । लगभग ' गुर्रा ' उठा मैं--- " मधु , क्या तुम नहीं जानती जब मै लिख रहा होता हूँ तो अखबार नहीं पड़ता । " "
देखू तो सही , क्या लिख रहे है जनाब ? " कहती हुई वह अपने करेक्टर के विपरीत आगे बढ़ी और मेज से कोरा कागज उठाकर मेरी आंखों के सामने नचाती बोली --.- " तो ये है चार दिन की सिरखपाई का फल ? " "

ओफो मधु , तुम्हें कैसे समझाऊं कि ... " समझने की जरूरत मुझे नहीं , आपको है पतिदेव । " " मतलब ? " मैंने उसे घुरा । " अच्छा लिखने के लिए अखबार पढ़ते रहना जरूरी है । " " मधु ,क्या पहेलियां बुझा रही हो तुम ? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।
 
करेक्ट ! " वह उचककर मेरे सामने टेबल पर बैठ गई ---- " पहेली ही पूछने आई हूं ! अगर एक लड़की का मर्डर हो और मरने से पहले वह चैलेंज ' शब्द लिख जाये तो क्या मतलब हुआ उसके इस अंतिम हरकत का ? " " क्या तुम मुझे मि ० चैलेंज की कहानी बताने आई हो ? " " बात अगर जंची , तो इस उपन्यास की रायल्टी मेरी । " रायलटी तो मैं सभी उपन्यासों की तुम्हें सौंपता आया हू देवी जी मगर , बेसिर - पैर की बकवास पर उपन्यास नहीं लिखा जा सकता ।

साइक्लोजी कहती है मर्डर हुए व्यक्ति को यदि मरने से पूर्व कुछ लिखने का मौका मिल जाये तो सबसे पहले हत्यारे का नाम लिखेगा । नाम नहीं जानता होगा तो हत्या की वजह लिखेगा । ' चैलेंज ' जैसा , निरर्थक शब्द ' मरने वाला ' कभी नहीं लिख सकता । " आपकी सभी दलीलों की हवा निकालने के लिए पेश है ये अखबार । " कहने के साथ मधु ने अखबार खोलकर मेरी आंखों के सामने लहरा दिया । नजर हैडिंग पर चिपकी रह गई ---- आई.ए.एस. कालिज में हत्या मरने वाली ने CHALLENGE लिखा । मैंने मधु के हाथ से इस तरह अखबार झपटा जैसे भूखे ने रोटी झपटी हो । जल्दी - जल्दी खबर पढ़नी शुरू की ।
 
लिखा था ---- मेरठ , 10 नवम्बर । आज दिन - दहाड़े हजारों आंखों के सामने आई.ए.एस. कॉलिज की लोकप्रिय प्रोफेसर कुमारी सत्या श्रीवास्तव की हत्या कर दी गयी मगर , एक भी आंख हत्यारे को नहीं देख सकी । घटना सुबह नौ बजे की है । सत्या श्रीवास्तव आई.ए.एस. कालिज में इंग्लिश की प्रोफेसर थीं । कहते हैं कालिज में स्टूडेन्ट्स के दो ग्रुप है । इनमें से एक ग्रुप को प्रिंसिपल महोदय का वरदहस्त प्राप्त है । यह ग्रुप छोटा परन्तु आवारा किस्म के स्टुडेन्ट्स का है । इस ग्रुप का लीडर का नाम चन्द्रमोहन बताया जाता है । कहते है कालिज के ज्यादातर स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर प्रिंसिपल से चन्द्रमोहन का ' रैस्टीकेशन ' करने की मांग कर रहे थे । परन्तु प्रिसिपल महोदय ने ध्यान नहीं दिया । इस मांग का नेतृत्व सत्या श्रीवास्तव कर रही थीं । आज सुबह साढ़े आठ बजे कालिज प्रांगण में एक मीटिंग होने वाली थी । उसमें विचार किया जाना था कि प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन को कालिज से नहीं निकालते हैं तो क्या किया जाये ? सबा आठ बजे से स्टूडेन्टर और प्रोफेसर्स इकट्ठा होना शुरू हो गये । साढ़े आठ बजे तक लगभग सभी लोग कैम्पस में पहुंच चुके थे । मगर सत्या आठ पैतीस तक भी उन लोगों के बीच नहीं पहुंची । स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स में बेचैनी फैलने लगी । कुछ स्टूडेन्ट्स सत्या को देखने हॉस्टल में स्थित उसके कमरे में गये । सत्या वहां भी नहीं थी ।

बेचैनी सवालिया निशानों में तब्दील होने लगी । सत्या को सारे कॉलिज में तलाश किया जाने लगा । उस वक्त हर दिमाग में केवल यही एक सवाल था --- खुद मिटिंग कॉल करके सत्या आखिर चली कहां गयी ? अचानक कैम्पस में मौजूद हजारों कानों ने एक जोरदार चीख की आवाज - सुनी । बदहवास आखें ऊपर की तरफ उठी । कालिज के टैरेस पर सत्या नजर आई । वह लहुलुहान थी । चीख रही थी । अगले पल उसका जिस्म रेस पर लगा रेलिंग तोड़कर हवा में लहरा उठा । एक लम्बी चीख के साथ यह कैम्पस की तरफ आई । वहां मौजूद भीड चीखो के साथ पलक झपकते ही ' काई की तरह फट गयी ! सत्या ' धम्म ' से प्रांगण की कच्ची जमीन पर गिरी । सभी दहशतजदा और हकबकाये हुए थे । एक बार गिरने के बाद सत्या ने उठने की कोशिश की , परन्तु लड़खड़ाकर पुनः गिर गई । स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स की भीड़ कर्तव्यविमूढ़ अवस्था में उसे देख रही थी और फिर अपनी अंगुली की नोंक से सत्या ने प्रांगण की जमीन पर कुछ लिखा । लिखने के बाद दम तोड़ दिया । भीड़ की तंग्रा भंग हुई । कुछ स्टूडेन्ट्स लाश की तरफ लपके । कुछ टैरेस की तरफ ! हत्यारा किसी को नजर नहीं आया । सत्या ने प्रांगण की जमीन पर लिखा है ---- CHALLENGE
 
इस अनोखे शब्द का मतलब किसी की समझ में नहीं आ रहा है । हमारे संवाददाता ने जब केस के इन्वेस्टिगेटर इंस्पेक्टर जैकी से बात की तो उन्होंने केवल इतना कहा ---- " हत्यारे अक्सर हम लोगों को चैलेज देते रहे हैं मगर मृतक द्वारा इस शब्द के इस्तेमाल की यह पहली घटना है । अभी तक मैं कुछ नहीं समझ पाया हूँ।

खबर पढ़ते ही मेरे जिस्म चीटियां सी रेंग गई । जहन में विस्फोट सा हुआ ---- ' क्यों न इस बार मैं सत्य घटना पर उपन्यास लिखू ? ' मुझे मि ० चैलेंज लिखना है और .... मेरे अपने शहर में एक लड़की चैलेंज शब्द लिखकर मर गई है । कैसा अनोखा संयोग है ? मुझे इस मर्डर की तह में जाना चाहिए । मुमकिन है उन सभी कथानकों से बेहतर कथानक हाथ लगे जो लिखने के लिए मेरे जहन में उमड़ रहे हैं । इन्हीं सब विचारों से ग्रस्त मैंने मधु की तरफ देखा । उसने शरारती अंदाज में आंख मारी । मै सकपकाया । उसने कहा ---- " कहिए जनाब ? कैसी रही ? " " मधु ! " मैंने कहा ---- " यह कथानक मि ० चैलेंज के लिए जबरदस्त साबित हो सकता है । " "

ऐसे ही थोड़ी अखबार हाथ में लिए यहाँ घुस आई ? " पूरे मूड में मधु कहती चली गयी ---- " खबर पर नजर पड़ते ही चौंकी ! पड़ी ! सोचा सत्या चैलेंज लिखकर मर गयी और हमारे सैंया मि ० चैलेंज लिखने के लिए मरे जा रहे हैं ... ? दोनों घटनाओं के तार जोड़ दिये जायें तो करेंट जरूर पैदा होगा । उस करेंट को इस वक्त मैं आपके थोबड़े पर देख रही है । " " सच मधु .... सच ! " खुशी की ज्यादती के कारण मैं खुद पर काबू न रख सका । झपटकर बांहों में भर लिया उसे , बोला ---- " तुम ग्रेट हो । हमेशा मेरी ही प्राब्लम हल करने में लगी रहती हो । मुझे पूरा यकीन था वगैर बडी बात के तुम मुझे डिस्टरब नहीं कर सकतीं । "

करेंट कुछ ज्यादा ही आ गया लगता है कहने के साथ उसने खुद को मेरी बाहों से मुक्त कर लिया । बोली ---- " उस पहेला का क्या हुआ जो मरने वाली कॉलिज प्रांगण में जमीन पर लिख गई है ? क्या आप बता सकते हैं सत्या ने चैंलेज क्यों लिखा ? क्या मरने वाला खुद कहना चाहती है कि मेरे हत्यारे का पता लगाओ तो जानूं ? " " ऐसा है तो बड़ी अजीब बात होगी ये । " क्राइम के उपन्यास लिखने वाला मेरा दिमाग सक्रिय हो उठा। आंखे शून्य में स्थिर हो गयी । बड़बड़ा उठा---- " मेरे ख्याल से इस बंद कमरे में कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाते रहने से मेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा , बाहर निकलना होगा । एक सुलझे हुए जासूस की तरह इन्वेस्टिगेशन करनी होगी । " " मैं भी यही कह रही हू जनाब ! " मधु के होठो पर मुस्कान थी ---- " मि ० चैलेंज आपको कमरे में बैठकर नहीं , फील्ड में उत्तरकर लिखना चाहिए । " और मैं फील्ड में उतर पड़ा ।
 
सबसे पहले थाने पहुँचा। हट्टे - कटटे इंस्पैक्टर जैकी से मिला । अपना परियय दिया । मुझसे मिलकर उसने खुशी जाहिर की । हाय ---- " मैंने आपके ज्यादा तो नहीं परन्तु कुछ उपन्यास जरूर पढे हैं । " मैंने आने का कारण बताया तो जैकी के पतले होठों पर मुस्कान फैल गयी । बोला ---- “ अच्छा विचार है आपका ! पाठकों को कुछ नया मिलेगा । " " तुम्हारे ख्याल से सत्या ने ऐसे क्यों लिखा ? " " यह गुत्थी सुलझ जाये तो हत्यारे का पता लग जाये । " " नाम तो किसी का चैलेंज हो ही नहीं सकता । " मैंने कहा ---- " लेकिन .... क्या तुमने मालूम किया , कॉलिज में ऐसा कोई शख्स तो नहीं जिसे चैलेंज शब्द के उपनाम से पुकारा जाता हो ? " " मै समझा नहीं " " कई बार ऐसा होता है ---- मजाक में या किहीं और कारणों से लोगों के उपनाम पड़ जाते है और फिर , ज्यादातर लोग उसे उसके वास्तविक नाम की जगह उपनाम से पुकारने लगते हैं । " " गुड ! " जैकी कह उठा ---- " अच्छा पॉइंट है । मैंने इस एंगल से नहीं सोचा । " तब तो इस एंगल से पूछताछ भी नहीं की होगी । क्यों न हम कॉलिज चलकर पता लगाने की कोशिश करे ? " होठो पर मुस्कान लिए जैकी ने कहा ---- " समझ सकता हूँ ---- जब इन्वेस्टिगेटर बनकर आप निकल ही पड़े हैं तो घटनास्थल का निरीक्षण जरूर करना चाहेंगे । मगर उससे पहले आपको कुछ ऐसी बातें बता दूं जो अखबार में नहीं छपी । " " जैसे ? " "

चन्द्रमोहन को गिरफ्तार कर लिया है । " " कौन चन्द्रमोहन ? " " आपने अखबार में पढ़ा होगा । कालिज में स्टूडेन्ट्स के दो ग्रुप है । " " हाँ.... याद आया । " मै उसकी बात बीच में काटकर बोला -... " चन्द्रमोहन शायद वहीं लड़का है जिसके रेस्टिकेशन के मसले पर मीटिंग बुलाई गई थी । उसे किस बेस पर गिरफ्तार कर लिया तुमने ? " " जब मै घटनास्थल पर पहुंचा तो ज्यादातर स्टूडेन्टस और प्रोफेसर्स उत्तेजित अवस्था में चीख - चीखकर उसे सत्या का हत्यारा बता रहे थे । " मैंने चकित स्वर में कहना चाहा ---- " और तुमने केवल उनके करने पर .... " नहीं ऐसा कोई इंस्पैक्टर नहीं कर सकता । " " फिर चन्द्रमोहन की गिरफ्तारी की वजह ? " " मैंने सारे कॉलिज और हास्टिल की तलाशी ली थी । चन्द्रमोहन के कमरे से उसके बेड पर तकिये के नीचे रखा खून से लथपथ वह चाकू मिला जिससे हत्या की गई है । " " ओह ! इतना बड़ा सुबुत ? " जैकी की मुस्कान गहरी हो गयी । बोला ---- " मगर मै दावे के साथ कह सकता हूँ---- कातिल वह नहीं है ।
 
इस केस में अपने उपन्यास के लिए आपके हाथ भरपुर मसाला लगने वाला है । " " मेरे साथ आइए । " कहने के बाद वह कुर्मी मे खड़ा हो गया । मुझे भी खड़ा होना पड़ा । हाथ में रूल लिए जैकी लम्बे - लम्बे कदमों के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ा । ' मैं पीछे लपका । दिमाग में रह - रहकर सवाल कौंध रहा था कि वह क्या दिखाना चाहता है ? जैकी मुझे लॉकअप में ले गया । वहां का दृश्य देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गयी । बीस - बाइस बरस का एक लड़का लींटर में लगे कुंटे के साथ रस्सीयों से जकड़ा उल्टा लटका हुआ था । उसका जिस्म लहुलुहान था । कपड़े जगह - जगह से फटे हुए थे । मैं समझ सफता था ---- जैकी ने उसे थर्ड डिग्री से गुजारा है । जैकी पर नजर पड़ते ही उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे कसाई को देखकर बकरे के चेहरे पर उभरते है । मिमिया उठा बह --- " म - मुझे और मत मारना इस्पेक्टर साहब ! जो जानता था ... बता चुका हूँ । कह चुका हूँ ... वही करूगा जो आपने कहा है । " " ध्यान से देख इन्हें ! " जैकी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा ---- " और पहचान । " उल्टे लटके लड़के ने सहमकर मुझे देखा । " पहचाना ? " जैकी ने गुर्राकर पुछा। " स - सारी ! म मै इन्हें नहीं जानता । " और मुझे न जानना जैसे कोई गुनाह था । जैकी के हाथ में दबा रूल ' सांय की आवाज के साथ घूमा । लड़का डकरा उठा । रूल का निशान उसकी पीठ पर पड़ता चला गया । " इन्हें नहीं जानता साले ! ये हिन्दुस्तान के सबसे ज्यादा विकने वाले लेखक हैं । अपने नये उपन्यास के कथानक की तलाश में . इस . केस की इन्वेस्टिगेशन के लिए निकले हैं । " " प्लीज इंस्पैक्टर ! " मै चन्द्रमोहन के कुछ बोलने से पहले कह उठा---- " मेरे सामने यह सब मत करो ! किसी का मुझे न जानना अपराध नहीं है । " " आप नहीं समझ सकते । " जैकी इस तरह हंसा जैसे मेरी अवस्था पर तरस खा रहा हो ---- " अगर निचोड़े कपड़े से पानी नही निकलता । इस मामले में काफी बदनाम हूँ मैं । बड़े - बड़े घुटै खुर्राट मुजरिमों से राज उगलवाये हैं । एक बार मेरे चंगुल में फंसा पत्थर भी सच उगले बगैर नहीं हट सकता । ये बेचारा तो है क्या चीज ! सुबह से इसी हालत में है । काफी खातिरदारी कर चुका हूँ । एक ही बात बके जा रहा है .--- ' सत्या की हत्या मैने नही की और अब .... अपने एक्सपीरियंस के बेस पर कह सकता हूं ---- हत्यारा ये नहीं है । "
 
मैंने पूछा ---- ' तो खून सना चाकू ? " " पता नहीं किसने मेरे तकिये के नीचे रख दिया .... " रोते कलपते चन्द्रमोहन ने कहा । मैंने जैकी से पूछा ---- " क्या तुम भी इसी ढंग से सोच रहे हो ? " " कह चुका हूं ---- इस हालत में यह झूठ नहीं बोल सकता । " " फिर ये टार्चर बंद क्यों नहीं करते ? " " हवलदार का इंतजार है । " जैकी ने कहा ---- " वह फिंगर प्रिन्ट्स डिपार्टमेंट में गया है । मुझे पूरा यकीन है ---- चाकू की मुठ पर इसकी अंगुलियों के निशान नहीं होंगे । " " हवलदार हाजिर है सर । " लाकअप के दरवाजे से आवाज उभरी ---- " आपका यकीन चौबीस कैरेट के सोने की तरह खरा है । चाकू पर इसकी अंगुलियों के निशान नहीं हैं । " हम दोनों ने पलटकर दरवाजे की तरफ देखा। वह धुलथुल तोंद वाला ऐसा हवलदार था जो शक्ल से ही कामेडियन नजर आता था । अपने हाथ में एक कागज लिए बढा और जैकी के नजदीक पहुंचा । जैकी ने कागज लेते हुए पूछा---- " किसके निशान है ? "

किसी के नहीं । " हवलदार ने कहा ---- " रिपोर्ट में लिखा है -- निशान मिटा दिये गये । जैकी ने हवलदार को हुक्म दिया ---- " लड़के को सीधा करके कुर्सी पर बिठाओ । " हवलदार को मानो पसंदीदा हुक्म मिल गया था । वह स्टूल पर खड़ा होकर चन्द्रमोहन के बंधन खोलने लगा । जैकी ने मुझसे पूछा ---- " क्या आपको ये लड़का कुसूरवार लगता है ? " मुझे क्योंकि इंस्पेक्टर को क्रास करना था , इसलिए कहा ---- " मुमकिन है चाकू रखने से पहले इसी ने निशान साफ किये हो ? " " अगर उस वक्त इसका दिमाग इतना काम कर रहा था तो यह भी सोचना चाहिए था कि चाकू अपने नहीं , किसी और के कमरे में छुपाना चाहिए । " चाहकर भी क्रॉस करने के लिए मुझे तर्क न मिला । अतः चुप रहा ।

" ये वो बात है जो खुद को बचाये रखने के लिए हत्यारे ने सोची । " जैकी कहता चला गया ---- " उसने चाकू से अपने निशान मिटाये । उसे किसी और के .... बल्कि उसके कमरे में रखा जिस पर सबको सत्या का हत्यारा होने का शक होना ही होना था । " " सबका शक चंद्रमोहन पर होने का कारण ? " " इस सवाल का जवाब कालिज पहुंचने पर आपको खुद मिल जायेगा।
 
मैं चुप रहा।
उधर, जैकी की बातें सुनकर चन्द्रमोहन की रुकी हुई सांसें मानो पुनः चलने लगीं। हवलदार उसे सीधा करके लॉकअप में पड़ी एकमात्र कुर्सी पर वैठा चुका था।

होशो-हवास काबू में आते ही चन्द्रमोहन ने कहा----“मैंने तो पहले ही कहा था इंस्पैक्टर
साहव कि....
"शटअप!" गुर्राता हुआ जैकी कुर्सी की तरफ झपटा। दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़कर गुर्राया---"अगर कॉलिज में रिपोर्ट के बारे में किसी से कहा तो चमड़ी उधेड़ कर रख दूंगा।"

चन्द्रमोहन सहम गया। मुंह से बोल न फूट सका।
"गौर से मेरी बात सुन!" चेहरे पर आग लिए जैकी कहता चला गया----
-"जहां ये बात सच है कि तूने हत्या नहीं
की -वहीं यह बात, इससे भी बड़ा सच है कि कोई तुझे फंसाना चाहता है।

जाहिर है, वहीं हत्यारा होगा! बोल----तेरे ख्याल से, तुझे फंसाने की कोशिश कौन कर सकता है?"

"यह कोशिश राजेश की हो सकती है। संजय भी कर सकता है। या उनके ग्रुप का कोई और स्टूडेन्ट भी हो सकता है। सव साले दुश्मनी रखते हैं मुझसे।"
"इनमें से कोई सत्या की हत्या क्यों करेगा? ये सब तो उसी के ग्रुप के थे।"
"मुमकिन है अंदरखाने किसी की....
"तिगड़में मत जोड़। कोई ठोस कारण बता।"
चन्द्रमोहन चुप रह गया।
जैकी ने कहा----“कुछ देर बाद मैं तुझे कॉलिज छोड़कर आऊंगा। सवसे साफ-साफ कहूंगा कि तू कातिल नहीं है! समझ रहा
है न?"
चन्द्रमोहन ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।
 
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