Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज - Page 8 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज

" ज - जी हां । "
" रिपोर्ट "
राइटिंग चन्द्रमोहन की ही थी । "
" इसका भी एक फोटो उतरवा लेना । " विभा ने शीशे पर लिखे अक्षरों की तरफ इशारा किया ---- " और एक्सपर्ट के पास भेजकर उसकी ओपिनियन जरूर ले लेना । " कहने के बाद उसने अपनी आखें ड्रेसिंग टेबल पर रखे मेकअप के सामान पर स्थिर की ।

सामान सलीके से रखा था । एक एक लिपस्टिक उठाकर उसका कलर देखती हुई विभा ने कहा ---- " लिपस्टिक पर पॉयजन लगाने का काम हत्यारे ने हिमानी को वाथरूम में बंद करके किया । उसकी हरकत का कारण तुममें से कोई नहीं समझ सका । "

मै सोच रहा था कितनी तेजी से और कितना एक्यूरेट सोचती है विभा ? उसने गाड़ी में ही संभावना व्यक्त कर दी थी कि हत्यारे ने हिमानी की हत्या की भूमिका उसे बाथरूम में बंद करते वक्त तैयार कर ली थी । मैंने अपने दिमाग में उभरा एकमात्र सवाल उगला ---- " लेकिन विभा । यह घटना कल की है । यदि हत्यारे ने उस वक्त लिपस्टिक पर पॉयजन लगाया तो क्या उसे मालूम था हिमानी आज कौन - सी लिपस्टिक इस्तेमाल करेगी ? "

" पायजन एक ही लिपस्टिक पर लगाया गया था या सब पर , इस सवाल पर जवाब मेकअप के सारे सामान को लेबोरेट्री में भेजने के बाद मिलेगा । " कहने के साथ विभा ने वह लिपस्टिक निकालकर अलग रख दी जिससे शीशे पर CHALLENGE लिखा गया था । हिमानी द्वारा इस्तेमाल की गई लिपस्टिक भी वही थी । ड्रेसिंग टेबिल की दराज खोलती विभा ने आगे कहा --- " वैसे मेरे ख्याल से हिमानी का आज ही मरना जरूरी नहीं था । उसे तब मरना था जब इस लिपस्टिक का इस्तेमाल करती । संयोग से वह दिन आज का हो गया । हत्यारे ने अपनी तरफ से मौत का जाल बिछाकर छोड़ दिया था । हिमानी आज मरे या कल । "

मैंने कहा -- " सबसे अहम सवाल को तुम भी बार - बार गोल कर रही हो विभा । "

" कौन सा सवाल ? " " हिमानी ने शीशे पर क्या सोचकर CHALLENGE लिखा ? "

" मेरे दिमाग के मुताबिक अब एक सवाल के अंदर से दूसरा सवाल भी उभर आया है । यह सवाल तो अपनी जगह अनुत्तरित है ही कि मरने वाले CHALLENGE क्यों लिख रहे हैं ? चलो माना , सत्या ने किसी अज्ञात वजह से CHALLENGE लिखा । परन्तु चन्द्रमोहन ने कागज पर यही शब्द लिखकर जेब में क्यों रखा ? हिमानी ने इस कमरे से बाहर निकलने से पहले क्यों लिखा ? क्या इन दोनों को भी अपनी मौत का पूर्वाभास हो गया था ? "

जैकी बोला ---- " ऐसा नहीं था । दावे से कह सकता हूं फोन पर बात करते वक्त चन्द्रमोहन को स्वप्न तक में अपनी मौत का अनुमान नहीं था । उसी तरह -चश्मदीद गवाहों के मुताबिक मौत के चंद क्षण पहले हिमानी जितनी मस्त थी , उसे देखते हुए नहीं जा सकता कि उसे मौत का पूर्वाभास था , बलिक वह तो खुद को बचाने के लिए भी चिल्लाई । "

" फिर उसने किस मानसिकता के तहत शीशे पर CHALLENGE लिखा ? " एक - एक शब्द पर जोर देता मैं कहता चला गया -- " क्या लिखते वक्त उसे यह ध्यान नहीं आया होगा सत्या और चन्द्रमोहन यह शब्द लिखने के बाद मर चुके है ? ऐसा नहीं माना जा सकता कि यह बात उसके जहन में नहीं कौंधी होगी । यदि कौंधी थी , तो लिखते वक्त हाथ क्यों नहीं कांपे.
उसके ? यह सवाल दिमाग में क्यों नहीं आया कि अब मैं भी मरने वाली हूं ? अगर आया था तो लिखा क्यों ? इतनी मस्त कैसे थी वह इसे लिखते आखिर सोच क्या रही थी हिमानी ? "

विभा कह उठी ---- " बहुत ही गूढ , गहरा और सार्थक सवाल उठाया है तुमने । "

" मैं अपनी तारीफ का नहीं विभा , जवाब का तलबगार हूं । "
 
" मैं जादूगर नहीं बेद । इन्वेस्टिगेटर हूँ । केवल उन सवालों के जवाब दे सकती हूं जिनके जवाब घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद समझ में आये । "
" अर्थात् तुम भी इस गुत्थी को नहीं सुलझा सकी ? "
" दो बातें हैं जिन पर टाइम मिलने पर थोड़ा मनन करना चाहूंगी । "

" कौन - सी दो बाते ? " जैकी ने उत्सुकतावश पूछा । "

सत्या द्वारा CHALLENGE लिखने तथा चन्द्रमोहन और हिमानी द्वारा लिखने में एक बारीक फर्क है । सत्या में यह शब्द ठीक तब लिखा जब उसे अपनी मौत का इल्म हो गया ।

चन्द्रमोहन की तरह पहले से लिखकर जेब में नहीं रखा था । उसी तरह हिमानी ने भी मरते वक्त नहीं बल्कि मरने से काफी पहले लिख दिया था । सवाल उठता है ये फर्क क्यो ? मुमकिन है मुजरिम इसी फर्क के पीछे छुपा हो । "
" दूसरी वात ? "
" एक कागज पर इंग्लिश में चैलेंज लिखो । "

" म - मैं ? "

उसके विचित्र आदेश पर एक सेकेण्ड के लिए मैं सटपटा गया । होटों पर गहरी मुस्कान लिए कहा विभा ने ---- " हाँ तुम ! घबराओ नहीं , तुम मरने वाले नहीं हो । "

समझ नहीं सका मुझसे चैलेंज लिखवाकर वह क्या साबित करना चाहती थी ? परन्तु सवाल करने की जगह एक कागज पर लिख दिया ---- ' Challenge कागज हाथ में लेते ही विभा की मुस्कान गहरी हो गयी । बोली ---- " तुमने यह शब्द सत्या की तरह इंग्लिश के कैपिटल लेटर्स में क्यों नहीं लिखा ? पहला अक्षर कैपिटल और बाकी लेटर स्माल इंग्लिश में क्यों लिखे ? "

" इंग्लिश में किसी शब्द को लिखने का यही तरीका सही है । "

“ याद रहे वेद ! सत्या इंग्लिश की टीचर थी । यकीनन इंग्लिश लिखने का तरीका तुमसे बेहतर जानती होगी । फिर उसने कैपिटल लेटर्स में चैलेंज क्यों लिखा ? वैसे क्यों नहीं लिखा जैसे तुमने लिखा है ? " सवाल वाकई जानदार था । मुझे चुप हो जाना पड़ा । जैकी ने कहा ---- " कैपिटल लेटर्स में शब्द लिखना सत्या की आदत हो सकती है । "
" नहीं ! " बंसल कह उठा- " उसे यह आदत नहीं थी । "
" इसके बावजूद मान लिया जाये आदत थी तो चन्द्रमोहन और हिमानी के बारे में क्या कहोगे ? " जानदार मुस्कान के साथ विभा ने जैकी को लाजवाब कर दिया ---- " क्या उन्हें भी यही आदत थी ? उन्होंने बेद की तरह चेलेंज लिखने की जगह सत्या की तरह क्यों लिखा ? "

मैंने पूछा- " इस फर्क को प्वाइंट आऊट करके तुम कहना क्या चाहती हो विभा ? " " सत्या को CHALLENGE लिखते अनेक लोगों ने देखा है । उस वक्त उसे खुब मालूम था कि मेरे पास टाइम बेहद कम है , किसी भी क्षण मेरे प्राण पखेरू उड़ सकते हैं । ध्यान दो ---- Challenge फ्लो में लिखा जाता है अर्थात् कम टाइम जबकि CHALLENGE ज्यादा टाइम लेता है । इसके बावजूद सत्या ने Challenge नहीं CHALLENGE लिखा । यकीनन इसके पीछे कोई ठोस वजह होगी । यह बात और भी पक्की तब हो जाती है जब मरने वाले अन्य दो व्यक्ति भी Challenge नहीं CHALLENGE लिखते हैं । जाहिर है मरने वाले को कहना चाहते हैं वह केवल CHALLENGE के जरिए कहा जा सकता है , Challenge के जरिए नहीं । "

" ऐसा क्या है जिसे इंग्लिश के कैपिटल लेटर्स के जरिये तो कहा जा सकता है मगर इन्हीं लेटर्स के स्माल इस्तेमाल से नहीं ? "
 
" इस सवाल का जवाब अभी मैं भी नहीं खोज पाई हूं । "
" इसके बावजूद तुम पहेली को हल करने के काफी नजदीक हो विभा । " उत्साह में भरा मैं कहता चला गया ---- " मुझे यही उम्मीद थी । आमतौर पर किसी शब्द को लिखने में कोई शख्स कैपिटल लेटर्स का इस्तेमाल नहीं करता । यह बात जानने के बावजूद इस प्वाइंट पर मेरा या जैकी का ध्यान केन्द्रित नहीं हो सका था । तुम्हारी बातें सुनने के बाद लगता है .---- पहेली की चाबी इसी प्वाइंट में है कि मरने वाले ने यह शब्द कैपिटल लेटर्स में क्यों लिखा ? "

" पहेली पर सिरखपाई बाद में भी हो सकती है । विभा ने खुली हुई दराज में नजर मारते हुए कहा ---- " फिलहाल हमारी जरूरत बारीकी से कमरे की तलाशी लेनी है । इस काम में मेरी मदद करो जैकी । ध्यान रहे , किसी वस्तु से अनावश्यक छेड़छाड़ नहीं करनी है । "

उसके बाद करीब दस मिनट तक विभा और जैकी अपने अपने तरीकों से कमरे की तलाशी लेते रहे । विभा ने बाथरूम तक को नहीं बख्शा और जब बाहर निकली तो मैं चौंक पड़ा । चौकने का कारण थी विभा के होठो पर चिपकी मुस्कान । दो केसों में उसके साथ रह चुका मैं उस मुस्कान का अर्थ समझता था । वह मुस्कान विभा के होठों पर केवल तब नजर आती थी जब उसके हाथ कोई तगड़ा क्लू लगा होता था । मैंने पूछने के लिए मुंह खोला , उससे पहले विभा जैकी से बोली ---- " और ज्यादा खंगालने की जरूरत नहीं जैकी ! काम हो गया है । "

हिमानी की पर्सनल अलमारी में नजर मारता जैकी चौंककर उसकी तरफ पलटा । मैंने उत्कंठापूर्वक पूछा -- . " तुम्हारे हाथ क्या लगा है विभा ? "

मेरे सवाल का जवाब देने की जगह उसने अपनी आंखें भीड़ में खड़े लविन्द्र भूषण पर जमा दीं । कम से कम तीस सैकिण्ड तक उसी को देखती रही । लविन्द्र भूषण पन्द्रह सैकेण्ड उसकी नजरों का सामना कर सका । बाकी पन्द्रह सैकिण्ड बगलें झांकने में लगायी । एकाएक विभा ने उसे नजदीक आने के लिए कहा । लविन्द्र उसकी तरफ इस तरह बढ़ा जैसे पैर कई - कई मन के हो गये हैं । मारे सस्पेंस के सबका बुरा हाल था । इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद विभा की नजर लबिन्द्र पर ही क्यों टिक गई , कोई नहीं समझ पा रहा था । "

आपका नाम ? " विभा ने उससे पूछा । उसकी आवाज मानो गहरे कुवें से उभरी ---- " लविन्द्र भूषण ! "
" मैं आपके कमरे की तलाशी लेना चाहती हूँ।

मेरे कमरे की " लाविन्द्र के होश फाख्ता --- " क - क्यो ? "
" सवाल छोड़िए । एतराज तो बताईए ? "

" म - मुझे क्या एतराज हो सकता है । "

" तो प्लीज ! मार्गदर्शन कीजिए हमारा । " कहने के साथ वह दरवाजे की तरफ बढ़ गई । सवालिया निशानों के सागर में गोते लगाती भीड़ ने काई की तरह फटकर रास्ता दिया । लविन्द्र भूषण के कमरे में कदम रखते ही सिगरेट की तीव्र गंध नथुनों में घुसती चली गई । राइटिंग टेबल पर रखी एशट्रे टोटों से भरी पड़ी थी । हमारे पीछे अन्य लोग भी अंदर आना चाहते थे , उन्हें रोकते हुए विभा ने मुझसे दरवाजा बंद करने के लिए कहा । मैंने वैसा ही किया । कमरे में केवल मै , जैकी और लविन्द्र थे ।

चेहरे पर हवाइयां लिए लविन्द्र ने कहा- " ल - लीजिए तलाशी । "
" ले चुकी । " विमा मुस्कराई ।
" ज - जी " लविन्द्र चिहुंका । हालत जैकी और मेरी भी चिहुंक पड़ने जैसी थी । हम नहीं समझ सके उसने तलाशी कब ले ली ? "
अब केवल एक सवाल का जवाब दीजिए मिस्टर लबिन्द्र । " उसे अपलक घूरती विभा ने पूछा ---- " हिमानी की हत्या आपने क्यों की ? "
" म - मैंने ? मैने हत्या की ? " लविन्द्र इस तरह उछला जैसे हजारों बिच्छुओं ने एक साथ डंक मारे हो ---- " क - क्या कह रही हैं आप ? भ - भला में हिमानी की हत्या क्यों करूगा ? "

" मैं वही पूछ रही हूं । "
" अ - आपको किसी कारण गलतफहमी हो गयी है । मैंने उसे नहीं मारा । "
" किस वजह से गलतफहमी हो सकती है मुझे ? "
" म - मैं क्या जानूं ? " विभा बहुत ध्यान से लविन्द्र के फेस पर उभरने वाले एक्सप्रेशन को रीड करती नजर आ रही थी । बोली ---- " क्या कल और आज के बीच आप हिमानी के कमरे में नहीं गये ?
 
जवाब दीजिए मिस्टर लविन्द्र ? " बहुत मुश्कित से कह सका बह ---- " गया था ? "
" क्यो ? "
उसने हिचकते हुए पुछा ---- " क्या जवाब देना जरूरी है ? "
" हत्या के इल्जाम से बचना चाहते हो तो जरूरी है । "
" मेरे वहां जाने का कारण ये लेटर था। " कहने के साथ उसने अपनी पेंट की जेब से एक लेटर निकाल कर विभा को दिया । विभा की पतली अंगुलियों ने उसकी तहें खोलनी शुरू की । जिज्ञासा के मारे मै और जैकी उस पर झुक गये । लेटर का मजूमन तीनों ने लगभग साथ - साथ पढ़ा ।

लिखा था - माई डिअर लबिन्द्र ! बहुत दिन से तुम्हें अपने दिल की भावनाएं बताने के लिए वेचैन हूँ परन्तु साहस न कर सकी । पता नहीं तुम इतने खोये - खोये क्यों रहते हो ? क्या तुम्हें सचमुच मालूम नहीं कि कोई तुम्हें चोरी - चोरी देखता है । चाहता है । पूजता है । वो मैं हूँ लबिन्द्र ! मैं । पर एक तुम हो -- मैंने तुम्हें कभी अपनी तरफ नजर उठाकर देखते नहीं देखा । बहुत हिम्मत करके लेटर लिखा है । आज रात दो बजे अपने कमरे में तुम्हारा इंतजार करूंगी । सिर्फ तुम्हारी ---- हिमानी "

और तुम उसके कमरे में पहुंच गये ? " पत्र पूरा पढ़ते ही मैं लविन्द्र पर वरस पड़ा ---- " मन ही मन सत्या से मुहब्बत करने के बावजूद हिमानी का आफर मिलते ही फिसल गये ? "

" मेरे वहां जाने का कारण वो नहीं था जो आप सोच रहे हैं । "
" और क्या कारण था ? " " हिमानी से वही सब कहना जो एक दिन सत्या ने मुझसे कहा था । " " क्या कहा था सत्या ने ? " विभा ने पूछा । " यह कि हम जवान बच्चों के कॉलिज में टीचर हैं । आपस में प्यार मुहब्बत का रिश्ता कायम करना शोभा नहीं देता । हमारे आचरण से स्टूडेन्ट्स में अच्छा मैसेज जाना चाहिए । "

" और यही सब तुमने कहा ? " विभा ने उसे घुरते हुए पूछा । "
यकीन मानिए । यही सब कहा था । "

" हिमानी क्या बोली ? " " मेरी बातें सुनकर वह हैरान रह गयी । कहने लगी ---- ' आपने सोच कैसे लिया मिस्टर लविन्द्र कि मैं आपसे मुहब्बत करती हूं ? मैंने तो स्वप्न में भी कल्पना नहीं की ।

अब मैं चौंका ! जेब से निकालकर लेटर दिखाया । बुरी तरह चकित वह बोली ---- ' ये लेटर मैंने नहीं लिखा । मेरी राइटिंग ही नहीं है ये । और ये सच था । तब हम इस नतीजे पर पहुंचे कि किसी शरारती स्टूडेन्ट ने हमें बेवकूफ बनाया है । मगर किसने ?

जो माहौल कॉलिज में है , उसमें इतनी बड़ी शरारत किसे सूझी ? न जान सके । शरारत करने वाले को ढूंढने की खातिर मैंने लेटर अपने पास रख रखा है । "
" तुम झूट बोल रहे हो । " जैकी गुर्राया । विभा ने कहा --- " ये सच बोल रहे हैं जैकी । कुछ देर पहले हिमानी की राइटिंग हम सबने देखी है । लेटर की राइटिंग उससे अलग है । मि ० लविन्द्र को उस वक्त झूठ बोलता माना जा सकता था जब ये कहते कि इन्होंने हिमानी को आदर्श भरी बातें समझाई और वह समझ गयी । "
" लेकिन विभा , तुम्हें कैसे पता लगा लविन्द्र हिमानी के कमरे में गया था ? " मैंने बहुत देर से अपने दिमाग में घूम रहा सवाल पूछा " सिगरेट पीने वालों की सबसे गंदी आदत होती है कि वे कहीं नहीं चूकते । ' कहने के साथ विभा मुझे सिगरेट का टोटा दिखाती बोली ---- " यह हिमानी के बाथरूम में मौजूद डस्टबिन से मिला । "
" मगर तुमने यह नतीजा कैसे निकाल लिया यह लविन्द्र का है । सिगरेट तो कॉलिज में और भी लोग पीते होंगे । "
" ध्यान से देखो इसे ! सिगरेट आधी पी गई है । टोटे पर सिगरेट का ब्राण्ड साफ पढ़ा जा सकता है । और अब एक नजर मि ० लविन्द्र की शर्ट पर डालो । झीने कपड़े की जेब में इसी ब्राण्ड का पैकिट रखा साफ चमक रहा है । "
 
" क्या जरूरी है ये ब्राण्ड इस्तेमाल करने वाला कालिज में दूसरा नहीं होगा . "
" इसीलिए इस कमरे तक आने की जरूरत पड़ी । एशट्रे को देखते ही पुष्टि हो गयी , हिमानी के कमरे में सिगरेट पीने वाले मिस्टर लविन्द्र ही थे । ध्यान से देखो , एशट्रे में मौजूद सभी टोटे इस टोटे की तरह आये है अर्थात् आधी सिगरेट पीकर कुचल देना इनकी आदत है । "
" कड़ियां जोड़ने में आपको महारत हासिल है । " जैकी कह उठा- " इस केस से पहले मैं ऐसे किसी इन्वेस्टिगेटर से नहीं मिला जो इतने छोटे - छोटे प्याइंट्स पकड़कर इतनी दूर तक निकल जाये । " जैकी के मुंह से विभा की तारीफ सुनकर मेंरा सीना चौड़ा हो गया । कुछ इस तरह , जैसे मेरी तारीफ की गई हो । मगर विभा पर कोई असर नहीं था । बोली -.- " मि ० लविन्द्र , मेरे ख्याल से यह लेटर आपको हिमानी के कमरे में भेजने के लिए हत्यारे ने लिखा है । "
" मगर क्यों ? वह ऐसा क्यों चाहता था ? " " एक बजह आपको इन्वेस्टिगेटर की नजर में संदिग्ध बनाना भी हो सकती है । "
" म - मुझे क्यों संदिग्ध बनाना चाहता है वह ? "
" यह इस केस के हत्यारे की टेंडेंसी लगती है । कुछ देर पहले तक मि ० बंसल को चारा बनाकर हमारे सामने डाल रहा था । मुमकिन है आगे किसी और को डाले । यह टेक्निक उसने खुद को शक के से बाहर रखने के लिए अपनाई है । "
" यह टेक्निक तो जबरदस्त पेचीदगियां पैदा कर देगी विभा जी । " जैको बोला ---- " किन्हीं कारणों से असल हत्यारे पर शक गया भी तो उस स्पॉट पर हम यह सोचकर चूक कर सकते हैं कि शायद वह भी हत्यारे की टेक्निक का ही शिकार है।

सो तो है । " विभा नुस्कराई ---- " वह अपनी चाल चलेगा । हमें अपने पैतरे दिखाने हैं । दिमाग की नसें इसी खेल से खुलती हैं । खैर .... जैसा कि आपकी बातों से जाहिर है मि ० लविन्द्र आप अभी तक इस लेटर के लेखक का पता नहीं लगा सके होंगे । "
" कालिज में मुस्लिम कैंडिडेट कितने हैं ? " मैं और लबिन्द्र विभा के सवाल का मतलब नहीं समझ सके । जबकि जैकी मारे खुशी के लगभग उछल पड़ा ---- " मैं भी यही कहने वाला था विभा जी , लेटर किसी मुस्लिम ने लिखा है ।
" किस बेस पर ? " विभा ने कहा । "
प्लीज ---- इम्तहान मत लीजिए मेरा । आपके सवाल से जाहिर है कि कॉपी के जिस कागज पर लेटर लिखा गया है , उसके दाहिने ऊपरी कोने पर बहुत छोटे - छोटे अंकों में लिखे ' सात सौ छियासी ' पर आपकी नजर भी पड़ चुकी होगी । ' विभा के होठो पर मुस्कान फैल गयी । बौली ---- " मुझे खुशी हुई कि इस प्वाइंट को तुमने भी पकड़ा । "

" मैंने कहा था , आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा । "
" सीख आदमी तभी सकता है जब सीखना चाहे । वैसे इसमें सीखने वाली उतनी बात नहीं है । जो भी वस्तु या जीव तुम्हारे सामने आये , उसे बारीकी से देखने की आदत डालो । मुमकिन है , उसी में से रास्ता निकलता नजर आये । "

जैकी ने लविन्द्र से कहा --- " हमें मुस्लिम स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स की लिस्ट चाहिए । " मगर लबिन्द्र को लिस्ट बनाने की जरूरत नहीं पड़ी । विभा की सलाह पर कमरे का दरवाजा खोलकर जैकी ने जब ऊंची आवाज में पूछा कि अपनी कापी के पन्नों के कोनों पर बारीक लेटर्स में सात सौ छियासी लिखने की आदत किसे है तो चौंकते से राजेश ने आगे आकर कहा ---- " अल्लारखा को ! "

सबकी नजरें अल्लारखा पर स्थिर हो गयीं । अल्लारक्खा की अवस्था बड़ी अजीब थी । उस वक्त तो पीला ही पड़ गया जब उसे कड़ी नजर से देखती विभा ने कहा ---- " अब हमें तुम्हारे कमरे की तलाशी लेनी है । " बेचारा अल्लारक्खा । कारण तक न पूछ सका ।

काफिला उसके कमरे में पहुंचा । यह कॉपी तलाश करने में खास दिक्कत पेश नहीं आई जिसके कागज पर लविन्द्र के नाम हिमानी का लेटर लिखा गया था । कापी में फटे हुए कागज के रेशे मौजूद थे । उन्हें देखने के बाद जैकी ने अल्लारखा को घुरते हुए कहा ---- " तो तुमने हिमानी की तरफ से लबिन्द्र को लेटर लिखा । "
" ल - लेटर ? क कौन सा लेटर ? "
 
विभा ने लेटर उसके हाथ में पकड़ा दिया । अल्लारखा ने उसे पढ़ा और पढ़ते - पढ़ते चेहरे की सारी चमक काफूर हो गई । चीख सा पड़ा वह ---- " नहीं ! ये लेटर मैंने नही लिखा । "

" मेरे सामने झूठ नहीं टिक पाता । " पहली बार विभा का लहजा कर्कश हुआ ---- " मैं लेटर की राइटिंग को इस कापी में मौजूद तुम्हारी राइटिंग से मिला चुकी हूँ ।

"राइटिंग मेरी है विभा जी , म - मगर मैंने इसे नहीं लिखा। यकीन कीजिए मेरी राइटिंग में यह लेटर किसी और ने लिखा " बात वो करो अलारखा जिस पर यकीन किया जा सके ।

रोने को तैयार उसने कहना चाहा --..- " मैं कसम खाकर कहना हूँ .... " इस तरह सच नहीं उगलेगा ये ! " भन्नाये हुए जैकी ने झपटकर दोनों हाथों से उसका गिरेवान पकड़ा और दांत भींचकर कहता चला गया ---- " अपना तरीका इस्तेमाल करना पड़ेगा मुझे । "
" म - मुझे बचाइए विभा जी । " अल्लारखा गिड़गिड़ा उठा --- " म - मैंने कुछ नहीं किया । "
" जब तक सच नहीं बोलोगे तक तक मैं कोई मदद नहीं कर सकती ! " कहने के बाद विभा जैकी से मुखातिब होती बोली ---- " कुछ लोगों के सिर पर सवार भूत वाकई बातों से नहीं लातों से भागता है । इसे अपने साथ ले जाओ और जैसे भी हो , सब उगलवाओ । " और क्या चाहिए था जैकी को ! उसने तुरन्त अल्लारखा के हाथों में हथकड़ी डाल दी । अल्लारखा चीखता रहा , चिल्लाता रहा मगर कोई उसकी मदद न कर सका । विभा के आदेश पर जैकी उसे अपनी जीप की तरफ ले गया । सभी अवाक थे । हकके - वक्के थे । सन्नाटा हो गया वहां । बहुत कुछ कहना चाहकर कोई कुछ नहीं कह पा रहा था ।
अंततः मैंने ही पूछा ---- " क्या इस केस का हत्यारा पकड़ा गया विभा ? "
“ तुम्हें शक क्यों है ? " उसके होठो पर भेद भरी मुस्कान नाच रही थी ।
" जाने क्यों , दिलो - दिमाग अल्लारक्खा को हत्यारा मानने को तैयार नहीं । भला सत्या , चन्द्रमोहन और हिमानी की हत्यायें यह क्यों करेगा ? और फिर , क्या इस जटील केस का हत्यारा इतना आसानी से पकड़ा जा सकता है ? "
" तुम ठीक सोच रहे हो । " विभा ने कहा ---- " अल्लारखा हत्यारा नहीं है । "
" फिर तुमने उसे ...

"वो लेटर हमें काफी दूर ले जा सकता है । " विभा ने कहा ---- " पहली बात , अगर ये लेटर अल्लारखा ने लिखा है तो पता लगना चाहिए उसने ऐसा क्यों किया ? और यदि उसने लेटर नहीं लिखा तो जाहिर है - हत्यारा दूसरों की राइटिंग की नकल में माहिर है । इस अवस्था में CHALLENGE वाली पहेली स्वतः हल हो जायेगी । "

मुझे विभा की बात में दम लगा । एक बार फिर वहां खामोशी छा गयी । थोड़े अंतराल के बाद विभा ने बंसल से कहा ---- " प्रिंसिपल साहब , कल से कॉलिज की गतिविधियां उसी तरह चालू हो जानी चाहिए जैसे कुछ हुआ ही न हो । "
सब चौके ।
बंसल कह उठा ..... " य - ये आप क्या कह रही है ? "
" बर्तमान हालात में आपको मेरी बात अजीब लग सकती है परन्तु होना यही चाहिए । " विभा एक एक शब्द पर जोर देती कहता चली गयी ---- “ सामान्य गतिविधियां चालू नहीं हुइ तो वातावरण में आतंक छाया रहेगा । अगर हमने उसे छाये रहने दिया तो यह एक प्रकार से हत्यारे की मदद ही होगी । याद रहे ---- हत्यारे का मकसद कॉलिज परिसर में मौजूद हर शख्स को आतंकित रखना है क्योंकि आतंक युक्त दिमाग कभी ढंग से नहीं सोच पाते और जब तक सही दिशा में नहीं सोचेंगे , तब तक हत्यारा हमारी पकड़ से दूर रहेगा । " कहने के बाद वह एकाएक स्टूडेन्ट्स की तरफ मुड़ी और प्रभावशाली स्वर में बोली ---- " यह समझने की भूल कदापि न करना कि मेरे पास अलादीन का चिराग है । इन्वेस्टिगेटर तक नहीं हूँ मैं। वेद के अपहरण की वजह से मेरठ आई हूँ , और जब आ ही गई हूं तो इस कॉलिज में हो रही हत्याओं के जिम्मेवार शख्स को पकड़ने की कोशिश भी करूंगी । लेकिन आप सबके सहयोग के बगैर मेरी कामयाबी नामुमकिन है । सबसे पहला सहयोग आप तोग मुझे आतंकित वातावरण को वाश करके दे सकते हैं । और ये तव संभव है जब कालिज खुले । "
 
“ हम सहयोग देने के लिए तैयार हैं विभा जी । " राजेश ने कहा । "
दूसरी बात , हत्यारा आप ही लोगों के बीच मौजूद है । उसे पहचानना और शायद पकड़ना भी आपके लिए मुझसे ज्यादा आसान है । माहोल खुशनुमा रहेगा तो अपनी चाल पिटती देखकर हत्यारा बौखलायेगा । बौखलाया हुआ मुजरिम हमेशा गलतियां करता है । यकीन रखो , तुम अपने बीच छुपी गलतियां करने वाले उस शख्स को पहचान सकते हो ।
वेद से पूछो ---- विभा जिन्दल आसमान से नहीं उतरी है । एक दिन मैं और वेद भी तुम्हारी तरह स्टूडेन्ट थे । हमारे कालिज में एक क्राइम हो गया था । मैंने इन्वेस्टिगेशन की और मुजरिम को पकड़ लिया । उस दिन खुद मुझे भी पहली बार पता लगा कि मेरे अंदर एक सुलझे हुए इन्वेस्टिगेटर के गुण हैं । कहने का तात्पर्य ये कि तुममें से भी कई भविष्य के विभा जिन्दल हो सकते हैं , अतः स्वयं हत्यारे को ढूंढने की कोशिश करो । विश्वास रखो ---- यह काम ज्यादा मुश्किल नहीं है । मुजरिम का होसला केवल तब तक बना रहता है जब तक अपने आस - पास खतरा नजर नहीं आता है ।

तुमने सुना होगा ---- चोर के पांव नहीं होते । जरा सा खटका होते ही वह भागने की कोशिश करता है और इसी कोशिश पकड़ा जाता है अर्थात् केवल खटका पैदा करो , वह स्वयं तुम्हारे चंगुल में होगा । " उपरोक्त किस्म की अनेक बाते कही विभा ने । उन बातों का असर मैंने सभी के वजूद पर देखा । निराश और आतंकित हो चले स्टूडेन्ट्स में उसने उम्मीद और जोश भर दिया था।

वह सिर पर हेलमेट , हाथों में दस्ताने , पैरों में कैपसोल के जूते , जिस्म पर काले रंग का ओवरकोट और वैसे ही रंग की पेन्ट पहने हुए था । हेलमेट लगी पारदर्शी प्लास्टिक ने उसका चेहरा तक ढक रखा था । अर्थात् जिस्म की त्वचा का जर्रा तक नजर नहीं आ रहा था । लम्बे - लम्बे कदमो के साथ वह ब्वायज हॉस्टल की गैलरी पार कर रहा था । एक कमरे के बन्द दरवाजे पर ठिटका । कमरा अल्लारखा का था । ओवरकोट की जेब से चाबी निकालकर आसानी से ताला खोला । गैलरी में दोनों तरफ निगाह मारी । कहीं कोई नजर नहीं आया । दरवाजा खोलकर अन्दर पहुंचा । किवाड़ वापस भिड़ाये ।

कमरे में अंधेरा था । हेलमेट वाले ने जेब से टार्च निकालकर ऑन की । प्रकाश पूरे कमरे में गर्दिश करने लगा । पलंग , मेज , कुर्सी और किताब - कापियों पर थिरकने के बाद दायरा एक ऐसी खूटी पर स्थिर हो गया जिस पर कई हेंगर लटक रहे थे । हेंगर्स में लटके हुए थे ---- अन्लारखा के कपड़े । प्रकाश का दायरा वही स्थिर किये हेलमेट बाला खूटी की तरफ बढ़ा । नजदीक पहुंचा । फिर उसने हेलमेट में लगा प्लास्टिक का फेस कवर ऊपर उठाया । टार्च का पिछला सिरा मुंह में दबाया । दोनों हाथ औवरकोट की जेब में डाले । हाथ जब बाहर निकले तो एक में वैसी मोटी कलम थी जिससे रेल या ट्रांसपोर्ट पर भेजे जाने वाले बंडल्स पर एड्रेस लिखा जाता है , दूसरे में चौड़े मुंह बाली ऐसी दवात जिसमें पानी जैसे रंग की स्याही भरी थी । हेलमेट वाले ने दवात का ढक्कन खोला । कलम की नोक दबात में डाली और हेंगर पर लटके नाइट गाऊन पर कुछ लिखने लगा ।

हम घर पहुंचे । मुझे देखकर मारे खुशी के मधु की आंखें भर आई । करिश्मा , गरिमा और खुश्बु दौड़कर लिपट गई।
 
विभा ने कहा ---- " वाह मधु बहन ! अजीब चीज हो तुम भी । तब इस घोंचू के न होने की वजह से रो रही थी . अब इसके होने की वजह से रो रही हो ।
" पल्लू से आंसू पोछती मधु हंस पड़ी ।
" ये हुई न बात ! " विभा ने कहा ---- " अब कहीं जाकर चाय का मूड बना है । "
घर का माहौल खुशनुमा हो उठा । शगुन ---- करिश्मा , गरिमा और खुश्बु को नमक मिर्च लगाकर मेरी रिहाई का वृतांत सुना रहा था ।

मधु चाय बनाकर लाई तो विभा ने पूछ ---- " चीनी तो नहीं डाली इसमें ? "
" नहीं " मधु ने कहा ।
" क्यों ? " मैं चिहुंका --- " इसे क्या शुगर है ? " मधु बोली- “ मैंने चाय में मुस्कान मिलाई है । " जोरदार ठहाका लगाकर हंस पड़ी विभा ।

उस वक्त मैं समझ नहीं सका । जब विभा और मधु की पहली भेंट का वार्तालाप बताया गया तो बात समझ में आई । मधु सेन्टर टेबल पर नाश्ता सजाने लगी तो विभा ने कहा ---- " नाश्ते में टलने वाली नहीं हूँ मधु बहन । इस नालायक की वजह से लंच की छुट्टी हो गयी । डिनर के साथ लंच भी लेना है । " और मधु द्वारा प्यार से बनाया गया डिनर ऐसा था कि विभा अंगुलियां चाटती रह गयी ।

डिनर के बाद हम लोग आइसक्रीम खा रहे थे जब जैकी आया । उसके साथ अल्लारखा भी था । मैने ध्यान से उसकी हालत देखी ---- उम्मीद के विपरीत उसके जिस्म पर जख्म तो क्या . खरोंच तक नजर नहीं आई , इसके बावजूद चेहरे से जाहिर था , वह किसी जबरदस्त यातना से गुजरा है । साफ - साफ टूटा हुआ नजर आ रहा था वह । विभा ने जैकी को ही नहीं , अल्लारक्खा को भी बेहद प्यार और सम्मान के साथ कुर्सी पर बैटाया । विभा ने कहा --- " दोनों के लिए खाना लगाओ मधु बहन ! "
" न - नहीं । " अल्लारक्खा ने सहमकर जैकी की तरफ देखो ---- " म - मुझे भूख नहीं है । "
" मैं जान चुकी है । " विभा जैकी की तरफ देखकर मुस्कराती हुई बोली --- " बड़ा जालिम इंस्पैक्टर है ये ! खाना तो खाना एक बूंद पानी तक नहीं पिलाया होगा । "
" आपसे मिलने के बाद मैं खुद में काफी चेंज महसूस कर रहा हूं विभा जी ---- अब उतना जालिम नहीं रहा । " जैकी कहता चला गया ---- " देख तो आप रही ही हैं । पूछ भी सकती है । थई डिग्री की तो बात ही दूर , मैंने इसे हाथ तक नहीं लगाया । " एकाएक मधु ने कहा -- " अगर अल्लारखा ने बता दिया मैं पिटा हूं , तो समझ लो ठीक से पिट नहीं सका।

" यह क्या बात हुई भाभीजी ? " जैकी ने पूछा ।

" यही तो खूबी है इण्डियन पुलिस में ! " मधु कहती चली गयी ---- " उसके चंगुल में फंसा शख्स उससे अलग कुछ कह ही नहीं सकता जो पुलिस चाहती है और अगर कह गया तो समझ लो ---- खातिर ठीक से नहीं हो सकी । इजाजत दे तो इण्डियन पुलिस पर एक लतीफा सुनाऊँ । "
" मधु तुम .... विभा बोल पड़ी ---- " जरूर | जरूर मधु बहन ! बहुत दिन से कोई लतीफा सुना भी नहीं है । "
" एक अरब शेख ने हाथी का बच्चा पाल रखा था । ' मस्ती के मूड में मधु मेरी तरफ तिरछी नजरों से देखने के बाद शुरू हो गयी -- " एक बार वह खो गया ! शेख् उसे बहुत प्यार करता था । उसने रिपोर्ट दर्ज कराई । अरब पुलिस ने काफी कोशिश की । महीनों गुजर गये । हाथी का बच्चा नहीं मिला । शेख् परेशान । उसके किसी सलाहकार ने सलाह दी - ऐसे केस हल करने में इण्डियन पुलिस को महारत हासिल है । क्यों न उसकी सेवाएं ली जायें ?
 
शेख ने अपने स्तर पर सोर्स लड़ाई । इण्डियन गवर्नमेन्ट से बात की और छ : कांस्टेबल्स के साथ एक इंस्पेक्टर अरब पहुंच गया । उसने शेख से मिलकर हाथी के बच्चे का वजन , कद और रंग आदि पूछा । सुनने के बाद पूरे कॉन्फिडेन्स के साथ बोला ---- " फिक न करें । हम एक हफ्ते के अंदर हाथी के बच्चे को बरामद कर लेंगे । ' शेख खुश हो उठा । पुलिस दल को फाइव स्टार होटल में ठहराया । पुलिस वालों की शानदार दावते शुरू हो गयीं । दावतों में वे ऐसे मस्त हुए कि होटल से निकलते ही नहीं । मस्ती मारते - मारते एक हफ्ता गुजर गया । शेख ने तलब किया । पुलिस दल एक गधे को लेकर महल में पहुंचा । इस्पैक्टर ने गधे की तरफ इशारा करके शेख से कहा --- ' ये रहा आपका हाथी का बच्चा । शेख् हैरान ! बोला --- ' क्या थात कर रहे हैं ? ये तो गधा है । ' इंस्पैक्टर ने कहा ---- ' गौर से देखिए । आप ही का हाथी का बच्चा है ये ।

किडनैपर्स ने कुछ खाने पीने को नहीं दिया इसलिए थोड़ा कमजोर हो गया है । चाहें तो इसी से पूछ लें । हैरान - परेशान शेख ने बार - बार और हर तरीके से गधे के बच्चे से पूछा।
वह कौन है ? गधा एक ही बात रटे जा रहा था - मैं हाथी का बच्चा हूं शेख साहब ! आप ही के यहां रहता था । किडनैपर्स साले मुझे बहुत टार्चर करते धे । कैद में था उनकी ! खाने को भी नहीं देते थे इसीलिए मेरी ये हालत हो गयी । आपके यहां रहूंगा तो फिर पहले जैसा हो जाऊंगा । जब मुद्दई गवाही दे रहा था तो शेख् वेचारा क्या करता ? उसे गधे को रखना पड़ा । इण्डियन पुलिस केस हल करके वापस लौट आई । उसके बाद भी शेख ने गधे से कई बार पूछताछ की मगर गधा हमेशा खुद को हाथी का बच्चा बताता रहा । बहुत दिन बाद , जब शेख उसे यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो गया कि अब इण्डियन पुलिस लौटकर आने वाली नहीं है तो गधे ने कांपते लहजे में कहा ---- ' शेख साहब ! अगर मैं खुद को हाथी का बच्चा न बताता तो वे मुझे खरगोश का बच्चा बना देते । '

सब ठहाका लगाकर हंस पड़े मगर अल्लारखा के होठों पर मुस्कान तक नहीं उभर सकी । अभी तक हंस रहे जैकी ने कहा --- लतीफा आपने वाकई लाजवाव सुनाया भाभी जी । ये सच है । विभाजी से मिलने से पहले मैं भी ऐसा पुलिसिया था । पत्थरों तक को बोलने के लिए विवश कर देने का दावा किया करता था मैं । परन्तु अल्लारक्खा को हाथ भी नहीं लगाया । इसके बावजूद इसने हकीकत उगल दी । "

" ये चमत्कार तुमने कैसे किया ? " " भविष्य में थर्ड डिग्री का इस्तेमाल न करने का निश्चय मैं तभी कर चुका था जब आपने कहा कि हम पुलिस वालों को उससे आगे भी कुछ सोचना चाहिए । कालिज से थाने तक के रास्ते में सोचता रहा , बगैर थर्ड डिग्री इस्तेमाल किये अल्लारक्खा से हकीकत जैसे उगलवाऊं ? थाने पहुंचा । अपने करेक्टर के विपरीत इसे डटकर खाना खिलाया । चाय पिलाई । नाश्ता कराया ! बहुत ही प्यार से पेश आया । मैंने देखा मेरी हर हरकत पर यह और ज्यादा डर जाता था । ये बात सच है विभा जी , खौफ के जैसे लक्षण मैंने इसके चेहरे पर देखे , वैसे थर्ड डिग्री से गुजरते किसी गुजरिम के चेहरे पर देखने को कभी नहीं मिले । जिस शख्स को थाने पहुंचते ही अपना हवाई जहाज बनाये जाने का अंदेशा हो , उसके साथ यदि नम्रता से पेश आया जाये तो यह बेहद खौफजदा हो जाता है । यही हालत इसकी भी थी । मैंने एक बार भी नहीं पूछा कि इसने हिमानी के नाम से लविन्द्र को लेटर क्यों लिखा ।
 
अब से कुछ देर पहले यानी रात के लगभग नौ बजे इसे एक जीप में बैठाया । बुरी तरह डरे हुए अल्लारक्खा ने पुछा ---- ' अ - आप लोग मुझे कहाँ ले जा रहे है ? ' मैने ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठते हुए कहा ---- कालेज । '
' क - कालेज "
हाँ ! ' मैं होले से हंसा --- ' मैने तुम्हे आजाद करने का निश्चय किया है । '
' म - मगर आपने यह तो पूछा ही नहीं कि .... ' मुझे कुछ पूछने की जरूरत नहीं है । खुद बताना चाहो तो बता सकते हो ।

अल्लारखा चुप रह गया । दावे के साथ कह सकता हूं लाख सिर पटकने के बावजूद मेरा व्यवहार इसकी समझ से बाहर था । मारे सस्पेंस के बुरी तरह आतंकित हो उठा ये और यही मैं चाहता था । जीप चल पड़ी । मैं और एक सब - इंस्पैक्टर ड्राइवर की बगल में आगे बैठे थे । यह चार सशस्त्र पुलिसियों से घिरा पीछे । अलारक्खा उसी भयंकर मानसिक अवस्था से गुजर रहा था जिससे मैं गुजारना चाहता था । इससे आगे का हाल अगर यह अपने मुंह से सुनाये तो बात ज्यादा अच्छी तरह समझ में आयेगी । "

" मैं मान ही नहीं सकता था कि इंस्पेक्टर साहब बगैर पूछताछ किये मुझे छोड़ सकते हैं । "

अल्लारखा चालू हो गया --- " खोपड़ी यह सोच - सोचकर फटी जा रही थी इस्पेक्टर साहब आखिर कर क्या रहे है ? उस वक्त मैं उछल पड़ा जब जीप कॉलिज की तरफ जाने वाले रास्ते को छोड़कर शहर से बाहर निकलने वाले रास्ते की तरफ मुड़ी । लगभग चिहुँककर पूछ बैठा , ..-- ' य - ये आप मुझे कहा ले जा रहे है ? यह रास्ता कालिज की तरफ नहीं जाता ।

इंस्पैक्टर साहब इस तरह से हंसे जैसे मेरी बौखलाहट का मजा ले रहे हो । बोले---- ' डरो नहीं अल्लारखा , इधर थोड़ा काम है । उसे निपटाने के बाद तुम्हें कॉलिज छोड़ देंगे ।

' मुझे बिल्कुल नहीं लगा ये सब बोल रहे हैं । हंहरेड परसेन्ट यकीन हो गया कि कोई खेल खेला जाने वाला है । मैं बहुत कुछ जानना चाहता था । पूछना चाहता था मगर । मुंह से आवाज न निकल सकी ।

जीप सौ की स्पीड पर दौड़ी चली जा रही थी । -'बात समझ में नहीं हम रूड़की रोड पर शहर से बाहर निकल चुके थे । एकाएक सब - इंस्पैक्टर ने इंस्पैक्टर साहब से पूछा समझ नही आ रही सर । हम लोग जा कहां रहे है ?

यह वह सवाल था जिसका जवाब जानने के लिए मैं मरा जा रहा था । अतः मारे उतेजना के घड - धड़ की आवान के साथ बज रहे अपने दिल को नियत्रित करने के असफल प्रयास के साथ कान इंस्पैक्टर साहब के मुंह से निकलने वाले लफ्जो पर लगा दिये । इन्होंने बहुत आहिस्ता से फुसफुसाकर सब इंस्पैक्टर से कहा - ' समझने की कोशिश करो त्रिपाटी ! कोर्ट - कचहरियां इस किस्म के खतरनाक मुजरिमों को वह सजा नहीं दे पाती जो मिलनी चाहिए । ' चौंकते हुए सब - इंस्पेक्टर ने कहा --...-मैं समझा नहीं सर । '
' सत्या ! चन्द्रमोहन ! और हिमानी । तीन - तीन मासूमों की हत्या की है इस हरामजादे ने। इंस्पैक्टर साहब का कौशिश बराबर यही थी कि उनकी आवाज़ मेरे कानों तक न पहुंच पाये --... सोचो ---- विभा जिन्दल के मुताबिक इस केस को हम कोर्ट में ले भी गये तो क्या होगा ? पलक झपकते ही कोई खुराट वकील जमानत करा लेगा इसका ! अगले दिन फिर कॉलिज में दनदनाता घुम रहा होगा । नहीं !

इतने खूंखार हत्यारे की सजा ये नहीं है ।
 
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