Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात - Page 4 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात

आधा घण्टे बाद ही चट्टान सिंह, डॉली को लेकर वहाँ आ गया ।
पुलिस स्टेशन में दाखिल होते ही डॉली की नजर राज की नाजुक हालत पर पड़ी ।
उसके तार-तार हुए कपड़े, गालों पर सुख चुके आंसू, बिखरे हुए बाल और चेहरे से टपकती मनहूसियत ।
वह सब बातें राज के साथ हुए जुल्म की चीख-चीखकर गवाही दे रही थीं ।
डॉली का दिल रो पड़ा ।
खुद राज भी तड़पकर रह गया था ।
उसे ऐसा लगा, मानो डॉली की आंसुओं से छलछलाई आंखें उससे कह रही हैं- “मैं तेरे से पहले ही कहती थी न राज, इस चक्कर में मत पड़, मत पड़ । फंस जायेगा । लेकिन नहीं, तब तो दौलत ने तेरी आंखों पर लालच की पट्टी बांध दी थी, तब तो तुझे अपनी किस्मत के बंद कपाट खुलते नजर आ रहे थे, तब तो तुझे ऐसा लग रहा था- मानो साक्षात् लक्ष्मी तेरे दरवाजे पर खड़ी दस्तक दे रही है ।”
राज सिसककर रह गया ।
उसके दिल ने चाहा, वह डॉली से चीख-चीखकर माफी मांगे ।
वह वाकई गलती पर था ।
उससे सचमुच भयंकर भूल हुई थी ।
लेकिन वो कैसे कहता ?
उसकी जबान को तो उस पल लकवा मार गया था ।
“तुम्हारा ही नाम डॉली है ?” तभी इंस्पेक्टर योगी, डॉली से सम्बोधित हुआ ।
“जी...जी हाँ ।”
“तुम्हें यह तो मालूम ही होगा ।” योगी शालीन शब्दों का प्रयोग करता हुआ बोला- “कि हमने राज को यहाँ किस अपराध में पकड़कर रखा है ? इसलिये उन सब बातों को दोहराने से कोई फायदा नहीं । दरअसल तुम्हें यहाँ इसलिये बुलाया गया है, क्योंकि इन सब-इंस्पेक्टर महोदय ने !” योगी ने फ्लाइंग स्क्वॉयड के सब-इंस्पेक्टर की तरफ इशारा किया- “बुधवार की रात राज की ऑटो रिक्शा को मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर रोका था । इन सब-इंस्पेक्टर महोदय का कहना है कि उस वक्त राज की ऑटो रिक्शा में एक लड़की भी थी, जिसे यह पेट से बता रहा था । तुम्हें सिर्फ एक सवाल का जवाब देना है और सच-सच देना है, क्या वो लड़की तुम थीं ?”
डॉली ने सकपकायी-सी नजरों से राज की तरफ देखा ।
“तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा ।” योगी बोला- “जो बात है, बेहिचक बताओ । हम तुम्हें सरकारी गवाह बना लेंगे ।”
राज ने आहिस्ता से डॉली की तरफ इंकार में गर्दन हिलाई ।
“साले !” बल्ले चिल्ला उठा- “लड़की को बहकाता है, उसे झूठ बोलने के लिए कहता है । तेरी तो... ।”
“गाली नहीं ।” योगी ने उसे बीच में ही घुड़क दिया- “गाली नहीं बल्ले- किसी भी लड़की के सामने गाली नहीं चलेगी ।”
“मगर यह लड़की को बहका रहा है साहब !” बल्ले धधकते स्वर में बोला- “आंखों-ही-आंखों में उसे मना करने के लिये बोल रहा है ।”
“मुझे सब मालूम है, सब दिख रहा है मुझे ।” योगी, राज को आग्नेय नेत्रों से घूरता हुआ फुंफकारा- “इसका मैं बाद में इंतजाम करूंगा, पहले लड़की से सवाल-जवाब कर लूं ।”
बल्ले तिलमिलाकर रह गया ।
“देखो डॉली !” योगी, डॉली के साथ पुनः बड़ी शालीनता से पेश आया- “मुझे सच-सच बताओ, बुधवार की रात तुम राज के साथ थीं या नहीं ? कुछ भी बोलने से पहले एक बात का खास ख्याल रखना, पुलिस से कोई भी बात छिपाना संगीन जुर्म होता है- जिसे कानून की जबान में ‘कंसीलमेंट ऑफ फैक्ट्स’ कहा जाता है, इस जुर्म को करने पर सख्त-से-सख्त सजा हो सकती है । इसलिये जो भी बात कहना, सोच-समझकर कहना । अब बताओ, तुम इसके साथ थीं या नहीं ?”
“मैं नहीं थी ।” डॉली बेहिचक बोली ।
“सच कह रही हो ?”
“मैं बिल्कुल सच कह रही हूँ ।” डॉली की आवाज दृढ़ हो उठी ।
“एक बार फिर सोच लो । मैं तुम्हें फिर वार्निंग देता हूँ कि अगर तुम्हारा झूठ पकड़ा गया, तो कानून को गुमराह करने के ऐवज में तुम्हें बड़ी सख्त सजा दी जा सकती है ।”
“मुझे जो कहना था, मैंने कह दिया ।” डॉली थोड़ा झल्लाकर बोली- “मैं अगर बुधवार की रात राज के साथ नहीं थी, तो नहीं थी । दुनिया की कोई ताकत मुझसे जबरदस्ती कुछ भी नहीं कबूलवा सकती ।”
इंस्पेक्टर योगी हैरानी से डॉली को देखता रह गया ।
☐☐☐
फिर डॉली चली गयी ।
परन्तु वह रात राज के लिये कहर की रात साबित हुई ।
दिन भर तो योगी ने उससे कुछ भी न कहा, लेकिन रात होते ही वह उसके ऊपर वज्र की तरह टूट पड़ा ।
सारे दिन का भूखा-प्यासा था राज !
फिर ऊपर से वो भयानक प्रताड़ना ।
उसे टॉर्चर-रूम में उल्टा लटका दिया गया ।
लात-घूंसों से बेपनाह मारा ।
भारी-भरकम लोहे के रूलों से उसकी पिण्डलियों को रौंदा ।
राज चीखता रहा, चीखता रहा ।
लेकिन इंस्पेक्टर योगी उस रात अपनी मर्जी के मुताबिक उससे एक भी शब्द न कबूलवा सका, उस रात राज ने पहली बार अपनी दृढ़ता का परिचय दिया, इस बात का परिचय दिया कि एक आम आदमी भी फौलाद हो सकता है ।
उसकी हृदयविदारक चीखें पुलिस स्टेशन की दीवारों को दहलाती रहीं ।
वह हिचकियां ले-लेकर रोता रहा ।
न जाने कब तक इंस्पेक्टर योगी का कोप उस पर बरसा ।
कब तक कहर टूटा ।
यह खुद राज को भी मालूम न था ।
लेकिन हाँ, उसे सिर्फ इतना मालूम था कि जब इंस्पेक्टर योगी उसे मारते-मारते बुरी तरह थक गया, तो उसने आवेश में उसे दोनों बाजुओं में भरकर सिर से ऊपर उठा लिया तथा फिर उसे धड़ाम से नीचे पटक डाला ।
राज के कण्ठ से एक अत्यन्त कष्टदायक चीख निकली ।
फिर उसकी चेतना लुप्त होती चली गयी ।
अगला दिन बड़ा महत्वपूर्ण था- इंस्पेक्टर योगी ने एफ.आई.आर. (प्राथमिक सूचना रिपोर्ट) के आधार पर राज को लोअर कोर्ट में पेश कर दिया ।
☐☐☐
कोर्ट की दर्शक दीर्घा उस दिन दर्शकों से खचाखच भरी थी ।
राज विटनेस बॉक्स में खड़ा था ।
इंस्पेक्टर योगी ने रात भर उसकी ऐसी जमकर धुनाई की थी कि इस समय तो शक्ल-सूरत से ही कोई चोर-उचक्का मालूम दे रहा था । आंखों के पपोटे सूज-सूजकर मोटे हो गये थे, पूरे शरीर पर दर्जनों जगह खरोंच के निशान थे, शेव बढ़ी हुई, भूख और बेतहाशा कमजोरी के कारण आंखों के गिर्द काले गुंजान दायरे थिरकते हुए ।
टांगों में इतनी अधिक पीड़ा और कम्पन था कि खुद को विटनेस बॉक्स में खड़ा रखने की कोशिश में ही उसके मुँह से बार-बार कराह निकल रही थी ।
तभी एक बेहद रौबीली पर्सनेलिटी वाला जज अपने चैम्बर से निकलकर कुर्सी पर आकर बैठ गया, उसकी आयु चालीस-पैंतालीस के बीच थी ।
कुर्सी पर बैठते ही उसने एक भरपूर दृष्टि राज पर डाली, पहली नजर में ही उसे राज की तेज पीड़ा का अहसास हो गया ।
“मिस्टर राज !” शायद इसीलिये जज उससे थोड़ा सहानुभूतिपूर्वक पेश आया- “क्या तुमने कोर्ट में अपना डिफेंस (बचाव पक्ष) प्रस्तुत करने के लिये कोई वकील किया है ?”
“न...नहीं मी लॉर्ड !” राज ने आहिस्ता से इंकार में गर्दन हिला दी ।
“अगर तुम अपना डिफेंस प्रस्तुत करने के लिये कोई वकील चाहते हो ।” जज ने अपना ऐनक दुरुस्त किया- “तो सरकारी खर्चे पर तुम्हारे लिये डिफेंस काउंसल की व्यवस्था हो सकती है ।”
“न...नहीं ।” राज का कंपकंपाया स्वर- “म...मुझे ऐसी मेहरबानी की कोई जरूरत नहीं ।”
“ओ.के.- जैसी तुम्हारी इच्छा ।” जज ने अपने कंधे उचकाये, फिर पब्लिक प्रॉसीक्यूटर (सरकारी वकील) से सम्बोधित होकर बोला- “अटैन्ड टू स्टार्ट योअर वर्क मिस्टर प्रॉसीक्यूटर ।”
“थैंक्यू योअर ऑनर !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने जज के सामने सम्मानपूर्वक गर्दन झुकाई तथा फिर कोर्ट को बुधवार की रात से शुरू होने वाले उस बेहद सनसनीखेज घटनाक्रम के बारे में बताना शुरू किया ।
जिसमें हर पल नये-नये मोड़ आये थे, बेहद सनसनीखेज और चौंका देने वाले मोड़ ।
पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया ।
सनसनीखेज सन्नाटा ।
सब स्तब्ध-सी मुद्रा में बैठे शुरू से अंत तक घटे उस घटनाक्रम को सुनने लगे ।
पूरा घटनाक्रम इतना दिलचस्प और रोमांचकारी था कि लोग पलकें तक झपकाना भूल गये ।
दर्शक दीर्घा की प्रथम पंक्ति में इंस्पेक्टर योगी और बल्ले भी मौजूद थे, लेकिन डॉली कहीं नजर न आ रही थी ।
पूरा घटनाक्रम सुनाने के बाद पब्लिक प्रॉसीक्यूटर खामोश हो गया ।
परन्तु कोर्ट-रूम में अभी भी सन्नाटा था ।
सब मन्त्रमुग्ध से बैठे थे ।
“मिस्टर राज !” पूरा घटनाक्रम और उस पर लगाये गये सभी आरोप सुनने के पश्चात् जज ने राज की तरफ देखा- “क्या तुम अपना अपराध कबूल करते हो कि चीना पहलवान की हत्या तुम्हीं ने की ?”
“नहीं ।” दर्द से बुरी तरह कराहते होने के बावजूद राज ने जज के सवाल का जोरदार शब्दों में खण्डन किया- “चीना पहलवान की हत्या मैंने नहीं की । मैं बेगुनाह हूँ । निर्दोष हूँ ।”
“अगर तुम निर्दोष हो ।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अपने चिर-परिचित अंदाज में गला फाड़कर चिल्लाया- “अगर तुमने सचमुच चीना पहलवान की हत्या नहीं की, तो तुम हादसे वाली रात यानि बुधवार की रात इंडिया गेट के इलाके में क्या कर रहे थे ? जहाँ फ्लाइंग स्क्वॉयड की तीन गश्तीदल गाड़ियों ने हड़ताल होने की वजह से तुम्हारी ऑटो का नम्बर नोट किया ? इसके अलावा एक सब-इंस्पेक्टर ने उस रात स्पीडिंग के अपराध में तुम्हारी ऑटो रिक्शा को रोका भी मिस्टर राज ! यह बात अलग है कि तुम उसे एक लड़की के पेट से होने का खूबसूरत धोखा देकर वहाँ से भाग निकलने में कामयाब हो गये । और क्या यह सच नहीं है कि जिस रहस्यमयी लड़की को तुम पेट से बता रहे थे, वह लड़की वास्तव में पेट से नहीं थी । सच्चाई ये है कि वो लड़की एक लाश पर लेटी थी और वह लाश !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने पूरी ताकत से अपना हलक फाड़ा- “चीना पहलवान की लाश थी मी लॉर्ड ! चीना पहलवान की लाश ।”
“यह सब झूठ है ।” विटनेस बॉक्स में खड़ा राज भी चिल्ला उठा- “झूठ है । मुझे जबरदस्ती चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम में फंसाया जा रहा है ।”
“अगर हम तुम्हें चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम में जबरदस्ती फंसा रहे हैं मिस्टर राज !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के होंठों पर कुटिल मुस्कान दौड़ी- “अगर हम सब झूठ बोल रहे हैं तो ठीक है, फिर तुम्हीं बताओ कि आखिर सच्चाई क्या है ? क्या है वो हकीकत, जिसे तुम अभी तक हम तमाम लोगों से छिपाये हुए हो ?”
“स...सच्चाई ये है ।” राज अपनी आवाज में यकीन पैदा करता हुआ बोला- “कि बुधवार की रात मेरी ऑटो रिक्शा में सचमुच गर्भ धारण किये हुए एक लड़की मौजूद थी ।”
“वो लड़की !” हंसा पब्लिक प्रॉसीक्यूटर- “जिसकी फौरन डिलीवरी होने वाली थी, जिसे तुम फौरन किसी हॉस्पिटल में भर्ती कराने के लिये ले जा रहे थे, लेकिन इंस्पेक्टर योगी- जो इस केस के आई.ओ. (इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर) हैं, उनकी इन्वेस्टीगेशन यह बताती है मी लार्ड !” वह पुनः गला फाड़कर चिल्लाया- “कि बुधवार की रात दिल्ली शहर के किसी भी हॉस्पिटल के किसी भी मेटरनिटी वार्ड में उस समय के आसपास डिलीवरी का कोई केस भर्ती ही नहीं हुआ । और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है मी लॉर्ड !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने गरजते हुए ही कहा- “कि मिस्टर राज कानून को उस लड़की का नाम बताने से भी परहेज कर रहे हैं, जो बुधवार की रात इनकी ऑटो रिक्शा में थी । क्या इसी एक प्वॉइंट से साबित नहीं हो जाता कि मिस्टर राज जो कुछ भी कह रहे हैं, वह सिर्फ झूठ का एक पुलिन्दा है, बकवास है । मिस्टर राज ने इस मनगगढ़ंत कहानी की रचना ही इसलिये की है, ताकि यह कानून को धोखा दे सकें, अदालत की आंखों में धूल झोक सकें । जबकि सच्चाई ये है मी लॉर्ड, मिस्टर राज इस बात को जानते हैं कि अगर इन्होंने उस लड़की का नाम अदालत को बता दिया, तो वह लड़की भरी हुई अदालत के सामने इतने बड़े झूठ को किसी भी हालत में कबूल नहीं करेगी कि उसके कोई बच्चा होने वाला था । क्योंकि लड़की चाहे कोई भी हो, किसी भी धर्म या जाति से सम्बन्धित हो, लेकिन वो अपनी इज्जत पर कैसा भी कोई झूठा दाग लगना पसंद नहीं करेगी ।”
राज खामोश खड़ा सुनता रहा ।
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की जबान से निकला एक-एक शब्द उसके कानों में पिघले हुए सीसे की तरह गिर रहा था ।
“मिस्टर राज !” रौबदार पर्सनेलिटी वाला जज एक बार फिर राज से सम्बोधित हुआ- “अगर तुम किसी खास वजह से लड़की का नाम गुप्त रखना चाहते हो, तो तुम्हें कम-से-कम उस हॉस्पिटल का नाम तो जरूर ही अदालत को बताना पड़ेगा, जिसके मेटरनिटी वार्ड में तुमने उस रात लड़की को एडमिट कराया था ।”
“मैं उस हॉस्पिटल का नाम भी अदालत को नहीं बता सकता ।”
“मी लार्ड!” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अब क्रोध में चिल्ला उठा- “मुल्जिम जबरदस्ती इस केस को उलझाने की कोशिश कर रहा है, जबकि पूरा केस ओपन एण्ड शट केस है । इसलिये अदालत का मुल्जिम से यह पूछा जाना कि बुधवार की रात उसने लड़की को किस हॉस्पिटल में भर्ती कराया था, बिल्कुल बेतुका है, तर्कहीन है । क्योंकि मी लॉर्ड, दिल्ली पुलिस के बेहद काबिल इंस्पेक्टर मिस्टर योगी पहले ही इस बात की खूब जांच-पड़ताल कर चुके हैं कि बुधवार की रात मेटरनिटी वार्डों में उस समय के आसपास कहीं कोई भर्ती हुई ही नहीं थी । हॉस्पिटल का या उस लड़की का नाम न बताकर मुल्जिम खुद बार-बार यह कबूल रहा है कि वह झूठा है और उसके बयान में कोई जान नहीं ।”
जज ने खामोशी के साथ कुर्सी पर पहलू बदला ।
“मी लॉर्ड !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर पुनः चिल्लाया था- “इंस्पेक्टर योगी की इन्वेस्टीगेशन की वजह से पूरा केस आइने की तरह साफ़ हो चुका है, इसलिये अब मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगा कि वो मुल्जिम के शब्द जाल में फंसकर अपना बहुमूल्य समय नष्ट करने की बजाय उन ढ़ेरों सवालों की तरफ ध्यान दे, जिनका अभी तक मुल्जिम ने कोई जवाब नहीं दिया है । जैसे सवाल नम्बर एक- चीना पहलवान ने जिससे रीगल सिनेमा के सामने ब्रीफकेस छीना, वह व्यक्ति कौन था ? सवाल नम्बर दो- उस ब्रीफकेस के अंदर क्या था ? सवाल नम्बर तीन- वह रहस्यमयी लड़की कौन थी, जो मण्डी हाउस के इलाके में मुल्जिम की ऑटो रिक्शा के अंदर देखी गयी और जिसे मुल्जिम ने पेट से बताया ?”
“मैं बताता हूँ कि वो रहस्यमयी लड़की कौन थी ।”
तभी कोर्ट-रूम में एक गरजती हुई आवाज गूंजी ।
बिल्कुल अजनबी आवाज ।
उस आवाज ने सबको चौंका दिया ।
सबकी निगाह खुद-ब-खुद गेट की तरफ चली गई ।
और अगला क्षण, एक और धमाके का क्षण था ।
सचमुच उस पूरे कथानक में एक के बाद एक चौंका देने वाली घटनाओं का जन्म हो रहा था ।
कोर्ट-रूम के दरवाजे पर उन सब लोगों ने जिस व्यक्ति को खड़े देखा, उसे देखकर सभी भौंचक्के रह गये ।
सबके शरीर का प्रत्येक अंग यूं फ्रीज हो गया, मानो उसे लकवा मार गया हो ।
☐☐☐
 
कोर्ट-रूम के दरवाजे पर इस समय दिल्ली शहर का सबसे ज्यादा प्रसिद्ध वकील यशराज खन्ना खड़ा था ।
यशराज खन्ना की उम्र सिर्फ तीस-बत्तीस साल के आसपास थी, लेकिन इतनी कम आयु में ही उसने दिल्ली जैसे महानगर में अपनी वकालत के झण्डे गाड़ दिये थे । यशराज खन्ना का फिल्म अभिनेताओं जैसा व्यक्तित्व बरबस ही हर व्यक्ति का मन मोह लेता था ।
इस समय भी यशराज खन्ना ने अपने छः फुट लम्बे कसरती शरीर पर सफेद शर्ट, सफेद पैन्ट, सफेद टाई और ऊपर से काले रंग का चोगा पहन रखा था ।
जिसमें वो विनोद खन्ना की तरह काफी स्मार्ट लग रहा था ।
उसकी आंखों पर चढ़ा था, सोने के फ्रेम वाला कीमती आई साइड ऐनक ।
यशराज खन्ना को जिस वजह से वकालत की दुनिया में रातों-रात प्रसिद्धि मिली, वह उसके केस लड़ने का स्टाइल था । यशराज खन्ना का रिकॉर्ड रहा था कि वो अपने जीवन में कभी कोई केस नहीं हारा । उसका क्लायंट बेगुनाह हो या गुनाहगार, यशराज खन्ना कोर्ट में पूरे केस को इस तरह तोड़-मरोड़कर पेश करता था कि उसका क्लायंट हर हालत में अदालत से बाइज्जत बरी हो जाता था ।
यह बात अलग है कि यशराज खन्ना अपने क्लायंट से मुँह मांगी फीस लेता था ।
दिल्ली का सबसे मंहगा वकील था वो ।
बहरहाल उस समय यशराज खन्ना को कोर्ट-रूम में देखकर सभी चौंक पड़े ।
सबका चौंकना वाजिब भी था ।
आखिर यशराज खन्ना जैसा धुरंधर वकील किसी भी केस को आसानी से हाथ लगाता ही कहाँ है ।
और जब हाथ लगाता है, तो करिश्मा होता है ।
करिश्मा !
“आपको उस रहस्यमयी लड़की के बारे में जो कुछ भी कहना है मिस्टर खन्ना!” जज भी उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बोला- “कृपया विटनेस बॉक्स में आकर कहिये ।”
“सॉरी मी लॉर्ड ! मैं इस समय कोर्ट रूम में एक गवाह की हैसियत से उपस्थित नहीं हुआ हूँ बल्कि मिस्टर राज के डिफेंस काउंसल (बचाव पक्ष) की हैसियत से यहाँ आया हूँ ।”
“ड...डिफेंस काउंसल !”
बम-सा गिरा कोर्ट रूम में ।
चारों तरफ सनसनी दौड़ गयी ।
इंस्पेक्टर योगी और बल्ले भी यह सोचकर हैरान रह गये कि राज जैसे मामूली ऑटो रिक्शा ड्राइवर ने यशराज खन्ना जैसा महंगा वकील कैसे कर लिया ?
खुद राज भी इस सुखद परिस्थिति पर हैरान था ।
विटनेस बॉक्स में खड़े-खड़े वो अपने अंदर एक नई स्फूर्ति अनुभव करने लगा ।
दर्शक दीर्घा में मौजूद तमाम लोग भी अब सजग हो-होकर कुर्सियों पर बैठ गये, उन्हें यह समझते देर न लगी कि जल्द ही केस कोई नया रोमांचकारी मोड़ लेने वाला है ।
जबकि यशराज खन्ना ने राज से हस्ताक्षर कराने के बाद अपना वकालतनामा जज की तरफ बढ़ा दिया था ।
जज ने गौर से वकालतनामा देखा, फिर कहा- “आप डिफेंस काउंसल की हैसियत से यह मुकदमा लड़ सकते हैं मिस्टर खन्ना !”
“थैंक्यू मी लॉर्ड !”
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने एक चैलेन्ज भरी दृष्टि यशराज खन्ना पर डाली, जबकि यशराज खन्ना हलके से मुस्करा दिया ।
☐☐☐
मुकदमा फिर पहले की तरह ही गरमजोशी के साथ शुरू हो गया बल्कि अब उसमें पहले से भी ज्यादा गरमी थी ।
“मी लॉर्ड !” यशराज खन्ना ने अपना काला चोगा दुरुस्त करके बोलना शुरू किया- “सबसे पहले तो मैं मिस्टर राज के बचाव पक्ष का वकील होने के नाते यह कहना चाहूँगा कि मेरे बेहद काबिल और जहीन दोस्त पब्लिक प्रॉसीक्यूटर और इंस्पेक्टर योगी ने मिलकर मेरे क्लायंट पर चीना पहलवान की हत्या का जो इल्जाम लगाया है, वह बिल्कुल बेतुका है, झूठा है, मी लॉर्ड ।” यशराज खन्ना ने अपनी आवाज़ थोड़ी तेज की- “सच्चाई ये है कि अभी तक मेरा भोला-भाला और निर्दोष क्लायंट अदालत के शब्द जाल से बचने की कोशिश नहीं करता रहा बल्कि मेरे काबिल दोस्त पब्लिक प्रॉसीक्यूटर साहब खुद इंस्पेक्टर योगी की गलत इन्वेस्टीगेशन के कारण दिशा भ्रमित होते रहे हैं ।”
“ऑब्जेक्शन मी लॉर्ड !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर आदत के मुताबिक हलक फाड़कर चिल्लाया- “खन्ना साहब, इंस्पेक्टर योगी जैसे बेहद कर्तव्यनिष्ठ इंस्पेक्टर की काबिलियत पर उंगली उठा रहे हैं । वो इंस्पेक्टर योगी, जो दिल्ली पुलिस में एक मिसाल है । एक आदर्श है । जिसे देखकर दिल्ली पुलिस के दूसरे जवान प्रेरणा लेते हैं और कल्पना करते हैं कि काश वो भी इंस्पेक्टर योगी की तरह ही बन जायें । यह बड़े अफसोस की बात है मी लॉर्ड, खन्ना साहब उसी इंस्पेक्टर योगी की कर्तव्यनिष्ठा पर इल्जाम लगा रहे हैं ।”
“गलत- बिल्कुल गलत ।” यशराज खन्ना ने बिना उत्तेजित हुए कहा- “मैंने इंस्पेक्टर योगी की कर्तव्यनिष्ठा पर कोई इल्जाम नहीं लगाया मी लार्ड ! सच्चाई तो ये है कि मैं खुद इस बात को तहेदिल से कबूल करता हूँ कि इंस्पेक्टर योगी जैसे बेहद कर्मठ और ईमानदार पुलिस ऑफिसर हमारी दिल्ली पुलिस में कुछेक ही हैं और जो चन्द हैं, वह दिल्ली पुलिस की नाक हैं । परन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये मी लॉर्ड !” यशराज खन्ना ने फौरन चाल चली- “कि इंस्पेक्टर योगी एक कर्तव्यपरायण पुलिस इंस्पेक्टर होने के साथ-साथ एक इंसान भी हैं । इंसान, जिसे हमारे शास्त्र या वेद-पुराणों में गलतियों के पुतले की संज्ञा दी गयी है । कहा गया है कि बड़े-बड़े तपस्वी और ऋषि-मुनियों से भी जाने-अंजाने कोई-न-कोई गलती अवश्य हो जाती है । और ऐसी ही एक गलती इंस्पेक्टर योगी से हो चुकी है मी लॉर्ड, उन्होंने इस पूरे केस की इन्वेस्टीगेशन तो पूरी लगन और मेहनत से की, लेकिन वो सबूत इकट्ठे करने में बस थोड़ा-सा धोखा खा गये ।”
“ल...लेकिन ।”
“न- न ।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अपनी बात पूरी कर पाता, उससे पहले ही यशराज खन्ना ने उसकी बात काट दी और प्रभावपूर्ण ढंग से आगे बोला- “मुझे मालूम है पब्लिक प्रॉसीक्यूटर साहब कि आप क्या कहना चाहते हैं । यही न कि मेरे पास इस बात का क्या सबूत है कि इंस्पेक्टर योगी ने जो इन्वेस्टीगेशन की वो गलत है । तो इसके जवाब में, मैं सिर्फ यह कहना चाहूँगा प्रॉसीक्यूटर साहब, मैं भी एक वकील हूँ । और कम-से-कम इतना जहीन भी हूँ कि अदालत में ऐसी कोई बात अपनी जबान से नहीं निकालूंगा, जिसका मेरे पास कोई जवाब न हो । जहाँ तक इंस्पेक्टर योगी द्वारा मेरे क्लायंट पर लगाये गये बेबुनियाद इल्जामों का सवाल है, तो मैं अभी चंद मिनट बाद उसका सबूत भरी अदालत में पेश करूंगा । अगर मैं सबूत पेश न कर सकूँ, तो मेरे काबिल दोस्त सिर्फ मेरे ऊपर ऑब्जेक्शन लगाकर ही खामोश न बैठें बल्कि वो खुशी-खुशी मेरे ऊपर इंस्पेक्टर योगी की तरफ से मान-हानि का मुकदमा भी दायर कर सकते हैं ।”
“ऑब्जेक्शन ओवर रूल्ड !” जज ने फौरन ही पब्लिक प्रॉसीक्यूटर का ऑबेजक्शन प्रस्ताव खारिज कर दिया ।
“थैंक्यू मी लॉर्ड ।” यशराज खन्ना ने जज के सामने सिर झुकाया ।
जबकि पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अपनी पहली ही पराजय पर बुरी तरह तिलमिला उठा था ।
☐☐☐
“हाँ, तो मी लॉर्ड ।” यशराज खन्ना ने थोड़ा रुककर पुन: शुरू किया- “मैं कह रहा था कि मेरे काबिल दोस्त पब्लिक प्रॉसीक्यूटर साहब खुद इंस्पेक्टर योगी की गलत इन्वेस्टीगेशन के कारण भ्रमित हो रहे हैं । जबकि सच्चाई ये है कि फ्लाइंग स्क्वॉयड दस्ते के सब-इंस्पेक्टर ने जब बुधवार की रात को मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर राज की ऑटो रिक्शा रोकी, तो उसमें सचमुच चीना पहलवान की लाश नहीं थी बल्कि उसके अंदर वास्तव एक लड़की थी, जो पेट से थी ।”
“लेकिन सवाल ये है खन्ना साहब !” अपनी पराजय से बुरी तरह झल्लाया पब्लिक प्रॉसीक्यूटर फिर चिल्ला उठा- “अगर ऑटो रिक्शा में उस समय लड़की थी, तो वह लड़की कौन थी ? फिर अगर वो वास्तव में ही पेट से थी, तो मिस्टर राज ने उसे किसी हॉस्पिटल के मेटरनिटी वार्ड में भर्ती क्यों नहीं कराया ? और इन सबसे बड़ा सवाल ये है कि मिस्टर राज उस लड़की का नाम बताने से ऐतराज क्यों कर रहे हैं ?”
आहिस्ता से मुस्कराया यशराज खन्ना ।
“प्रॉसीक्यूटर साहब !” फिर यशराज खन्ना गंभीरतापूर्वक बोला- “हर खामोशी के पीछे कोई-न-कोई वजह होती है, फर्क सिर्फ इतना है कि कोई उस खामोशी की आवाज को सुन लेता है और कोई नहीं सुन पाता । इस मामले में, मैं शायद आपसे ज्यादा सौभाग्यशाली हूँ, क्योंकि मैंने खामोशी की वह आवाज सुन ली है । मी लॉर्ड !” यशराज खन्ना, जज की तरफ घूमा- “मैं राज की खामोशी की वजह बयान करने से पहले अदालत से प्रार्थना करूंगा कि वो प्रॉसीक्यूटर के ही एक गवाह बल्ले को विटनेस बॉक्स में पेश करने की इजाजत दे ।”
“इजाजत है ।”
दर्शक दीर्घा में बैठे काले-भुर्राट बल्ले का दिल एकाएक बुरी तरह धड़क उठा ।
हालांकि वो काफी हिम्मतवाला इंसान था ।
परन्तु यशराज खन्ना जैसे धुरंधर वकील के सामने खड़े होने की कल्पना मात्र से ही उसकी पिण्डलियां कंपकंपा उठीं ।
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर और इंस्पेक्टर योगी की भी कुछ ऐसी ही हालत हुई, वह नहीं समझ पा रहे थे कि अब क्या होने वाला है ?
कुछ तो होने वाला था ।
कुछ बड़ा ।
☐☐☐
 
मरता क्या न करता, काला-भुर्राट बल्ले आखिरकार विटनेस बॉक्स में जाकर खड़ा हुआ ।
फिर उसने सबसे पहले ‘गीता’ पर हाथ रखकर सच बोलने की सौगन्ध खाई ।
उसके बाद कुछ औपचारिक अदालती सवालों के बाद यशराज खन्ना ने बल्ले को घूरते हुए पहला प्रश्न पूछा- “मिस्टर बल्ले, क्या यह सच है कि तुम राज की गिरफ्तारी के बाद पुलिस स्टेशन गये थे ?”
“ह...हाँ ।” बल्ले ने कंपकंपाये स्वर में कहा- “य...यह सच है ।”
“वहाँ तुम इंस्पेक्टर योगी से भी मिले ?”
“हाँ...हाँ, यह भी सच है ।”
“और क्या यह भी सच है ।” यशराज खन्ना थोड़े तेज स्वर में बोला- “कि तुमने पुलिस स्टेशन में घुसकर इंस्पेक्टर योगी के सामने यह घोषणा की थी कि तुम उस रहस्यमयी लड़की को जानते हो, जो हादसे की रात राज के साथ मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर देखी गयी ?”
बल्ले ने अब सकपकाकर योगी की तरफ देखा ।
“उधर मत देखो ।” चिल्लाया यशराज खन्ना- “मेरी तरफ देखो ।”
बल्ले ने फौरन योगी की तरफ से निगाह हटा ली ।
“जवाब दो, क्या तुमने पुलिस स्टेशन में पहुँचकर ऐसी ही घोषणा की थी ?”
“ह...हाँ, म...मैंने यही कहा था ?”
मुस्कराया यशराज खन्ना- “फिर तो तुमने इंस्पेक्टर योगी को उस लड़की का नाम भी जरूर बताया होगा ?”
“ह...हाँ, नाम बताया था ।”
“क्या नाम बताया था ?”
बल्ले ने अब बेचैनीपूर्वक पहलू बदला ।
इतना तो वह समझ ही चुका था कि यशराज खन्ना उसके ही चलाये तीर से कोई शिकार करना चाहता है ।
“मिस्टर बल्ले !” यशराज खन्ना ने एक नई चाल चली- “क्या तुम्हें उस लड़की का नाम अदालत के सामने दोहराने से कोई ऐतराज है ?”
“न...नहीं, म...मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता है ।”
“तो फिर बोलते क्यों नहीं. क्या नाम था उस लड़की का ?”
“म...डॉली ! डॉली नाम था ।”
“यह नाम नोट किया जाये मी लॉर्ड ।” यशराज खन्ना बिजली जैसी तेजी के साथ जज की तरफ घूमा और चिल्लाया- “यह नाम अदालत की कारवाई में खासतौर पर दर्ज किया जाये । इसके अलावा मैं अदालत को एक बात और बताना चाहूँगा कि डॉली नाम की यह लड़की सोनपुर में ही रहती है तथा एक ऑफिस के अंदर टाइपिस्ट के तौर पर काम करती है ।”
दर्शन दीर्घा में सन्नाटा था ।
ऐसा सन्नाटा कि अगर वहाँ कोई सुई भी गिरे, तो आवाज हो ।
☐☐☐
वह नाम अदालत की कार्यवाही में दर्ज कराने के बाद यशराज खन्ना दोबारा बल्ले की तरफ घूम गया था ।
बेचारा बल्ले ! उसे ऐसा लग रहा था, मानों आज वह किसी शेर के जबड़े में आ फंसा हो ।
“मिस्टर बल्ले !” यशराज खन्ना बोला- “अब मैं तुमसे यह पूछना चाहूँगा कि तुमने इंस्पेक्टर योगी के सामने जाकर डॉली का ही नाम क्यों लिया ? सोनपुर में तो और भी दर्जनों लड़कियां रहती हैं, तुमने उनमें से किसी का नाम क्यों नहीं लिया ?”
“क...क्या मतलब ?” बल्ले चौंका ।
“मतलब बिल्कुल साफ है मिस्टर बल्ले- क्या तुमने बुधवार की रात डॉली को अपनी आंखों से चीना पहलवान की लाश के ऊपर लेटे देखा था ?”
“नहीं ।”
यशराज खन्ना चिल्ला उठा- “फिर तुमने पुलिस स्टेशन में जाकर यह घोषणा किस आधार पर की कि उस रात डॉली, राज की ऑटो रिक्शा में थी ? तुमने डॉली का ही नाम क्यों लिया ? जबकि तुमने डॉली को राज की ऑटो रिक्शा में देखा तक नहीं था ।”
“ऑब्जेक्शन मी लॉर्ड !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने एकाएक गला फाड़ा- “डिफेंस काउंसिल साहब बल्ले को क्रॉस एग्जामिन कर रहे हैं, वह उसे उलझन और गहरी पेशोपेश में डालकर होस्टाइल करार देने की कोशिश कर रहे हैं । वरना इन तमाम सवालों का केस से क्या ताल्लुक है ?”
“ताल्लुक है मी लार्ड- ताल्लुक है ।” यशराज खन्ना ने बिना विचलित हुए अपनी बंद मुट्ठी हवा में लहराई- “मेरे इन तमाम सवालों का राज की उस खामोशी से गहरा ताल्लुक है, जो वह बेगुनाह होकर भी विटनेस बॉक्स में एक अपराधी बना खड़ा है । आखिर वह कौन-सा राज है, जिसे एक भोले-भाले इंसान ने अपने सीने में दफन कर रखा है । आप सब लोग चिल्ला-चिल्लाकर उस पर यह झूठा इल्जाम लगा रहे हैं कि बुधवार की रात उसकी ऑटो रिक्शा के अंदर चीना पहलवान की लाश थी, इतना बड़ा झूठा इल्जाम लगने के बावजूद वो चुप है, आखिर क्यों चुप है ? क्या है इस खामोशी की वजह ?”
अब !
अब विटेनस बॉक्स में खड़े राज की आंखों में भी हैरानी के निशान उभरे ।
उसे भी लगा कि यशराज खन्ना सचमुच कोई ‘गेम’ खेलने वाला है ।
“दरअसल मैं बल्ले से जो भी सवाल पूछ रहा हूँ मी लॉर्ड ।” यशराज खन्ना बोला- “उन सवालों के जवाब न सिर्फ राज की खामोशी को तोड़ेंगे बल्कि वो पूरे केस को भी एक ही झटके में हल कर देंगे ।”
“ठीक है, आप सवाल पूछ सकते हैं ।”
“थैंक्यू- थैंक्यू वैरी मच मी लॉर्ड ।” यशराज खन्ना ने एक बार फिर जज के सामने आदर से गर्दन झुकाई तथा पुनः बल्ले से सम्बोधित होकर बोला- “हाँ, तो मिस्टर बल्ले- तुमने बिना देखे यह अंदाजा कैसे लगाया कि तीन जुलाई की रात राज की ऑटो रिक्शा में डॉली रही होगी ?”
बल्ले की जबान बंद !
“इस तरह की घोषणा करने के पीछे कोई तो वजह होगी ?”
बल्ले पागलों की तरह इधर-उधर देखने लगा ।
“मैं तुमसे कोई सवाल पूछ रहा हूँ मिस्टर बल्ले ।” खन्ना थोड़ा गुस्से में बोला- “जवाब दो ।”
“ए...एक मैं ही क्या, क...सोनपुर में रहने वाला कोई भी व्यक्ति यह अंदाजा बड़ी आसानी से लगा सकता है कि वो डॉली रही होगी ।”
“क्यों, ऐसा अंदाजा क्यों लगा सकता है ?”
“क...क्योंकि राज और डॉली एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, जान छिड़कते हैं यह एक-दूसरे पर । फिर भला डॉली के अलावा और कौन लड़की इसकी मदद कर सकती है ।”
“तुम यह कहना चाहते हो ।” यशराज खन्ना ने फौरन शब्द चबाया- “कि राज और डॉली एक-दूसरे के लिये कुछ भी कर सकते हैं ।”
“जी हाँ ।”
“मैंने इन दोनों के विषय में एक बात और भी सुनी है ।” यशराज खन्ना का व्यक्तित्व एकाएक बेहद रहस्यमयी हो उठा और वो बल्ले के थोड़ा करीब पहुँचकर बोला- “मैंने सुना है कि यह दोनों अपने-अपने घर में रहते भी अकेले हैं ?”
“आपने बिल्कुल ठीक सुना है साहब !” बल्ले ने इस बार थोड़ा उत्साह के साथ जवाब दिया- “डॉली तो बहुत पहले से सोनपुर में रहती है, शायद बचपन से ही । पहले डॉली के साथ उसकी मां भी रहती थी- जिसका पिछले साल ही देहान्त हो गया- अब वो घर में बिल्कुल अकेली है ।”
“वैरी गुड ! और राज ?”
“राज ने तो अभी सिर्फ एक महीना पहले से ही सोनपुर में रहना शुरू किया है ।”
“सिर्फ एक महीना पहले से ?”
“जी साहब ।”
“और इस एक महीने में ही राज और डॉली की मोहब्बत इस मुकाम तक पहुँच गयी ।” यशराज खन्ना हैरत से नेत्र फैलाकर बोला- “कि यह एक-दूसरे के लिये कुछ भी कर सकते हैं ? यकीन नहीं होता एकाएक मिस्टर बल्ले ।”
“आप गलत समझ रहे हैं, वकील साहब !” बल्ले बोला- “राज को सोनपुर में रहते जरूर एक महीना हुआ है, लेकिन डॉली और राज की दोस्ती बहुत पुरानी है । मैंने सुना है कि डॉली पहले राज की ऑटो रिक्शा में बैठकर अक्सर ऑफिस जाती थी, बस तभी से उन दोनों के बीच प्रेम हो गया ।”
“फिर तो राज को सोनपुर में घर भी डॉली ने ही दिलाया होगा ?”
“जी हाँ, उसी ने दिलाया था ।”
“वैरी गुड ! वाकई काफी जबरदस्त प्रेम है ।”
खून अब राज की कनपटी पर ठोकरें-सी मारने लगा ।
वह समझ नहीं पा रहा था कि यशराज खन्ना वहाँ उसे बाइज्जत बरी कराने आया है या उसकी इज्जत के परखच्चे उड़ाने आया है ।
“मी लॉर्ड, वैसे मैंने यह भी सुना है ।” यशराज खन्ना एकाएक चीखता हुआ जज की तरफ घूमा- “कि जिस रात इंस्पेक्टर योगी, राज को गिरफ्तार करने सोनपुर में पहुँचा, तो उस समय राज, डॉली के घर में था । जरा कल्पना कीजिये मी लॉर्ड एक नौजवान लड़का, एक नौजवान लड़की के साथ घर में अकेला बंद है । रात का समय है । दरवाजे की उन दोनों ने अन्दर से सिटकनी भी चढ़ा रखी है । एक पूरी ड्रामेटिक सिचुएशन आपके सामने है, क्या यह पूरी सिचुएशन इस बात की तरफ इशारा नहीं करती कि इन दोनों के बीच सिर्फ प्रेम सम्बन्ध ही नहीं थे बल्कि शारीरिक सम्बन्ध भी कायम हो चुके थे । वैसे भी जब दो तपते हुए जिस्म तन्हाई में एक-दूसरे के इतना करीब हों, तो फिर आग लगने से कैसे बच सकती है ।”
“यह सब झूठ है ।” राज दहाड़ उठा- “झूठ है यह सब । मेरे और डॉली के बीच ऐसे कोई सम्बन्ध नहीं थे ।”
“तुम दोनों के बीच सम्बन्ध थे राज !” यशराज खन्ना उससे भी ज्यादा पुरजोर अंदाज में चिंघाड़ा- “सम्बन्ध थे । इतना ही नहीं तीन जुलाई, बुधवार की रात तुम्हारी ऑटो रिक्शा में जो लड़की देखी गयी, वो भी डॉली ही थी, सिर्फ और सिर्फ डॉली ।”
पूरे कोर्ट-रूम में सब दंग रह गये ।
बुरी तरह दंग !
वहाँ सन्नाटा-सा स्थापित हो गया ।
जज से लेकर सरकारी वकील और इंस्पेक्टर योगी तक बेहद भौंचक्की मुद्रा में यह सोचते देखे गये कि आखिर यशराज खन्ना जैसा धुरंधर वकील अपने ही क्लायंट के विरुद्ध क्यों जा रहा है ?”
क्या वजह है ?
क्या कारण है ?
बहुत जल्द ही उस कारण का भी पर्दाफाश हो गया ।
ऐसा जबरदस्त बम विस्फोट कि यही बहुत बड़ा शुक्र था कि कोर्ट-रूम में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति का सस्पेंस के मारे हार्टफेल न हो गया ।
☐☐☐
 
“तो आप भी यह कबूल करते हैं खन्ना साहब !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर उत्साह में भरकर बोला- “कि तीन जुलाई, बुधवार की रात जो लड़की चीना पहलवान के ऊपर लेटी देखी गयी, वह डॉली थी ?”
“मैंने कब कहा ।” यशराज खन्ना ने फौरन अपने तेवर दिखाये- “मैंने यह कब कहा कि डॉली, चीना पहलवान के ऊपर लेटी थी ? प्रॉसीक्यूटर साहब- मैंने तो सिर्फ ये कहा है कि बुधवार की रात जब फ्लाइंग स्क्वॉयड दस्ते ने राज की ऑटो रिक्शा मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर रोकी, तो उसमें रहस्यमयी लड़की कोई और नहीं बल्कि डॉली थी । जिसकी लाश का तो मैंने अभी तक जिक्र भी नहीं किया है, पहले ही कोर्ट में कह चुका हूँ कि ऐसी कोई लाश उस समय रिक्शा के अंदर नहीं थी ।”
अब सभी के दिमाग में फिरकनी सी घूमी ।
“इ...इसका मतलब आप यह कहना चाहते हैं ।” प्रॉसीक्यूटर हैरान होकर बोला- “कि बुधवार की रात को डॉली के सचमुच बच्चा होने वाला था और राज उसे हॉस्पिटल में ही भर्ती कराने के लिये ले जा रहा था ?”
“बिल्कुल- यह सच है ।” यशराज खन्ना ने अपने कंधे झटके- “मैं यही कहना चाहता हूँ मी लॉर्ड !” यशराज खन्ना फिर चीखता हुआ जज की तरफ घूमा- “राज की ऑटो रिक्शा में उस रात जो लड़की थी, वह हंड्रेड परसेंट डॉली थी । इतना ही नहीं- उसके पेट में पलने वाला वह बच्चा, जिसे हमारा समाज ऐसी परिस्थिति में पाप की संज्ञा देता है, वह पाप किसी और का नहीं था मी लार्ड ।” यशराज खन्ना कोर्ट-रूम में और बुरी तरह चिंघाड़ा तथा उसने अपनी उंगली भाले की तरह राज की तरफ उठाई- “वह पाप इसी का था, राज का ।”
“य...यह झूठ है ।” राज दहाड़ उठा- “यह झूठ है मी लॉर्ड । यह मेरे ऊपर और डॉली पर सरासर झूठा इल्जाम लगा रहे हैं । यह कीचड़ उछाल रहे हैं हम पर । म...मैं कबूल करता हूँ मी लार्ड, उस रात चीना पहलवान की लाश मेरी ही ऑटो रिक्शा में थी ।” बोलते-बोलते राज की आवाज जज्बाती हो उठी- “म...मैं यह भी कबूल करता हूँ कि चीना पहलवान की हत्या मैंने की है, मैं ही हत्यारा हूँ । लेकिन भगवान के लिये डॉली पर इतना बड़ा झूठा इल्जाम मत लगाओ, उसकी जिंदगी बर्बाद मत करो ।” बोलते-बोलते राज इस बार विटनेस बॉक्स में खड़ा-खड़ा ही रो पड़ा ।
भरभराकर रो पड़ा ।
परन्तु राज को ये कहाँ मालूम था कि आज उसके सामने यशराज खन्ना जैसा बेहद धुरंधर वकील खड़ा है ।
यशराज खन्ना ने राज द्वारा स्वीकार किये गये हत्या के अपराध से भी फायदा उठाया ।
“देखा- देखा आपने मी लॉर्ड ।” यशराज खन्ना ने घनगरज की- “देखा, इसके दिल में बसे डॉली के प्रति बेपनाह प्यार को देखा । सिर्फ डॉली के ऊपर कोई कालिख न लग जाये, इसी वजह से यह चीना पहलवान की हत्या का इल्जाम अपने सिर पर लेने को तैयार है, यह फांसी चढ़ने को तैयार है बेवकूफ आदमी ! डॉली की इज्जत बचाने के लिये यह इस समय वो कबूल कर रहा है, जो इसने कल इंस्पेक्टर योगी के जबरदस्त टॉर्चर के सामने भी कबूल नहीं किया । यही मोहब्बत इसकी खामोशी की वजह थी मी लॉर्ड- यह इसी कारण चुप था कि कहीं इसकी हकीकत का पर्दाफाश न हो जाये ।”
अदालत में सन्नाटा ।
घोर सन्नाटा !
“जबकि हकीकत ये है मी लॉर्ड !” यशराज खन्ना ने सन्नाटे के ऊपर अपनी आवाज से प्रचण्ड चोट की- “कि तीन जुलाई की रात न तो यह रीगल सिनेमा के सामने ही खड़ा था और न ही इसे चीना पहलवान के बारे में ही कुछ पता था । दरअसल बुधवार की रात को डॉली के बच्चा होने की बहुत तेज पीड़ा हुई थी, किसी हॉस्पिटल में ले जाने के लिये राज ने डॉली को ऑटो रिक्शा की पिछली सीट पर लिटाया, लेकिन जब यह आई.टी.ओ. का ओवर ब्रिज पार करके मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर मुड़ रहा था, तभी इत्तेफाक से तेज स्पीड के कारण फ्लाइंग स्क्वॉयड का एक दस्ता इसके पीछे लग गया । जबकि सच्चाई ये है मी लॉर्ड, यह ऑटो रिक्शा इसलिये तेज चला रहा था, ताकि यह डॉली को लेकर जल्द-से-जल्द किसी हॉस्पिटल पहुँच सके । लेकिन इसकी किस्मत खराब थी, जो फ्लाइंग स्क्वॉयड के दस्ते ने इसे बीच रास्ते में ही रोक लिया । दस्ते के सब-इंस्पेक्टर से राज ने वही कहा, जो सच था, यानि लड़की के बच्चा होने वाला है । मगर तब तक देर हो चुकी थी मी लॉर्ड- बहुत देर ।” यशराज खन्ना चीखता चला गया- “राज फ्लाइंग स्क्वॉयड के दस्ते से निपटकर अभी इंडिया गेट से थोड़ा आगे पहुँचा ही था कि पिछली सीट पर लेटी डॉली के प्रसव पीड़ा हो गयी । जी हाँ मी लॉर्ड, डॉली की डिलीवरी हो गयी । उसके एक बच्चा पैदा हुआ, लेकिन जिन्दा नहीं बल्कि मरा हुआ ।”
भावनाओं के प्रवाह में बोलते-बोलते कुछ क्षण के लिये रुका यशराज खन्ना ।
उसने अपना सोने के फ्रेम वाला ऐनक दुरुस्त किया ।
अदालत में अभी भी सन्नाटा था ।
सब चुप बैठे थे ।
जबकि राज के नेत्र तो हद दर्जे तक फैल गये थे ।
उसके बाद यशराज खन्ना ने अदालत में उस कहानी का हिस्सा सुनाया- “मी लॉर्ड- राज और डॉली ने मिलकर वह मरा हुआ बच्चा उसी रात यमुना नदी में बहा दिया, उसके बाद दोनों ने ही उस मामले में चुप लगाना बेहतर समझा । क्योंकि मामला खुद-ब-खुद ही खत्म हो गया था । वह समाज की उलाहना का शिकार होने से बच गये थे, लेकिन अब इसे इत्तेफाक या राज की बदनसीबी ही कहा जायेगा कि उसी रात कोई ऑटो ड्राइवर चीना पहलवान को रीगल सिनेमा के पास से लेकर फरार हो गया । इतना ही नहीं, फिर उसने चीना पहलवान की लाश भी इंडिया गेट पर डाल दी । इन दोनों इत्तेफाकों से एक भयानक रिजल्ट यह निकला कि इंस्पेक्टर योगी की गलत इन्वेस्टीगेशन शुरू हो गयी । योगी का शक सीधा राज पर जा पहुँचा, जबकि राज ने इस डर की वजह से कि कहीं बच्चा होने वाली बात का राज न खुल जाये, पुलिस से बचने का भी प्रयत्न किया । लेकिन आखिरकार जैसाकि सब जानते हैं मी लॉर्ड, वह पकड़ा ही गया । यही वो वजह थी, जो राज ने इंस्पेक्टर योगी के इतने खौफनाक टार्चर के सामने भी अपनी जुबान न खोली और वह जुबान खोलता भी कैसे, उसे तो कुछ मालूम ही न था ? राज कैसे बताता कि चीना पहलवान के ब्रीफकेस में क्या था ? उससे वह ब्रीफकेस किसने छीना ? या फिर अगर उसकी ऑटो रिक्शा में कोई ऐसी लड़की थी, जिसके बच्चा होने वाला था, तो राज ने उसे किस हॉस्पिटल में भर्ती कराया ? आप ही बताओ मी लॉर्ड, वह किस हॉस्पिटल का नाम बताता ? क्योंकि हॉस्पिटल तक पहुँचने की तो नौबत ही न आयी थी । और राज कानून के सामने सच्चाई इसलिये जाहिर नहीं करना चाहता था, क्योंकि इससे डॉली की इज्जत की धज्जियां बिखर जाती । लेकिन अफसोस मी लॉर्ड ! अफसोस !! इंस्पेक्टर योगी और अदालत ने राज की इसी बेबसी को, इसी खामोशी को उसका इकबालिया जुर्म मान लिया । जबकि यह बेकसूर है मी लॉर्ड- बिल्कुल बेकसूर । अगर इसका कोई अपराध है, तो वो ये है कि इसे डॉली से बेपनाह मोहब्बत है ।”
कोर्ट-रूम में अब बेचैनी-सी फैल गयी ।
अब तमाम लोगों की समझ में आया कि यशराज खन्ना जैसा धुरंधर वकील शुरू में क्यों अपने क्लायंट के विरुद्ध जा रहा था ।
☐☐☐
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर हिम्मत करके यशराज खन्ना की तरफ बढ़ा ।
“लेकिन अभी-अभी आपने जो कहानी सुनाई खन्ना साहब !” प्रॉसीक्यूटर बोला- “उसे सच कैसे माना जाये ? जबकि खुद आपका क्लायंट राज भी उस कहानी को मानने से इंकार कर रहा है, उसे वो सरासर झूठी कहानी करार दे रहा है ?”
मुस्कराया खन्ना ।
वह मुस्कान ऐसी थी, जैसे मजाक उड़ाते समय किसी के होठों पर आ जाती है ।
“आपने यह बड़ा बेतुका सवाल पूछा है प्रॉसीक्यूटर साहब ।”
“क...क्यों ?” सकपकाया प्रॉसीक्यूटर ।
“इस सवाल की जगह अगर आपने मुझसे यह सवाल पूछा होता कि मुझे इन तमाम बातों का कैसे पता चला, तो मैं समझता हूँ कि आपकी ज्यादा काबिलियत जाहिर होती ।”
“क...क्या मतलब ?”
“जाहिर-सी बात है प्रॉसीक्यूटर साहब ।” यशराज खन्ना बोला- “किसी भी काबिल वकील के दिमाग में सबसे पहले यही सवाल कौंधेगा कि जिस कहानी को खुद मुल्जिम झूठी करार दे रहा है, तो उस कहानी के बारे में मुल्जिम के डिफेंस काउंसल को किस तरह पता चला ।”
“क...किस तरह पता चला ?”
“डॉली से ।”
यशराज खन्ना ने एक और भयंकर विस्फोट कर दिया था ।
“म...डॉली !” विटनेस बॉक्स में खड़े राज के दिमाग में भी डॉली का नाम सुनकर धमाके से होने लगे ।
तेज धमाके ।
“जी हाँ- मुझे यह सारी कहानी डॉली ने बतायी थी ।” यशराज खन्ना एक बार फिर कोर्ट-रूम में गरजता हुआ बोला- “इतना ही नहीं, उसी डॉली को मैं गवाह के तौर पर अपने साथ भी लाया हूँ, जो इस समय बाहर बैठी मेरा इंतजार कर रही है ।”
☐☐☐
अदालत में अब ऐसी हलचल मच चुकी थी, जैसी कभी चींटियों के झुण्ड में मच जाती है ।
फौरन ही डॉली को कोर्ट-रूम में बुलाया गया ।
विटनेस बॉक्स में खड़े होकर उसने सबसे पहले वही कसम खाई, जो प्रत्येक गवाह को कोर्ट में गवाही देने से पहले खानी पड़ती है ।
उसने गीता पर हाथ रखकर कहा- “मैं जो कहूँगी, सच कहूँगी । सच के अलावा कुछ नहीं कहूँगी ।”
“तुम्हारा नाम ?” वह सवाल डॉली से पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने पूछा था ।
“डॉली ।”
“तुम्हारे पिता का नाम ?”
“स्वर्गीय देवसिंह ।”
“कहाँ रहती हो ?”
“सोनपुर में ।”
“राज को जानती हो ?”
“जी हाँ ।”
“कब से ?”
“यही कोई एक साल हो गया ।”
“सुना है ।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की आवाज थोड़ी संकोचपूर्ण हो गयी- “तुम दोनों आपस में प्यार भी करते हो ?”
“हाँ ।”
“क्या हाँ ?”
“य...यह सच है ।”
“सिर्फ प्यार या कुछ और भी ?”
डॉली चुप ।
“मेरे सवाल का जवाब दो ।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर इस बार चिल्लाया- “तुम दोनों सिर्फ प्यार करते हो या तुम दोनों का प्यार शरीर की उन सीमाओं को भी लांघ गया है, जिसे ज्यादातर शादी के बाद लांघा जाता है । मत भूलो, खन्ना साहब ने तुम पर इल्जाम लगाया है कि तुम राज के बच्चे की मां बनने वाली थीं ?”
“ह...हाँ ।” डॉली ने अपनी नजरें नीचे झुका लीं और वो हिम्मत करके धीमे स्वर में बोली- “य...यह सच है । म...मैं वाकई राज के बच्चे की मां बनने वाली थी ।”
“और क्या यह भी सच है ।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर और जोर से चिल्लाया- “कि बुधवार की रात तुम किसी हॉस्पिटल में भर्ती होने के लिये जा रही थीं ?”
“ह...हाँ, यह भी सच है ।”
“फिर तुम किसी हॉस्पिटल में गयी क्यों नहीं ?”
“क...क्योंकि बीच रास्ते में ही मेरी डिलीवरी हो गयी थी ।” डॉली बोली- “यह इत्तेफाक है कि मेरे पेट से मरे हुए ब...बच्चे ने जन्म लिया, जिसे हमने उसी रात यमुना नदी में बहा दिया ।”
“म...डॉली !” राज हिस्टीरियाई अंदाज में चिल्ला उठा, उसके नेत्र अचम्भे से फट पड़े थे- “य...यह तू क्या कह रही है डॉली, शायद तेरा दिमाग खराब हो गया है ।”
“दिमाग मेरा नहीं बल्कि तुम्हारा खराब हुआ है राज ।” डॉली कोर्ट-रूम में पहली बार गला फाड़कर चिल्लाई- “जब मुझे अपनी इज्जत की फिक्र नहीं है, तो फिर तुम मेरी इज्जत के लिये अपनी जान की बाजी क्यों लगा रहे हो ? क्यों ज़बरदस्ती फांसी के फंदे पर लटक जाना चाहते हो ? तुम इस बात को कबूल क्यों नहीं कर लेते कि हमारे बच्चा हुआ था । आखिर हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं राज ! और प्यार कोई पाप तो नहीं होता ।”
राज की खोपड़ी अंतरिक्ष में चक्कर काटने लगी ।
वह हैरान रह गया ।
बुरी तरह हैरान ।
“क्या आपको मुझसे कोई और सवाल पूछना है ?” डॉली ने पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की तरफ देखा ।
“न...नहीं, कुछ नहीं पूछना ।”
डॉली विटनेस बॉक्स से निकलकर दर्शक दीर्घा में जा बैठी ।
☐☐☐
यह यशराज खन्ना के दिमाग का ही कमाल था, जो अब पूरा केस पलट चुका था ।
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के हौसले पस्त हो चुके थे, लेकिन उसने राज को फंसाने के लिये अपनी तरफ से एक आखिरी चाल और चली ।
“मी लॉर्ड- इससे पहले कि आप इस केस का कोई फैसला सुनायें ।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर जज से सम्बोधित हुआ- “मैं आपसे एक अंतिम दरख्वास्त और करना चाहूँगा ।”
“कर सकते हो ।”
“मी लॉर्ड ।” प्रॉसीक्यूटर पुनः थोड़े आवेश में चिल्लाया- “अभी-अभी केस ने जो नाटकीय मोड़ लिया और मेरे काबिल दोस्त यशराज खन्ना साहब ने जो नई कहानी अदालत के सामने पेश की, उस कहानी के सिर्फ दो चश्मदीद गवाह हैं ।” पहला गवाह- राज ! दूसरी गवाह- डॉली । जहाँ तक राज का सवाल है, वह डॉली के बच्चा होने वाली कहानी को पूरी तरह झूठ का पुलिन्दा करार दे रहा है, जबकि डॉली उसी कहानी को सच बता रही है । यशराज खन्ना साहब ने राज की ‘इंकार’ के पीछे यह जो तर्क दिया है कि वो डॉली की इज्जत बचाने के लिये झूठ बोल रहा है, मैं मानता हूँ कि ऐसा हो सकता है । परन्तु एक शक फिर भी रह जाता है मी लॉर्ड, और वो शक ये है कि क्या ऐसा नहीं हो सकता, खन्ना साहब और डॉली ने मिलकर राज को बचाने के लिये बच्चा पैदा होने वाली कहानी गढ़ ली हो । मी लॉर्ड !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर और बुलन्द आवाज में चिल्लाया- “मैं यह कहना चाहता हूँ कि अभी-अभी अदालत में जो कहानी सुनाई गयी, वह महज एक बेहद काबिल वकील के तेज दिमाग की उपज भी हो सकती है, कानून की आंखों में धूल झौंकने की यह एक साजिश भी हो सकती है । और हकीकत की तह तक पहुँचने का अब सिर्फ एक उपाय है मी लॉर्ड, सिर्फ एक उपाय ।”
“क...कौन-सा उपाय ?” जज के मुँह से भी सस्पेंसफुल स्वर निकला ।
“मेडिकल चेकअप !” इस बार सचमुच पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने भी धमाका कर दिया था ।
“म...मेडिकल चेकअप !”
“यस मी लॉर्ड !” प्रॉसीक्यूटर चीखता चला गया- “मैं मेडिकल चेकअप की बात कर रहा हूँ । मेरी अदालत से दरख्वास्त है कि डॉली का किसी लेडी डॉक्टर के जरिये से मेडिकल चेकअप कराया जाये । अगर डॉली के सचमुच कोई बच्चा हुआ है, वो प्रेग्नेंट हुई है, तो यह बात मेडिकल चेकअप के द्वारा बिल्कुल स्पष्ट हो जायेगी । कुल मिलाकर दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए इस समय हमारे पास सिर्फ एक हथियार बचा है, और वो हथियार है मेडिकल चेकअप ! अदालत जल्द-से-जल्द डॉली का मेडिकल चेकअप कराये और उसके बाद ही इस केस के सम्बन्ध में कोई फैसला करे ।”
डॉली के दिल-दिमाग पर सन्नाटा-सा खिंचता चला गया ।
उसे अपनी सारी कोशिशें बेकार होती नजर आयीं ।
यूँ लगा, जैसे अब राज को फांसी पर लटकने से कोई नहीं बचा सकता ।
परन्तु नहीं, पब्लिक प्रॉसीक्यूटर का मुकाबला आज यशराज खन्ना से था ।
वो यशराज खन्ना, जो प्रॉसीक्यूटर की उस बात को सुनकर जरा भी विचलित न हुआ ।
“मी लॉर्ड ।” यशराज खन्ना मुस्कराता हुआ बोला- “मैं जानता था कि प्रॉसीक्यूटर साहब अदालत में इस पॉइंट को जरूर उठायेंगे, अदालत का कीमती वक्त बर्बाद न हो, इसलिये मैंने आज सुबह ही कोर्ट आने से पहले ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट की लेडी डॉक्टर मधुसूदन सान्याल से डॉली का मेडिकल चेकअप करा लिया था । यह है लेडी डॉक्टर द्वारा दी गयी वह मेडिकल रिपोर्ट, जिसमें बिल्कुल साफ-साफ लिखा है कि डॉली पिछले दिनों गर्भवती रह चुकी है ।”
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने बेहद हैरतअंगेज स्थिति में मेडिकल रिपोर्ट को पढ़ा ।
उसमें वही सब कुछ लिखा था, जो यशराज खन्ना ने बयान किया ।
जज ने भी वह रिपोर्ट पढ़ी ।
“मी लॉर्ड !” लेकिन पब्लिक प्रॉसीक्यूटर भी जैसे आज हार न मानने की सौगन्ध खा चुका था- “मैं फिर भी डॉली का एक बार और मेडिकल चेकअप कराना चाहता हूँ ।”
“क्यों ?” यशराज खन्ना ने पूछा- “आप डॉली का दोबारा चेकअप क्यों कराना चाहते हैं ?”
“क्योंकि मुझे इस मेडिकल रिपोर्ट पर भी संदेह है मी लॉर्ड । मुझे शक है कि यह रिपोर्ट लेडी डॉक्टर और यशराज खन्ना की मिली भगत का एक नमूना हो सकती है ।”
“आई ऑब्जेक्ट मी लॉर्ड !” यशराज खन्ना इस बार इतनी जोर से चिल्लाया कि कोर्ट-रूम की दीवारें तक दहलती-सी लगीं- “प्रॉसीक्यूटर साहब सिर्फ मेरे ऊपर ही नहीं बल्कि एक लेडी की ईमानदारी और उसके नोबेल प्रोफेशन पर भी इल्जाम लगा रहे हैं । अगर वो सोचते हैं कि यह मेडिकल सर्टिफिकेट जाली है, तो खुशी-खुशी डॉली का दूसरा चेकअप करा सकते हैं, मुझे कोई ऐतराज नहीं । लेकिन वो एक बात याद रखें ।” यशराज खन्ना की आवाज में एकाएक चेतावनी का पुट आ गया- “अगर दूसरी मेडिकल रिपोर्ट में भी यही बात साबित होती है, तो मैं लेडी डॉक्टर की तरफ से प्रॉसीक्यूटर साहब पर न सिर्फ मान-हानि का दावा दायर करूंगा बल्कि इस वक्त इन्होंने अपने जिस्म पर यह जो काला चोगा पहन रखा है- उसे भी इसी भरी अदालत के अंदर उतरवा लूंगा । मी लॉर्ड- चूंकि इन्होंने यह इल्जाम एक लेडी डॉक्टर की कर्तव्यपरायणता और उसकी ईमानदारी पर लगाया है, इसलिये यह इल्जाम क्षमा के काबिल नहीं, माफी के काबिल नहीं ।”
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के छक्के छूट गये ।
उसकी एक सांस ऊपर, तो दूसरी नीचे रह गयी ।
“मिस्टर पब्लिक प्रॉसीक्यूटर !” जज ने सरकारी वकील की तरफ देखा- “क्या आप अभी भी डॉली का दूसरा मेडिकल चेकअप कराने के इच्छुक हैं ?”
“ज...जी नहीं, बिल्कुल नहीं ।”
यशराज खन्ना के होंठों पर विजयी मुस्कान दौड़ गयी ।
☐☐☐
 
उसके बाद जज ने अपना फैसला सुनाया ।
“मिस्टर राज पर लगाया गया कोई भी अपराध अदालत में साबित नहीं हो सका है, इसलिये ये अदालत मिस्टर राज को चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम से बाइज्जत रिहा करती है । परन्तु मिस्टर राज ने दिल्ली परिवहन निगम की बस में बिना टिकट यात्रा करके जरूर कानून का उल्लंघन किया है, इसलिये यह अदालत मिस्टर राज को एम.वी. एक्ट 1988 की धारा 178 के अन्तर्गत बिना टिकट यात्रा करने के अपराध में पांच सौ रुपये जुर्माना या पंद्रह दिन बामुशक्कत सख्त कैद की सजा सुनाती है ।”
यशराज खन्ना ने फौरन कोर्ट में जुर्माने की राशि जमा कर दी ।
इस तरह राज कानून के शिकंजे में फंसने के बावजूद बच निकला ।
पहली ही पेशी पर बच निकला ।
मगर नहीं !
राज बचा कहाँ था ?
सच्चाई तो ये है कानून के शिकंजे से निकलने के बाद वो एक और ऐसे भयानक शिकंजे में जा फंसा कि उस शिकंजे में फंसने से बेहतर तो यही था, वो कानून के शिकंजे में फंसा रहता ।
बहरहाल राज के साथ ह्रदयविदारक और आश्चर्य से भरी घटनाओं का दौर जारी रहा ।
आगे भी ऐसी-ऐसी सनसनीखेज घटनायें उसके साथ घटी, जिन्होंने उसे हिलाकर रख दिया ।
☐☐☐
“यह तुमने क्या किया डॉली ।” अदालत के प्रांगण में आते ही राज डॉली पर डॉली पर बरस पड़ा था- “इतना बड़ा झूठ क्यों बोला तुमने ?”
“तो और क्या करती मैं ?” डॉली ने कहा- “अदालत तुम्हें फांसी की सजा सुना देती और मैं चुप रहती, खामोश रहती ?”
“ल...लेकिन इतना बड़ा झूठ डॉली !” राज की आवाज कंपकंपायी-“अब दुनिया क्या कहेगी ? क...कितनी उंगलियां उठेंगी तुम्हारे चरित्र पर ?”
“मुझे लोगों की परवाह नहीं है, सिर्फ तुम्हारी परवाह है । मैं इस दुनिया के बगैर रह सकती हूँ, म...मगर तुम्हारे बिना नहीं रह सकती ।”
“म...डॉली !” राज की आवाज कंपकंपा उठी ।
“और फिर एक झूठ से जिंदगी कहीं ज्यादा बड़ी होती है राज !”
“ल...लेकिन मैं पूरी तरह निर्दोष कहाँ था ।” राज का स्वर आत्मग्लानि से भर गया- “कानून से छिपकर लाश ठिकाने लगाना भी तो आखिर एक अपराध ही है ।”
“नहीं है अपराध ।” डॉली बोली- “ऐसे अपराध दुनियां करती है राज ! तुमने सिर्फ लाश ठिकाने लगायी थी, वह भी दौलत के लिये, धनवान बनने के लिये । दुनिया में ऐसा कौन आदमी है, जो दौलत के लिये पाप नहीं करता ?”
राज हैरान निगाहों से डॉली को देखने लगा ।
“ल...लेकिन तुमने खन्ना जैसे बड़े वकील की फीस कहाँ से भरी डॉली ?”
“म...मैंने फीस भरी ?” डॉली चौंकी ।
“नहीं तो किसने भरी ?” राज बोला ।
“मुझे क्या पता, किसने भरी ?” डॉली की आवाज में साफ-साफ हैरानी थी- “मैंने तो उसे एक पैसा भी नहीं दिया ।”
राज के दिमाग में पुनः धमाके से होने लगे ।
उसे अपने कानों पर एकाएक यकीन न हुआ ।
एक नये ‘मायाजाल’ की शुरुआत हो चुकी थी ।
“दरअसल यशराज खन्ना खुद मेरे पास सोनपुर में आया था ।” डॉली ने आगे बताया- “मैं तो उसे जानती भी नहीं थी, उसने मुझसे कहा कि राज को अदालत से रिहा कराने के लिये उसे मेरी गवाही की जरुरत है, मैं फौरन तैयार हो गयी, इंकार का प्रश्न ही नहीं था ।”
“उसने तुमसे अपनी फीस वगैरा के बारे में कोई बात नहीं की ?” राज का कौतूहल बढ़ता जा रहा था ।
“नहीं-उसने मुझसे इस बारे में कोई बात नहीं की । यशराज खन्ना ने मुझसे बस इतना कहा कि वो तुम्हारा केस लड़ रहा है, मुझे तो उस मैडीकल रिपोर्ट के बारे में भी कुछ मालूम न था, जिसे यशराज खन्ना ने अदालत में पेश किया । मुझे गवाह के तौर पर जो बयान देना था, खन्ना ने उस बयान की डिटेल भी मुझे बीच रास्ते में अपनी कार के अंदर बतायी ।”
राज सन्न रह गया ।
बिल्कुल सन्न ।
उसे लगने लगा, कुछ होने वाला है ।
कुछ बेहद चौंका देने वाला ।
तभी राज ने यशराज खन्ना को कोर्ट-रूम से बाहर निकलते देखा, वह अपने कुछ वकील मित्रों और प्रशंसकों से घिरा उसी तरफ बढ़ा चला आ रहा था ।
राज ने उस तरफ तेजी से कदम बढ़ाये ।
☐☐☐
“वकील साहब !” राज यशराज खन्ना के सामने पहुँचकर बोला-“आपने बिना फीस लिये मेरा जो केस लड़ा, यह अहसान मैं आपका जिन्दगी भर नहीं उतार सकता । आप सचमुच फरिश्ते हैं ।”
“म...मैंने बिना फीस लिये केस लड़ा ?” यशराज खन्ना के नेत्र यूं हैरानी से फटे, मानो उसने कोई बहुत चौंका देने वाली बात सुन ली हो- “इस तरह का अहसान तो मैंने आज तक अपनी पूरी लाइफ में कभी किसी पर नहीं किया बंधु ! आज से पांच साल पहले जब मैंने जिंदगी में पहली बार वकील का यह काला चोगा पहना था, तभी एक सौगन्ध खाई थी कि बिना फीस लिये मैं अपने सगे बाप का भी केस नहीं लड़ूंगा और अपने उस फैसले पर मैं आज तक अटल हूँ ।”
“इ...इसका मतलब आपको फीस मिल गयी ?” राज के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“बिलकुल मिल गयी बंधु ! अगर मुझे फीस न मिलती या अगर मुझे कोई तुम्हारे केस पर अप्वाइंट न करता, तो मुझे भला तुम्हारा केस लड़ने की क्या जरुरत थी ? मैं एक क्रिमिनल लॉयर हूँ बंधु, कोई समाज सेवक थोड़े ही हूँ ।”
ल...लेकिन मेरा केस लड़ने की आपको कितनी फीस मिली ?”
“पांच लाख रुपये ।”
प...पांच लाख । “राज के नेत्र अचम्भे से उबले ।
“संभल के ।” यशराज खन्ना ने उसे फौरन थाम लिया था-“संभाल के बंधु ! पांच लाख का नाम सुनकर शायद तुम्हें मिर्गी का दौरा पड़ गया लगता है ।”
“ल...लेकिन आपको इतनी रकम किसने दी साहब ? क...किसने आपको मेरे केस पर अप्वॉइंट किया ?”
“एक हमारे-तुम्हारे जैसा ही सिम्पल-सा आदमी था बंधु ! उसी ने मुझे तुम्हारे केस पर अप्वॉइण्ट किया था ।”
“अ...आप मुझे उस आदमी का नाम बता सकते हो साहब, उसका एड्रेस बता सकते हो ?”
“क्या करोगे उसका नाम और एड्रेस जानकर ?”
“उ...उसका धन्यवाद अदा करूंगा साहब ।” राज बोला- “उस फरिश्ते को दण्डवत प्रणाम करूंगा, जो उसने मेरे जैसे मामूली आदमी की जिंदगी बचाने के लिये अपने पांच लाख रुपये दांव पर लगा दिये । वैसे भी कम-से कम एक बार मुझे उस फरिश्ते की सूरत तो देखनी ही चाहिये ।”
“कह तो तुम ठीक रहे हो बन्धु !” यशराज खन्ना ने अपना सोने के फ्रेम वाला ऐनक दुरुस्त किया ।
यही वो पल था, जब किसी वाहन का जोर-जोर से दो बार हॉरन बजा ।
वह हॉरन बेहद ख़ास स्टाइल में बजाया गया था ।
☐☐☐
यशराज खन्ना और राज, दोनों ने चौंककर हॉरन की दिशा में देखा ।
कोर्ट के कच्चे प्रांगण में ही सफेद रंग की एक होंडा सिटी खड़ी थी, उसी कार में बैठे व्यक्ति ने जोर-जोर से दो बार हॉरन बजाये थे ।
खन्ना से दृष्टि मिलते ही वह मुस्कराया ।
“लो बंधु !” खन्ना के होठों पर भी मुस्कान दौड़ी थी- “तुम अभी मुझसे उस व्यक्ति के बारे में पूछ रहे थे न, जिसने मुझे तुम्हारे केस पर अप्वॉइण्ट किया और फीस के पांच लाख रुपये दिये, यही वो व्यक्ति है ।”
राज ने आश्चर्यचकित निगाहों से उस व्यक्ति को देखा ।
वह एक हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला कद्दावर जिस्म का आदमी था, उसने शरीर पर शानदार थ्री पीस सूट पहना हुआ था और आंखों पर काले रंग का सनग्लास चढ़ा रखा था ।
राज के लिये वह बिलकुल अजनबी आदमी था ।
उसने जीवन में पहले कभी उसकी शक्ल तक नहीं देखी थी ।
“इ...इस आदमी ने आपको मेरा केस लड़ने के लिये अप्वॉइण्ट किया ?”
“हाँ ।”
“ल...लेकिन मेरा तो इससे कोई वास्ता नहीं ।”
“तुम्हारा इससे कोई वास्ता न बंधु, मगर हो सकता है कि उसका तुम्हारे से कोई वास्ता हो ।”
तभी कार में बैठे उस आदमी ने फिर जोर-जोर से दो बार हॉरन बजाया ।
“जाओ भाई !” खन्ना ने उसका कंधा थपथपाया-“वह तुम्हें ही बुला रहा है ।”
“ल...लेकिन... !”
“अब जो सवाल पूछना हो, उसी से पूछना बंधु । तुम्हारे सवालों के जवाब वही बेहतर दे सकता है ।”
राज मरे-मरे कदमों से कार की तरफ बढ़ा ।
न जाने क्यों उसे किसी भारी खतरे का अहसास हो रहा था ।
“और सुनो ।”
खन्ना की आवाज सुनकर राज के कदम फिर ठिठके ।
“मैंने तुम्हें बचाने के लिये कोर्ट में जो मनगढंत कहानी सुनायी थी, मैं समझता हूँ कि उससे तुम्हारी भावनाओं को काफी ठेस पहुँची है, उसके लिये मैं तुमसे माफी चाहता हूँ । लेकिन अगर सच पूछते हो, तो तुम्हें बचाने के लिये इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी न था । क्योंकि काफी सबूत तुम्हारे खिलाफ अदालत में इकट्ठे हो गये थे ।”
यशराज खन्ना ने आगे भी कुछ कहा, परन्तु वह सब राज ने न सुना ।
क्योंकि तभी उसने बल्ले को बड़े खतरनाक अंदाज में लम्बे फल वाला चाकू खोलकर खन्ना की तरफ लपकते देख लिया था ।
उसके चेहरे पर हैवानियत बरस रही थी ।
वह साक्षात दरिन्दा नजर आ रहा था ।
“खन्ना साहब !” राज चीखता हुआ यशराज खन्ना के ऊपर गिद्ध की तरफ झपटा- “ब...बचो खन्ना साहब ।”
लेकिन वह खन्ना को बचा पाता, उससे पहले ही बल्ले उसके सिर पर जा चढ़ा ।
अगले ही पल बल्ले का चाकू हवा में इस तरह कौंधा, जैसे आकाश में बिजली कौंधी हो, फिर वो पलक झपकते ही खन्ना के सीने में जा घुसा ।
“न...नहीं ।”
चिंघाड़ उठा खन्ना, वह भैंसे की तरह डकराया ।
उसके हाथ में मौजूदा फाइल छूट गयी और उसके अंदर दबे कागज़ हवा में इधर-उधर उड़े ।
जबकि बल्ले ने एक ही बार में सब्र नहीं किया था ।
वह बेहद जुनूनी अंदाज में एक के बाद एक खन्ना के ऊपर चाकू से वार करता रहा ।
खन्ना की दहशतनाक चीखें गूंजती रहीं, गूजती रहीं ।
“साले !” साथ ही साथ बल्ले चिंघाड़ता भी जा रहा था- “मेरे चाचा के हत्यारे को बचाने के लिये झूठ बोलता है, नहीं छोडूंगा । मैं आज तुझे नहीं छोडूंगा । तू कानून का फैसला बदल सकता है हरामजादे, लेकिन बल्ले का नहीं । और ले, और ले !” भीषण गर्जना करते हुए बल्ले का चाकू वाला हाथ बिलकुल मशीनी अंदाज में खन्ना के सीने पर पड़ने लगा ।
खून में लथपथ हो गया यशराज खन्ना ।
कोर्ट प्रांगण में खड़ा हर व्यक्ति स्तब्ध !
भौंचक्का !
किसी में भी इतनी हिम्मत न हुई, जो वह आगे बढ़कर बल्ले को दबोचे ।
उधर साक्षात कोबरा नाग की तरह फुंफकारता हुआ बल्ले फिर राज की तरफ पलटा ।
उफ़ !
उसकी आँखों में खून-ही-खून था ।
छक्के छूट गये राज के ।
जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा हो गया ।
“साले-हलकट !” बल्ले अर्द्धविक्षिप्तों की भांति चिंघाड़ा- “मैं आज तुझे भी नहीं छोडूंगा, तुझे भी नहीं ।”
राज हाय-तौबा मचाता वहाँ से अंजानी दिशा में भागा ।
उसके पीछे-पीछे बल्ले लपका ।
सचमुच आज उस पर बेपनाह जुनून सवार था ।
राज को अपना दिल दहलता-सा लगा ।
उसकी रूह फनां हो रही थी ।
“म...मैंने चीना पहलवान का खून नहीं किया ।” राज भागता हुआ दहशतजदां आलम में चिल्ला रहा था- “म...मैं बेकसूर हूँ । म...मैं निर्दोष हूँ ।”
उसी क्षण धुआंधार रफ़्तार से दौड़ती हुई सफेद रंग की वही होंडा सिटी राज के नजदीक आकर रुकी ।
फिर धड़ाक से उसका स्लाइडिंग डोर खुला ।
“अंदर आ जाओ ।” साथ ही वही अजनबी शख्स चिल्लाया था ।
राज फ़ौरन लपककर कार में सवार हो गया ।
उसके बाद कार जिस तरह धुआंधार रफ्तार से दौड़ती हुई उसके नजदीक आयी थी, वैसी ही धुंआधार रफ्तार से आगे दौड़ती चली गयी ।
राज ने पीछे मुड़कर देखा, तो पाया कि इंस्पेक्टर योगी एकाएक किसी जिन्न की तरह बेपनाह फुर्ती से दौड़ता हुआ कोर्ट के प्रांगण में प्रकट हुआ था, फिर वो वहशी बल्ले के ऊपर एकदम गिद्ध की तरह झपटा ।
☐☐☐
कोई दस मिनट तक सफेद रंग की होंडा सिटी कार दिल्ली की विभिन्न सड़कों पर दौड़ती रही ।
राज जो थोड़ी देर पहले बुरी तरह हॉफ रहा था, बेहद डरा हुआ था, वह भी अब अपने आपको काफी हद तक संतुलित कर चुका था ।
मौत कैसे उसके करीब से गुजर गयी थी ।
कैसा वो आज मरते-मरते बचा था ।
राज के होश जब थोड़े से संतुलित हुए, तो उसने उस अजनबी व्यक्ति को देखा, जो वैन ड्राइव कर रहा था ।
अगर उस अजनबी के शानदार कपड़ों को नजरअंदाज कर दिया जाये, तो वह कोई धनवान कम तथा कोई गुण्डा-मवाली ज्यादा नजर आता था ।
“क्या बात है बिरादर, मुझे यूं घूरकर क्या देख रहा है ?” अजनबी थोड़े कठोर लहजे में बोला ।
“क...कुछ नहीं ।”
“फिर भी, कुछ तो ।”
“द...दरअसल मैं यह याद करने की कोशिश कर रहा हूँ साहब, मैंने आपको आज से पहले कहाँ देखा है ? या फिर हमारे बीच क्या सम्बन्ध हैं ?”
मुस्कुराया अजनबी ।
“याद आया कुछ ?”
“न...नहीं साहब, कुछ याद नहीं आ रहा ।”
“मैं तुम्हारी कुछ मदद करूं ?”
क...किस मामले में ?”
“तुम्हारी याददाश्त वापस लाने में, अपने आपको आइडेण्टीफाई करने में ।”
“हाँ-हाँ क्यों नहीं । जरूर मदद करो ।”
“तो सुनो बिरादर, तुम ख्वामखाह अपने दिमाग पर जोर डाल रहे हो, ख्वामखाह परेशान हो रहे हो ।”
“क...क्यों ?”
“क्योंकि बिरादर, तुम्हारे और मेरे बीच कोई सम्बन्ध नहीं है, हम दोनों आज से पहले कभी मिले भी नहीं, फिर ऐसी परिस्थिति में तुम अपने दिमाग पर जोर डालकर ख्वामखाह परेशान ही तो हो रहे हो ।”
राज दंग रह गया ।
कार अभी भी तूफानी गति से सड़क पर दौड़ रही थी ।
☐☐☐
 
“अ...आपके और मेरे बीच सचमुच कोई सम्बन्ध नहीं ?” राज ने पुनः हैरतअंगेज स्वर में पूछा ।
“बिलकुल भी नहीं बिरादर ! हमारे बीच सम्बन्ध क्या खाक होना है ? मैं तो आज तुम्हारी सूरत भी पहली बार देख रहा हूँ ।”
राज की कौतूहलता अब अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी ।
“अ...अगर हमारे बीच कोई सम्बन्ध नहीं साहब ।” राज सनसनाये स्वर में बोला-“तो आपने मुझे छुड़ाने के लिये यशराज खन्ना जैसे महंगे वकील को अप्वाइण्ट क्यों किया ? उसे पांच लाख रुपये की बड़ी धनराशि फीस के तौर पर क्यों दी ?”
“यह दुनियां बड़ी निराली है बिरादर ।” अजनबी मुस्कराकर बोला- “इस दुनियां के दस्तूर बड़े निराले हैं । यहाँ कब कौन किस पर मेहरबान हो जाये, कुछ पता नहीं चलता ।”
“ल...लेकिन मुझे यह तो मालूम पड़े साहब !” राज की कौतूहलता बढ़ती जा रही थी- “आपने मेरे ऊपर वह रकम खर्च क्यों की ?”
“वजह तो मुझे भी नहीं मालूम, असली वजह तो उसे ही मालूम है, जिसने यह सारा इंतजाम किया है ।”
“य...यानि ।” राज उछल पड़ा- “यानि वह व्यक्ति कोई और है, जिसने मुझे आजाद कराया है ?”
“हाँ ।” अजनबी सहज भाव से बोला- “वह व्यक्ति कोई और ही है । मैंने यशराज खन्ना को तुम्हारे केस पर अप्वॉइंट जरूर किया था, लेकिन मुझे उसको अप्वॉइंट करने का आदेश किसी और से मिला था । इसी तरह मैंने यशराज खन्ना को तुम्हारा केस लड़ने के लिए पांच लाख की रकम दी जरूर, लेकिन वो रकम मेरी जेब से नहीं निकली थी । मैं तो सिर्फ एक माध्यम हूँ, मैंने तो महज एक बिचौलिये की भूमिका निभाई है ।”
राज के दिमाग में जोर-जोर से कोई चक्की-सी चलने लगी ।
उसे लगने लगा, अगर हालात ऐसे ही बने रहे, तो उसे पागल होने से कोई नहीं बचा सकता ।
“ल...लेकिन फिर वह कौन है साहब ।” राज बुरी तरह झल्लाये स्वर में बोला- “जिसने मेरी मदद की ? जिसने मुझे आजाद कराया ?”
“सब्र रख बिरादर, थोड़ी देर सब्र रख । अभी मालूम हो जायेगा कि वो समाज सेवक कौन है, वो महान रहनुमा कौन है ।”
☐☐☐
यही वो पल था, जब अजनबी ने होंडा सिटी एक बेहद निर्जन-सी जगह पर ले जाकर रोक दी ।
फिर उसने कार के डैश बोर्ड के अंदर से काले रंग की एक चौड़ी पट्टी निकालकर राज की तरफ बढ़ाई- “लो इस काली पट्टी को अपनी आंखों पर बांध लो और खामोशी से सीट पर लेट जाओ ।”
“प...पट्टी आंखों पर बांध लूं ?” राज का दिल जोर से धड़का ।
“हाँ ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि जिस महान समाज सेवक ने तुम्हारी मदद की है, उससे जो भी मिलता है, इसी तरह मिलता है ।”
“अ...आंखों पर पट्टी बांधकर ?” राज के नेत्र और ज्यादा हैरानी से फटे ।
“हाँ ।”
“क...किसी से मिलने का यह कौन-सा तरीका हुआ भला ?”
“बिरादर !” अजनबी एकाएक नाटकीय लहजे में बोला- “बड़े लोगों की हर बात अलग होती है, हर तरीका जुदा होता है । उनका ऐसा ही तरीका है । चलो, जल्दी से आंखों पर पट्टी बांधो ।”
उस पल राज को न जाने क्यों फिर ऐसा अहसास हुआ कि वह किसी नये ‘चक्कर’ में फंसने जा रहा है ।
“चक्कर के नाम से ही उसकी रूह कांप उठी ।
“अब जल्दी करो बिरादर ।”
“न...नहीं ।” राज भी शीघ्रतापूर्वक बोला- “मुझे यह काली पट्टी अपनी आंखों पर नहीं बांधनी ।”
“कैसे नहीं बांधनी पट्टी ।” अजनबी इस बार थोड़े सख्त लहजे में बोला-“अगर पट्टी नहीं बांधोगे, तो उस समाज सेवक से किस तरह मिलोगे, जिसने तुम्हारी मदद की ?”
“मुझे नहीं मिलना किसी से ।” राज एकाएक कार के डोर की तरफ झपटा- “उन्होंने मेरी जो मदद की, उसके लिये तुम उनसे मेरा धन्यवाद बोलना ।”
राज डोर खोलकर कार से बाहर हो पाता ।
“साले तेरी तो... ।”
उससे पहले ही अजनबी ने उसे एक बड़ी मोटी, भद्दी सी गाली बकी तथा वह बेपनाह फुर्ती से उसके ऊपर यूं झपटा, जैसे चील मांस के लोथड़े पर झपटती है ।
पलक झपकते ही राज की शर्ट का कॉलर अजनबी के फौलादी शिकंजे में था ।
फिर उसने राज के शरीर को झटका दिया, तो वह पीछे को उछलकर धड़ाम से वैन की सीट पर जा गिरा ।
अजनबी फौरन उसके सीने पर चढ़ बैठा ।
उसने उसके हाथों को पीछे बांध दिया ।
“मैं देखता हूँ साले ।” अजनबी ने उसे भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा- “तू इस काली पट्टी को कैसे अपनी आंखों पर नहीं बांधता ।”
“मुझे नहीं बांधनी पट्टी ।” राज और जोर से हलक फाड़कर चिल्ला उठा- “छोड़ दो मुझे, वरना मैं चीख-चीखकर भीड़ जमा कर लूंगा ।”
वह अजनबी के शिकंजे में मचल उठा ।
उसने हाय-तौबा मचा डाली ।
ठीक तभी आवेश में बुरी तरह भिन्नाये अजनबी का हाथ हवा में लहराया तथा फिर धड़ाक से राज की खोपड़ी पर पड़ा ।
तुरंत ही राज की बोलती बन्द हो गयी ।
उसके नेत्र दहशत से फट पड़े और गर्दन दायीं तरफ लुढ़क गयी ।
इसमें कोई शक नहीं, तमाशा तो सचमुच अब शुरू हुआ था ।
☐☐☐
राज की चेतना जब धीरे-धीरे लौटनी शुरू हुई, तो उसने महसूस किया कि उसका शरीर टब के पानी में पड़ा हिचकौले-सा खा रहा है ।
उसने आहिस्ता-आहिस्ता पलकें खोल दीं ।
फिर वह टब में ही एकदम से उछलकर खड़ा हो गया ।
फौरन उसके दिमाग को झटका लगा ।
शक्तिशाली झटका ।
उसके सामने अजनबी के साथ जो दो और व्यक्ति खड़े थे, उन्हें वहाँ देखकर वो हैरान रह गया ।
वह एक काफी बड़ा हॉल था, जिसकी छत डबल हाइट वाली थी और फर्श काले पत्थरों का था ।
उस हॉल के बीचों-बीच वो विशाल टब रखा था, जिसमें वो थोड़ी देर पहले तक किसी लाश की तरह तैर रहा था । हॉल से जुड़े हुए ही वहाँ कई सारे कमरे भी थे ।
“त...तुम ।” राज शक्ल-सूरत से ही बेहद घाघ नजर आ रहे एक व्यक्ति की तरफ उंगली उठाकर बोला- “त...तुम तो सेठ दीवानन्द ज्वैलरी शॉप के वही सेल्समैन हो न, जिसके पास मैं उस दिन नटराज की एक मूर्ति बेचने गया था ?”
मुस्कराया सेल्समैन, उसकी मुस्कान भी बेहद खतरनाक थी ।
“और तुम ।” तत्क्षण राज की उंगली चालीस-पैंतालीस साल के एक अन्य व्यक्ति की तरफ उठी- “त...तुम सर्राफों के सर्राफ सेठ दीवानचन्द हो ?”
वह भी आहिस्ता से मुस्करा दिया ।
“मैं पूछता हूँ ।” राज चिल्ला उठा- “मुझे यहाँ क्यों लाया गया है ?” झुंझलाहट में राज ने दौड़कर अजनबी का गिरेहबान पकड़ लिया और उसे बुरी तरह झंझोड़ डाला- “जवाब दो, तुम तो मुझे उस व्यक्ति के पास ले जाने वाले थे, जिसने मेरी मदद की, मुझे कानून के शिकजे से छुड़ाया ?”
अजनबी ने राज के हाथों से अपना गिरेहबान छुड़ाया तथा फिर उसे इतना तेज झटका दिया कि वो सीधा सेठ दीवानचन्द के कदमों में जा गिरा ।
“सेठ दीवानचन्द ही वह व्यक्ति है ।” उसी पल अजनबी ने तेज धमाका-सा किया- “जिन्होंने तुम्हारी मदद की ।”
“क...क्या ?”
हतप्रभ रह गया राज ।
आश्चर्यचकित ।
“त...तुमने !” वह हैरतअंगेज निगाहों से सेठ दीवानचन्द को देखता हुआ बोला- “तुमने मेरी मदद की ? त...तुमने मुझे आजाद कराया ?”
“हाँ ।”
“लेकिन क्यों ? क्यों तुमने मेरी मदद की ? क...क्यों मुझे आजाद कराया ?”
“वड़ी तू पागल हुआ है नी ।” सेठ दीवानचन्द सिंधी भाषा में ही बोला-“वडी तू अपने आपको आजाद समझ रहा है राज साई !”
“क...क्या मतलब ?”
“मतलब बिलकुल साफ है साईं, तू आजाद हुआ कहाँ है ? वडी हमारी मेहरबानी से तो सिर्फ जगह बदली हुई है । पहले तू पुलिस का मेहमान था, अब हमारा मेहमान है । फिर इसमें तेरी मदद कहाँ से हो गयी ?”
राज के नेत्र दहशत से फैल गये ।
“य...यानि तुमने मुझे यहाँ कैद करके रखा है ?”
“बिल्कुल ।” सेठ दीवानचन्द के होठों पर मजाक उड़ाने वाली मुस्कान दौड़ी- “वड़ी राज साईं, हमने तुझे यह कैद इसलिये दी है, ताकि हम तुझसे उन सवालों के जवाब उगलवा सकें, जिन्हें इंस्पेक्टर योगी भी न उगलवा सका ।”
“क...कौन से सवालों के जवाब ?” राज की आवाज कंपकंपायी ।
“वडी यही कि तूने चीना पहलवान जैसे धुरंधर आदमी की हत्या क्यों की ? किसने तुझे उसकी हत्या करने के लिये प्रेरित किया ? यह काम तेरे जैसा सिंगल सिलेण्डर का आदमी अकेले तो हर्गिज भी नहीं कर सकता, मुझे अपने साथी का नाम बता साईं ! वडी उस हराम के बच्चे का नाम बता, जिसने तुझसे यह खतरनाक जुर्म कराया ?”
राज के पूरे शरीर में सनसनी दौड़ गयी ।
वह आतंकित हो उठा ।
कहने की जरुरत नहीं कि राज एक नये ‘चक्कर’ में फंस चुका था ।
“वडी जल्दी बोल साईं !” दीवानचन्द की त्यौरियां चढ़ गयी- “जल्दी जवाब दे, किसके कहने पर तूने चीना पहलवान का खून किया नी ?”
राज झुंझला उठा- “कौन कहता है कि मैंने चीना पहलवान का खून किया है ?”
“वडी मैं कहता हूँ ।” दीवानचन्द ने बड़े रौब से अपना सीना ठोका- “हालात कहते हैं ।”
“लेकिन यह सब झूठ है ।” राज चिल्ला उठा- “खुद तुम्हारे वकील यशराज खन्ना ने अदालत में साबित किया है कि मेरा चीना पहलवान के खून से कोई वास्ता नहीं था, कोई सम्बन्ध नहीं था । मुझे तो जबरदस्ती उस केस में फंसाया गया था ।”
“साले !” दीवानचन्द की आंखों में शोले लपलपाये- “मेरी गोली मेरे को ही देता है । वडी यशराज खन्ना ने अदालत में जो कहानी सुनाई, वो झूठी थी, मनगढंत थी । हकीकत ये है साईं, बुद्धवार की रात जो ऑटो रिक्शा रीगल सिनेमा के सामने देखी गयी, वह तेरी ऑटो रिक्शा थी । वडी तू ही चीना पहलवान को वहाँ से लेकर भागा, तूने ही उसका खून किया । हमें सब मालूम है राज साईं ! उस रात डॉली के कोई बच्चा नहीं होने वाला था । जब फ्लाइंग स्कवॉयड दस्ते ने तेरी ऑटो रिक्शा मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर रोंकी, तो उसमें डॉली, चीना पहलवान की लाश के ऊपर लेटी थी ।”
“यह सब झूठ है ।” राज हलक फाड़कर चीखा- “झूठ है ।”
“वडी यह सब सच है हरामी, सच है ।” दीवानचन्द उससे भी ज्यादा जोर से चिल्लाया था ।
“ल...लेकिन अगर यह सब सच है ।” राज गले का थूक सटकता हुआ बोला- “तो यशराज खन्ना ने मेरे लिये अदालत में झूठ क्यों बोला ? आखिर वो तुम्हारा वकील था, तुमने उसे अप्वॉइंट किया था ।”
“राज साईं, खन्ना ने वह झूठ हमारे कहने पर बोला ।”
“त...तुम्हारे कहने पर ?”
“हाँ ।” सेठ दीवानचन्द ने दांत किटकिटाये- “वडी तभी तो तू पुलिस की कैद से आजाद होकर हम तक पहुँच सकता था नी । साईं तुझसे सारी हकीकत उगलवाने के लिये तेरा पुलिस कस्टडी से रिहा होना बेहद जरुरी था ।”
“ल...लेकिन तुम चीना पहलवान की हत्या के बारे में इतनी गहन पूछताछ क्यों कर रहे हो, तुम्हारा उससे क्या सम्बन्ध था ?”
“सम्बन्ध !” दीवानचन्द का चेहरा एकाएक धधकता ज्वालामुखी बन गया- “वडी तू मेरे और चीना पहलवान के सम्बन्धों के बारे में पूछता है नी ? साईं चीना पहलवान ताकत था मेरी, वो मेरा साथी था, मेरा दायां बाजू था ।”
“स...साथी !” राज के मुँह से सिसकारी छूटी- “च...चीना पहलवान तुम्हारा साथी था ?”
“न सिर्फ साथी था बल्कि वो मेरा दोस्त भी था वडी, वो मेरी हर योजना को कामयाब बनाता था ।”
राज की आंखों में आतंक की छाया डोल गयी ।
और अब उसे यह समझते देर न लगी कि सेठ दीवानचन्द क्यों चीना पहलवान के हत्यारे के पीछे पड़ा था, यह बात भी तीर की तरह उसके दिमाग में हलचल मचाती चली गयी कि सेठ दीवानचन्द ने यशराज खन्ना को पांच लाख रूपये की धनराशि उसके लिये नहीं दी थी बल्कि चीना पहलवान की रहस्यमयी मौत की गुत्थी सुलझाने की राह में उसने वो धनराशि खर्च की थी ।
तुरन्त ही राज के मानस-पटल पर उस दिन का दृश्य भी कौंधा, जब वह सीना चौड़ाकर दरीबा कलां में सेठ दीवानचन्द की दुकान पर मूर्ति बेचने गया था । उसे वह क्षण भी याद आये, जब उसने सेल्समैन के सामने चीना पहलवान का नाम ले दिया था । चीना पहलवान का नाम सुनते ही उसके शरीर में कैसी बिजली दौड़ी थी ? कितनी तेजी से वो मूर्ती लेकर अंदर की तरफ भागा था ?
जरूर इसीलिए तब उन्होंने अपने गुण्डे साथियों को वहाँ बुलाया था, क्योंकि उसने चीना पहलवान का नाम लिया था ।
 
राज के शरीर से पसीने की धारायें बहने लगीं ।
कितने बड़े चक्रव्यूह में फंसता जा रहा था वो ।
कैसे इतफाक हो रहे थे उसके साथ ।
वह मूर्ति भी बेचने गया था, तो सेठ दीवानचन्द की दुकान पर ।
उसी की दुकान पर जिसका चीना पहलवान साथी था ।
दाता !
दाता !!
☐☐☐
“ल...लेकिन इससे ये कहाँ साबित होता है ।” राज थोड़ी हिम्मत करके बोला- “कि चीना पहलवान का खून मैंने किया है ?”
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उसे फिर भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा- “वडी यह अदालत नहीं है, जहाँ कुछ भी साबित करने के लिये गवाहों की जरुरत होती है, सबूतों की जरुरत होती है । वडी हमें जो भी साबित करना होता है, जिससे जो भी कबूलवाना होता है, दो ही झांपडों में कबूलवा लेते हैं । लठ के दम पर कबुलवा लेते हैं । समझा नी !”
राज के पूरे शरीर में खौफ की लहर दौड़ गयी ।
“ल...लेकिन... ।”
“यह ऐसे कुछ नहीं बोलेगा बॉस !” अजनबी ने उसकी बात बीच में ही काट दी- “यह बड़ा गुरु-घंटाल आदमी है, जितना शरीफ दिखाई देता है, वास्तव में उतना ही चलता पुर्जा है, उतना ही खुराफाती है ।”
“अच्छा !”
“बिलकुल बॉस ! अगर यह भला मानस होता, तो इंस्पेक्टर योगी के सामने ही सब कुछ न बक देता । तुम मुझे इजाजत दो बॉस !” उसने थोड़ी व्यग्रता प्रदर्शन किया- “मैं अभी इसकी ऐसी धुनाई करता हूँ कि यह सब कुछ बकता हुआ नजर आयेगा ।”
“रहने दे-रहने दे ।” सेठ दीवानचन्द मीठी जबान में बोला- “वडी तू क्यों मार-पिटाई करता है, क्यों झगड़ा-फसाद करता है ? यह बहुत भला-मानस आदमी है, यह ऐसे ही सब कुछ बता देगा ।”
“यह इस तरह कुछ नहीं बतायेगा ।”
“ठीक है, मैं ट्राई करके देखता हूँ । अगर यह प्यार-मोहब्बत से कुछ न बताये, तो फिर तुम इसका जो मर्जी आये करना । राज साईं !” फिर सेठ दीवानचन्द ने बड़ी शहद मिश्रित जबान में उसे पुकारा ।
तुरन्त राज के गले की घण्टी जोर से उछली ।
उसे अपने देवता कूच करते महसूस दिये ।
“वडी तू काहे को अपनी धुनाई करवाना चाहता है साईं ! क्यों अपने इस जिस्म का पलस्तर उधड़वाना चाहता है । वडी तू कबूल क्यों नहीं कर लेता कि तूने ही चीना पहलवान का खून किया है ।”
“म...मैंने चीना पहलवान का खून नहीं किया ।”
“फिर झूठ !” अजनबी ने गुस्से में चिंघाड़ते हुए उसका गिरेहबान पकड़ लिया- “फिर झूठ !”
अजनबी ने धड़ाधड़ उसके मुँह पर झांपडों की बारिश डाली । इस बार सेठ दीवानचन्द ने भी कोई हस्तक्षेप न किया ।
फिर पिटाई का वह बेहद खौफनाक सिलसिला शुरू हो गया, जो पिछले कई दिन से राज का शायद नसीब बन चुका था ।
☐☐☐
राज चिल्लाता रहा ।
हाहाकार करता रहा ।
डकराता रहा ।
लेकिन अजनबी ने उसकी दुर्दान्त धुनाई का रूटीन जारी रखा । जब राज की धुनाई करते-करते वह बुरी तरह हाँफने लगा था, तो वह उसे घसीटता हुआ पब्लिक टेलीफोन बूथ जैसे शीशे के एक केबिन के पास ले गया ।
“इस केबिन को देख रहा है, यह टॉर्चर केबिन है । मैं जब तुझे इस केबिन के अंदर बंद करूंगा, तो तू मौत मांगेगा । तू इस तरह तड़पेगा, जैसे रेगिस्तान की गरम रेत पर मछली तड़पती है ।”
अजनबी ने वह शब्द गुर्राते हुए कहे और उसके बाद राज को शीशे के उसी केबिन के अंदर धकेल दिया ।
इतना ही नहीं, उसे धकेलते ही उसने धड़ाक से दरवाजा भी बंद कर दिया था ।
केबिन के दायीं तरफ प्लाईबोर्ड पर एक पैनल भी लगा था, फिर अजनबी ने पैनल पर लगा एक स्विच भी दबा दिया ।
फौरन ही केबिन के अंदर लगे एक इंच व्यास के दो पाइपों के अंदर से पीले रंग की गैस निकलकर केबिन में भरनी शुरू हो गयी ।
वह ज्वलनशील गैस थी ।
कुछ ही देर बाद केबिन की स्थिति यह हो गयी कि उसके अंदर मौजूद राज दिखाई देना बंद हो गया ।
अब केबिन में सिर्फ गैस-ही-गैस दिखाई दे रही थी ।
पीली गैस !
तब अजनबी ने पैनल में लगा एक दूसरा स्विच दबाया ।
फौरन ही वो अन्य पाइप केबिन में मौजूद गैस को वापस खींचने लगे थे । जितनी तेजी से केबिन के अंदर गैस फैली थी, उतनी ही तेजी से वो वापस हटने लगी ।
जल्द ही सारी गैस केबिन के अंदर से गायब हो गयी थी ।
गैस के हटते ही केबिन में बंद राज नजर आया ।
उस थोड़ी देर में ही उसकी जीर्ण-शीर्ण हालत हो गयी थी ।
वह गठरी-सी बना पड़ा जोर-जोर से खांस रहा था ।
फिर अजनबी ने कैबिन का दरवाजा खोलकर उसे बाहर घसीट लिया ।
राज जैसे ही बाहर के वातावरण में आया और जैसे ही बाहर के वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन उसके शरीर से टकराई, तो वह आर्तनाद कर उठा ।
उसे यूं लगा, मानों उसकी नस-नस सुलग उठी हो ।
अंग-अंग जलने लगा हो ।
वह चीखने लगा, वह सचमुच मछली की तरह छटपटाने लगा और अपने जिस्म के एक-एक अंग को झंझोड़ने लगा ।
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द अपने जूते ठकठकाता हुआ उसके करीब पहुँचा- “वडी अब तो तेरी अक्ल ठिकाने आयी नी या अभी भी नहीं आयी ? तू क्यों अपनी जान का दुश्मन बनता है । राज साईं, क्यों अपनी हड्डी-पसली बराबर कराता है । वडी अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, बोल पड़ ! बोल पड़ !! वरना हमारे पास तेरे जैसे मच्छर की जबान खुलवाने के ऐसे-ऐसे नायाब हथकण्डे हैं कि तू तो तू तेरे फरिश्ते भी घबराकर बोल पड़ेंगे ।
☐☐☐
फिर एक और ऐसी घटना घटी, जिसने राज को और अधिक चौंकाकर रख दिया ।
दरअसल सेठ दीवानचन्द ने अपनी जेब से एक मूर्ति निकाली थी, फिर उसे राज की पीड़ा से छटपटाती आंखों के गिर्द नचाता हुआ बोला-“साईं पहचानता है इस मूर्ति को ?”
राज ने फौरन वो मूर्ति पहचान ली ।
वो वही नटराज की मूर्ति थी, जिसे वो हड़बड़ाहट में ज्वैलरी शॉप पर छोड़ आया था ।
“वडी तू कुछ बोलता क्यों नहीं ?” सेठ दीवानचन्द गुर्राया- “पहचानता है इस मूर्ति को ?”
“ह...हाँ ।” राज की गर्दन बड़ी मुश्किल से हिली- “हाँ ।”
“यह मूर्ति तेरे पास कहाँ से आयी ?”
“म...मैंने इसे चुरायी थी ।”
“तूने !” सेठ दीवानचन्द हिस्टीरियाई अंदाज में चिंघाड़ उठा- “इसे तूने चुराया ?”
“ह...हाँ ।”
“राज साईं !" दीवानचन्द ने दांत किटकिटाये- “वडी क्यों तेरी खाल मसाला मांग रही है ? क्यों तू मरना चाहता है ? वह मूर्ति तूने चुरायी कंजर-तूने ! है तेरे अंदर इतना दम, जो तू इस मूर्ति को चुरा सके ।”
राज ने अपने होंठ सख्ती से भींच लिये ।
“वडी तू यही बात इंस्पेक्टर योगी के सामने बोल देगा, अपने बयान से फिरेगा तो नहीं तू ?”
राज बगलें झांकने लगा ।
एक बात वो अब तक भली-भांति समझ चुका था, सेठ दीवानचन्द सिर्फ दिल्ली शहर के सर्राफों का सर्राफ ही नहीं है बल्कि वह कोई बड़ा गैगस्टर भी है, रैकेटियर भी है ।
“साले !” सेठ दीवानचन्द ने गुस्से में उसके बाल पकड़कर बुरी तरह झंझोड़े- “जिस मूर्ति को तू अपने द्वारा चुरायी गयी बता रहा है, वडी वो नेशनल म्यूजियम की चोरीशुदा मूर्ति है । और उन मूर्तियों को तूने नहीं बल्कि चीना पहलवान के साथ मिलकर हमने चुराया था, हम सबने । उन मूर्तियों की संख्या छः थी राज साईं, जिन्हें चीना पहलवान हादसे वाली रात हमारे सुपर बॉस डॉन मास्त्रोनी को सौंपने जा रहा था । लेकिन बीच रास्ते में ही तूने चीना पहलवान की हत्या करके उससे वह सभी छः नटराज मूर्तियां हड़प लीं । अब यह बता वह सभी छः नटराज मूर्तियां कहाँ है ?”
छः नटराज मूर्तियां !
राज ने नेत्र अचंभे से फैले ।
उसे ऐसा लगा, मानो सेठ दीवानचंद कोई भारी मजाक कर रहा था । एक नटराज मूर्ति तो खुद सेठ दीवानचन्द के हाथ में थी, फिर भी बाकी मूर्तियों की संख्या छः कैसे संभव थी ?
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उसके बाल और बुरी तरह झंझोड़े-“वडी जल्दी बोल, छः नटराज मूतियां कहाँ हैं ?”
“ल...लेकिन अभी भी उन नटराज मूर्तियों की संख्या छः कैसे हो सकती है साहब ?”
“यह बता, उन मूर्तियों की संख्या छः कैसे नहीं हो सकती ?”
“क...क्योंकि साहब !” राज डरते-डरते बोला- “एक मूर्ति तो तुम्हारे हाथ में ही है ।”
“यह !” दीवानचन्द चिंघाड़ा- “यह तुझे मूर्ति दिखाई देती है ?”
अब !
अब राज के नेत्र और ज्यादा हैरानी से फैले ।
उसने अपनी पलकें फड़फड़ाकर मूर्ति को देखा, लेकिन वो शत-प्रतिशत मूर्ति ही थी ।
नटराज जी अपनी चिताकर्षक मुद्रा में विद्यमान !
“म...मुझे तो यह मूर्ति ही दिखाई देती है साहब !”
फौरन सेठ दीवानचन्द के भारी-भरकम हथौड़े जैसे हाथ का एक ऐसा झन्नाटेदार झांपड़ उसके मुँह पर पड़ा कि वो खड़े-खड़े फिरकनी की तरह घूम गया ।
उसकी आंखों के गिर्द रंग-बिरंगे तारे झिलमिला उठे ।
“साले-कंजर !” सेठ दीवानचन्द ने मूर्ति फिर उसकी आंखों के गिर्द नचायी- “वडी क्या तेरे को यह अब भी ये वही मूर्ति नजर आती है ?”
“ह...हाँ, यह....वही मूर्ति है ।”
धड़ाधड़ दो झांपड़ और उसके मुँह पर पड़े ।
राज की रुलाई छूटते-छूटते बची ।
“हरामजादे ! यह नटराज मूर्ति जो तू हमारी ज्वैलरी शॉप पर बेचने आया था, पीतल की मूर्ति है, सिर्फ पीतल की । इस पर सोने का पानी चढ़ा है ।”
☐☐☐
राज सन्न रह गया ।
उसके दिल-दिमाग पर बिजली-सी गड़गड़ाकर गिरी ।
इ...इसका मतलब जिन मूर्तियों के लिये इतना बड़ा हंगामा हुआ, जिनकी वजह से उसकी इतनी धुनाई हुई, व...वही मूर्तियां पीतल की हैं ?
दाता !
दाता !!
राज का दहाड़े मार-मारकर रोने को दिल चाहा ।
“वडी राज साईं ।” सेठ दीवानचन्द ने उसके सिर पर हाथ फेरा, लेकिन उस हाथ फेरने में भी धमकी जैसा अहसास था- “अब तो तेरी समझ में आया कि इन मूर्तियों के अलावा भी तेरे पास छः और नटराज मूर्तियां कैसे हो सकती हैं । साईं, अब तू सीधे-सीधे मुझे यह बता कि तूने असली सोने की मूर्तियों कहाँ छिपाकर रख छोड़ी हैं ? इसके अलावा यह भी बता कि तूने यह सारा नाटक किसलिये किया ? किस वास्ते चीना पहलवान से शुद्ध सोने की मूतियां हड़पकर यह नकली पीतल की मूर्तियां बनवाईं ? फिर इन्हें हमारी ज्वैलरी शॉप पर ही क्यों बेचने आया ? इसके पीछे भी जरूर कोई गहरा चक्कर है । वडी यह तेरे अकेले का काम तो हर्गिज भी नहीं हो सकता नी ! जरूर तेरे साथ हमारा कोई दुश्मन भी मिला है । राज साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उसके सिर पर हाथ फेरते-फेरते उसके बालों को अपनी मुट्ठी में कसकर जकड़ लिया- “अगर तू आज अपनी खैरियत चाहता है, अगर तू अपनी बॉडी के कलपर्जों को टुटवाना नहीं चाहता, तो चुपचाप मुझे मेरे दुश्मन का नाम बता दे । सोने की मूर्तियों का एड्रेस बता दे, वरना आज तेरी खैर नहीं साईं । फिर तो तू अपनी ज़िंदगी की किश्ती को डूबा समझ ।”
राज दहशत से पीला पड़ गया ।
उसे दूर-दूर तक अपने छुटकारे के आसार नजर नहीं आ रहे थे ।
“क्या तूने सोने की मूर्तियां डॉली के पास रख छोड़ी हैं ?”
“न...नहीं ।” राज के जिस्म का रोआं-रोआं खड़ा हो गया ।
“फिर किसके पास रख छोड़ी हैं ? वडी कहीं तूने उस आदमी के पास तो असली मूर्तियां नहीं रख छोड़ी, जिसने इस पूरे खेल में हमारे खिलाफ तेरी मदद की ?”
“ऐसा कोई आदमी नहीं है ।” राज चिल्लाया- “यकीन मानो, ऐसा कोई नहीं है ।”
“फिर यह करिश्मा कैसे हो गया साईं ? वडी असली मूर्तियां किधर गयीं ?”
“मेरे पास नहीं हैं ।”
“वही तो मैं तुझसे पूछ रहा हूँ नी, अगर तेरे पास नहीं हैं तो किसके पास हैं ? मुझे एड्रेस क्यों नहीं बता देता तू ?”
राज ने अपने आपको विचित्र-सी दुविधा में फंसा महसूस किया ।
“द...देखो साहब !” राज लगभग पराजित स्वर में बोंला- “म...मैं कबूल करता हूँ कि मैंने चीना पहलवान के ब्रीफकेस से मूर्तियां हथियाई थीं, ल...लेकिन मैं इश्वर की सौगन्ध खाकर कहता हूँ, मैंने उसका खून नहीं किया, म...मैं खूनी नहीं हूँ । और जो मूर्तियों मैंने चीना पहलवान के ब्रीफकेस से हथियाई थीं, वो भी यही मूर्तियां थीं ।”
“य...यह !” दीवानचन्द बोला- “पीतल की मूर्तियां ?”
“हाँ, यही नकली मूर्तियां साहब ! अगर मुझे पहले से इस बात का पता होता कि यह मूर्तियां पीतल की हैं, तो यकीन जानो-मैं कभी इस चक्कर में न पड़ता ।”
सेठ दीवानचन्द सहित सेल्समैन और अजनबी की आंखों में भी अब हैरानी के निशान उभर आये ।
उन्होंने सवालिया निगाहों से एक-दूसरे की तरफ यूँ देखा, मानो वह इस बात की तस्दीक करना चाहते हों कि राज की बात पर यकीन किया जाये या नहीं ?
“कहीं तू यह बात तो साबित नहीं करना चाहता बिरादर !” इस बार अजनबी बोला- “कि असली मूतियां तो चीना पहलवान का हत्यारा ले गया और वो उन असली मूर्तियों की जगह ब्रीफकेस में नकली पीतल की मूर्तियां रख गया ?”
राज की आंखों में तेज चमक कौंध उठी ।
लेकिन जल्द ही उसकी आंखों से वो चमक भी गायब हो गयी ।
“नहीं ।” राज की गर्दन इंकार में हिली- “यह नहीं हो सकता ।”
“क्या नहीं हो सकता ?”
“यही कि जिसने चीना पहलवान का खून किया, वही उन मूर्तियों को भी ले उड़ा ?”
“क्यों ?” सेठ दीवानचन्द की आंखों में सस्पैंस के भाव पैदा हुए- “वडी तेरे को यह बात कैसे मालूम कि वही उन मूर्तियों को न ले उड़ा ?”
“क्योंकि साहब, हत्यारे की दो गोलियां लगने के बावजूद भी चीना पहलवान अपने पैरों पर दौड़ता हुआ मेरी ऑटो में आकर बैठा था, उस वक्त वह पूरे होश-हवास में था, अगर हत्यारे ने उसके ब्रीफकेस में से मूर्तियां निकालने की कोशिश की होती, तो उसकी तरफ से जबरदस्त विरोध जरूर होना था । फिर तुम लोगों को अखबार के माध्यम से इतना तो मालूम हो ही गया होगा कि गोलियां चलने की आवाज सुनते ही फ्लाइंग स्क्वॉयड की गश्तीदल गाड़ी फौरन तूफानी गति से गली के अंदर दौड़ी थी । अगर यह मान भी लिया जाये कि हत्यारे ने मूर्तियों को बदलने की हौसलामंदी दिखाई थी, तब भी वह इतनी जल्दी तो अपना काम हर्गिज भी अंजाम नहीं दे सकता था कि गश्तीदल की गाड़ी गली में पहुँचने से पहले ही उसने मूर्तियां भी बदल दीं और वो वहाँ से फरार भी हो गया ।”
तीनों हैरतअंगेज नजरों से राज को देखने लगे ।
“साहब !” राज वातावरण को अपने पक्ष में होते देख बोला- “हत्यारा मूर्तियों को न ले उड़ा हो, इसका एक और बड़ा पुख्ता सबूत मेरे पास है ।”
“क...कैसा सबूत ?”
“जब चीना पहलवान मेरी ऑटो में आकर बैठा था ।” राज उन्हें एक-एक बात अच्छी तरह समझाता हुआ बोला- “तो उसने ब्रीफकेस बड़े कसकर अपने सीने से चिपटा रखा था । अगर हत्यारे ने उसके ब्रीफकेस के अंदर से असली मूर्तियां निकाल ली थीं, तो चीना पहलवान को क्या जरूरत थी कि वह गोलियां लगने के बावजूद भी उन ब्रीफकेस को अपने सीने से चिपटाये रखता ? लेकिन मैंने खुद अपनी आंखों से देखा था साहब, उसने न सिर्फ तब ब्रीफकेस को अपने सीने से चिपटा रखा था बल्कि अपने जीवन की आखिरी सांस तक भी वह उस ब्रीफकेस को अपने सीने से चिपटाये हुए था ।”
राज की बात सुनकर उस हॉल जैसे बड़े कमरे में सन्नाटा छा गया ।
“वडी इस पूरे घटनाचक्र से तो एक और बात भी साबित होती है ।” दीवानचन्द बोला ।
“कौन-सी बात ?
“यही कि उन मूर्ती को कम-से-कम चीना पहलवान ने भी नहीं बदला था ।”
“क्यों ?”
“वडी अगर उसने वो मूर्तियां बदली होतीं, तब भी उसे क्या जरुरत पड़ी थी, जो वह उस ब्रीफकेस को अपने जीवन की आखिरी सांस तक बच्चे की तरह सीने से चिपटाये रखता । उसके द्वारा आखरी सांस तक ब्रीफकेस को अपने सीने से चिपटाये रखना ही इस बात को साबित करता है कि चीना पहलवान नकली मूर्तियों की तरफ से पूरी तरह अंजान था ।”
सेठ दीवानचन्द के तर्क में वाकई जान थी ।
उस तर्क ने सभी को प्रभावित किया ।
अब सवाल ये था कि अगर वह मूर्तियां चीना पहलवान ने भी नहीं बदली थीं, तो फिर किसने बदलीं ?
और बदली भी इस ढंग से कि चीना पहलवान को कानों-कान भनक तक न हुई ।
“राज !” तभी सेल्समैन, राज से सम्बोधित हुआ- “एक बता बतायेगा ?”
“पूछो ।”
“तू बुद्धवार की रात अपनी ऑटो लेकर रीगल सिनेमा के सामने क्यों खड़ा था, जबकि यूनियन की हड़ताल चल रही थी ?”
राज ने सारा घटनाक्रम बता दिया ।
सच-सच बता दिया ।
“यानि...यानि तू वहाँ सिर्फ इसलिये खड़ा था, ताकि नाइट शो खत्म होने पर तू वहाँ से कोई सवारी ले जा सके और अपनी उधारी चुकता कर सके ?”
“हाँ ।”
“इसके अलावा कोई और वजह नहीं ?”
“बिलकुल नहीं ।”
“वडी तेरे को यह भी मालूम है ।” एकाएक सेठ दीवानचन्द दांत किटकिटाकर बोला- “कि अगर तेरे को वहाँ खड़ा ऑटो रिक्शा वाला तेरा कोई भाई-बंद देख लेता, तो यूनियन में तेरी क्या दुर्गति होती ?”
राज ने अपने होंठ सी लिये ।
“राज साईं, वह हड़ताल तोड़ने के जुर्म में तेरे खिलाफ कोई सख्त कदम उठा सकते थे । तुझे यूनियन मेम्बरशिप से बर्खास्त कर सकते थे । इतना ही नहीं, वह तेरा दिल्ली शहर में ऑटो रिक्शा भी चलाना बंद करा सकते थे ।”
“म...मैं जानता हूँ ।”
“सब कुछ जानते-बुझते तूने ऐसा किया नी, वडी बता सकता है क्यों ?”
“क्योंकि मैं उस समय नशे में था ।” राज बोला- “उस वक्त मुझे मालूम नहीं था कि मैं क्या करने जा रहा हूँ । उस वक्त तो मेरे ऊपर एक ही भूत सवार था, मैं किसी भी तरह दारु की उधारी चुका दूं ।”
“बकता है साला !” अजनबी उसे फिर मारने दौड़ा ।
“रहने दे-रहने दे ।” दीवानचन्द ने उसे बीच में ही पकड़ लिया ।
“आप नहीं जानते बॉस !” अजनबी गुर्राया- “यह साला देखने में जरूर डेढ़ पसली का है, लेकिन पक्का हरामी है, पक्का कमीन है । देखा नहीं, पहले ही कैसी शानदार कहानी गढ़ के लाया है कंजर !”
उसने गुस्से में झुंझलाते हुए राज के पेट में एक लात जड़ दी ।
पुनः हलक फाड़कर डकराया राज !
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उसे कहर बरपा करती नजरों से घूरा-“वडी मैं तेरे को आखिरी वार्निंग दे रहा हूँ । जो बात है, सच-सच बता दे । क्योंकि हमारी निगाह में और कोई ऐसा शख्स नहीं, जो मूर्तियां बदलने की जुर्रत कर सके या जिसे मूर्तियां बदलने का मौका हासिल हो । वडी सारे हालात चीख-चीखकर तुझे ही अपराधी ठहरा रहे हैं और कह रहे हैं कि असली मूर्तियां अभी भी तेरे पास हैं ।”
“मेरे पास मूर्तियां नहीं हैं, नहीं हैं ।” राज हलक फाड़कर डकरा उठा- “अगर मेरे पास असली मूर्तियां होती तो मुझे क्या जरुरत थी, जो मैं पीतल की मूर्तियां बनवाता ? फिर उन मूर्तियों को बनवाकर मैं तुम्हारी ही ज्वैलरी शॉप पर बेचने भी जाता ? मैंने जो कहना था साहब, कह दिया । अगर आप लोग अब भी मुझे अपराधी मानते हो, अब भी मुझे कसूरवार समझते हो, तो लो- मेरा जो मर्जी आये करो, मार डालो मुझे । कूट डालो मुझे ।”
कहने के साथ राज वहीं फर्श पर हाथ-पैर फैलाकर लेट गया तथा धीरे-धीरे सुबकने लगा ।
तीनों की हालत अजीब हो गयी ।
तीनों स्तब्ध !
क्या करें ?
“साईं !” तभी सेठ दीवानचन्द ने उसकी पीठ थपथपाई- “चल अब खड़ा हो ।”
राज खड़ा न हुआ ।
“वडी अब खड़ा भी हो नी, क्यों नखरे करता है ?”
दीवानचन्द ने उसे जबरदस्ती खड़ा किया ।
राज सुबकियां लेता हुआ अपने स्थान से उठा ।
“चल अब यह रोना-धोना बंद कर और चुपचाप हमें यह बता कि तूने इसके साथ की बाकि पांच मूर्तियां कहाँ छिपा रखी हैं ?”
“म...डॉली के पास है ।”
“वह मूर्तियां हमें लाकर देगा ?”
राज ने सुबकते हुए ही स्वीकृति में गर्दन हिला दी ।
यह मालूम होने के बाद कि वह नटराज मूर्तियां वास्तव में सोने की नहीं बल्कि पीतल की हैं, अब उसे उनका करना भी क्या था ?
☐☐☐
 
अजनबी का नाम दुष्यंत पाण्डे था ।
दुष्यंत पाण्डे ही राज को सफेद रंग की होंडा सिटी कार में बिठाकर वापस सोनपुर तक ले गया ।
कार उसने सोनपुर के बाहर ही खड़ी कर दी ।
फिर वह राज की आंखों से काली पट्टी खोलता हुआ बोला- “जा, तू डॉली से मूर्तियां लेकर आ । मैं यहीं खड़ा हूँ ।”
राज बड़ा हैरान हुआ ।
दुष्यंत पाण्डे ने उसके जाने और वापस आने की बात कुछ ऐसे यकीन के साथ कही थी, मानों उसे इस बात का पूरा भरोसा था कि वह लौट ही आयेगा ।
फरार नहीं होगा ।
राज हैरान-सी मुद्रा में चुपचाप सोनपुर की तरफ बढ़ा ।
“और सुन !”
राज के कदम ठिठके ।
“अगर साले !” पाण्डे दांत किटकिटाकर बोला- “तूने सेठ जी के सम्बन्ध में डॉली के सामने या किसी के सामने एक शब्द भी जबान से बाहर निकाला, तो तेरी खैर नहीं ।”
“हूँ !”
“चल अब फूट यहाँ से और जल्दी लौटकर आ ।”
राज तेज-तेज कदमों से सोनपुर की तरफ बढ़ गया ।
☐☐☐
उस वक्त पूरे सोनपुर में गहन अंधकार व्याप्त था ।
रात के बारह या एक बजे का वक्त रहा होगा ।
राज, डॉली के घर के सामने पहुँचा और उसने दरवाजा थपथपाया ।
“कौन ?” अंदर से फौरन डॉली की आवाज उभरी ।
“मैं राज !”
तुरंत सांकल खुलने की आवाज हुई तथा फिर झट से दरवाजा खुल गया ।
“तू ! आ, अंदर आ ।” राज को देखते ही डॉली का चेहरा खिल उठा था ।
राज ने अंदर कदम रखा ।
पूरे घर में काजली अंधेरा व्याप्त था ।
“तू यहीं ठहर, मैं रोशनी का इंतजाम करती हूँ ।”
डॉली तेजी के साथ पेट्रोमेक्स की तरफ बढ़ी और जल्द ही उसने पेट्रोमेक्स जला दिया ।
पेट्रोमेक्स जलते ही चारों तरफ रोशनी फैल गयी ।
राज एकदम से तड़प उठा, रोशनी फैलते ही उसने देखा कि डॉली के साफ-सुथरे कपोलों पर आंसुओं की ढेर सारी बूंदें जमीं हुई थीं ।
जरूर डॉली उसके वहाँ आने से पहले काफी देर तक रोती रही थी ।
“ऐ, इस तरह क्या देख रहा है ?” डॉली बोली ।
“क...कुछ नहीं ।”
“कुछ तो ?”
“लाइट को क्या हुआ ?” एकाएक राज विषय बदलकर बोला-“बाहर तो सबकी आ रही है ।”
डॉली का चेहरा सुत गया ।
“अ...अपनी लाइट नहीं आयेगी राज !” डॉली बोली ।
“क...क्यों ?”
“आज दोपहर कट गयी ।”
“ल...लाइट कट गयी ।” राज इस तरह चौंका, मानो उसे बिच्छू ने काटा हो- “म...मगर क्यों ?”
“तू इस बात को छोड़ राज ! तू मुझे यह बता कि आज सुबह से कहाँ गायब था, मैं सारा दिन परेशान होती रही ।”
“मैं तेरे हर सवाल का जवाब दूंगा डॉली, लेकिन पहले मुझे यह बता कि लाइट कैसे कटी ?”
“कैसे कटती ।” डॉली थोड़ा कुपित होकर बोली- “मैंने पिछले दो महीने से बिजली का बिल नहीं भरा था, इस बृहस्पतिवार को बिल जमा करने की आखिरी तारीख थी, जिसे मैं नहीं जमा कर सकी । इसीलिए आज बिजली विभाग के दो कर्मचारी आये और लाइट काट गये ।”
“ब...बृहस्पतिवार बिल जमा करने की आखिरी तारिख थी ?” राज के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“हाँ ।”
“कहीं...कहीं तूने बिल की रकम से ही तो मेरी उधारी नहीं चुका दी डॉली ?”
डॉली नजरें झुकाये खड़ी रही ।
जबकि राज तड़प उठा था ।
“ल...लेकिन तू अपने ऑफिस के साथियों से भी तो रुपये लेकर बिल जमा कर सकती थी डॉली ?”
“वो अब मुझे कभी रुपये नहीं देंगे ।”
“क...क्यों ?”
“क्योंकि आज जब ऑफिस के बॉस को यह मालूम हुआ कि मैं तुम्हारे बच्चे की कुंवारी मां बनी थी, तो उन्होंने मुझे नौकरी से भी निकाल दिया ।”
हे भगवान !
राज का सीना छलनी होता चला गया ।
कैसा कहर टूट रहा था उसके ऊपर ।
“अब तू इन सब बातों को छोड़ राज !” डॉली बोली- “और मुझे यह बता कि अदालत में जब बल्ले ने तेरे ऊपर हमला किया था, तो तू जख्मी तो नहीं हुआ ? कैसा खतरनाक दरिन्दा बन गया था बल्ले एकाएक, तेरे वकील यशराज खन्ना को तो उसने वहीं जान से मार डाला ।”
“ख...खन्ना मर गया ?” राज के नेत्र दहशत से फटे ।
“तुझे क्या लगता है, वो इतने चाकू लगने के बाद भी जिंदा रह सकता था ? मैंने खुद उसकी लाश देखी थी ।”
“अ...और बल्ले का क्या हुआ ?”
“वह तो तभी इंस्पेक्टर योगी को धक्का देकर फरार हो गया था ।”
“तब तो पुलिस बल्ले के पीछे लगी होगी ?”
“वह तो लगी है, लेकिन बल्ले आज दोपहर मेरे पास भी आया था ।”
“त...तुम्हारे पास, क्यों ?”
“बोलता था, अगर उसने एक हफ्ते के अंदर-अंदर तेरा खून न कर दिया, तो वह अपने बाप से पैदा नहीं ।”
राज के शरीर में खौफ की लहर दौड़ गयी ।
उसके गले की घण्टी जोर से ऊपर उछली ।
“ल...लेकिन जो आदमी तुझे अदालत से लेकर भागा था राज !” डॉली ने पूछा- “वह कौन था ? और आज तू सारा दिन कहाँ रहा ?”
राज ने उस दिन घटी तमाम घटनायें डॉली को बता दीं ।
“हे मेरे परमात्मा !” डॉली के नेत्र हैरत से फटे- “न...नटराज की वो मूर्तियां पीतल की हैं ?”
“हाँ ।”
“दाता ! दाता !” डॉली सिर पकड़कर धम्म् से वहीं चारपाई पर बैठ गयी-“यह भगवान हमारी कैसी परीक्षा ले रहा है, कौन से पापों की सजा दे रहा है हमें ?”
“अब इस तरह मातम मानाने से कुछ नहीं होगा ।” राज बोला- “तू जल्दी से मुझे मूर्तियां लेकर दे, बाहर दुष्यंत पाण्डे मेरा इंतजार कर रहा है ।”
“तू...तू मूर्तियां लेकर अब वापस सेठ दीवानचन्द के पास जायेगा ?”
“हाँ ।”
“तू पागल हुआ है ।” डॉली गुर्रा उठी- “दिमाग खराब हो गया है तेरा । वह भले लोग नहीं हैं राज ! तुझे अब वहाँ किसी भी हालत में लौटकर नहीं जाना चाहिये ।”
“ल...लेकिन ।”
“मैं जैसा कह रही हूँ, वैसा कर राज ! इसी में तेरी भलाई है, एक बात बोलूं ?”
“क्या ?”
“मुझे तो ऐसा लगता है, जैसे बुद्धवार की रात से आज तक तेरे साथ जितनी भी घटनायें घटी हैं, वो सब इत्तफाक नहीं है राज ! वह जरूर किसी की साजिश का एक हिस्सा है, कोई किसी चक्रव्यूह में फांसना चाह रहा है तुझे ।”
“लेकिन कौन ? कौन फांसेगा मुझे ?”
“यह तो मैं भी नहीं जानती । लेकिन मेरा दिल चीख-चीखकर गवाही दे रहा है कि एक के बाद एक यह सनसनीखेज घटनायें ऐसे ही नहीं घट रही राज, इन घटनाओं के पीछे जरूर कोई गहरी साजिश है । मुझे तो इस सारी साजिश में अब सबसे बड़ा हाथ उस सेठ का ही नजर आता है ।”
“स...सेठ दीवानचन्द का ?”
“हाँ, वही ।”
राज सोच में डूब गया ।
पिछले एक घण्टे से यही बात उसके दिमाग में घूम रही थी ।
“लेकिन फिलहाल मुझे वो मूर्तियां लेकर तो सेठ के पास जरूर जाना पड़ेगा ।”
“क्यों ?”
“वरना दुष्यंत पाण्डे यहीं न आ जायेगा ।”
“उसका भी एक तरीका है ।”
“क्या ?”
“हम अभी सोनपुर छोड़कर कहीं भाग जाते हैं ।”
“न...नहीं ।” राज सहम गया- “य...यह नहीं हो सकता डॉली ! तू उन लोगों को नहीं जानती, वह बड़े खतरनाक लोग हैं, मैं यहाँ से भागकर चाहे कहीं भी जा छिपूं, वह मुझे जरूर ढूंढ निकालेंगे । इतना ही नहीं, इस समय वो मेरे ऊपर थोड़ा-बहुत जो यकीन कर रहे हैं, फिर वो भी नहीं करेंगे ।”
डॉली का चेहरा रुई की तरह सफेद पड़ गया ।
“फिर क्या करेगा तू ?”
“मुझे मूर्तियां देने जाना ही होगा ।”
“ठीक है ।” डॉली बोली- “अगर मूर्तियां देना इतना ही जरुरी है, तो तू दुष्यंत पाण्डे को दे आ । उसके साथ सेठ दीवानचन्द के अड्डे तक किसी हालत में नहीं जाना ।”
राज ने डॉली की वह बात मान ली ।
अगले ही पल डॉली बरामदे में बनी छोटी-सी क्यारी को जल्दी-जल्दी खोदकर उसमें से नटराज मूर्तियां निकाल रही थी ।
☐☐☐
वह पांचों नटराज मूतियां राज ने अपनी पैंट की बेल्ट के नीचे अच्छी तरह कसकर बांध लीं और ऊपर से शर्ट ढक ली ।
नटराज मूर्तियां दिखाई देनी बिलकुल बंद हो गयीं ।
फिर राज ने डॉली के घर से बाहर कदम रखा ।
“म...मैं भी तुम्हारे साथ चलूं ?” डॉली बोली ।
“नहीं, तू यहीं रह । मैं दुष्यंत पाण्डे को मूर्तियां देकर अभी दो मिनट में आता हूँ ।”
“ल...लेकिन... ।”
“चिन्ता मत कर, मुझे कुछ नहीं होगा ।”
राज लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ सड़क पर चल दिया ।
डॉली उसे डरी-डरी आंखों से तब तक जाते देखती रही, जब तक वह नजरों से पूरी तरह ओंझल न हो गया ।
☐☐☐
यह बड़ी हैरानी की बात थी कि बुद्धवार की रात के बाद से हर पल, हर सैकिण्ड कोई-न-कोई नई घटना घट रही थी ।
और हर घटना ऐसी होती, जिससे राज षड्यन्त्र के ‘चक्रव्यूह’ में और अधिक उलझ जाता ।
फिर एक घटना घटी ।
दरअसल राज जैसे ही सोनपुर की पहली सड़क का मोड़ काटा था, तभी उसके शरीर में बिजली-सी दौड़ी ।
वह यूं कांपा, मानों किसी ‘शैतान’ के दर्शन कर लिये हों ।
सामने बुलेट मोटरसाइकिल पर इंस्पेक्टर योगी खड़ा था ।
“हैलो राज ।”
“अ...आप !” योगी को देखते ही राज के शरीर में आतंक की लहर दौड़ी- “अ...आप इतनी रात को यहाँ क्या कर रहे हैं साहब ?”
“तुम्हारा ही इंतजार कर रहा हूँ राज ।”
“म...मेरा इंतजार ! म...मुझसे क्या फिर कोई गलती हो गयी ?”
“तुम्हें अभी, इसी वक्त मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना है ।”
“ल...लेकिन मेरा अपराध क्या है साहब ?” राज शुष्क लहजे में बोला- “चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम से तो कोर्ट ने मुझे सुबह ही बरी किया है ।”
“मैं तुम्हें चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार नहीं कर रहा ।”
“फ...फिर ।”
“मुझे अभी चंद मिनट पहले ही टेलीफोन पर एक ‘गुमनाम टिप’ मिली है, मुझे बताया गया है कि दिल्ली शहर में संग्रहालयों की दुर्लभ वस्तुओं की चोरी करने वाला जो गिरोह सक्रिय है, तुम उस गिरोह के मैम्बर हो ।”
“म...मैं !” राज के मुँह से चीख-सी खारिज हुई- “मैं उस गिरोह का मैम्बर हूँ ?”
“हाँ, और इसीलिये मैं तुम्हें मेटीरियल विटनेस (शक) की बिना पर पुलिस हिरासत में ले रहा हूँ, ताकि मामले की आगे जांच-पड़ताल कर सकूं । क्योंकि दुर्लभ वस्तुओं की चोरी का मामला काफी संगीन मामला है और आजकल इस तरह की चोरियों को लेकर दिल्ली पुलिस में काफी हड़कम्प मचा है ।”
राज की जान हलक में आ फंसी ।
उसे फौरन उन पांच नटराज मूर्तियों का ख्याल आया, जो उसकी बेल्ट की नीचे बंधी थी ।
दाता !
दाता !!
कौन उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गया था ।
उस वक्त उसे वो मूर्तियां टाइम-बम लगीं । ऐसा टाइम-बम जो किसी भी क्षण फट सकता था ।
“स...साहब !” राज ने आर्तनाद-सा करते हुए कहा- “जरूर किसी ने आपको गलत टिप दी है । मेरा किसी गिरोह से कोई सम्बन्ध नहीं । म....मैं किसी गिरोह का मैम्बर नहीं ।”
“तुम्हें अब जो कहना है ।” इंस्पेक्टर योगी सख्ती से बोला- “पुलिस स्टेशन जाकर कहना ।”
“ल...लेकिन... ।”
“बकवास बंद !” योगी ने उसे जबरदस्त फटकार लगायी । फिर वह उसके हाथों में हथकड़ियां पहनाने के उद्देश्य से जैसे ही बुलेट से नीचे उतरा, उसी क्षण गली में तूफानी गति से दौड़ती हुई सफ़ेद होंडा सिटी प्रकट हुई थी ।
उसकी हैडलाइटों की तीखी रौशनी सीधी योगी के चेहरे पर पड़ी ।
इंस्पेक्टर योगी दुर्घटना का अनुमान लगा पाता, उससे पहले ही कार धुंआधार रफ्तार से दौड़ती हुई योगी के एकदम नजदीक जा पहुँची थी ।
योगी आतंकित मुद्रा में पलटकर भागा ।
लेकिन वो कहाँ तक भागता ?
किधर भागता ?
उसका शरीर धड़ाक की तेज आवाज करता हुआ सफ़ेद कार के अगले हिस्से से इस तरह टकराया, जैसे सड़क पर कोई पत्थर टकरा गया हो ।
टकराते ही योगी का शरीर कई फुट ऊपर हवा में उछला ।
फिर वो तेज ध्वनि करता हुआ सड़क पर जा गिरा ।
नीचे गिरते ही इंस्पेक्टर योगी के कण्ठ से एक ऐसी हृदयविदारक करुणादायी चीख खारिज हुई कि वह उस रात के सन्नाटे में ‘नगाड़े’ की तरह दूर-दूर गूंजी ।
उसी पल कार के ब्रेक चरमराये ।
उसके पहिये चीखते हुए रुके ।
फिर धड़ाक से कार का डोर खुला ।
डोर खुलते ही राज एकदम चीते की तरह जम्प लगाकर कार के अंदर घुस गया ।
फौरन कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे दुष्यंत पाण्डे ने क्लच दबाया और कार को गियर में डाल दिया ।
तत्काल होंडा सिटी कार बन्दूक से छूटी गोली की तरह सोनपुर से भाग खड़ी हुई ।
☐☐☐
खून में बुरी तरह लथपथ योगी की जब बेहोशी टूटी, तो उसने खुद को एक चारपाई पर लेटे पाया ।
उसके शरीर पर जगह-जगह पट्टियां बंधी थीं ।
योगी ने हड़बड़ाकर खड़े होने की कोशिश की, तो फौरन किसी ने उसकी बांह पकड़ ली ।
“लेटे रहो इंस्पेक्टर साहब, डॉक्टर ने थोड़ी देर आराम करने के लिये कहा है ।”
योगी की दृष्टि खुद-ब-खुद आवाज की दिशा में उठ गयी ।
और !
अगले पल उसके जिस्म में करण्ट-सा प्रवाहित हो गया था ।
सामने ‘बल्ले’ खड़ा था ।
“त...तुम !”
“क्यों !” मुस्कराया बल्ले- “मुझे देखकर हैरानी हो रही है साहब ?”
“ल...लेकिन मैं यहाँ आया कैसे ?” योगी ने पूछा- “म...मेरा तो एक्सीडेंट हुआ था ।”
“दरअसल जिस वक्त आपका एक्सीडेंट हुआ, ठीक उसी वक्त मैं भी सोनपुर में आया था । आपको खून से लथपथ सड़क पर पड़े देखा, तो मुझसे रहा न गया, मैं फ़ौरन आपको अपने घर ले आया ।”
“त...तुम !” योगी की हैरानी और बढ़ी-“तुम मुझे उठाकर लाये ?”
“हाँ ।”
“लेकिन तुम कानून के मुजरिम हो । यशराज खन्ना के खूनी हो और इस समय पूरी दिल्ली की पुलिस तुम्हारे पीछे है ।” इंस्पेक्टर योगी के चेहरे पर दुविधा के भाव उभर आये थे- “मुझे बचाते समय तुमने यह नहीं सोचा बल्ले, होश में आते ही मैं तुम्हें अरेस्ट भी कर सकता हूँ ?”
“सोचा था साहब, सोचा था ।” बल्ले ने गहरी सांस ली- “आपको देखकर मेरे दिमाग में सबसे पहले यही सवाल कौंधा था । लेकिन आपकी हालत इतनी नाजुक थी कि मुझसे रहा न गया और मैं आपको उठाकर ले आया ।”
योगी अचरज से बल्ले को देख रहा था ।
“इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले भावनाओं के प्रवाह में बोला- “मैंने यशराज खन्ना का खून किया जरूर है, लेकिन आवेश में किया है, जुनून में किया है । और यकीन मानो, अभी मेरे दिमाग में जुनून उतरा नहीं है इंस्पेक्टर साहब ! मेरे अंदर आग धधक रही है, ज्वालामुखी धधक रहा है । राज ने सिर्फ मेरे चाचा का ही खून नहीं किया बल्कि उसने उस इंसान का खून किया है, जिसने बचपन से आज तक मेरी परवरिश की थी, अपनी गोद में खिलाया था उसने मुझे । चीना पहलवान ही वो इकलौता इंसान था इंसपेक्टर साहब-जिसने मेरे मां-बाप के स्वर्गवासी होने के बाद सारी दुनिया का प्यार मेरे ऊपर न्यौछावर कर दिया । इसीलिये मैं हर खून माफ कर सकता हूँ, लेकिन चीना पहलवान का खून माफ नहीं कर सकता । मेरे अंदर धधकती यह आग अब उसी दिन बुझेगी, जिस दिन मैं राज के खून से अपने हाथ रंग लूंगा और मेरा दावा है कि ऐसा करने से अब दिल्ली पुलिस भी मुझे नहीं रोक सकती ।”
योगी फटे-फटे नेत्रों से बल्ले को देखता रह गया ।
डॉक्टर उसके होश में आने से पहले ही जा चुका था और इस समय उस पूरे घर में इंस्पेक्टर योगी तथा बल्ले के अलावा कोई न था ।
योगी कुछ देर आराम करता रहा, फिर वो आहिस्ता से बिस्तर छोड़कर उठा-“मेरी मोटरसाइकिल कहाँ है ?”
“बाहर ही खड़ी है ।” बल्ले बोला- “मैं उसे भी ले आया था ।”
योगी संभल-संभलकर दरवाजे की तरफ बढ़ा ।
“मुझे गिरफ्तार नहीं करोगे इंस्पेक्टर साहब ?”
योगी के कदम ठिठक गये ।
वह आहिस्ता से पलटा ।
“एक पुलिस इंस्पेक्टर होने के नाते यह मेरा फर्ज बनता है बल्ले !” योगी बोला- “कि मैं तुम्हें अभी और इसी वक्त गिरफ्तार कर लूं । लेकिन अफसोस -इस समय मेरे सामने वकील यशराज खन्ना का हत्यारा नहीं बल्कि सिर्फ एक इंसान खड़ा है । एक ऐसा इंसान, जिसके सीने में भावनायें हैं, जज्बात हैं और जिसने अभी-अभी एक आदमी की जान बचायी है । मैं नहीं जानता बल्ले-तुम्हारा यह रूप सच्चा है या फिर तुम यह कोई नाटक खेल रहे हो । हाँ, एक बात जरूर कहूँगा- मैं तुम्हारे इस रूप से प्रभावित जरूर हुआ हूँ, लेकिन एक बात का ख्याल जरूर रखना बल्ले !” एकाएक योगी की आवाज में चेतावनी का पुट आ गया- “आज के बाद तुम्हें इंस्पेक्टर योगी कहीं भी मिले, तो इस गलतफहमी में हर्गिज मत रहना कि वह तुम्हें बख्श देगा । इंस्पेक्टर योगी का कहर तुम्हारे ऊपर बिलकुल उसी तरह टूटेगा, जिस तरह किसी अपराधी के ऊपर इंस्पेक्टर का कहर टूटता है । क्योंकि तुम्हारे और मेरे बीच सिर्फ एक ही रिश्ता हो सकता है और वो रिश्ता है, अपराधी और इंस्पेक्टर के बीच का रिश्ता !”
“मुझे उस पल का बेसब्री से इंतजार रहेगा इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले ने भी बे-खौफ जवाब दिया- “जब कानून के एक रखवाले से मेरी मुलाकात होगी, फिलहाल जाते-जाते अपनी एक अमानत ले जाइये ।”
“अ...अमानत !”
“हाँ-अमानत !”
बल्ले ने वहीं स्टूल पर रखी एक नटराज मूर्ति उठाकर योगी की तरफ बढ़ाई ।
‘नटराज मूर्ति’ को देखते ही योगी के दिमाग में धमाका हुआ ।
“य...यह मूर्ति तुम्हारे पास कहाँ से आयी ?”
“सोनपुर में जिस जगह आपका एक्सीडेण्ट हुआ था, वहीं यह मूर्ति भी पड़ी थी ।”
“ओह !”
“लेकिन बात क्या है, आप इस मूर्ति को देखकर इतना चौंके क्यों ?”
“जानते हो ।” योगी के होठों पर हल्की-सी मुस्कान दौड़ी- “यह मूर्ति किस धातु की बनी है ?”
“नहीं, किस धातु की है ?”
“इस सवाल का जवाब तुम्हें आज नहीं बल्कि कल देश के तमाम अखबारों में छपा मिलेगा । हो सकता है, तब तुम्हें इस बात का सख्त अफसोस भी हो कि तुमने मुझे यह मूर्ति सौंपी तो क्यों सौंपी ।”
वह शब्द कहने के बाद मुड़ा इंस्पेक्टर योगी !
फिर मूर्ति लेकर तेज-तेज कदमों से बाहर खड़ी बुलेट मोटरसाइकिल की तरफ बढ़ गया ।
बल्ले के होठों पर अब मुस्कान थी ।
जहरीली मुस्कान !
☐☐☐
 
सेठ दीवानचन्द के अड्डे पर पहुँचने के बाद भी राज कितनी ही देर तक यूं हाँफता रहा था, जैसे सैंकड़ों मील लम्बी मैराथन दौड़ में हिस्सा लेकर अभी-अभी वहाँ आया हो ।
उसकी आंखों में दहशत-ही-दहशत थी ।
वहाँ राज का सबसे पहले सेल्समैन से सामना हुआ । उसका नाम दशरथ पाटिल था, वह पूना का रहने वाला था और एकदम ओरिजिनल मराठा था । लेकिन पिछले पांच साल से वो दिल्ली शहर में आकर बस गया था और अब दिल्ली के कुछ ऐसे गाढ़े रंग में रंग चुका था कि अपने सभी महाराष्ट्रियन संस्कारों को भूल चुका था ।
यहाँ तक कि वो जबान भी अब दिल्ली वाली बोलता था ।
अब तो उसकी जिंदगी में एक ही चीज का महत्व था, पैसा-पैसा और पैसा ।
☐☐☐
राज को इतनी बुरी तरह हाँफते देख दशरथ पाटिल भी चौंका ।
“क्या हुआ, तुम यूं हाँफ क्यों रहे हो ?”
तभी सेठ दीवानचन्द के आते ही दुष्यंत पाण्डे ने उन्हें आज इंस्पेक्टर योगी से हुई मुठभेड़ के बारे में बता दिया ।
सेठ दीवानचन्द के नेत्र आश्चर्य से फैले ।
“व...वडी इंस्पेक्टर योगी इसे गिरफ्तार क्यों करना चाहता था नी ?”
“साहब, वह बोलता था ।” राज ने भाव-विह्वल स्वर में बताया- “कि दिल्ली में आजकल दुर्लभ वस्तुओं की चोरी करने वाला जो गिरोह सक्रिय है, मैं उस गिरोह का सक्रिय सदस्य हूँ । किसी ने उसे यह बात फोन पर गुमनाम टिप देकर बतायी थी ।”
“ग...गुमनाम टिप !” सेठ दीवानचन्द चौंका- “व...वडी उसे यह गुमनाम टिप किसने दी ?”
“यह तो योगी को भी नहीं मालूम । लेकिन वह शख्स चाहे जो भी है साहब, वही इस सारे फसाद की जड़ है ।” राज ने आन्दोलित लहजे में कहा- “उसी ने मेरी हँसती-खेलती जिंदगी को यूं षड्यन्त्र रच-रचकर नरक के हवाले कर दिया है ।”
“धीरज रख राज साईं !” दीवानचन्द ने उसकी पीठ थपथपाई- “धीरज रख, वडी यूं आंदोलित होने से, यूं परेशान होने से कुछ नहीं होने वाला नी । तू यह बता, मूर्तियां लेकर आया ?”
“ह...हाँ ।”
“निकाल उन्हें ।”
राज ने पांचों मूर्तियां निकालने के मकसद से शर्ट ऊपर की ।
फिर उसकी नजर जैसे ही नटराज मूर्तियों पर पड़ी, वह सन्न रह गया ।
एकदम सन्न !
उनमें से एक मूर्ति गायब थी ।
“य...यह तो सिर्फ चार मूर्तियां हैं ।” दशरथ पाटिल के मुँह से सिसकारी छूटी ।
राज पसीनों से लथपथ हो गया ।
“ह...हाँ, ल...लेकिन मैं डॉली के घर से पांच मूर्तियां ही लेकर चला था ।”
“वडी फिर एक मूर्ति किधर है नी ?” सेठ दीवानचन्द झुंझला उठा-“साईं, एक मूर्ति को तेरा पेट निगल गया नी या फिर हवा खा गयी ?”
“ज...जरूर !” तभी राज आतंकित मुद्रा में बोला- “जरूर वह मूर्ति सोनपुर में उसी जगह गिर पड़ी है, जहाँ इंस्पेक्टर योगी और हमारी मुठभेड़ हुई थी ।”
“हे दाता !” दुष्यंत पाण्डे के शरीर में भी खौफ की लहर दौड़ गयी- “अगर वह मूर्ति योगी के हाथ लग गयी, तब क्या होगा ?”
सब स्तब्ध रह गये ।
☐☐☐
अगले दिन एक ऐसी हृदयविदारक घटना घटी, जिसने राज के रहे-सहे हौंसले भी पस्त कर दिये ।
सुबह का वक्त था ।
रात राज ने अड्डे में ही गुजारी थी ।
उस अड्डे के बारे में राज को अभी इतना ही मालूम हो सका था कि वो किसी इमारत के बेसमेंट में बना था ।
उसमें आठ विशालतम हॉल कमरे थे, बड़े-बड़े गलियारे थे, चार अटेच्ड बाथरूम थे, एक बातचीत करने के लिए बड़ा कॉफ्रेंस हॉल था, कुल मिलकर वहाँ सुख-सुविधा के तमाम साधन मौजूद थे ।
दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे वहीं सोते थे, जबकि सेठ दीवानचन्द की अशोक विहार के इलाके में बड़ी भव्य कोठी थी ।
उस वक्त तक सेठ दीवानचन्द भी वहाँ आ चुका था ।
तभी अखबार हाथ में लिये दुष्यंत पाण्डे वहाँ भागा-भागा आया ।
उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं ।
उसका हाल बुरा था ।
“क्या बात है, वडी घबरा क्यों रहा है नी ?”
“अ...आपने आज का अखबार पढ़ा बॉस ?”
“नहीं, अखबार तो नहीं पढ़ा, कोई ख़ास खबर छपी है साईं ?”
“खबर नहीं बल्कि तोप का गोला समझो बॉस, जो भी पढ़ेगा, उसी के चेहरे पर मेरी तरह हवाइयां उड़ने लगेंगी ।”
“वडी ऐसी भी क्या खबर छप गयी साईं, मैं भी तो देखूं ।”
सेठ दीवानचन्द, दशरथ पाटिल और राज, उसे देखकर वह तीनों वाकई बुरी तरह उछल पड़े ।
☐☐☐
अखबार के कवर पेज पर ही मोटी-मोटी सुर्खियों में छपा था:
दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाले संगठन का सुराग पता चला
राज के पास से एक मूर्ति बरामद
दिल्ली । कल आधी रात के समय सोनपुर की एक गली के अंदर इंस्पेक्टर योगी और कुख्यात अपराधी राज के बीच हुई भीषण भिड़न्त में दिल्ली पुलिस को सोने की एक नटराज मूर्ति बरामद हो गयी ।
उल्लेखनीय है कि नेशनल म्यूजियम से पिछले दिनों सोने की छः बेशकीमती नटराज मूर्तियां चोरी हो गयी थीं, जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में दस करोड़ रुपये कीमत थी । जो नटराज मूर्ति बरामद हुई, वह सोने की छः नटराज मूर्तियों में से ही एक है ।
बताया जाता है कि कल रात इंस्पेक्टर योगी को टेलीफोन पर एक गुमनाम टिप मिली थी, जिसमें किसी अज्ञात व्यक्ति ने इंस्पेक्टर योगी को बताया कि कुख्यात अपराधी राज दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाले गिरोह का सक्रिय सदस्य है और वो थोड़ी देर बाद ही सोने की नटराज मूर्तियां लेकर सोनपुर से फरार होने वाला है ।
टिप मिलते ही इंस्पेक्टर योगी ने फौरन सोनपुर पहुँचकर राज को जा दबोचा, लेकिन योगी उसे गिरफ्तार कर पाता, उससे पहले ही राज अपने एक साथी की मदद से उस पर हमला करके भाग खड़ा हुआ ।
सर्वविदित है कि विभिन्न संग्रहालयों से दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाला यह संगठन पिछले दो साल से दिल्ली शहर में सक्रिय है । इतना ही नहीं, यह संगठन अब तक लगभग बाईस करोड़ रुपये मूल्य की अनेक ऐतिहासिक वस्तुएं चोरी कर चुका है ।
इंस्पेक्टर योगी ने राज से बरामद मूर्ति पुरातत्व संग्रहालय को सौंप दी है । एण्टीक रिसर्च सेण्टर से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर यह साबित हो चुका है कि बरामद मूर्ति संग्रहालय से चोरी गयी असली नटराज मूर्ति ही है । दिल्ली पुलिस अब पूरी सरगर्मी से राज को तलाश कर रही है और राज को गिरफ्तार कराने वाले किसी भी व्यक्ति को एक लाख रुपये का नगद इनाम देने की घोषणा भी पुलिस की तरफ से कर दी गयी है ।
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उस खबर को पढ़कर सभी भौंचक्के रह गये ।
राज को तो जैसे सांप सूंघ गया था, वह दहशत से थर-थर कांपने लगा ।
“एक बात मेरी समझ में नहीं आयी ।” दशरथ पाटिल बोला ।
“क्या ?”
“यह कैसे संभव है कि पांच मूर्तियां जो राज ने हमें लाकर दीं, वह पीतल की है । जबकि जो नटराज मूर्ति इंस्पेक्टर योगी के हाथ लगी, वो सोने की है ?”
सब हैरान निगाहों से एक-दूसरे का चेहरा देखते रहे ।
कोई कुछ न बोला ।
“पाण्डे साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उस सन्नाटे को भंग किया ।
“जी बॉस !”
“वडी तू जल्दी से वो सभी नटराज मूर्तियां और कसौटी लेकर आ ।”
दुष्यंत पाण्डे तुरन्त वहाँ से दौड़ पड़ा ।
जल्द ही जब वो वापस लौटा, तो उसके हाथ में नटराज मूर्तियां और एक कसौटी थी ।
सेठ दीवानचन्द ने एक-एक करके उन सभी पांचों मूर्तियों को कसौटी पर घिसा ।
लेकिन निराशा !
घोर निराशा !
वह सभी मूर्तियां पीतल की थीं ।
“म...मैं पहले ही बोलता था साहब !” राज उत्तेजित होकर बोला-“कोई मुझे फांसने की कोशिश कर रहा है, कोई मेरे चारों तरफ जाल बिछा रहा है ।”
“लेकिन कौन ?” दीवानचन्द झल्ला उठा- “वडी कौन हरामी तेरे को फंसाने की कोशिश कर रहा है नी ? वडी कौन तेरे चारों तरफ जाल बिछा रहा है ? मुझे उसका पता-ठिकाना तो बता और यह मूर्ति वाला करिश्मा कैसे हो गया ? राज साईं, अखबार में एकदम साफ-साफ लिखा है कि बरामद मूर्ति सोने की असली नटराज मूर्ति है । उसमें शक-शुबहे की तो कोई गुंजाइश ही नहीं बची ।”
“मेरे दिमाग में एक बात आ रही है साहब !”
“क्या ?”
“जरूर !” राज पुनः उत्तेजित हो उठा- “जरूर इंस्पेक्टर योगी के पास वो नटराज मूर्ति नहीं है, जो बेल्ट के पीछे से निकलकर गिरी थी ।”
“फिर वो कौन-सी मूर्ति है साईं ?”
“जरूर मेरे पास से मूर्ति नीचे गिरने और इंस्पेक्टर योगी द्वारा मूर्ति उठाये जाने के बीच किसी ने वह मूर्ति बदल दी ।”
“व...वडी !” दीवानचन्द के नेत्र फैले गये- “वडी तू यह कहना चाहता है कि किसी ने पीतल की वह मूर्ति उठाकर इसकी जगह असली सोने की मूर्ति रख दी ?”
“हाँ, म...मैं बिलकुल यही कहना चाहता हूँ साहब !”
“लेकिन ऐसा कौन करेगा साईं, वडी किसी को ऐसा करने की क्या जरूरत पड़ी है नी ?”
“जरुरत पड़ी है साहब !” राज बोला- “यह हरकत जरूर उसी रहस्यमयी व्यक्ति ने की है, जिसने इंस्पेक्टर योगी को मेरे बारे में गुमनाम टिप दी । इतना ही नहीं साहब, मुझे तो अब एक और रहस्य की गुत्थी भी सुलझती दिखाई दे रही है ।”
“कैसी गुत्थी ?”
“जरा सोचो साहब, जब उस रहस्य्मयी व्यक्ति के पास सोने की एक नटराज मूर्ती है, तो बाकि मूर्तियां भी उसी के पास होंगी । इसका मतलब उसी ने वो मूर्तियां हथियाई, इसे रहस्यमयी व्यक्ति ने चीना पहलवान का भी खून किया ।”
राज की बात सुनकर तीनों के दिमाग में धमाके हुए ।
“बॉस !” दशरथ पाटिल शुष्क लहजे में बोला-“मुझे तो उस रहस्यमयी व्यक्ति से ज्यादा इस सारे फसाद की जड़ खुद यह राज नजर आ रहा है । जबसे इसके कमबख्त कदम हमारे ठिकाने पर पड़े हैं, तभी से हमारे साथ भी अजीब-अजीब किस्म के हादसे हो रहे हैं । जरा सोचो बॉस, अगर कोई ऐसा रहस्यमयी व्यक्ति है भी, तो वह जरूर इससे अपनी पुरानी दुश्मनी निकाल रहा है, हम क्यों इसके चक्कर में पड़ें ? पहले ही नटराज मूर्तियां गायब होने की वजह से हमें दस करोड़ रुपये का थूक लग चुका है । हमारे हक में अब यही अच्छा है बॉस, हम इसे फौरन यहाँ से निकालकर बाहर खड़ा करें । यह भी दाता का लाख-लाख शुक्र है, जो इसने अभी हमारे अड्डे का गुप्त रास्ता नहीं देखा ।”
“दशरथ ठीक कहता है बॉस !” दुष्यंत पाण्डे ने भी दशरथ पाटिल की बात के प्रति समर्थन जाहिर किया- ‘इसका अब सचमुच यहाँ ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं, दिल्ली पुलिस वैसे ही इसका सम्बन्ध दुर्लभ वस्तु चुराने वाले गिरोह से जोड़ रही है और फिर इसके ऊपर एक लाख रुपये का इनाम भी रख दिया गया है, ऐसी परिस्थिति में यह ज्यादा दिन पुलिस के शिकंजे से बचा नहीं रहने वाला । यह पकड़ा जाये, उससे पहले ही हमें इससे पल्ला झाड़ लेना चाहिये ।”
राज बेचैन हो उठा ।
एक साथ कई सारी बातें उसके दिमाग में कौंधी ।
अगर इस वक्त उन लोगों का आसरा उसके ऊपर से उठ गया, तो फिर उसे दिल्ली पुलिस के फंदे से दुनिया की कोई ताकत नहीं बचा सकती ।
उनके अड्डे से बाहर निकलते ही उसने पकड़े जाना है ।
वह अब एक खतरनाक अपराधी साबित हो चुका है ।
उसके ऊपर एक लाख का इनाम घोषित है ।
एक लाख !
राज के शरीर में सिहरन दौड़ गयी ।
एक लाख का इनाम हासिल करने के लालच में तो दिल्ली शहर का एक-एक आदमी उसे पुलिस के हवाले करना चाहेगा ।
अपनी मौजूदा स्थिति और होने वाले अपने खौफनाक अंजाम की कल्पना करके राज का पूरा शरीर कांप गया ।
उसने सेठ दीवानचन्द की तरफ देखा ।
दीवानचन्द जो दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे की बातें सुनकर किसी गहरी सोच में डूब गया था ।
“वडी तुम दोनों शायद ठीक ही कहते हो ।” फिर सेठ दीवानचन्द काफी सोचने-विचारने के बाद हुंकार-सी भरकर बोला- “वाकई अब इसका और ज्यादा देर यहाँ रुकना हमारी सेहत के लिये ठीक नहीं है ।”
“य...यह आप क्या कर रहे हैं साहब ?” राज दहल उठा ।
“वडी यह हम सिर्फ कह नहीं रहे बल्कि यह हमारा अटल फैसला भी है, दुष्यंत पाण्डे तुम्हें अभी वापस सोनपुर छोड़ आयेगा ।”
“न...नहीं साहब ! म...मेरे ऊपर रहम करो साहब !” राज गिड़गिड़ा उठा- “अगर ऐसी हालत में, मैं सोनपुर पहुँच गया, तो समझो मैं जेल पहुँच गया साहब ! वहाँ के गुण्डे-मवाली बहुत डेन्जर हैं, वह इनाम के लालच में मेरे ऊपर इस तरह झपटेंगे, जैसे चील मांस के लोथड़े पर झपटती है । मैं बेगुनाह होकर भी मारा जाऊंगा, इ...इसलिये मेरे ऊपर रहम करो ।”
“वडी लेकिन हम तेरे ऊपर कैसे रहम करें नी ?” सेठ दीवानचन्द बोला-“अगर तू ज्यादा दिन तक यहाँ रहा, तो हम सब लोगों का यहाँ बिस्तरा गोल हो जाना है ।”
“नहीं होगा साहब !” राज पुनः गिड़गिड़ाया- “आपमें से किसी का भी यहाँ से बिस्तरा गोल नहीं होगा । आप जैसा कहोगे, मैं बिलकुल वैसा-वैसा करूंगा । मैं आप लोगों का गुलाम बनकर रहूँगा, लेकिन भगवान के लिये मुझे दिल्ली पुलिस के मुँह में मत धकेलो साहब !”
राज की आंखों में आंसू छलछला आये ।
जबकि सेठ दीवानचन्द के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे थे ।
“म...मैं उस रहस्यमयी व्यक्ति के षड्यंत्र का शिकार हो चुका हूँ साहब !” राज खून के आंसू रोता हुआ बोला- “म...मेरे सामने अब कोई रास्ता नहीं, कोई मंजिल नहीं, मैं अब सिर्फ कानून से भागा हुआ एक खतरनाक अपराधी हूँ ।”
सेठ दीवानचन्द ने दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे की तरफ देखा ।
उन लोगों के चेहरे पर भी हिचकिचाहट के भाव थे ।
“ठीक है साईं !” दीवानचन्द ने यूं धीरे-धीरे गर्दन हिलाई, जैसे उस पर बड़ा भारी अहसान कर रहा हो- “वडी हम सलाह मशवरा करने के बाद कल तेरे बारे में कोई फैसला करेंगे ।”
“ल...लेकिन... ।”
“चिन्ता मत कर राज साईं, जो होगा, अच्छा होगा । अब तू जाकर आराम कर ।”
राज के चेहरे पर संतोष के भाव उभर आये ।
लेकिन उसे कहाँ मालूम था, अभी उसके ऊपर से बुरे ग्रहों कोई छाया हटी नहीं है ।
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हर लम्हां मौत और खौफ के साये में जिंदगी बसर करते हुए राज की वो पांचवीं रात थी ।
अड्डे के अंदर ही एक सर्वेण्ट क्वार्टर जैसा छोटा-सा कमरा था, जो सेठ दीवानचन्द ने उसके लिये खोल दिया था ।
दशरथ पाटिल ने उसे बिछाने के लिये एक दुतई और ओढ़ने के लिये एक पतला-सा कम्बल दे दिया था ।
रात के दो बज रहे थे ।
लेकिन राज की आंखों में नींद का दूर-दूर तक नामों निशान न था, वह अपने कमरे में सिकुड़ा-सिमटा सा पड़ा था और उसकी आंखों के गिर्द रह-रहकर डॉली का चेहरा घूम रहा था ।
जाने कहाँ-कहाँ तलाश कर रही होगी उसे वो ?
कितनी परेशान होगी उसके लिये डॉली ?
उफ् !
उस छोटी-सी उधारी चुकाने के फितूर ने उसे कितने बड़े जंजाल में फंसा दिया था ।
अपनी आवारा कुत्ते जैसी हो चली हैसियत पर गौर करके राज कम्बल ओढ़े-ओढ़े ही अपने कमरे से निकलकर बाहर गलियारे में आ गया ।
नींद न आने की वजह से उसका थोड़ा चहलकदमी करने को दिल चाह रहा था ।
राज चंद कदम ही चला होगा, तभी वह एकाएक बुरी तरह चौंका ।
कांफ्रेंस हॉल के अंदर से बातचीत करने की आवाजें आ रही थीं ।
राज लपककर कॉफ्रेंस हॉल के नजदीक पहुँचा ।
वह एक बहुत बड़ा हॉल कमरा था । कॉफ्रेंस हॉल के बीचों-बीच एक लम्बी आयातकार मेज पड़ी थी, जिसके इर्द-गिर्द लगभग बीस के करीब कुर्सियां मौजूद थीं ।
पूरे कांफ्रेंस हॉल में गहन अन्धकार फैला था ।
सिर्फ छत में लटके एक साठ वाट के ग्लोब का फोकस मेज के बीचों-बीच पड़ रहा था ।
राज ने बंद दरवाजे की झिरी में-से अंदर का नजारा देखा ।
इतनी रात को भी सेठ दीवानचन्द वहाँ मौजूद था ।
उसके सामने दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे बैठे थे, वह तीनों उस समय डकैती की किसी बहुत महत्वपूर्ण योजना पर बातचीत कर रहे थे ।
राज दरवाजे से कान लगाकर उनकी वार्ता सुनने लगा ।
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सेठ दीवानचन्द थोड़ी गरमजोशी से भरी आवाज में कह रहा था- “वडी मुझे आज ही सुपर बॉस डॉन मास्त्रोनी का न्यूयार्क से एक मैसेज़ मिला है ।”
“क्या ?” दशरथ पाटिल ने पूछा ।
“साईं, वो नटराज मूर्तियों के आश्चर्यजनक ढंग से गायब हो जाने की वजह से बड़े नाराज हैं । उन्होंने लिखा है कि वह बुद्धवार को दिल्ली के होटल मेरीडियन में चीना पहलवान का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि कब मूर्तियां लेकर उनके पास आये, लेकिन सुबह जब उन्होंने चीना पहलवान की मौत का समाचार सुना, तो वह फौरन वापस न्यूयार्क के लिये कूच कर गये । पाटिल साईं, उन्होंने यह भी लिखा है कि जिस पार्टी से उन्होंने नटराज मूर्तियों का सौदा किया था, वह पार्टी मूर्तियां हासिल न होने के कारण बहुत नाराज हो रही हैं, उन्होंने बड़ी मुश्किल से उस पार्टी को काबू में किया है ।”
“और कुछ लिखा सुपर बॉस ने ?” दुष्यंत पाण्डे बोला ।
“हाँ ।” सेठ दीवानचन्द की आवाज थोड़ी गंभीर हो उठी- “इस बार सुपर बॉस ने हमें एक ऐसी डकैती की योजना के सम्बन्ध में बताया है कि अगर हम उस योजना में कामयाब हो गये, तो हमारे वारे-न्यारे हो जायेंगे । वडी उस डकैती में हमारे हाथ इतना मोटा रोकड़ा लगेगा कि हमारी पचास पुश्तें बैठकर खा सकती हैं ।”
“ऐसी क्या योजना है ?”
“ध्यान से सुनो ।” सेठ दीवानचन्द उन्हें विस्तारपूर्वक सब कुछ समझाता हुआ बोला- “कल यानि सोमवार को पूर्व सोवियत संघ के एक गणराज्य कजाखिस्तान से किसी महाराजा का एक दुर्लभ ताज दिल्ली शहर में प्रदर्शन के लिये आ रहा है और उस ताज में पचास ऐसे बेशकीमती हीरे लगे हुए हैं कि उन जैसे हीरे आज पूरी दुनिया में कहीं नहीं हैं । इतना ही नहीं वह ताज ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत मूल्यवान है । उस ताज के बारे में कहा जाता है कि वो ताज ईसा से पूर्व उस दौर का है, जब इंसान ने सभ्यता की सीढ़ियां चढ़नी ही शुरू की थीं । उसी दौर में कजाखिस्तान के एक राजा ने अपने राज्य के बेहतरीन कारीगरों से इस ताज का निर्माण करवाया था । वडी उस राजा को ज्योतिष विद्या पर भी बहुत यकीन था, उसके हीरे के गुण-दोष के पारखी कई विद्वानों से सैकड़ों हीरों में से वह पचास हीरे चुनवाये । उन विद्वानों का मानना था कि वो हीरे राष्ट्र की उन्नति, शान्ति और खुशहाली के प्रतीक थे ।”
बोलते-बोलते रुका सेठ दीवानचन्द ।
दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे उसकी बातें बेहद गौर से सुन रहे थे ।
जबकि दरवाजे से कान लगाये खड़े राज की भी एकाएक उस दुर्लभ ताज में दिलचस्पी जाग उठी थी ।
“सुपर बॉस ने आगे लिखा है ।” सेठ दीवानचन्द थोड़ा रुककर पुनः बोला-“कि हीरों से जड़े उस दुर्लभ ताज के बारे में यह कहानी भी बड़ी प्रसिद्ध है कि जिस दिन से उस राजा ने वह ताज पहनना शुरू किया था, उसी दिन से उसके राज्य का विस्तार भी होना शुरू हो गया था । वरना उससे पहले कजाखिस्तान के इलाके में अनेक जंगली कबीले विद्रोह का बिगुल बजाते रहते थे, लेकिन ताज का निर्माण होते ही चारों तरफ शान्ति और खुशहाली का माहौल बन गया, जो सोवियत संघ के टूटने के बावजूद कजाखिस्तान में आज तक बरकरार है ।”
दशरथ पाटिल ने थोड़ा बेचैनीपूर्वक पहलू बदला ।
“कुछ भी कहो बॉस !” दशरथ पाटिल बोला- “एकाएक ऐसी बातों पर यकीन नहीं होता, यह तो दन्त कथाओं जैसी कहानी मालूम होती है ।”
“वडी हमें इस बात से क्या लेना-देना नी ।” सेठ दीवानचन्द बोला- “कि उस ताज के साथ जुड़ी यह कहानी सच्ची है या झूठी । वडी हमें अपने रोकड़े से मतलब होना चाहिये, अपने नावे से मतलब होना चाहिये । वडी आज की तारिख में उस ताज को हासिल करने के लिये दुनिया के कई बड़े-बड़े देश जी-तोड़ कोशिश में लगे हैं, जिनमें अमरीका सबसे आगे है । सुपर बॉस का कहना है कि हमें उस ताज के बदले अमरीका सरकार एक अरब रुपये तक दे सकती है ।”
“एक अरब रुपये !” दुष्यंत पाण्डे के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“हाँ, एक अरब रुपये । वडी अभी तक वो ताज कजाखिस्तान के एक म्यूजियम में भारी हिफाजत के साथ रखा हुआ था, उसकी वहाँ सिक्योरिटी कितनी जबरदस्त है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उस ताज को चुराने की अभी तक एक दर्जन से भी ज्यादा बार कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर कोशिश नाकाम रही । चोरों को हर बार असफलता का मुँह देखना पड़ा ।”
“जब उस ताज की इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी है ।” दुष्यंत पाण्डे बोला- “तो हम लोग ही उसे किस तरह चुरा पायेंगे ?”
“वडी तू पागल है नी ।” सेठ दीवानचन्द भुनभुनाया- “पाण्डे साईं, आज से पहले उस दुर्लभ ताज को चुराने की जितनी भी कोशिशें हुई, वो सब कजाखिस्तान में हुई थीं । यह पहला मौका है, जब वो ताज किसी दूसरे देश में प्रदर्शन के लिये आ रहा है और इसे हमें अपनी खुशकिस्मती समझना चाहिये कि उस दुर्लभ ताज की प्रदर्शनी कहीं और नहीं बल्कि हमारे ही शहर के नेशनल म्यूजियम में लगेगी । वडी वही नेशनल म्यूजियम, जहाँ से हम लोग पहले ही नटराज मूर्तियां पार कर चुके हैं ।”
“यह बात आपको कैसे मालूम ?” दशरथ पाटिल ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- “कि उस ताज की प्रदर्शनी नेशनल म्यूजियम में ही लगेगी ?”
“वडी सुपर बॉस ने ही यह बात अपने मैसेज में लिखकर भेजी है और मुझे कैसे मालूम होता ?”
“ए...एक बात पूछूं बॉस ?” दशरथ पाटिल इस बार थोड़ा हिचकिचाता हुआ बोला ।
“पूछो ।”
“सुपर बॉस को न्यूयार्क में बैठे-बैठे हर बात कैसे मालूम हो जाती है ?”
“वडी अगर यह मेरे को को मालूम होता ।” सेठ दीवानचन्द तिक्त स्वर में बोला- “तो मैं यहाँ तुम लोगों के साथ बैठकर अपना दिमाग खराब क्यों करता ? फिर तो मैं भी सुपर बॉस डॉन मास्त्रोनी की तरह न्यूयार्क के किसी आलीशान होटल में पड़ा अपनी अगली योजना के पत्ते न फैला रहा होता ।”
दशरथ पाटिल ने फ़ौरन अपने होंठ सी लिये ।
“दशरथ साईं !” दीवानचन्द एक-एक शब्द चबाकर बोला- “हमें इस तरह की बेकार बातों में अपना दिमाग खराब करने की बजाय इस तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए कि हम उस ताज को चुराने में किस तरह कामयाब होंगे । वडी हमें दौलत कमाने का इतना शानदार मौका किसी भी हालत में खोना नहीं है । यूं समझो, हमारी किस्मत खुद अपने पैरों से चलकर कजाखिस्तान से यहाँ आ रही है ।”
“लेकिन बॉस !” दुष्यंत पाण्डे बोला- “उस दुर्लभ ताज को चुराना हमारे लिये इतना आसान भी न होगा, जितनी आसानी से हमने नटराज मूर्तियां चुरा ली थी ।”
“क्यों, दुर्लभ ताज चुराना इतना आसान क्यों नहीं होगा ?”
“क्योंकि यह आपको भी मालूम है बॉस, वह ताज पहली बार किसी दूसरे देश में प्रदर्शन के लिये लाया जा रहा है, ठीक ?”
“बिलकुल ठीक ।”
“इससे यह साबित होता है ।” दुष्यंत पाण्डे आगे बोला- “कि कजाखिस्तान गणराज्य की नजर में उस दुर्लभ ताज का बहुत ही खास महत्व है । मेरे इस तर्क को इस बात से भी और ज्यादा बल मिलता है कि उस दुर्लभ ताज को चुराने की कजाखिस्तान में ही कई छोटी-बड़ी कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर बार चोरों को नाकामी का मुँह देखना पड़ा । यानि कजाखिस्तान गणराज्य ने उस ताज की सिक्योरिटी का बहुत ही पुख्ता इंतजाम कर रखा है । अगर ऐसा न होता, तो चोर उसे न जाने कब के उड़ा ले गये होते, इस दुनियां में एक से बढ़कर एक शातिर मौजूद है ।”
“वडी, तुम कहना क्या चाहते हो ?”
“मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ बॉस, जिस ताज की सिक्योरिटी का कजाखिस्तान गणराज्य ने इतना पुख्ता इंतजाम कर रखा है, वह कजाखिस्तान अपने उस दुर्लभ ताज को ऐसे ही तो भारत नहीं भेज देगा । स्वाभाविक-सी बात है कि भारत में भी उस ताज के जबरदस्त इंतजाम किये होंगे ।”
सेठ दीवानचन्द गंभीर हो उठा ।
दुष्यंत पाण्डे काफी हद तक सही कह रहा था ।
“पाण्डे साईं !” दीवानचन्द धीरे-धीरे गर्दन हिलाता हुआ बोला- “वडी तेरी बात में जान है । कजाखिस्तान गणराज्य में भारत सरकार की मदद से यहाँ भी सिक्योरिटी के इंतजाम तो जरूर किये होंगे ।”
“सिर्फ इंतजाम नहीं बॉस, बल्कि बहुत खास इंतजाम किये होंगे ।” दुष्यंत पाण्डे बोला- “सिक्योरिटी का इंतजाम तो नटराज मूर्तियों के लिये भी किया गया था, लेकिन क्या हुआ उस इंतजाम का ? सारा इंतजाम ढाक के तीन पात की तरह रखा रह गया और हम मूर्तियां चुराकर भी फरार हो गये । देख लेना बॉस, भारत सरकार हमारे द्वारा की जाने वाली दुर्लभ वस्तुओं को चोरी से भी भरपूर सबक लेगी और इसलिये उस दुर्लभ ताज का और ज्यादा खास, ज्यादा स्पेशल सिक्योरिटी इंतजाम किया जायेगा ।”
“मैं मानता हूँ पाण्डे साईं ।” सेठ दीवानचन्द दृढ़ लहजे में बोला- “तेरी हर बात ठीक है । वडी लेकिन फिर भी हम लोगों को उस ताज को चुराकर दिखाना है, हमने साबित कर देना है कि बड़ी-बड़ी सिक्योरिटी को भेदने की क्षमता हम लोगों के अंदर है ।”
“इसके लिये हमें सबसे पहले दुर्लभ ताज को देखना होगा ।”
“बिलकुल ठीक ।”
“ताज को देखने के लिये नेशनल म्यूजियम में दर्शकों की ऐंट्री कब से शुरू होगी ?”
“परसों से ।” सेठ दीवानचन्द ने बताया- “कल वह दुर्लभ ताज कजाखिस्तान से दिल्ली लाया जायेगा । वह किस फ्लाइट से दिल्ली आ रहा है, यह बात अभी तक पूरी तरह गुप्त रखी गयी है । निःसन्देह दोनों सरकारों को इस बात का खतरा होगा कि अगर कहीं यह बात लीक हो गयी, तो कहीं अपराधी संगठन उस दुर्लभ ताज को हासिल करने के लिये पूरे प्लेन को ही हाईजैक न कर ले ।”
“ओह !”
“बहरहाल !” दीवानचन्द उस मीटिंग का पटाक्षेप करता हुआ बोला- “उस दुर्लभ ताज को हासिल करने की दिशा में हमारा सबसे पहला काम यह पता लगाना होगा कि भारत सरकार ने उसकी सिक्योरिटी के क्या-क्या इंतजाम किये हैं । साईं, सिक्योरिटी के इंतजामों की फुल जानकारी कर लेने के बाद ही हम किसी योजना की रुपरेखा तैयार करेंगे, ओके ?”
“ओके ।”
दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे की गर्दनें एक साथ स्वीकृति में हिलीं ।
मीटिंग उसी क्षण बर्खास्त हो गयी ।
राज जो कॉफ्रेंस हॉल के दरवाजे से कान लगाने खड़ा वार्तालाप का एक-एक शब्द सुन रहा था, वह हतप्रभ-सी स्थिति में वापस अपने कमरे की तरफ दौड़ा ।
कमरे में घुसते ही उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया और फिर दुतई पर लेटकर लम्बी-लम्बी सांसे लेने लगा ।
उसके होश गुम थे ।
उसके कानों में घण्टियां बज रही थीं ।
दिमाग मानो सुनसान पड़ी वीरान घाटियां बन चुका था, जिसमें रह-रहकर एक ही आवाज गूंज रही थी- “हे मेरे दाता ! हे मेरे भगवान ! क्या यह सचमुच उस ताज को चुराने में सफल हो जायेंगे ?”
क्या दिल्ली शहर में एक और चौंका देने वाली चोरी होगी ?
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