Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज - Page 4 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज

मैंने पूछा ---- " क्या हुआ मैडम ? वात क्या है ? " " किसी ने मुझे बाथरूम में बंद कर दिया था । " होठों पर जीभ फिराते हुए उसने कहा ---- " मैं बहुत डर गयी थी । इतनी देर से चीख रही हूं । किसी ने दरवाजा नहीं खोला । "

" लेकिन आपको बंद किया किसने ? "
" म - मुझे नहीं पता ! नहाने के बाद जब बाहर निकलना चाहा तो दरवाजा बाहर से बंद था । मैं बौखला गयी । दरवाजा पीटा । चीखी ! मगर किसी ने नहीं खोला । लगा ---- इस बार मेरा ही नम्बर है । पता नहीं कहां मर गये थे सब लोग ?
" राजेश ने पूछा ---- " कमरे का दरवाजा अंदर से आपने बंद किया था ? "
" नहीं "
मैंने सारे कमरे में नजर घुमाई । कहीं कोई ऐसा चिन्ह नहीं था जिससे लगे कि किसी वस्तु के साथ छेड़खानी की गई है । ड्रेसिंग टेवल पर मौजूद मेकअप का छोटा मोटा सामान तक पूरे सलीके से रखा था । मै एक खुली खिड़की के नजदीक पहुंचा । उसके पास झांका । यह सर्विस लेन थी । बोला --- " वह जो भी था ! शरारत करके इधर से भागा।

" ये शरारत नहीं थी सर ! " अल्लारखा ने कहा ---- " ऐसा नहीं कि इस कॉलिज में शरारतें नहीं होती । एक से एक बड़ी शरारत की है हमने लेकिन घटिया शरारत नहीं की और तीन दिन से तो शायद ही कोई शरारत के मूड में हो । ये हरकत उन्हीं वारदातों की कड़ी है ---- जो कालिज में सत्या मैडम की हत्या से शुरू हुई ! "

" लेकिन ! " एक स्टूडेन्ट ने कहा ---- " मैडम को बाथरूम में बंद करने के अलावा कोई नुकसान नहीं पहुंचाया उसने ! इस हरकत का मतलब क्या हुआ ? "
" आतंक फैलाना ! " मै बोला ---- " दहशत का माहौल क्रियेट करना । "
" इससे उसे फायदा ? "
" फिलहाल वही जाने । " तब तक काफी लड़कियां कमरे में घुस आई थी । मैंने लड़कों को बाहर निकलने की सलाह दी ताकि हिमानी कपड़े पहन सके । गैलरी में मेरे साथ - साथ चल रहे राजेश ने कहा ---- " गनीमत है सर । मैं तो डर ही गया था ! लगा था ---- की हत्यारे ने एक और हत्या तो नहीं कर दी । "

पहला ख्याल खुद मेरे दिमाग में भी यही आया था । " तभी सामने से दीपा आती नजर आई । उसने राजेश से पूछा
तुम कहाँ थी।
-- " हुआ क्या था ? " “ बाहर गयी थी । ग्रेड लाने "
राजेश उसे घटना की डिटेल बताने लगा । तभी , तेज चाल से चलता लविन्द्र भूषण मेरे नजदीक पहुंचा । उसके हाथों में सुलगी हुई सिगरेट थी । हकबकाया सा नजर आ रहा था वह । जो सवाल दीपा ने किया था , वही उसने भी किया और मैंने राजेश की तरह स्वाभाविक सवाल किया ---- " आप कहां थे ? "
" ग्राउन्ड में पिच ठीक कर रहा था । वहां पहुंचकर कुछ लड़कों ने बताया ....
" इतना हंगामा मचा ! वहाँ आबाजें नहीं पहुंचीं ? "
" नहीं ।
" मैंने उसे संक्षेप में घटना के बारे में बता दिया । उसने पृछा ---- " अब कहां है हिमानी मैडम ? "
" अपने रूम में । " वह बगैर कहे हिमानी के कमरे की तरफ गया । राजेश से बात करती दीपा यह कहकर उधर गयी -- ' मैडम से मिलकर आती हूँ । पुनः राजेश के साथ चलते मैंने कहा ---- " एक सवाल कैंटीन में ही तुमसे पूछना चाहता था । फिर जाने क्या सोचकर टाल गया । दीपा को देखकर फिर सवाल दिमाग कौंधने लगा है । "
" ऐसा क्या सवाल है ?
 
" क्या सत्या को तुम्हारे और दीपा के इलू - ईलू का इल्म था ? "
"था"
" कभी कुछ ऑब्जेक्शन किया ? "
" नहीं । "
" क्यों ? "
" मतलब ? "
" क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है , जो सत्या स्टूडेन्ट्स की रैगिंग तक को पसंद नहीं करती थी , उसने तुम्हारे अफेयर पर कभी एतराज नहीं किया ?
" राजेश ने जबाब नहीं दिया मगर उसके होठों पर हल्की सी रहस्यमय मुस्कान उभर आई । उस मुस्कान को लक्ष्य करके मैंने कहा ---- " जवाब नहीं दिया तुमने ? "
" उनका भी चक्कर चल रहा था । "
" सत्या का ? "मै चौंका।
" क्यों ?
टीचर्स के सीने में क्या दिल नहीं होता ? "
" किससे ?
" जिनसे कुछ देर पहले आप बात कर रहे । "
" ल - लबिन्द्र से ? "
हाँ।

हंगामा शान्त होने पर मैं लविन्द्र के कमरे में पहुंचा । उसका कमरा ब्वायज हॉस्टल में था । कमरे में घुसते ही सिगरेट के धुवें की तीब्र दुर्गन्ध मेरे नथुनों में घुसी । बायें हाथ की अंगुलियों के बीच सुलगी हुई सिगरेट लिए वह उस वक्त राइटिंग टेबल के साथ वाली कुर्सी पर बैठा ब्राऊन कलर वाली एक डायरी पड़ रहा था । मुझे देखकर चौंका । सिगरेट हाथ से कुचली । मुझे कुर्सी पर वैठाया और खुद बेड पर बैठ गया । डायरी मेज पर पड़ी रह गयी थी । मैंने अपना हाथ उस पर रखने के साथ बातें शुरू की ---- " चन्द्रमोहन द्वारा चिपकाये गये पोस्टर्स के बाद हंगामें को लेकर सत्या जब प्रिंसिपल के कमरे में गई , तब आप , हिमानी और ऐरिक भी साथ ये न ? "
" हां । " लविन्द्र ने एक ठंडी सांस ली -.- " मैं वहीं था । "
" मैं वहां हुई बातें जानना चाहता हूं । " " काफी जबरदस्त तकरार हुई प्रिंसिपल से ! " उसने कहना शुरू किया ---- " हम सबकी एक ही मांग थी ---- चन्द्रमोहन को अब एक पल भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता । उसने सारे कॉलिज का वातावरण बिगाड़ रखा है । फौरन रेस्ट्रीकेशन कीजिए उसका ।
 
मैंने डायरी उठाते हुए पूछा ---- " प्रिंसिपल की प्रतिक्रिया ? "
" बर्फ की तरह ठंडा पड़ा रहा वो आदमी ! कोई फर्क नहीं पड़ा । उल्टा मुस्कराने लगा । मुस्कान ऐसी थी जैसे हमें मूर्ख कह रहा हो।
" उसके इस व्यवहार की आप क्या वजह समझते हैं ? "
मैंने डायरी अपने दोनों हाथों के बीच लेकर घुमानी शुरू कर दी थी । लविन्द्र थोड़ा उत्तेजित नजर आने लगा । शायद इसीलिए मेरी हरकतों पर ध्यान नहीं दे पाया । कहता चला गया वह ---- कालिज में पालिटिक्स चलाये रखना विवाद खड़ा करना ! चन्द्रमोहन को उसकी सै थी ताकि कालिज में उसकी धाक बनी रहे । उस आवारा लड़के को बार - बार माफ करने के पीछे और हो भी क्या सकता है ? मेरे ख्याल से यह आदमी एक पल के लिए भी प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठने के काबिल नहीं है । उस दिन तो सारी हदें टूट गयी थी ---- इसके बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया गया ।

" मेरा पक्का यकीन है कोई भी आदमी सामान्य अवस्था में अपने असली रूप में नहीं होता । असली रूप में तब आता है जब उसे गुस्सा दिला दिया जाये । लविंद्र को उसी अवस्था में लाने की गर्ज से मैंने कहा --.- " ये तो गलत है । मैंने सुना है ---- एक्शन तो उसके खिलाफ लिया था प्रिंसीपल ने । '
" क्या एक्शन लिया था ? " वह मुझ ही पर भड़क उठा । मानो मै ही प्रिंसिपल था ।
उसे और भड़काने के लिए मैंने कहा ---- " चन्द्रमोहन को हफ्ते भर के लिए कालिज से ....

" ये कोई एक्शन था ? " लविन्द्र का सम्पूर्ण चेहरा भभक उठा ---- " यही सब सुनकर तो मारे गुस्से के सत्या का बुरा हाल हो गया था । उसने कहा ---- ' यानी हफ्ते भर बाद वो गंदगी फिर कालिज में होगी ! ये कोई सजा है ? हरगिज नहीं । ऐसा नहीं होने दूंगी बंसल साहब ! ये सिर्फ कॉलिन की इज्जत का नहीं , दूसरे सभी स्टूडेन्ट्स के भविष्य का सवाल है । दीपा ने सुसाइड कर ली होती तो क्या होता ? स्टूडेन्ट्स प्रोफेसर्स पर चाकू खोलने लगे तो कैसे होगी पढ़ाई ? कहाँ रहेगा अनुशासन ? कैसे चलेगा कालेज ? "

" बंसल साहब का जवाब ? " मैंने डायरी बीच - बीच में से खोलकर देखनी शुरू कर दी थी । "

" सत्या ! बेहतर है ---- हम तब बात करे जब आप होश में हों । ' सत्या यह कहती हुई तमतमा कर बाहरी चली गयी कि ---- ' चन्द्रमोहन के रेस्ट्रीकेशन से कम पर अब कोई फैसला नहीं हो सकता ।
' मै , हिमानी और एरिक भी उसके पीछे बाहर आ गये थे । "

इस बार मैं डायरी में ऐसा खोया कि अगला सवाल करना भूल गया । मुझे डायरी में मग्न देखकर लविन्द्र मानो पहली बार वर्तमान में आया । झटका सा लगा उसे । लपककर मेरे हाथ से डायरी छीनता हुआ बोला - " माफ करें ! ये मेरी पर्सनल डायरी है । " मैंने अपने होठों पर मुस्कान बिखेरी । देख चुका था डायरी में गजल और शेर लिखे थे । बोला ---- “ आप तो मेरी ही लाइन के निकले लविन्द्र जी ! "

" मैं समझा नहीं । "
" मैं लेखक ! आप शायर । "
" सॉरी ! मैं जो हूँ ---- अपने लिए हूं । किसी और के लिए नहीं लिखता ।
 
" शायद इसीलिए चाहते हैं इसे कोई और न पढ़े । खैर , माफ कीजिएगा -- थी तो धृष्टता लेकिन चंद पंक्तियों पर नजर पड़ ही गयी और में दावे से कहता हूं आप एक अच्छे रोमांटिक शायर है ।
' वह चुप रहा ।
मैंने पूछा---- " शादी हो गया ? "
" नहीं ! " उससे संक्षिप्त उत्तर दिया ।
" कोई खास वजह ? "
" ऐसी कोई खास भी नहीं । " उसने बात टालनी चाही ।
मैंने कुरेदा ---- " जिसे चाहते थे , शायद मिल न सकी । "
" क्या इन सवालों का सम्बन्ध कॉलिज में घटी घटनाओं में है ? " वह रोष में नजर आया ।
मैंने कहा ---- " यकीनन ! "
" मै नहीं समझ सका कि ....
" सोचने वाली बात है ---- आप सत्या से अपने सम्बन्ध क्यों छुपा रहे हैं ?
" हैरत “ से - सत्या से ? " हलक से निकली चीख जैसी आवाज के साथ वह उठ खड़ा हुआ ।
चेहरे पर असीम आश्चर्य लिए । देखता बोला ---- " ये क्या बात कही आपने ? "
" कुछ गलत कर गया क्या ? "
" प्लीज ! जो मैं पूछ रहा हूँ उसका जवाब दीजिए । ये बात आपसे किसने कही ? "
" एक लड़के ने । "
" नाम ? "
" ताकि आप उसकी चमड़ी उघेड़ सकें ?
नहीं !
मैं नहीं बता सकता । "
" वादा करता हूँ मैं उस लड़के को कुछ नहीं कहूंगा । "
" फिर नाम जानकर क्या करेंगे ? "
" केवल इतना पूछना चाहता हूं ये बात उसे कैसे पता लगी ? किस बेस पर कही उसने ? "

इश्क , मुश्क और खांसी छुपाये नहीं छुप सकते । " " म - मगर ! " उसकी आवाज में जज्बातों की ज्यादती का कम्पन था --- " इश्क था ही कहां ? जो था नहीं वह किसी लड़के ने कैसे कह दिया ? "
" आप झूठ बोल रहे हैं । डायरी में कई जगह सत्या का नाम मैं खुद पढ़ चुका हूं ।
" डायरी मेरी है ! सिर्फ मेरी । सत्या ने इसे कभी नही देखा है।
 
" शायद इसीलिए चाहते हैं इसे कोई और न पढ़े । खैर , माफ कीजिएगा -- थी तो धृष्टता लेकिन चंद पंक्तियों पर नजर पड़ ही गयी और में दावे से कहता हूं आप एक अच्छे रोमांटिक शायर है ।
' वह चुप रहा ।
मैंने पूछा---- " शादी हो गया ? "
" नहीं ! " उससे संक्षिप्त उत्तर दिया ।
" कोई खास वजह ? "
" ऐसी कोई खास भी नहीं । " उसने बात टालनी चाही ।
मैंने कुरेदा ---- " जिसे चाहते थे , शायद मिल न सकी । "
" क्या इन सवालों का सम्बन्ध कॉलिज में घटी घटनाओं में है ? " वह रोष में नजर आया ।
मैंने कहा ---- " यकीनन ! "
" मै नहीं समझ सका कि ....
" सोचने वाली बात है ---- आप सत्या से अपने सम्बन्ध क्यों छुपा रहे हैं ?
" हैरत “ से - सत्या से ? " हलक से निकली चीख जैसी आवाज के साथ वह उठ खड़ा हुआ ।
चेहरे पर असीम आश्चर्य लिए । देखता बोला ---- " ये क्या बात कही आपने ? "
" कुछ गलत कर गया क्या ? "
" प्लीज ! जो मैं पूछ रहा हूँ उसका जवाब दीजिए । ये बात आपसे किसने कही ? "
" एक लड़के ने । "
" नाम ? "
" ताकि आप उसकी चमड़ी उघेड़ सकें ?
नहीं !
मैं नहीं बता सकता । "
" वादा करता हूँ मैं उस लड़के को कुछ नहीं कहूंगा । "
" फिर नाम जानकर क्या करेंगे ? "
" केवल इतना पूछना चाहता हूं ये बात उसे कैसे पता लगी ? किस बेस पर कही उसने ? "

इश्क , मुश्क और खांसी छुपाये नहीं छुप सकते । " " म - मगर ! " उसकी आवाज में जज्बातों की ज्यादती का कम्पन था --- " इश्क था ही कहां ? जो था नहीं वह किसी लड़के ने कैसे कह दिया ? "
" आप झूठ बोल रहे हैं । डायरी में कई जगह सत्या का नाम मैं खुद पढ़ चुका हूं ।
" डायरी मेरी है ! सिर्फ मेरी । सत्या ने इसे कभी नही देखा है।

मैंने संक्षेप में मुकम्मल घटना सुना दी । वह हैरान और फिक्रमद नजर आने लगा । पूछने लगा इस घटना का आखिर मतलब क्या है ? मैंने अपने मतलब की बात पर आते हुए कहा --- " प्रिंसिपल साहब , आप मुझसे काफी सवाल पूछ चुके ! मैं आपसे सिर्फ एक सवाल का जबाव चाहता हूं । " “ जरूर पूछिये । " बंसल ने विनामतापूर्वक कहा ।
" इतने दबाव के बावजूद आपने चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीफेशन क्यों नहीं किया ? " जितना सीधा मेरा सवाल था , बंसल ने जवाब भी उतना ही सीधा और सपाट दिया ---- " मुझे प्रिंसिपलशिप अपने विवेक से चलानी है , लोगों के मूर्खतापूर्ण दबाब से नहीं । "
" सत्या की हत्या से जो कुछ एक दिन पहले हुआ , उसके बाद कुछ बचता नहीं था । किसी भी कालिज के लिए वह शर्म की बात थी । "

" आप वही भाषा बोल रहे हैं जो सत्या बोला करती थी । " यह कहने के साथ वह सोफे से उठा । चेहरे पर गम्भीरता विराजमान थी । चहलकदमी शुरू की । मैंने एक बार फिर उसकी चाल में लंगड़ाहट महसूस की लेकिन कुछ बोला नहीं । मुझे उसके बोलने का इंतजार था और वह बोला --- " दरअसल स्टूडेन्ट्स को हैडिल करने की नीति को लेकर हमारे और सत्या के वीच गहरा मतभेद था । यह मतभेद पहली बार तब सामने आया जब सत्या चन्द्रमोहन को स्मैक के साथ हमारे पास लाई ।

" क्या उस घटना को हल्के ढंग से लेना उचित दा ? "
" हाँ ! " मेरी तरफ पलटले हुए बंसल ने पूरी दृठता के साथ कहा ---- " एकदम उचित था ।
"कैसे भला ? " मेरी आवाज में व्यंग्य उभर आया ।
" ये जनरेशन वो नहीं है जो मां - बाप और गुरुजनों के चरण स्पर्श करके दिनचर्या शुरू करती थी । न इनकी नजर में आज गुरुओं का वह आदर है जो आपके या मेरे युग में होता था । न इनके मां - बाप की नजरों में वो जमाना था जब गुरु शिष्य को अधमरा करके भी डाल देता था तो मां - बाप यह पूछने नहीं आते थे कि बच्चे ने किया क्या था ? मगर आज हाथ लगाकर तो दिखाइए स्टूडेन्ट को । अगले दिन उसके पेरेन्ट्स आकर आपको समझायेंगे ---- ये बच्चे को पढ़ने भेजते हैं , पिटने के लिए नहीं ।
कलेजे पर हाथ रखकर जवाब दीजिए लेखक महोदय , हमने कुछ गलत कहा क्या ?
" मुझे कहना पड़ा ---- " बात तो ठीक है । "
 
" यह हालत स्कुलों की है जहां छोटे - छोटे बच्चे पढ़ते हैं । नतीजा ? टीचर्स ने बच्चों के साथ सख्ती बन्द कर दी । उस परिवेश में हुए बच्चे कालिज में आते हैं । क्या वे हमारी डांट - डपट । सख्ती और मार - पिटाई झेल सकेंगे ? "
" नहीं ! " मेरे मुंह से बरबस निकला ।
" बस हम सत्या को हमेशा यही समझाते थे ।

उस दिन भी जब चन्द्रमोहन को यह वादा लेकर छोड़ दिया कि अब वह कभी स्मैक नहीं लेगा तो सत्या भड़क उठी ! और हमने कहा ' सत्या , हम जानते हैं वह आगे भी स्मैक पियेगा । हम और तुम उसे नहीं रोक सकते । यह स्कूल में गुरुजनों की बात न सुनने की तालीम लेकर आया है । ये नई जनरेशन है । खुद पर किसी की सख्ती की ती आदत ही नहीं पड़ा इसपर । हम मजबूर हैं । इसलिए देखा और अनदेखा कर दो ! जैसे हमने किया है । जानती हो क्यों ... क्योंकि वह बदतमाज लड़का है । उसके साथ यही पालिसी ठीक है । प्यार और नर्मी इन दोनों चीजों की उसे सख्त जरूरत है । याद रखो ---- डांट - डपट , धमकी और सख्ती उसे ज्यादा बद्तमीज बना देगी । ' '
" क्या आपकी ड्यूटी यह पता लगाना नहीं थी कि कालिज में स्मैक कहां से आई ? "
" कॉलिज में इस किस्म की चीजे आना ऐसी प्रॉब्लम नहीं है जिसमें सिर खपाया जाये । "

बंसल जो कह रहा था , पूरी दृढ़ता के साथ कह रहा था ---- " खुले समाज में आज हर चीज मुहैया है ! दस साल का बच्चा भी मनचाही वस्तु हासिल कर सकता है । इस कॉलिज में तो फिर भी जवान बच्चे पढ़ते हैं । वे .... जो असल में हमारी औलाद नहीं , बाप हैं ! बाप ! " इसमें शक नहीं , कठोर हकीकत कहकर बंसल ने मुझे चुप कर दिया था । वह कहता रहा ---- " उसके बाद भी अनेक बार चन्द्रमोहन की शिकायतें आयीं । अपनी पॉलिसी के मुताबिक हम उन्हें अनदेखा करते रहे और अपनी पॉलिसी के मुताविक सत्या भड़कती रहीं । वहीं हुआ ---- सत्या की पिटाई से आजिज आकर आखिर चन्द्रमोहन ने चाकू खोल लिया । भले ही आप भी न माने , लेकिन हमारा दृढ विश्वास है . ये घटना सत्या की पॉलिसी का दुष्परिणाम दी जिससे हम आगाह करते आये थे । परसों भी जब सत्या भड़की तो हमने कहा आज चन्द्रमोहन ने चाकू खोला है । अगर तुमने खुद को नहीं बदला कल इससे ज्यादा कुछ हो सकता है।

जो कि हुआ । " मैंने कहा --- " सत्या का मर्डर । "
" प्लीन उन बातों का यह अर्थ मत निकालो जो नहीं था । और फिर , चन्द्रमोहन के मर्डर से पहले आप यह कहते तो बात जमती भी ! उसकी हत्या ने कम से कम यह तो साबित कर ही दिया कि सत्या का हत्यारा वह नहीं था । " " फिर भी आपने तो अपनी तरफ से भविष्यवाणी कर दी थी !
 
" हम फिर कहते है .---- शब्दों को तोड़ मरोडकर पेश मत कीजिए । यह भविष्यवाणी नहीं , कंवल एक शंका थी और हमें खुशी है शंका निर्मूल निकला । सत्या के मर्डर का कारण उमके और चन्द्रमोहन के बीच का तनाव नहीं ... बल्कि कुछ और था ।

"खैर मै फिर वहीं आता हूँ और अपने सवाल को दोहरा रहा हूँ । इतने गुनाहों के बावजूद चन्द्रमोहन का रेस्ट्रोफेशन क्यों नहीं किया आपने ? "
" अगर बात अब भी आपकी समझ में नहीं आई तो मेरे सवाल का जवाब दीजिए । " वह ताव खाकर बोला ---- " क्या होता रेस्ट्रिकेशन से ? "
" नशाखोरी बंद होती । चाकु - छुरे नहीं चलते कालिज में । "
" तो वहां चलते जहां रेस्ट्रीकेशन के बाद चन्द्रमोहन भटकता । "
" उससे आपको क्या ? "
" कम से कम आप जैसे बुद्धिजीवी के मुह से यह बात शोभा नहीं देती । " अचानक बंसल मेरी आँखों में आंखे डालकर कह उठा --- " एक टीचर के नाते हमारा मकसद केवल अपने कालेज से गुण्डागदी खत्म करना नहीं बल्कि चन्द्रमोहन जैसे लड़कों की पैदावार रोकना है । इनके हाथों से चाकू छीनना है । सत्या कालिज को तालीम का चर्च कहती थी । और हम कहा करते थे कि जब लड़के इस चर्च से बाहर निकलें तो उनके हाथ अपने बुजुगों के पैरों की तरफ बढ़े । चाकु वाले लड़के को समाज के हवाले करना तो अपने फर्ज से मुँह मोड़ना है । क्या हमें अपनी मुश्किलें आसान करने के लिए समाज को खतरे में डाल देना चाहिए ? "

" बात आपने काफी वजनदार कही बंसल साहब .... लेकिन चन्द्रमोहन के हाथ से चाकू छीनने के लिए आप कर क्या रहे थे ? "

" बार - बार माफ करके उसकी आत्मा के बोझ तले दबा रहे थे उसे । चाहते थे कि अपराध - बोध से दबकर चन्द्रमोहन खुद हमारे सामने नतमस्तक हो जाये । मगर सत्या की गलती ने ऐसा नहीं होने दिया । एक के बाद दूसरी घटना चिडचिड़ा ही बनाती गई उसे । हम एक बार फिर कहते हैं और पूरे विश्वास के साथ कहते हैं , चन्द्रमोहन जैसे लड़के सख्ती , डांट - डपट और मारपीट से और ज्यादा बिगड़ जायेंगे । जबकि क्षमा , नर्मी और मुहब्बत उन्हें सुधार सकती है ।

" बंसल की थ्योरी ने मुझे सोचने पर मजबुर कर दिया । भरपूर कोशिश के बावजूद ये नहीं ताड़ पाया कि उसके ये विचार दिल की गहराइयों से थे या चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन न करने के अपने गुनाह को खूबसूरत शब्दों की चाशनी में लपेटकर मुझे पिलाना चाहता था ?

एक नौकर चाय लेकर आया । ट्रे रखकर वह चला गया ।
बंसल अपने हाथ से मेरे लिए चाय बनाने लगा और मेरे दिमाग में बन रही थी स्टोरी । उसने चाय का कप मेरे सामने रखा । ' उसके दिमाग का फ्यूज उड़ाने की खातिर मैने वो स्टोरी सुनाने की ठानी ।
चाय में पहला घूंट भरा और भूमिका शुरू की ---- " साबित हो चुका है चन्द्रमोहन और सत्या की हत्या उसने की जिसने पेपर आऊट कराकर लाखों में खेलने के ख्वाब देखे थे ।
आपके प्याल से वह कौन हो सकता है ? "

" यह पता लगाना जैकी का काम है । "
“ अगर मै कहूँ वो आप है । अपनी समझ में मैने धमाका किया था , पर वह चौंका तक नहीं ।

आराम से चाय का घूट भरने के बाद पूछा--- कैसे ? " अंदाज ऐसा था जैसे बात किसी और के बारे में चल रही हो ।
 
अंदर ही अंदर से मैं तिलमिलाया । बोला ---- " चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन न करने के लिए आपने जो लम्बी चोड़ी दलीलें दी , मैं उसे रद्द करता हूँ । जितनी बातें अब तक मेरे संज्ञान में आइ उनके बेस पर कह सकता हूँ सत्या को आपने कभी पसंद नहीं किया । बेइंतिहा बद्तमीजी के बावजूद चन्द्रमोहन को केवल सत्या पर दबाव बनाने के लिए माफ करते रहे । सत्या उसमें चिढ़ती थी । माफ कीजिए , आपने खुद कहा ---- आप जानते थे सत्या और चन्द्रमोहन का टकराव होता रहा तो एक दिन अंजाम क्या होगा ? दरअसल आप चन्द्रमोहन के हाथों सत्या को उसी अंजाम तक पहुंचाना चाहते थे जिस तक वह पहुंची । लेकिन हुआ कुछ अलग ---- आपकी उम्मीदों के मुताबिक चन्द्रमोहन चाकु निकालने तक तो पहुंचा परन्तु हत्या करने की कुवत न पैदा कर सका । फिर भी आपको यकीन था एक दिन वह , वह भी कर देगा । यह बात आपने सत्या से कही थी । फिर सत्या ने आपको पेपर के साथ पकड़ लिया । उसे तत्काल मार डालना मजबूरी हो गयी । । बकरा पहले ही तैयार था । खून सना चाकू उसी के कमरे में छुपा दिया । नतीजा ? चन्द्रमोहन पकड़ा गया । चाकू से अपनी अंगुलियों के निशान आपने भले ही साफ कर दिये थे परन्तु चन्द्रमोहन को छोड़ने को मजबूर कर दिया । उसकी रिहाई आपको बौखलाने के लिए काफी था और आप बौखलाये । कोई ऐसी गलती की जिसके कारण सारा राज चन्द्रमोहन को इतनी जल्दी पता लग गया । मगर आप स्वयं भी जान गये कि चन्द्रमोहन सबकुछ जान गया है । ऐन मौके पर उसका मुह हमेशा के लिए बंद कर दिया । "

" आप वो कह चुके जो कहना था ? " मेरे चुप होते ही उसने चाय का कप खाली करके प्लेट में रखा । मुझे आश्चर्य था वह जरा भी विचलित या उतेजित नजर नहीं आ रहा था । उसी तरह ठंडे स्वर में बोला ---- " आपने साबित कर दिया कि आप एक अच्छे लेखक है लेकिन महोदय , हत्या के केस कहानियों से हल नहीं होते । उसके लिए सुबूत चाहिए और सुबूत आप नहीं जुटा सकते "

" ओह ! इतना भरोसा है खुद पर ? "
" इससे भी ज्यादा । " कहने के साथ एक बार फिर सोफे से खड़ा हो गया और चहलकदमी करता हुआ बोला ---- " इस भरोसे का सबसे बड़ा कारण ये है मिस्टर वेद कि जो कुछ आपने कहा , वह केवल आपकी कल्पना थी और कल्पना के सुबूत नहीं मैंने अपना अगला तीर चलाने के लिए मुंह खोला ही था कि बंसल साहब की पत्नी ड्राइंगरूम में आई । उसकी हालत देखते ही मैं चौंक पड़ा । चेहरा कोरे कागज की तरह सफेद नजर आ रहा था । बुरी तरह हड़वड़ाई हुई थी वह । बोली ---- " ग - गजब हो गया ! "
" क्या हुआ ? " बंसल उसकी तरफ घूमा ।

निर्मला ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन मुझ पर नजर पड़ते ही ठिठकी । पसीने से तरबतर अपने चेहरे के साथ बंसल की तरफ लपकी । उसका हाथ पकड़कर एक कोने में ले गया और जल्दी - जल्दी फान में कुछ कहा ।

सुनते ही उछल पड़ा बंसल ---- " क - क्या ? कहां गया वह ? "
" म - मुझे नहीं पता । " कंठ सूखा होने के कारण वह बड़ी मुश्किल कह सकी ।

बंसल का सम्पूर्ण जिस्म पसीने से इस कदर भरभरा उठा जैसे सभी के सामने शर्त लगाकर पसीना उगला हो । चेहरा ऐसा नजर आने लगा जैसे किसी ने हल्दी का उबटन लगा दिया हो । ये वो शख्स था जो मेरे द्वारा सीधे सीधे हत्यारा कहने के बावजूद पूरी तरह नियंत्रण में रहा था ।
 
उसकी यह हालत देखकर मारे उत्सुकता के मेरा बुरा हाल हो गया । सोफे से खड़ा होता हुआ लगभग चीख पड़ा मैं ---- " क्या हुआ मिस्टर बंसल ? कौन कहाँ गया ? "
" क - कुछ नहीं । " लाख चाहने के बावजूद बंसल अपनी हकलाहट नहीं रोक सका ---- " हमारी कोई घरेलु प्राब्लम है । "
" आप झुठ बोल रहे है "
वह चीखा ---- " आपको तो हमारी हर बात झूठ नजर आ रहा है । "
" क्योंकि आप बोल ही झूठ रहे है । " मैं उससे ज्यादा जोर से चीखा ---- " घरेलू प्राब्लम है तो बताइए । उसे बताने में आपको क्या एतराज है ? "
" घरेलू प्राब्लम बाहर बालों को नहीं बताई जाती । "
मैं वो बात जानने के लिए पागल हो उठा था जिसने इन पति - पत्नी की हवा खराब कर दी थी । अतः झपटकर निर्मला के नजदीक पहुंचा । उसके दोनों कंधो को पकड़कर झंझोड़ता हुआ बोला ---- " आप बताइए मिसेज बंसल । आखिर वो क्या बात है जिसने पहले आपके चेहरे पर हवाइयां उड़ा रखी थी -- अब मिस्टर बंसल को पीला कर दिया है ? "
क्रोधित बंसल मुझे जबरदस्ती निर्मला से अलग करता दहाडा ---- " आप हमारे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते मिस्टर ये । "
" ऐसा क्या है जिसे आप छुपा रहे हैं ? "
" हम आपको हर बात बताने लिए बाध्य नहीं हैं । "
" ओ.के .। " मैंने भी ताव में आकर कहा ---- " मुझमें कुव्वत होगी तो पता लगाकर रहूंगा । उस स्टोरी को मत भूलियेगा जिसे आप मेरी काल्पनिक स्टोरी बता रहे थे । " कहने के बाद तमतमाया हुआ मैं ड्राइंगरूम से बाहर निकल गया । दिमाग बुरी तरह झन्ना रहा था । छठी इन्द्रिय बार - बार कह रही थी ---- ' हो न हो , बात कोई इसी केस से कनेकटेड है । लाख कोशिश के बावजूद समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ऐसी क्या बात हो सकती है जिसने पूरी तरह शान्त बंसल में तूफान ला दिया।

बंगले के लान से गुजरते वक्त जी चाहा ---- पलटकर किसी और तरफ से इमारत में पहुंचने की कोशिश करूं । खुली हुई खिड़की या दरवाजे का फायदा उठाऊं । मेरे निकलते ही ये यकीनन आपस में खुलकर बात करेंगे । वे बाते मुझे बता सकती थी कि बात क्या है ? लोहे वाले गेट के नजदीक पहुंचकर मैंने पलटकर इमारत की तरफ देखा । महसुस किया --- ड्राइंगरूम की खिड़की के पीछे से चार आंखें मुझे ही देख रही है । मैं चुपचाप निकल आने के लिए मजबूर था । मुझे जैकी को फोन करना चाहिए । अपना यह विचार मुझे जँचा।
 
मुझे तो बंसल ने टरका दिया । मगर जैकी एक पुलिसिया था । उसे नहीं टरका सकता था वो । वह पुलिस वाले हथकंडे इस्तेमाल कर सकता था । फिर , हिमानी वाली घटना की जानकारी भी उसे देनी ही थी ।

मैं स्टॉफ़ रूम की तरफ बढ़ा । बड़ा ही था कि चौंका । प्रिंसिपल की एम्बेसडर उसके बंगले का लोहे वाला गेट क्रास करके बाहर निकली । मैंने तेजी से खुद को एक झाड़ी के पीछे छुपा लिया । कुछ देर बाद एम्बेसडर ठीक मेरे सामने से गुजरी ।
मैंने साफ देखा ---- उसे बंसल ड्राइव कर रहा था । दिमाग में बिजली की सी गति से सवाल कौंधा ---- कहां जा रहा है वह ? चन्द मिनट पहले किसी ऐसी बात का पता लगना जिसने उसके होश उड़ा दिये थे मुझसे झड़प और तुरन्त बाद निकलना । मुझे लगा ---- वह किसी खास जगह जा रहा है । कहा ? जानना चाहिए ।

यह विचार दिमाग में आते ही मैं कॉलिज के मुख्य द्वार की तरफ दौड़ा । मारुति दरवाजे के बाहर खड़ी थी । मुझे भागते देखकर हड़बड़ाए हुए गुल्लू ने कहा ---- " क्या हुआ सर ? "

मैंने सड़क के दोनों तरफ देखा ---- एम्वेसडर नजर नहीं आई । अपनी गाड़ी का लॉक खोलते हुए चीखकर गुल्लू से पूछा ---- " प्रिंसिपल किधर गया है ? "
" उभर । " गुल्लू ने हाथ के इशारे से बताया ।

फिर क्या था ? मैंने गाड़ी दौड़ा दी । उस क्षण मुझे नहीं मालूम था सही कर रहा हूं या गलत ? बस जो सूझ रहा था . किये चला गया । गाड़ी - की रफ्तार अस्सी से कम नहीं थी । हापुड स्टैण्ड के चौराहे पर अंततः मैंने उसे पकड़ लिया ।

दूसरे व्हीकल्स के साथ एम्बेसडर रेड लाइट पर खड़ी थी । मैंने मारुति एक सूमो की बैक में छुपा ली । चौराहे की लाइटें टूटी पड़ी थी । उनका काम वहां तैनात पुलिसिए और होमगार्ड कर रहे थे । उनके इशारे पर इस तरफ ट्रैफिक चला ।
 
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