desiaks
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एम्बेसडर बैगमपुल जाने वाले मार्ग पर मुड़ी । मैंने थोड़ा फासला बनाये रखकर फालो किया । अब रफ्तार की न मुझे जरूरत थी , न ही उस गति से गाड़ी चला सकता था । रिक्शों . तांगों , साइकिलों , टैम्पू और भैसा बुग्गी आदि का बेतरतीय ट्रैफिक किसी को भी रफ्तार से ड्राइविंग नहीं करने दे सकता था । अब मेरी एक ही ड्यूटी धी ---- प्रिंसिपल को पता न लग पाये मैं उसके पीछे हूं । भरपूर सावधानी बरतता गुलमर्ग सिनेमा और बच्चा पार्फ के सामने से गुजरा । बेगमपुल के चौराहे से एम्बेसडर आबूलेन की तरफ मुड़ गयी । मैं पीछे लगा रहा । और फिर , एम्बेसडर एक बहुमंजिला इमारत के सामने रूकी ।
प्रिंसिपल बाहर निकला । गाड़ी लॉक की और इमारत में दाखिल हो गया । वह तनाव में नजर आ रहा था । उस इमारत की हर मंजिल पर ढेर सारे ऑफिस थे । जानता था . अगर एक वक्त के लिए भी वह आंखों से ओझल हो गया तो नहीं जान सकूँगा कि इमारत में किससे मिला ? क्या वात की ? अतः कार जहा थी , वहीं छोड़कर इमारत में दाखिल हो गया । वह लिफ्ट में दाखिल होता नजर आया । लिफ्ट का दरवाजा बंद हुआ । मैं दौड़कर उसके नजदीक पहुंचा । लिफ्ट एक ही थी । एक विचार आया ---- सीड़ियों के जरिए पीछा करने की कोशिश करूं । अगले पल मैंने यह मूर्खतापूर्ण विचार दिमाग से छिटका । नजरें लिफ्ट के दरवाजे के ऊपर गड़ाये रखीं । ऊपर की तरफ सफर करती लिफ्ट चौथी मंजिल पर रुकी । मैंने उसे ग्राउण्ड फ्लोर पर लाने के लिये बदन पुश किया । लिफ्ट ने नीचे आना शुरू कर दिया । कुछ देर बाद उसका दरवाजा खुला । अंदर दाखिल होते ही फोर्थ फ्तोर के लिए यात्रा शुरू कर दी । चौथी मंजिल पर लिफ्ट रुकी । दरवाजा खुला । मैं बाहर निकला ।
अगले दिन के अखवारों में हैडिंग था ---- कॉलिज की घटनाओं में नया मोड़ ! . वेद प्रकाश शर्मा का अपहरण ! इस हैडिंग ने मेरठ के लोगों और मेरे परिचितों में जो हंगामा मचाया सो तो मचा ही , मेरे परिवार की हालत सबसे ज्यादा खराब थी । मधु बार - बार कह रही थी ये सब मेरी वजह से हुआ है । मैंने ही उन्हें रियल स्टोरी लिखने के लिए उकसाया था । मै सोच भी नहीं सकती थी कि ऐसा होगा । जरूर हत्यारे के चंगुल में फंस गये हैं । फोन की घंटी बार - बार बज रही थी।
दृर - दूर से परिचितों और पाठकों के फोन आ रहे थे । उस गहन अंधकार में मधु को एक आशा की किरण नजर आई । विभा।
विभा जिन्दल और फिर फोन की घण्टी बजी । रिसीवर मेरी बड़ी बेटी करिश्मा ने उटाया । दूसरी तरफ से कहा गया ---- " मधु बहन हैं ? " " आप कौन ? " करिश्मा ने पूछा । “ जिन्दलपुरम से विभा जिन्दल । " मारे उत्साह के उछल पड़ी करिश्मा । वगैर माऊथीस पर हाथ रखे मधु को आवाज लगाकर बुलाया । मधु भागती दौड़ती फोन के नजदीक आई । करिश्मा के हाथ से रिसीयर छीना और बोली ---- " मधु बोल रही हूं विभा बहन , गजब हो गया । " "
हाँ , मैंने पेपर में पड़ा । " विभा की उत्तेजित आवाज उभरी ----
" कैसे हुआ ? "
" विभा बहन ! मैंने तो इनसे पहले ही कहा था आपको बुला लें मगर ये नहीं माने । " मधु बड़ी मुश्किल से खुद को फफकने से रोक रही थी ---- " मुसीबत की इस घड़ी में आप ही मेरी मदद कर सकती हैं । मेरठ आ जाइए । "
" मैं निकलने ही वाली थी । सोचा फोन करना मुनासिब होगा । क्या तुम कोई ऐसी बात बता सकती हो जो अखबार में न छपी हो ? " " अखबार पढ़ने का होश ही कहां है मुझे ! " " घबराने से काम नहीं चलेगा मधु बहन । होसला रखो । भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जायेगा । वेद अपना नया उपन्यास उन घटनाओं पर लिख रहा था । एक इन्वेस्टिगेटर की तरह पुछताछ करता फिर रहा था वह और इस्पैक्टर जैकी के हवाले से छपा है , मेरी इन्फ़ारमैशन के मुताबिक अंत में वेद जी ने प्रिंसिपल से पूछताछ की ।
प्रिंसिपल बाहर निकला । गाड़ी लॉक की और इमारत में दाखिल हो गया । वह तनाव में नजर आ रहा था । उस इमारत की हर मंजिल पर ढेर सारे ऑफिस थे । जानता था . अगर एक वक्त के लिए भी वह आंखों से ओझल हो गया तो नहीं जान सकूँगा कि इमारत में किससे मिला ? क्या वात की ? अतः कार जहा थी , वहीं छोड़कर इमारत में दाखिल हो गया । वह लिफ्ट में दाखिल होता नजर आया । लिफ्ट का दरवाजा बंद हुआ । मैं दौड़कर उसके नजदीक पहुंचा । लिफ्ट एक ही थी । एक विचार आया ---- सीड़ियों के जरिए पीछा करने की कोशिश करूं । अगले पल मैंने यह मूर्खतापूर्ण विचार दिमाग से छिटका । नजरें लिफ्ट के दरवाजे के ऊपर गड़ाये रखीं । ऊपर की तरफ सफर करती लिफ्ट चौथी मंजिल पर रुकी । मैंने उसे ग्राउण्ड फ्लोर पर लाने के लिये बदन पुश किया । लिफ्ट ने नीचे आना शुरू कर दिया । कुछ देर बाद उसका दरवाजा खुला । अंदर दाखिल होते ही फोर्थ फ्तोर के लिए यात्रा शुरू कर दी । चौथी मंजिल पर लिफ्ट रुकी । दरवाजा खुला । मैं बाहर निकला ।
अगले दिन के अखवारों में हैडिंग था ---- कॉलिज की घटनाओं में नया मोड़ ! . वेद प्रकाश शर्मा का अपहरण ! इस हैडिंग ने मेरठ के लोगों और मेरे परिचितों में जो हंगामा मचाया सो तो मचा ही , मेरे परिवार की हालत सबसे ज्यादा खराब थी । मधु बार - बार कह रही थी ये सब मेरी वजह से हुआ है । मैंने ही उन्हें रियल स्टोरी लिखने के लिए उकसाया था । मै सोच भी नहीं सकती थी कि ऐसा होगा । जरूर हत्यारे के चंगुल में फंस गये हैं । फोन की घंटी बार - बार बज रही थी।
दृर - दूर से परिचितों और पाठकों के फोन आ रहे थे । उस गहन अंधकार में मधु को एक आशा की किरण नजर आई । विभा।
विभा जिन्दल और फिर फोन की घण्टी बजी । रिसीवर मेरी बड़ी बेटी करिश्मा ने उटाया । दूसरी तरफ से कहा गया ---- " मधु बहन हैं ? " " आप कौन ? " करिश्मा ने पूछा । “ जिन्दलपुरम से विभा जिन्दल । " मारे उत्साह के उछल पड़ी करिश्मा । वगैर माऊथीस पर हाथ रखे मधु को आवाज लगाकर बुलाया । मधु भागती दौड़ती फोन के नजदीक आई । करिश्मा के हाथ से रिसीयर छीना और बोली ---- " मधु बोल रही हूं विभा बहन , गजब हो गया । " "
हाँ , मैंने पेपर में पड़ा । " विभा की उत्तेजित आवाज उभरी ----
" कैसे हुआ ? "
" विभा बहन ! मैंने तो इनसे पहले ही कहा था आपको बुला लें मगर ये नहीं माने । " मधु बड़ी मुश्किल से खुद को फफकने से रोक रही थी ---- " मुसीबत की इस घड़ी में आप ही मेरी मदद कर सकती हैं । मेरठ आ जाइए । "
" मैं निकलने ही वाली थी । सोचा फोन करना मुनासिब होगा । क्या तुम कोई ऐसी बात बता सकती हो जो अखबार में न छपी हो ? " " अखबार पढ़ने का होश ही कहां है मुझे ! " " घबराने से काम नहीं चलेगा मधु बहन । होसला रखो । भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जायेगा । वेद अपना नया उपन्यास उन घटनाओं पर लिख रहा था । एक इन्वेस्टिगेटर की तरह पुछताछ करता फिर रहा था वह और इस्पैक्टर जैकी के हवाले से छपा है , मेरी इन्फ़ारमैशन के मुताबिक अंत में वेद जी ने प्रिंसिपल से पूछताछ की ।